रविवार, 17 नवंबर 2024

‘फूलमतिया फूआ’

 कहानी

‘फूलमतिया फूआ’



देवकुमार सिंह

छक...छक, छक...छक करत रेल गाड़ी अपना मंजिल के तरफ तेज गति से बढ़त रहे. भारत के विदेश-नीति, चीन-पाकिस्तान के संगे भारत के सीमा-विवाद, राबड़ी देवी आ मायावती सरकार के मनमौजी शासन जइसन बहुतेरे टापिकन पर गरमागरम बहस कइके लगभग कुल्हि यात्री कड़ेर नीनि में सूति गइल लोग.  बाकिर इंजीनियर साहेब के आंखि में तनिकों नीनि ना रहे.  आजु फूलमतिया के उनका खूबे इयाद आवत रहे.

फूलमतिया दुई पास तीन फेल रहे.  निपटे निरक्षर ना रहे.  चिट्ठी-पतरी लिखे-पढ़े जानत रहे.  ढेर पढ़ल ना रहला के चलते ओकरा संगे शादी उनका पसन्द ना रहे, जबकि उ बहुते सुघर, लमहर कद-काठी के, अउर घर-गिरहस्थी के काम-काज में निपुन रहे.  उनका पहिलके राति में ओकरा संगे बक-झक हो गइल. 

‘‘हई लमहर घूघ काहे कढ़ले बाडू़? कइले पढ़ल हउ..? गूंग हउ का... बोलत काहे नइखु...?’’ रमेसर पूछले.  ‘‘इ कुल्हि ढोंग हमरा नीक ना लागे.  अनपढ़ कहीं का? रमेसर डंटले.

‘‘अनपढ़ ना हईं.  दुई पास तीन फेल हईं. ’’ फूलमतिया कहलस आ निहोरा कइलस ‘‘पलंग पर लेटीं, राउर गोड़ दबा दीहीं.’’

‘‘बउचट कहीं का!’’ कहिके रमेसर ओह कमरा से बहरी निकलि अइले.

‘‘हइसन बुरबक, भकोल लड़िकी से हमार बिआह काहे कइल हा? हमार जिनिगी तू चउपट कइ दिहल.  हम एकरा के ना राखबि. ’’ बाबूजी के कमरा में घुसते खिसिआइके रमेसर बोलले.  मास्टर साहेब भउचका गइले आ बाप का रोआब में डपटले - ‘‘एकरा ले नीमन लइकी आठ-दस गो गांव में खोजला प ना मिली.  बहुत रहनदार हिअ.  आ तू एकरा के भकोल कहत बाड़?’’

‘‘एह गंवार लड़की के हम अपना संगे ना राखब’’ कहिके उ ओही राति खा अटइची उठाके घर से निकलि गइले.  बाप के लाख समझवलों पर ना मनले.  माई त इनकर जनमते मरि गईल रहे.  रूई से दूध पिया-पिया के कसहूं जिअवले.  अंगरेेजी इसकूल में नाम लिखवले.  इनका इसकूल के फीस जुटावे खातिर गांव के लड़िकन के टिसनी पढ़ावस, एही से मास्टर साहेब कहाये लगले.  नाही त खेती के आलावा जियका के कवनों साधन ना रहे. अपने साग-सातू खाइके, फाटल धोती में पेवन लगा-लगाके काम चलावसु आ इनका के बढ़िया शिक्षा, नीमन भोजन-वस्त्र के प्रबन्ध करसु.  आजु उहे रमेसर इनकर तनिको बात ना मनले.  ‘‘इ कुल्हि इंगलिस इसकूल में पढ़वला के नतीजा ह. ’’ बुदबुदाते कपार पर हाथ राखिके धम्म से बइठि गइले. 

रमेसर कम्प्यूटर इंजीनियर रहले.  न्यूयार्क के एगो कम्पनी में उनकर नोकरी लागि गइल. आ उ न्यूयार्क चलि गइले.  जाये के पहिले अपना बाबूजी आ मेहरारू से मिलहूं ना अइले. खाली एगो कार्ड पर आपन समाचार आ पता ठेकाना लिखि के भेजि दिहले.  अमेरिका में नोकरी के समाचार सुनि के मास्टर साहेब खूबे खुश भइले.  सतनारायन भगवान के काथा कहववले आ मिठाई बंटले. 

कई बरिस बीति गइल, रमेसर रूपया-पइसा के कहो चिट्ठिओ-पतरी  ना भेजले.  मास्टर साहब कईगो चिट्ठी भेजले बाकिर एको के जब जबाब ना आइल त चिट्ठी लिखल छोड़ि देले. मास्टर साहब बड़ा उदास रहस कि का जाने बबुआ के का हो गइल बा.  बेमार त नइखन आकि कुछ बाउर घटना घटि गईल बा?

मरद के बिना मेहरारू के जिनिगी ऐगो जिन्दा लाश लेखा होला.  बाकिर फूलमतिया त मरद के सुख तनिको ना जनले रहे.  ओकरा जवान देह पर मनचला नवही ललचायी निगाह डालस बाकिर उ एतना डीठ रहे कि कवनो जाना के ओकरा से खोंखे के हिम्मत ना पड़े. गली में एकान्ता भेंट भइला पर एगो बदमाश लड़िका ओकरा से कहलस कि हमरा तोहरा संगे सूते के मन करत बा.  सुनिके उ ताबड़ -तोड़ चप्पल से पीटे लागल ‘‘अपना माई-बहिनिया संगे सूत, उ मू गइल बाड़ी स का? मटिलगना कहीं के. ’’ सुनिके ढेर लोग जुटि गइल आ ओकर ठीक से परिछावन हो गइल.

बड़ा-बुजुर्ग के बेमार पड़ला पर, बच्चा जने के बेरा गर्भवती औरत के, शादी-बिआह, मुअनी-जिअनी सबमें जेही पूछे-कहे ओकरा सेवा में फूलमतिया हाजिर रहे.  लोगन के सेवा में ओकर दिन बीते लागल.  नइहर-ससुरा हर जगह सेवा खातिर ओकर पूछ होखे लागल.  नइहर के लड़िकन के देखादेखी ससुरो के लड़िका ओकरा के फूलमतिया फूआ कहे लगले स.

बिआह के सुख त उ ना जनलस बाकिर सेनूर उ बड़ा टहकारे करे.  एक-दू हाली बूढ़ औरत कहली स - ए फूलमतिया दोसर बिआह क ले, ते अभी जवान बाड़ी स आ पता ना उ तोर मरद आई कि ना. ’’ सुनते ओकर आंखि लाल-लाल हो गइल.  बुझाइल कि उनकर मुंह नोचि ली- खबरदार काकी! अइसन बात कबहूं कहबो मति करिह.  हम एकजनमिया हईं.  हमार मरद इंजीनियर हवें, अइहें चाहे ना अइहें.  कवनो घसछिलवा के मेहरारू हम ना हईं. अस्सी हजार महीना पावेले.  फेरू-फेरू कहबू त राखि लगाके तोहार जीभि खींचि लेबि. बड़ -बूढ़ बाड़ू एहसे छोड़ि देत बानी. ’’

कुछ दिन के बाद मास्टर साहब के पता चलल कि रमेसर एगो अमेरिकन लड़की से शादी कर लेले बाड़े.  मास्टर साहब एही हूके बीमार पड़ले त खाटी धइ लिहलें आ फेरु उठले ना.  फूलमतिया उनकर खूबि जी-जान से सेवा कइलस.  अपना मरद के पास चिट्ठी लिखलस बाकिर उ अइले ना.  मास्टर साहब निरोग ना भइले आ एक दिन दुनिया से चलि गइलें.

फूलमतिया पर त दुःख के पहाड़ टूटि गइल बाकिर रोअल-घबड़ाइल ना.  दुःख सहत-सहत ओकर दुःख सहे के आदत बनि गइल रहे चाहे आंख के लोर- अब सूखि गइल रहे.  मांग-चूंग के मास्टर साहब के किरिया करम भोज-भात उ कइलस.  लोग कहे ‘‘मास्टर साहेब के इ पतोहु ना असली बेटा हिअ.  उ मुंहझउंसा त देखहूं-सुने ना आइल.  ’’

फूलमतिया चट से लोगन के मुंह पर हाथ राखि देवे - ‘‘उनुकरा के बाउर मति बोलीं सभे. शास्तर में लिखल बा कि पति परमेसर होले. उनुका के गाली दिहल-सुनल पाप ह. ’’

केहू जानत नइखे कि केकरा जिनिगी में कब कवन घटना घटि जाई.  जिनिगी एगो पहेली ह- अनबूझ पहेली.  अमेरिका में मेरी नाम के लड़की से शादी कइके रमेसर अपना के दुनिया के सबसे सुखी आदमी बुझत रहले. सुख से अतना सराबोर रहले कि अपना बूढ़ बाप के आ बिअही मेहरारू फूलमतिया के तीस बरिस में एको हाली तनिकों इयाद ना कइले. जइसे उनकर दिमाग कम्प्यूटर होखे आ घर के इयाद वाला इन्टरनेट नम्बर उ भूला गइल होखस.  अगर उनका एड्स न भइल रहीत, आ मेरी के दुलत्ती ना खइलें रहीते त उनका अपना देश के इयाद ना आईत.  मेरी के बात उनका कांट लेखा अबहियों चुभत रहे -

‘‘हमरा अब तोहार कवनो जरूरत नइखे. कोर्ट से तलाक मंजूर हो गइल बा.  दुनो लड़िका अपना वाईफ संगे पहिलही अलगा हो गइल बाड़े स.  इहां के सब धन-सम्पति हमार ह.  हमरा एकरे सहारे जिये के बा.  हम नौकरानी ना हई कि तोहार सेवा करबि.  कुकुर कहीं का !’’

‘‘बाकिर हमरा एड्स त तोहरे संग से भइल बा.  तू ही हेने-होने कई-कई गो मरद संगे छिछियात फिरत रहलू हा.  इ मति भूला कि तहरो एड्स बा. ’’ - रमेसर उलाहना दिहले. 

‘‘हमरा खातिर पईसा बा.  इहे हमार हसबैंड ह.  एहसे हमार सेवा हो जाई.  तू आपन झंखऽ. ’’ कहके मेरी कांख में बेग लटकवलसि आ घूमे निकलि गइल.  रमेसर ओह घरिये मुम्बई खातिर फ्लाइट पकड़ लिहलें.  मुम्बई उतरला पर रेलगाड़ी में बइठि के घर के ओर चलि देले.  इयाद के हिंडोला में उनका कब नीनि लागी गइल उनका ना बुझाइल. 

‘‘आरे भाई, कहां जाये के बा? इ सुरेमनपुर ह. ’’- एगो यात्री उनका के जगवलस.  उ हड़बड़ा के उठले, अटइची उठवले आ उतरि के पयदले चलि दिहले.  गांव में ढूकते लोग अकबका के उनका के निहारे लागल.  अपना घर के सामने भीड़ि देखिके पूछले - ‘‘ए भाई का बात बा?’’

गांव के एगों बूढ़ उनका के चीन्हि गइले ‘‘अरे इ त रमेसरा ह.  का ए बबुआ! बड़ नेकी कइल अपना बाप संगे.  मुंह में आगियों देबे ना अइलऽ.  कतना दुःख से तोहरा के पलले, पढ़वले, इन्जीनियर बनवले आ तू उनका के ठेंगा देखा देलऽ.  धिरकार बा तोहरा लेखा लड़िकन के. ’’

एगो बूढ़ि औरत कहलस - ‘‘इ तोहार बहुरिया हई.  एक महीना से बेमार बाड़ी. अब-तब लागल बा.  तुलसी गंगाजल दे द. बाकिर तू का तरब एकरा के.  इ त अपने करम से सरग जाई.  इ नइहर-ससुरा दुनो गांव के बलुक एह जवार के देवी हीय.  एकर दरसन कइके त तू तरि जइब. ’’

रमेसर तुलसी गंगाजल दिहले.  फूलमतिया आंख खोलि के टुकुर-टुकुर कुछ देर देखलस. चेहरा पर हल्का मुस्कान आइल, टप-टप आंखि से कुछ लोर टपकल आ आपन आंखि मूंदि लेलस हमेसा-हमेसा खातिर.  पूरा गांव पूक्का फारि के रोये लागल - ‘‘बूढ़, बेसहारा, अपाहिज, रोगी के सेवा अब के करी? बच्चा पैदा करावे खातिर अब औरतन के अस्पताल जाये के परी. ’’

जवारभर मिलिके ओकर सराध कइल.  रमेसर के एगो छेदहियो पइसा ना खरचा करे दिहल लोग.  सराध के बाद रमेसर आपन अटइची उठाके चले लगले. 

‘‘काहो तोहार नईकी माई फेरू इयाद पड़ि गइल का?’’ - ललन सिंह गांव के बड़बोलवा गिनाले.  उ टोकिए दिहले.

‘‘ना काका अमेरिका छोड़ि देले बानी.  बाकिर अब गांव में हमार के बा? हमारा एड्स हो गइल बा, कहीं बहरे मरि खपि जाइबि. ’’ - कहिके रमेसर रोए लगले.

‘‘हेने-होने मुंह मरब, चाहे विदेशी लड़की से विआह करब त इसब रोग-बेयार होखबे करी. ’’ फूलमतिया गांव जवार में एतना नेकी कइले बिया कि तोहरा सेवा में इहवां कवनों कमी ना होखी.  चाहे तहरा एड्स-वोड्स कुछुओं होखेे. इहंवे रहऽ. ’’ - कहिके ललन सिंह उनकर अटइची रखि दिहले. 

फूलमतिया आ बाबूजी के उपेक्षा के उनका घोर पछतावा होत रहे.  सचहूं, अब उनका बुझाइल कि फूलमतिया उनका ले ढेर पढ़ल-लिखल रहे.  आचरण के पढ़ाई में ओकर कवनों सानी ना रहे.  कोट के पाकेट से उ चिट्ठी जवना पर उ तनिकों धेयान ना देले रहले निकालि के पढ़े लगले.

पूजनीय सवामी जी!

चरनों में परनाम,

बाबूजी बेमार बानी.  जिए के आस नइखे. जलदी आईं ना त राउर बदनामी होत बा.  आई के फेनु चलि जाइबि.  हम रोकबि ना.  जानत बानी कि एगो उहां रउआ बिआह कइले बानीं. एकर हमरा तनिको तकलीफ नइखे.  रउरा हमार

भगवान हई.  जइसे सुखी रउआ रही, हमार ओही में सुख बा.  थोरे लिखनी ढेर समझी. 

रउआ चरण में बारबार परनाम.  चिट्ठी पावते चलि आई. 

राउर - फूलमतिया. 

ओकर गुन गावत लोग अघात ना रहे. झर-झर लोर उनका आंखे से झरे लागल. फूलमतिया के बात उनका इयाद पड़ल ‘‘अनपढ़ ना हई, दुई पास तीन फेल हई. ’’ जिनिगी के असली इसकुल में उ दु पास रहल हिअ आ हम त खउरहियों क्लास नईखी पास भइल, इहे सोचत उ थउसि के बइठि गइले. 

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देव कुमार सिंह, अंग्रेजी प्रवक्ता, 

आचार्य जे.बी. कृपलानी इण्टर कालेज, जमालपुर, बलिया.


(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर)