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मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

एहसान

 कहानी

एहसान


- डॉ श्रीप्रकाश पाण्डेय

इ बइठक साधारण ना रहे. सत्ताधारी पार्टी के मुखिया अउरी उनुकर सब विश्वासी लोग बड़ा गम्भीर मुद्दा पर बातचीत करत रहे लोग. वइसे त उनुकर सरकार चार साल से चलत रहे अउरी पांचवा साल में चुनाव होखे के रहे. समस्या इ ना रहे कि चार साल में सरकार के काम काज निमन रहे कि बाउर, समस्या इहो ना रहे कि अगिला साल ओट में जीत मिली की हार. समस्या इ रहे कि अगर नेताजी फेरू मुख्यमंत्री ना बनब त का होई ?

इ समस्या मुख्यमंत्री के विश्वासी लोगन के सेहत से कवनो सम्बन्ध ना राखत रहे. इ त नेताजी के ‘परसनल’ समस्या रहे. लेकिन  विश्वासी चमचवनी के आपन विचार व्यक्त करे के मोका मिलल रहे त उ बड़ा गम्भीर मुद्दा बनवले रहले स. जइसे कि सामने प्रलय आवे वाला होखें अउरी इ ओह प्रलय से बचाव के राहता खोजत होख स.

एह बैठक में पांचे आदमी रहले. एगो खुद नेताजी, जवन चार साल से प्रदेश के मुख्यमंत्री रहलन, दोसरका उनुकर हमजात व्यक्तिगत सचिव. तीसरका उनुकरे पार्टी के कोषाध्यक्ष. चउथका उनुका पाटी के प्रदेश अध्यक्ष आ पांचवा उनुकर भाई, जे अभी पनरह दिन पहिले एगो मेहरारू के बलात्कार अउरी ओहकर हत्या कइला के बादो मजा से घुमत रहले.

चार साल के सरकार चलवला में प्रदेश बीस साल पीछे चलि गइल रहे, इ उन्हन लोग खाती कवनो समस्या ना रहे. चार साल में अपराध में तीन गुना विकास भइल रहे, इ ओह बैठक के कवनों मुद्दा ना रहे. चार साल में प्रदेश के बिजली, सड़क, स्कूल अउरी रोजगार के सब व्यवस्था तहस-नहस हो गइल रहे, इहो कवनों बड़ बात ना रहे. चार साल से प्रदेश में गुण्डा राज चलत रहे, एह बात के कवनों चिन्ता नेताजी के ना रहे. चार साल में कतना किसान आत्महत्या कइले रहले, इ कवनो समस्या ओह बइठककर्ता लोग के ना रहे.

चार साल में प्रदेश में जवन भइल, तवन प्रदेश के लोग के बरबाद करे वाला काम भइल. इ कवनो ध्यान देबे वाला बात ना रहे. चार साल में नेता जी के पार्टी के लोग जवन मन कइल तवन नेताजी के आदमी होखला के नाम पर कइल, लेकिन नेताजी के ओह से कवनो परसानी ना रहे. त फेरू परसानी काथी के रहे?

बइठक में मुख्यमंत्री के सचिव जी बोलल शुरू कइले - ‘जइसन की रउआ सब जानतानी कि अगिला साल ओट होखे वाला बा. इ जरूरी नइखे कि जनता हमहनी के जिताइए दी. काहें से कि लोकतन्त्र में जनता बे पेनी के लोटा होली स. आजू रउआ संगे बिया काल्हू केहू अउरी के संगे होई जाई. चुनाव में हार-जीत नेताजी के कवनों समस्या नइखे, काहें से कि ओकर ठीका बाहर के लोगन
के दिया जाई. ओह खातीर नेताजी आपना खास अधिकारियन के ड्यूटी में लगा देबि. आ फेरू चुनाव चार साल बाद बावे ओकर चिन्ता करे खातीर हमनी के नइखीं जा बइठल. जइसन की रउआ सब जानतानी कि नेताजी कतना गरीब परिवार से रहनी आ इहां के बाबूजी खेत में मजदूरी कइले.........’

‘चूप ना रह सचिव. तहरा से इहे पूछाता कि नेताजी के बाबूजी का रहनी ? उहां के उपर कइगो हत्या बलात्कार के केस बा ? तू मेन बात बताव.‘ - मुख्यमंत्री के सचिव के बात काटि के प्रदेश अध्यक्ष फूफकरले.

‘हमार इ मतलब नइखे. हम चाहतानी कि रउआ सब मए बात ठीक से समझि जाई.’

‘त तू ई कहल चाहतारऽ कि जे गरीब होला ओकर लइका मुख्यमंत्री ना होले स.’ - नेताजी के भाई गरम होई गइले.

‘तू चूप रहऽ. जब तक पूरा बात समझि में ना आवे तब तक कहीं टांग ना अड़ावल जाला.’ - नेताजी आपन भाई के समझवले.’ अब हमरे सब बात बतावे के परी. इ ठीक बा कि हमार जीवन खुलल किताब हवे आ ओकरा के रउआ सभे खूब पढ़ले बानी. फेरू हम ओह के दोहरा देत बानी.‘

नेता जी आपन कहानी बखान करे लगलें -

‘बात ई ओहिजा से शुरू होखल जब हम दस बरिस के रहनी आ मुन्ना दू बरिस के.’ - नेता जी अपना छोटा भाई के एहि नाम से पुकारत रहनी.

‘ओह दिन हम बेमार पड़ल रहनी आ माई-बाबूजी हमरा खटिया के लगे हमरा ठीक होखे के आशा लेके बइठल रहल लोग. तबियत में कुछ सुधार रहे तबे गांव के धनिक हमरा घरे अइले आ हमरा बाबूजी से कहलें कि का रे शिवधनिया, आजू का करत रहले हा कि काम प ना अइले ह ? ’

‘ओइसे त उ धनिक आदमी के उमिर हमरा बाबूजी से कमे रहे, लेकिन बाबूजी हाथ जोरी के कहले कि मालिक लइका के तबियत खराब रहल ह, ओहि बिपति में फंसि गइल रहनी हा. आतना सुनला के बाद उ धनिक कहले कि तोरा अपना लइका के फिकिर बा आ हमार काम के नइखे ?’

‘ई बात नइखे मालिक.’

‘त कवन बात बा ?’

‘मालिक हमार लइका............’

‘चूप. चलू हमरा संगे आजू ढेर जरूरी काम बावे.’

‘लइका के छोड़ि के ?’

‘हं.’

‘ना मालिक अइसन मति करीं.’

‘ते ना चलबे ?’

‘ना.’

‘बाबूजी के अतना कहते उनुकर लात-मुक्का से स्वागत शुरू हो गइल. उ तब तक ओह धनी आदमी के लाख प्रयास के बादो लात खात रहि गइले जब तक कि उ हांफे ना लागल.’ - ई कहि के नेताजी के आंखि डबडिया गइल. माहौल गमगीन हो गईल. आंखि पोछि के नेताजी फेरू शुरू हो गईलन -

‘हम पढ़े में तेज रहनी लेकिन पेट भरे के काम आ पढ़ाई एक संगे ना चलित. लेकिन तबो हम हिम्मत ना हरनी. दुख त एह बात के रहे कि उ आदमी अक्सर बाबूजी के मारे. एक दिन इहे होत रहे त उ हमरा से बरदास ना भइल आ लेहना
काटे वाली गड़ासी से ओह आदमी के गरदन काटि दिहनी. चौदह बरिस में पहिला खून. तब से कहां के पढ़ाई ! एगो ई धन्धे शुरू हो गइल खून करे के.

हमरा लगे एक से एक नेता लोग के बुलावा आवे आ हम उन्हन लोग के जीतावे के ठीका लीहीं आ आपना गिरोह  के आदमी से बूथ कैप्चरिंग करा के जीतवाईं.

एगो समय अइसन आइल कि हमार जीतवावल चालीस पचास के करीब विधायक जीते लगलें. हमरा के पईसा, लईकी देबे के, आ कानून से बचावे के काम ओहि नेतवन के रहे. लेकिन ई कब तक चलित. इ बात हमरा समझि में आ गइल कि हमरा जीतववला से इ विधायक मंत्री बनि सकेलन स त हम काहें ना ?‘

नेताजी कुछ देरि सांस लिहनी, बाकिर चारो आदमी एह रूप में नेताजी के बात सांस रोकिके सुनत रहे लोग जइसे कवनो जासूसी धारवाहिक देखत होखस लोग.

‘एकरा बाद जवन भइल ओकरा से रउआ सभ परिचित बानी. अब हम मेन बात पर आवऽतानी. राजनीति में आके हम विधायक, मंत्री, आ मुख्यमंत्री तक पहुंच गइनी. मुख्यमंत्री के रूप में तबादला, कमीशन आ कई तरीका के गलत काम से हम अरबो रूपिया कमइनी. बस इहे रूपिया हमरा चिन्ता के जरि बा.

‘भइया हमरा तहार बात समझि में नइखे आवत रूपया तहरा के काहें परसान कईले बा.’ - मुन्ना कुछु ना समझले.

‘मुन्ना बात ई बा कि केन्द्र सरकार हमरा सेे टेढ़ नजर राखेले आ ओकरा जब मोका मिली हमार सरकार के बरखास्त कइके राज्यपाल के देख-रेख में ओट करवाई. तब जरूरी नइखे कि जवन हमनी के चाहबि जा तवने होई. अगर दोसर सरकार आई त एह धन के लुकवावल मुश्किल हो जाई.’

एका-एक जइसे सब नींद से जागल आ आपन माथा पीट के लगभग समवेत आवाज में बोलल लोग कि ई बात त हमनी के समझिए न पवनी हा जा.’

‘अब समझि में आ गइल होखे त रउआ सब एह धन के सुरक्षित करे के कवनो उपाई बताईं.’

बइठक में चुप्पी छापी लिहलसि. सब आपन-अरपन दिमाग खपावे लागल. लगभग पनरह मिनट के चुप्पी के बाद नेताजी के नीजि सचिव बोलले कि - ‘श्रीमान एगो उपाई बा कि ओह धन के अधिकांश हिस्सा सफेद बना दिहल जाई.’

‘लेकिन एह में बहुते धन टेक्स में चलि जाइ.’ - कोषाध्यक्ष आपन चिन्ता प्रकट कईलन.

तले प्रदेश अध्यक्ष बोलले - ‘आ फेरू इ समस्या बा कि आतना धन आइल कहां से ? इ कइसे देखावल जाई ?’

‘इ समस्या के समाधान हमरा लगे बा. पहिले नेता जी तैयार होखीं तब !’

नेताजी कुछ सकुचइले, सोचले, फेरू मुह खोलले - ‘इ बात ठीक बा कि जब तक
हम्हनी के सरकार बिया जवन मन करऽता करत बानी जा. लेकिन काल्हू के देखले बा ? अगर बात टैक्स दिहला के बा त जेल गइला आ पइसा छिनइला से अच्छे नू बा. हमरा तहार विचार नीक लागत बा. तू आपन योजना के खुलासा करऽ.’

‘नेताजी के लगे जतना धन बा ओकर खुलासा करे के एगो उपाई बा कि आजुए से नेताजी पूरा प्रदेश के तूफानी दौरा करीं. हर बलाक, हर कस्बा, इहां तक कि हर गांव में सम्भव होखे त राउर कार्यक्रम लागे. ओह पार्टी में कार्यक्रम में इ पहिले से घोषणा होखे कि रउआ पाटी के लोग रउआ के चन्दा दी. उ चन्दा त नाम मात्र के रही. रउआ चाहीं त मंच से लाखन रूपया के घोषणा करि सकेनी. आ फेरू दू महिना बाद राउर जन्मदिन बा. ओह जन्मदिन में राउर पार्टी के विधायक, मंत्री, जिलाध्यक्ष आदि से चन्दा मांगी. चन्दा मिले कम ओकर सरकारी घोषणा अधिक होखे. इ अब राउर मर्जी कि रउआ कतना के टैक्स देत बानी आ फेरू उपहार के देता, कतना देता, एकर हिसाब के राखेला ?‘

इ कहि के निजी सचिव विजई मुद्रा में सबके देखले. सब हल्का सा मुसुकाइल आ सबके नजर नेताजी पर टिक गइल. नेतोजी मुसकइलें.

सब कुछ ठीक हो गइल. एह काम में ध्यान देबे वाली बात ई रहे कि नेताजी के देशभक्ति मुअल ना रहे. एकर प्रमाण इ रहे कि उ अउरी लोगन नियर आपन धन ‘स्वीस’ बैंक में ना रखले. नेताजी के ई एहसान देश पर हमेशा रही.
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डॉ श्रीप्रकाश पाण्डेय,
एमए, पीएचडी, त्रिकालपुर,
रेवती, बलिया, उ.प्र.

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

रविवार, 15 दिसंबर 2024

परबतिया

कहानी

परबतिया

- डॉ जनार्दन राय

भोर होत रहे. मुरूगा बोलल - कुकू हो कू. लाली राम बाबा का इनार पर नहात खाने गवलनि - ‘प्रात दरसन दऽ हो गंगा, प्रात दरसन दऽ’. भोर का भजन में मस्त लाली के गवनई खाली उनहीं के ना, चिरई-चुरूंग, जड़-चेतन, मरद-मेहरारू सभकरा दिल में पइठि के गुदगुदी पैदा कइ दिहल करे. लाली गिरहथ रहलन. उनुकरा गांव का लन्द-फन्द से कवनो ढेर मतलब ना रहे. दिन में मजूरी आ सांझि खानेे नहा धो के अक्सर गावल करसु -

‘कह कबीर कमाल से, दुइ बात लिख लेइ.
आये का आदर करें, खाने के किछु देइ.’

कबीर कमाल से आ हम उनहीं का बाति के दोहासत बानीं - ‘जे केहू दुवारे आवे, ओके इजति से बइठाईं आ जवने नून रोटी बा, सिक्कम भर पवाईं.’ एह बानी के जे मानी, ओकरा पानी के रइछा परवर दिगार काहे ना करिहे !

एक दिन भोर में लालीबोे पिछुवारा से लवटला का बाद अपना पतोहि से कहली - ‘ए दुलहिन! दुअरिया में डोर बा, गगरिया लेइ के तनी इनरा से लपकल पानी ले ले आव, नाहीं त काली माई के छाक देबे में देरी हो जाई. कहिये के भरवटी ह, आजुले अबहीं पूरा ना भइल.’

का जाने काहें दो, ओह दिन उ असकतियात रहली बाकिर सासु का हुकुम के टारल उनुका बस के बाति ना रहे. डोर कान्हि पर, गगरी करिहांन पर धइ के चलि दिहली. गोड़ लपिटात रहे, पुरूवा के पिटल देहिं, पोर-पोर अंइठात रहे. लसियाइल त रहबे कइल बाकिर कवनो ढेर फिकिर ना रहे काहे कि उनुका पेट में भगवान के दिहल फूल अब विकास पर रहे. गोड़ भारी भइ गइल रहे. सासु का चुपे-चुपे कबो-कबो करइला के सोन्ह माटी जीभि पर धइ के सवाद लेइ लिहल करसु. जीव हरदम मिचियाइल करे. सासु एहपर धियान
ना देसु. बाकिर एक दिन रहिला में से माटी बीनि के दुलहिन अपना फाड़ में धरत रहली, एके लाली बो देखि लिहली आ पूछली, ‘काहो दुलहिन, कवनो बाति नइखे नू?’ एतना सुनते घुघुट काढ़त तनिकी भर मुसुकाई दिहली. पतोहि के हंसल आ संगही लजाइल चुप्पी संकार लिहलसि कि किछु न किछु बाति जरूर बा.

भइल का कि डोर में गगरी के मेहंकड़ फंसाई के इनार में लटकाइ के पानी भरल गगरी जेवहीं खिंचे के मन कइली, मूस के कुटुड़ल डोरि भक् से टूटि गइल. गगरी इनार में आ देहि जगति से भुइंया गिरि के चारू पले परि गइल. आंखि ताखि टंगा गइल. मुंह प एगो अजबे पियरी पसरि गइल. कुल्ला गलाली करे आ किछु लोग पानी खाति इनार पर जुटे लागल रहे बाकिर अबहीं मजिगर भीड़ ना रहे. जेतने रहे अरहि अरहि, हाय हाय करे खातिर कम ना रहे. बड़इया बो बड़ फरहर मेहरारू रहे. चट देने लाली का पतोहि के मुड़ी जांघि पर धइ के सुहरावे लागलि. मीजत, माड़त, सुहुरावत कवनो देरी ना लागल.

दू-तीन पहर में उनके देहिं कौहथ में आ गइल, तबले लालीबो पहुंचली आ कहली कि - ‘का ए दुलहिन, एनिये आके ई कवन मेला लगा दिहलू हऽ, तह के कवनो काम भरिये हो जाला.’ तले बुढ़उ कहलनि - ‘ना चुप रहबू, देखते बाड़ू की पतोहि जगति पर से ढहि के बेहोस परल बिये आ तूं अपना मन के पंवरी पसरले बाड़ू.’ एतना सुनते लाली बो हक्का-बक्का हो गइली आ रोवते में रागि कढ़वली - ‘बछिया हो, बछिया.’ तले फेरू बुढ़उ डपटलनि. लाली बो सिट्ट लगा गइली. उ चुप त जरूर हो गइली बाकिर कोंखि में परल फूल
के ले के चिन्ता गरेसले रहे, जवन कहे लायेक ना रहे बाकिर पतोहि के लूर सहुर गुन गिहियांव आ पानी खातिर अर्हवला के ले के लाली बो भितरे-भीतर कुंथत रहली. ना किछु कहिये जा ना रहिये जा. संपहवा बाबा, राम बाबा, सकड़ी दाई, काली माई, गंगाजी, सातो बहिनी, सत्ती माई, सभकर चिरउरी मिनती भइल. किछु देरी का बाद बड़इया बो कहलसि - काहो? देहिं काहें छोड़ ले बाड़ू? तनी टांठ होखऽ. हिम्मत बान्हऽ. देखते बाड़ू कि सासुजी छपिटाइ के रहि गइल बाड़ी . एतना सुनते पतोहि लमहर सांसि लेइ के
कहलसि - ‘ जिनि घबराईं, काली का किरिया से किछु ना होई. नहाईं, धोईं. छाक देईं, सब ठीक बा.’

पतोहि घरे गइल आ लाली बो ओह दिन भुंइपरी क के परमजोति का थाने गइली. सांझि सबेरे मनवती - भखवती होखे लागल. पियार से पखाइल, सनेह से संवारल, चूमल-चाटल देहि देखे लायेक हो गइल. सुख के दिन सहजे सवरे लागल. दुख बिला गइल. दिन बीतल देरी ना लागे. एक दिन उहो आइल जब भोर में लाली बो के पतोहिं का कोंखि से लछिमी के जनम भइल. धूमन बाबा बीतल बातिन के त बतइये देसु, अगवढ़ के जेवन फोटो खींचस उ साल छव महीना में साफे झलके लागे. एसे उनुकर मोहल्ला में बड़ा इज्जत अबरूह रहे. उहां का ए कदम साधु मिजाज के असली फकीर रहलीं. का मियां-हिंदू, ठाकुर-ठेकान, बाम्हन-भुइहार, धुनिया, नोनिया, कमकर, कुर्मी, कोहार, सभकर भला मनावल उहां के सहज सुभाव रहे. पूख नछत्तर में जनमल परबतिया अब धीरे-धीरे दिने दूना रात चउगुना संयान होखे लागल. किछु बूझल, समुझल, समुझावल आ अपना बेहवार से दूसरका के खुस कइ दिहल ओकरा खातिर सहज बाति रहे.

टोल, महाल, आपन, पराया, घर-दुवार सभ के अपने बूझे. अब अइसनों दिन आइल जे एकरा से थाना, पुलिस, पियादा, सभ केहू थहरा जा. थथमि जा. पढ़ि-लिखि के परबतिया परिवार के चौचक बना दिहलसि. माई-बाबू, घर-गांव, सभकरा संगे रहते परबतिया कविता करे के सीख लिहलसि. समाज में इज्जत के डंका बाजि गइल. एक दिन गांव के परधानों बनि गइलि. मुखिया, हाकिम-हुकाम सभे केहू आवे लागल. कविताई का ललक में एक दिन ‘परबतिया’ परानपुर का पोखरा पर बनल इसकूल का कवि सम्मेलन में चलि गइल आ सुर-साधि के गवलसि -

हमरे सिवनवां में फहरे अंचरवा,
फहरि मारेला हो, लहरि मारेला!

एतना सुनते ‘परबतिया’ का आंचर पर मुखिया जी के क्रूर नजर परि गइल आ ओही दिन से ओके धरे बदे कवनो कोर कासर ना छोड़लनि. गोटी बइठावे लगलन आ अइसन बइठल कि मुखिया जी एक दिन मंत्री बनि गइलन. अब ‘परबतिया’ पर डोरा डाले में चार चान लागि गइल. दिन-दिन परबतिया बढ़े लागल. रूप, गुन, जस, पद, मये में विस्तार होखे लागल. ‘परबतिया’ गांव में सड़क बनावे बदे एक दिन मंत्री जी का बंगला पर चढ़ि गइल. ‘परबतिया’ आखिर मेहररूवे न रहे. रूप गुन रहबे कइल. जाने-अनजाने ‘परबतिया’ मंत्री का कामातुर हविश के शिकार हो गइल. लोभ-लालच में उ किछु ना कहलसि. कुंवार मंत्री जी बियाह के प्रस्ताव दे के ‘परबतिया’ के घपला में रखले रहि गइलन. पेट में परल बिया जामे लागल. जइसे-जइसे दिन बीते लागल चिंता बढ़े लागल. एक दिन परबतिया हिम्मत बान्हि के बियाह वाला प्रस्ताव के रखलसि. मंत्री जी टारे लगलनि आ एक दिन उहो आइल जब उ अपना परबतिया का पेट में परल पाप के छिपावे बदे पोखरा में अपना गुरूगन से जियते गड़वा दिहलनि.

लइका, बूढ़, जवान, पुलिस, पियादा, गांव, जवार सभ जानल एह कांड के. बाकिर मंत्री जी का डर से केहू सांसि ना लिहल. उनुकरा पेशाब से दिया जरेला. डर का मारे अइसन जनाला कि हवो थाम्हि जाई. नीनि में परल परान कबो-कबो अइसन चिहुकेला जइसे केहू झकझोरि के जबरिया जमा देले होखे. जिम्दारी टूटि गइल. देस अजाद हो गइल. सभ केहू अपना घर-दुआर के मलिकार हो गइल. कहे सुने के अजादी हो गइल. बाकिर ई नवका करिक्का अंगरेज फफनि के बेहया लेख एतना जल्दी पसरि गइलनि स कि किछु कहात नइखे.

सुराज जरुर मिलल, बाकिर एह बदमासन का चलते आम आदमी का जिनिगी में कवनों बदलाव नइखे लउकत. हमरा परोस का परबतिया अइसन गंवईं के लाखन गुड़िया, धनेसरी, तेतरी, बहेतरी, अफती, लखनवती, लखिया, हजरीआ रोज रोज बदमासन के हविश के शिकार हो रहल बाड़ी स. बाकिर मंत्रीजी का तुफानी हवा का आगे गरीबन क बेना क बतास का करी? शासन पर काबिज बदमाश, थाना पर मनियरा सांप लेखा फुुंफुकारत थानेदार, पाजी पियादा, नशा में मातल मंत्री, इसकूल में बदहवाश मुदर्रिश, बेहोश वैद जीप कार के नसेड़ी डरेबर, केकर-केकर बाति कहीं, सभे कहूं कवनो अनहोनी का डर से चुप्पी सधले बा. नाहीं त सुपुटि के जीव चोरावत बा. अइसना बदहाली में केहू किछु कह ना पाई, बाकिर हमरा इत्मीनान बा कि अइसहीं मनमानी-बेवस्था ना चली. एक न एक दिन बदलाव जरूर आई.

पितरपख का निसु राति में पोखरा का जलकुंभी से कबो-कबो छप्प-छप्प क सबद सुनाई परेला. कबो-कबो त एको जनमतुआ निराह राति में पहर-दू-पहर भर केहां-केहां करेला. अइसन बुझाला कि ओह जनमतुवा के चुप करावे बदे परबतिया पुरूवा हवा का पंख पर चढ़ि के मंत्री जी से बदला लेबे खातिर छिछियाइल फिरेले. जब भोर होखे लागेला त जनाला कि जनमतुआ थाकि के सुति गइल आ परबतिया एक दम शांत भाव से लिखल चिट्टी पढ़ि-पढ़ि के सुनावे लागे ले -

प्रिय मंत्री जी!
याद बा नू उ दिन जब आप हमरा संगे..... वादा कइले रहलीं कि सूरूज एने-ओने भले हो जइहें, चान भलहीं टसकि जइहें, ध्रुवतारा खिसकि जाई, गंगा के धार बदल जाई, बाकिर हमार पियार अमिट रही, अमर रहि. का उ दिन भुला गइलीं ? हम आपे का इंतजारी में पोखरा का कींच-कांच, पांक पानी में परल बानीं. का होई ए देहि के ? का होई एह अबोध जनमतुआ के ?

ई का बिगरले रहे जे एके आप एह दिन के देखवलीं ? आप याद राखीं अर्जुन का बेटा का माथे मउर ना बन्हाई, कर्ण के कवच भलहीं कवनों कामे ना आई, बाकिर आप इहो
समुझि लेइब कि कबुर का आह से उपजलि आग में पूंजीवादी बेवस्था जरि-जरि के राखि हो जाई आ माथ के मुकुट गंगा का अरार लेखा भहरा के मटिया मेट हो जाइ. देस समाज गांव गंवई के बेवस्था चोटी से ना चली. इहो जाने के परी की शासन वेवस्था में लागल अदीमी के लंगोटी के बेदाग राखे के पारी आ बेदाग ना रही त झंउसहीं के परी.

आपे के परबतिया

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- डॉ जनार्दन राय,
काशीपुर नई बस्ती, कदम चौराहा,
बलिया - 277 001

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)
 

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

आपन आपन सोच

 कहानी

आपन आपन सोच


- डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय



ई समाचार पूरा जोर शोर से फइलल. बाते अइसन रहे जेकरा से पूरा प्रशासन में  हड़कम्प मचि गइल. मउअत, उहो भूखि से, ई  त प्रशासन के नाक कटला के बराबर बा.  उहो ई खबर अखबार में निकलल रहे कि सुरखाबपुर में एक आदमी खाना के अभाव में  तड़प-तड़प के दम तुरि देले बाड़न. बात  अतने रहित त कुछ पूर परीत. बात एकरा से  आगे ई रहे कि उ आदमी दलित रहलन. ईंहा ई धियान देबे वाली बात बिया कि अउरी जात  रहित त कुछ कम बवाल होइत. लेकिन एहिजा  बात दलित के रहे, से हर राजनीतिक पार्टी  आपन-आपन रोटी त सेकबे करीत. कई पार्टी  के नेता दलित के सुरक्षा के ठीक ओही तरे आपन मुद्दा बना लिहले जइसे पाकिस्तान काश्मीर के आपन  मुद्दा बना लेले बावे. बड़-बड़ भाषण होखे लागल. सरकार पर  कई गो आरोप लागल. डी.एम. से लेके  चपरासी तक ओह दलित के परिवार के  सहायता करे के होड़ मचा दिहल. तुरन्त  जतना जेकरा बस में रहे सहायता के घोषणा  कइल. केहू ओकर लइकन के पोसे के  जिम्मेदारी लिहल, केहू घर बनवावे के. कहीं  से जमीन के केहू पट्टा लिखवा दिहल, त केहू  नगद सहायता दिहल. सरकारी मंत्री जी अइले  त घोषणा कइलन कि केहू के भूख से मरे ना  दिहल जाई. आ उहो सरकार के तरफ से  ओह दलित परिवार के चढ़ावा चढ़वले. सब  कुछ हो गइल. एह बीचे सब इहे सोचल कि  इ मुद्दा कइसहुं दबि जाई. ई केहू ना सोचल  कि आखिर ई भूख से मरे के मउवत कहां से आइल. खैर हमहूं अगर सरकारी कर्मचारी  रहितीं त सोच के कवनों जरूरत ना रहित.  हम त एह मामला के दबइबे करितीं. लेकिन  ई मौत टाले के कई बरिस से प्रयास करत  रहनी लेकिन उहे भइल जवन ना होखे के  चाहीं.

एह मउवत के बिया बीस बरिस पहिले  बोआ गइल रहे. जब चउदह बरिस के उमिर में  रामपति के बिआह बारह बरिस के सुनरी के  संगे तई भइल. चुंकि रामपति हमरा उम्र के  रहले त हम उनुका के जानत रहनी. उनका  बिआह के समाचार सुनि के हमरा बड़ा दुख  भइल. एह खातिर ना कि उनुकर बिआह चौदह बरिस में होत रहे बलुक एह खातिर कि उनुकर  बिआह हमरे उमिर के रहल त होत रहे आ हमार अबहीं तिलकहरूओं ना आवत रहले स.

ई दुख जब हम अपना चाचा से सुनवली त उ  कहले कि ‘‘आरे बुरबक तोरा त पढ़ि लिखि  के बड़ आदमी बनेके बा. उ त चमड़ा के काम करे वाला हवन  सं. उन्हनी के कइसहू बिआह हो जाता इहे  कम नईखे. उन्हनी के जिनगी के इहे उद्देश्य  बा कि खाली कवनों उपाई लगा के बिआह  कईल. अउरी भेड़-सुअर अइसन लईका  बिआ. एह से इ फायदा होई कि उन्हनी के  परिवार बढ़ि त लोकतन्त्र में पूछ होई.’

सुनरी के बारह साल के उमिर अउरी  ओह पर पियरी से जइसे देहि सूखि गइल होखे  ओह तरे बिना हाड़-मांस के काया बिआह के  बाद तुरन्ते गवना आ गवना के पनरह दिन  बाद उ खेत में काम करे पहुंच गइल. रामपति  कवनों पहलवान ना रहले. अभी त पाम्हीं  आवत रहे. लेकिन शरीर के भीतर अबहीं बीर्य  पूरा बाचल रहेे अउरी एहकर फायदा उ सुनरी  के देहि से एह तरे उठवले रहले जइसे केहू उखिं के चूसत होखे. लगातार पनरह दिन के  रउनाईल अउरी उपर से खेत में काम करे के  परि गइल. लाख कोशिश करत रहली, काम  ठीक से नाहिए होखे. एगो त मासूम कली  उहो रउनाईल. ओकर स्थिति देखि के हम  कहनी कि ‘‘तहरा से काम नईखे होत, तू घरे  चलि जा.’’ उ त शरमा के कुछु ना बोललसि  लेकिन ओकर सासू कहली कि ए बबूआ अगर  ई घरे चलि जाई त एकर मरद बेमार बावे  दवाई करावे के पईसा कहां से आई.’

‘बेमार बावे ? उ कइसे.’

‘इ बात तहरा ना बुझाई. बबुआ उ नान्ह  में बिआह होला त लड़िका अक्सर बेमार पड़ी  जालन स.’

‘काहे ? हमारा कुछु ना बुझाइल.’

‘तहार बिआह होई त समझि जईबऽ.’

आगे कुछु ना पूछि के हम चुप लगा  गइनी. लेकिन चमड़ा के काम करे वाला के लइका के बिआह होला  त काहे बेमार होलन स ई जानल जरूरी रहे.  ई बात हम चाचा जी से पूछनी त उ जवन  बतवले ओकर सारांश इहे रहे कि उन्हनी के  कम उमिर में बिआह होला. अउरी उ बिआह  के बाद के काम करे खातीर पूरा परिपक्व ना  होलन स एह कारण बेमार होखल इ कवनों  नया बात नईखे.

‘एहकर छुटकारा नईखे चाचा जी.’

‘बा बेटा’

‘उ का ?’

‘उ इ कि जेतना जनता अशिक्षित  बिआ उन्हनी के शिक्षित कइल जाउ. ई  बतावल जाउ कि बिआह के सही उमिर का  बावे तब जाके उ बिआह करऽ सँ.’

‘त ई कम उमिरे उन्हनी के बेमारी के  जरि बिया ?’

‘हं बेटा, एहि से हम तहार बिआह ना  कइनी हा. नाहिं त तहरो उहे हाल होईत.’

हम शरमा के इहे कहि पवनी - ‘चाचा  जी !’

बिआह के एक साल में एगो, तीन साल  में  दूगो,  साढ़े चार साल में तीन गो, छव साल में  चार गो, जब रामपति से सुनरी के लईका  हो गइल, त हम रामपति से कहनी -‘एगो त  तहार कम उमिर में बिआह हो गइल. अब  अतना जल्दी-जल्दी लइका होखी त कइसे  चली. आखिर त उन्हनी के पोसे में खर्चो  त  लागि.’

‘रउआ ओके का चिन्ता बा ? उ जनम  लेत बाड़न स त केहू के कई-धई के जीहन  स.’

‘लेकिन सोचऽ ओह में से एकहू आदमी  बनि पइहन स ?’

‘ई रउआ ठीक कहऽतानी. आदमी त रउरे सभे हईं. काहे से के रउआ बड़ आदमी नू हईं.'

 ‘ना हमार कहे के इ मतलब नईखे. हम  कहऽतानी कि कम रहितन स, पढ़ितन स आ,  ओह से आगे चलि के अच्छा जीवन जीअतन  स.’

‘रहे दीं-रहे दीं. हमनी के लगे कवन धन,  सम्पति बा. अगर भगवान अपना मन से संतान  देत बाड़न त ओह में राउर का जाता ?’

 रामपति आगे बहस के कवनों गुंजाइस ना  छोड़लन. बियाह के अठवां साल में पांचवा, दसवां  मे छठवां, अउरी बारहवां में सातवां लईका जब  सुनरी के भइल त उ ठीक ओही तरे हो गइल  जइसे पीयर आम हो जाला. रामपति त टी.बी के मरीजे हो गइलें. उनकर माई भोजन के  अभाव में पहिलहीं मरि गइल रहली. अब घरे  कमाए वाला केहू ना रहे. लईकन के केहू  खाए के कही से कुछ दे दीहल त ठीक, ना  त उ छोटे-छोटे लइका भूखे रहि जा स.  उनकर घर में टूटही पलानी अउरी एगो टूटही  खटिया के अलावा अगर कुछ रहे तो एगो  दूगो माटी के बरतन. आ ओकर हकीकत  बयान करत दरिदरता. एह बीचे एक दिन हम रामपति के घरे  एह दया के साथ गइनी कि उनका खातीर कुछ  दवा-दारू के बेवस्था कर दीं. घर में घुसते  खांसी के आवाज सुनाई दीहल. एक ओर  टूटही खटिया पर रामपति खांसत रहले. उनकर  मेहरारू लगे बइठल रहली आ उनकर चार पांच  गो
लइका पोटा-नेटा लगवले एकदम लगंटे आसे-पास अपने में अझुराइल रहले स.

रामपति के देखि के हम कहनी - ‘का हो रामपति, का हाल बा ?’’

रामपति हमरा किओर देखलें अउरी कहलें  - ‘रउआ व्यंग करे आइल बानी कि हमार हाल  पूछे ? रउआ सब के हमनी के खाइल पहिनल  त नीक नाहिए लागेला, भगवान दू चार गो  सन्तान दे देले बाड़न त रउआ सब के जरे के  मोका मिल गइल.’

‘हमार मतलब उ नइखे. हम त तहार  कुछु मदद कइल चाहऽतानी.’

‘धनि बानी रउआ आ राउर मदद. हमरा  केहू के मदद ना चाहीं.’ रामपति आपन मुंह  हमरा  ओरि से फेर लिहले.

‘तू सोचऽ. अगर तहरा कुछु हो गइल त  तहरा लइकन के का होई ?’

‘होई का ? जइसे भगवान देले बाड़न  ओहिसहीं जिअइहन. लेकिन रउआ चिन्ता मति  करीं.’

एही बीच उनुकर एगो लइका सुनरी के लगे  रोअत आइल अउरी कहलसि - ‘माई-माई खाए  के दे. भूखि लागल बा.’

‘हम कहां से दीं ? घरे बावे का ?’ -  सुनरी आपन दुख प्रकट कइली लेकिन उ  लइका रिरिआ गइल. नतीजा इ निकलल कि  ‘द खाएके’ मांगे के सजा चार पांच थप्पर खा  के भुगतल. ई घटना से हमरा ना रहाइल.

 हम पूछनी - ‘का हो रामपति, का एहि खातीर  उन्हनी के जनमवले बाड़ऽ ?’

‘रहे दीं. रहे दीं. रउरा जइसन हम बहुत  देखले बानीं. रउआ सब दोसरा के दुख देखि  के खूब मजा लेनी.’ -  रामपति के बोले  से पहिले सुनरी फुंफकार दिहली.

हम त घरे चलि अइनी लेकिन ओही  सांझ रामपति मरि गइले. ओकरा बाद सरकारी  आदमी अउरी राजनीतिक पारटीयन के नौटंकी  शुरू हो गइल. ऐह में जवन भइल उ देखि  के हम इहे सोचनी कि सुनरी आ रामपति के  परिवार अनुदान के ना सजा के पात्र बा. अगर  हमनी के इहे हाल रही ज देश के विकास  अउरी जनसंख्या कम करे के सपना अधूरा रहि  जाई.

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डॉ.श्रीप्रकाश पाण्डेय, एम.ए., पी.एच.डी
ग्राम - त्रिकालपुर, पो.- रेवती, जिला - बलिया

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)