गुरुवार, 14 नवंबर 2024

चिचिरी के हाल : तस्वीर जिन्दगी के

 

चिचिरी के हाल : तस्वीर जिन्दगी के

डाo रमाशंकर श्रीवास्तव



ग़ज़ल के जर-सोर खोजेवाला लोग कहेला कि ग़ज़ल शब्द के अरबी भाषा में मानी होला- औरतन के बातचीत. औरत लोग के बीच में जवन प्रेम-मुहब्बत, हँसी-ठठा में नरम-नरम बात होला,ओह के जब शेरो-शायरी में ढाल दीं त ग़ज़ल बन जाई. हो सकेला कुछ लोग के इ अनुभव साँचो के होखे. मगर हमार खयाल बा कि ग़ज़ल जइसन काव्य रचना अपना कोमल भाव, गहिर संवेदना आ श्रृंगारिक दृष्टि खातिर सभ जगह स्वागत योग्य बा. ग़ज़ल में रचनाकार के बौध्दिक तेजस्विता के दर्शन होला. आकार में छोटी चुकी लगलो के बाद अपना अर्थ आ आनन्द के विस्तार में ग़ज़ल बड़ी दूर-दूर तक पटकौरा मारेला.

ग़ज़ल उर्दू-फारसी से भले आइल होखे उ आपन लोकप्रियता के कारण आज प्राय: हर भाषा में जगह बना लेले बा. केतना घुसकत विधा भकुआ के खड़ा हो गइल बा आ पसर के बइठल ग़ज़ल मीठे-मीठे मुस्कुरात बा. ओकर रसदार सम्प्रेषणीयता सभ के ध्यान अपना ओर खींच रहल बा.

मनोज 'भावुक' के ग़ज़ल-लेखन के शुरुआत सन 2000 से भइल आ 2004 में उनकर पहिला ग़ज़ल -संग्रह 'तस्वीर जिन्दगी के' प्रकाशित भइल. एतना कम समय में भोजपुरी ग़ज़ल के एगो सुन्दर कृति देखे में आइल. पुस्तक के शुरु में प्रसिध्द साहित्यकार सत्यनारायण जी के सारगर्भित समीक्षा बा आ ओकरा बाद माहेश्वर तिवारी के 'माटी की गंध में लिपटी कविता' शीर्षक से विस्तृत समीक्षा बा. ग़ज़लकार अपना लेखन के श्रेय भोजपुरी के आचार्य पान्डेय कपिल आ कविवर जगन्नाथ के देके ओ दूनू विद्वान के प्रति समर्पण भाव व्यक्त कइले बाड़े.

समीक्षक लोग के पारखी निगाह में 'भावुक' एगो सफल रचनाकार बाड़े. खुदे मनोज 'भावुक' पुस्तक में आपन उदगार बीस पन्ना में व्यक्त कइले बाड़े.

एह आलेख में जीवन में आपन साहित्यिक झुकाव, परिवार- परिजन,अध्ययन काल के हित-मित,नाटक-लेखन-मंचन के दुनिया के सहयोगीगण, कुछ पत्र-पत्रिकन के संपादक लोग आ आपन साहित्यिक परिचय के कुछ विशिष्ठ लोगन के उ मनोयोग से इयाद कइले बाड़े. एह ग़ज़ल- संकलन मे कथा-रस के साथे संवेदना आ प्रेरणा के प्रसंग आ उ सब तत्व जवन 'भावुक' के निर्माण करे में सहायक बा, सभे के उल्लेख बा.

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी साँचे कहले बानी कि कविता रोटी, कपड़ा, मकान भले ना देव बाकिर उ बेहत्तर इंसान बनावे के काम करेले.

मनोज भावुक एही बेहत्तर इंसान के खोजे में आपन समय-श्रम लगवले बाड़े. कमे उमर में काम बड़के कइले बाड़े. बचपन के खेल में हम कवनो साथी के मुँह से सुंनले रहनी - ' छोटकी लुत्ती छटकल जाव,संउसे बनारस लूटत जाव.' 'भावुक' छोटे उमिर में लुत्ती बन के साहित्य जगत के बनारस के लूट लेले बाड़े. एकरा से साबित होत बा कि प्रतिभा के चमके के कवनो उमिर ना होला. चाही त उ दूधा के दाँते में चमक जाई, नाहीं त बतीसी टूटला पर बुढ़ौती में झलकी मारी भा ना मारी. 'मनोज' के अपना परिवार में कविता के दिसाई अपने पिता से प्रोत्साहन ना मिलल. भाई लोग के समर्थन मिलल आ विद्वान लोग के भी सहानुभूति, प्रशंसा मिलल.

एह से सत्यनारायण जी के विचार बा- 'अपना साठ गजलन में 'भावुक' काफी हद तक गजलियत के निर्वाह कइले बाड़े.

ओही लगले समीक्षक महेश्वर तिवारी भी एह ग़ज़लन में तीन गो खास बात खोजले बानी- भोजपुरी माटी के गंध. माटी के संस्कार के उद्वीप्त करना. भोजपुरी मानुख की संवेदना से लबालब.

मनोज भावुक के एह कृति पर जब एतना कहा गइल आ एतना टेस्टीमोनियल मिल गइल त अब आगे कहे खातिर बचते का बा. तबो मन नइखे मानत. काहे कि स्वादिष्ट खाना खा के ढेकार ना लीं त ओकरा पचे में कुछ शुबहा होला. 'तस्वीर जिन्दगी के' ग़ज़लन के बार-बार पढ़ के हम आनन्द उठवनी त अब अगर ओकरा के चुपेचाप गपच जाईं त इ इंसाफ ना कहाई. भावुक कई बेर बम्बई आ अफ्रिका से फोन पर हमरा से सवचले -सर हमार किताब पर कुछ लिखनी?

इ अनुभव लोकमुख में गूंजेला कि केतना लोग साठा पर पाठा होला.आ सांचो साठ गो ग़ज़ल पर भोजपुरी के एगो ग़ज़लकार पाठा बन के चर्चित हो जाव त इ भोजपुरी साहित्य के सौभाग्य कहल जाई. एह गजलन में आदमी के पूरा जिन्दगी के तस्वीर बा, भाव आ स्थिति के जवन घात-प्रतिघात बा ओ सब के गहिर संवेदना के साथे सहज ढंग से कहल गइल बा. अइसन काव्य रचना के समझे खातिर छन्दशास्त्र के ज्ञान के जरूरत नइखे. टहनी में टेढ़ो फूल खूशबूए देला. एह पंक्तियन के पढ़त समय बुद्धि के समझे से पहिले हृदय समझे लागत बा. इनार के भीतर जेतना गहिर डोर डालीं ओतने ठंडा पानी निकलेला. सेतहीं में बुद्धि के पहिले हियरा धड़के लागत बा काहे कि ओसे मनोवैज्ञानिक तार मजबूती से जुड़ल बा. विनम्रता में भावुक सकरले बाड़े कि इ सब चिचिरी पारत-पारत लिखा गइल बा. चिचिरी के जब अइसन हाल बा त जब अक्षर बना-बना के डांड़ी घीचिहें त का हाल होई. इ चिचिरिये कम नइखे. पढ़ी आ गुनीं त मन हलुका जाता. रियाजे करत-करत कुछ सूर सधा गइल बा.

पुस्तक में देश-दुनिया आ दिल के हाल अइसन नीमन से सझुरा के बन्हाइल बा कि जेने से चाहीं खोल के पढ़ लीं. बहुत काव्य रचनन में इ दोष होला कि उ अपना दुरूहता के कारण पाठक से दूर हो जाले. उ बात एमें नइखे. आज के जिन्दगी के एलबम में जेतना तस्वीर बा ओमें से बहुत त भावुके के किताब में सटल बा. प्रेम-स्नेह, माई के दुलार, घर-आँगन के प्यार, गुलाब में छिपल कांट, किसिम-किसिम के मुखौटा, हियरा में उपजत मीठ-मीठ बात, आ सबके ऊपर कवि के कथन - 'जिन्दगी के ताल में सगरो फेंकाइल जाल बा'.

सभे जानत बा कि झूठ जब उफर पड़ेला त सांच भउर के फोड़ के बहरिया जाला. अइसने सांच-सांच अनुभव के दर्शन होता एह गजलन में.

  • -शेर जाल में फंस जाला त सियरो आँख देखावला.' (पृ0 39)
  • -कबहूँ लिखा सकल ना तहरीर जिन्दगी के'- (पृ0 7 )
  • -अगर जो दिल में लगन,चाह आ भरोसा बा
    कसम से चाँद भी अंगना में तब उतर जाला.' (पृ0 10)
  • -एह सियासी मुखौटा के पीछे चलीं
    इहवां चूहा से बिल्ली के यारी भइल.(पृ0 34)

एकरा साथ ही भावुक आपन मजबूरी भी महसूस करत बाड़े -

'के तरे गीत गाईं जिनिगी के हर घड़ी लय बदल-बदल जाता.' (पृ0- 55)

'भावुक के भीतर एगो भयो समाइल बा कि कर्फ्यू लगावेवाली के अइला पर का होई. लंदन जात में उ उनकरे साथ गइले. फोन पर के बातचीत में इचिको ना बुझाइल कि उ डेराइल बाड़े. कवियो लोग अपना मेहरारू के कम बदनाम ना करेला.

आजकल के भोजपुरी ग़ज़ल में भी उर्दू-हिन्दी के ग़ज़ल-शिल्प के पूरा-पूरा निर्वाह हो रहल बा. उ सीधे दिल के भीतर ढुक के असर करत बा. कम शब्दन में रचना के गहरी बुनावट हो रहल बा.एही से एह विधा के पहुँच दूर-दूर तक बा. एगो प्रसिद्ध ग़ज़लकार - डा0 जानकी प्रसाद शर्मा के पंक्ति ह - 'कल मुझे बाजार मे हमशक्ल -सा चेहरा मिला, हाल मेरा पूछ्कर बेसाख्ता रोने लगा.'

कई जगह त अइसन लागत बा कि मनोज भावुक आ दोसर-दोसर ग़ज़लकार में गजब के वैचारिक एकरूपता बा.

हिन्दी के ग़जलकार योगेन्द्र दत्त शर्मा के ग़ज़ल -

'जिन्दगी के इस सफर में आए कैसे मरहले,
बघनखे हाथों में लेकर लोग मिलते हें गले.'

भावुक के रचना एकरा से केतना मिलत-जुलत बा -

'प्रीत के रीत ग़जब रउआ निभावत बानी
घात मन में बा ,मगर हाथ मिलावत बानी.' (पृ0 10)

'तस्वीर जिन्दगी के' में अउर भी तस्वीर के गुंजाइश बा. आदमी के जिन्दगी केतना-केतना भाव रसरी से बन्हाइल आ ओही में अझुराइल बा. इ संतोष के बात बा कि मनोज भावुक अझुराइल के सझुरावे में आपन साहित्यिक प्रतिभा के इस्तेमाल कइले बाड़े. बाकिर पग-पग पर बदलत दुनिया के रूप के अंकन उनकरा अउरी करे के पड़ी आ एही से उम्मीद बंधत बा कि उ आपन अगिला किताब में अउर भी ढेर बात आ अनुभव जोड़ के भोजपुरी साहित्य के भंडार भरिहें. भोजपुरी सिनेमा के इतिहास लेखन में भी उनकर योगदान बा. विदेश में रहिके भी उ दू चीज आज तकले ना भूल पवले. आपन माई आ भोजपुरी. इ कवनो छोट बात नइखे. आपन संस्कृति आ आपन भाषा ही उनकरा के सृजन-शक्ति दे रहल बा. भविष्य में भी अइसने उमंग-उत्साह बनल रहो. एही शुभकामना के साथ.

- रमाशंकर श्रीवास्तव


तस्वीर जिन्दगी के- मनोज भावुक ,प्रथम संस्करण 2004,प्रकाशक -भोजपुरी संस्थान,पटना,मूल्य-साठ रूपया, कुल पृष्ठ- 110


पूर्वांकुर, अप्रैल-जून 2006 ( संपादक डाo रमाशंकर श्रीवास्तव ) से साभार


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