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रविवार, 29 दिसंबर 2024

लोकगीतन में जीवन के निस्सारता

 लेख

लोकगीतन में जीवन  के निस्सारता


- डा.भगवान सिंह भाष्कर



आजु ई संसार नश्वर हऽ. दुनिया के सब  नाता रिश्ता झूठ हऽ. आदमी एह संसार में  नाटक के पात्र के तरह आपन भूमिका निभावेला  आ जइसहीं ओकर रोल खतम होला ऊ संसार  रुपी मंच के छोड़ के चल देला. मरद मेहरारु,  बाप बेटा, हित नात, दोस्त दुश्मन सब छनिक  नाता होला. मुअला का बाद केहू केहू ना होखे.

 भारत के हर भाषा के साहित्य में जीवन  के निस्सारता से जुड़ल लिखनी के कवनो कमी  नइखे. परिनिष्ठित साहित्य होखे भा साहित्य, जीवन के नश्वरता के अनुगूंज हर जगह
 बराबरे सुनाई पड़ेला. मैथिल कोकिल विद्यापति जब सब ओरि से  हार गइलन त भगवान कृष्ण के शरण में अपना  के डाल दीहलें -

‘‘तातल सैकत वारि विन्दु सम,
सुत मित रमनी समाजे,
तोहे बिसरि मन ताहे समरपिलु,
अब मझु होवे कौन काजे,
माधव हम परिनाम निराशा.’’

लोक साहित्यो में अइसन गीतन के  भण्डार भरल बा जवन जीवन के निस्सारता का  ओरि इशारा करत बाड़े आ भगवत् भजन करे  के संदेश देत बाड़े. सब आदमी के इश्वर के दरबार में जरहीं  के पड़ी, आ पछिताये के पड़ी. एह स्थिति के  बरनन लोक गीत में देखीं -

‘‘एक दिन जाये के पड़ी परभू के नगरिया,
डगरिया बीच पछिताये के पड़ी.
उहवां कईल तू करारी,
भगति करम हम तोहारी.
ईहवां भूलल बाड़ माया के बजरिया,
डगरिया बीच पछिताये के पड़ी.’’

सब देहधारी के एक ना एक दिन भगवान का दरबार में जाहीं के पड़ी आ  ओह दिन पछिताहूं के पड़ी. काहे कि  ओहिजा से त तू कहि के चलल रहूवऽ कि  दुनिया में भगवान
के भगति करेम,  बाकिर एहिजा पंहुचला का बाद तू माया  का बाजार में आपन वादा भुला गइलऽ.  एहसे भगवान के ईहां जाये के राह में  तहरा अपना करनी पर पछिताहीं के पड़ी.

कहल गइल बा कि आदमी के अपना  गलती के अहसास हो जाव त ऊ सुधर  जाला. जीवन का कवनो चरण में ऊ सुधर  जाव आ भगवान का भगति में डूब जाव  त ओकर जिनिगी आ भविष्य संवर  जाई. एहि बाति के बरनन लोकगीत में  देखीं -

‘‘अबहिं बिगड़ल नईखे मनवा,
करऽ राम के भजवना,
ना त बान्हल जईब जम के दुअरिआ,
डगरिया बीच पछिताये के पड़ी.’’

हे मन, अबहिओं कुछ बिगड़ल नईखे.  अबहिओं से राम के भजन कर लऽ. ना  त जमराज का दरबार में तहरा के सजा  मिली आ भगवान के ईहां जाये के राह में  तहरा अपना करनी पर पछिताहीं के पड़ी.

विधि के विधान बड़ा विचित्र बा.  जनम केहू देला, भाग केहू अउर लिखेला,  आ मउत केहू तीसरा का हाथे बा. एकर  झांकी लोकगीत में देखीं -

‘‘केइये जनमिया हो दिहलें,
केइये मारेला टांकी?
कवन भइया आवेलें बोलावन हो रामा?

राम जी जनमिआ हो दिहलें,
बरम्हा मारेलें टांकी,
जम भईया आवेले बोलावन हो रामा.’’

आदमी के जनम देबे वाला के ह? के  ओकर भाग्य लिखेला? आ ओकर जीवनलीला के खतम करेला? एह सवालन के जवाबो ओही गीत में आगे बा कि रामजी  जनम देलें, ब्रह्माजी भाग्य लिखेलें, आ मउत का  बेरा जमराज के हाथ में बा.

जब कवनो आदमी के मउत होला त ओकर  शरीर अपना गति का चिन्ता में रोवे लागेला. एह भाव के बरनन लोकगीत में देखीं -

‘‘निकलत परान काया हो काहे रोई?
रोई रोई  काया पूछे माया से -
सुनहू माया चित लाई,
तू तऽ जइब अमरलोक में,
हमरो कवन गति होई?
निकलत परान काया हो काहे रोई?’’

प्राण निकलत घरी देह काहे रोवे? देह रो रो के आत्मा रुपी माया से पूछेला - तू त  अमर लोकि में चलि जईब बाकिर हमार का  परिनाम भा गति होई? मुवला का बाद आत्मा के आपन राह  अकेलहीं चले के पड़ेला. ओकर साथ देबे वाला  तब केहू ना रहे. महतारी मेहरारू भाई सब केहू  एहिजे रोवत रहि जाला. एकर बरनन लोकगीत  में  देखीं -

‘‘केश पकड़ के माता रोवे,
बांह पकड़ के भाई,
लपटि झपटि के तिरिआ रोवे,
हंस अकेला जाई.’’

आदमी के मुवला का बाद ओकर माथ अपना गोदि में रख के महतारी रोवत बाड़ी.  भाई ओकर बांह हिला हिला के रोवत बा. आ  मेहरारू ओकरा से लपट झपट के रोवत बाड़ी.
बाकिर केहू ओकरा संगे जाये वाला नइखे. सबकेहू एहिजे रहि जाई आ ऊ अपना आखिरी  सफर में अकेलहीं जाई.

आदमी कतना गलतफहमी में रहेला ! भर  जिनिगी ऊ अपना देहि के साबुन सोडा से मल  मल के धोवेला. ओकरा अपना देहि के कतना  फिकिर रहेला कि देहि चमकत रहो. काश, ऊ  जानि पाईत कि मुवला का बाद ई सब बेमानी  हो जाई. एहि बाति के अब लोकगीत में देखीं  -

‘‘एकदिन तरुवर के सब पत्ता,
झरि जईहें जी एक दिनवा.
ऐ देहिआ के मलि मलि धोवलऽ
साबुन सोडा लगाई.
सोना जइसन चमकत देहिआ
कवनो काम ना आई.’’

आदमी खाली दुनियादारी का फेर में  रहेला बाकिर जब ओकरा होश आवेला त  ऊ भगवान के गोहरावे लागेला. ऊ बुझ  जाला कि ओकर नाव के पार लगावे वाला  भगवान के छोड़ि के दोसर केहू नइखे. एह  मानसिक व्यथा के लोकगीत में बरनन देखीं  -

‘‘नइया बीच भंवर में
हमरो डगमगाइल बा,
जिअरा मोरि डेराईल बा.
दउड़ीं दउड़ीं किसन कन्हइया,
हमरो पार लगा दीं नईया.
रउरा चरन कमल में
दास लोगि लपटाईल बा,
जिअरा मोरि डेराईल बा.’’

एह गीत में अपना हालत से घबड़ाइल आदमी भगवान के गोहारत बा कि हे  किसन भगवान दउड़ के आईं आ हमरा  नाव के पार लगादीं. दुनिया भंवर में डूबे  से डेराइल राउर दास लोग रउरा गोड़ि से  लिपटाईल बा कि रउरा ओह सब लोग के  पार लगा दीं.

सांचो ई जीवन नश्वर बा. लोकगीतन जीवन के निस्सारता के चर्चा एह लेख में  संक्षेप में कइल बा. भगवान के भजन  बिना ई मानव जनम सार्थक ना हो सके.  दुनिया के मायाजाल में ना फंसि के हमनि  के भगवान का चरण में अपना के समर्पित  कर देबे के चाहीं. भगवान के किरपा हो  जाई त सब कुछ पार लाग जाई.

महामंत्री,
अ.भा.भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, पटना.
सम्पर्क - प्रखण्ड कार्यालय का सामने, सीवान.

(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई जनवरी 2004  में अंजोर भइल रहल)

के ह लक्ष्मी

 लेख

के ह लक्ष्मी


- अजय कुमार काश्यप



सृष्टि से पहिले श्रीकृष्ण के वाम भाग से लक्ष्मी के आविर्भाव भइल रहे. लक्ष्मी बड़ा सुन्दर रहली. जनम का साथे ऊ दू रुप में बंट गइली. ई दूनो रुप अवस्था, आकार, भूषण, सुन्दरता, रंग वगैरह सबमें एक समान रहे. एगो के नाम लक्ष्मी पड़ल आ दोसरका के राधिका. ई दूनो रुप के अभिलाषा पुरावे खातिर श्रीकृष्ण दक्षिणांश से द्विभुज आ वामांश से चतुर्भुज रुप धारण कइनी. द्विभुज रुप राधाकांत आ चतुर्भुज रुप नारायण भइनी. राधाकान्त राधा आ गोपियन संगे ओहिजे रह गइनी आ नारायण लक्ष्मी संगे बैकुण्ठ चल गइनी.


लक्ष्मीजी नारायण के अपना वश में कर के सब रमणियन में प्रधान भ गइली. ई लक्ष्मी स्वर्ग में इन्द्र के संपतिरुपिणी स्वर्गलक्ष्मी के रुप में, पाताल आ मृत्युलोक के राजा के पास राजलक्ष्मी का रुप में, गृहस्थ का पास गृहलक्ष्मी का रुप में, चन्द्र, सूर्य, अलंकार, फल, रत्न, महारानी, अन्न, वस्त्र, देवप्रतिमा, मंगल, घर, हीरा, चन्दन, नूतन,मेघ आदि सबमें शोभारुप में विद्यमान रहेली. लक्ष्मी देवी शोभा के आधार हईं. जवना स्थान पर लक्ष्मी ना रहस उ स्थान शोभाशून्य हऽ.

एक बेरि के बाति हऽ. महर्षि दुर्वासा बैकुण्ठ से कैलाश जात रहीं. देवराज इन्द्र बहुत आदर से प्रणाम कइनी. दुर्वासा ऋषि खुश होके पारिजात के फूलन के माला इन्द्र के दीहलें बाकिर अहंकार में डूबल इन्द्र ओह माला के अपना हाथी ऐरावत का माथ प ध दीहलन. ऐरावत ओह माला के जमीन प फेंक दिहलस. ई सब देख के दुर्वाासा जी के खीस के पार ना रहल आ इन्द्र के सराप दिहलन कि जा तहार अहंकार के जड़ लक्ष्मी तहरा के छोड़ दीही. संगही उहां का ईहो कहनी कि जवना माथे ई माला पड़ल हऽ होकरे पूजा सबसे पहिले होई.

दुर्वासा का सराप का चलते लक्ष्मीजी इन्द्रलोक छोड़ के चल गइली. लक्ष्मीहीन इन्द्र देवतालोग के साथ ले के तब ब्रह्मा जी का शरण में पंहुचलन. ब्रह्मा जी ओह लोग के ले के विष्णुजी का लगे गइलन आ सब किस्सा कहलन. पूरा बाति सुन के विष्णुजी देवता लोग के सलाह दिहनी कि चिन्ता छोड़ऽ जा. तहरा लोगन के लक्ष्मी फेरु मिलिहन. विष्णुजी ओहलोग के इहो बतलवनी कि लक्ष्मी कहां कहां रहेली आ कहवां ना टिकस. एकरा बाद उहांका लक्ष्मीजी के आदेश दीहनी कि जा समुद्र में जनम ल. ब्रह्मा जी से कहनी कि रउआ सभ देवता लोग का संगे समुद्र मह के लक्ष्मीजी के उद्धार करे के कोशिश करीं.

बादमें समुद्र मथाईल आ लक्ष्मीजी ओह मंथन में प्रकट भइली. एहतरे लक्ष्मीजी के उद्धार भईल आ विष्णु भगवान फेरु उनुका के अपना लिहलन. ईहे लक्ष्मी जी के कहानी ह.
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अनुवादक: - मुकेश
अभिनन्दन कुटीर, सतनी सराय,
बड़ी मठिया, बलिया - 277 001

(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई दिसम्बर 2003  में अंजोर भइल रहल)

शनिवार, 28 दिसंबर 2024

विकास माने हाफ पैंट

 ललित निबन्ध

विकास माने हाफ पैंट


- डा. दिनेश प्रसाद शर्मा

एह लेख के मथेला पढ़िके काहे चकचिहाइल बानीं ? काहे भकुआईल बानीं जी ? रउआ इहे नू सोचत बानीं कि भला इहो कवनों मथेला में मथेला भइल ? कहवां विकास आ कहवां हाफ पैंट ! एह दूनो के तालमेल कइसे बइठि गइल ? दूनों के गोटी एके जरे कइसे सेट हो गइल ? एह दूनों के एक दोसरा से कवनो तालमेल हइये नइखे त इन्हनीं के एके जरे रखला के मतलब ? घबड़ाईं जिन. हम फरिया फरिया के फरिआवत बानीं नू. दूनों के गोटी एक जरे बइठावत बानीं नू.

कवनो जीव जब एह धरती पर जनम लेला त ऊ आपन पूरा जिनिगी के लम्बाई चौड़ाई के सभसे छोटहन रूप में रहेला. जइसे जइसे समय बीतल जाला भा ई कहीं कि ऊ जीव आपन उमिर जीअत जाला ओइसे ओइसे ओकर लम्बाई चौड़ाई बढ़त जाला. प्रकृति के ई अइसन ना नियम बा जेकरा के नकारल ना जा सकेला. हं, ई हो सकेला कि कुछ खास जीव के बढ़े के हिसाब किताब कवनों खास उमिर पर जा के रुकि जाय आ कुछ के ता-जिनिगी चलत रहे. हमरा आजु तले ई सुने में ना आइल कि एह धरती प कवनों जीव अइसनो बा जवन जनम के बेरा आपन जिनिगी के पूरा लम्बाई चौड़ाई में रहे आ जइसे जइसे ओकर उमिर बढ़त गइल ओइसे ओइसे ओकर लम्बाई चौड़ाई घटत घटत एकदम सोना पर पहुंचि गइल. अइसे त एह धरती प एक से एक जीव पटाइल पड़ल बाड़ें. कुछ हमनी के लम्बाई चौड़ाई से कई गुना जादे बड़, त कुछ अइसनों जवना के खुला आंखि से देखलो ना जा सकेला. एहसे अगर प्रकृति अपना गरभ में ओइसनको जीव के रखले होखे जवन उमिर के साथ अपना लम्बाई चौड़ाई में घटत जाला त इ हमरा जानकारी के बाहिर के बाति बा.

एह धरती प के सभसे अजूबा जीव आदमी ह. ऊ अपना आप के अपना कारनामा से दोसर दोसर जीव से एकदम अलगा साबित क देला. मानव समाज में जब कवनों लईका जनम लेला त ओकरा के खाली एगो लंगोटी आपन खास जगह के तोपे खातिर पहिरावल जाला. ओह घरी ऊ अपना जिनिगी के सभले छोट लम्बाई चौड़ाई में रहेला. जइसे जइसे ऊ लइका आपन उमिर बितावल शुरू करेला ओकरा लम्बाई चौड़ाई के अनुपात में ओकरा लंगोटियो के लम्बाई चौड़ाई बढ़त जाला. ऊ लंगोटी अब चड्ढी के रुप ले लेले रहेला. फेनु उहे चड्ढी हाफ पैन्ट का रुप ध के एगो नया रुप में लउके ले. उहे लइका जब जवानी के देहरी प आपन गोड़ ध देला, फुल पैन्ट भा पाजामा के अपना चुकल रहेला. जइसे जइसे आदमी के उमिर में बढ़ोतरी होला ओइसे ओइसे देह के आकार के संगे संगे ओकरा देहि के बहतरो में बढ़ोतरी होत जाला.

लइका जबसे किशोरावस्था में आ जाला ओही घरी से ऊ चाहेला कि ओकर टंगरी पूरा के पूरा तोपाइल रहो. ऊ भरसक एही फेर में रहेला कि ओकर टंगड़ी एड़ी के उपर उघार मत लउके. एकरा खातिर ऊ फुल पैन्ट भा पाजामा अपनावेला. लइकाईं में ऊ एह बाति प कवनो खास धेयान ना दे काहे कि ओह घरी ले ओकरा दिमाग में ओतना चरफर ना भइल रहेला. ओह घरी ओकरा में सोचे समुझे के अतना ताकत ना रहेला तबो ऊ अपना से उमिरदार आदमी के देखि के सीखे के कोसिस करत रहेला. जइसे जइसे ऊ बड़ होत जाला, छोट से छोट बाति प धेयान देबे लागेला.लइकन के लइकाई वाला हरक्कत अगर बूढ़ भा सयान आदमी करे लागेला त ई दोसर लोग के हजम ना होखे आ उनुका मुंह से बरबस निकल जाला कि का लइकभुड़भुड़ई कइले बाड़ऽ ?

कुछे दिन पहिले के बाति ह. हमनी के देस में पुलिस डिपाट में सिपाही जी लोग के हाफपैन्ट पहिन के डिउटी करे के पड़त रहे. कपार प के बार एकदम सन हो गइल बाकि उनूका डिउटी में फुलपैन्ट पहिने के इजाजत ना रहे. ना जाने सरकार के दिमागी कारखाना में कवन अइसन फारमूला तइयार भइल कि ऊ उनुका लोगन के हाफपैन्ट के जमानत जब्त क के फुलपैन्ट पहिरे के फरमान जारी क दिहलस. कुछ खास बाति त जरूरे होखी. हमरा त इहे बुझाला कि सरकार के बूझला इ पसन ना पड़ल कि बूढ़ बूढ़ सिपाही हाफपैन्ट पहिर के आध उघार हालत में आपन डिउटी करे. इनिका लोग के अपना डिउटी का समय में हरेक किसिम के आदमी से पाला पड़ेला. जवना में लइका सयान मरद मेहरारू सभे रहेलन. सभका बीच में सिपाही जी के हाफपैन्ट में घूमल भला नीक कइसे कहाई ?

ई सभ बाति त मरदन के भइल. अगर मेहरारूअन प नजर ना फेरल जाइ त ई उन्हनीं का संगे सरासर अन्याय होखी. काहे कि हमरा देस में मरद मेहरारू दूनो के बराबर के अधिकार मिलल बा. अगर ओह लोग का बारे में कुछ ना कहाई त ई ओह लोग के अधिकार के हनन होखी. हमरा कवनो अधिकार नइखे बनत कि सरकार से मिलल ओह लोग के सरकारी अधिकार के नजरअंदाज करीं भा ओकर मजाक उड़ाईं.

लइकी जब नन्ही चुकी रहेले त चड्ढी आ फराक में समेटाइल बटोराइल रहेले. जेंव जेंव ऊ बढ़त जाले ओकरा प देह दिखावन के सीमा, जवन हमनी के समाज तय कइले बा, लागि जाले. ऊ खाली आपन एड़ी आ मूड़ी उघार राखि सकेले, उहो हिन्दू धरम के मोताबिक. मुसलमानी धरम के मोताबिक ओकरा आपन मूड़ियो तोप के राखे के रिवाज बा. लइकी जखनी सयान होके बिआह के बन्हन में बन्हा जाले त ओकरा आपन संउसे देहि लोग का नजर से बचा के राखे के पड़ेला. यानि की पूरा के पूरा देहि कपड़ा से तोपाइल.

खैर इ त हमनी के देस के संस्कृति ह, सभ्यता ह. जेकरा के हमनी के अपना पुरखा पुरनिया के दिहल तोहफा के रुप में अपनवले बानीं जा आ एही में आपन बड़प्पन बुझिलां जा. बर्व महसूस करींला जा. बाकिर नयका पीढ़ी अब लकीर के फकीर बनल आ अपना पुरखा पुरनिया केबतावल राहि प चले में आनाकानी करत बा, पगहा तुड़ावत बा.

विकास के मतलबे होला आगे मुंहे बढ़ल. विकास के इ माने अब आन बेर के हो गइल. एह घरी एकर माने साफे बदल गइल. अब विकास के माने पाछे हटल, बड़हन से छोटहन रुप धइल हो गइल बा. हमनी के पुरखा पुरनिया पहिले नदी तालाब के पानी पीअत रहे. बाकिर जइसे जइसे उनुका लोग के दिमाग के विकास भइल भा इ कहीं कि इनिका लोग के अकिल के केंवाड़ी तनी फांफर भइल, इ लोग ओह नदी तालाब के पानी समेटि के कुईंया में क दीहल आ लागल ओकरे पानी धोंके. अउरी विकास भइल आ कुईंया से ना फरिआइल त ओह कुईंया के पानी के लोग चापाकल में ढूका दीहल आ ओकरे से पानी पीअे लागल. विकास के रफ्तार रूकल ना, चलत रहल. चापाकल के पानी आउरी पातर पाइप में ढूकि के टंकी में हेलि गइल. अतना के बाद लोग सोचल कि चल अब काम फरिआ गइल. बाकिर ना. इनिका लोगन का दिमाग का खूराफाती कारखाना में डिजाइन डिजाइन के फारमूला तइयार होत रहल आ ऊ पानी देखते देखत दीया वाला जिन्न लेखा बोतल में हेलि गइल आ फ्रीज के राहि पकड़ि लिहलस. अतनो प लोग के संतोष ना भइल. लोग सोंचल कि पानी खातिर फ्रीजके दन्तजाम कहां कहां होखी ? एहसे लोग पानी के पाउच में बन्द क के बगली में, झोरा में, अटैची में लेके चले लागल ताकि जब मन करी, जहवां मन करी, ओहिजे सरकारी दारू के पाउच लेखा दांते नोचि के घटाघट घटक जाइब, झुराइल देहि तरि हो जाइ, मन हरिअर हो जाइ, ओठ प के फेंफड़ी झुरा जाइ.

रउआ सभे अब इहे सोचत होखब कि ई हंसुआ के बिआह में खुरपी के गीत काहे गावे लगलन ? बकत रहलन कुछ आ बके लगलन कुछ अउर. बतकही बतकूचन होति रहे फुल आ हाफ पैन्ट के. एह में कुईंया  तालाब, टंकी पाउच इ सभ केने से जहुआइल आके दाल भाति में ऊंट के ठेहनु लेखा लउके लगलन स ? तनी सा सबुर राखीं. तनी करेजा कड़ा कइले रहीं. मरद मानुख के अकुताई ना सोहाय. ठहरीं, हमरा के तनी ई सभन के जवरिया लेबे दींही. रउआ आंखि के सोझा एकएक गो बाति परत दर परत खुलत चल जाई.

हं, त हम कहत रहीं कि आदमी सयान भइला प आपन संउसे देहि तोपि लेबे के चाहेला. जमाना बदल गइल. अब त लोग आपन संउसे टंगरी तोपे में अंउजाये लागत बा. पहिले केहू के मुंह तोप दिआत रहे तब ऊ उजबुजात रहे. अब ऊ टंगरिये तोपे में उजबुजाये लागत बा. आदमी का विकास का संगे जइसे पानी आपन रुप आकार बदलत चलि गइल ओसहीं आदमी के कपड़ो रुप आकार बदलत चलि गइल. जइसे जइसे पानी के आकार छोट होत गइल ओइसहीं आदमी अपना कपड़ो के लम्बाई चौड़ाई छोट करत चलि गइल.

लइका से लेके सयान, बूढ़ से लेके जवान सभे आपन विकसित रुप के लोग के सोझा परोस रहल बा. विकसित समाज में अविकसित रहल विकास के नजरिया से अनुचित कहाई, उचित ना. मरद आ मेहरारू के भारतीय संविधान से मिलल बरोबरी के अधिकार के उपयोग आ उपभोग करत जनानी समुदाय के सदस्या लोग अपना आप के एकरा से बरी ना क के मरदाना समुदाय के सदस्यन जवरे डेग से डेग मिलावत चलि रहल बा. मरदानी डिपाट हाफपैन्ट में आ चुकल बा त जनानियो डिपाट के लोग आपन पूरा ड्रेस के हाफ क के स्कर्ट में बदलि के आपन अधिकार के उपयोग आ उपभोग करि रहल बा. जहवां बाति बरोबरि के रहेला ओहिजा भेदभाव नीक ना होखे. एही से जनाना डिपाट के लोग मरदाना डिपाट से पाछा नइखे रहे के चाहत.

पैन्ट के पहिला अवस्था जवन आदमी के सयान भइला प फुलपैन्ट रहे तवन विकास के दोसरा खेंड़ी प हाफपैन्ट का रुप में आ गइल बा. तीसरका खेंड़ी प जब चंहुि प त चड्ढी भा लंगोटी का रुप में लउकी. चउथा खेंड़ी प चहुंप के ई कवना रुप में लउकी ? ई त रउरा खुदे समुझि सकत बानीं. एकरा बारे में रउरा हमरा से जादे बताइब भा समुझाइब. काहे कि रउओ एही विकसित देस के विकसित समाज के विकसित दिमाग के विकसित आदमी बानीं. हाफपैन्ट पहिन के चलीं. फुलपैन्ट मे काहे अझुराइल बानीं ? तनी उघारि के चलीं. तनी हवा लागे दींही ना त ..... !
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अनाईठ, प्रसाद पेपर वर्क्स लगे,
भोजपुर - 802 301

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  दिसम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)