साहित्य लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
साहित्य लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

एहसान

 कहानी

एहसान


- डॉ श्रीप्रकाश पाण्डेय

इ बइठक साधारण ना रहे. सत्ताधारी पार्टी के मुखिया अउरी उनुकर सब विश्वासी लोग बड़ा गम्भीर मुद्दा पर बातचीत करत रहे लोग. वइसे त उनुकर सरकार चार साल से चलत रहे अउरी पांचवा साल में चुनाव होखे के रहे. समस्या इ ना रहे कि चार साल में सरकार के काम काज निमन रहे कि बाउर, समस्या इहो ना रहे कि अगिला साल ओट में जीत मिली की हार. समस्या इ रहे कि अगर नेताजी फेरू मुख्यमंत्री ना बनब त का होई ?

इ समस्या मुख्यमंत्री के विश्वासी लोगन के सेहत से कवनो सम्बन्ध ना राखत रहे. इ त नेताजी के ‘परसनल’ समस्या रहे. लेकिन  विश्वासी चमचवनी के आपन विचार व्यक्त करे के मोका मिलल रहे त उ बड़ा गम्भीर मुद्दा बनवले रहले स. जइसे कि सामने प्रलय आवे वाला होखें अउरी इ ओह प्रलय से बचाव के राहता खोजत होख स.

एह बैठक में पांचे आदमी रहले. एगो खुद नेताजी, जवन चार साल से प्रदेश के मुख्यमंत्री रहलन, दोसरका उनुकर हमजात व्यक्तिगत सचिव. तीसरका उनुकरे पार्टी के कोषाध्यक्ष. चउथका उनुका पाटी के प्रदेश अध्यक्ष आ पांचवा उनुकर भाई, जे अभी पनरह दिन पहिले एगो मेहरारू के बलात्कार अउरी ओहकर हत्या कइला के बादो मजा से घुमत रहले.

चार साल के सरकार चलवला में प्रदेश बीस साल पीछे चलि गइल रहे, इ उन्हन लोग खाती कवनो समस्या ना रहे. चार साल में अपराध में तीन गुना विकास भइल रहे, इ ओह बैठक के कवनों मुद्दा ना रहे. चार साल में प्रदेश के बिजली, सड़क, स्कूल अउरी रोजगार के सब व्यवस्था तहस-नहस हो गइल रहे, इहो कवनों बड़ बात ना रहे. चार साल से प्रदेश में गुण्डा राज चलत रहे, एह बात के कवनों चिन्ता नेताजी के ना रहे. चार साल में कतना किसान आत्महत्या कइले रहले, इ कवनो समस्या ओह बइठककर्ता लोग के ना रहे.

चार साल में प्रदेश में जवन भइल, तवन प्रदेश के लोग के बरबाद करे वाला काम भइल. इ कवनो ध्यान देबे वाला बात ना रहे. चार साल में नेता जी के पार्टी के लोग जवन मन कइल तवन नेताजी के आदमी होखला के नाम पर कइल, लेकिन नेताजी के ओह से कवनो परसानी ना रहे. त फेरू परसानी काथी के रहे?

बइठक में मुख्यमंत्री के सचिव जी बोलल शुरू कइले - ‘जइसन की रउआ सब जानतानी कि अगिला साल ओट होखे वाला बा. इ जरूरी नइखे कि जनता हमहनी के जिताइए दी. काहें से कि लोकतन्त्र में जनता बे पेनी के लोटा होली स. आजू रउआ संगे बिया काल्हू केहू अउरी के संगे होई जाई. चुनाव में हार-जीत नेताजी के कवनों समस्या नइखे, काहें से कि ओकर ठीका बाहर के लोगन
के दिया जाई. ओह खातीर नेताजी आपना खास अधिकारियन के ड्यूटी में लगा देबि. आ फेरू चुनाव चार साल बाद बावे ओकर चिन्ता करे खातीर हमनी के नइखीं जा बइठल. जइसन की रउआ सब जानतानी कि नेताजी कतना गरीब परिवार से रहनी आ इहां के बाबूजी खेत में मजदूरी कइले.........’

‘चूप ना रह सचिव. तहरा से इहे पूछाता कि नेताजी के बाबूजी का रहनी ? उहां के उपर कइगो हत्या बलात्कार के केस बा ? तू मेन बात बताव.‘ - मुख्यमंत्री के सचिव के बात काटि के प्रदेश अध्यक्ष फूफकरले.

‘हमार इ मतलब नइखे. हम चाहतानी कि रउआ सब मए बात ठीक से समझि जाई.’

‘त तू ई कहल चाहतारऽ कि जे गरीब होला ओकर लइका मुख्यमंत्री ना होले स.’ - नेताजी के भाई गरम होई गइले.

‘तू चूप रहऽ. जब तक पूरा बात समझि में ना आवे तब तक कहीं टांग ना अड़ावल जाला.’ - नेताजी आपन भाई के समझवले.’ अब हमरे सब बात बतावे के परी. इ ठीक बा कि हमार जीवन खुलल किताब हवे आ ओकरा के रउआ सभे खूब पढ़ले बानी. फेरू हम ओह के दोहरा देत बानी.‘

नेता जी आपन कहानी बखान करे लगलें -

‘बात ई ओहिजा से शुरू होखल जब हम दस बरिस के रहनी आ मुन्ना दू बरिस के.’ - नेता जी अपना छोटा भाई के एहि नाम से पुकारत रहनी.

‘ओह दिन हम बेमार पड़ल रहनी आ माई-बाबूजी हमरा खटिया के लगे हमरा ठीक होखे के आशा लेके बइठल रहल लोग. तबियत में कुछ सुधार रहे तबे गांव के धनिक हमरा घरे अइले आ हमरा बाबूजी से कहलें कि का रे शिवधनिया, आजू का करत रहले हा कि काम प ना अइले ह ? ’

‘ओइसे त उ धनिक आदमी के उमिर हमरा बाबूजी से कमे रहे, लेकिन बाबूजी हाथ जोरी के कहले कि मालिक लइका के तबियत खराब रहल ह, ओहि बिपति में फंसि गइल रहनी हा. आतना सुनला के बाद उ धनिक कहले कि तोरा अपना लइका के फिकिर बा आ हमार काम के नइखे ?’

‘ई बात नइखे मालिक.’

‘त कवन बात बा ?’

‘मालिक हमार लइका............’

‘चूप. चलू हमरा संगे आजू ढेर जरूरी काम बावे.’

‘लइका के छोड़ि के ?’

‘हं.’

‘ना मालिक अइसन मति करीं.’

‘ते ना चलबे ?’

‘ना.’

‘बाबूजी के अतना कहते उनुकर लात-मुक्का से स्वागत शुरू हो गइल. उ तब तक ओह धनी आदमी के लाख प्रयास के बादो लात खात रहि गइले जब तक कि उ हांफे ना लागल.’ - ई कहि के नेताजी के आंखि डबडिया गइल. माहौल गमगीन हो गईल. आंखि पोछि के नेताजी फेरू शुरू हो गईलन -

‘हम पढ़े में तेज रहनी लेकिन पेट भरे के काम आ पढ़ाई एक संगे ना चलित. लेकिन तबो हम हिम्मत ना हरनी. दुख त एह बात के रहे कि उ आदमी अक्सर बाबूजी के मारे. एक दिन इहे होत रहे त उ हमरा से बरदास ना भइल आ लेहना
काटे वाली गड़ासी से ओह आदमी के गरदन काटि दिहनी. चौदह बरिस में पहिला खून. तब से कहां के पढ़ाई ! एगो ई धन्धे शुरू हो गइल खून करे के.

हमरा लगे एक से एक नेता लोग के बुलावा आवे आ हम उन्हन लोग के जीतावे के ठीका लीहीं आ आपना गिरोह  के आदमी से बूथ कैप्चरिंग करा के जीतवाईं.

एगो समय अइसन आइल कि हमार जीतवावल चालीस पचास के करीब विधायक जीते लगलें. हमरा के पईसा, लईकी देबे के, आ कानून से बचावे के काम ओहि नेतवन के रहे. लेकिन ई कब तक चलित. इ बात हमरा समझि में आ गइल कि हमरा जीतववला से इ विधायक मंत्री बनि सकेलन स त हम काहें ना ?‘

नेताजी कुछ देरि सांस लिहनी, बाकिर चारो आदमी एह रूप में नेताजी के बात सांस रोकिके सुनत रहे लोग जइसे कवनो जासूसी धारवाहिक देखत होखस लोग.

‘एकरा बाद जवन भइल ओकरा से रउआ सभ परिचित बानी. अब हम मेन बात पर आवऽतानी. राजनीति में आके हम विधायक, मंत्री, आ मुख्यमंत्री तक पहुंच गइनी. मुख्यमंत्री के रूप में तबादला, कमीशन आ कई तरीका के गलत काम से हम अरबो रूपिया कमइनी. बस इहे रूपिया हमरा चिन्ता के जरि बा.

‘भइया हमरा तहार बात समझि में नइखे आवत रूपया तहरा के काहें परसान कईले बा.’ - मुन्ना कुछु ना समझले.

‘मुन्ना बात ई बा कि केन्द्र सरकार हमरा सेे टेढ़ नजर राखेले आ ओकरा जब मोका मिली हमार सरकार के बरखास्त कइके राज्यपाल के देख-रेख में ओट करवाई. तब जरूरी नइखे कि जवन हमनी के चाहबि जा तवने होई. अगर दोसर सरकार आई त एह धन के लुकवावल मुश्किल हो जाई.’

एका-एक जइसे सब नींद से जागल आ आपन माथा पीट के लगभग समवेत आवाज में बोलल लोग कि ई बात त हमनी के समझिए न पवनी हा जा.’

‘अब समझि में आ गइल होखे त रउआ सब एह धन के सुरक्षित करे के कवनो उपाई बताईं.’

बइठक में चुप्पी छापी लिहलसि. सब आपन-अरपन दिमाग खपावे लागल. लगभग पनरह मिनट के चुप्पी के बाद नेताजी के नीजि सचिव बोलले कि - ‘श्रीमान एगो उपाई बा कि ओह धन के अधिकांश हिस्सा सफेद बना दिहल जाई.’

‘लेकिन एह में बहुते धन टेक्स में चलि जाइ.’ - कोषाध्यक्ष आपन चिन्ता प्रकट कईलन.

तले प्रदेश अध्यक्ष बोलले - ‘आ फेरू इ समस्या बा कि आतना धन आइल कहां से ? इ कइसे देखावल जाई ?’

‘इ समस्या के समाधान हमरा लगे बा. पहिले नेता जी तैयार होखीं तब !’

नेताजी कुछ सकुचइले, सोचले, फेरू मुह खोलले - ‘इ बात ठीक बा कि जब तक
हम्हनी के सरकार बिया जवन मन करऽता करत बानी जा. लेकिन काल्हू के देखले बा ? अगर बात टैक्स दिहला के बा त जेल गइला आ पइसा छिनइला से अच्छे नू बा. हमरा तहार विचार नीक लागत बा. तू आपन योजना के खुलासा करऽ.’

‘नेताजी के लगे जतना धन बा ओकर खुलासा करे के एगो उपाई बा कि आजुए से नेताजी पूरा प्रदेश के तूफानी दौरा करीं. हर बलाक, हर कस्बा, इहां तक कि हर गांव में सम्भव होखे त राउर कार्यक्रम लागे. ओह पार्टी में कार्यक्रम में इ पहिले से घोषणा होखे कि रउआ पाटी के लोग रउआ के चन्दा दी. उ चन्दा त नाम मात्र के रही. रउआ चाहीं त मंच से लाखन रूपया के घोषणा करि सकेनी. आ फेरू दू महिना बाद राउर जन्मदिन बा. ओह जन्मदिन में राउर पार्टी के विधायक, मंत्री, जिलाध्यक्ष आदि से चन्दा मांगी. चन्दा मिले कम ओकर सरकारी घोषणा अधिक होखे. इ अब राउर मर्जी कि रउआ कतना के टैक्स देत बानी आ फेरू उपहार के देता, कतना देता, एकर हिसाब के राखेला ?‘

इ कहि के निजी सचिव विजई मुद्रा में सबके देखले. सब हल्का सा मुसुकाइल आ सबके नजर नेताजी पर टिक गइल. नेतोजी मुसकइलें.

सब कुछ ठीक हो गइल. एह काम में ध्यान देबे वाली बात ई रहे कि नेताजी के देशभक्ति मुअल ना रहे. एकर प्रमाण इ रहे कि उ अउरी लोगन नियर आपन धन ‘स्वीस’ बैंक में ना रखले. नेताजी के ई एहसान देश पर हमेशा रही.
----

डॉ श्रीप्रकाश पाण्डेय,
एमए, पीएचडी, त्रिकालपुर,
रेवती, बलिया, उ.प्र.

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

देवी गीत

 देवी गीत

- कृष्णा नन्द तिवारी

(उर्फ किशन गोरखपुरी)

माई शेरावाली क पूजिला चरनियां
कि सुति उठिना .
माई दीहितीं दरशनियां कि सुति उठिना,
हो कि सुति उठि ना ..
लालि रंग चुनरी आ नारियल चढ़ाईला.. .
माई के दुअरिया पे सिरवा झुकाइला ..
माई लेहड़ावली क धरीला शरनियां,
कि सुति उठिना .माई दीहितीं दरशनियां 0
धूप-अगरबतिया ले माई के देखाइला .
रउरे मंदिरवा में असरा लगाइला..
माई विन्ध्याचली जी के करीला भजनियां,
कि सुति उठिना. माई दीहितीं दरशनियां 0
नवरात्रि माई के पूजन जे करावेला .
मय पाप कटि जाला,
सुखी जीवन पावेला ..
गावेलन ‘किशन’ माई सगरी कहनियां,
कि घूमि-घूमिना .
माई दीहीती दरशनियां कि सुति उठिना,
हो कि सुति उठिना ..
----

कृष्णा नन्द तिवारी,
पुलिस चौकी, सतनी सराय, बलिया.कहानी
(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)



झाह में जिनगी

 नयका कविता

झाह में जिनगी


- मलयार्जुन



शोर बा
मयना के मारण मंत्र क
डहर भुलाइल
लउर के हूरा
जूरा बान्हे
पर्स में राखत
मोबाइल
झीन
बीच बजरिया
देखा
बतियावत
केसे
जे पेंदी का हीन
बे पानी
कस ना मानी
नूर नुक्सा से गायब
कबले भौंह रंगाई
छेंकल बुढ़ापा राह
झाह में जिनगी
आग का खोरी
सुनी नु प्रलाप
के के रास्ता मिलल
फोफर.
---
मलयार्जुन,
वरिष्ठ मनोरंजन कर निरीक्षक, बलिया

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

रविवार, 15 दिसंबर 2024

परबतिया

कहानी

परबतिया

- डॉ जनार्दन राय

भोर होत रहे. मुरूगा बोलल - कुकू हो कू. लाली राम बाबा का इनार पर नहात खाने गवलनि - ‘प्रात दरसन दऽ हो गंगा, प्रात दरसन दऽ’. भोर का भजन में मस्त लाली के गवनई खाली उनहीं के ना, चिरई-चुरूंग, जड़-चेतन, मरद-मेहरारू सभकरा दिल में पइठि के गुदगुदी पैदा कइ दिहल करे. लाली गिरहथ रहलन. उनुकरा गांव का लन्द-फन्द से कवनो ढेर मतलब ना रहे. दिन में मजूरी आ सांझि खानेे नहा धो के अक्सर गावल करसु -

‘कह कबीर कमाल से, दुइ बात लिख लेइ.
आये का आदर करें, खाने के किछु देइ.’

कबीर कमाल से आ हम उनहीं का बाति के दोहासत बानीं - ‘जे केहू दुवारे आवे, ओके इजति से बइठाईं आ जवने नून रोटी बा, सिक्कम भर पवाईं.’ एह बानी के जे मानी, ओकरा पानी के रइछा परवर दिगार काहे ना करिहे !

एक दिन भोर में लालीबोे पिछुवारा से लवटला का बाद अपना पतोहि से कहली - ‘ए दुलहिन! दुअरिया में डोर बा, गगरिया लेइ के तनी इनरा से लपकल पानी ले ले आव, नाहीं त काली माई के छाक देबे में देरी हो जाई. कहिये के भरवटी ह, आजुले अबहीं पूरा ना भइल.’

का जाने काहें दो, ओह दिन उ असकतियात रहली बाकिर सासु का हुकुम के टारल उनुका बस के बाति ना रहे. डोर कान्हि पर, गगरी करिहांन पर धइ के चलि दिहली. गोड़ लपिटात रहे, पुरूवा के पिटल देहिं, पोर-पोर अंइठात रहे. लसियाइल त रहबे कइल बाकिर कवनो ढेर फिकिर ना रहे काहे कि उनुका पेट में भगवान के दिहल फूल अब विकास पर रहे. गोड़ भारी भइ गइल रहे. सासु का चुपे-चुपे कबो-कबो करइला के सोन्ह माटी जीभि पर धइ के सवाद लेइ लिहल करसु. जीव हरदम मिचियाइल करे. सासु एहपर धियान
ना देसु. बाकिर एक दिन रहिला में से माटी बीनि के दुलहिन अपना फाड़ में धरत रहली, एके लाली बो देखि लिहली आ पूछली, ‘काहो दुलहिन, कवनो बाति नइखे नू?’ एतना सुनते घुघुट काढ़त तनिकी भर मुसुकाई दिहली. पतोहि के हंसल आ संगही लजाइल चुप्पी संकार लिहलसि कि किछु न किछु बाति जरूर बा.

भइल का कि डोर में गगरी के मेहंकड़ फंसाई के इनार में लटकाइ के पानी भरल गगरी जेवहीं खिंचे के मन कइली, मूस के कुटुड़ल डोरि भक् से टूटि गइल. गगरी इनार में आ देहि जगति से भुइंया गिरि के चारू पले परि गइल. आंखि ताखि टंगा गइल. मुंह प एगो अजबे पियरी पसरि गइल. कुल्ला गलाली करे आ किछु लोग पानी खाति इनार पर जुटे लागल रहे बाकिर अबहीं मजिगर भीड़ ना रहे. जेतने रहे अरहि अरहि, हाय हाय करे खातिर कम ना रहे. बड़इया बो बड़ फरहर मेहरारू रहे. चट देने लाली का पतोहि के मुड़ी जांघि पर धइ के सुहरावे लागलि. मीजत, माड़त, सुहुरावत कवनो देरी ना लागल.

दू-तीन पहर में उनके देहिं कौहथ में आ गइल, तबले लालीबो पहुंचली आ कहली कि - ‘का ए दुलहिन, एनिये आके ई कवन मेला लगा दिहलू हऽ, तह के कवनो काम भरिये हो जाला.’ तले बुढ़उ कहलनि - ‘ना चुप रहबू, देखते बाड़ू की पतोहि जगति पर से ढहि के बेहोस परल बिये आ तूं अपना मन के पंवरी पसरले बाड़ू.’ एतना सुनते लाली बो हक्का-बक्का हो गइली आ रोवते में रागि कढ़वली - ‘बछिया हो, बछिया.’ तले फेरू बुढ़उ डपटलनि. लाली बो सिट्ट लगा गइली. उ चुप त जरूर हो गइली बाकिर कोंखि में परल फूल
के ले के चिन्ता गरेसले रहे, जवन कहे लायेक ना रहे बाकिर पतोहि के लूर सहुर गुन गिहियांव आ पानी खातिर अर्हवला के ले के लाली बो भितरे-भीतर कुंथत रहली. ना किछु कहिये जा ना रहिये जा. संपहवा बाबा, राम बाबा, सकड़ी दाई, काली माई, गंगाजी, सातो बहिनी, सत्ती माई, सभकर चिरउरी मिनती भइल. किछु देरी का बाद बड़इया बो कहलसि - काहो? देहिं काहें छोड़ ले बाड़ू? तनी टांठ होखऽ. हिम्मत बान्हऽ. देखते बाड़ू कि सासुजी छपिटाइ के रहि गइल बाड़ी . एतना सुनते पतोहि लमहर सांसि लेइ के
कहलसि - ‘ जिनि घबराईं, काली का किरिया से किछु ना होई. नहाईं, धोईं. छाक देईं, सब ठीक बा.’

पतोहि घरे गइल आ लाली बो ओह दिन भुंइपरी क के परमजोति का थाने गइली. सांझि सबेरे मनवती - भखवती होखे लागल. पियार से पखाइल, सनेह से संवारल, चूमल-चाटल देहि देखे लायेक हो गइल. सुख के दिन सहजे सवरे लागल. दुख बिला गइल. दिन बीतल देरी ना लागे. एक दिन उहो आइल जब भोर में लाली बो के पतोहिं का कोंखि से लछिमी के जनम भइल. धूमन बाबा बीतल बातिन के त बतइये देसु, अगवढ़ के जेवन फोटो खींचस उ साल छव महीना में साफे झलके लागे. एसे उनुकर मोहल्ला में बड़ा इज्जत अबरूह रहे. उहां का ए कदम साधु मिजाज के असली फकीर रहलीं. का मियां-हिंदू, ठाकुर-ठेकान, बाम्हन-भुइहार, धुनिया, नोनिया, कमकर, कुर्मी, कोहार, सभकर भला मनावल उहां के सहज सुभाव रहे. पूख नछत्तर में जनमल परबतिया अब धीरे-धीरे दिने दूना रात चउगुना संयान होखे लागल. किछु बूझल, समुझल, समुझावल आ अपना बेहवार से दूसरका के खुस कइ दिहल ओकरा खातिर सहज बाति रहे.

टोल, महाल, आपन, पराया, घर-दुवार सभ के अपने बूझे. अब अइसनों दिन आइल जे एकरा से थाना, पुलिस, पियादा, सभ केहू थहरा जा. थथमि जा. पढ़ि-लिखि के परबतिया परिवार के चौचक बना दिहलसि. माई-बाबू, घर-गांव, सभकरा संगे रहते परबतिया कविता करे के सीख लिहलसि. समाज में इज्जत के डंका बाजि गइल. एक दिन गांव के परधानों बनि गइलि. मुखिया, हाकिम-हुकाम सभे केहू आवे लागल. कविताई का ललक में एक दिन ‘परबतिया’ परानपुर का पोखरा पर बनल इसकूल का कवि सम्मेलन में चलि गइल आ सुर-साधि के गवलसि -

हमरे सिवनवां में फहरे अंचरवा,
फहरि मारेला हो, लहरि मारेला!

एतना सुनते ‘परबतिया’ का आंचर पर मुखिया जी के क्रूर नजर परि गइल आ ओही दिन से ओके धरे बदे कवनो कोर कासर ना छोड़लनि. गोटी बइठावे लगलन आ अइसन बइठल कि मुखिया जी एक दिन मंत्री बनि गइलन. अब ‘परबतिया’ पर डोरा डाले में चार चान लागि गइल. दिन-दिन परबतिया बढ़े लागल. रूप, गुन, जस, पद, मये में विस्तार होखे लागल. ‘परबतिया’ गांव में सड़क बनावे बदे एक दिन मंत्री जी का बंगला पर चढ़ि गइल. ‘परबतिया’ आखिर मेहररूवे न रहे. रूप गुन रहबे कइल. जाने-अनजाने ‘परबतिया’ मंत्री का कामातुर हविश के शिकार हो गइल. लोभ-लालच में उ किछु ना कहलसि. कुंवार मंत्री जी बियाह के प्रस्ताव दे के ‘परबतिया’ के घपला में रखले रहि गइलन. पेट में परल बिया जामे लागल. जइसे-जइसे दिन बीते लागल चिंता बढ़े लागल. एक दिन परबतिया हिम्मत बान्हि के बियाह वाला प्रस्ताव के रखलसि. मंत्री जी टारे लगलनि आ एक दिन उहो आइल जब उ अपना परबतिया का पेट में परल पाप के छिपावे बदे पोखरा में अपना गुरूगन से जियते गड़वा दिहलनि.

लइका, बूढ़, जवान, पुलिस, पियादा, गांव, जवार सभ जानल एह कांड के. बाकिर मंत्री जी का डर से केहू सांसि ना लिहल. उनुकरा पेशाब से दिया जरेला. डर का मारे अइसन जनाला कि हवो थाम्हि जाई. नीनि में परल परान कबो-कबो अइसन चिहुकेला जइसे केहू झकझोरि के जबरिया जमा देले होखे. जिम्दारी टूटि गइल. देस अजाद हो गइल. सभ केहू अपना घर-दुआर के मलिकार हो गइल. कहे सुने के अजादी हो गइल. बाकिर ई नवका करिक्का अंगरेज फफनि के बेहया लेख एतना जल्दी पसरि गइलनि स कि किछु कहात नइखे.

सुराज जरुर मिलल, बाकिर एह बदमासन का चलते आम आदमी का जिनिगी में कवनों बदलाव नइखे लउकत. हमरा परोस का परबतिया अइसन गंवईं के लाखन गुड़िया, धनेसरी, तेतरी, बहेतरी, अफती, लखनवती, लखिया, हजरीआ रोज रोज बदमासन के हविश के शिकार हो रहल बाड़ी स. बाकिर मंत्रीजी का तुफानी हवा का आगे गरीबन क बेना क बतास का करी? शासन पर काबिज बदमाश, थाना पर मनियरा सांप लेखा फुुंफुकारत थानेदार, पाजी पियादा, नशा में मातल मंत्री, इसकूल में बदहवाश मुदर्रिश, बेहोश वैद जीप कार के नसेड़ी डरेबर, केकर-केकर बाति कहीं, सभे कहूं कवनो अनहोनी का डर से चुप्पी सधले बा. नाहीं त सुपुटि के जीव चोरावत बा. अइसना बदहाली में केहू किछु कह ना पाई, बाकिर हमरा इत्मीनान बा कि अइसहीं मनमानी-बेवस्था ना चली. एक न एक दिन बदलाव जरूर आई.

पितरपख का निसु राति में पोखरा का जलकुंभी से कबो-कबो छप्प-छप्प क सबद सुनाई परेला. कबो-कबो त एको जनमतुआ निराह राति में पहर-दू-पहर भर केहां-केहां करेला. अइसन बुझाला कि ओह जनमतुवा के चुप करावे बदे परबतिया पुरूवा हवा का पंख पर चढ़ि के मंत्री जी से बदला लेबे खातिर छिछियाइल फिरेले. जब भोर होखे लागेला त जनाला कि जनमतुआ थाकि के सुति गइल आ परबतिया एक दम शांत भाव से लिखल चिट्टी पढ़ि-पढ़ि के सुनावे लागे ले -

प्रिय मंत्री जी!
याद बा नू उ दिन जब आप हमरा संगे..... वादा कइले रहलीं कि सूरूज एने-ओने भले हो जइहें, चान भलहीं टसकि जइहें, ध्रुवतारा खिसकि जाई, गंगा के धार बदल जाई, बाकिर हमार पियार अमिट रही, अमर रहि. का उ दिन भुला गइलीं ? हम आपे का इंतजारी में पोखरा का कींच-कांच, पांक पानी में परल बानीं. का होई ए देहि के ? का होई एह अबोध जनमतुआ के ?

ई का बिगरले रहे जे एके आप एह दिन के देखवलीं ? आप याद राखीं अर्जुन का बेटा का माथे मउर ना बन्हाई, कर्ण के कवच भलहीं कवनों कामे ना आई, बाकिर आप इहो
समुझि लेइब कि कबुर का आह से उपजलि आग में पूंजीवादी बेवस्था जरि-जरि के राखि हो जाई आ माथ के मुकुट गंगा का अरार लेखा भहरा के मटिया मेट हो जाइ. देस समाज गांव गंवई के बेवस्था चोटी से ना चली. इहो जाने के परी की शासन वेवस्था में लागल अदीमी के लंगोटी के बेदाग राखे के पारी आ बेदाग ना रही त झंउसहीं के परी.

आपे के परबतिया

-----------
- डॉ जनार्दन राय,
काशीपुर नई बस्ती, कदम चौराहा,
बलिया - 277 001

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)
 

बारहमासा

कविता

बारहमासा

- सुरेश कांटक


 

करेजवा साले, ए मोर राजा,
बितल साले-साले ए मोर राजा.
रंग-राग ले ले के, तरसल फगुनवा
राजा बसंत सजल, धरती के धनवा
बिगड़ि गइल चाले, ए मोर राजा.

चईत महिनवा विरहवा सतावे
अलसल भोरवा के पुरवा चेतावे
भुलइलऽ कवना जाले, ए मोर राजा.

दंवरी-दंवात बइसाख दिन-रतिया
घमवा में बिगड़ेला सभके सुरतिया
हो गइनी बेहाले, ए मोर राजा.

जेठवा के लुकवा झंकोर देलस देहिया
नदी-नारा सुखल, दरार भइल नेहिया
पड़ल छाले छाले, ए मोर राजा.

उमसल असढ़वा बेहाल भइल हलिया
फिस-फुस घमवा, बेकल गांव गलिया
उड़ावऽ मत गाले, ए मोर राजा.

सावन के बदरा गरजि के डेरावे
बियवा डलाला, कजरिया ना भावे
देखावे रूप काले, ए मोर राजा.

भादो में कड़के आ बरिसे बदरिया
रोपनी आ नदी-नार भरल अहरिया
बजावे झिंगुर झोल, ए मोर राजा.

घमवा कुआरवा दशहरा ना भावे
रेंड़ा प धनवा आ धरती सुखावे
सपन हाथी पाले, ए मोर राजा.

कातिक में मुंह खोल ताकेला धनवा
फुलवा के असरे टंगाइल परनवा
झरेला ओस खाले, ए मोर राजा.

अगहन में कटिया आ गोलहथ सोहावे
ठंढी बयरिया जियरवा कंपावे
बजावऽ मत ताले, ए मोर राजा.

पुसवा के फुस दिन चइती बोआइल
जड़वा में जोड़ी बिना, मन घबड़ाइल
कमइया के खालें, ए मोर राजा.

माघ के टुसरवा पुअरवा ओढ़ावे
चलिया तोहार तनिको नाही भावे
भइल जीव के काले, ए मोर राजा.

अबहूं से आवऽ ना देखऽ सुरतिया
मोहले बिया तोहे कवन सवतिया
जइब नरक-नाले, ए मोर राजा.

कांटक चिरइंया उड़ी जब अकासे
धरती सरापी, रही ना कुछ पासे
रही काले काले, ए मोर राजा.
------

सुरेश कांटक,
कांट, ब्रह्मपुर, बक्सर, बिहार - 802 112

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

मत कहऽ जिनगी बेमानी बा : दू गो गजल

 (1)

मत कहऽ जिनगी बेमानी बा


- शिवपूजन लाल विद्यार्थी

मत कहऽ जिन्दगी बेमानी बा,
खाली धूप-छांह के कहानी बा.
मायूस मत होखऽ मंजिल मिली,
भले सफर में कुछ परिसानी बा.

एह पीरा के सईंचि के रखऽ,
उनकर जुल्मों-सितम के निसानी बा.
ई जनतंत्र बस कहे भर के बा,
आजो केहू राजा, केहू रानी बा.

हमेसे फस्ले-बहार ना मिली,
जिन्दगी में आन्हियो-पानी बा.
समेस्या से कटि के जूझऽ लड़ऽ,
मुंह चोरावल त नादानी बा.

आजादी से केकरा का मिलल,
उनका छत त हमरा पलानी बा.
मत कहऽ जिन्दगी बेमानी बा,
खाली धूप-छांह के कहानी बा.

(2)


दिल के दरद कहां ले जांई

दिल के दरद कहां ले जाईंं,
व्याकुल मन कइसे बहलाईं ?
खुद अन्हार में भटकत बानी,
कइसे उनका राह दिखाईं ?

छल-फरेब के कांट बिछल बा,
कइसे आगा गोड़ बढ़ाईं ?
पत्थर के घर, पत्थर इन्सां,
बिरथा आपन लोर बहाईं.

बाहर-भीतर सगरो खतरा,
कहंवां भागीं, कहां लुकाईं ?
मानवता के खून करत बा,
जाति-धरम के निठुर कसाई.
---------
शिवपूजन लाल विद्यार्थी,
प्रकाशपुरी, आरा, भोजपुर

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

चिनगारी

लघुकथा

चिनगारी


- शिवपूजन लाल विद्यार्थी

हम आफिस के काम निबटा के पटना से  लवटत रहीं. ट्रेन में काफी देर रहे. करीब  तीन घंटा से प्लेट फारम प बइठल-बइठल बोर  होत रहीं. गाड़ियन के विलम्ब से चले के  सूचना सुनि-सुनि के भीतर-भीतर खीझ होत रहे  आ रेलवे प्रशासन पर पिनपिनाहट. समय  गुजारल बड़ा कठिन होत रहे. अगल-बगल में  कवनों जान-पहचान के अदिमीओ ना लउकत  रहे कि बोल-बतिया के समय काटल जाव.

बोरियत से जूझे खातिर आखिरकार बैग में  से एगो पुरान पत्रिका निकालि के उलटि पुलटि  करे लगलीं. बाकिर पत्रिका पढे में जी ना  रमत रहे. मन के बझावे खातिर झूठो-मूठो के  पन्ना उलटत रहीं.

तबे एगो युवती सामने आके खाड़ हो  गइल. हालांकि हमार नजर पत्रिका प गड़ल  रहे, मगर आहट से ओकर उपस्थिति के हमरा  आभास मिल गइल. अगर उ - ‘बाबू जी,  बच्चा बहुत भुखाइल बा. कुछ खाये के दीहीं’

कहिके आपन हथेली हमरा ओरि ना बढाइत त साइत हम ओकरा तरफ ताके के जरूरतो ना  समझतीं.

हम नजर उठवलीं. कोई तेरह-चउदह साल  के दुबर-पातर, बाकिर नाक-नक्श  के एगो सांवर लइकी डेढ-दू बरिस के एगो  मरियल अस बच्चा गोदी से चिपकवले खड़ा  रहे. ओकर कमसीनी आ कदकाठी देखिके हम  अन्दाजा लगावत रहीं कि कोरा में के बच्चा  ओकर भाई आ भतीजा हो सकेला. जिज्ञासा  वश हम पूछि बइठलीं- ‘ई बच्चा तोर भाई ह ?’

‘ना, बाबूजी , ई हमार आपन बेटा ह.’

ओकर ई उत्तर सुनि के हम भउचक रह  गइलीं. चिहाई के ओकरा ओरि गौर से ताके  लगलीं जइसे ओकर उमिर के बढिया से थाह  लगावे के चाहत होखीं. अतना कम उमिर के
लइकी के बच्चा ! घिन होखे लागल. करुणा  आ दया के जगहा घिरना आ उबकाई आवे  लागल. सोचे लगली - निगोड़ी के आपन पेट  भरे के ठेकाना नइखे. भीख मांगत बाड़ी. उपर  से कोढ़ में खाज के तरह ई बलाय ! पेट के  आगि से बेसी ससुरी के आपन तन के अगिन  बुझावे के पड़ गइल. एही उमिर से देह में  आगि लेसले रहे ! छि...छि..! भीतर-भीतर  हम ओकरा प झल्ला उठली. आ ना चहलो प  मुंह से निकल गइल- ‘तहरा पेट के भूख से  अधिक शरीरे के भूख सतावत रहे, देहे के  आगि के चिंता बेसी रहे ? आपन पेट भरत  नइखे, उपर से छन भर के सुख-मउज के फेरा  में  एगो अउर मुसीबत मोल लेहलू ?

हमार दहकत सवाल से उ तिलमिला  गइल. हमार बात ओकरा दिल प बरछी नियन  लागत. व्यंग भरल लहजा में हमरा प प्रहार  कइलस- ‘बाबू जी ई मुसीबत, ई बलाय रउवे  जइसन सफेद पोश लोगन के किरिपा ह. रउवे  सभे के जोर-जुलुम के निसानी - हवस के  चिन्ह - आगि के चिनगारी ह ई.

हम बेजबाब हो गइली. अइसन लागल  जइसे उ हमार नैतिक-बोध के गाल प कसिके  तमाचा जड़ देले होखे. अतना कहि के उ  हमरा भिरी से चल दिहलस. हम अइसे  अपराध बोध से भर गइली. सिर शरम से  झुक गइल.

हम ओकरा कुछ ना दे सकलीं, मगर उ  हमरा के बहुत कुछ दे गइल. हमरा चेतना के  एगो झटका, मन में ई सड़ल समाज का प्रति  घिरना आ छोभ. दिल के कोना में एगो  अनजान अस टीस अउर सोच के एगो नया  दिसा.
-----

शिवपूजन लाल विद्यार्थी,
प्रकाशपुरी, आरा, भोजपुर

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

आपन आपन सोच

 कहानी

आपन आपन सोच


- डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय



ई समाचार पूरा जोर शोर से फइलल. बाते अइसन रहे जेकरा से पूरा प्रशासन में  हड़कम्प मचि गइल. मउअत, उहो भूखि से, ई  त प्रशासन के नाक कटला के बराबर बा.  उहो ई खबर अखबार में निकलल रहे कि सुरखाबपुर में एक आदमी खाना के अभाव में  तड़प-तड़प के दम तुरि देले बाड़न. बात  अतने रहित त कुछ पूर परीत. बात एकरा से  आगे ई रहे कि उ आदमी दलित रहलन. ईंहा ई धियान देबे वाली बात बिया कि अउरी जात  रहित त कुछ कम बवाल होइत. लेकिन एहिजा  बात दलित के रहे, से हर राजनीतिक पार्टी  आपन-आपन रोटी त सेकबे करीत. कई पार्टी  के नेता दलित के सुरक्षा के ठीक ओही तरे आपन मुद्दा बना लिहले जइसे पाकिस्तान काश्मीर के आपन  मुद्दा बना लेले बावे. बड़-बड़ भाषण होखे लागल. सरकार पर  कई गो आरोप लागल. डी.एम. से लेके  चपरासी तक ओह दलित के परिवार के  सहायता करे के होड़ मचा दिहल. तुरन्त  जतना जेकरा बस में रहे सहायता के घोषणा  कइल. केहू ओकर लइकन के पोसे के  जिम्मेदारी लिहल, केहू घर बनवावे के. कहीं  से जमीन के केहू पट्टा लिखवा दिहल, त केहू  नगद सहायता दिहल. सरकारी मंत्री जी अइले  त घोषणा कइलन कि केहू के भूख से मरे ना  दिहल जाई. आ उहो सरकार के तरफ से  ओह दलित परिवार के चढ़ावा चढ़वले. सब  कुछ हो गइल. एह बीचे सब इहे सोचल कि  इ मुद्दा कइसहुं दबि जाई. ई केहू ना सोचल  कि आखिर ई भूख से मरे के मउवत कहां से आइल. खैर हमहूं अगर सरकारी कर्मचारी  रहितीं त सोच के कवनों जरूरत ना रहित.  हम त एह मामला के दबइबे करितीं. लेकिन  ई मौत टाले के कई बरिस से प्रयास करत  रहनी लेकिन उहे भइल जवन ना होखे के  चाहीं.

एह मउवत के बिया बीस बरिस पहिले  बोआ गइल रहे. जब चउदह बरिस के उमिर में  रामपति के बिआह बारह बरिस के सुनरी के  संगे तई भइल. चुंकि रामपति हमरा उम्र के  रहले त हम उनुका के जानत रहनी. उनका  बिआह के समाचार सुनि के हमरा बड़ा दुख  भइल. एह खातिर ना कि उनुकर बिआह चौदह बरिस में होत रहे बलुक एह खातिर कि उनुकर  बिआह हमरे उमिर के रहल त होत रहे आ हमार अबहीं तिलकहरूओं ना आवत रहले स.

ई दुख जब हम अपना चाचा से सुनवली त उ  कहले कि ‘‘आरे बुरबक तोरा त पढ़ि लिखि  के बड़ आदमी बनेके बा. उ त चमड़ा के काम करे वाला हवन  सं. उन्हनी के कइसहू बिआह हो जाता इहे  कम नईखे. उन्हनी के जिनगी के इहे उद्देश्य  बा कि खाली कवनों उपाई लगा के बिआह  कईल. अउरी भेड़-सुअर अइसन लईका  बिआ. एह से इ फायदा होई कि उन्हनी के  परिवार बढ़ि त लोकतन्त्र में पूछ होई.’

सुनरी के बारह साल के उमिर अउरी  ओह पर पियरी से जइसे देहि सूखि गइल होखे  ओह तरे बिना हाड़-मांस के काया बिआह के  बाद तुरन्ते गवना आ गवना के पनरह दिन  बाद उ खेत में काम करे पहुंच गइल. रामपति  कवनों पहलवान ना रहले. अभी त पाम्हीं  आवत रहे. लेकिन शरीर के भीतर अबहीं बीर्य  पूरा बाचल रहेे अउरी एहकर फायदा उ सुनरी  के देहि से एह तरे उठवले रहले जइसे केहू उखिं के चूसत होखे. लगातार पनरह दिन के  रउनाईल अउरी उपर से खेत में काम करे के  परि गइल. लाख कोशिश करत रहली, काम  ठीक से नाहिए होखे. एगो त मासूम कली  उहो रउनाईल. ओकर स्थिति देखि के हम  कहनी कि ‘‘तहरा से काम नईखे होत, तू घरे  चलि जा.’’ उ त शरमा के कुछु ना बोललसि  लेकिन ओकर सासू कहली कि ए बबूआ अगर  ई घरे चलि जाई त एकर मरद बेमार बावे  दवाई करावे के पईसा कहां से आई.’

‘बेमार बावे ? उ कइसे.’

‘इ बात तहरा ना बुझाई. बबुआ उ नान्ह  में बिआह होला त लड़िका अक्सर बेमार पड़ी  जालन स.’

‘काहे ? हमारा कुछु ना बुझाइल.’

‘तहार बिआह होई त समझि जईबऽ.’

आगे कुछु ना पूछि के हम चुप लगा  गइनी. लेकिन चमड़ा के काम करे वाला के लइका के बिआह होला  त काहे बेमार होलन स ई जानल जरूरी रहे.  ई बात हम चाचा जी से पूछनी त उ जवन  बतवले ओकर सारांश इहे रहे कि उन्हनी के  कम उमिर में बिआह होला. अउरी उ बिआह  के बाद के काम करे खातीर पूरा परिपक्व ना  होलन स एह कारण बेमार होखल इ कवनों  नया बात नईखे.

‘एहकर छुटकारा नईखे चाचा जी.’

‘बा बेटा’

‘उ का ?’

‘उ इ कि जेतना जनता अशिक्षित  बिआ उन्हनी के शिक्षित कइल जाउ. ई  बतावल जाउ कि बिआह के सही उमिर का  बावे तब जाके उ बिआह करऽ सँ.’

‘त ई कम उमिरे उन्हनी के बेमारी के  जरि बिया ?’

‘हं बेटा, एहि से हम तहार बिआह ना  कइनी हा. नाहिं त तहरो उहे हाल होईत.’

हम शरमा के इहे कहि पवनी - ‘चाचा  जी !’

बिआह के एक साल में एगो, तीन साल  में  दूगो,  साढ़े चार साल में तीन गो, छव साल में  चार गो, जब रामपति से सुनरी के लईका  हो गइल, त हम रामपति से कहनी -‘एगो त  तहार कम उमिर में बिआह हो गइल. अब  अतना जल्दी-जल्दी लइका होखी त कइसे  चली. आखिर त उन्हनी के पोसे में खर्चो  त  लागि.’

‘रउआ ओके का चिन्ता बा ? उ जनम  लेत बाड़न स त केहू के कई-धई के जीहन  स.’

‘लेकिन सोचऽ ओह में से एकहू आदमी  बनि पइहन स ?’

‘ई रउआ ठीक कहऽतानी. आदमी त रउरे सभे हईं. काहे से के रउआ बड़ आदमी नू हईं.'

 ‘ना हमार कहे के इ मतलब नईखे. हम  कहऽतानी कि कम रहितन स, पढ़ितन स आ,  ओह से आगे चलि के अच्छा जीवन जीअतन  स.’

‘रहे दीं-रहे दीं. हमनी के लगे कवन धन,  सम्पति बा. अगर भगवान अपना मन से संतान  देत बाड़न त ओह में राउर का जाता ?’

 रामपति आगे बहस के कवनों गुंजाइस ना  छोड़लन. बियाह के अठवां साल में पांचवा, दसवां  मे छठवां, अउरी बारहवां में सातवां लईका जब  सुनरी के भइल त उ ठीक ओही तरे हो गइल  जइसे पीयर आम हो जाला. रामपति त टी.बी के मरीजे हो गइलें. उनकर माई भोजन के  अभाव में पहिलहीं मरि गइल रहली. अब घरे  कमाए वाला केहू ना रहे. लईकन के केहू  खाए के कही से कुछ दे दीहल त ठीक, ना  त उ छोटे-छोटे लइका भूखे रहि जा स.  उनकर घर में टूटही पलानी अउरी एगो टूटही  खटिया के अलावा अगर कुछ रहे तो एगो  दूगो माटी के बरतन. आ ओकर हकीकत  बयान करत दरिदरता. एह बीचे एक दिन हम रामपति के घरे  एह दया के साथ गइनी कि उनका खातीर कुछ  दवा-दारू के बेवस्था कर दीं. घर में घुसते  खांसी के आवाज सुनाई दीहल. एक ओर  टूटही खटिया पर रामपति खांसत रहले. उनकर  मेहरारू लगे बइठल रहली आ उनकर चार पांच  गो
लइका पोटा-नेटा लगवले एकदम लगंटे आसे-पास अपने में अझुराइल रहले स.

रामपति के देखि के हम कहनी - ‘का हो रामपति, का हाल बा ?’’

रामपति हमरा किओर देखलें अउरी कहलें  - ‘रउआ व्यंग करे आइल बानी कि हमार हाल  पूछे ? रउआ सब के हमनी के खाइल पहिनल  त नीक नाहिए लागेला, भगवान दू चार गो  सन्तान दे देले बाड़न त रउआ सब के जरे के  मोका मिल गइल.’

‘हमार मतलब उ नइखे. हम त तहार  कुछु मदद कइल चाहऽतानी.’

‘धनि बानी रउआ आ राउर मदद. हमरा  केहू के मदद ना चाहीं.’ रामपति आपन मुंह  हमरा  ओरि से फेर लिहले.

‘तू सोचऽ. अगर तहरा कुछु हो गइल त  तहरा लइकन के का होई ?’

‘होई का ? जइसे भगवान देले बाड़न  ओहिसहीं जिअइहन. लेकिन रउआ चिन्ता मति  करीं.’

एही बीच उनुकर एगो लइका सुनरी के लगे  रोअत आइल अउरी कहलसि - ‘माई-माई खाए  के दे. भूखि लागल बा.’

‘हम कहां से दीं ? घरे बावे का ?’ -  सुनरी आपन दुख प्रकट कइली लेकिन उ  लइका रिरिआ गइल. नतीजा इ निकलल कि  ‘द खाएके’ मांगे के सजा चार पांच थप्पर खा  के भुगतल. ई घटना से हमरा ना रहाइल.

 हम पूछनी - ‘का हो रामपति, का एहि खातीर  उन्हनी के जनमवले बाड़ऽ ?’

‘रहे दीं. रहे दीं. रउरा जइसन हम बहुत  देखले बानीं. रउआ सब दोसरा के दुख देखि  के खूब मजा लेनी.’ -  रामपति के बोले  से पहिले सुनरी फुंफकार दिहली.

हम त घरे चलि अइनी लेकिन ओही  सांझ रामपति मरि गइले. ओकरा बाद सरकारी  आदमी अउरी राजनीतिक पारटीयन के नौटंकी  शुरू हो गइल. ऐह में जवन भइल उ देखि  के हम इहे सोचनी कि सुनरी आ रामपति के  परिवार अनुदान के ना सजा के पात्र बा. अगर  हमनी के इहे हाल रही ज देश के विकास  अउरी जनसंख्या कम करे के सपना अधूरा रहि  जाई.

------
डॉ.श्रीप्रकाश पाण्डेय, एम.ए., पी.एच.डी
ग्राम - त्रिकालपुर, पो.- रेवती, जिला - बलिया

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना

 कजरी

बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना

- त्रिभुवन प्रसाद सिंह ‘प्रीतम’



झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.
उड़े चुनरिया अंगिया झलके,
फरके चढ़त जवानी, रामा,
पानी-पानी ऋतु मस्तानी,
निरखि उमिरि के पानी,
अरे रामा, हंसे नयन के कजरा,
बदरा झरि-झरि जाला ना.
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.

इरिखा भईल, सुरूज गरमइले,
होते सांझि जुड़इले, रामा,
छिपल चनरमा जाइ अन्हारा,
करिखा मुहें पोतइले,
अरे रामा झुक-झुक झांके तरई,
सुरति सहल न जाला ना.
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.

होते भोर, कुमुद मुसुकइली,
चढ़ते दिन कुम्हिलइली, रामा
कांच कली खिलला से पहिले,
लाल-पियर होइ गइली,
अरे रामा, लता लटकि रहि गइली,
उपर चढ़ल न जाला ना..
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.

चढ़ल झमकि सावन, मनभावन,
पतई पीटे ताली, रामा
थिरकि उठल बन मोर ताल पर,
झूमे डाली-डाली
अरे रामा बजल बीन बंसवरिया,
कजरी रोज सुनाला ना..
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.

खुलल केस, लट बिखरन लागे,
लहर-लहर लहराये, रामा
विस के मातलि जइसे नागिन,
बार-बार बलखाये,
अरे रामा सुधि उमड़ल, प्रियतम ठिग,
मनवा उड़ि-उड़ि जाला ना..
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.
----

त्रिभुवन प्रसाद सिंह ‘प्रीतम’
शारदा सदन, कृष्णा नगर, बलिया- 277001

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

भूख

 लघु कथा

 भूख

 - राम लखन विद्यार्थी

मरद-मेहरारु आपन मारूति कार से जेवर  बेसाहे सोनारी बाजार पहुचलन. जवन सर्राफ के  दोकान में जाये के रहे, ओह दोकान से चार  डेग एनही कार रूक गइल, कारन कि दोकान  के सामने बहत मोरी से एगो अधेड़ अउरत  कादो निकाल-निकाल के आपन तगाड़ी में रखत रहे. मरद कार के हार्न बजावत रहलन  आ उ अउरत अपना धुन में कादो काढ़ते  रहल. अनकसा के मरद कार से मुड़ी निकाल  के डंटलन - ‘‘रे.. तोरा सुनात नइखे का रे.?’

‘सुनात बा...’ अउरत कार का ओर मुंह  फेर के कहलसि.

‘त फेर हटत काहे नइखीस. एह कादो में  तोर का भुलाईल बा, जे परेशान बाड़ीस...’

‘हम आपन भूख खोजत बानी बाबू.’

 अउरत कातर स्वर में कहलसि. एही बीचे दोकान के सेठ उहां आ  गइलन. ‘का बात-बात बा श्रीमान ?’ सेठ  पूछलन.

‘लागऽता ई अउरत पागल हीय. कहतीया  हम कादो में आपन भूख जोहत बानीं.’

सेठ मुस्काइल, कहलस-‘श्रीमान जी ई  अउरत पागल ना हिय. जे कहतीया बिलकुल ठीक कहतीया.’

सेठ के बात सुन के मरद अचरज में पड़  गइल. कहलस ‘‘तू हू त उहे कह देल.’

‘देखीं सरकार, हमनी के दोकान में सोना  चानी के काम होला. सोना-चांदी तरसत खा  उहन के छोट-छोट कन दोकान में जेने-तेने  छितरा जाला. सबेरे दोकान बहराला आ बहारू  मोरी में गिरा दीहल जाला. ओही सोना-चांदी के कन खातिर ई कादो निकालत बिया. पानी  से कादो साफ करी तब सोना-चानी के कन  खरिया जाई. फेरु ओही कन के हमनी के  दोकान मे बेंच दीही. सौ-पचास एकरा भेंटा  जाई.’

मरद चिहाइल- ‘हाय रे भूख !’

तबले उ अउरत कादो भरल तगाड़ी के कपार पर उठा के पानी गिरत नल का ओर  चल दिहलस. मरद आपन कार सर्राफ के दोकान पर ला  के लगा दिहलन. मरद-मेहरारु कार से निकल  के जेवर बेसाहे सर्राफ के दोकान में ढुक  गइलन.
--------
राम लखन विद्यार्थी,
साहित्य सदन, पानी टंकी, काली स्थान,
डिहरी-ऑन सोन, रोहतास

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

अँखिया के पुतरी

 कविता

अँखिया के पुतरी

- डॉ बृजेन्द्र सिंह बैरागी



बेटी हो दुलारी बारी, कइसे बिआह करीं ?
ई  दानव दहेज कहँवँ कब कइसन रूप धरी.

अदिमी के रूपवा में दानव दहेज देखऽ.
दया धरम, तियाग, क्षमा से परहेज देखऽ.
लीलें चाहे धियवन के ईहो रोज घरी-घरी.
बेटी हो दुलारी बारी.....

एही भ्रष्टासुरवा के राज बा समाज में
बहुरूपिया ई बोलेला बढ़ी के समाज में
सोना चांदी धन दउलत से ना पेट भरी.
बेटी हो दुलारी बारी....

सोचि-सोचि डर लागे कांपे हो करेजवा
लीली जाला तनिके में दानव दहेजवा
एकरे बा राज, के समाज के सुधार करी.
बेटी हो दुलारी बारी....

पोसि पालि बहुते जतन से सेयान कइनी
शक्ति रूप जानिके हम धीरज धियाज धइनी
बेटी तूं त हउ हमरो अंखिया के पुतली.
बेटी हो दुलारी बारी....

सोचिले सुनर वर से बिआह कई दीहींतीं
भलहीं हो बिकाइ बरबाद होई जईतीं
बाकी स्टोपवा अउर गैसवा के का करीं.
बेटी हो दुलारी बारी....
----------
डॉ बृजेन्द्र सिंह बैरागी
आदर्श नगर, सागरपाली, बलिया - 277506
 (भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)
 

नेम प्लेट

 लघु कथा

नेम प्लेट

- माला वर्मा



‘बाबू जी, अब रउआ वृद्धाश्रम में जाके रहे  के पड़ी. एइजा केहू के एतना फुरसत नइखे जे रउआ से बतकूचन करे आ सेवा  टहल में आपन समय बरबाद करे. बेमतलब
 रउआ चक्कर में हमनी के दिमाग बंटल  रहेला.’

‘ना बेटा.... हमरा के ओइजा मत भेजऽ.  आगे से हम तनिकों शिकायत ना करब. जब  तहरा लोग के फुरसत मिली तबहीं खेयाल  रखीह. ई मकान बनावे में हमार जीवन भर के कमाई लाग गइल. अब बुढ़ापा में ई घर छोड़  के कहां जाईं ? अइसहूं बबुआ, ई घर पर पहिला हक हमरे बनेला....बाद में तहरा लोग  के.’

‘खूब कहनी बाबूजी, पिछला हिस्सा  स्वर्गीया माई के नाम, बांया हिस्सा छोटकू के  नाम. अब बताईं....... राउर हिस्सा कहां बचत  बा..?

‘का कहत बाड़ बबुआ, घर के प्रवेश  द्वार पर हमार नाम के तख्ती नइखे  लउकत? ऐकर मतलबे बा कि पूरा घर हमार  ह...’

‘एक बीता काठ के टुकड़ा पर ऐतना  गुमान..! ऐकरा पर राउर नाम के चार अक्षर,  उहो धुंधला गइल बा. ऐकरे बलबूते कहतानी  कि हमार घर ह..? लीं ऐकर मियाद अभीए
 पूरा कर देत बानीं. ना काठ के टुकड़ा रही  ना राउर दावा...’

छन भर में नेम प्लेट कई टुकड़ा में गिर  के जमीन पर बिखर गइल. पुरान लकड़ी के  बिसाते केतना !
---------
माला वर्मा, हाजीनगर, प.बंगाल-743135 001
(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)
 

मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

भोजपुरी कविता में वियोग

आलेख

 भोजपुरी कविता में वियोग


 - भगवती प्रसाद द्विवेदी


 ‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा  गान’ के मुताबिक कविता रचेवाला पहिलका कवि वियोगी रहल होइहन आ उन्हुकरा आंतर के बेसम्हार पीर के आह-कराह से कविता के जनम भइल होई. ओइसहूं,  साहित्य में जवन कुछ शाश्वत बा, अमर बा, ओकर अधिकतर हिस्सा करूने से लबालब भरल बा. सांच पूछल जाउ त आमजन के जिनिगी के कथा दुःखे आ वियोग-बिछोह से सउनाइल बा आ रचनिहार किछु आप बीती, किछु जगबीती से घवाहिल होके अंतर्मन के पीर के बानी देला. तबे उ मरम के छूवेवाली  रचना बनेले आ अपना गहिर-गझिन संवेदना से पढ़निहार-सुननिहार पर आपन अमिट छाप छोड़ेलें. चाहे हीर-रांझा होखसु, लैला-मजनूं होखसु भा सोहनी-महिवाल. कठकरेजी समाज एह लोग के कबो मिलन ना होखे दिहल, बाकिर एह चरित्रन के अमर प्रेम आ वियोग-बिछोह के दिल दहलावे वाली कथा जन-जन के जबान पर आजुओ बा.


भोजपुरिया समाज अपना बल-बूता पर जांगर ठेठा के बहुत किछु हासिल करेवाला समाज रहल बा. रोजी-रोटी के जोगाड़ में आम तौर पर मरद लोग बहरवांसू हो जात रहे  आ घर-परिवार, गांव-जवार आ पत्नी-प्रेमिका  के वियोग ताजिनिगी झेले खातिर अलचार रहे. कमोबेस इहे हाल आजुओ बा आ नगर-महानगरन में छिछियात भोजपुरिया दुख-तकलीफ आ बिछोह के अपना आंतर में दबवले जीवटता के जियतार नमूना पेश करि रहल बाड़न.


भोजपुरी के लोकगीतन में त  वियोग-बिछोह के अइसन मार्मिक, हृदयस्पर्शी  चित्र उकेराइल बा कि सुननिहार के करेजा फाटे  लागेला आ आंख से लोर के नदी बहे  लागेले. ई वियोग खाली मरद मेहरारू आ प्रेमी  प्रेमिका के बिछुड़ले भर सीमित नइखे. एकर फइलाव कबो ससुरा जात बेटी के वियोग का रूप में बियाहगीत में त कबो दुनिया जहान से नाता तूरत परिजन के बिछोह का रूप में  मउवत गीतो में मिली. भोजपुरी के आदिकवि  कबीर अपना निरगुनिया बानी में जीव आ  आतमा के बिछोह के रेघरियावे वाला चित्र
 उकेरले बानीं. महेन्दर मिसिर के पूरबी में  आंवक में ना आवेवाला वियोग के दरद के  बखूबी महसूसल जा सकेला. बारहमासा में त  हर ऋतु के मौसमी सुघरता का संगे बिरह में बेयाकुल नायिका के मनोदशा के तस्वीर आंतर  के तीर-अस बेधे बेगर ना रहि सके. हर  जगहा इहे भाव - ‘पिया के वियोगवा में कुहुके  करेजवा’. चाहे फागुन के फगुवा होखे, चइत  के चइता होखे भा सावन के कजरी. अगर  साजन-सजनी के साथ ना होखे त सुहावन  मउसम के भकसावन लागत देरी ना लागे. तबे  नू विरहिनी के आंख से लोर, मघा नछत्तर के  बरखा मे ओरियानी के पानी अस टपकेला.


 महाकवि जायसी लिखले बानी :

बरिसे मघा झकोरि-झकोरि
 मोर दुइ नैन चुअत जस ओरी.

राम सकल पाठक ‘द्विजराम’ रचित ‘सुन्दरी-विलाप’ के सुन्दरी के विलाप पथलो  दिल इंसान के पघिलावे के ताकत राखत बा :

गवना कराइ सईंया घरे बइठवले से,
अपने गइले परदेस रे बिदेसिया.
चढ़ली जवनिया बैरिन भइली हमरी से,
केई मोरा हरिहें कलेस रे बिदेसिया.
अमकि के चढ़ीं रामा अपना अटरिया से,
चारू ओर चितईं चिहाइ रे बिदेसिया.
कतहूं ना देखीं रामा सईंया के सुरतिया से,
जियरा गइल मुरझाइ रे बिदेसिया.


लोक जिनिगी के कुशल चितेरा भिखारी ठाकुर के अमरकृति ‘बिदेसिया’ त बिदेसी आ  सुन्दरी के विरहे-वियोग के केन्द्र में राखिके  रचल गइल बा. जब बिदेसी अचके में परदेस चलि जात बाड़न, त सुन्दरी भाव-विह्वल होके  कहत बाड़ी :

पियवा गइलन कलकातवा ए सजनी !
तरि दिहलन पति-पत्नी नातवा ए सजनी,
किरिन-भीतरे परातवा ए सजनी!

विरहिनी बेचारी जल बिन मछली नियर तड़पत बाड़ी. आखिर हमरा जरी मेे के आरी  भिड़ा देले बा? रोज आठो पहर बाट जोहे के  सिलसिला का कबो खतम होई ?

बीतत बाटे आठ पहरिया हो
डहरिया जोहत ना.
धोती पटधरिया धइके, कान्हवा प चदरिया हो,
बबरिया झारिके ना.
होइब कवना शहरिया हो
बबरिया झारि के ना.
केइ हमरा जरिया में भिरवले बाटे अरिया हो,
चकरिया दरिके ना.
दुख में होत बा जतसरिया हो,
चकरिया दरिके ना.
परोसिकर थरिया, दाल-भात-तरकरिया हो,
लहरिया उठे ना,
रहित करित जेवनरिया हो,
लहरिया उठे ना.

आधुनिक भोजपुरी कवितो में एह पक्ष के मर्मांतक पीर का संगे रचनाकार लोग उठावत आइल बा. अपना घर में रहेवाली अकेल  मेहरारू आ टोल-परोस के मरदन के भुखाइल  बाघ-अस नजर. दिन भर त काम-धाम में  लवसान होके कटियो जाला, बाकिर पहाड़-अस  रात काटल मुश्किल होला. आचार्य पाण्डेय  कपिल के शब्दन में :

कइसे मनवा के बतिया बताईं सखी,
हाल आपन कहां ले सुनाईं सखी.
दिन त कट जाला दुनिया के जंजाल में,
रात कइसे अकेले बिताईं सखी.

सावन के रिमझिम फुहार, झींसी आ  हरियरी, उहवें परदेसी बालम के वियोग. डॉ रिपुसूदन श्रीवास्तव के एगो गीत में विरही मन में पइसल हूक के अन्दाज लगावल जा सकेला :

असो आइल फेरू सावन के बहार सजनी,
जब से परे लागल रिमझिम फुहार सजनी!
ठाढ़ दुआरी राधा भींजे, कान्हा घर नाआइल,
उमड़ि-घुमड़ि घन शोर मचावे,
हिय में हूक समाइल
बिजुरी धरे लागल जरला पर अंगार सजनी.
टप-टप-टप-टप मड़ई चूवे,
नींद भइल बैरिनिया,
बलमा गइल विदेस छोड़िके,
कलो बारी धनियां
नइया परल बाटे बीचे मंझधार सजनी.

आज काल्ह जब बाजारवाद नेह नाता के मिठास लीलत जा रहल बा, जिनिगी कतना अकसरुवा, दुख-पीर के पर्याय बनल जा रहल  बिया. बेसम्हार भीड़ो का बीच कई कई गो मोरचा पर लड़त-भीड़त, पछाड़ खात आ टूटत जात बिरही मन. शिवकुमार ‘पराग’ के कहनाम बा :

आह-वाह जिनिगी में बा,
धूप-छांह जिनिगी में बा.
सूनत करेजा फाटेला,
उ कराह जिनिगी में बा.
जब चारू ओर जुलुमी जन के ताण्डव होई
त जिनिगी पहाड़े नू बनि के रहि जाई.

कविवर जगदीश ओझा ‘सुन्दर’ के पाती देखी :

कुकुर भइले जुल्मी जन, हाड़ भइल जिनिगी
नदी भइल नैना, पहाड़ भइल जिनिगी.

अभाव आ विरह के बाथा-कथा प्रभुनाथ मिश्र बयान कइले बानीं :

सनन-सनन जब बहेले बेयरिया
टटिया के ओटवो उड़ावेले चुनरिया
कांपि जाले पतई से पाटल पलान रे
बदरा के देखि-देखि बिहरे परान रे!

धनिया लाख चाहत बाड़ी, बाकिर होरी के  सुधि बिसरते नइखे. पिया के मिठकी नजरिया  पर दीठि-कनखी मारत डॉ अशोक द्विवेदी  कहत बाड़न :

अंगना-बंड़ेरिया प कगवो ना उचरे
पिया तोर मिठकी नजरिया ना बिसरे.
डाढ़ि-डाढ़ि फुदुकेले रूखी अस दिन भर
मन के चएन नाहीं देले कबो छिन भर
सुधिया तोहार मोरा हियरा के कुतरे.

आखिरकार परदेसी के पाती पाके धनिया क हुलास-उछाह के पारावार नइखे. अनन्त  प्रसाद ‘राम भरोसे’ के पाती भरपूर भरोसा  दियावत बिया :

चिट्ठि में लिखले बाड़न कि
फगुआ ले हम आइब.
तब तक ले पगार पा जाइब,
बोनस भी पा जाइब.
चिन्ता के कुल्हि छंटल बदरिया,
चिट्ठी आइ गइल बा.
मन उड़िके जा पहुंचल झरिया,
चिट्ठी आइ गइल बा.


कुल्हि मिला के भोजपुरी कविता में वियोग के जवन चित्र उकेरल गइल बा, उ बड़ा जियतार बा आ ओह में मउसम का मिजाज का संगे नारी-मन के सोच, आकुलता,
 तड़प आ अभाव ग्रस्त बेबसी के हर दृष्टि से  मन के छूवे वाला चित्रण भइल बा, जवन  भोजपुरी काव्य के उठान आउर ताकत के  परिचायक बा.
------------
भगवती प्रसाद द्विवेदी
द्वारा, प्रधान महाप्रबन्धक, दूरसंचार जिला,
पोस्ट बाक्स 115, पटना-800001 -बिहार

( भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

रविवार, 17 नवंबर 2024

आंखि भइल सावन, पुतरिया भइल बदरी

 लेख

आंखि भइल सावन, पुतरिया भइल बदरी

डॉ. आद्याप्रसाद द्विवेदी

बरिस के बारह महीनन में सावन महीना के आपन एक अलग विशेषता होला.  बरखा रितु के असली उछाह सावने महीना में देखे में आवेला.  ए महीना मे सगरे आकाश मानों धरती पर उतरि आवेला.  गरमी के ताप से झुलसत धरती सावन के पा निहाल हो उठेली. बादर से भरल अकाश से पानी झमाझम बरसे लागेला.  रिमझिम-रिमझिम बरसत पानी जिनगी के उदास क्षणन में जादुई रंग भर देला.  सावन प्रकृति के उभरल जवानी के निखार हवे, श्रह्नगार हवे.  ए महीना मेें बरखा के फुहार से मतवाला बनल पाखी-पखेरू स्वागत के गीत गावेलें.  धरती किसिम-किसिम के फूलन के भीनी-भीनी महक से गमगमा उठेले.  प्रकृति रानी अपने सुहाग पे इठला उठेंली.  बिजुरी रहि रहि के बादरन के गोद में चिहुंक उठेले. लता-बल्लरी झूमि-झूमि के पेड़न के गलबाहीं देवे लागेलीं.  सावन के अइसन मनभावन महीना में जब परत-परत के सजल बादरन के झुंड से सगरे अकाश भरल रहेला, बादरन के गर्जन के ताल पर मोर कुहुक-कुहुक के छमाछम नाचत रहेलें, धरती-रानी के हरिअर अँचरा हवा में लहरात रहेला, उमड़त ताल-तलैया आ इठलात नदी एक समा बांधि दिहले रहेलें, अइसने में तन-मन के हुलसि उठल बहुत सहज हवे. अवर जब तन-मन हुलसि उठेला तब सहज रूप से कंठ से लोकगीत फुटि पड़ेला.

सरस सावन, अंखियन के सुख पहुंचावे वाली हरियरी, रिमझिम फुहार, एकर असली चित्र लोकगीतने में देखे के मिलेला.  अइसने गीतन मे ऋतुगीत अवर ओमें पावस गीत भा सावनी गीत विशेष रूप से चर्चा करे योग्य हवे.  पावस के गीतन में कजरी के गीत सबसे अधिक लोकप्रिय हवे.  कजरी लोकगीतन के एगो शैली हवे जवना में सावन के पुरजोर मस्ती भरल रहेला.  एगो कजरी गीत के उदाहरण हम सुना रहल हई जवना में एगो विरहिन नायिका के दर्द के चित्र बा-

सावन मास पिआ घर नाहीं,

मेघवा बरसन लागे ना. 

उमड़ि- उमड़ि के बादर बरसे,

सोर मचावे ना. 

पापी पपिहा पिउ-पिउ बोले,

जिअरा तरसन लागे ना. 

दिन ना चैन, रैन ना निदिया,

सुधि बिसराने ना. 

बन में घूमि-घूमि के मोरवा,

नाचे हूक उठावे ना. 

केकरा संग हम खेलीं कजरी,

जिअरा कसकन लागे ना. 


आकास में घटा चहुं ओर छवले होखे, झीनी-झीनी फुहार पड़त होखे, बादरन के गरज आ बिजुरी के चमक से डर के स्थिति बनल होखे, अइसने में अकेलापन कांट के समान सालेला.  बिरहिन के दिन क चैन आ राति के नींदि हवा हो जाले.  अइसन तलफत स्थिति में नायिका कजरी के धुन में अपने मन के पीड़ा व्यक्त करेले -

गरजै बरसै रे बदरिया,

पिया बिनु मोहे ना सोहाय,

आये बदरा स्याम रंग,

रहे गगन बिच छाय,

रैन अंधेरी घिर रही,

जिया नाजुक डर जाय. 

चमकै दमक रहे दामिनियां,

रैना कैसे बीती जाय. 

चंहक-चंहक रहे चातक,

मंहक-मंहक रहे फूल,

रैन अंधेरी ऐसी गई बात मैं भूल,

पिक, पपीहा औ कोकिला, नीलकंठ-बनमोर,

नाच-नाच कुहकत रहें,

देखि-देखि घन ओर,

ऐसे सावन में सांवरिया,

मोहके कुछु ना सुहाय. 


सावन के झिम-झिम फुहारन के बीच पानी से भरल धान के खेतन में रोपाई करत मजदूरिन सभ जब भावविभोर होके कजरी के गीत गावेली त बातावरण में एगो अजबे मदहोशी छा जाले.  उन लोगन के गीत संगीत के नियम से बंधल नाहीं होला, ओमे कवनों शास्त्रीयता नाहीं होले, तबहूं ओमें जवन मिठास होले, उ अपने सावन के अवते बाग-बगइचा में झूला पड़ि जाला.  लोक जीवन में सावन के झूलन के एगो अलगे रसमयहा होला.  मीठ-मीठ नोंक-झोंक के बीच में ननद-भौजाई झूला झूलेलीं. जवने समय आसमान में करिया करिया बादल फिरल होखे, बौछार पड़ रहल होखे, ठंडी बयार के झोंका पेड़न के एक-एक डाढ़ि के गुदगुदा रहल होखे, ओह समय भींगल-भींगल चूनर ओढ़ले झूला झूलत गांव के गोरी सभ बहुत मनभावन लागेली.  ऐही पर एकजाना हिन्दी कवि के पंक्ति इयाद पड़त बा -

झूले पर सावन झूल रहा,

शैशव और यौवन झूल रहा.


सावन माह में नई आइल बहू के नईहर भेजलो के परम्परा हवे.  वधू सभ बाट जोहत रहेली कब सावन आवे आ उनके बीरन उनके विदाई करावे आवें.  मालूम पड़ेला कि सावन के मस्ती के बहुत खुले रूप में जीयहीं बदे ई परम्परा बनल हवे.  सावन महीना प्रकृति के यौवन हवे.  यौवन हमेशा अल्हड़ होला.  ओके नियम कानून अच्छा नाहीं लागेला. पीहर में नियम-कानून से बंधल जिनगी रहेले लेकिन नईहर में स्वच्छन्द जिनगी रहेले.  एही स्वच्छन्द जिनगी के आनन्द लेवे खातिर सावन में बहु के नईहर में रहले के परम्परा बनल हवे. लेकिन एह परम्परा से अलग हटि के एगो लोकगीत में नायिका अपने ननद से कहि रहल बिया -

भइया मोर अइहें अनवइया,

संवनवा में ना जइबों ननदी. 


ई नायिका सावन के आनन्द अपने पिय-संगम के साथे बितावल चाहति बा. 

अइसहीं एगो लोकगीत में संजोगिनी नायिका के वर्णन बा जवन सावन के झिमिर-झिमिर रात में विह्वल बनल अपने पिय के संगे हिंडोला पर किलोल करत गा रहलि बिया - 

सखि हे! पडे सावन के झींसी,

पिया संग खेलब पचीसी ना.

एह लोकगीत के कड़ी में संजोगिनी नायिका के केतना टंहकार भरल प्रसंग बा. 

कइसन रसमय होत होई उ समय जब कवनों नवही अपने पिय के संगे बतरस करत हंसी-गुदगुदी में पचीसी के खेल खेलति होई.  

संजोगिन आ विरहिनि के ओर से हटि के अगर खुलल रूप से सावन के बखान लोेकगीत में देखल जाव त उ कम मोहक नाहीं हवे.  देखल जाव एगो लोकगीत में कतना रोचक ढंग से सावन के हर पक्ष के केतना सरस आ नीम्मन बरनन कइल गइल बा -

फूले बन फुलवा, बोलन लागे मोरवा,

अब रे मयनवा ना. 

मैना छवले बाटे सगरों संवनवां, अब रे... 

घिरले बदरिया, करे अंधियरिया, अब रे... 

मैना झुरझुर चलल पवनवां, अब रे... 

झिल्ली झनकारे, बनपपिहा पुकारे, अब रे... 

मैना बहे लागी नदिया होय उतनवां, अब रे... 

सजेली गुजरिया, गावेली कजरिआ, अब रे... 

मैना मिलि जुलि झुलेले झुलनवां, अब रे... 

जेकरा सजना परदेस बसेलें, अब रे... 

मैना अंसुवा बहावे दिन रैना, अब रे... 

---------------------

डॉ. आद्याप्रसाद द्विवेदी,

टैगोर नगर, सिविल लाइन, बलिया-277001

(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर)

दुख से मुक्ति

 लघु कथा

दुख से मुक्ति

लल्लन प्रसाद पाण्डेय

अपना गंवहिया राम नगीना सिंह के घरे बइठके चाह पीअत रहले बिकरमा.  काफी नजदीकि बा उनका एह परिवार से.  एह से उनका से ओह घर में केहूके परदा ना रहे. ओह दिन सिंह के बड़की पतोहु के उदास देख बिकरमा चाह पियते पूछ बइठले- ‘‘काहे हो कनिया, आज मुंह पर उदासी काहे छवले बा?’’

‘‘ना चाचा जी, कवनो खास बाति नइखे. आजुवे गांव से फोन आइल रहल ह कि नानी के गंगा लाभ हो गइल.  नीके भइल, बेचारी बड़ा दुख भोगत रहली ह. ’’- पतोहु कहली.

बिकरमा तनीका चिहात पूछलें - ‘‘काहें, तहार त तीनों मामा लोग त बड़का लोग में गिनाला.  जवना मतारी का तीन गो बेटा, तीन गो पतोहु, अन्न-धन से भरल घर, ओकरा कवन दुख?’’

पतोहु जवाब दिहली ‘‘-खाये-पीये के त कवनो दुख ना रहल.  बड़का दू तल्ला मकान में उ अकेले रहत रहली.  मामा लोग त सभे दूर शहर में रहेला.  नानीए पर गांव के सम्पत्ति के देखे के भार रहल.  तबकी बेर नानी किहां गइल रहनी, त देखनी एकदम थउस गइल बाड़ी.  ना आंखि से लउकत बा, ना चलल जात बा.  गांवही के एक जानी मेहरारू कबो-कबो आके उनुका के देख जाली.  नित करम खातीर देवाल टोअत-टोअत जाली.  कय बेर गिरल से देहो घवाहिल हो गइल रहल. आंखि के पपनी तक में ढील छाप लेले रहल. बड़ा दुख पावत रहली.  अच्छा बा दुख से मुक्ति मिल गइल. ’’

राम नगीना सिंह के पतोहु के बाति सुनते बिकरमा के होस उड़ गइल.  उनुकरो दूनों बेटा अपना मेहरारून के साथे दूर शहर में बाड़न स.  साल-दू साल पर आके दस-पांच दिन इहां रह जालन स.  साल भर भइल घरनिओ भगवान का घरे चल गइली.  अकेले बाड़े. कबहीं उनुकों पोता-पोती के त इहे पांती ना

कहे के पड़े कि नीके भइल.  बुढ़उ चल गइले.  बड़ा दुख पावत रहले.  अच्छा बा दुख से मुक्ति मिल गइल. 

----------


लल्लन प्रसाद पाण्डेय,

बरडूबी बाजार, डुगरीजान, 

तिनसुकिया-276601

असम

(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर)


‘फूलमतिया फूआ’

 कहानी

‘फूलमतिया फूआ’



देवकुमार सिंह

छक...छक, छक...छक करत रेल गाड़ी अपना मंजिल के तरफ तेज गति से बढ़त रहे. भारत के विदेश-नीति, चीन-पाकिस्तान के संगे भारत के सीमा-विवाद, राबड़ी देवी आ मायावती सरकार के मनमौजी शासन जइसन बहुतेरे टापिकन पर गरमागरम बहस कइके लगभग कुल्हि यात्री कड़ेर नीनि में सूति गइल लोग.  बाकिर इंजीनियर साहेब के आंखि में तनिकों नीनि ना रहे.  आजु फूलमतिया के उनका खूबे इयाद आवत रहे.

फूलमतिया दुई पास तीन फेल रहे.  निपटे निरक्षर ना रहे.  चिट्ठी-पतरी लिखे-पढ़े जानत रहे.  ढेर पढ़ल ना रहला के चलते ओकरा संगे शादी उनका पसन्द ना रहे, जबकि उ बहुते सुघर, लमहर कद-काठी के, अउर घर-गिरहस्थी के काम-काज में निपुन रहे.  उनका पहिलके राति में ओकरा संगे बक-झक हो गइल. 

‘‘हई लमहर घूघ काहे कढ़ले बाडू़? कइले पढ़ल हउ..? गूंग हउ का... बोलत काहे नइखु...?’’ रमेसर पूछले.  ‘‘इ कुल्हि ढोंग हमरा नीक ना लागे.  अनपढ़ कहीं का? रमेसर डंटले.

‘‘अनपढ़ ना हईं.  दुई पास तीन फेल हईं. ’’ फूलमतिया कहलस आ निहोरा कइलस ‘‘पलंग पर लेटीं, राउर गोड़ दबा दीहीं.’’

‘‘बउचट कहीं का!’’ कहिके रमेसर ओह कमरा से बहरी निकलि अइले.

‘‘हइसन बुरबक, भकोल लड़िकी से हमार बिआह काहे कइल हा? हमार जिनिगी तू चउपट कइ दिहल.  हम एकरा के ना राखबि. ’’ बाबूजी के कमरा में घुसते खिसिआइके रमेसर बोलले.  मास्टर साहेब भउचका गइले आ बाप का रोआब में डपटले - ‘‘एकरा ले नीमन लइकी आठ-दस गो गांव में खोजला प ना मिली.  बहुत रहनदार हिअ.  आ तू एकरा के भकोल कहत बाड़?’’

‘‘एह गंवार लड़की के हम अपना संगे ना राखब’’ कहिके उ ओही राति खा अटइची उठाके घर से निकलि गइले.  बाप के लाख समझवलों पर ना मनले.  माई त इनकर जनमते मरि गईल रहे.  रूई से दूध पिया-पिया के कसहूं जिअवले.  अंगरेेजी इसकूल में नाम लिखवले.  इनका इसकूल के फीस जुटावे खातिर गांव के लड़िकन के टिसनी पढ़ावस, एही से मास्टर साहेब कहाये लगले.  नाही त खेती के आलावा जियका के कवनों साधन ना रहे. अपने साग-सातू खाइके, फाटल धोती में पेवन लगा-लगाके काम चलावसु आ इनका के बढ़िया शिक्षा, नीमन भोजन-वस्त्र के प्रबन्ध करसु.  आजु उहे रमेसर इनकर तनिको बात ना मनले.  ‘‘इ कुल्हि इंगलिस इसकूल में पढ़वला के नतीजा ह. ’’ बुदबुदाते कपार पर हाथ राखिके धम्म से बइठि गइले. 

रमेसर कम्प्यूटर इंजीनियर रहले.  न्यूयार्क के एगो कम्पनी में उनकर नोकरी लागि गइल. आ उ न्यूयार्क चलि गइले.  जाये के पहिले अपना बाबूजी आ मेहरारू से मिलहूं ना अइले. खाली एगो कार्ड पर आपन समाचार आ पता ठेकाना लिखि के भेजि दिहले.  अमेरिका में नोकरी के समाचार सुनि के मास्टर साहेब खूबे खुश भइले.  सतनारायन भगवान के काथा कहववले आ मिठाई बंटले. 

कई बरिस बीति गइल, रमेसर रूपया-पइसा के कहो चिट्ठिओ-पतरी  ना भेजले.  मास्टर साहब कईगो चिट्ठी भेजले बाकिर एको के जब जबाब ना आइल त चिट्ठी लिखल छोड़ि देले. मास्टर साहब बड़ा उदास रहस कि का जाने बबुआ के का हो गइल बा.  बेमार त नइखन आकि कुछ बाउर घटना घटि गईल बा?

मरद के बिना मेहरारू के जिनिगी ऐगो जिन्दा लाश लेखा होला.  बाकिर फूलमतिया त मरद के सुख तनिको ना जनले रहे.  ओकरा जवान देह पर मनचला नवही ललचायी निगाह डालस बाकिर उ एतना डीठ रहे कि कवनो जाना के ओकरा से खोंखे के हिम्मत ना पड़े. गली में एकान्ता भेंट भइला पर एगो बदमाश लड़िका ओकरा से कहलस कि हमरा तोहरा संगे सूते के मन करत बा.  सुनिके उ ताबड़ -तोड़ चप्पल से पीटे लागल ‘‘अपना माई-बहिनिया संगे सूत, उ मू गइल बाड़ी स का? मटिलगना कहीं के. ’’ सुनिके ढेर लोग जुटि गइल आ ओकर ठीक से परिछावन हो गइल.

बड़ा-बुजुर्ग के बेमार पड़ला पर, बच्चा जने के बेरा गर्भवती औरत के, शादी-बिआह, मुअनी-जिअनी सबमें जेही पूछे-कहे ओकरा सेवा में फूलमतिया हाजिर रहे.  लोगन के सेवा में ओकर दिन बीते लागल.  नइहर-ससुरा हर जगह सेवा खातिर ओकर पूछ होखे लागल.  नइहर के लड़िकन के देखादेखी ससुरो के लड़िका ओकरा के फूलमतिया फूआ कहे लगले स.

बिआह के सुख त उ ना जनलस बाकिर सेनूर उ बड़ा टहकारे करे.  एक-दू हाली बूढ़ औरत कहली स - ए फूलमतिया दोसर बिआह क ले, ते अभी जवान बाड़ी स आ पता ना उ तोर मरद आई कि ना. ’’ सुनते ओकर आंखि लाल-लाल हो गइल.  बुझाइल कि उनकर मुंह नोचि ली- खबरदार काकी! अइसन बात कबहूं कहबो मति करिह.  हम एकजनमिया हईं.  हमार मरद इंजीनियर हवें, अइहें चाहे ना अइहें.  कवनो घसछिलवा के मेहरारू हम ना हईं. अस्सी हजार महीना पावेले.  फेरू-फेरू कहबू त राखि लगाके तोहार जीभि खींचि लेबि. बड़ -बूढ़ बाड़ू एहसे छोड़ि देत बानी. ’’

कुछ दिन के बाद मास्टर साहब के पता चलल कि रमेसर एगो अमेरिकन लड़की से शादी कर लेले बाड़े.  मास्टर साहब एही हूके बीमार पड़ले त खाटी धइ लिहलें आ फेरु उठले ना.  फूलमतिया उनकर खूबि जी-जान से सेवा कइलस.  अपना मरद के पास चिट्ठी लिखलस बाकिर उ अइले ना.  मास्टर साहब निरोग ना भइले आ एक दिन दुनिया से चलि गइलें.

फूलमतिया पर त दुःख के पहाड़ टूटि गइल बाकिर रोअल-घबड़ाइल ना.  दुःख सहत-सहत ओकर दुःख सहे के आदत बनि गइल रहे चाहे आंख के लोर- अब सूखि गइल रहे.  मांग-चूंग के मास्टर साहब के किरिया करम भोज-भात उ कइलस.  लोग कहे ‘‘मास्टर साहेब के इ पतोहु ना असली बेटा हिअ.  उ मुंहझउंसा त देखहूं-सुने ना आइल.  ’’

फूलमतिया चट से लोगन के मुंह पर हाथ राखि देवे - ‘‘उनुकरा के बाउर मति बोलीं सभे. शास्तर में लिखल बा कि पति परमेसर होले. उनुका के गाली दिहल-सुनल पाप ह. ’’

केहू जानत नइखे कि केकरा जिनिगी में कब कवन घटना घटि जाई.  जिनिगी एगो पहेली ह- अनबूझ पहेली.  अमेरिका में मेरी नाम के लड़की से शादी कइके रमेसर अपना के दुनिया के सबसे सुखी आदमी बुझत रहले. सुख से अतना सराबोर रहले कि अपना बूढ़ बाप के आ बिअही मेहरारू फूलमतिया के तीस बरिस में एको हाली तनिकों इयाद ना कइले. जइसे उनकर दिमाग कम्प्यूटर होखे आ घर के इयाद वाला इन्टरनेट नम्बर उ भूला गइल होखस.  अगर उनका एड्स न भइल रहीत, आ मेरी के दुलत्ती ना खइलें रहीते त उनका अपना देश के इयाद ना आईत.  मेरी के बात उनका कांट लेखा अबहियों चुभत रहे -

‘‘हमरा अब तोहार कवनो जरूरत नइखे. कोर्ट से तलाक मंजूर हो गइल बा.  दुनो लड़िका अपना वाईफ संगे पहिलही अलगा हो गइल बाड़े स.  इहां के सब धन-सम्पति हमार ह.  हमरा एकरे सहारे जिये के बा.  हम नौकरानी ना हई कि तोहार सेवा करबि.  कुकुर कहीं का !’’

‘‘बाकिर हमरा एड्स त तोहरे संग से भइल बा.  तू ही हेने-होने कई-कई गो मरद संगे छिछियात फिरत रहलू हा.  इ मति भूला कि तहरो एड्स बा. ’’ - रमेसर उलाहना दिहले. 

‘‘हमरा खातिर पईसा बा.  इहे हमार हसबैंड ह.  एहसे हमार सेवा हो जाई.  तू आपन झंखऽ. ’’ कहके मेरी कांख में बेग लटकवलसि आ घूमे निकलि गइल.  रमेसर ओह घरिये मुम्बई खातिर फ्लाइट पकड़ लिहलें.  मुम्बई उतरला पर रेलगाड़ी में बइठि के घर के ओर चलि देले.  इयाद के हिंडोला में उनका कब नीनि लागी गइल उनका ना बुझाइल. 

‘‘आरे भाई, कहां जाये के बा? इ सुरेमनपुर ह. ’’- एगो यात्री उनका के जगवलस.  उ हड़बड़ा के उठले, अटइची उठवले आ उतरि के पयदले चलि दिहले.  गांव में ढूकते लोग अकबका के उनका के निहारे लागल.  अपना घर के सामने भीड़ि देखिके पूछले - ‘‘ए भाई का बात बा?’’

गांव के एगों बूढ़ उनका के चीन्हि गइले ‘‘अरे इ त रमेसरा ह.  का ए बबुआ! बड़ नेकी कइल अपना बाप संगे.  मुंह में आगियों देबे ना अइलऽ.  कतना दुःख से तोहरा के पलले, पढ़वले, इन्जीनियर बनवले आ तू उनका के ठेंगा देखा देलऽ.  धिरकार बा तोहरा लेखा लड़िकन के. ’’

एगो बूढ़ि औरत कहलस - ‘‘इ तोहार बहुरिया हई.  एक महीना से बेमार बाड़ी. अब-तब लागल बा.  तुलसी गंगाजल दे द. बाकिर तू का तरब एकरा के.  इ त अपने करम से सरग जाई.  इ नइहर-ससुरा दुनो गांव के बलुक एह जवार के देवी हीय.  एकर दरसन कइके त तू तरि जइब. ’’

रमेसर तुलसी गंगाजल दिहले.  फूलमतिया आंख खोलि के टुकुर-टुकुर कुछ देर देखलस. चेहरा पर हल्का मुस्कान आइल, टप-टप आंखि से कुछ लोर टपकल आ आपन आंखि मूंदि लेलस हमेसा-हमेसा खातिर.  पूरा गांव पूक्का फारि के रोये लागल - ‘‘बूढ़, बेसहारा, अपाहिज, रोगी के सेवा अब के करी? बच्चा पैदा करावे खातिर अब औरतन के अस्पताल जाये के परी. ’’

जवारभर मिलिके ओकर सराध कइल.  रमेसर के एगो छेदहियो पइसा ना खरचा करे दिहल लोग.  सराध के बाद रमेसर आपन अटइची उठाके चले लगले. 

‘‘काहो तोहार नईकी माई फेरू इयाद पड़ि गइल का?’’ - ललन सिंह गांव के बड़बोलवा गिनाले.  उ टोकिए दिहले.

‘‘ना काका अमेरिका छोड़ि देले बानी.  बाकिर अब गांव में हमार के बा? हमारा एड्स हो गइल बा, कहीं बहरे मरि खपि जाइबि. ’’ - कहिके रमेसर रोए लगले.

‘‘हेने-होने मुंह मरब, चाहे विदेशी लड़की से विआह करब त इसब रोग-बेयार होखबे करी. ’’ फूलमतिया गांव जवार में एतना नेकी कइले बिया कि तोहरा सेवा में इहवां कवनों कमी ना होखी.  चाहे तहरा एड्स-वोड्स कुछुओं होखेे. इहंवे रहऽ. ’’ - कहिके ललन सिंह उनकर अटइची रखि दिहले. 

फूलमतिया आ बाबूजी के उपेक्षा के उनका घोर पछतावा होत रहे.  सचहूं, अब उनका बुझाइल कि फूलमतिया उनका ले ढेर पढ़ल-लिखल रहे.  आचरण के पढ़ाई में ओकर कवनों सानी ना रहे.  कोट के पाकेट से उ चिट्ठी जवना पर उ तनिकों धेयान ना देले रहले निकालि के पढ़े लगले.

पूजनीय सवामी जी!

चरनों में परनाम,

बाबूजी बेमार बानी.  जिए के आस नइखे. जलदी आईं ना त राउर बदनामी होत बा.  आई के फेनु चलि जाइबि.  हम रोकबि ना.  जानत बानी कि एगो उहां रउआ बिआह कइले बानीं. एकर हमरा तनिको तकलीफ नइखे.  रउरा हमार

भगवान हई.  जइसे सुखी रउआ रही, हमार ओही में सुख बा.  थोरे लिखनी ढेर समझी. 

रउआ चरण में बारबार परनाम.  चिट्ठी पावते चलि आई. 

राउर - फूलमतिया. 

ओकर गुन गावत लोग अघात ना रहे. झर-झर लोर उनका आंखे से झरे लागल. फूलमतिया के बात उनका इयाद पड़ल ‘‘अनपढ़ ना हई, दुई पास तीन फेल हई. ’’ जिनिगी के असली इसकुल में उ दु पास रहल हिअ आ हम त खउरहियों क्लास नईखी पास भइल, इहे सोचत उ थउसि के बइठि गइले. 

----------

देव कुमार सिंह, अंग्रेजी प्रवक्ता, 

आचार्य जे.बी. कृपलानी इण्टर कालेज, जमालपुर, बलिया.


(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर)


शनिवार, 16 नवंबर 2024

झरताटे चानी के फुहार

 कविता

झरताटे चानी के फुहार



बद्री नारायण तिवारी ‘शाण्डिल्य’


डम-डम डमरू बजावता सावनवा,

झरताटे चानी के फुहार. 


ओढ़ले अकास चितकबरी चदरिया,

मांथवा पर बन्हले बा धवरी पगरिया,

झरताटे मउसम जटवा से मोतिया,

गेरू रंग कान्हवा पर भिंजली कांवरिया,

पियरी पहिरि बेंग पोखरी के भिंटवा,

मांगतारे मेंहवा के धार. 

झरताटे चानी के फुहार. 


गोंफिया जनेरवा के फूटता धनहरा,

कजरी के रगिया रोपनिया के पहरा,

डढ़ियन अमवा के झुलुहन में होड़ बाटें,

पंवरत पंखिया पर चोचवन के लहरा,

बनवा में मोरवन के फहरे पतकवा,

बरिसे रूपहला बहार. 

झरताटे चानी के फुहार. 


अंगना बडे़रियन से झरना के ताखा,

ओरियन से चूवता सनेहिया के हाखा,

पनिया बहारे धनि जमकल मोरिया,

थाकि-थाकि जाले, नाही रूके रे जुवारवा,

फरकत चोलिया के आड़ले हिलोर,

जाने कबे आयी डोलिया सुतार. 

झरताटे चानी के फुहार. 


खोंतवा में कोइलरि कागवा के बोलिया,

ठोरवा पर गुदियन के थिरकन-ढोलिया,

चातकी के सूखल नरेटिया जुड़ाइल,

कुंचियन से कवियन के उतरलि खोलिया,

फुटे लागल छने-छने कुसुमी कियरियन,

खुशबू के कुंइयन उभार. 

झरताटे चानी के फुहार. 


देरि ना मकइयन से छोंड़ि भरि जइहें,

जोन्हरी के बलिया से मइनी अघइहें,

पाकि जब धानवा कुवारवा के घामवा,

पीटि, धरि डेहरी, बंसुरिया बजइहें,

ढोलकी के धुन-मिलि झलिया के झंझना में,

मिटि जाई भितराके खार. 

झरताटे चानी के फुहार. 


-------


सम्पर्क: द्वारा श्री कमल नयन सिंह,

अवकाश प्राप्त कप्तान, धर्म भवन,

213, राजपूत नेवरी,बलिया-277001


(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर)


नीमिया रे करूवाइन

 ललित निबन्ध

नीमिया रे करूवाइन



डा. जनार्दन राय


दिन भर छिछिअइला से थाकि के एकदम बेबस हो गइल रहे.  किछु करे के बेंवत ना रहे. लमहर सीवान में घुमते-घुमत सांझि हो गइल. एतने होला कि आपन खेत, बन बगइचा एक बेरि आंखि में उतरि आवेला.  उहो देखेला आ अपनहूं देखि के आंखि में जुड़ाई परेला.


नीनि आइल निमन ह.  जेकरा आंखि से इहां का हटि जाइला ओकर खाइल-पियल, उठल-बइठल, चलल-फिरल, मउज-मस्ती, हंसी-मजाक कुल्हि बिला जाला.  अइसन जनाला कि किछु हेरा गइल बा, ओके खोजे में अदीमी रात-दिन एक कइले रहेला. निकहा दिन से हमरो नीनि उचटि गइल बा बाकिर हम केहू से किछु कहिलां ना. सोचीलां कि बूढ़ भइला पर अइसन होखल करेलां.  हमरा संगे कवनो अजगुत नइखे भइल. जे साठि-सत्तर से हेले लागेला उ कवनो अनहोनी का इन्तजार में आपन आंखि बिछवले रहेला, रहता देखत रहेला, हित-नात, संगी-साथी, निमन-बाउर सभे किछु एही सभ का माथे रहेला.  एसे सोचत-विचारत रहला का बजह से, उहां का आपन आसन जमा ना पाइलां.  कबो कबो त अइसन होला कि जब नीनि जनमतुवा का आंखि पर अइला से असकतियाये लागेले त अजिया, महतारी, फुवा लोगन का काफी मसक्कत करे के परेला. उनुकरा मनावन में ओझइती का संगे-संगे गीत गवनई में जेवन लोरी दादी का मुंह से निकसे ले ओकर धुनि, रस, गंध, अजबे सवदगर होला - 

‘‘आउ रे निनिया निनरबन से, 

बबुआ आवेले ननिअउरा से.  

आउ रे निनिया निनरबन से. ’’


चइत महीना रहे.  कटिया लागल रहे. ताल में मसुरी पाकि के झन-झना गइल रहे. टांड़ पर पाकल रहिला के ढेढ़ी झरत रहे आ ओने दियरी में अबहीं गोहूं चना पाकल त ना रहे बाकिर होरहा हो गइल रहे.  एक ओर कटनी आ दुसरकी ओर होरहा का लालच में मन कसमसा के रहि गइल.  अकसरूवा जीव थाकल, खेदाइल देहि सांझि खने दुवारे डसावल बंसहट पर परि गइल.  अकसरूवा हो खला का नाते कबो-कबो डेरा डांड़ी पर अइसहूं रूकि जाये के परेला ए वजह से हमरा घरनी का कवनो चिन्ता-फिकिर ना रहेले. भइल अइसन कि नीनि ओह दिन अपना गिरफ्त में एह कदर लिहलसि कि किछु सांवा-सुधि ना रहि गइल.  अइसन बुझाइल कि -

‘निनिया आइल बा सुनरबन से. ’


भइया संगे बटवारा कवनो आजु के ना ह.  ढेर दिन बीति गइल बाकिर हार आ हंसुली के ले के भउजी संगे जवन उठा-पटक भइल ओकरा से तनी मन में गिरहि त परिये गइल. 

नीनि ना खुललि.  देरी ले सुतल देखि के भइया का मन में किछु अइसन बुझाइल कि, ई काम त कबो के कइले ना ह, मेहरि का कहला में परि के बांटि त जरूर लिहलसि, बाकिर दिल जगहे पर बा.  बोलसु त नहिये बाकिर बुचिया, भउजी आ भइया तीनू जाना के फुसरु -फुसरु बोली त सुनाते रहे.  चइत के मुंगरी से थुराइल देहिं कवहथ में ना रहे.  दरद त रहबे कइल बाकिर देहिं पर परल नीमि के फूल ओकर गंध, बयार का पांखि पर चढ़ के तन-मन के सुहुरा के जवन गुदगुदी पैदा कइलसि ओही दिने बुझाइल कि -

नीमिया रे करूवाइन तबो सीतल छांह

भइया रे बिराना, तबो दहिनु बांह.


टेढ़की नीमि के दतुवन, ओकर खोरठी, पतई, निबावट, लवना, छांह हमनी खातिर केतना आड़ बा, अब तनी-तनी बुझाये लागल ह.  सांझि होते पतई का फुनुगी पर बइठल चिरइन के गिरोह, उन्हनी के खोता, तितिली आ कबे-कबे भुलाइल भंवरन के मटरगस्ती केतना नीक लागेले, ई कहे के बाति नइखे.  ओह दिन त हम अपना घरनी का कहला में परि के नीमि का छाती पर जवन टांगी चलवलीं कि उ कटा के बांचि त जरूर गइल बाकिर हमरा छाती में जवन छेद भइल कि आजु ले ना भराइल.  हमरा खूबे इयादि बा जब नीमि का पुलुई पर बइठि के उरूवा बोलल -

‘उ----उ----उ----उ 


हमार घरनी कहली कि इहनी क बोलल नीक ना ह.  बाकिर उनुकरा बाति पर बाति बइठावत बंसी साधू कहलनि -

‘ई गियानी हवन जा.  बोलला के मतलब ई होला कि सजग हो जा, किछु अइसन होई कि टोलमहाल में कवनो दुख, बिपति जरूर आई. ई आवे वाला बेरामी, बिपदा, बाढ़ि सूखा, महामारी के बता के पोढ़ होखे के शक्ति देला. ’


नीमि के डाढ़ि उरुवा के ठांव बा. गौरइया के खोंता, आ माता दाई के झुलुहा बा.  त एकर पतई दवाई आ टूसा टानिक बा.  एकर दतुवन मुंह बसइला से लेके पेट का हर बेरामी के अचूक दवाई बा.  इहे ना, एकरा सूखल डाढ़ि पर कोर पतुकी में बनवला भोजन के खाये वाला कइसनो कोढ़ी होखो, एक बरिस में जरूर ठीक हो जाई.  एही से एकरा छांव में बइठि के गांव के गोरी जवन गीति गावेली स ओकर अजबे रस बा.  एह छांव में संवसार के संवारे वाली माता दाई खुद बसेरा करेली, एही से भर नौरातन इनिका गाछ से छेड़-छाड़ कइल ठीक ना मानल जाला.  गांव गंवई के माई-बहिन जब गावेली स त रोंवा भभरे लागेला-

नीनिया के डाढ़ि मइया!

लावेली झुलहु वा, हो कि, झूलि-झूलि ना. 

मइया मोरी, गावेली हो

गीतिया कि, झूलि-झूलि ना. 

झूलत-झूलत मइया के

लगली पियसिया, कि बूंद एक ना!

मालिनि पनिया पियाव, मोके बूंद एक ना.


माली-मालिनी मिलि क महामाया का किरिपा से नीमि के सींचत जबन रूप देले बा ओही तरे मातादाई एह संवसार में रसे-बसे  वाला हर जीव जंतु के जिये संवरे, सोचे समझे के बल, बुधि देले बानी.  जरूरत एह बाति के बा कि इंसान के इंसान बुझी जा.  भाई के कसाई समझि के काटे के ना ह.  भाई-भाई ह. संबंधन का बीच में खटाई डाले के बाति ना होखे के चाहीं.  घाम सहि के छांह दिहल आ दुख काटि के सुख बांटल असली धरम ह. सच-सच कहल जाय त आपन करमे असली धरम ह.  एह राह-रहनि से जे रही, ओकरा ‘करनी’ से घरनी आ धरनी दूनो के राहि रसगर हो जाई.  संवसार मसान होखे से बंचि जाई.  एके बंचावे बदे जे दुइ कदम चली, माई के असली बेटा उहे ह -

‘यः प्रीणयेत् सुचरितैः पितरं स पुत्रो’

----------

डॉ जनार्दन राय, नरही, बलिया-2177001


(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर भइल रहल ई लेख.)


कुछु समसामयिक दोहा

 कुछु समसामयिक दोहा


मुफलिस



देइ दोहाई देश के, लेके हरि के नाम. 

बनि सदस्य सरकार के, लोग कमाता दाम. . 


लूटे में सब तेज बा, कहां देश के ज्ञान. 

नारा लागत बा इहे, भारत देश महान. . 


दीन हीन दोषी बनी, समरथ के ना दोष. 

सजा मिली कमजोर के, बलशाली निर्दोष. . 


असामाजिक तत्व के, नाहीं बिगड़ी काम. 

नीमन नीमन लोग के, होई काम तमाम. . 


भाई भाई में कहां, रहल नेह के बात. 

कबले मारबि जान से, लागल ई हे घात. . 


नीमन जे बनिहें इहां, रोइहें चारू ओर. 

लोग सभे ठट्ठा करी, पोछी नाहीं लोर. . 


अच्छे के मारी सभे, बिगड़ल बाटे चाल. 

जीयल भइल मोहाल बा, अइसन आइल काल. 


पढ़ल लिखल रोवत फिरस, गुण्डा बा सरताज. 

अन्यायी बा रंग में , आइल कइसन राज. . 


सिधुआ जब सीधा रहल, खइलसि सब के लात. 

बाहुब ली जब से बनल, कइलसि सब के मात. . 


साधू, सज्जन, सन्त जन, पावसु अब अपमान. 

दुरजन के पूजा मिले, सभे करे सनमान. . 


पइसा पइसा सब करे, पइसा पर बा शान. 

पइसा पर जब बिकि रहल, मान, जान, ईमान. . 

-------

मुफलिस,

चौधरी टोला, डुमरांव, बक्सर, पिन-802119,

बिहार


(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर भइल रहल ई रचना.)


भोजपुरी - एगो परिचय

आलेख

भोजपुरी - एगो परिचय


डॉ. राजेन्द्र भारती



‘‘भाषा भोजपुरी परिभाषा से पूरी ह 

बोले से पहिले एके जानल जरुरी ह

ना गवना पूरी ना सुहागन के चूड़ी ह

साँचि मानऽ त दुश्मन के गरदन पर

चले वाली छूरी ह

कहत घुरान बुरा मति माने केहू

सभ भाषा के उपर हमार भाषा भोजपुरी ह’’


भारत के एगो प्रान्त उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के बसन्तपुर गांव के कवि, लोकगीत गायक, ब्यास बीरेन्द्र सिंह घुरान के कहल इ कविता आजु केतना सार्थक बा एहकर अहसास तबे हो सकेला जब भोजपुरिहा भाई लोगन के आपन मातृभाषा भोजपुरी से नेह जागी. 


भोजपुरिहा सरल सुभाव के होखेलन, एह बाति के नाजायज फायदा सरकार हमेशा से उठावत आइल बिया.  आ हमनी के माडर्न बने का फेर में आपन मूल संस्कृति के भुलावल जात बानी.  हमनी से एक चौथाई भाषा संविधान का आठवीं सूची में दर्ज हो गइली स आ हमनी का टुकुर-टुकुर ताकते रह गईलीं जा.


आजु का तारीख में भोजपुरी करीब आठ करोड़ भोजपुरिहन के भाषा बा.  भोजपुरिहा लोग बिहार, उत्तर प्रदेश, आ छतीसगढ़ के एगो बड़हन क्षेत्र में फइलल बाड़न.  एकरा अलावे भारत का हर नगर महानगर में भोजपुरिहन के नीमन तायदाद बा.  ई लोग हर जगह भोजपुरी के संस्था कायम कके भोजपुरी के अलख जगवले बाड़न.  विदेशनो में भोजपुरिहा भाई पीछे नइखन.  मारीशस के आजादी के लड़ाई में भोजपुरी में आजादी के गीत गावल जात रहे. सूरीनाम, गुयाना, आ  त्रिनिडाडो में भोजपुरी के बड़ा आदर बा.  भोजपुरी बोलेवालन के संख्या आ सीमा विस्तार के देखल जाव त भोजपुरी एगो अर्न्तराष्ट्रीय भाषा लेखा लउके लागी.


भोजपुरी भाषा के कुछ अद्भुत विशेषता बा.  सही मायने में देखल जाव त ई व्यवसाय आ व्यवहार के भाषा ह.  एक मायने में भोजपुरी व्याकरण से जकड़ल नइखे बाकिर साहित्य सिरजन में धेयान जरुर दिहल जाला.  एह भाषा के ध्वनि रागात्मक ह. भोजपुरी भाषा में संस्कृत शब्दन के समावेश बा एकरा अलावे भारत के कईगो भाषा के शब्द आ विदेशी भाषा जइसे अंग्रेजी, फारसी आदिओ के शब्द  समाहित बा.


भोजपुरी भाषा में साहित्य के सब विद्या बिराजमान बा.  भोजपुरी लोकगाथा, लोकगीत, लोकोक्ति, मुहावरा, कहावत, पहेली से भरपूर बा.  वर्तमान में भोजपुरी साहित्य समृध हो गइल बा.  भोजपुरी के केतने विद्या आ विषयन पर शोध भइल बा आउर हो रहल बा.  केतने विदेशी लोग भोजपुरी के केतने विषय पर शोध करले बाड़न आ करि रहल बाड़न.  भोजपुरी के कइगो उत्कृष्ट पत्रिका पत्र प्रकाशित हो रहल बा.  केतने शोध ग्रन्थ, उपन्यास, कहानी संग्रह, कविता संग्रह, गीत, गजल संग्रह इहंवा तकले कि कइयों विद्यो के भोजपुरी में लेखन कार्य चलि रहल बा.


भोजपुरी भाषा के उत्थान खातिर देश में कइगों भोजपुरी के संस्था कार्यरत बा.  बिहार के विश्वविद्यालय में एम0ए0 तक  भोजपुरी में पढ़ाई चलि रहल बा.  रेडियों, टी0वी0 ओ भोजपुरी के अहमियत देता. भोजपुरिहा सरल स्वभाव के होलन, इनकर कहनी आ करनी में फरक ना होला.  ई आपन स्वार्थ के परवाह ना करसु.  बेझिझक मूंह पर जवाब देवे में माहिर होलन. 


भोजपुरी भाषी के देवी-देवता में शिव, राम, हनुमान, कृष्ण, दुर्गा, काली, शीतलामाई के विशेष रूप से पूजल जाला.  समूचा बिहार के लोग जहंवे बाड़न आ एकरे अलावे पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सा में छठ पूजा व्रत के प्रचलन बा.


भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भोजपुरी भाषी तन-मन-धन से लागल रहे लोग.  अंग्रेज विद्वान ग्रियर्सन भोजपुरिहा लोगन के उल्लेख ऐह तरे कइले बाड़न ‘‘ई हिन्दुस्तान के लड़ाकू जाति में से एक ह लोग.  ई सतर्क आ सक्रिय जाति ह.  भोजपुरिहा युद्ध खातिर युद्ध के प्यार करेलन.  ई समूचा भारत में फइलल बाड़न.  एह जाति के प्रत्येक व्यक्ति कवनो स्वतः आइल सुअवसर से आपन भाग्य बनावे खातिर तइयार रहेले.  पूर्वकाल में ई लोग हिन्दुस्तानी सेना में भरती होके मजबूती प्रदान कइले रहन.  साथहीं 1857 के क्रान्ति में महत्वपूर्ण भागीदारी कइले रहन.  लाठी से प्रेम करेवाला, मजबूत हड्डीवाला, लम्बा-तगड़ा भोजपुरिया के हाथ में लाठी लेके घर से दूर खेत में जात देखल जा सकऽता’’.


भोजपुरिया आपन जनम भूमि के प्रति बड़ा श्रद्धा राखेलें,  देश-विदेश कहीं होखस आपन सभ्यता ना भूलास.  कहीं रहस फगुआ चईता जरूर गइहें, अल्हाउदल के गीत जरूर होई.  सोरठी बिरजाभानू गावल जाई.  जनेउ, मुण्डन, तिलक, बिआह, छठिआर, ब्रत, तेवहार आ कवनो संस्कार के समय भोजपुरी के गीत गूंज उठेला.  भोजपुरिया लोग के तिलक, बिआह, व्रत-त्योहार भा कवनो संस्कार के एगो अलग पहचान बा.


मारिशस, गुयाना, सुरीनाम, त्रिनिडाड में भोजपुरी बोले वाला पुजाला.  आपन भोजपुरिया संस्कृति के बचाई, भोजपुरी बोली, भोजपुरी पढ़ी , भोजपुरी लिखी, भोजपुरी गाईं, भोजपुरी के अलख जगाई.


जय भोजपुरी, जय भोजपुरिहा. 


(डॉ राजेन्द्र भारती जी अंजोरिया डॉटकॉम के संस्थापक सम्पादक रहीं आ उहें के सहजोग से जुटल सामग्री से एकर शुरुआत भइल रहल. डॉ राजेन्द्र भारती जी बलिया शहर के कदम चौराहा पर होम्योपैथी के डॉक्टर रहीं. )