कहानी
एहसान
- डॉ श्रीप्रकाश पाण्डेय
इ बइठक साधारण ना रहे. सत्ताधारी पार्टी के मुखिया अउरी उनुकर सब विश्वासी लोग बड़ा गम्भीर मुद्दा पर बातचीत करत रहे लोग. वइसे त उनुकर सरकार चार साल से चलत रहे अउरी पांचवा साल में चुनाव होखे के रहे. समस्या इ ना रहे कि चार साल में सरकार के काम काज निमन रहे कि बाउर, समस्या इहो ना रहे कि अगिला साल ओट में जीत मिली की हार. समस्या इ रहे कि अगर नेताजी फेरू मुख्यमंत्री ना बनब त का होई ?
इ समस्या मुख्यमंत्री के विश्वासी लोगन के सेहत से कवनो सम्बन्ध ना राखत रहे. इ त नेताजी के ‘परसनल’ समस्या रहे. लेकिन विश्वासी चमचवनी के आपन विचार व्यक्त करे के मोका मिलल रहे त उ बड़ा गम्भीर मुद्दा बनवले रहले स. जइसे कि सामने प्रलय आवे वाला होखें अउरी इ ओह प्रलय से बचाव के राहता खोजत होख स.
एह बैठक में पांचे आदमी रहले. एगो खुद नेताजी, जवन चार साल से प्रदेश के मुख्यमंत्री रहलन, दोसरका उनुकर हमजात व्यक्तिगत सचिव. तीसरका उनुकरे पार्टी के कोषाध्यक्ष. चउथका उनुका पाटी के प्रदेश अध्यक्ष आ पांचवा उनुकर भाई, जे अभी पनरह दिन पहिले एगो मेहरारू के बलात्कार अउरी ओहकर हत्या कइला के बादो मजा से घुमत रहले.
चार साल के सरकार चलवला में प्रदेश बीस साल पीछे चलि गइल रहे, इ उन्हन लोग खाती कवनो समस्या ना रहे. चार साल में अपराध में तीन गुना विकास भइल रहे, इ ओह बैठक के कवनों मुद्दा ना रहे. चार साल में प्रदेश के बिजली, सड़क, स्कूल अउरी रोजगार के सब व्यवस्था तहस-नहस हो गइल रहे, इहो कवनों बड़ बात ना रहे. चार साल से प्रदेश में गुण्डा राज चलत रहे, एह बात के कवनों चिन्ता नेताजी के ना रहे. चार साल में कतना किसान आत्महत्या कइले रहले, इ कवनो समस्या ओह बइठककर्ता लोग के ना रहे.
चार साल में प्रदेश में जवन भइल, तवन प्रदेश के लोग के बरबाद करे वाला काम भइल. इ कवनो ध्यान देबे वाला बात ना रहे. चार साल में नेता जी के पार्टी के लोग जवन मन कइल तवन नेताजी के आदमी होखला के नाम पर कइल, लेकिन नेताजी के ओह से कवनो परसानी ना रहे. त फेरू परसानी काथी के रहे?
बइठक में मुख्यमंत्री के सचिव जी बोलल शुरू कइले - ‘जइसन की रउआ सब जानतानी कि अगिला साल ओट होखे वाला बा. इ जरूरी नइखे कि जनता हमहनी के जिताइए दी. काहें से कि लोकतन्त्र में जनता बे पेनी के लोटा होली स. आजू रउआ संगे बिया काल्हू केहू अउरी के संगे होई जाई. चुनाव में हार-जीत नेताजी के कवनों समस्या नइखे, काहें से कि ओकर ठीका बाहर के लोगन
के दिया जाई. ओह खातीर नेताजी आपना खास अधिकारियन के ड्यूटी में लगा देबि. आ फेरू चुनाव चार साल बाद बावे ओकर चिन्ता करे खातीर हमनी के नइखीं जा बइठल. जइसन की रउआ सब जानतानी कि नेताजी कतना गरीब परिवार से रहनी आ इहां के बाबूजी खेत में मजदूरी कइले.........’
‘चूप ना रह सचिव. तहरा से इहे पूछाता कि नेताजी के बाबूजी का रहनी ? उहां के उपर कइगो हत्या बलात्कार के केस बा ? तू मेन बात बताव.‘ - मुख्यमंत्री के सचिव के बात काटि के प्रदेश अध्यक्ष फूफकरले.
‘हमार इ मतलब नइखे. हम चाहतानी कि रउआ सब मए बात ठीक से समझि जाई.’
‘त तू ई कहल चाहतारऽ कि जे गरीब होला ओकर लइका मुख्यमंत्री ना होले स.’ - नेताजी के भाई गरम होई गइले.
‘तू चूप रहऽ. जब तक पूरा बात समझि में ना आवे तब तक कहीं टांग ना अड़ावल जाला.’ - नेताजी आपन भाई के समझवले.’ अब हमरे सब बात बतावे के परी. इ ठीक बा कि हमार जीवन खुलल किताब हवे आ ओकरा के रउआ सभे खूब पढ़ले बानी. फेरू हम ओह के दोहरा देत बानी.‘
नेता जी आपन कहानी बखान करे लगलें -
‘बात ई ओहिजा से शुरू होखल जब हम दस बरिस के रहनी आ मुन्ना दू बरिस के.’ - नेता जी अपना छोटा भाई के एहि नाम से पुकारत रहनी.
‘ओह दिन हम बेमार पड़ल रहनी आ माई-बाबूजी हमरा खटिया के लगे हमरा ठीक होखे के आशा लेके बइठल रहल लोग. तबियत में कुछ सुधार रहे तबे गांव के धनिक हमरा घरे अइले आ हमरा बाबूजी से कहलें कि का रे शिवधनिया, आजू का करत रहले हा कि काम प ना अइले ह ? ’
‘ओइसे त उ धनिक आदमी के उमिर हमरा बाबूजी से कमे रहे, लेकिन बाबूजी हाथ जोरी के कहले कि मालिक लइका के तबियत खराब रहल ह, ओहि बिपति में फंसि गइल रहनी हा. आतना सुनला के बाद उ धनिक कहले कि तोरा अपना लइका के फिकिर बा आ हमार काम के नइखे ?’
‘ई बात नइखे मालिक.’
‘त कवन बात बा ?’
‘मालिक हमार लइका............’
‘चूप. चलू हमरा संगे आजू ढेर जरूरी काम बावे.’
‘लइका के छोड़ि के ?’
‘हं.’
‘ना मालिक अइसन मति करीं.’
‘ते ना चलबे ?’
‘ना.’
‘बाबूजी के अतना कहते उनुकर लात-मुक्का से स्वागत शुरू हो गइल. उ तब तक ओह धनी आदमी के लाख प्रयास के बादो लात खात रहि गइले जब तक कि उ हांफे ना लागल.’ - ई कहि के नेताजी के आंखि डबडिया गइल. माहौल गमगीन हो गईल. आंखि पोछि के नेताजी फेरू शुरू हो गईलन -
‘हम पढ़े में तेज रहनी लेकिन पेट भरे के काम आ पढ़ाई एक संगे ना चलित. लेकिन तबो हम हिम्मत ना हरनी. दुख त एह बात के रहे कि उ आदमी अक्सर बाबूजी के मारे. एक दिन इहे होत रहे त उ हमरा से बरदास ना भइल आ लेहना
काटे वाली गड़ासी से ओह आदमी के गरदन काटि दिहनी. चौदह बरिस में पहिला खून. तब से कहां के पढ़ाई ! एगो ई धन्धे शुरू हो गइल खून करे के.
हमरा लगे एक से एक नेता लोग के बुलावा आवे आ हम उन्हन लोग के जीतावे के ठीका लीहीं आ आपना गिरोह के आदमी से बूथ कैप्चरिंग करा के जीतवाईं.
एगो समय अइसन आइल कि हमार जीतवावल चालीस पचास के करीब विधायक जीते लगलें. हमरा के पईसा, लईकी देबे के, आ कानून से बचावे के काम ओहि नेतवन के रहे. लेकिन ई कब तक चलित. इ बात हमरा समझि में आ गइल कि हमरा जीतववला से इ विधायक मंत्री बनि सकेलन स त हम काहें ना ?‘
नेताजी कुछ देरि सांस लिहनी, बाकिर चारो आदमी एह रूप में नेताजी के बात सांस रोकिके सुनत रहे लोग जइसे कवनो जासूसी धारवाहिक देखत होखस लोग.
‘एकरा बाद जवन भइल ओकरा से रउआ सभ परिचित बानी. अब हम मेन बात पर आवऽतानी. राजनीति में आके हम विधायक, मंत्री, आ मुख्यमंत्री तक पहुंच गइनी. मुख्यमंत्री के रूप में तबादला, कमीशन आ कई तरीका के गलत काम से हम अरबो रूपिया कमइनी. बस इहे रूपिया हमरा चिन्ता के जरि बा.
‘भइया हमरा तहार बात समझि में नइखे आवत रूपया तहरा के काहें परसान कईले बा.’ - मुन्ना कुछु ना समझले.
‘मुन्ना बात ई बा कि केन्द्र सरकार हमरा सेे टेढ़ नजर राखेले आ ओकरा जब मोका मिली हमार सरकार के बरखास्त कइके राज्यपाल के देख-रेख में ओट करवाई. तब जरूरी नइखे कि जवन हमनी के चाहबि जा तवने होई. अगर दोसर सरकार आई त एह धन के लुकवावल मुश्किल हो जाई.’
एका-एक जइसे सब नींद से जागल आ आपन माथा पीट के लगभग समवेत आवाज में बोलल लोग कि ई बात त हमनी के समझिए न पवनी हा जा.’
‘अब समझि में आ गइल होखे त रउआ सब एह धन के सुरक्षित करे के कवनो उपाई बताईं.’
बइठक में चुप्पी छापी लिहलसि. सब आपन-अरपन दिमाग खपावे लागल. लगभग पनरह मिनट के चुप्पी के बाद नेताजी के नीजि सचिव बोलले कि - ‘श्रीमान एगो उपाई बा कि ओह धन के अधिकांश हिस्सा सफेद बना दिहल जाई.’
‘लेकिन एह में बहुते धन टेक्स में चलि जाइ.’ - कोषाध्यक्ष आपन चिन्ता प्रकट कईलन.
तले प्रदेश अध्यक्ष बोलले - ‘आ फेरू इ समस्या बा कि आतना धन आइल कहां से ? इ कइसे देखावल जाई ?’
‘इ समस्या के समाधान हमरा लगे बा. पहिले नेता जी तैयार होखीं तब !’
नेताजी कुछ सकुचइले, सोचले, फेरू मुह खोलले - ‘इ बात ठीक बा कि जब तक
हम्हनी के सरकार बिया जवन मन करऽता करत बानी जा. लेकिन काल्हू के देखले बा ? अगर बात टैक्स दिहला के बा त जेल गइला आ पइसा छिनइला से अच्छे नू बा. हमरा तहार विचार नीक लागत बा. तू आपन योजना के खुलासा करऽ.’
‘नेताजी के लगे जतना धन बा ओकर खुलासा करे के एगो उपाई बा कि आजुए से नेताजी पूरा प्रदेश के तूफानी दौरा करीं. हर बलाक, हर कस्बा, इहां तक कि हर गांव में सम्भव होखे त राउर कार्यक्रम लागे. ओह पार्टी में कार्यक्रम में इ पहिले से घोषणा होखे कि रउआ पाटी के लोग रउआ के चन्दा दी. उ चन्दा त नाम मात्र के रही. रउआ चाहीं त मंच से लाखन रूपया के घोषणा करि सकेनी. आ फेरू दू महिना बाद राउर जन्मदिन बा. ओह जन्मदिन में राउर पार्टी के विधायक, मंत्री, जिलाध्यक्ष आदि से चन्दा मांगी. चन्दा मिले कम ओकर सरकारी घोषणा अधिक होखे. इ अब राउर मर्जी कि रउआ कतना के टैक्स देत बानी आ फेरू उपहार के देता, कतना देता, एकर हिसाब के राखेला ?‘
इ कहि के निजी सचिव विजई मुद्रा में सबके देखले. सब हल्का सा मुसुकाइल आ सबके नजर नेताजी पर टिक गइल. नेतोजी मुसकइलें.
सब कुछ ठीक हो गइल. एह काम में ध्यान देबे वाली बात ई रहे कि नेताजी के देशभक्ति मुअल ना रहे. एकर प्रमाण इ रहे कि उ अउरी लोगन नियर आपन धन ‘स्वीस’ बैंक में ना रखले. नेताजी के ई एहसान देश पर हमेशा रही.
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डॉ श्रीप्रकाश पाण्डेय,
एमए, पीएचडी, त्रिकालपुर,
रेवती, बलिया, उ.प्र.
(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)