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शनिवार, 16 नवंबर 2024

संक्षिप्त भोजपुरी व्याकरण खण्ड दू

संक्षिप्त भोजपुरी व्याकरण खण्ड दू


शब्द विचार


पिछलका खण्ड में हमनी का भोजपुरी वर्णमाला आ वर्णन का बारे में जनलीं जा.  एह खण्ड में भोजपुरी का शब्दन पर विचार होखी. 


कवनो भाषा अपना शब्दन से पहिचान में आवेले.  जिअतार भाषा दोसरा भाषा का शब्दन के आसानी से पचा लेबेले आ अपना में आत्मसात कर लेले.  अँगरेजी से बड़हन एकर नमूना अउर कतहीं ना मिली. 

एक भा अधिका ध्वनियन का मेल से अक्षर बनेला आ एक भा अधिका अक्षरन का मेल से शब्द बनेला.  अउर जरुरी होला कि ओ अक्षर समूह के कवनो मतलब निकले.  बिना अर्थ के शब्द ना होले, ध्वनिमात्र होले.  हालांकि निरर्थक शब्दो खूब इस्तेमाल होलन.  बाकिर व्याकरण में सार्थके शब्दन पर विचार होला, निरर्थक पर ना. 

शब्दांश ओह वर्ण-समूहन के कहाला जवना के आपन त कवनो अर्थ ना होला बाकिर जब ऊ  कवनो दोसरा शब्द से जुटेलें त सार्थक हो जालें. अइसनका शब्दांशन के चार गो भेद होला -

1. कारक चिह्न - के, का, से, में

2. क्रिया प्रत्यय - ता, ती, इहन, लन 

3. उपसर्ग - प्र, परा, अप

4. प्रत्यय - ता, पन, आइल

शब्द के भेद -

शब्द मूल रूप से दू तरह के होला -

1. प्रतिपदिक

2. धातु

संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आ अव्यय प्रतिपदिक  के आ क्रिया धातु के रूप ह. एही भेद के विचार व्याकरण में होला.  वइसे त शब्दन के कई तरह से भेद कइल जाला -


आगम का अनुसार - कवनो शब्द कहवॉं से आइल बा, एकरा अनुसार ऊ तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज होला. 


बनावट का अनुसार - 

रूढ़ - जब कवनो शब्द के मतलब कवनो खास अर्थ में मान लीहल होखे त ओह शब्दन के रूढ़ शब्द कहाला.  रूढ़ शब्दन के खण्ड के कवनो अर्थ ना निकले.  जइसे - आम, गदहा, घोड़ा. 

यौगिक - जब शब्द के खण्डो के कवनो अर्थ निकले त ऊ यौगिक शब्द कहाला.  जइसे कि विद्या+आलय - विद्यालय. 

योगरूढ़ - ओइसनका यौगिक शब्द जवना के कवनो खासे अर्थ होला ऊ योगरूढ़ कहाला.  जइसे - पंकज पांक में जनमेवाला हर चीज के ना, खाली कमल के कहाला. 


प्रयोग का अनुसार व्याकरण-सम्मत शब्द-भेद -

1. विकारी - जवना शब्द में लिंग, वचन, काल, कारक वगैरह का अनुसार बदलाव भा विकार आ जाव ऊ विकारी शब्द होलन.  प्रतिपदिक में कुछ विकारी आ कुछ अविकारी होला.  धातु सब विकारी होला. जइसे -

संज्ञा - राम, विद्यालय, आम, मिठास. 

सर्वनाम - हम, तूॅं, ऊ. 

विशेषण - उज्जर, गोर, करिया, मीठ, ढीठ. 

क्रिया - खाइल, चलल, पढ़ल, उठल. 


(हिन्दी में 'भी' के प्रयोग खूब होला बाकिर ई 'भी' भोजपुरी के सुभाव का मुताबिक ना होला एहसे ऊ अपना पहिले आवे वाला विकारी शब्दन के बदल देला. जइसे कि 'राम ने भी यही कहा' के भोजपुरी में 'रामो इहे कहलन' लिखाए आ बोलाए के चाहीं. 'राम का भी यही मत है' के भोजपुरी में 'रामो के इहे मत बा' के उपयोग होखे के चाहीं. हिन्दी से आइल साहित्यकारन का चलते भोजपुरिओ में 'भी' के प्रयोग देखे के मिल जाला. एकरा के जतना संभव होखे हतोत्साहित करे के चाहीं. अंजोरिया पर प्रकाशित होखे वाला सामग्री में हम ई बदलाव जरुरे कर देनी आ एह चलते कई विद्वान नाराजो हो जालें बाकिर हम मानीं ना. वइसे अगर लागे कि 'भी' हटा के 'ओ' जोड़ला से अर्थ बदल जा सकेला  त एह खातिर मूल शब्द का साथे '-ओ' जोड़ल जा सकेला. जइसे कि 'विकारीओ' का बदले 'विकारी-ओ' सहज भाव से लिखल-बोलल जा सकेला. )


2. अविकारी - जवना शब्दन में लिंग, वचन, काल, कारक वगैरह का अनुसार बदलाव भा विकार ना आवे ऊ अविकारी शब्द होला. प्रतिपदिक शब्दन के उपभेद अव्यय अविकारी होला.  जइसे -

क्रियाविशेषण - अब, निगचा, जल्दी-जल्दी, बहुत

सम्बन्धबोधक - पहिले, पाछे, जरिये, मारफत, खिलाफ, एवज. 

सम्मुच्चयादिबोधक - अउर,बलुक, बाकिर, एही से. 

विस्मयादिबोधक - अरे बाप, हाय-हाय. 


उपयोग का अनुसार -


सामान्य शब्द - आम उपयोग वाला शब्द जइसे पानी, सूरज, आम, महुआ, घर.  ई शब्द रोज का जिनगी में खूब इस्तेमाल होलन स. 

तकनीकी शब्द - ज्ञान-विज्ञान, व्यवसाय वगैरह में काम आवे वाला पारिभाषिक शब्द जइसे रेखा, त्रिभुज, आयताकार, शिरा, धमनी, मज्जा. 

अर्द्ध-तकनीकी शब्द - एह शब्दन के उपयोग आम बोलचाल आ तकनीकी प्रयोग दूनू में होला. जइसे - खून-जॉंच, हीमोग्लोबीन, आरक्षण, बम, आपरेशन. 


कवनो भाषा के शब्द भण्डार स्थायी ना होखे. समय का साथ कुछ शब्द व्यवहार से हटला का बाद मर जालें त कुछ नया शब्द हमेशा जुटत रहेला.  मोबाइल आवे का पहिले मोबाइल के मतलब रहे कवनो चलन्त जॉंच दल.  आज मोबाइल के मतलब मोबाइल फोन सेट सभ केहू बूझ ली. ओइसहीं टीवी, मेट्रो-रेल, सेटेलाइट आजुकाल्ह

सबका समुझ के शब्द हो गइल बा.  कवनो भाषा के शब्द यदि आपन जरुरत पूरा करत होखे आ ओकरा बदले कवनो आसान शब्द अपना भाषा में ना होखे त ओह शब्द के अपना लिहले में चाल्हाकी बा. 


संज्ञा


कवनो प्राणी, वस्तु, जगह, भा भाव के नाम के संज्ञा कहल जाला.  संज्ञा प्रतिपदिक शब्द ह.  एकरा में लिंग, वचन, काल, कारक वगैरह का चलते विकार आवेला एहसे ई विकारी-ओ होला. 


संज्ञा शब्द खास क के दू तरह के होला -

1. पदार्थवाचक आ 2. भाववाचक. 


पदार्थवाचक शब्द के चार उपभेद होला -

1. व्यक्तिवाचक, 2. जातिवाचक, 3. द्रव्यवाचक, आ 4. समूहवाचक.


भाववाचक शब्द तीन तरह के होला -

1. गुणवाचक, 2. अवस्थावाचक, आ 3. क्रियार्थक. 


व्यक्तिवाचक संज्ञा - अइसन शब्द जवना से कवनो खास आदमी, जगह, भा वस्तु के भान होखे.  उदाहरण - तुलसीदास, अटलबिहारी, ताजमहल, अयोध्या, मक्का, गंगा. 

जातिवाचक संज्ञा - अइसन शब्द जवना से एक तरह के सभ आदमी, जगह, भा वस्तु के भान होखे.  ई गिनल जा सकेला एहसे एकरा के सांख्येयपदार्थवाचक-ओ कहल जा सकेला.  उदाहरण - कवि, नेता, भवन, शहर, गॉंव, नदी. 


द्रव्यवाचक संज्ञा - अइसन शब्द जवना से ओह पदार्थन के बोध हो जवना से कवनो वस्तु बनल बा.  एह पदार्थन के नापल, तोलल, भा मापल जा सकेला.  उदाहरण - लोहा, चॉंदी, घी, तेल, पानी, चीनी.


समूहवाचक संज्ञा - अइसन शब्द जवना से कवनो समूह के ज्ञान होखे.  उदाहरण - सेना, संसद, विधान-सभा, भीड़, टोली, पुस्तकालय, कांग्रेसी.


गुणवाचक संज्ञा - जवना से कवनो चीज, जगहा भा जीव के गुण-दोष के ज्ञान होखे.  जइसे - मिठास, विद्वता, सौन्दर्य, सरलता, खटास. 


अवस्थावाचक संज्ञा - जवना से कवनो जीव, जगह, भा वस्तु के भावना के भान होखे.  जइसे - खीस, प्रेम, सूखा.


क्रियार्थक संज्ञा - जवना शब्द से कवनो क्रिया के अर्थ निकलत होखे - जइसे सूतल, उठल, बइठल, दउड़ल.


ध्यान दीं - व्यक्तिवाचक आ भाववाचक संज्ञा अधिकतर एकवचन में प्रयुक्त होला जबकि जातिवाचक संज्ञा एकवचन आ बहुवचन दूनू में. 


कई हाली जातिवाचक संज्ञा व्यक्तिवाचक संज्ञा का रूप में इस्तेमाल होला.  जइसे - ‘पण्डितजी देशके समाजवादी राह पर चलवलन. ’ एह वाक्य में पण्डितजी से मतलब जवाहरलाल नेहरू से बा, पण्डित लोग से ना.


एहीतरे कबो-कबो व्यक्तिवाचक संज्ञा जातिवाचक-ओ रूप में इस्तेमाल होला.  जइसे कि - ‘एहू युग में सीता के कमी नइखे, कमी बा त राम आ लक्ष्मण के. ’ एह वाक्य में सीता के मतलब उनका लेखा औरतन से बा जे पतिव्रता आ धर्मपरायण होखे.  आ राम के मतलब एकपत्नीव्रती मरद लोग से बा.  लक्ष्मणो से मतलब लखनलाल से ना उनुका लेखा ब्रह्मचारी युवकन से बा. 


भाववाचक संज्ञा शब्दन के रचना -


कुछ भाववाचक शब्द त स्वतन्त्र होला, जइसे - सॉंच, झूठ, बुद्धि, क्षमा. कुछ के दोसरा शब्दन से बनावल जाला.  जइसे - जातिवाचक संज्ञा से - लरिकपन, दोस्ताना, दुश्मनागत. क्रिया से - चढ़ाई, चाल, ढाल, सजावट. विशेषण से - चतुराई, बेवकूफी, मिठास, खटास. सर्वनाम से - ममत्व, अपनापन, सर्वस्व, अहंकार.


अव्यय से - नजदीकी, दूरी. 


लिंग


लिंग के मतलब ह निशान भा चिन्हासी.  बाकिर रूढ़ से ई मरद भा मेहरारू के चिह्नासी हो गइल बा.  लिंगे से तय होला कि के मरद ह, के मेहरारू.  भोजपुरी में हिन्दी लेखा दूइये गो लिंग होला.  नपुंसक लिंग संस्कृत आ अंगरेजी में होला. 


मरद जाति के बोध करावे वाला शब्द पुलिंग कहाला आ मेहरारू जाति के बोध करावेवाला शब्दन के स्त्रीलिंग कहाला.


कुछ शब्द खाली पुलिंग होलें, कुछ खाली स्त्रीलिंग.  कुछ पुलिंग शब्दन में आ, ई, ऊ, ति, आनी, आइन, इया, उली, इन, की, री, नी वगैरह प्रत्यय जोड़ के स्त्रीलिंग बना लीहल जाला. 


कुछ शब्द दूनू तरह से बेवहार में लीहल जाला.  अइसनका अधिकतर शब्द कवनो पद के नाम होला.  उदाहरण - प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति.  एके अर्थ राखे वाला दू गो शब्दन में से कभी एगो

पुलिंग त दोसरका स्त्रीलिंग होला.  जइसे पुस्तक त स्त्रीलिंग ह जबकि ग्रन्थ पुलिंग ह. 


कुछ शब्द के एके लिंग होला दोसरका लिंग वाला शब्द ओकरा से ना बने.  जइसे बाप, ससुर, बैल वगैरह.  वइसहीं कुछ शब्द स्वतन्त्र स्त्रीलिंग होला, ओकर पुलिंग रूप ना बने.  जइसे - महतारी, पतोह, जनता. 


अधिकतर पुलिंग शब्दन में कवनो प्रत्यय जोड़ के स्त्रीलिंग बनावल जाला.  उदाहरण - 


अन्तिम स्वर के ‘आ’ करके - प्रथम - प्रथमा, सदस्य - सदस्या, शिष्य - शिष्या.


अन्तिम स्वर के ‘ई’ करके - पुत्र - पुत्री, बेटा - बेटी, चाचा - चाची, देव - देवी. 


‘अनी’ प्रत्यय जोड़ के - देवर - देवरानी, जेठ - जेठानी, भव - भवानी,  मास्टर - मास्टरनी.


‘इया’ प्रत्यय का बेवहार से - लोटा - लुटिया, पुल - पुलिया, चूहा - चुहिया, बिटवा - बिटिया.


‘उली’ प्रत्यय से - गाछ - गछुली, टीका - टिकुली, रुपया - रुपल्ली.


‘इन’ जोड़ के - दुलहा - दुलहिन, हजाम - हजामिन, धोबी - धोबिन, कहार - कहारिन.


‘आइन’ प्रत्यय के इस्तेमाल कर के - डाक्टर - डाक्टराइन (डाक्टर के औरत), मास्टर - मास्टराइन (मास्टर के औरत), दूबे - दुबाइन, चौबे - चौबाइन. (मास्टरनी माने महिला मास्टर, मास्टराइन माने मास्टर के पत्नी,  डॉक्टरनी माने महिला डॉक्टर, डॉक्टराइन माने डॉक्टर के पत्नी.)


‘आन’ के ‘अति’ कर के - भगवान - भगवति, बुद्धिमान - बुद्धिमति.


‘अक’ के ‘इका’ कर के - पाठक - पाठिका, चालक - चालिका,

अध्यापक - अध्यापिका.


कवनो स्त्रीसूचक शब्द जोड़ के - पुत्र - पुत्रवधू, नगर - नगरवधू.


कुछ स्त्रीलिंगो शब्दन से पुलिंग बनावल जाला.  उदाहरण -  मौसी - मौसा, फूफी - फुफा, भा फुआ से फुफा, जीजी - जीजा, बहिन - बहिनोई, ननद - ननदोई, सिकड़ी - सिक्कड़, रोटी - रोट, चिट्ठि - चिट्ठा.


कुछ शब्द अधिकतर पुलिंग होला - पहाड़न के नाम, हिन्दी महीना आ दिनन के नाम, देश, अधिकतर ग्रह-नक्षत्रन के नाम , धातु

पदार्थ, तरल पदार्थन के नाम, आउर अ,इ,उ,त्र,न,ण,ख,ज,र से अन्त होखे वाला शब्द. 


कुछ शब्द अधिकतर स्त्रीलिंग होला - नदिअन के नाम, किराना सामानन के नाम, भाषा आ बोलिअन के नाम, आउर आ,इ,ई,उ,ऊ,त,ता,हट,वट,आई से अन्त होखे वाला शब्द. 


लिंग का चलते खाली संज्ञा शब्दने में विकार आवेला.  सर्वनाम में लिंग विकार ना आवे.  ऊ या त स्त्रीलिंग होखी भा पुलिंग.  विशेषण शब्दनो में लिंग रूपान्तर ना मिले. अपवाद - गोर -गोरी.


वचन


प्रतिपदिक शब्दन जइसे संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, आ क्रिया के जवना रूप से संख्या के बोध होखे ओकरा के वचन कहल जाला. 


वचन दू तरह के होला - एकवचन, आ बहुवचन.


जब कवनो शब्द से एकेगो पदार्थ भा जीव के बोध होखे त ऊ एकवचन शब्द होला, जइसे - लरिका, घोड़ा, टेबुल.


एकवचन शब्द मूल रूप में होलें.  उनुका में कवनो प्रत्यय ना लागे.  माने कि बिना प्रत्यय के मूल प्रतिपदिक हमेशा एकवचन होला.  ओकरा के बहुवचन बनावे खातिर ओहमें कवनो प्रत्यय जोडे़ के पडे़ला, चाहे ओकरा संगे कवनो बहुवचन बोधक स्वतन्त्र शब्द लगावल जाला. 


भोजपुरी में बहुवचन बोधक प्रत्यय बस एके गो बा - ‘अन’.  एही ‘अन’ के कई गो रूप होला - अनि, अन्हि, अन्ह, वनि, वन्हि, वन, वन्ह. 

उदाहरण - लरिका - लरिकवन,  किताब - किताबन, कितबिअन.


ध्यान देबे लायक बात -

1. शब्द के आखिरी आ के अ हो जाला.  कपड़ा - कपड़न भा कपड़वन.

2. बीच में आइल आ जस के तस रहेला. सोनार - सोनारन, बिलार - बिलारन, बजाज - बजाजन.

3. आखिरी इ भा ई के इय् हो जाला.  माने कि ई-ओ के बदले इ हो जाला. हाथी - हथियन, साथी - सथियन, मुनि - मुनियन.

4. आखिरी उ भा ऊ के उव् हो जाला.  एहुजा ऊ के उ हो जाला. डाकू - डकुवन, चाकू - चकुवन, साधु - सधुवन, 


बहुवचन बोधक शब्द जइसे सभ, स, सगरी,कुल्ही, ढेरे, लोग, बहुते वगैरहो के इस्तेमाल कइल जाला.  उदाहरण - सभ लरिका, सभ भा सगरे किताब, कुल्ह टेबल, विद्यार्थी सभ भा विद्यार्थी स.


कारक


कारक आठ तरह के होला - 1. कर्त्ता, 2. कर्म, 3. करण, 4. सम्प्रदान, 5. अपादान, 6. सम्बन्ध, 7. अधिकरण, आ 8. सम्बोधन. 


कारक कवनो शब्द के क्रिया भा दोसरा शब्दन से संबंध बतावेला.  अलग-अलग कारक खातिर अलग-अलग विभक्ति लागेला.  कर्त्ता के संगे कवनो विभक्ति ना लागे.  कबो कबो कर्मो का संगे कवनो विभक्ति ना लागे.  उदाहरण - 

युद्ध-भूमि में राम अपना तरकस से निकाल धनुष पर चढ़ाके लंका के राजा रावण के तीर मरलन.


एह वाक्य में मुख्य क्रिया बा मारल आ ओह क्रिया के करेवाला बाड़न राम.  एहसे राम कर्त्ता भइलन.  एहमें राम का साथे कवनो विभक्ति नइखे लागल.


1. संज्ञा भा सर्वनाम के जवना रूप से क्रिया करेवाला का बोध होखे ओकरा के कर्त्ता कहल जाला.  कर्त्ता के संगे भोजपुरी में कवनो विभक्ति ना लागे.  हिन्दी में कबो-कबो 'ने' विभक्ति के

प्रयोग होला. 


भोजपुरी में कर्त्ता दू तरह के होला - जे स्वतन्त्र बा, कुछ करे के भा ना करे के, ऊ प्रयोजक कर्त्ता ह, आ जे दोसरा के प्रभाव से कुछ करे ऊ प्रयोज्य कर्त्ता ह.  उदाहरण - मास्टर लड़िकन से लेख लिखवावत बाडे़.  एह वाक्य में मास्टर प्रयोजक कर्त्ता बा आ लड़िका प्रयोज्य कर्त्ता.


2. जवना पदार्थ भा जीव पर क्रिया के फल पडे़ला ऊ कर्म कहाला.  एकर विभक्ति चिह्न 'के' ह.  कबो-कबो विभक्ति चिह्न ना लगाके कर्म में 'ए' जुट जाला.  एकरा के संश्लिष्टता कहाला. 

केकरा के मरलन ? रावण के.  एहीजा रावण कर्म बा.


3. जवना साधन से क्रिया कइल जाव ऊ करण कहाला.  एकर विभक्ति चिह्न 'से' भा संश्लिष्ट 'ए' ह. 

उपरका उदाहरण वाक्य में कवना चीज से मरलन ? तीर से.  एहसे तीर करण भइल. 


4. जेकरा के कुछ दिआव भा जेकरा खातिर कुछ कइल जाव ओकरा के सम्प्रदान कहाला.  एकर विभक्ति चिह्न 'के', संश्लिष्ट ए, ला, बास्ते, खातिर, लागि, बदे होला.  उदाहरण देखीं - हम अपना माई खातिर दवाई ले जात बानी. एह वाक्य में माई सम्प्रदान बा. 


5. संज्ञा भा सर्वनाम के जवना रूप से अलगाव-बिलगाव के बोध होखे ओकरा के अपादान कहाला.  एकर विभक्ति चिह्न 'से' होला.  ‘तरकस से तीर निकाल’ - एह वाक्य में तरकस अपादान बा आ 'से' ओकर विभक्ति चिह्न. 


अपादान कारक के इस्तेमाल दोसरो तरह से होला - जवना समय से कवनो काम शुरु होखे, जइसे काल्ह से क्रिकेट मैच होखी.  कवनो तरह के तुलना करे में, जइसे भारत में अमेरिका से अधिका आबादी बा. जेकरा से कुछ भेंटात होखे, जइसे लरिका मास्टर से पढे़ले. जहवॉं कवनो भाव प्रकट होखे, जइसे दुलहिन बुढ़उ से लजात बाड़ी.  हम सॉंप से डेरात बानी. जहवॉं गत्यार्थक क्रिया के इस्तेमाल होखे, जइसे गते-गते चलऽ.  नेताजी आजुवे आवे के कहले रहन. 


6. जब एगो संज्ञा भा सर्वनाम के संबंध दोसरका संज्ञा भा सर्वनाम से बुझाव त ऊ सम्बन्ध कहाला.  एकर विभक्ति चिह्न के, कर, र, का होला.  ‘लंका के राजा’ में लंका के सम्बन्ध कारक कहाई.


7. जवना से क्रिया करे के स्थान, काल, भा भाव के बोध होखे ओकरा के अधिकरण कहाला. कहवॉं मरलन? युद्ध-भूमि में.  ईहवॉं युद्ध-भूमि अधिकरण हो गइल.


अधिकरण तीन तरह के होला.  1. स्थानाधिकरण, 2. कालाधिकरण, आ 3. भावाधिकरण.  


जहवॉं क्रिया होखे ऊ स्थानाधिकरण कहाला.  जइसे हम घर में पढ़ब.  एह वाक्य में पढ़ला के जगह घर भइल.  

जवना से कवना घरी के जबाब मिले ऊ कालाधिकरण होला.  जइसे हम भोरे पढ़ब.  ईहवॉं भोरे काल बतावता एहसे ई कालाधिकरण भइल.  

आ जवना से क्रिया के भाव मालूम होखे ऊ भावाधिकरण कहाला.  जइसे तहरा करे में डर नइखे त हमरा कहला में का डर बा? एह वाक्य मे कहल क्रिया के भावरूप के प्रयोग बा.


अधिकरण के विभक्ति चिह्न में, पर, पे, भा संश्लिष्ट ए होला.  बाकिर कबो-कबो भा अकसरहॉं दोसरो विभक्ति शब्दन के प्रयोग होला.  जइसे - का आगे, का पाछे, के अन्दर, के बहरी, वगैरह.


8. जवना से केहू के बोलावल जाव भा पुकारल जाव ओकरा के सम्बोधन कारक कहाला.  एकर विभक्ति चिह्न ए, ऐ, हे, हो, रे होला. 


भोजपुरी में एकवचन आ बहुवचन दूनू में एके तरह के विभक्ति लागेला.  लिंगोभेद से एकरा पर अन्तर ना पडे़.  नमूना नीचे बा -


संज्ञा शब्दन के रूपावली


अकारान्त पुलिंग - जवान

कारक शब्दरूप

कर्ता जवान, जवनवा

कर्म जवान के, जवाने

करण जवान से

सम्प्रदान जवान ला/के/वास्ते/बदे/के/जवाने

अपादान जवान से

सम्बन्ध जवान के

अधिकरण जवान पर

सम्बोधन हे/ए/ऐ/रे जवान



अकारान्त स्त्रीलिंग - पतोह


कारक शब्दरूप

कर्ता पतोह, पतोहिया

कर्म पतोह के, पतोहे

करण पतोह से

सम्प्रदान पतोह ला/के/वास्ते/बदे/के/जवाने

अपादान पतोह से

सम्बन्ध पतोह के

अधिकरण पतोह पर

सम्बोधन हे/ए/ऐ/रे पतोह


सर्वनाम 


संज्ञा के बदला भा अेकरा जगहा इस्तेमाल होखे वाला शब्दन के सर्वनाम कहाला. 


सर्वनाम के तीन गो भेद होला -

उत्तम पुरुष - जवना शब्द के बेवहार बोलेवाला भा लिखेवाला अपना खातिर करेला ऊ उत्तम पुरुष कहाला.  भोजपुरी में एकरा खातिर एके गो शब्द बा हम.  बहुवचन खातिर हम के हमनि क दिआला.  हिन्दी के मैं का बदला भोजपुरी में हम कहाला आ हिन्दी का हम का जगहा भोजपुरी में हमनि होला.


मध्यम पुरुष - जवना से श्रोता भा पाठक के सम्बोधित कइल जाव ऊ मध्यम पुरुष कहाला. 

मध्यम पुरुष के उपभेद तीन गो होला -

सामान्य मध्यम पुरुष - तूँ

आदरसूचक मध्यम पुरुष - रउरा, रॉंवा, रउवा. 

अनादर भा प्रेम (अपनापन) सूचक मध्यम पुरुष - तें, तोरा, तोहरा. 

अन्य पुरुष - जवना शब्द के बोले भा लिखे वाला श्रोता भा पाठक के छोड़के दोसरा खातिर बेवहार करेला ऊ अन्य पुरुष कहाला.  एकर उपभेद नीचे दिआता -

निकटस्थ निश्चयवाचक अन्य पुरुष - ई, ईहॉं का, ईहॅंवा, हई. 

दूरस्थ निश्चयवाचक अन्य पुरुष - ऊ, उहाँका, उॅहवा, हऊ. 

अनिश्चयवाचक अन्य पुरुष - सभ, केहु, कवनो, कुछ, किछ, अमुक. 

प्रश्नवाचक अन्य पुरुष - के, कथी, का,कहॅंवा, केकर, कवन. 

सम्बन्धवाचक अन्य पुरुष - जे, से. 

(ध्यान दीं - लिंग का आधार पर सर्वनामन में विकार ना आवे.  वचन आ कारक के आधार पर विकार आवेला.  संज्ञा शब्दन का साथ विभक्ति अलगा से लिखाला जोड़ के ना.  बाकिर सर्वनाम के विभक्ति जोड़िये के लिखाला. )


विशेषण


जे कवनो वस्तु भा जीवके खासियत बतावे ओकरा के विशेषण कहाला.  ई खासियत अच्छाई भा बुराई, गिनती, नाप, भा माप वगैरह कुछुवो हो सकेला.


विशेषण जेकर विशेषता बतावे ओकरा के विशेष्य कहाला.  जइसे - करिआ घोड़ा में करिआ विशेषण आ घोड़ा विशेष्य बा.


जवन शब्द विशेषण के विशेषता बतावे ओकरा के प्रविशेषण कहल जाला.  जइसे - ढेर गरम में ढेर शब्द गरम के विशेषता बतावता.  एहिजा ढेर प्रविशेषण भइल. 


कवनो वाक्य में विशेषण के इस्तेमाल दू तरह से होला - 1. विशेष्य-विशेषण, आ 2. विधेय-विशेषण.  विशेषण जब कवनो शब्द के पहिले आवेला त ऊ विशेष्य-विशेषण कहाला. विशेषण जब विशेष्य आ क्रिया के बीच में आवेला त ऊ विधेय-विशेषण कहाला. 


विशेषण के खास भेद तीन गो होला -

1. गुणवाचक, 2. मात्रावाचक, आ 3. सार्वनामिक. 

गुणवाचक विशेषण - जवना विशेषण से कवनो व्यक्ति भा वस्तु के गुण-दोष, आकार-प्रकार, रंग-रूप, रस-गन्ध, स्पर्श, अवस्था, स्थान-स्थिति वगैरह के आभास होखे ओकरा के गुणवाचक विशेषण कहाला.  एकर उपभेद कईगो होला -

गुणबोधक - दानी, सत्यवादी, नीमन, भल, सुशील वगैरह. 

दोषबोधक - कंजूस, गुण्डा, झूट्ठा, खराब, बेहाया, पतित वगैरह. 

कालबोधक - पुरान, नया, दैनिक, मासिक, साप्ताहिक, सालाना, पखवारी, छमाही वगैरह. 

दिशाबोधक - पूरबिया, पछुआ, दखिनवारी, उतरवारी वगैरह. 

रंगबोधक - ऊजर, करिया, लाल, पिअर, सबुज, धानी, जमुनिया, रानी, मैरून, बूलू, आसमानी वगैरह. 

रसबोधक - मीठ, तीत, खट्टा, नुनगर वगैरह. 

गन्धबोधक - महकदार, बदबूदार, सोन्ह, मादक वगैरह. 

स्पर्शबोधक - मुलायम, टॉंठ, कड़ा, नरम, बज्जर, चिम्मर, गुलगुल वगैरह. 

स्थानबोधक - पटनहिया, छपरहिया, गोरखपुरिहा, भोजपुरिहा, रसियन, विलायती, जवारी, पनिया, अगिया वगैरह. 

अवस्थाबोधक - सुखल, भींजल, गरम, ठण्ढा, भूॅंजल, छानल, बघारल, अमीर, गरीब, बेमार, निरोग, बिगड़ल वगैरह. 

आकारबोधक - गोल, चौकोर, तिकोनिया, नाट, लमहर, विशाल वगैरह. 

भावबोधक - खुश, नाराज, खिसिआइल, अउॅंजाइल, ठकुआइल, निनिआइल वगैरह. 

आयुबोधक - लरिका, बूढ़, जवान, सतवॉंस, अठवॉंस वगैरह. 

अइसनका ढेरे भेद-उपभेद दीहल जा सकेला. बाकिर एह सबके एके गो भेद - गुणवाचक विशेषण - में राखल ज्यादा बेहतर रही.  काहेकि ई सभ गुणे-दोष नू हऽ. 

मात्रावाचक विशेषण - जवना विशेषण से कवनो जीव भा पदार्थ के संख्या भा परिमाण के पता चले ओकरा के मात्रावाचक विशेषण कहल जाला. ई दू तरह के होला - 1. संख्यावाचक, आ 2. परिमाणवाचक. 

संख्यावाचक विशेषण के दू गो भेद होला - 1. अनिश्चित, आ 2. निश्चित. 

जवना संख्यावाचक विशेषण से संख्या निश्चित ना हो सके ऊ अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहाला.  जइसे - ढेर, पचीसन, अनगिनत, थोड़, सात-आठ. 

जवनासे संख्याके पता साफ-साफ मालूम होखे ओह विशेषण के निश्चितसंख्यावाचक विशेषण कहाला.  ई कई तरह के होला -

पूर्णांकबोधक संख्याविशेषण - जवना से पूरा संख्या के बोध होला ऊ पूर्णांकबोधक संख्याविशेषण कहाला.  पूर्ण अंक नव गो होला.  शून्य के अस्तित्व अकेले ना होला.  ओही नव गो पूर्णांक आ शून्य का मेल से सगरी संख्या बनेली स. एक, दू, तीन, चार, पॉंच, छव, सात, आठ, नव, दस, बीस, तीस, चालिस, पचास, साठ, सत्तर,

अस्सी, नब्बे, सई भा सौ. 

एकरा उपर के संख्या दूगो संख्या मिला के बनेला.  एकसौ के नीचे तक पहिले छोटका संख्या आ बाद में बड़का संख्या लिखल भा बोलल जाला. 

एक आ दस एगारह, दू आ दस बारह, तीन आ दस तेरह, चार आ दस चउदह, पॉंच आ दस पनरह, छव आ दस सोलह, सात आ दस सतरह, आठ आ दस अठारह.  बाकिर नव आ दस नवारह ना अनईस - एक कम बीस - कहाला. 

एही तरह एक आ बीस एकईस, एक आ तीस एकतीस, एक आ चालिस एकतालिस, एक आ पचास एकावन, एक आ साठ एकसठ, एक आ सत्तर एकहत्तर, एक आ अस्सी एकासी, एक आ

नब्बे एकान्बे, एक आ सै एक सौ एक. 

एही तरह दू आ बीस बाईस, दू आ तीस बत्तीस, दू आ चालिस बयालिस, दू आ पचास बावन, दू आ साठ बासठ, दू आ सत्तर बहत्तर, दू आ अस्सी बयासी, दू आ नब्बे बानबे, दू आ सै एक सौ दू . 

तीन खातिर तेइस, तैंतीस, तैंतालिस, तिरपन, तिरसठ, तिहत्तर, तिरासी, आ तिरानबे होला. 

चार खातिर चउबीस भा चौबिस, चौंतिस, चउवालिस, चउवन, चउसठ, चउहत्तर, चउरासी, आ चउरानबे होला. 

पॉंच खातिर पचीस, पैंतीस, पैतालिस, पचपन, पैसठ, पचहत्तर, पचासी, आ पॅंचानबे होला. 

छव का संगे छब्बीस, छत्तीस, छियालिस, छप्पन, छाछठ भा छियासठ, छिहत्तर, छियासी, आ छियानबे होला. 

सात बदे सताईस, सैंतीस, सैंतालिस, संतावन, सड़सठ, सतहत्तर, सत्तासी, आ संतानबे होला. 

आठ के लेके अठाईस, अड़तीस, अड़तालिस, अंठावन, अड़सठ, अठहत्तर, अट्ठासी, आ अंठानबे होला. 

नव का जोड़ में ध्यान दिहल जरुरी बा.  ई अगला दहाई से एक कम - उन भा अन - कहाला.  उनतीस, उनचालिस, उनचास, उनसठ, उनहत्तर, उनासी, बाकिर अपवाद में उनसई ना

निनानबे कहाला. 

एक सौ से ऊपर का संख्या में सबसे बड़ संख्या सबसे पहिले, ओकरा से छोट ओकरा बाद, आ सबले छोट सबका बाद कहाला.  उदाहरण - एक खरब दू अरब तीन करोड़ चार लाख एक हजार छह सई एक.  अंक में लिखाव तऽ लिखाई - 1,02,03,04,01,601

एगारह खरब एगारह अरब एगारह करोड़ एगारह लाख एगारह हजार एक सई एगारह.  अंक में लिखाव तऽ लिखाई -

11,11,11,11,11,111

भोजपुरी मे बड़का संख्या में अर्धविराम खरब का बाद, अरब का बाद, करोड़ का बाद, लाख का बाद, आ हजार का बाद लागेला.  अंगरेजी में ट्रिलियन का बाद, बिलियन का बाद, मिलियन का

बाद, आ थाउजेन्ड का बाद लागेला.  एकर कारण संख्यन के वर्गीकरण बा.  भोजपुरी में दस सौ के एक हजार, सौ हजार के एक लाख, सौ लाख के एक करोड़, सौ करोड़ के एक अरब, आ सौ अरब के एक खरब होला.  अंगरेजी में हजार हजार के एक मिलियन, हजार मिलियन के एक बिलियन, आ हजार बिलियन के एक ट्रिलियन होला. 

कविता गीत भा पद्य में अंक में ना लिखाव शब्द में लिखाला.  लेखन में अंक भा शब्द दूनू में से कवनो एक भा दूनो में लिखल जा सकेला. 

एक के बेवहार कबो-कबो अनिश्चयार्थक रूप में, तुलना में समान खातिर, भा अवधारणा का रूपो में होला.  जइसे - एक दिन के बाति ह, राम आ श्याम एके लेखा बुझालें, एगो तूही नइख नू ?


अपूर्णांकबोधक संख्याविशेषण - पाव 0.25, आधा 0.5, पौन 0.75, सवा 1.25, डेढ़ 1.5, अढ़ाई 2.5 जइसन शब्दन के अपूर्णांकबोधक संख्याविशेषण कहल जाला.  काहे कि एहनि से

कवनो अपूर्ण अंक के पता चलेला.  भोजपुरी में अउॅंचा 3.5, ढउॅंचा 4.5, पउॅंचा 5.5, खेांचा 6.5, सतोंचा 7.5 जइसन शब्दो भेंटालें.  बाकिर एकनी का जगहा साढ़े तीन, साढ़े चार, साढ़े पॉंच, साढ़े छव, साढ़े सात लिखल ठीक रही. 

एक बटा दू 1/2, सात बटा नव 7/9 में बटा के मतलब ह भागा.  माने एक में दू से भाग दीं त एक बटा दू, सात में नव से भाग दीं त सात बटा नव जइसन अपूर्ण संख्या मिली. 

पाव के मतलब एक बटा चार, आधा एक बटा दू, आ पौन तीन बटा चार भइल.  

एक का संगे एक पाव अउरी मिला दीं त ऊ हो जाई सवा एक.  मतलब कि जब खाली एक बटा चार होखे त पाव आ जब कवनो पूर्णांक से ज्यादा बढ़के होखे त सवा. 

एही तरे डेढ़ होला.  एक से कम बा त आधा बाकिर एक आ आधा मिल के होखी डेढ़.  दू आ एक बटा दू मिला के अढ़ाई, तीन आ एक बटा दू मिला के साढे़ तीन.  दू का उपर आधा खतिर साढे़ के इस्तेमाल होला. 

एही तरे पौन जब अकेले होखी, माने तीन बटा चार त खाली पौन कहाई.  बाकिर जब कवनो पूर्णांक से पहिले आई त ओकर मतलब होखी ओह पूर्णांक से एक बटा चार कम.  पौने दू के मतलब भइल एक आ तीन चौथाई 1.75 भा दू से पाव कम.  एही तरे पौने तीन के मतलब दू आ तीन चौथाई 2.75 भा तीन से पाव 0.25 कम. 


क्रमबोधक संख्याविशेषण - जवना शब्द से क्रम के पता चले ओकरा के क्रमबोधक संख्याविशेषण कहाला.  क्रम में सबसे पहिले आवे त पहिला भा पहिलका, ओकरा बाद दूसर, दोसर भा दोसरका, तीसर भा तीसरका, चउथा भा चउथका, पॉंचवा,

छठवॉं, सतवॉं, अठवॉं, नउवॉं, दसवॉं, एगारहवॉं, बारहवॉं, वगैरह.  कहे के मतलब कि ओह संख्या का साथे 'का' भा 'वॉं' जोड़ दीहल जाला. 


हिन्दी तिथियन के नाम में तनी बदलाव आ जाला - हर महीना में दूगो पख भा पक्ष होला - अन्हरिया आ अँजोरिया भा कृष्णपक्ष आ शुक्लपक्ष.  हर पख के पहिला दिन परिवा भा प्रतिपदा, दोसरका दूज भा द्वितिया, तीसरका तीज भा तृतीया, आ एही क्रम से चउथ भा चौठ भा चतुर्थी, पंचमी, छठ भा खष्ठी, सतमी भा सप्तमी, अठमी भा अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, दुआरसी भा द्वादशी, तेरस भा त्रयोदशी, चतुरदसी भा चतुर्दशी आवेला.  कृष्णपक्ष के आखिरी दिन अमावस भा अमावस्या कहाला आ अँजोरिया के आखिरी दिन पूरनिमा भा पूर्णिमा कहाला. 


समुदायबोधक संख्याविशेषण - जवना शब्द से एक से अधिका के समुदाय के बोध होखे ओकरा के समुदायबोधक संख्याविशेषण कहाला. 


एकसे समुदाय ना बने तबो केहू अकेलहीं समाज बने त ओकरा के असगरे कहाला.  असगरे माने अकेले.  असगरे के समुदायबोधक मानल जा सकेला.


दू के समुदाय जोड़ा, चार के गंडा, पॉंच के गाही, दस के दहाई, बारह के दर्जन, सोलह से सोरही भा सोरहा, बीस के कोड़ी, आ चउबिस से जिस्ता बनेला.


आवृतिबोधक संख्याविशेषण - जवना से कवनो फ्रेक्वेन्सी, आवृति भा बारम्बारता के बोध होखे ओकरा के आवृतिबोधक संख्याविशेषण कहल जाला.  एकरा मे बेर, बेरा, हाली शब्दनो के 

प्रयोग खूब होला.  जइसे एकबार भा एकहरा भा एक हाली.  ...हरा परत के अर्थ में लीहल जाला. 


एकहरा, दोहरा, तिहरा, आ चउहरा माने कवनो चीज के एक परत, दू परत, तीन परत, आ चार परत. 


वीप्सार्थक संख्याविशेषण - जवना शब्द से कवनो आवृति के बारम्बारता प्रकट होखे ओके व्यापकताबोधक भा वीप्सार्थक संख्याविशेषण कहाला. 


एक के व्यापकता होखे त प्रति, हरेक, हर के प्रयोग होला.  बाकी संख्यन खातिर ओह शब्दन के द्वित्व क दिआला.  जइसे - एक-एक घंटा पर, दू-दू मिनट पर, सात-सात दिन पर.  संयुक्त संख्या रहला पर बाद वाली छोटकी संख्या के द्वित्व होला.  जइसे - एकसौ पॉंच-पॉंच आदमी का बाद मतलब कि हर एक सौ पॉंच आदमी के बाद. 


परिमाणवाचक विशेषण - कुछ पदार्थन के गिनल ना जा सके, नापल तौलल भा मापल जा सकेला.  कबो-कबो गिने लायक सामान भी माप तौल के बतावल जाला.  जइसे आम गिनिओ के

बेचाला आ जोखियो के.  अइसनका पदार्थन के नाप तौल भा माप बतावेवाला विशेषण के परिमाणवाचक विशेषण कहल जाला.  ईहो दू तरह के होला -

1. निश्चित परिमाणवाचक आ 2. अनिश्चित परिमाणवाचक. 


निश्चित परिमाणवाचक - जवना से कवनो पदार्थ के परिमाण के निश्चित विवरण मिलो ओकरा के निश्चित परिमाणवाचक कहल जाला.  अक्सरहॉं अइसनका शब्दन का पहिले कवनो संख्यावाचक

शब्द जरुर रहेला.  जइसे - पॉंच लीटर घीव, सात किलो भूॅंजा, चार गज कपड़ा, दू कट्ठा जमीन. कबो-कबो माप तौल भा नाप का बाद भर जोड़ के कहल जाला - गज भर माने एक गज, किलो

भर माने एक किलो, बाल्टी भर माने एक बाल्टी भर के, कटोरी भर माने एक कटोरी भर के वगैरह. 


अनिश्चित परिमाणवाचक - जवना परिमाणवाचक विशेषण से परिमाण के अन्दाजेभर मिले ओकरा के अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहाला.  जइसे अपार कष्ट, ढेर दूध, अधिका दाल, इचका भर सेनूर, तनिका जोरन वगैरह.


तुलनात्मक विशेषण - अनिश्चित परिमाणवाचक शब्द से जब कवनो वस्तु भा जीव के तुलना दोसरा से कइल जाव ओकरा के तुलनात्मक विशेषण कहाला.  जइसे - अधिका, अनइस, बीस, कम. 


सार्वनामिक विशेषण - जब कवनो सर्वनाम के बेवहार विशेषण का रूप में कइल जाव त ऊ सार्वनामिक विशेषण कहाला.  ई कई तरह के होला -

1. संकेतवाचक - ई, ऊ, कहॉं, कहॅंवा, के, कवन, कवना, केहू, का. 

2. प्रकारवाचक - अइसन, ओइसन, जइसन, तइसन, कइसन, अपने लेखा, उनका लेखा, केकरा भा किनका लेखा. 

3. मात्रावाचक - अतना, ततना, जतना, कतना. 

4. सम्बन्धवाचक - हमार, तहार, तोहर, उनकर, इनकर, सभकर. 


(ध्यान दीं - जब कवनो सर्वनाम शब्द संज्ञा से पहिले कहल भा लिखल जाव त ऊ सार्वनामिक विशेषण होखी बाकिर जब ऊ संज्ञा का बदला बोलाव भा लिखाव त ऊ सर्वनाम कहाई.  उदाहरण -

ई घोड़ा तेज दउडे़ला.  ई - विशेषण 

ई हमार संघतिया ह.  ई - सर्वनाम)


विशेषण शब्दन के रचना - कुछ विशेषण मोलिक होलें, आ कुछ के रचना संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया भा अव्यय शब्दन में कवनो प्रत्यय लगा के कइल जाला. 

1. इक प्रत्यय लगाके - मास - मासिक, पक्ष - पाक्षिक, अर्थ - आर्थिक, दैव - दैविक, सम्प्रदाय - साम्प्रदायिक, मर्म - मार्मिक,

सेना - सैनिक, नीति - नैतिक.


(ध्यान दीं - जब इक प्रत्यय लागेला तब शुरुके ह्रस्व स्वर दीर्घ में बदल जाला.  जब दूगो शब्द रहेला त दूनूके आदि स्वरन में बढ़न्ती हो जाला - पर लोक - परलोक, परलोक इक - पारलौकिक. मगर ई वृद्धि हमेशा ना होला.  उदाहरण - श्रम - श्रमिक, क्रम - क्रमिक. )


2. इत प्रत्यय लगाके - सुगन्ध - सुगन्धित, मोह - मोहित, दण्ड - दण्डित, संचय - संचित, द्रव - द्रवित, अपमान - अपमानित.


3. इम प्रत्यय जोड़के - आदि - आदिम, अन्त - अन्तिम.


4. लगाके - सुख - सुखी, क्रोध - क्रोधी, गॉंव - गॅंवई, जवार - जवारी.


5. ईय जोड़के - मानव - मानवीय, भारत - भारतीय,


6. अक लगाके - मद - मादक, मोह - मोहक.


7. इल लगाके - धूम - धूमिल, चोट - चोटिल, घाव - घवाहिल.


8. ईन जोड़के - रंग - रंगीन, ग्राम - ग्रामीण.


9. ईला जोड़के - खर्च - खर्चीला, चमक - चमकीला.


अइसहीं निष्ठ, नीय, मान्, मती, मय, य, रत, वान्, वती, शाली, वी, एरा, वाला, शील, आ, आलु, इयाह, गर, छाह, दार, अल, आक, आउ, आका, आड़ी, आड़ा, इया, क, अक्कड़, ओड़, ओड़ा, हुआ, कर, अर, सा, सी, ला वगैरह ढेरे प्रत्यय बाड़ी स जवना के जोड़के विशेषण शब्दन के रचना कइल जाला.


एकरा अलावे ढेरे उपसर्गो बाड़ी स जवना के कवनो शब्द का आगा लगाके विशेषण बनावल जाला - 

1. अ जोड़के - अयोग्य, अबर, अक्षम.

2. नि जोड़के - निरोग, निसन्तान, निरपराध.

3. दुः लगाके - दुर्जन, दुसाध्य, दुबर.

4. स लगाके - सपूत, सफल, सहज.

5. क लगाके - कपूत, कलह.

6. बे जोड़के - बेजोड़, बेहिचक, बेहोश. 

7. ला लगाके - लावारिस, लाइलाज, लापता.

 

कुछ जगहन पर विशेषण शब्दन के प्रयोग संज्ञो का तरह होला - लईकन से छोह करऽ. गद्दार गरियावल जाले.  बहादुर पूजाले.  गुरू के बात ध्यान से सुनेके चाहीं.


विशेषण विशेष्य के विशेषता बतावेला.  ई विशेषता केहू में दोसरा से अधिका त केहू में सबले अधिका पावल जा सकेला.  ई बात खाली गुणवाचक, अनिश्चितसंख्यावाचक आ अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषणन में पावल जाला.  एह तुलनात्मक अन्तर के बतावे खातिर भोजपुरी में कवनो व्यवस्था नइखे.  बाकिर तत्सम भा शुद्ध हिन्दी शब्दन में तर आ तम प्रत्यय लगाके क्रमसे उत्तरावस्था आ उत्तमावस्था बना लिहल जाला.  चाहे अधिक आ सबसे अधिक प्रविशेषण जोड़िओके एह कामके कइल जा सकेला.

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एह खण्ड में इहॅंवे तक.  अगिला अंक में क्रिया, अव्यय आ बाकी बातन के चर्चा होखी. आपन प्रतिक्रिया जरूर भेजीं सभे. 

- प्रकाशक


(भोजपुरी व्याकरण के ई खण्ड अंजोरिया डॉटकॉम पर साल 2004 का अगस्त में अंजोर कइल गइल रहुवे. ओकरा बाद ई क्रम टूट गइल काहे कि पाठकन के कवनो प्रतिक्रिया ना अइला से एह दुरुह काम से असकत हो गइल. 

अगर अंजोरिया डॉटकॉम बन्द करे के पड़ गइल त ओकरो पाछा इहो एगो कारण बा कि भोजपुरिहा लोग आपन टिप्पणी करे में सकुचाला. आ जब टिप्पणी करे में अतना कंजूसी त आर्थिक सहयोग के त सोचलो अकारथ रहुवे. अलग बात बा कि करीब एक दर्जन लोग आर्थिक सहजोग जरुर कइलस बाकिर ऊंट का मुंह में जीरा का बराबर रहल ऊ सुजोग. जबले हम अपने सक्षम रहीं तबले प्रकाशन जारी रखनी. अब उमिर के एह पड़ाव पर ना त जांगर रहि गइल बा ना बेंवत.

देखत बानी कतना लोग एह व्याकरण में रुचि देखावत बा. आपन टिप्पणी करे में सकुचाई मत. नीमन लागे त नीमन, बाउर लागे त बाउर. जबले राउर टिप्पणी सभ्यता का सीमा में रही तब ले आलोचनो प्रकाशित हो जाई, अतना वादा बा. )

रविवार, 3 नवंबर 2024

संक्षिप्त भोजपुरी व्याकरण : पहिलका खण्ड

 (दुनिया भर में भोजपुरी में शुरु होखे वाला पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर जुलाई 2004 में ई लेख अंजोर भइल रहुवे. तब एकरा के पीडीएफ का रुप में प्रकाशित कइल गइल रहल. अब टेक्स्ट का रुप में डाले खातिर एकरा के कुछ बदलल गइल बा, बाकिर नया से सम्पादित नइखे कइल गइल. जइसे तब डालल गइल ओही तरह आजुओ बा.)


आपन बाति


अपना मन के बाति हमनी के जरुर बताईं ताकि राउर अँजोरिया भोजपुरी के ऑंगन में अँजोर फइला सके.  

जब नीमन रचना के इन्तजार करत एह महीना से ओह महीना हो जाव त सम्पादक आ प्रकाशक के मन के हालत के अन्दाजा कइल जा सकेला.  कबो कवनो दोसरा पत्रिका

खातिर आइल रचना छापि के काम चलाईं त कबो निहोरा कऽ के केहू से लिखवाईं.  आ जब निहोरा कऽ के लिखवायेम तऽ नीमन बाउर जवन भेंटाई, ओकरा के छापहूॅं के पड़ी.  फेरु ओहपर से विचारधारा के लड़ाई .  बाजि आके हम इहे तय कइनी कि काहे ना कुछ अइसन कइल जाव जेकर जरुरत बा. 

एही चिन्तन के परिनाम बा ई भोजपुरी भाषा अंक.  कोशिश कइल गइल बा कि भोजपुरी के एगो छोटहन व्याकरण पेश कइल जाव.  साहित्यकार आ व्याकरणी लोग त हमार मुॅंह नोचे खातिर बेचैन हो जाइ ई व्याकरण देखि के.  बाकिर हम ओह लोग से माफी मॉंग के आगा बढ़त बानी. ( एकरा के व्याकरण ना मान के अँजोरिया के शैली सिद्धान्त मान लिहला से विद्वानन के विरोध कम हो जाए के चाहीं. )

ई व्याकरण संस्कृताइन नइखे बलुक ठेठ भोजपुरिआ सवाद आ रस से भरल बा.  हमार मकसद बा कि भोजपुरी के साहित्य ना, आपसी संवाद के साधन का रुप में बढ़ावल जाव.  एह खातिर इ जरुरी बा कि एकरा के ओही तरे लिखाव जइसे ई बोलाला.  हॅं एगो सावधानी जरुर राखे के पड़ी कि जदि अर्थ के अनर्थ होखे तऽ शुद्ध वर्णविन्यास के बेवहार कइल जाव.  अँजोरिया के अगिलो अंकन में पूरहर कोशिश कइल जाइ कि एह व्याकरण के पालन होखे.  एगो बाति पर बार बार जोर दिआला कि कवनो पत्रिका खातिर ओकरा पाठकन के चिट्ठी पतरी बहुते जरुरी होखेला.  रउरा सभे एह पर आपन कमेंट, तंज नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकिलें.

संक्षिप्त भोजपुरी व्याकरण : पहिलका खण्ड


परिचय

भोजपुरी इण्डो-आर्यन भाषा परिवार के सदस्य हऽ.  इण्डो-आर्यन भाषा परिवार इण्डो-यूरोपियन भाषा परिवार के सदस्य हऽ. भोजपुरी भाषा के विकासक्रम वैदिकी से शुरु होके संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश होत अवहट्ट के शौरसेनी शाखा के बाद खतम होला.

भोजपुरी मूलरुप से आरा, छपरा, बलिया के भाषा हऽ बाकिर एकर विस्तार मध्यप्रदेश के सिद्धि जिला, पूरबी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार आ झारखण्ड, आ दखिनी नेपाल तक फइलल बा.  एकरा अलावे भोजपुरी बोले वाला लोग संसार के बहुतेरे देस-देसाईं में बसल बाड़न. चुंकि भोजपुरी लिखाला कम आ बोलाला जेआदा एहसे एकर अलग-अलग रूप अलग-अलग जगह पर बेवहार में बा.  व्याकरण के जरुरत एही अनेकता के बीच एकता उपजावे खातिर पडे़ला. 

लिपी

भोजपुरी पहिले कैथी लिपी में लिखात रहुवे.  अब त कैथी लिपी के कवनो पते नइखे.  आधुनिक भोजपुरी अब देवनागरी लिपी में लिखात बा.  देवनागरी के संक्षिप्त में नागरी

भी कहाला.  देवनागरी वइसे त मूल रुप से संस्कृत के लिपी हऽ बाकिर कालक्रम से हिन्दी आ हिन्दी के उपभाषो सभ देवनागरीये में लिखाये लगली सऽ.  भोजपुरी के कुछ वर्ण

संस्कृत भा हिन्दी में नइखे एहसे देवनागरीओ में ओकर कवनो खास वर्ण ना मिलेला.  जइसे महाप्राण ङ्ह, ल्ह, न्ह, म्ह, र्ह ओगैरह. भोजपुरी के स्वरनो के कुछ खासियत बा. 

जइसे ’अ’ के उच्चारण तीन तरह से - अर्द्ध-मात्रिक, एक मात्रिक, आ द्वि मात्रिक - होला, जवना के बिना सुनले मानल कठिन बा. अर्द्धमात्रिक इ, उ, ए ओ भोजपुरी के आपन अलग अन्दाज हऽ. 

वर्ण

मूल ध्वनि जवना के बॉंटल भा तूड़ल ना जा सके ओकरा के वर्ण कहाला.  एह वर्णन के लिपी चिह्ननो के वर्णे कहाला.  आ ओह चिह्नन के सरिआवल समूह के वर्णमाला कहाला.

मानक देवनागरी वर्णमाला

स्वर - 

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ

अयोगवाह -

ं :

व्यंजन -

कवर्ग - क ख ग घ ङ ङ्ह

चवर्ग - च छ ज झ ञ

टवर्ग - ट ठ ड ढ ण

तवर्ग - त थ द ध न न्ह

पवर्ग - प फ ब भ म म्ह

अन्तस्थ - य र र्ह ल ल्ह व

उष्म - श ष स ह

गृहीत - ऑ, ज़, फ़

संयुक्त व्यंजन - क्ष, त्र, ज्ञ, श्र


स्वर - 

जवना ध्वनि के बोले में सॉंस बिना कवनो बाधा के बाहर निकले ओकरा के स्वर कहाला.  देवनागरी में एगारह गो स्वर बाः

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ

स्वर जब व्यंजन का संगे आवेला त एकरा के मात्रा चिह्न का रूप में लिखल जाला.  उदाहरण खातिर क का संगे सब स्वरन के मात्रा दिआता -

क का कि की कु कू के कै को कौ कं कृ

अनुस्वार  -

अनुस्वार व्यंजनन के छोटहन रुप होला जवना के स्वरो का रुप में  इस्तेमाल होला.  एहके कवनो दोसरा स्वर भा व्यंजन के बिना लिखल भा बोलल ना जा सके.  जइसे कि अ का साथे एकर रुप हऽ - 

अं 


अनुनासिक स्वर - 

जब कवनो स्वर मुॅंह आ नाक दूनू से बोलाला त ओकरा के अनुनासिक स्वर कहाला आ ओकरा खातिर चन्द्रबिन्दु के मात्रा लगावल जाला.  जइसे -

चॉंद, सॉंप, टॉंग.  

बाकिर यदि ओह स्वर के मात्रा शिरोरेखा पर लागेला त चन्द्रबिन्दु ना लगाके खाली अनुस्वार लागेला.  जइसे - 

गोंद, चौंक. 

ह्रस्व स्वर का उपर जब अनुस्वार लागेला त ऊ दीर्घ हो जाला.  बाकिर अनुनासिक लगला पर ऊ दीर्घ ना होला. 

अनुस्वार लगावे के नियम - 


जब कवनो वर्ग के पंचमाक्षर (ङ ञ ण न म ) का बाद ओही वर्ग के कवनो वर्ण आवे त पंचम वर्ण का जगह अनुस्वार लाग जाला.  जइसे - संकल्प, संचय. 

य र ल व श ड्ढ स ह का पहिलहूॅं अनुस्वार लागेला.  जइसे - संयम, संरक्षक. 

बाकिर जब पंचमाक्षरे दोबारा आवे त ओकरे हलन्त रूप लिखाला, अनुस्वार ना लागे. जइसे - जन्म, निम्न, पुण्य.

विसर्ग -

एकरो के कवनो दोसरा स्वर भा व्यंजन के बिना बोलल ना जा सके. 

:

अनुस्वार आ विसर्ग के अयोगवाह-ओ कहल जाला. 

व्यंजन -

कवर्ग - क ख ग घ ङ ङ्ह

चवर्ग - च छ ज झ ´

टवर्ग - ट ठ ड ढ ण

तवर्ग - त थ द ध न न्ह

पवर्ग - प फ ब भ म म्ह

अन्तस्थ - य र र्ह ल ल्ह व

उष्म - श ष स ह

गृहीत - ऑ, ज़, फ़

संयुक्त व्यंजन - क्ष, त्र, ज्ञ, श्र


संयुक्त व्यंजन दू भा अधिका व्यंजनन के मिलला से बनेला.  एकर गिनती अलगा से ना होखे के चाहीं.  

एहीतरे गृहीत व्यंजनन-ओ के देवनागरी में ना गिन के अलगे राखे के चाहीं. एहनी के बेवहार तबे होला जब कवनो विदेशज शब्द के लिखे के होला.  जइसे - डॉक्टर. 

अघोष वर्ण - 

जवना वर्ण के बोले में स्वरतन्त्री में कम्पन ना होखे ऊ अघोष वर्ण कहाला.  एकर दू गो भेद होला - अल्पप्राण आ महाप्राण.

अल्पप्राण अघोष वर्ण के सूची -

क च ट त प य र ल श

महाप्राण अघोष वर्ण के सूची -

ख छ ठ थ फ र्ह ल्ह व ष

घोष वर्ण - 

जवना वर्ण के बोले में स्वरतंत्री में कम्पन होखेला ऊ घोष वर्ण कहाला. करो दू गो भेद होला - अल्प प्राण आ महाप्राण. 

अल्पप्राण घोष वर्ण के सूची -

ग ज ड द ब स

महाप्राण घोष वर्ण के सूची -

घ झ ढ ध भ ह

नासिक्य वर्ण - 

जवना के बोले में नाक से वायु निकले ओकरा के नासिक्य वर्ण कहाला. इहो अल्पप्राण आ महाप्राण होला. 

अल्पप्राण नासिक्य वर्ण के सूची -

ङ ञ ण न म

महाप्राण नासिक्य वर्ण के सूची -

ङ्ह न्ह म्ह

हल् चिह्न -

 ्

सभ व्यंजनन में अ के स्वर जुड़ल होला. बिना स्वर जोड़ले लिखे घरी एकर प्रयोग होला.  उदाहरण - क् ख् च् छ् .

कवनो अक्षर का आखिर में आइल ह्रस्व अ के उच्चारण ना होला तबो लिखे घरी हल् चिह्न के प्रयोग ना होला आ पूरे लिखाला. 

ड़ आ ढ़ - 

जब दूनू ओरि स्वर होखे त बीच में आइल ड ड़ आ ढ ढ़ हो जाला.

अक्षर - 

एगो भा अधिका वर्ण जब एके साथे झटका मेें बोलाला तऽ ऊ अक्षर कहाला. अंगरेजी में एकरे के सिलेबुल कहल जाला. शब्दन में एक भा अधिका अक्षर रहेला. 

स्वराघात - 

बोले का घरी अक्षर का कवनो वर्ण पर जब जोर दिआव त ओकरा के  स्वराघात कहाला.  अकसरहॉं ई बल कवनो स्वर का संगे संगे पूरा अक्षरे पर पडे़ला. जइसे, कमल में बलाघात म पर बा.  जब बीच में कवनो दीर्घ स्वर आइ त बलाघात ओही स्वर पर पड़ी.  जइसे, समोसा में बलाघात मो पर बा.  अगर आखिर में ह्रस्व अ नइखे त बलाघात आखिरी दीर्घ स्वर पर पड़ी. जइसे, पटना में बलाघात ना पर बा.

वाक्यो में कवनो शब्द पर बल पडे़ला आ कई हाली एकरा चलते ओह वाक्य के मतलबो बदल जाला. 

शब्द - 

एक भा कई अक्षरन के सार्थक समूह के अक्षर कहल जाला.

पद - 

शब्द जब वाक्य में आवेला त ओकरे के पद कहल जाला. 

वर्णयोग - 

देवनागरी लिपी के खासियत हऽ कि जब दूगो व्यंजन का बीच में कवनो स्वर ना रहे त दूनू व्यंजन एके में जुट जाला. इहे वर्णयोग कहाला.  वर्णयोग आ संधि दूगो अलग अलग चीज हऽ.  सन्धि में परिवर्तन आवेला वर्णयोग में ना. 

वर्णयोग के नियम -

1. जवना व्यंजन का अन्त में खड़ी पाई रहेला, ओकर खड़ी पाई हट जाला, आ ऊ बाद में आवे वाला व्यंजन का संगे जुट जाला. उदाहरण - प्यार, ध्यान, स्नान.

2. क आ फ के रूप बदल जाला.  ओकर पाई के बाद वाला हिस्सा आधा कट जाला आ सोझ हो जाला. उदाहरण - क्यारी, क्लेश. 

3. बाकी व्यंजन जइसे ट, ठ, ड, ढ, द, ह का साथे हलन्त के बेवहार कइल जाला.  उदाहरण - उद्धार, उद्गार, ब्राह्मण, चिह्न.

4. र् जब कवनो व्यंजन से पहिले आवेला तऽ ओकरा के ओह व्यंजन का शिरोरेखा के ऊपर ‘रेफ’ का तरह लिखाला.  उदाहरण - धर्म, कर्म, आश्चर्य, मर्म, दर्प . 

5. जब कवनो व्यंजन का बाद र आवेला तऽ ओह व्यंजन के त पूरा लिखाला बाकिर र के रूप बदलि  जाला.  उदाहरण - क्र, ख्र, ग्र, घ्र, च्र, द्र.

अपवाद - ट, ठ, ड, ढ, छ का बाद र अइला पर र के हंसपद रूप ओकरा नीचे लागेला.  उदाहरण - ट्रेन, ड्रेन.  

6. र का साथ जब उ के मात्रा लागेला त रु आ जब ऊ के मात्रा लागेला त रू लिखाला.

7. जानबूझ के द्ध द्य द्व जइसन वर्णयोग के हटा दिहल बा.  एकरा जगह पर हलन्त के बेवहार ज्यादा बेवहारिक होखी. 


संधि - 

जब दू भा अधिका वर्ण के आपस में मिलवला से ओकर रूप बदल जाव त ओकरा के संधि कहाला. संधि के तीन रूप होला - स्वर संधि, व्यंजन संधि, आ विसर्ग संधि. 


स्वर संधि - 

दू गो स्वर जब आपस में जुटेला त ओकरा के स्वर संधि कहाला.  ई आठ तरह के हो सकेला. 

1. दीर्घ संधि - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, भा ऋ के बाद अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ आवेला त दूनू का जगह पर एकेगो स्वर के दीर्घरूप आ जाला.  जइसे कि -

वेद + अन्त = वेदान्त

हिम + आलय = हिमालय

विद्या + अर्थी = विद्यार्थी

कपि + ईश = कपीश

2. गुण संधि - अ भा आ का बाद इ भा ई रहे त ए, उ भा ऊ रहे त ओ, आउर ऋ रहे त अर् हो जाला.  जइसे कि - 

देव + इन्द्र = देवेन्द्र

सुर + ईश = सुरेश

महा + उत्सव = महोत्सव

महा + उदय = महोदय

देव + ऋषि = देवर्षि 

3. यण संधि - इ, ई, उ, ऊ, भा ऋ का बाद कवनो दोसर स्वर आवे त इ, ई  के य्, उ, ऊ के व्ए आउर ऋ के र् हो जाला.  जइसे कि -

अति + अन्त = अत्यन्त

वि + आपक = व्यापक

अनु + वय = अन्वय

सु + अल्प = स्वल्प

पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

4. वृद्धि संधि - अ आउर आ का बाद ए भा ऐ आवे त ऐ आउर ओ भा औ आवे त औ हो जाला.  जइसे कि -

एक + एक = एकैक

सदा + एव = सदैव

महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य

महा + ओज = महौज

5. अयादि संधि - ए, ऐ, ओ, औ का बाद कवनो दोसर स्वर आवे त ए के अय्, ऐ के आय्, ओ के अव्, आउर औ के आव् हो जाला.  जइसे -

ने + अन = नयन

गै + अक = गायक

गै + इका = गायिका

भो + अन = भवन

भौ + उक = भावुक

6. पररूप संधि - जब पहिलका पद के आखिरी वर्ण भा अक्षर अगिलका पद के शुरुआती स्वर में विलीन हो जाला त ई पररुप  सन्धि कहाला.  उदाहरण देखीं -

कुल + अटा = कुलटा

पतत् + अँजलि = पतंजलि

7. पूर्वरुप सन्धि - जब बाद वाला पद के शुरुआती स्वर पहिलका पद के आखिरी ए भा ओ में विलीन हो जाला त ऊ पूर्वरुप सन्धि कहाला.  जइसे -

मनो + अनुकूल = मनोनुकूल

8. प्रकृतिभाव संधि - जब दुनू पद जस के तस रहि जाला त ऊ प्रकृतिभाव सन्धि कहाला.  जइसे -

सु + अवसर = सुअवसर


व्यंजन सन्धि -

1. कवनो वर्ग के पहिलका वर्ण जइसे क्, च्, ट्, त्, प् का बाद यदि स्वर, कवनो वर्ग के तीसरका भा चउथका वर्ण, चाहे य, र, ल, व आवे त ऊ अपने वर्ग का तीसरका वर्ण में बदल जाला.  उदाहरण -

वाक् + ईश = वागेश

सत् + आनन्द = सदानन्द

2. कवनो वर्ग के पहिलका भा तीसरका वर्ण का बाद यदि कवनो वर्ग के पॉंचवा वर्ण आवे त पहिलका भा तीसरका वर्ण अपने वर्ग के पॉंचवा वर्ण में बदल जाला. 

वाक् + मय = वाङमय

जगत् + नाथ = जगन्नाथ

उत् + नयन = उन्नयन

तत् + मय = तन्मय

3. त् आ द् का बाद च भा छ आवे त च्, ज भा झ आवे त ज्, ट भा ठ आवे त ट्, ड भा ढ आवे  त ड्, आउर ल् आवे त ल् हो जाला.  जइसे कि -

सत् + चित् = सच्चित्

उत् + छिन्न = उच्छिन्न

शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र

सत् + जन = सज्जन

विपद् + जाल = विपज्जाल

उत् + डयन = उड्डयन

उत् + लेख = उल्लेख

4. त् भा द् का बाद श आवे त त् आ द् के च् हो जाला आ श के छ हो जाला. जइसे कि -

उत् + श्वास = उच्छ्वास

5. त् भा द् का बाद ह आवे त त् आ द् के द् हो जाला आ ह के ध हो जाला. उदाहरण - 

उत् + हार = उद्धार

पद् + हति = पद्धति

6. म् का बाद क से लेके भ तक कवनो वर्ण आवे त म् अनुस्वार भा आवे वाला वर्ग के पॉंचवा वर्ण हो जाला.  उदाहरण -

सम् + कल्प = संकल्प

सम् + तोष = सन्तोष

7. क् से म् तकले छोड़ के म् का बाद कवनो दोसर वर्ण आवे त म् का बदले अनुस्वार लिखाला. उदाहरण -

सम् + हार = संहार

सम् + वत् = संवत्

8. कवनो स्वर का बाद छ आवे त छ का पहिले च् जुट जाला. जइसे कि - 

आ + छादन = आच्छादन

स्व + छन्द = स्वच्छन्द

9. ऋ, र् अउर ष का बाद सीघे भा कवर्ग, पवर्ग, अनुस्वार भा य, व, ह में से कवनो वर्ण के व्यवधान का बाद न आवे त ऊ ण हा जाला.  जइसे -

प्र + नाम = प्रणाम

राम + अयन = रामायण

10. स से पहिले अ आउर आ के अलावा कवनो दोसर स्वर आवे त स का बदला ष लिखाला. 

11. ग्, ज्, द्, त्, ब् का बाद यदि कवनो घोष वर्ण - जइसे ग, घ, ज, झ, ड, ढ, ण, द, घ, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, भा कवनो स्वर ना आवे त ऊ क्रम से क्, च्, ट्, त्, प् हो जाला.  दोसरा तरह से कहीं त कवनो वर्ण वर्ग के तीसरका वर्ण का बाद यदि पहिलका भा दोसरका वर्ण आवे त ऊ अपने वर्ग का पहिलका वर्ण में बदल जाला.  उदाहरण -

दिग् + पाल = दिक्पाल

उद् + पात = उत्पात

उद् + साह = उत्साह

सद् + कर्म = सत्कर्म


विसर्ग सन्धि -

1. विसर्ग का बाद च् भा छ् आवे त विसर्ग श् में, ट् भा ठ् आवे त ष् में, अउर त् भा थ् आवे त स् में बदल जाला. 

निः + चल = निश्चल

निः + ठुर = निष्ठुर

मनः + ताप = मनस्ताप

2. विसर्ग का बाद श, ष, स, आवे त विसर्ग का बदले श्, ष्, आ स् लिखाला. जइसे - 

दुः + शासन = दुश्शासन

निः + सन्देह = निस्सन्देह

3. विसर्ग का बाद क, ख, प, भा फ आवे त विसर्ग का बदला ष् लिखाला. उदाहरण -

निः + कपट = निष्कपट

4. विसर्ग का पहिले अ अउर आ का अलावा कवनो दोसर स्वर आवे आ ओकरा बाद स्वर भा कवनो वर्ग के तीसरा चउथा भा पॉंचवा वर्ण भा य र ल व आवे त विसर्ग र् में बदल जाला.  जइसे -

दु: + उपयोग = दुरुपयोग

नि: + आशा = निराशा

दु: + नीति = दुर्नीतिदु: + उपयोग = दुरुपयोग 

नि: आशानिराशा

दु: नीतिदुर्नीति

5. यदि विसर्ग का पहिले आ बाद में दुनू ओर ह्रस्व अ आवे भा पहिले अ आ बादमें कवनो वर्ग के तीसरका चउथा पॉचवा वर्ण भा य र ल व ह होखे त दुनू ओर के वर्ण आ विसर्ग तीनो हटा के ओ क दिहल जाला. देखीं -

यशः + अभिलाषी = यशोभिलाषी

मनः + हर = मनोहर

मनः + योग = मनोयोग

6. विसर्ग का पहिले अ आवे आ बाद में कवनो दोसर स्वर त विसर्ग त गायब हो जाला बाकिर एने ओने के स्वरन में कवनो सन्धि ना होला.  उदाहरण -

अतः + एव = अतएव


(भोजपुरी के विद्वानन से निहोरा बा कि एह व्याकरण के अगर संशोधित भा संवर्धित कर सकीं त स्वागत जोग रही.)


अगिला खण्ड में शब्द विचार पर चर्चा होखी.