लेख
के ह लक्ष्मी
- अजय कुमार काश्यप
सृष्टि से पहिले श्रीकृष्ण के वाम भाग से लक्ष्मी के आविर्भाव भइल रहे. लक्ष्मी बड़ा सुन्दर रहली. जनम का साथे ऊ दू रुप में बंट गइली. ई दूनो रुप अवस्था, आकार, भूषण, सुन्दरता, रंग वगैरह सबमें एक समान रहे. एगो के नाम लक्ष्मी पड़ल आ दोसरका के राधिका. ई दूनो रुप के अभिलाषा पुरावे खातिर श्रीकृष्ण दक्षिणांश से द्विभुज आ वामांश से चतुर्भुज रुप धारण कइनी. द्विभुज रुप राधाकांत आ चतुर्भुज रुप नारायण भइनी. राधाकान्त राधा आ गोपियन संगे ओहिजे रह गइनी आ नारायण लक्ष्मी संगे बैकुण्ठ चल गइनी.
लक्ष्मीजी नारायण के अपना वश में कर के सब रमणियन में प्रधान भ गइली. ई लक्ष्मी स्वर्ग में इन्द्र के संपतिरुपिणी स्वर्गलक्ष्मी के रुप में, पाताल आ मृत्युलोक के राजा के पास राजलक्ष्मी का रुप में, गृहस्थ का पास गृहलक्ष्मी का रुप में, चन्द्र, सूर्य, अलंकार, फल, रत्न, महारानी, अन्न, वस्त्र, देवप्रतिमा, मंगल, घर, हीरा, चन्दन, नूतन,मेघ आदि सबमें शोभारुप में विद्यमान रहेली. लक्ष्मी देवी शोभा के आधार हईं. जवना स्थान पर लक्ष्मी ना रहस उ स्थान शोभाशून्य हऽ.
एक बेरि के बाति हऽ. महर्षि दुर्वासा बैकुण्ठ से कैलाश जात रहीं. देवराज इन्द्र बहुत आदर से प्रणाम कइनी. दुर्वासा ऋषि खुश होके पारिजात के फूलन के माला इन्द्र के दीहलें बाकिर अहंकार में डूबल इन्द्र ओह माला के अपना हाथी ऐरावत का माथ प ध दीहलन. ऐरावत ओह माला के जमीन प फेंक दिहलस. ई सब देख के दुर्वाासा जी के खीस के पार ना रहल आ इन्द्र के सराप दिहलन कि जा तहार अहंकार के जड़ लक्ष्मी तहरा के छोड़ दीही. संगही उहां का ईहो कहनी कि जवना माथे ई माला पड़ल हऽ होकरे पूजा सबसे पहिले होई.
दुर्वासा का सराप का चलते लक्ष्मीजी इन्द्रलोक छोड़ के चल गइली. लक्ष्मीहीन इन्द्र देवतालोग के साथ ले के तब ब्रह्मा जी का शरण में पंहुचलन. ब्रह्मा जी ओह लोग के ले के विष्णुजी का लगे गइलन आ सब किस्सा कहलन. पूरा बाति सुन के विष्णुजी देवता लोग के सलाह दिहनी कि चिन्ता छोड़ऽ जा. तहरा लोगन के लक्ष्मी फेरु मिलिहन. विष्णुजी ओहलोग के इहो बतलवनी कि लक्ष्मी कहां कहां रहेली आ कहवां ना टिकस. एकरा बाद उहांका लक्ष्मीजी के आदेश दीहनी कि जा समुद्र में जनम ल. ब्रह्मा जी से कहनी कि रउआ सभ देवता लोग का संगे समुद्र मह के लक्ष्मीजी के उद्धार करे के कोशिश करीं.
बादमें समुद्र मथाईल आ लक्ष्मीजी ओह मंथन में प्रकट भइली. एहतरे लक्ष्मीजी के उद्धार भईल आ विष्णु भगवान फेरु उनुका के अपना लिहलन. ईहे लक्ष्मी जी के कहानी ह.
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अनुवादक: - मुकेश
अभिनन्दन कुटीर, सतनी सराय,
बड़ी मठिया, बलिया - 277 001
(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई दिसम्बर 2003 में अंजोर भइल रहल)