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शनिवार, 16 नवंबर 2024

भोजपुरी - एगो परिचय

आलेख

भोजपुरी - एगो परिचय


डॉ. राजेन्द्र भारती



‘‘भाषा भोजपुरी परिभाषा से पूरी ह 

बोले से पहिले एके जानल जरुरी ह

ना गवना पूरी ना सुहागन के चूड़ी ह

साँचि मानऽ त दुश्मन के गरदन पर

चले वाली छूरी ह

कहत घुरान बुरा मति माने केहू

सभ भाषा के उपर हमार भाषा भोजपुरी ह’’


भारत के एगो प्रान्त उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के बसन्तपुर गांव के कवि, लोकगीत गायक, ब्यास बीरेन्द्र सिंह घुरान के कहल इ कविता आजु केतना सार्थक बा एहकर अहसास तबे हो सकेला जब भोजपुरिहा भाई लोगन के आपन मातृभाषा भोजपुरी से नेह जागी. 


भोजपुरिहा सरल सुभाव के होखेलन, एह बाति के नाजायज फायदा सरकार हमेशा से उठावत आइल बिया.  आ हमनी के माडर्न बने का फेर में आपन मूल संस्कृति के भुलावल जात बानी.  हमनी से एक चौथाई भाषा संविधान का आठवीं सूची में दर्ज हो गइली स आ हमनी का टुकुर-टुकुर ताकते रह गईलीं जा.


आजु का तारीख में भोजपुरी करीब आठ करोड़ भोजपुरिहन के भाषा बा.  भोजपुरिहा लोग बिहार, उत्तर प्रदेश, आ छतीसगढ़ के एगो बड़हन क्षेत्र में फइलल बाड़न.  एकरा अलावे भारत का हर नगर महानगर में भोजपुरिहन के नीमन तायदाद बा.  ई लोग हर जगह भोजपुरी के संस्था कायम कके भोजपुरी के अलख जगवले बाड़न.  विदेशनो में भोजपुरिहा भाई पीछे नइखन.  मारीशस के आजादी के लड़ाई में भोजपुरी में आजादी के गीत गावल जात रहे. सूरीनाम, गुयाना, आ  त्रिनिडाडो में भोजपुरी के बड़ा आदर बा.  भोजपुरी बोलेवालन के संख्या आ सीमा विस्तार के देखल जाव त भोजपुरी एगो अर्न्तराष्ट्रीय भाषा लेखा लउके लागी.


भोजपुरी भाषा के कुछ अद्भुत विशेषता बा.  सही मायने में देखल जाव त ई व्यवसाय आ व्यवहार के भाषा ह.  एक मायने में भोजपुरी व्याकरण से जकड़ल नइखे बाकिर साहित्य सिरजन में धेयान जरुर दिहल जाला.  एह भाषा के ध्वनि रागात्मक ह. भोजपुरी भाषा में संस्कृत शब्दन के समावेश बा एकरा अलावे भारत के कईगो भाषा के शब्द आ विदेशी भाषा जइसे अंग्रेजी, फारसी आदिओ के शब्द  समाहित बा.


भोजपुरी भाषा में साहित्य के सब विद्या बिराजमान बा.  भोजपुरी लोकगाथा, लोकगीत, लोकोक्ति, मुहावरा, कहावत, पहेली से भरपूर बा.  वर्तमान में भोजपुरी साहित्य समृध हो गइल बा.  भोजपुरी के केतने विद्या आ विषयन पर शोध भइल बा आउर हो रहल बा.  केतने विदेशी लोग भोजपुरी के केतने विषय पर शोध करले बाड़न आ करि रहल बाड़न.  भोजपुरी के कइगो उत्कृष्ट पत्रिका पत्र प्रकाशित हो रहल बा.  केतने शोध ग्रन्थ, उपन्यास, कहानी संग्रह, कविता संग्रह, गीत, गजल संग्रह इहंवा तकले कि कइयों विद्यो के भोजपुरी में लेखन कार्य चलि रहल बा.


भोजपुरी भाषा के उत्थान खातिर देश में कइगों भोजपुरी के संस्था कार्यरत बा.  बिहार के विश्वविद्यालय में एम0ए0 तक  भोजपुरी में पढ़ाई चलि रहल बा.  रेडियों, टी0वी0 ओ भोजपुरी के अहमियत देता. भोजपुरिहा सरल स्वभाव के होलन, इनकर कहनी आ करनी में फरक ना होला.  ई आपन स्वार्थ के परवाह ना करसु.  बेझिझक मूंह पर जवाब देवे में माहिर होलन. 


भोजपुरी भाषी के देवी-देवता में शिव, राम, हनुमान, कृष्ण, दुर्गा, काली, शीतलामाई के विशेष रूप से पूजल जाला.  समूचा बिहार के लोग जहंवे बाड़न आ एकरे अलावे पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सा में छठ पूजा व्रत के प्रचलन बा.


भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भोजपुरी भाषी तन-मन-धन से लागल रहे लोग.  अंग्रेज विद्वान ग्रियर्सन भोजपुरिहा लोगन के उल्लेख ऐह तरे कइले बाड़न ‘‘ई हिन्दुस्तान के लड़ाकू जाति में से एक ह लोग.  ई सतर्क आ सक्रिय जाति ह.  भोजपुरिहा युद्ध खातिर युद्ध के प्यार करेलन.  ई समूचा भारत में फइलल बाड़न.  एह जाति के प्रत्येक व्यक्ति कवनो स्वतः आइल सुअवसर से आपन भाग्य बनावे खातिर तइयार रहेले.  पूर्वकाल में ई लोग हिन्दुस्तानी सेना में भरती होके मजबूती प्रदान कइले रहन.  साथहीं 1857 के क्रान्ति में महत्वपूर्ण भागीदारी कइले रहन.  लाठी से प्रेम करेवाला, मजबूत हड्डीवाला, लम्बा-तगड़ा भोजपुरिया के हाथ में लाठी लेके घर से दूर खेत में जात देखल जा सकऽता’’.


भोजपुरिया आपन जनम भूमि के प्रति बड़ा श्रद्धा राखेलें,  देश-विदेश कहीं होखस आपन सभ्यता ना भूलास.  कहीं रहस फगुआ चईता जरूर गइहें, अल्हाउदल के गीत जरूर होई.  सोरठी बिरजाभानू गावल जाई.  जनेउ, मुण्डन, तिलक, बिआह, छठिआर, ब्रत, तेवहार आ कवनो संस्कार के समय भोजपुरी के गीत गूंज उठेला.  भोजपुरिया लोग के तिलक, बिआह, व्रत-त्योहार भा कवनो संस्कार के एगो अलग पहचान बा.


मारिशस, गुयाना, सुरीनाम, त्रिनिडाड में भोजपुरी बोले वाला पुजाला.  आपन भोजपुरिया संस्कृति के बचाई, भोजपुरी बोली, भोजपुरी पढ़ी , भोजपुरी लिखी, भोजपुरी गाईं, भोजपुरी के अलख जगाई.


जय भोजपुरी, जय भोजपुरिहा. 


(डॉ राजेन्द्र भारती जी अंजोरिया डॉटकॉम के संस्थापक सम्पादक रहीं आ उहें के सहजोग से जुटल सामग्री से एकर शुरुआत भइल रहल. डॉ राजेन्द्र भारती जी बलिया शहर के कदम चौराहा पर होम्योपैथी के डॉक्टर रहीं. )


भोजपुरी के आत्म रचाव

 

भोजपुरी के आत्म रचाव



परिचय दास

हम बरिस बरिस से भोजपुरी में लिख रहल बानीं. एगो सर्जनात्मक कवि के रुप में एह भाषा के आत्मीयता के अनुभूति हमरा बा. हम जानीलें कि रचनाशीलता के समग्र आयाम अपना स्मृति बिंब के मातृभाषा में जेतना शम्भव बा, ओतना अन्य में ना. भोजपुरी हमरा अस्तित्व के संपूर्णता में संभव बनावेले. अंग्रेजी के दबाव के बीच एशियाई मन अपना अभिव्यक्ति के सहज मार्ग के सृजन में सन्नद्ध हऽ. वास्तव में भाषा के चुनाव अपना खातिर एगो दुनिया के चुनाव करे जइसन हऽ. ई योंही ना कि किसानन के आत्महत्या पर चार साल पहिलहीं हम अपना कविता के माध्यम से सब लोगन ले पहिले आपन मंतव्य प्रकट कइलीं. हमार कन्सर्न ओह पाठक या श्रोता से हऽ जहाँ हमार जड़ हवे. शायद संवेदना के तंत्री व सोझ संबंध भाषा के स्रोतस्विनी से हऽ. जब गरीब बदहाली से लड़ रहल होखें आ हमनी के सरजनात्मक विवेक व सक्रियता से विमुख हो जाईल जाँ तऽ हमनी के समूचे अध्ययन, विज्ञान व साहित्य के कवनो अर्थवत्ता नइखे. अपना अपना माध्यम से हम संवेदन के जागृत कर सकीलाँ. मनुष्यता के पक्ष में एतना कइल गइल अति आवश्यक बा. हमार शुरू से मत रहल हऽ कि साहित्य कें अंतःकरण समाज के उपनिवेश नइखे, ओकर संपूरक हऽ. साहित्य वोह तरह के प्रतिक्रिया ना देला, जइसन अन्य अनुशासन देलें. एही से साहित्य समय के अतिक्रांत कइला के क्षमता रखेला.

भोजपुरी के माध्यम से दोसरन के संदर्भ में हम स्वयं के तथा विश्व के संदर्भ में दुसरन के देवता के शक्ति विकसित करीलाँ. आज साम्राज्यवाद अपना पुरान रुप में ना, बल्कि बाजार के पतनशील शक्तियन के रूप में हऽ. यदि हम व्यक्ति व सामूहिक आकाई के रूप में देखीं तऽ समझे के पड़ी कि साम्राज्यवाद कौना भाषायी शकलमें आवेला आ हमार आत्मसंघर्ष कवन आयाम ग्रहण करेला. अपना आर्थिक व राजनैतिक जीवन की प्रक्रिया में कौनो समुदाय एक जीवन शैली विकसित करेला, जवन उप्पर से देखला वोह समुदाय के विलक्षणता से युक्त होला. समुदाय के लोग आपन भाषं, आपन गीत, नृत्य, साहित्य, धर्म, थियेटर, कला, स्थापत्य आ एक अइसन शिक्षा प्रणाली विकसित करेलें, जवन एगो नया सास्कृतिक जीवन के जनम देला. संस्कृति सौन्दर्यपरक मूल्यन के अवधारणा के वाहक होले.

भोजपुरिहा मनइन द्वारा खुद के संबंध के विश्व के साथे देखल जाइल कवनों यांत्रिक प्रक्रिया नइखे, जवन आर्थिक ढाँचा के माध्यम से राजनैतिक तथा अन्य संस्था के उदय के साथे व क्रमिक रूप से संस्कृति, मूल्य, चेतना आ अस्मिता के उदय के साथ सुव्यवस्थित चरण आ छलाँग में घटित होखे. संघर्षशील वर्ग आ राष्ट्र खातिर शिक्षा मुक्ति के उपकरणो हऽ. ई परस्पर विरोधी संस्कृतियन के बीच अपना विवेकशील विश्वदृष्टि के वाहकऽ. पश्चिमी किसिम के सभ्यता, स्थिरता आ प्रगति के बिल्कुल वोही रुप में स्वीकार कइला के चेष्टा अंततः भोजपुरी मानस के आपन उपनिवेश बना लेई. अपना जड़ के महत्ता बचा के राखे के चाहीं.

ई हम बिल्कुल ना कहि सकीलाँ कि हमार भोजपुरी कविता खाली कवियन खातिर बा. ई सही हऽ कि हम एगो कवि के रूप में जी लाँ, बाकिर सिरिफ कवि के रुपे में ना. हमरा मन में एक संवेदनशील मनुष्य के समता मूलक समाज के कल्पना हऽ, किन्तु हमार साहित्य नारा नइखे. सर्जनशीलता कऽ हेतु अंततः संवेदना व चेतना हऽ. निवासी व प्रवासी के रुप में भोजपुरी लोग समूचा विश्ववितान रचले बाड़न. मारिशस में अपना खून पसीना से गंगा व ओकर संस्कृति रचले बाड़न. सूरीनाम, नेपाल, गुयाना, त्रिनिडाड, फिजी, दक्षिणी अफ्रीका इत्यादि देशन में अपना श्रम से पुष्प खिलवले बाड़न्.

हम सभे जानी लाँ कि उधार लीहल भाषा आ दुसरन के अंधानुकरण से अपना साहित्य आ संस्कृति रचल विकसित कइल संभव नइखे. हम भाषाइ रुप से कब्बो कट्टर नइखीं जा. लाजे से कि हमनी के मानल ई हऽ कि भाषा आ साहित्य के बीच सांवादिकता बनल रहे के चाहीं. अपन वाचिक आ लिखित परंपरा के गर्भ से रत्न उत्खनन खातिर अब तऽ चेष्टाशील होइये जाये के चाहीं. संस्कृति के विविध क्षेत्रन में पुनर्जागरन के अगाध सृष्टि होखे के चाहीं. भाषा के भण्डार विज्ञान, दर्शन, तकनीक व मनुष्य के अन्य प्रयासन खातिर खोलल आवश्यक हऽ. शब्द कौतुक एक कला हऽ, किन्तु संस्कृति के प्रवाह शब्दन में मात्र अमूर्त सार्वभौमिकता से संभव नइखे. यदि हमनी के वास्तव में चाहऽतानीं जा कि हमनि के शिशू व हमनी के स्वयं के अभिव्यक्ति के लय प्रकट होखे तथा प्रकृति के साथ हमनी के रचाव के संवर्द्धन होखे तऽ मातृभाषा के सर्जना पर बल आवश्यक हऽ. ई कार्य अंधविचार से परिचालित ना होखे के चाहीं. अपना भाषा आ परिवेश के बीच स्थापित सामंजस्य के प्रस्थान बिंदु मान के दूसरो भाषा सीखल जा सकल जालीं. अपन भाषा, वय्क्तित्व आ अपना परिवेश के बारे में कौनो ग्रन्थि पलले बिना अन्य साहित्य व संस्कृति के मानवीय, लोकपरक व सकारात्मक तत्व के आनंनद उठावल जा सकल जाला. अपना व विश्व के दुसरा साहित्य भाषा से हमनी के रिश्ता रचनात्मक होखे न कि दबाव भरल या उपनिवेश परक. अंततः हमनी के अपन स्मृति व बिंब के सार्थक आधार अपने भाषा में संभव हऽ. समकालीन चिंतन व भंगिमा के अपना माध्यम से जेतना प्रकट कइल जा सकल जाला, अन्य से ना. एही से ई समकाल के भी उचरला के विशिष्ट पथ हऽ. वईसहूँ, परम्परा आ समकालीनता के बीच स्वस्थ संबंध होखे के चाहीं, जवन मूल से ही संभव हऽ.

भोजपुरी के संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल कइल न केवल शब्दिक बिंब के रूप में आत्म व जनसंघर्ष के रचनात्मक चेतना के स्वीकृति हऽ, अपितु संसकृति के आत्म पहचान भी. एसे गर्भ ले चहुँपि के रत्न के उत्खनन के संभावना अउरी प्रबल होखी.

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परिचय दास : एक परिचय

जन्मस्थान :

ग्राम : रामपुर काँधी देवलास,
तहसील : मुहम्मदाबाद, गोहना,
जनपद : मऊ.

साहित्य-संस्कृति खातिर 1996 में भारतीय दलित साहित्य अकादमी के सम्मान से सम्मानित.
साहित्यकार, भोजपुरी लोकगायक, चित्रकार, नाट्यकर्मी. संस्कृति-चिन्तक.

हिन्दी में प्रथम श्रेणी से एम॰ए॰ कईला का बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय से यूजीसी के फेलो रहत पीएच॰डी॰ उपाधि प्राप्त. भोजपुरीमें पाँच गो कविता-संग्रह पहिलहीं प्रकाशित हो चुकल बाड़न, जिनकर शीर्षक बा -
एक नया विन्यास (2004)
पृथ्वि से रस लेके (2006)
चारुता (2006)
युगपत समीकरण में (2007)
संसद भवन की छत पर खड़ा हो के (2007)

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार डा॰सीताकान्त महापात्र के सर्जनात्मकता पर केन्द्रित "मनुष्यता की भाषा का मर्म" आलोचना पुस्तक संपादित (सन 2000). भारत के उत्तरप्रदेश, बिहार, आ नेपाल में फईलल थारु जनजाति का बीच सक्रिय रहलन आ "थारू जनजाति की सांस्कृतिक परम्परा" पुस्तक के लेखन कईलन. साहित्य, संस्कृति, फिल्म, कला, इतिहास, लोकसाहित्य, पत्रकारिता, समाजशास्त्र, शिक्षा, नाटक आदि में रचनात्मक हस्तक्षेप. कई पत्रिका, पुस्तकन के संपादन आ लेखन.


संक्षिप्त भोजपुरी व्याकरण खण्ड दू

संक्षिप्त भोजपुरी व्याकरण खण्ड दू


शब्द विचार


पिछलका खण्ड में हमनी का भोजपुरी वर्णमाला आ वर्णन का बारे में जनलीं जा.  एह खण्ड में भोजपुरी का शब्दन पर विचार होखी. 


कवनो भाषा अपना शब्दन से पहिचान में आवेले.  जिअतार भाषा दोसरा भाषा का शब्दन के आसानी से पचा लेबेले आ अपना में आत्मसात कर लेले.  अँगरेजी से बड़हन एकर नमूना अउर कतहीं ना मिली. 

एक भा अधिका ध्वनियन का मेल से अक्षर बनेला आ एक भा अधिका अक्षरन का मेल से शब्द बनेला.  अउर जरुरी होला कि ओ अक्षर समूह के कवनो मतलब निकले.  बिना अर्थ के शब्द ना होले, ध्वनिमात्र होले.  हालांकि निरर्थक शब्दो खूब इस्तेमाल होलन.  बाकिर व्याकरण में सार्थके शब्दन पर विचार होला, निरर्थक पर ना. 

शब्दांश ओह वर्ण-समूहन के कहाला जवना के आपन त कवनो अर्थ ना होला बाकिर जब ऊ  कवनो दोसरा शब्द से जुटेलें त सार्थक हो जालें. अइसनका शब्दांशन के चार गो भेद होला -

1. कारक चिह्न - के, का, से, में

2. क्रिया प्रत्यय - ता, ती, इहन, लन 

3. उपसर्ग - प्र, परा, अप

4. प्रत्यय - ता, पन, आइल

शब्द के भेद -

शब्द मूल रूप से दू तरह के होला -

1. प्रतिपदिक

2. धातु

संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आ अव्यय प्रतिपदिक  के आ क्रिया धातु के रूप ह. एही भेद के विचार व्याकरण में होला.  वइसे त शब्दन के कई तरह से भेद कइल जाला -


आगम का अनुसार - कवनो शब्द कहवॉं से आइल बा, एकरा अनुसार ऊ तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज होला. 


बनावट का अनुसार - 

रूढ़ - जब कवनो शब्द के मतलब कवनो खास अर्थ में मान लीहल होखे त ओह शब्दन के रूढ़ शब्द कहाला.  रूढ़ शब्दन के खण्ड के कवनो अर्थ ना निकले.  जइसे - आम, गदहा, घोड़ा. 

यौगिक - जब शब्द के खण्डो के कवनो अर्थ निकले त ऊ यौगिक शब्द कहाला.  जइसे कि विद्या+आलय - विद्यालय. 

योगरूढ़ - ओइसनका यौगिक शब्द जवना के कवनो खासे अर्थ होला ऊ योगरूढ़ कहाला.  जइसे - पंकज पांक में जनमेवाला हर चीज के ना, खाली कमल के कहाला. 


प्रयोग का अनुसार व्याकरण-सम्मत शब्द-भेद -

1. विकारी - जवना शब्द में लिंग, वचन, काल, कारक वगैरह का अनुसार बदलाव भा विकार आ जाव ऊ विकारी शब्द होलन.  प्रतिपदिक में कुछ विकारी आ कुछ अविकारी होला.  धातु सब विकारी होला. जइसे -

संज्ञा - राम, विद्यालय, आम, मिठास. 

सर्वनाम - हम, तूॅं, ऊ. 

विशेषण - उज्जर, गोर, करिया, मीठ, ढीठ. 

क्रिया - खाइल, चलल, पढ़ल, उठल. 


(हिन्दी में 'भी' के प्रयोग खूब होला बाकिर ई 'भी' भोजपुरी के सुभाव का मुताबिक ना होला एहसे ऊ अपना पहिले आवे वाला विकारी शब्दन के बदल देला. जइसे कि 'राम ने भी यही कहा' के भोजपुरी में 'रामो इहे कहलन' लिखाए आ बोलाए के चाहीं. 'राम का भी यही मत है' के भोजपुरी में 'रामो के इहे मत बा' के उपयोग होखे के चाहीं. हिन्दी से आइल साहित्यकारन का चलते भोजपुरिओ में 'भी' के प्रयोग देखे के मिल जाला. एकरा के जतना संभव होखे हतोत्साहित करे के चाहीं. अंजोरिया पर प्रकाशित होखे वाला सामग्री में हम ई बदलाव जरुरे कर देनी आ एह चलते कई विद्वान नाराजो हो जालें बाकिर हम मानीं ना. वइसे अगर लागे कि 'भी' हटा के 'ओ' जोड़ला से अर्थ बदल जा सकेला  त एह खातिर मूल शब्द का साथे '-ओ' जोड़ल जा सकेला. जइसे कि 'विकारीओ' का बदले 'विकारी-ओ' सहज भाव से लिखल-बोलल जा सकेला. )


2. अविकारी - जवना शब्दन में लिंग, वचन, काल, कारक वगैरह का अनुसार बदलाव भा विकार ना आवे ऊ अविकारी शब्द होला. प्रतिपदिक शब्दन के उपभेद अव्यय अविकारी होला.  जइसे -

क्रियाविशेषण - अब, निगचा, जल्दी-जल्दी, बहुत

सम्बन्धबोधक - पहिले, पाछे, जरिये, मारफत, खिलाफ, एवज. 

सम्मुच्चयादिबोधक - अउर,बलुक, बाकिर, एही से. 

विस्मयादिबोधक - अरे बाप, हाय-हाय. 


उपयोग का अनुसार -


सामान्य शब्द - आम उपयोग वाला शब्द जइसे पानी, सूरज, आम, महुआ, घर.  ई शब्द रोज का जिनगी में खूब इस्तेमाल होलन स. 

तकनीकी शब्द - ज्ञान-विज्ञान, व्यवसाय वगैरह में काम आवे वाला पारिभाषिक शब्द जइसे रेखा, त्रिभुज, आयताकार, शिरा, धमनी, मज्जा. 

अर्द्ध-तकनीकी शब्द - एह शब्दन के उपयोग आम बोलचाल आ तकनीकी प्रयोग दूनू में होला. जइसे - खून-जॉंच, हीमोग्लोबीन, आरक्षण, बम, आपरेशन. 


कवनो भाषा के शब्द भण्डार स्थायी ना होखे. समय का साथ कुछ शब्द व्यवहार से हटला का बाद मर जालें त कुछ नया शब्द हमेशा जुटत रहेला.  मोबाइल आवे का पहिले मोबाइल के मतलब रहे कवनो चलन्त जॉंच दल.  आज मोबाइल के मतलब मोबाइल फोन सेट सभ केहू बूझ ली. ओइसहीं टीवी, मेट्रो-रेल, सेटेलाइट आजुकाल्ह

सबका समुझ के शब्द हो गइल बा.  कवनो भाषा के शब्द यदि आपन जरुरत पूरा करत होखे आ ओकरा बदले कवनो आसान शब्द अपना भाषा में ना होखे त ओह शब्द के अपना लिहले में चाल्हाकी बा. 


संज्ञा


कवनो प्राणी, वस्तु, जगह, भा भाव के नाम के संज्ञा कहल जाला.  संज्ञा प्रतिपदिक शब्द ह.  एकरा में लिंग, वचन, काल, कारक वगैरह का चलते विकार आवेला एहसे ई विकारी-ओ होला. 


संज्ञा शब्द खास क के दू तरह के होला -

1. पदार्थवाचक आ 2. भाववाचक. 


पदार्थवाचक शब्द के चार उपभेद होला -

1. व्यक्तिवाचक, 2. जातिवाचक, 3. द्रव्यवाचक, आ 4. समूहवाचक.


भाववाचक शब्द तीन तरह के होला -

1. गुणवाचक, 2. अवस्थावाचक, आ 3. क्रियार्थक. 


व्यक्तिवाचक संज्ञा - अइसन शब्द जवना से कवनो खास आदमी, जगह, भा वस्तु के भान होखे.  उदाहरण - तुलसीदास, अटलबिहारी, ताजमहल, अयोध्या, मक्का, गंगा. 

जातिवाचक संज्ञा - अइसन शब्द जवना से एक तरह के सभ आदमी, जगह, भा वस्तु के भान होखे.  ई गिनल जा सकेला एहसे एकरा के सांख्येयपदार्थवाचक-ओ कहल जा सकेला.  उदाहरण - कवि, नेता, भवन, शहर, गॉंव, नदी. 


द्रव्यवाचक संज्ञा - अइसन शब्द जवना से ओह पदार्थन के बोध हो जवना से कवनो वस्तु बनल बा.  एह पदार्थन के नापल, तोलल, भा मापल जा सकेला.  उदाहरण - लोहा, चॉंदी, घी, तेल, पानी, चीनी.


समूहवाचक संज्ञा - अइसन शब्द जवना से कवनो समूह के ज्ञान होखे.  उदाहरण - सेना, संसद, विधान-सभा, भीड़, टोली, पुस्तकालय, कांग्रेसी.


गुणवाचक संज्ञा - जवना से कवनो चीज, जगहा भा जीव के गुण-दोष के ज्ञान होखे.  जइसे - मिठास, विद्वता, सौन्दर्य, सरलता, खटास. 


अवस्थावाचक संज्ञा - जवना से कवनो जीव, जगह, भा वस्तु के भावना के भान होखे.  जइसे - खीस, प्रेम, सूखा.


क्रियार्थक संज्ञा - जवना शब्द से कवनो क्रिया के अर्थ निकलत होखे - जइसे सूतल, उठल, बइठल, दउड़ल.


ध्यान दीं - व्यक्तिवाचक आ भाववाचक संज्ञा अधिकतर एकवचन में प्रयुक्त होला जबकि जातिवाचक संज्ञा एकवचन आ बहुवचन दूनू में. 


कई हाली जातिवाचक संज्ञा व्यक्तिवाचक संज्ञा का रूप में इस्तेमाल होला.  जइसे - ‘पण्डितजी देशके समाजवादी राह पर चलवलन. ’ एह वाक्य में पण्डितजी से मतलब जवाहरलाल नेहरू से बा, पण्डित लोग से ना.


एहीतरे कबो-कबो व्यक्तिवाचक संज्ञा जातिवाचक-ओ रूप में इस्तेमाल होला.  जइसे कि - ‘एहू युग में सीता के कमी नइखे, कमी बा त राम आ लक्ष्मण के. ’ एह वाक्य में सीता के मतलब उनका लेखा औरतन से बा जे पतिव्रता आ धर्मपरायण होखे.  आ राम के मतलब एकपत्नीव्रती मरद लोग से बा.  लक्ष्मणो से मतलब लखनलाल से ना उनुका लेखा ब्रह्मचारी युवकन से बा. 


भाववाचक संज्ञा शब्दन के रचना -


कुछ भाववाचक शब्द त स्वतन्त्र होला, जइसे - सॉंच, झूठ, बुद्धि, क्षमा. कुछ के दोसरा शब्दन से बनावल जाला.  जइसे - जातिवाचक संज्ञा से - लरिकपन, दोस्ताना, दुश्मनागत. क्रिया से - चढ़ाई, चाल, ढाल, सजावट. विशेषण से - चतुराई, बेवकूफी, मिठास, खटास. सर्वनाम से - ममत्व, अपनापन, सर्वस्व, अहंकार.


अव्यय से - नजदीकी, दूरी. 


लिंग


लिंग के मतलब ह निशान भा चिन्हासी.  बाकिर रूढ़ से ई मरद भा मेहरारू के चिह्नासी हो गइल बा.  लिंगे से तय होला कि के मरद ह, के मेहरारू.  भोजपुरी में हिन्दी लेखा दूइये गो लिंग होला.  नपुंसक लिंग संस्कृत आ अंगरेजी में होला. 


मरद जाति के बोध करावे वाला शब्द पुलिंग कहाला आ मेहरारू जाति के बोध करावेवाला शब्दन के स्त्रीलिंग कहाला.


कुछ शब्द खाली पुलिंग होलें, कुछ खाली स्त्रीलिंग.  कुछ पुलिंग शब्दन में आ, ई, ऊ, ति, आनी, आइन, इया, उली, इन, की, री, नी वगैरह प्रत्यय जोड़ के स्त्रीलिंग बना लीहल जाला. 


कुछ शब्द दूनू तरह से बेवहार में लीहल जाला.  अइसनका अधिकतर शब्द कवनो पद के नाम होला.  उदाहरण - प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति.  एके अर्थ राखे वाला दू गो शब्दन में से कभी एगो

पुलिंग त दोसरका स्त्रीलिंग होला.  जइसे पुस्तक त स्त्रीलिंग ह जबकि ग्रन्थ पुलिंग ह. 


कुछ शब्द के एके लिंग होला दोसरका लिंग वाला शब्द ओकरा से ना बने.  जइसे बाप, ससुर, बैल वगैरह.  वइसहीं कुछ शब्द स्वतन्त्र स्त्रीलिंग होला, ओकर पुलिंग रूप ना बने.  जइसे - महतारी, पतोह, जनता. 


अधिकतर पुलिंग शब्दन में कवनो प्रत्यय जोड़ के स्त्रीलिंग बनावल जाला.  उदाहरण - 


अन्तिम स्वर के ‘आ’ करके - प्रथम - प्रथमा, सदस्य - सदस्या, शिष्य - शिष्या.


अन्तिम स्वर के ‘ई’ करके - पुत्र - पुत्री, बेटा - बेटी, चाचा - चाची, देव - देवी. 


‘अनी’ प्रत्यय जोड़ के - देवर - देवरानी, जेठ - जेठानी, भव - भवानी,  मास्टर - मास्टरनी.


‘इया’ प्रत्यय का बेवहार से - लोटा - लुटिया, पुल - पुलिया, चूहा - चुहिया, बिटवा - बिटिया.


‘उली’ प्रत्यय से - गाछ - गछुली, टीका - टिकुली, रुपया - रुपल्ली.


‘इन’ जोड़ के - दुलहा - दुलहिन, हजाम - हजामिन, धोबी - धोबिन, कहार - कहारिन.


‘आइन’ प्रत्यय के इस्तेमाल कर के - डाक्टर - डाक्टराइन (डाक्टर के औरत), मास्टर - मास्टराइन (मास्टर के औरत), दूबे - दुबाइन, चौबे - चौबाइन. (मास्टरनी माने महिला मास्टर, मास्टराइन माने मास्टर के पत्नी,  डॉक्टरनी माने महिला डॉक्टर, डॉक्टराइन माने डॉक्टर के पत्नी.)


‘आन’ के ‘अति’ कर के - भगवान - भगवति, बुद्धिमान - बुद्धिमति.


‘अक’ के ‘इका’ कर के - पाठक - पाठिका, चालक - चालिका,

अध्यापक - अध्यापिका.


कवनो स्त्रीसूचक शब्द जोड़ के - पुत्र - पुत्रवधू, नगर - नगरवधू.


कुछ स्त्रीलिंगो शब्दन से पुलिंग बनावल जाला.  उदाहरण -  मौसी - मौसा, फूफी - फुफा, भा फुआ से फुफा, जीजी - जीजा, बहिन - बहिनोई, ननद - ननदोई, सिकड़ी - सिक्कड़, रोटी - रोट, चिट्ठि - चिट्ठा.


कुछ शब्द अधिकतर पुलिंग होला - पहाड़न के नाम, हिन्दी महीना आ दिनन के नाम, देश, अधिकतर ग्रह-नक्षत्रन के नाम , धातु

पदार्थ, तरल पदार्थन के नाम, आउर अ,इ,उ,त्र,न,ण,ख,ज,र से अन्त होखे वाला शब्द. 


कुछ शब्द अधिकतर स्त्रीलिंग होला - नदिअन के नाम, किराना सामानन के नाम, भाषा आ बोलिअन के नाम, आउर आ,इ,ई,उ,ऊ,त,ता,हट,वट,आई से अन्त होखे वाला शब्द. 


लिंग का चलते खाली संज्ञा शब्दने में विकार आवेला.  सर्वनाम में लिंग विकार ना आवे.  ऊ या त स्त्रीलिंग होखी भा पुलिंग.  विशेषण शब्दनो में लिंग रूपान्तर ना मिले. अपवाद - गोर -गोरी.


वचन


प्रतिपदिक शब्दन जइसे संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, आ क्रिया के जवना रूप से संख्या के बोध होखे ओकरा के वचन कहल जाला. 


वचन दू तरह के होला - एकवचन, आ बहुवचन.


जब कवनो शब्द से एकेगो पदार्थ भा जीव के बोध होखे त ऊ एकवचन शब्द होला, जइसे - लरिका, घोड़ा, टेबुल.


एकवचन शब्द मूल रूप में होलें.  उनुका में कवनो प्रत्यय ना लागे.  माने कि बिना प्रत्यय के मूल प्रतिपदिक हमेशा एकवचन होला.  ओकरा के बहुवचन बनावे खातिर ओहमें कवनो प्रत्यय जोडे़ के पडे़ला, चाहे ओकरा संगे कवनो बहुवचन बोधक स्वतन्त्र शब्द लगावल जाला. 


भोजपुरी में बहुवचन बोधक प्रत्यय बस एके गो बा - ‘अन’.  एही ‘अन’ के कई गो रूप होला - अनि, अन्हि, अन्ह, वनि, वन्हि, वन, वन्ह. 

उदाहरण - लरिका - लरिकवन,  किताब - किताबन, कितबिअन.


ध्यान देबे लायक बात -

1. शब्द के आखिरी आ के अ हो जाला.  कपड़ा - कपड़न भा कपड़वन.

2. बीच में आइल आ जस के तस रहेला. सोनार - सोनारन, बिलार - बिलारन, बजाज - बजाजन.

3. आखिरी इ भा ई के इय् हो जाला.  माने कि ई-ओ के बदले इ हो जाला. हाथी - हथियन, साथी - सथियन, मुनि - मुनियन.

4. आखिरी उ भा ऊ के उव् हो जाला.  एहुजा ऊ के उ हो जाला. डाकू - डकुवन, चाकू - चकुवन, साधु - सधुवन, 


बहुवचन बोधक शब्द जइसे सभ, स, सगरी,कुल्ही, ढेरे, लोग, बहुते वगैरहो के इस्तेमाल कइल जाला.  उदाहरण - सभ लरिका, सभ भा सगरे किताब, कुल्ह टेबल, विद्यार्थी सभ भा विद्यार्थी स.


कारक


कारक आठ तरह के होला - 1. कर्त्ता, 2. कर्म, 3. करण, 4. सम्प्रदान, 5. अपादान, 6. सम्बन्ध, 7. अधिकरण, आ 8. सम्बोधन. 


कारक कवनो शब्द के क्रिया भा दोसरा शब्दन से संबंध बतावेला.  अलग-अलग कारक खातिर अलग-अलग विभक्ति लागेला.  कर्त्ता के संगे कवनो विभक्ति ना लागे.  कबो कबो कर्मो का संगे कवनो विभक्ति ना लागे.  उदाहरण - 

युद्ध-भूमि में राम अपना तरकस से निकाल धनुष पर चढ़ाके लंका के राजा रावण के तीर मरलन.


एह वाक्य में मुख्य क्रिया बा मारल आ ओह क्रिया के करेवाला बाड़न राम.  एहसे राम कर्त्ता भइलन.  एहमें राम का साथे कवनो विभक्ति नइखे लागल.


1. संज्ञा भा सर्वनाम के जवना रूप से क्रिया करेवाला का बोध होखे ओकरा के कर्त्ता कहल जाला.  कर्त्ता के संगे भोजपुरी में कवनो विभक्ति ना लागे.  हिन्दी में कबो-कबो 'ने' विभक्ति के

प्रयोग होला. 


भोजपुरी में कर्त्ता दू तरह के होला - जे स्वतन्त्र बा, कुछ करे के भा ना करे के, ऊ प्रयोजक कर्त्ता ह, आ जे दोसरा के प्रभाव से कुछ करे ऊ प्रयोज्य कर्त्ता ह.  उदाहरण - मास्टर लड़िकन से लेख लिखवावत बाडे़.  एह वाक्य में मास्टर प्रयोजक कर्त्ता बा आ लड़िका प्रयोज्य कर्त्ता.


2. जवना पदार्थ भा जीव पर क्रिया के फल पडे़ला ऊ कर्म कहाला.  एकर विभक्ति चिह्न 'के' ह.  कबो-कबो विभक्ति चिह्न ना लगाके कर्म में 'ए' जुट जाला.  एकरा के संश्लिष्टता कहाला. 

केकरा के मरलन ? रावण के.  एहीजा रावण कर्म बा.


3. जवना साधन से क्रिया कइल जाव ऊ करण कहाला.  एकर विभक्ति चिह्न 'से' भा संश्लिष्ट 'ए' ह. 

उपरका उदाहरण वाक्य में कवना चीज से मरलन ? तीर से.  एहसे तीर करण भइल. 


4. जेकरा के कुछ दिआव भा जेकरा खातिर कुछ कइल जाव ओकरा के सम्प्रदान कहाला.  एकर विभक्ति चिह्न 'के', संश्लिष्ट ए, ला, बास्ते, खातिर, लागि, बदे होला.  उदाहरण देखीं - हम अपना माई खातिर दवाई ले जात बानी. एह वाक्य में माई सम्प्रदान बा. 


5. संज्ञा भा सर्वनाम के जवना रूप से अलगाव-बिलगाव के बोध होखे ओकरा के अपादान कहाला.  एकर विभक्ति चिह्न 'से' होला.  ‘तरकस से तीर निकाल’ - एह वाक्य में तरकस अपादान बा आ 'से' ओकर विभक्ति चिह्न. 


अपादान कारक के इस्तेमाल दोसरो तरह से होला - जवना समय से कवनो काम शुरु होखे, जइसे काल्ह से क्रिकेट मैच होखी.  कवनो तरह के तुलना करे में, जइसे भारत में अमेरिका से अधिका आबादी बा. जेकरा से कुछ भेंटात होखे, जइसे लरिका मास्टर से पढे़ले. जहवॉं कवनो भाव प्रकट होखे, जइसे दुलहिन बुढ़उ से लजात बाड़ी.  हम सॉंप से डेरात बानी. जहवॉं गत्यार्थक क्रिया के इस्तेमाल होखे, जइसे गते-गते चलऽ.  नेताजी आजुवे आवे के कहले रहन. 


6. जब एगो संज्ञा भा सर्वनाम के संबंध दोसरका संज्ञा भा सर्वनाम से बुझाव त ऊ सम्बन्ध कहाला.  एकर विभक्ति चिह्न के, कर, र, का होला.  ‘लंका के राजा’ में लंका के सम्बन्ध कारक कहाई.


7. जवना से क्रिया करे के स्थान, काल, भा भाव के बोध होखे ओकरा के अधिकरण कहाला. कहवॉं मरलन? युद्ध-भूमि में.  ईहवॉं युद्ध-भूमि अधिकरण हो गइल.


अधिकरण तीन तरह के होला.  1. स्थानाधिकरण, 2. कालाधिकरण, आ 3. भावाधिकरण.  


जहवॉं क्रिया होखे ऊ स्थानाधिकरण कहाला.  जइसे हम घर में पढ़ब.  एह वाक्य में पढ़ला के जगह घर भइल.  

जवना से कवना घरी के जबाब मिले ऊ कालाधिकरण होला.  जइसे हम भोरे पढ़ब.  ईहवॉं भोरे काल बतावता एहसे ई कालाधिकरण भइल.  

आ जवना से क्रिया के भाव मालूम होखे ऊ भावाधिकरण कहाला.  जइसे तहरा करे में डर नइखे त हमरा कहला में का डर बा? एह वाक्य मे कहल क्रिया के भावरूप के प्रयोग बा.


अधिकरण के विभक्ति चिह्न में, पर, पे, भा संश्लिष्ट ए होला.  बाकिर कबो-कबो भा अकसरहॉं दोसरो विभक्ति शब्दन के प्रयोग होला.  जइसे - का आगे, का पाछे, के अन्दर, के बहरी, वगैरह.


8. जवना से केहू के बोलावल जाव भा पुकारल जाव ओकरा के सम्बोधन कारक कहाला.  एकर विभक्ति चिह्न ए, ऐ, हे, हो, रे होला. 


भोजपुरी में एकवचन आ बहुवचन दूनू में एके तरह के विभक्ति लागेला.  लिंगोभेद से एकरा पर अन्तर ना पडे़.  नमूना नीचे बा -


संज्ञा शब्दन के रूपावली


अकारान्त पुलिंग - जवान

कारक शब्दरूप

कर्ता जवान, जवनवा

कर्म जवान के, जवाने

करण जवान से

सम्प्रदान जवान ला/के/वास्ते/बदे/के/जवाने

अपादान जवान से

सम्बन्ध जवान के

अधिकरण जवान पर

सम्बोधन हे/ए/ऐ/रे जवान



अकारान्त स्त्रीलिंग - पतोह


कारक शब्दरूप

कर्ता पतोह, पतोहिया

कर्म पतोह के, पतोहे

करण पतोह से

सम्प्रदान पतोह ला/के/वास्ते/बदे/के/जवाने

अपादान पतोह से

सम्बन्ध पतोह के

अधिकरण पतोह पर

सम्बोधन हे/ए/ऐ/रे पतोह


सर्वनाम 


संज्ञा के बदला भा अेकरा जगहा इस्तेमाल होखे वाला शब्दन के सर्वनाम कहाला. 


सर्वनाम के तीन गो भेद होला -

उत्तम पुरुष - जवना शब्द के बेवहार बोलेवाला भा लिखेवाला अपना खातिर करेला ऊ उत्तम पुरुष कहाला.  भोजपुरी में एकरा खातिर एके गो शब्द बा हम.  बहुवचन खातिर हम के हमनि क दिआला.  हिन्दी के मैं का बदला भोजपुरी में हम कहाला आ हिन्दी का हम का जगहा भोजपुरी में हमनि होला.


मध्यम पुरुष - जवना से श्रोता भा पाठक के सम्बोधित कइल जाव ऊ मध्यम पुरुष कहाला. 

मध्यम पुरुष के उपभेद तीन गो होला -

सामान्य मध्यम पुरुष - तूँ

आदरसूचक मध्यम पुरुष - रउरा, रॉंवा, रउवा. 

अनादर भा प्रेम (अपनापन) सूचक मध्यम पुरुष - तें, तोरा, तोहरा. 

अन्य पुरुष - जवना शब्द के बोले भा लिखे वाला श्रोता भा पाठक के छोड़के दोसरा खातिर बेवहार करेला ऊ अन्य पुरुष कहाला.  एकर उपभेद नीचे दिआता -

निकटस्थ निश्चयवाचक अन्य पुरुष - ई, ईहॉं का, ईहॅंवा, हई. 

दूरस्थ निश्चयवाचक अन्य पुरुष - ऊ, उहाँका, उॅहवा, हऊ. 

अनिश्चयवाचक अन्य पुरुष - सभ, केहु, कवनो, कुछ, किछ, अमुक. 

प्रश्नवाचक अन्य पुरुष - के, कथी, का,कहॅंवा, केकर, कवन. 

सम्बन्धवाचक अन्य पुरुष - जे, से. 

(ध्यान दीं - लिंग का आधार पर सर्वनामन में विकार ना आवे.  वचन आ कारक के आधार पर विकार आवेला.  संज्ञा शब्दन का साथ विभक्ति अलगा से लिखाला जोड़ के ना.  बाकिर सर्वनाम के विभक्ति जोड़िये के लिखाला. )


विशेषण


जे कवनो वस्तु भा जीवके खासियत बतावे ओकरा के विशेषण कहाला.  ई खासियत अच्छाई भा बुराई, गिनती, नाप, भा माप वगैरह कुछुवो हो सकेला.


विशेषण जेकर विशेषता बतावे ओकरा के विशेष्य कहाला.  जइसे - करिआ घोड़ा में करिआ विशेषण आ घोड़ा विशेष्य बा.


जवन शब्द विशेषण के विशेषता बतावे ओकरा के प्रविशेषण कहल जाला.  जइसे - ढेर गरम में ढेर शब्द गरम के विशेषता बतावता.  एहिजा ढेर प्रविशेषण भइल. 


कवनो वाक्य में विशेषण के इस्तेमाल दू तरह से होला - 1. विशेष्य-विशेषण, आ 2. विधेय-विशेषण.  विशेषण जब कवनो शब्द के पहिले आवेला त ऊ विशेष्य-विशेषण कहाला. विशेषण जब विशेष्य आ क्रिया के बीच में आवेला त ऊ विधेय-विशेषण कहाला. 


विशेषण के खास भेद तीन गो होला -

1. गुणवाचक, 2. मात्रावाचक, आ 3. सार्वनामिक. 

गुणवाचक विशेषण - जवना विशेषण से कवनो व्यक्ति भा वस्तु के गुण-दोष, आकार-प्रकार, रंग-रूप, रस-गन्ध, स्पर्श, अवस्था, स्थान-स्थिति वगैरह के आभास होखे ओकरा के गुणवाचक विशेषण कहाला.  एकर उपभेद कईगो होला -

गुणबोधक - दानी, सत्यवादी, नीमन, भल, सुशील वगैरह. 

दोषबोधक - कंजूस, गुण्डा, झूट्ठा, खराब, बेहाया, पतित वगैरह. 

कालबोधक - पुरान, नया, दैनिक, मासिक, साप्ताहिक, सालाना, पखवारी, छमाही वगैरह. 

दिशाबोधक - पूरबिया, पछुआ, दखिनवारी, उतरवारी वगैरह. 

रंगबोधक - ऊजर, करिया, लाल, पिअर, सबुज, धानी, जमुनिया, रानी, मैरून, बूलू, आसमानी वगैरह. 

रसबोधक - मीठ, तीत, खट्टा, नुनगर वगैरह. 

गन्धबोधक - महकदार, बदबूदार, सोन्ह, मादक वगैरह. 

स्पर्शबोधक - मुलायम, टॉंठ, कड़ा, नरम, बज्जर, चिम्मर, गुलगुल वगैरह. 

स्थानबोधक - पटनहिया, छपरहिया, गोरखपुरिहा, भोजपुरिहा, रसियन, विलायती, जवारी, पनिया, अगिया वगैरह. 

अवस्थाबोधक - सुखल, भींजल, गरम, ठण्ढा, भूॅंजल, छानल, बघारल, अमीर, गरीब, बेमार, निरोग, बिगड़ल वगैरह. 

आकारबोधक - गोल, चौकोर, तिकोनिया, नाट, लमहर, विशाल वगैरह. 

भावबोधक - खुश, नाराज, खिसिआइल, अउॅंजाइल, ठकुआइल, निनिआइल वगैरह. 

आयुबोधक - लरिका, बूढ़, जवान, सतवॉंस, अठवॉंस वगैरह. 

अइसनका ढेरे भेद-उपभेद दीहल जा सकेला. बाकिर एह सबके एके गो भेद - गुणवाचक विशेषण - में राखल ज्यादा बेहतर रही.  काहेकि ई सभ गुणे-दोष नू हऽ. 

मात्रावाचक विशेषण - जवना विशेषण से कवनो जीव भा पदार्थ के संख्या भा परिमाण के पता चले ओकरा के मात्रावाचक विशेषण कहल जाला. ई दू तरह के होला - 1. संख्यावाचक, आ 2. परिमाणवाचक. 

संख्यावाचक विशेषण के दू गो भेद होला - 1. अनिश्चित, आ 2. निश्चित. 

जवना संख्यावाचक विशेषण से संख्या निश्चित ना हो सके ऊ अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहाला.  जइसे - ढेर, पचीसन, अनगिनत, थोड़, सात-आठ. 

जवनासे संख्याके पता साफ-साफ मालूम होखे ओह विशेषण के निश्चितसंख्यावाचक विशेषण कहाला.  ई कई तरह के होला -

पूर्णांकबोधक संख्याविशेषण - जवना से पूरा संख्या के बोध होला ऊ पूर्णांकबोधक संख्याविशेषण कहाला.  पूर्ण अंक नव गो होला.  शून्य के अस्तित्व अकेले ना होला.  ओही नव गो पूर्णांक आ शून्य का मेल से सगरी संख्या बनेली स. एक, दू, तीन, चार, पॉंच, छव, सात, आठ, नव, दस, बीस, तीस, चालिस, पचास, साठ, सत्तर,

अस्सी, नब्बे, सई भा सौ. 

एकरा उपर के संख्या दूगो संख्या मिला के बनेला.  एकसौ के नीचे तक पहिले छोटका संख्या आ बाद में बड़का संख्या लिखल भा बोलल जाला. 

एक आ दस एगारह, दू आ दस बारह, तीन आ दस तेरह, चार आ दस चउदह, पॉंच आ दस पनरह, छव आ दस सोलह, सात आ दस सतरह, आठ आ दस अठारह.  बाकिर नव आ दस नवारह ना अनईस - एक कम बीस - कहाला. 

एही तरह एक आ बीस एकईस, एक आ तीस एकतीस, एक आ चालिस एकतालिस, एक आ पचास एकावन, एक आ साठ एकसठ, एक आ सत्तर एकहत्तर, एक आ अस्सी एकासी, एक आ

नब्बे एकान्बे, एक आ सै एक सौ एक. 

एही तरह दू आ बीस बाईस, दू आ तीस बत्तीस, दू आ चालिस बयालिस, दू आ पचास बावन, दू आ साठ बासठ, दू आ सत्तर बहत्तर, दू आ अस्सी बयासी, दू आ नब्बे बानबे, दू आ सै एक सौ दू . 

तीन खातिर तेइस, तैंतीस, तैंतालिस, तिरपन, तिरसठ, तिहत्तर, तिरासी, आ तिरानबे होला. 

चार खातिर चउबीस भा चौबिस, चौंतिस, चउवालिस, चउवन, चउसठ, चउहत्तर, चउरासी, आ चउरानबे होला. 

पॉंच खातिर पचीस, पैंतीस, पैतालिस, पचपन, पैसठ, पचहत्तर, पचासी, आ पॅंचानबे होला. 

छव का संगे छब्बीस, छत्तीस, छियालिस, छप्पन, छाछठ भा छियासठ, छिहत्तर, छियासी, आ छियानबे होला. 

सात बदे सताईस, सैंतीस, सैंतालिस, संतावन, सड़सठ, सतहत्तर, सत्तासी, आ संतानबे होला. 

आठ के लेके अठाईस, अड़तीस, अड़तालिस, अंठावन, अड़सठ, अठहत्तर, अट्ठासी, आ अंठानबे होला. 

नव का जोड़ में ध्यान दिहल जरुरी बा.  ई अगला दहाई से एक कम - उन भा अन - कहाला.  उनतीस, उनचालिस, उनचास, उनसठ, उनहत्तर, उनासी, बाकिर अपवाद में उनसई ना

निनानबे कहाला. 

एक सौ से ऊपर का संख्या में सबसे बड़ संख्या सबसे पहिले, ओकरा से छोट ओकरा बाद, आ सबले छोट सबका बाद कहाला.  उदाहरण - एक खरब दू अरब तीन करोड़ चार लाख एक हजार छह सई एक.  अंक में लिखाव तऽ लिखाई - 1,02,03,04,01,601

एगारह खरब एगारह अरब एगारह करोड़ एगारह लाख एगारह हजार एक सई एगारह.  अंक में लिखाव तऽ लिखाई -

11,11,11,11,11,111

भोजपुरी मे बड़का संख्या में अर्धविराम खरब का बाद, अरब का बाद, करोड़ का बाद, लाख का बाद, आ हजार का बाद लागेला.  अंगरेजी में ट्रिलियन का बाद, बिलियन का बाद, मिलियन का

बाद, आ थाउजेन्ड का बाद लागेला.  एकर कारण संख्यन के वर्गीकरण बा.  भोजपुरी में दस सौ के एक हजार, सौ हजार के एक लाख, सौ लाख के एक करोड़, सौ करोड़ के एक अरब, आ सौ अरब के एक खरब होला.  अंगरेजी में हजार हजार के एक मिलियन, हजार मिलियन के एक बिलियन, आ हजार बिलियन के एक ट्रिलियन होला. 

कविता गीत भा पद्य में अंक में ना लिखाव शब्द में लिखाला.  लेखन में अंक भा शब्द दूनू में से कवनो एक भा दूनो में लिखल जा सकेला. 

एक के बेवहार कबो-कबो अनिश्चयार्थक रूप में, तुलना में समान खातिर, भा अवधारणा का रूपो में होला.  जइसे - एक दिन के बाति ह, राम आ श्याम एके लेखा बुझालें, एगो तूही नइख नू ?


अपूर्णांकबोधक संख्याविशेषण - पाव 0.25, आधा 0.5, पौन 0.75, सवा 1.25, डेढ़ 1.5, अढ़ाई 2.5 जइसन शब्दन के अपूर्णांकबोधक संख्याविशेषण कहल जाला.  काहे कि एहनि से

कवनो अपूर्ण अंक के पता चलेला.  भोजपुरी में अउॅंचा 3.5, ढउॅंचा 4.5, पउॅंचा 5.5, खेांचा 6.5, सतोंचा 7.5 जइसन शब्दो भेंटालें.  बाकिर एकनी का जगहा साढ़े तीन, साढ़े चार, साढ़े पॉंच, साढ़े छव, साढ़े सात लिखल ठीक रही. 

एक बटा दू 1/2, सात बटा नव 7/9 में बटा के मतलब ह भागा.  माने एक में दू से भाग दीं त एक बटा दू, सात में नव से भाग दीं त सात बटा नव जइसन अपूर्ण संख्या मिली. 

पाव के मतलब एक बटा चार, आधा एक बटा दू, आ पौन तीन बटा चार भइल.  

एक का संगे एक पाव अउरी मिला दीं त ऊ हो जाई सवा एक.  मतलब कि जब खाली एक बटा चार होखे त पाव आ जब कवनो पूर्णांक से ज्यादा बढ़के होखे त सवा. 

एही तरे डेढ़ होला.  एक से कम बा त आधा बाकिर एक आ आधा मिल के होखी डेढ़.  दू आ एक बटा दू मिला के अढ़ाई, तीन आ एक बटा दू मिला के साढे़ तीन.  दू का उपर आधा खतिर साढे़ के इस्तेमाल होला. 

एही तरे पौन जब अकेले होखी, माने तीन बटा चार त खाली पौन कहाई.  बाकिर जब कवनो पूर्णांक से पहिले आई त ओकर मतलब होखी ओह पूर्णांक से एक बटा चार कम.  पौने दू के मतलब भइल एक आ तीन चौथाई 1.75 भा दू से पाव कम.  एही तरे पौने तीन के मतलब दू आ तीन चौथाई 2.75 भा तीन से पाव 0.25 कम. 


क्रमबोधक संख्याविशेषण - जवना शब्द से क्रम के पता चले ओकरा के क्रमबोधक संख्याविशेषण कहाला.  क्रम में सबसे पहिले आवे त पहिला भा पहिलका, ओकरा बाद दूसर, दोसर भा दोसरका, तीसर भा तीसरका, चउथा भा चउथका, पॉंचवा,

छठवॉं, सतवॉं, अठवॉं, नउवॉं, दसवॉं, एगारहवॉं, बारहवॉं, वगैरह.  कहे के मतलब कि ओह संख्या का साथे 'का' भा 'वॉं' जोड़ दीहल जाला. 


हिन्दी तिथियन के नाम में तनी बदलाव आ जाला - हर महीना में दूगो पख भा पक्ष होला - अन्हरिया आ अँजोरिया भा कृष्णपक्ष आ शुक्लपक्ष.  हर पख के पहिला दिन परिवा भा प्रतिपदा, दोसरका दूज भा द्वितिया, तीसरका तीज भा तृतीया, आ एही क्रम से चउथ भा चौठ भा चतुर्थी, पंचमी, छठ भा खष्ठी, सतमी भा सप्तमी, अठमी भा अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, दुआरसी भा द्वादशी, तेरस भा त्रयोदशी, चतुरदसी भा चतुर्दशी आवेला.  कृष्णपक्ष के आखिरी दिन अमावस भा अमावस्या कहाला आ अँजोरिया के आखिरी दिन पूरनिमा भा पूर्णिमा कहाला. 


समुदायबोधक संख्याविशेषण - जवना शब्द से एक से अधिका के समुदाय के बोध होखे ओकरा के समुदायबोधक संख्याविशेषण कहाला. 


एकसे समुदाय ना बने तबो केहू अकेलहीं समाज बने त ओकरा के असगरे कहाला.  असगरे माने अकेले.  असगरे के समुदायबोधक मानल जा सकेला.


दू के समुदाय जोड़ा, चार के गंडा, पॉंच के गाही, दस के दहाई, बारह के दर्जन, सोलह से सोरही भा सोरहा, बीस के कोड़ी, आ चउबिस से जिस्ता बनेला.


आवृतिबोधक संख्याविशेषण - जवना से कवनो फ्रेक्वेन्सी, आवृति भा बारम्बारता के बोध होखे ओकरा के आवृतिबोधक संख्याविशेषण कहल जाला.  एकरा मे बेर, बेरा, हाली शब्दनो के 

प्रयोग खूब होला.  जइसे एकबार भा एकहरा भा एक हाली.  ...हरा परत के अर्थ में लीहल जाला. 


एकहरा, दोहरा, तिहरा, आ चउहरा माने कवनो चीज के एक परत, दू परत, तीन परत, आ चार परत. 


वीप्सार्थक संख्याविशेषण - जवना शब्द से कवनो आवृति के बारम्बारता प्रकट होखे ओके व्यापकताबोधक भा वीप्सार्थक संख्याविशेषण कहाला. 


एक के व्यापकता होखे त प्रति, हरेक, हर के प्रयोग होला.  बाकी संख्यन खातिर ओह शब्दन के द्वित्व क दिआला.  जइसे - एक-एक घंटा पर, दू-दू मिनट पर, सात-सात दिन पर.  संयुक्त संख्या रहला पर बाद वाली छोटकी संख्या के द्वित्व होला.  जइसे - एकसौ पॉंच-पॉंच आदमी का बाद मतलब कि हर एक सौ पॉंच आदमी के बाद. 


परिमाणवाचक विशेषण - कुछ पदार्थन के गिनल ना जा सके, नापल तौलल भा मापल जा सकेला.  कबो-कबो गिने लायक सामान भी माप तौल के बतावल जाला.  जइसे आम गिनिओ के

बेचाला आ जोखियो के.  अइसनका पदार्थन के नाप तौल भा माप बतावेवाला विशेषण के परिमाणवाचक विशेषण कहल जाला.  ईहो दू तरह के होला -

1. निश्चित परिमाणवाचक आ 2. अनिश्चित परिमाणवाचक. 


निश्चित परिमाणवाचक - जवना से कवनो पदार्थ के परिमाण के निश्चित विवरण मिलो ओकरा के निश्चित परिमाणवाचक कहल जाला.  अक्सरहॉं अइसनका शब्दन का पहिले कवनो संख्यावाचक

शब्द जरुर रहेला.  जइसे - पॉंच लीटर घीव, सात किलो भूॅंजा, चार गज कपड़ा, दू कट्ठा जमीन. कबो-कबो माप तौल भा नाप का बाद भर जोड़ के कहल जाला - गज भर माने एक गज, किलो

भर माने एक किलो, बाल्टी भर माने एक बाल्टी भर के, कटोरी भर माने एक कटोरी भर के वगैरह. 


अनिश्चित परिमाणवाचक - जवना परिमाणवाचक विशेषण से परिमाण के अन्दाजेभर मिले ओकरा के अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहाला.  जइसे अपार कष्ट, ढेर दूध, अधिका दाल, इचका भर सेनूर, तनिका जोरन वगैरह.


तुलनात्मक विशेषण - अनिश्चित परिमाणवाचक शब्द से जब कवनो वस्तु भा जीव के तुलना दोसरा से कइल जाव ओकरा के तुलनात्मक विशेषण कहाला.  जइसे - अधिका, अनइस, बीस, कम. 


सार्वनामिक विशेषण - जब कवनो सर्वनाम के बेवहार विशेषण का रूप में कइल जाव त ऊ सार्वनामिक विशेषण कहाला.  ई कई तरह के होला -

1. संकेतवाचक - ई, ऊ, कहॉं, कहॅंवा, के, कवन, कवना, केहू, का. 

2. प्रकारवाचक - अइसन, ओइसन, जइसन, तइसन, कइसन, अपने लेखा, उनका लेखा, केकरा भा किनका लेखा. 

3. मात्रावाचक - अतना, ततना, जतना, कतना. 

4. सम्बन्धवाचक - हमार, तहार, तोहर, उनकर, इनकर, सभकर. 


(ध्यान दीं - जब कवनो सर्वनाम शब्द संज्ञा से पहिले कहल भा लिखल जाव त ऊ सार्वनामिक विशेषण होखी बाकिर जब ऊ संज्ञा का बदला बोलाव भा लिखाव त ऊ सर्वनाम कहाई.  उदाहरण -

ई घोड़ा तेज दउडे़ला.  ई - विशेषण 

ई हमार संघतिया ह.  ई - सर्वनाम)


विशेषण शब्दन के रचना - कुछ विशेषण मोलिक होलें, आ कुछ के रचना संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया भा अव्यय शब्दन में कवनो प्रत्यय लगा के कइल जाला. 

1. इक प्रत्यय लगाके - मास - मासिक, पक्ष - पाक्षिक, अर्थ - आर्थिक, दैव - दैविक, सम्प्रदाय - साम्प्रदायिक, मर्म - मार्मिक,

सेना - सैनिक, नीति - नैतिक.


(ध्यान दीं - जब इक प्रत्यय लागेला तब शुरुके ह्रस्व स्वर दीर्घ में बदल जाला.  जब दूगो शब्द रहेला त दूनूके आदि स्वरन में बढ़न्ती हो जाला - पर लोक - परलोक, परलोक इक - पारलौकिक. मगर ई वृद्धि हमेशा ना होला.  उदाहरण - श्रम - श्रमिक, क्रम - क्रमिक. )


2. इत प्रत्यय लगाके - सुगन्ध - सुगन्धित, मोह - मोहित, दण्ड - दण्डित, संचय - संचित, द्रव - द्रवित, अपमान - अपमानित.


3. इम प्रत्यय जोड़के - आदि - आदिम, अन्त - अन्तिम.


4. लगाके - सुख - सुखी, क्रोध - क्रोधी, गॉंव - गॅंवई, जवार - जवारी.


5. ईय जोड़के - मानव - मानवीय, भारत - भारतीय,


6. अक लगाके - मद - मादक, मोह - मोहक.


7. इल लगाके - धूम - धूमिल, चोट - चोटिल, घाव - घवाहिल.


8. ईन जोड़के - रंग - रंगीन, ग्राम - ग्रामीण.


9. ईला जोड़के - खर्च - खर्चीला, चमक - चमकीला.


अइसहीं निष्ठ, नीय, मान्, मती, मय, य, रत, वान्, वती, शाली, वी, एरा, वाला, शील, आ, आलु, इयाह, गर, छाह, दार, अल, आक, आउ, आका, आड़ी, आड़ा, इया, क, अक्कड़, ओड़, ओड़ा, हुआ, कर, अर, सा, सी, ला वगैरह ढेरे प्रत्यय बाड़ी स जवना के जोड़के विशेषण शब्दन के रचना कइल जाला.


एकरा अलावे ढेरे उपसर्गो बाड़ी स जवना के कवनो शब्द का आगा लगाके विशेषण बनावल जाला - 

1. अ जोड़के - अयोग्य, अबर, अक्षम.

2. नि जोड़के - निरोग, निसन्तान, निरपराध.

3. दुः लगाके - दुर्जन, दुसाध्य, दुबर.

4. स लगाके - सपूत, सफल, सहज.

5. क लगाके - कपूत, कलह.

6. बे जोड़के - बेजोड़, बेहिचक, बेहोश. 

7. ला लगाके - लावारिस, लाइलाज, लापता.

 

कुछ जगहन पर विशेषण शब्दन के प्रयोग संज्ञो का तरह होला - लईकन से छोह करऽ. गद्दार गरियावल जाले.  बहादुर पूजाले.  गुरू के बात ध्यान से सुनेके चाहीं.


विशेषण विशेष्य के विशेषता बतावेला.  ई विशेषता केहू में दोसरा से अधिका त केहू में सबले अधिका पावल जा सकेला.  ई बात खाली गुणवाचक, अनिश्चितसंख्यावाचक आ अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषणन में पावल जाला.  एह तुलनात्मक अन्तर के बतावे खातिर भोजपुरी में कवनो व्यवस्था नइखे.  बाकिर तत्सम भा शुद्ध हिन्दी शब्दन में तर आ तम प्रत्यय लगाके क्रमसे उत्तरावस्था आ उत्तमावस्था बना लिहल जाला.  चाहे अधिक आ सबसे अधिक प्रविशेषण जोड़िओके एह कामके कइल जा सकेला.

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एह खण्ड में इहॅंवे तक.  अगिला अंक में क्रिया, अव्यय आ बाकी बातन के चर्चा होखी. आपन प्रतिक्रिया जरूर भेजीं सभे. 

- प्रकाशक


(भोजपुरी व्याकरण के ई खण्ड अंजोरिया डॉटकॉम पर साल 2004 का अगस्त में अंजोर कइल गइल रहुवे. ओकरा बाद ई क्रम टूट गइल काहे कि पाठकन के कवनो प्रतिक्रिया ना अइला से एह दुरुह काम से असकत हो गइल. 

अगर अंजोरिया डॉटकॉम बन्द करे के पड़ गइल त ओकरो पाछा इहो एगो कारण बा कि भोजपुरिहा लोग आपन टिप्पणी करे में सकुचाला. आ जब टिप्पणी करे में अतना कंजूसी त आर्थिक सहयोग के त सोचलो अकारथ रहुवे. अलग बात बा कि करीब एक दर्जन लोग आर्थिक सहजोग जरुर कइलस बाकिर ऊंट का मुंह में जीरा का बराबर रहल ऊ सुजोग. जबले हम अपने सक्षम रहीं तबले प्रकाशन जारी रखनी. अब उमिर के एह पड़ाव पर ना त जांगर रहि गइल बा ना बेंवत.

देखत बानी कतना लोग एह व्याकरण में रुचि देखावत बा. आपन टिप्पणी करे में सकुचाई मत. नीमन लागे त नीमन, बाउर लागे त बाउर. जबले राउर टिप्पणी सभ्यता का सीमा में रही तब ले आलोचनो प्रकाशित हो जाई, अतना वादा बा. )

रविवार, 3 नवंबर 2024

भोजपुरी आज का परिप्रेक्ष्य में

 

भोजपुरी आज का परिप्रेक्ष्य में

मारीशस टाइम्स से साभार

परमान्द सूबराह

पिछला १७ अप्रेल का दिने मारीशस के सुब्रमनिया भारती सभा भवन में भइल एकदिना सेमिनार के विषय रहे भोजपुरी आज का परिप्रेक्ष्य में. आ हमनी का ई देख के बहुत खुश भइनी जा कि मारीशस के नयका पीढ़ी के एगो छोट समूह हमनी के आप्रवासी पुरनियन का भाषा का प्रति कतना उत्साह आ छोह से भरल बा. ऊ लोग सूचना प्रौद्योगिकी के आपन जानकारी सहित सारा उद्यम एह दिसाईं लगा रहल बाड़े.

हमनी का ओह लोग के आभारी बानी जा जे भोजपुरी भाषा के खातमा खातिर १९८२ का बाद बनल सरकारन के दबाव अनदेखा करत हतोत्साहित नइखन भइल आ अपना काम में लागल बाड़न. बाकिर ओह खराबो दिनन में कुछ लोग भोजपुरी भाषा आ संस्कृति के पसार आ सम्हार में लागल रहल. बहुते वक्ता एह खातिर श्रीमती सुचिता रामदीन आ श्रीमती सरिता बुद्धू के कइल काम के जिक्र कइलन. सरिता जी त सभाभवन में मौजूदो रहली.

सेमिनार के अलग अलग सत्र के शीर्षक रहे मारीशस में भोजपुरी के विकास, मीडिया में भोजपुरी, भोजपुरी आ संस्कृति, भोजपुरी के पढ़ाई. जवन पहिलका पेपर पेश भइल तवना के शीर्षक रहे बहुभाषी मारीशस का संदर्भ में भोजपुरी के जिआवल समस्या आ संभावना. पेपर पेश कइलन प्रोफेसर विनेश हुकुमसिंह जे क्रेओल भाषा खातिर आन्दोलन चलावे खातिर जानल जालें. ऊ जे भी कहलें तवना से भोजपुरी के भविष्य खातिर आश्वस्त करे वाला ना रहे. उनका पेपर के प्रस्तुतिकरण अतना तेजी से कइलन कि ओह पर ज्यादा कुछ ना कहल जा सके, बाकिर एक बात जे ऊ साफ कहलन ऊ ई रहे कि ई बढ़िया बात बा कि महात्मा गाँधी संस्थान भोजपुरी के शोध कार्य अपना जिम्मे लिहले बा. अन्दाज कुछ अइसन रहे कि ई शोध वइसने बा जइसन कुछ लोग बेंग आ घोंघा जइसन जीवन पर करेला. काश जवना तरह से ऊ क्रेओल के बढ़ावा खातिर आन्दोलन कइलन तवने तरह भोजपुरीओ के बढ़न्ती खातिर करे के बात कहतन. मारीशस विश्विद्यालय जइसन काम क्रेओल खातिर कइलस कुछ वइसने काम एमजीआई के भोजपुरी खातिर करे के चाही.

प्रोफेसर हुकुम सिंह का तुरते बाद भोजपुरी के गरजत पक्ष लिहलन शोभानन्द सीपरसाद शिवप्रसाद. सीपरसाद बहुते गुणन के धनी हउवन बाकिर हमनी खातिर ऊ वइसन आदमी हउवन जिनकर भोजपुरी भाषा पर मजबूत पकड़ बा. अलग बाति बा कि ऊ अंगरेजी आ दोसरो भाषा पे ओतने पकड़ राखेलें आ अग्रेजी साप्ताहिक न्यूज आन संडे के सम्पादको हउवन. सीपरसाद नाटक का कहानीओ लिखे में तेज हउवन. बाकिर साथही साथ ऊ वास्तविकतावादी हउवन आ नयका पीढ़ी में भोजपुरी का तरफ बहुते कम रुझान होखे के बात सकरलन.

कुछ वक्ता लोग कहल कि हमनी का भोजपुरी में क्रेओल भाषा के बहुते शब्द समाहित कर लिहल गइल बा. कुछ लोग का हिसाब से ई बात खतरनाक बा. बाकिर ओह सत्र के अध्यक्षता करत एमजीआई के भाषा विभाग के प्रमुख डा॰पी तिरोमालचेट्टी एह बात के स्वाभाविक विकास प्रक्रिया मनलन आ कहलन कि जवन शब्द सामहित भइल बाड़ी स ओकनी के भोजपुरिया दिहल गइल बा. कुछ लोग उनका एह बात के विरोधी हो सकेले बाकिर हम ओह लोगन के धेयान अंगरेजी पर दिआवल चाहम जे अपना एही खासियत का चलते आजु विश्वभाषा बनल बिया जबकि अपना शुद्धता खातिर परेशान फ्रेंच पिछड़ गइल. हँ क्रेओल शब्दन के बेसी इस्तेमाल से आम भोजपुरी भाषी के दिक्कत होखी आ वेनबसाइटन पर काम करे वाला लोग के एह दिसाईं सावधान रहला के जरुरत बा.

सेमिनार के सितारा साबित भइलन हिन्दी अध्य्यन संभाग के प्रवक्ता कुमारदूथ विनय गूडारी जे कि इंटरनेट पर भोजपुरी के पसार में अपना काम के जिक्र कइलन. कहलन कि हर आदमी के भोजपुरी एक्सप्रेस डॉटकॉम पर जाये के चाहीं जेहसे कि ऊ दुनिया भर में फइलन भोजपुरियन का संपर्क में आ सको. बतलवलन कि ओह साइट पर भोजपुरिया डॉटकॉम आ अंजोरिया डॉटकॉम जइसन भोजपुरी साइटन के लिंको दिहल गइल बा. भोजपुरी एक्सप्रेस पर ढेर सारा भोजपुरी गीत गवनई आ भोजपुरी रेडियो भी मौजूद बा.

सवाल जवाब का सत्र में कुछ खास बात सामने आइल. एगो त रहे हमनी के उद्देश्य से भोजपुरी के विविधता के अध्ययन. शालिग्राम शुक्ला अपना भोजपुरी व्याकरण में चार तरह के भोजपुरी के जिक्र कइले बाड़े, उत्तरी, दक्खिनी, नागपुरिया, आ पश्चिमी. बाकिर ऊ चारो तरह के भोजपुरी अपना में बहुते साम्य राखेला आ एक दोसरा के समुझल बहुत आसान बा. पहिले आवागमन के साधन ना रहे जेहसे कि हर इलाका में आपन आपन बोली चल निकलल बाकिर अब जब दुनिया भर में संचार के साधन बढ़ चलल बा त धीरे धीरे एकरुपतो आइये जाई.

हमनी के पूरा भरोस बा कि भोजपुरी के एगो विश्वव्यापी रुप सामने आ के रही बाकिर एह दिसाईं शोध चलत रहे के चाहीं जवना से सबका ई मालूम हो सको कि भोजपुरी के प्रचलन हिन्दी का पहिले से बा आ ई अपने आप में एगो भाषा हऽ. कुछ लोग के ई गलतफहमी बा कि भोजपुरी ओहि तरे से हिन्दी से जुड़ल बा जइसे क्रेओल फ्रेंच से. साँच से एहले बड़ दूरी ना हो सके. क्रेओल बस गलत फ्रेंच हऽ. जबकि हिन्दी मुगल काल का खड़ी बोली से निकल के ब्रज भाषा, अवधी, भोजपुरी वगैरह का मेल से बनल जवना में संस्कृतनिष्ठ शब्दन के बहुतायत बा. जबकि भोजपुरी के उद्गम प्राकृत से भइल बा. भोजपुरी आ खड़ी बोली अलग अलग प्राकृत से निकलल बा आ एकनी के एक दोसरा के बोली ना कहल जा सके.

दोसर बात जवन सामने आइल ऊ ई कि भोजपुरी कवना लिपि मे लिखल जाव. एह बात के कवनो साफ जवाब ना उभरल. लिपिए का अन्तर से हिन्दी आ उर्दू अलग अलग हो गइली स. डेढ़ सौ साल ले बहस चलल आ साल १९५० में भारत के संविधान सभा में एक वोट का अन्तर से तय भइल कि भारत के राष्ट्रभाषा देवनागरी लिपि में लिखल हिन्दी होखी. जबकि बहुत लोग के कहनाम रहे कि अरबीफारसीओ में हिन्दी लिखल जा सकेला. हो सकेला कि अगर ऊ लोग रोमन लिपि में लिखल हिन्दुस्तानी के मांग कइले रहित त फैसला कुछ दोसर आइल रहित. एह मामिला में कवनो आम सहमति सेमिनार में सामने ना आइल बाकिर एहिजा हम बतावल चाहम कि बृन्दावन लिंगुइस्टिक एण्ड कल्चरल जेनोसाइड वाचग्रुप एगो अइसन रोमन लिपि का विकास में लागल बा जवना में मारीशस में बोले जाये वाली आ सरकारी स्कूलन में पढ़ावल जाये वाली हर भाषा के ध्वनि शामिल कइल जा सको. जब तइयार हो जाई तब ओकरा के सभका टिप्पणी आ सुझाव खातिर पेश कइल जाई.

अपना दोसरा व्यस्तता का चलते मारीशस टाइम्स के टीम पूरा सेमिनार अवधि में मौजूद ना रह सकल बाकिर हमनी का संतुष्ट बानी जा कि एमजीआई भोजपुरी अध्ययन खातिर गंभीर बा आ भगवान करस कि ओकरा एह दिसाईं सफलता मिलो.


परमाननद सूबराह जी के लिखल एह लेख के भोजपुरी अनुवाद मारीशस टाइम्स का पूर्वानुमति से प्राकशित कइल जा रहल बा. एह लेख के सर्वाधिकार मारीशस टाइम्स का लगे सुरक्षित बा. अनुवाद का क्रम में कुछ गलती हो सकेला. लेख के मूल पाठ अंगरेजी में मारीशस टाइम्स पर मौजूद बा.

संक्षिप्त भोजपुरी व्याकरण : पहिलका खण्ड

 (दुनिया भर में भोजपुरी में शुरु होखे वाला पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर जुलाई 2004 में ई लेख अंजोर भइल रहुवे. तब एकरा के पीडीएफ का रुप में प्रकाशित कइल गइल रहल. अब टेक्स्ट का रुप में डाले खातिर एकरा के कुछ बदलल गइल बा, बाकिर नया से सम्पादित नइखे कइल गइल. जइसे तब डालल गइल ओही तरह आजुओ बा.)


आपन बाति


अपना मन के बाति हमनी के जरुर बताईं ताकि राउर अँजोरिया भोजपुरी के ऑंगन में अँजोर फइला सके.  

जब नीमन रचना के इन्तजार करत एह महीना से ओह महीना हो जाव त सम्पादक आ प्रकाशक के मन के हालत के अन्दाजा कइल जा सकेला.  कबो कवनो दोसरा पत्रिका

खातिर आइल रचना छापि के काम चलाईं त कबो निहोरा कऽ के केहू से लिखवाईं.  आ जब निहोरा कऽ के लिखवायेम तऽ नीमन बाउर जवन भेंटाई, ओकरा के छापहूॅं के पड़ी.  फेरु ओहपर से विचारधारा के लड़ाई .  बाजि आके हम इहे तय कइनी कि काहे ना कुछ अइसन कइल जाव जेकर जरुरत बा. 

एही चिन्तन के परिनाम बा ई भोजपुरी भाषा अंक.  कोशिश कइल गइल बा कि भोजपुरी के एगो छोटहन व्याकरण पेश कइल जाव.  साहित्यकार आ व्याकरणी लोग त हमार मुॅंह नोचे खातिर बेचैन हो जाइ ई व्याकरण देखि के.  बाकिर हम ओह लोग से माफी मॉंग के आगा बढ़त बानी. ( एकरा के व्याकरण ना मान के अँजोरिया के शैली सिद्धान्त मान लिहला से विद्वानन के विरोध कम हो जाए के चाहीं. )

ई व्याकरण संस्कृताइन नइखे बलुक ठेठ भोजपुरिआ सवाद आ रस से भरल बा.  हमार मकसद बा कि भोजपुरी के साहित्य ना, आपसी संवाद के साधन का रुप में बढ़ावल जाव.  एह खातिर इ जरुरी बा कि एकरा के ओही तरे लिखाव जइसे ई बोलाला.  हॅं एगो सावधानी जरुर राखे के पड़ी कि जदि अर्थ के अनर्थ होखे तऽ शुद्ध वर्णविन्यास के बेवहार कइल जाव.  अँजोरिया के अगिलो अंकन में पूरहर कोशिश कइल जाइ कि एह व्याकरण के पालन होखे.  एगो बाति पर बार बार जोर दिआला कि कवनो पत्रिका खातिर ओकरा पाठकन के चिट्ठी पतरी बहुते जरुरी होखेला.  रउरा सभे एह पर आपन कमेंट, तंज नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकिलें.

संक्षिप्त भोजपुरी व्याकरण : पहिलका खण्ड


परिचय

भोजपुरी इण्डो-आर्यन भाषा परिवार के सदस्य हऽ.  इण्डो-आर्यन भाषा परिवार इण्डो-यूरोपियन भाषा परिवार के सदस्य हऽ. भोजपुरी भाषा के विकासक्रम वैदिकी से शुरु होके संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश होत अवहट्ट के शौरसेनी शाखा के बाद खतम होला.

भोजपुरी मूलरुप से आरा, छपरा, बलिया के भाषा हऽ बाकिर एकर विस्तार मध्यप्रदेश के सिद्धि जिला, पूरबी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार आ झारखण्ड, आ दखिनी नेपाल तक फइलल बा.  एकरा अलावे भोजपुरी बोले वाला लोग संसार के बहुतेरे देस-देसाईं में बसल बाड़न. चुंकि भोजपुरी लिखाला कम आ बोलाला जेआदा एहसे एकर अलग-अलग रूप अलग-अलग जगह पर बेवहार में बा.  व्याकरण के जरुरत एही अनेकता के बीच एकता उपजावे खातिर पडे़ला. 

लिपी

भोजपुरी पहिले कैथी लिपी में लिखात रहुवे.  अब त कैथी लिपी के कवनो पते नइखे.  आधुनिक भोजपुरी अब देवनागरी लिपी में लिखात बा.  देवनागरी के संक्षिप्त में नागरी

भी कहाला.  देवनागरी वइसे त मूल रुप से संस्कृत के लिपी हऽ बाकिर कालक्रम से हिन्दी आ हिन्दी के उपभाषो सभ देवनागरीये में लिखाये लगली सऽ.  भोजपुरी के कुछ वर्ण

संस्कृत भा हिन्दी में नइखे एहसे देवनागरीओ में ओकर कवनो खास वर्ण ना मिलेला.  जइसे महाप्राण ङ्ह, ल्ह, न्ह, म्ह, र्ह ओगैरह. भोजपुरी के स्वरनो के कुछ खासियत बा. 

जइसे ’अ’ के उच्चारण तीन तरह से - अर्द्ध-मात्रिक, एक मात्रिक, आ द्वि मात्रिक - होला, जवना के बिना सुनले मानल कठिन बा. अर्द्धमात्रिक इ, उ, ए ओ भोजपुरी के आपन अलग अन्दाज हऽ. 

वर्ण

मूल ध्वनि जवना के बॉंटल भा तूड़ल ना जा सके ओकरा के वर्ण कहाला.  एह वर्णन के लिपी चिह्ननो के वर्णे कहाला.  आ ओह चिह्नन के सरिआवल समूह के वर्णमाला कहाला.

मानक देवनागरी वर्णमाला

स्वर - 

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ

अयोगवाह -

ं :

व्यंजन -

कवर्ग - क ख ग घ ङ ङ्ह

चवर्ग - च छ ज झ ञ

टवर्ग - ट ठ ड ढ ण

तवर्ग - त थ द ध न न्ह

पवर्ग - प फ ब भ म म्ह

अन्तस्थ - य र र्ह ल ल्ह व

उष्म - श ष स ह

गृहीत - ऑ, ज़, फ़

संयुक्त व्यंजन - क्ष, त्र, ज्ञ, श्र


स्वर - 

जवना ध्वनि के बोले में सॉंस बिना कवनो बाधा के बाहर निकले ओकरा के स्वर कहाला.  देवनागरी में एगारह गो स्वर बाः

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ

स्वर जब व्यंजन का संगे आवेला त एकरा के मात्रा चिह्न का रूप में लिखल जाला.  उदाहरण खातिर क का संगे सब स्वरन के मात्रा दिआता -

क का कि की कु कू के कै को कौ कं कृ

अनुस्वार  -

अनुस्वार व्यंजनन के छोटहन रुप होला जवना के स्वरो का रुप में  इस्तेमाल होला.  एहके कवनो दोसरा स्वर भा व्यंजन के बिना लिखल भा बोलल ना जा सके.  जइसे कि अ का साथे एकर रुप हऽ - 

अं 


अनुनासिक स्वर - 

जब कवनो स्वर मुॅंह आ नाक दूनू से बोलाला त ओकरा के अनुनासिक स्वर कहाला आ ओकरा खातिर चन्द्रबिन्दु के मात्रा लगावल जाला.  जइसे -

चॉंद, सॉंप, टॉंग.  

बाकिर यदि ओह स्वर के मात्रा शिरोरेखा पर लागेला त चन्द्रबिन्दु ना लगाके खाली अनुस्वार लागेला.  जइसे - 

गोंद, चौंक. 

ह्रस्व स्वर का उपर जब अनुस्वार लागेला त ऊ दीर्घ हो जाला.  बाकिर अनुनासिक लगला पर ऊ दीर्घ ना होला. 

अनुस्वार लगावे के नियम - 


जब कवनो वर्ग के पंचमाक्षर (ङ ञ ण न म ) का बाद ओही वर्ग के कवनो वर्ण आवे त पंचम वर्ण का जगह अनुस्वार लाग जाला.  जइसे - संकल्प, संचय. 

य र ल व श ड्ढ स ह का पहिलहूॅं अनुस्वार लागेला.  जइसे - संयम, संरक्षक. 

बाकिर जब पंचमाक्षरे दोबारा आवे त ओकरे हलन्त रूप लिखाला, अनुस्वार ना लागे. जइसे - जन्म, निम्न, पुण्य.

विसर्ग -

एकरो के कवनो दोसरा स्वर भा व्यंजन के बिना बोलल ना जा सके. 

:

अनुस्वार आ विसर्ग के अयोगवाह-ओ कहल जाला. 

व्यंजन -

कवर्ग - क ख ग घ ङ ङ्ह

चवर्ग - च छ ज झ ´

टवर्ग - ट ठ ड ढ ण

तवर्ग - त थ द ध न न्ह

पवर्ग - प फ ब भ म म्ह

अन्तस्थ - य र र्ह ल ल्ह व

उष्म - श ष स ह

गृहीत - ऑ, ज़, फ़

संयुक्त व्यंजन - क्ष, त्र, ज्ञ, श्र


संयुक्त व्यंजन दू भा अधिका व्यंजनन के मिलला से बनेला.  एकर गिनती अलगा से ना होखे के चाहीं.  

एहीतरे गृहीत व्यंजनन-ओ के देवनागरी में ना गिन के अलगे राखे के चाहीं. एहनी के बेवहार तबे होला जब कवनो विदेशज शब्द के लिखे के होला.  जइसे - डॉक्टर. 

अघोष वर्ण - 

जवना वर्ण के बोले में स्वरतन्त्री में कम्पन ना होखे ऊ अघोष वर्ण कहाला.  एकर दू गो भेद होला - अल्पप्राण आ महाप्राण.

अल्पप्राण अघोष वर्ण के सूची -

क च ट त प य र ल श

महाप्राण अघोष वर्ण के सूची -

ख छ ठ थ फ र्ह ल्ह व ष

घोष वर्ण - 

जवना वर्ण के बोले में स्वरतंत्री में कम्पन होखेला ऊ घोष वर्ण कहाला. करो दू गो भेद होला - अल्प प्राण आ महाप्राण. 

अल्पप्राण घोष वर्ण के सूची -

ग ज ड द ब स

महाप्राण घोष वर्ण के सूची -

घ झ ढ ध भ ह

नासिक्य वर्ण - 

जवना के बोले में नाक से वायु निकले ओकरा के नासिक्य वर्ण कहाला. इहो अल्पप्राण आ महाप्राण होला. 

अल्पप्राण नासिक्य वर्ण के सूची -

ङ ञ ण न म

महाप्राण नासिक्य वर्ण के सूची -

ङ्ह न्ह म्ह

हल् चिह्न -

 ्

सभ व्यंजनन में अ के स्वर जुड़ल होला. बिना स्वर जोड़ले लिखे घरी एकर प्रयोग होला.  उदाहरण - क् ख् च् छ् .

कवनो अक्षर का आखिर में आइल ह्रस्व अ के उच्चारण ना होला तबो लिखे घरी हल् चिह्न के प्रयोग ना होला आ पूरे लिखाला. 

ड़ आ ढ़ - 

जब दूनू ओरि स्वर होखे त बीच में आइल ड ड़ आ ढ ढ़ हो जाला.

अक्षर - 

एगो भा अधिका वर्ण जब एके साथे झटका मेें बोलाला तऽ ऊ अक्षर कहाला. अंगरेजी में एकरे के सिलेबुल कहल जाला. शब्दन में एक भा अधिका अक्षर रहेला. 

स्वराघात - 

बोले का घरी अक्षर का कवनो वर्ण पर जब जोर दिआव त ओकरा के  स्वराघात कहाला.  अकसरहॉं ई बल कवनो स्वर का संगे संगे पूरा अक्षरे पर पडे़ला. जइसे, कमल में बलाघात म पर बा.  जब बीच में कवनो दीर्घ स्वर आइ त बलाघात ओही स्वर पर पड़ी.  जइसे, समोसा में बलाघात मो पर बा.  अगर आखिर में ह्रस्व अ नइखे त बलाघात आखिरी दीर्घ स्वर पर पड़ी. जइसे, पटना में बलाघात ना पर बा.

वाक्यो में कवनो शब्द पर बल पडे़ला आ कई हाली एकरा चलते ओह वाक्य के मतलबो बदल जाला. 

शब्द - 

एक भा कई अक्षरन के सार्थक समूह के अक्षर कहल जाला.

पद - 

शब्द जब वाक्य में आवेला त ओकरे के पद कहल जाला. 

वर्णयोग - 

देवनागरी लिपी के खासियत हऽ कि जब दूगो व्यंजन का बीच में कवनो स्वर ना रहे त दूनू व्यंजन एके में जुट जाला. इहे वर्णयोग कहाला.  वर्णयोग आ संधि दूगो अलग अलग चीज हऽ.  सन्धि में परिवर्तन आवेला वर्णयोग में ना. 

वर्णयोग के नियम -

1. जवना व्यंजन का अन्त में खड़ी पाई रहेला, ओकर खड़ी पाई हट जाला, आ ऊ बाद में आवे वाला व्यंजन का संगे जुट जाला. उदाहरण - प्यार, ध्यान, स्नान.

2. क आ फ के रूप बदल जाला.  ओकर पाई के बाद वाला हिस्सा आधा कट जाला आ सोझ हो जाला. उदाहरण - क्यारी, क्लेश. 

3. बाकी व्यंजन जइसे ट, ठ, ड, ढ, द, ह का साथे हलन्त के बेवहार कइल जाला.  उदाहरण - उद्धार, उद्गार, ब्राह्मण, चिह्न.

4. र् जब कवनो व्यंजन से पहिले आवेला तऽ ओकरा के ओह व्यंजन का शिरोरेखा के ऊपर ‘रेफ’ का तरह लिखाला.  उदाहरण - धर्म, कर्म, आश्चर्य, मर्म, दर्प . 

5. जब कवनो व्यंजन का बाद र आवेला तऽ ओह व्यंजन के त पूरा लिखाला बाकिर र के रूप बदलि  जाला.  उदाहरण - क्र, ख्र, ग्र, घ्र, च्र, द्र.

अपवाद - ट, ठ, ड, ढ, छ का बाद र अइला पर र के हंसपद रूप ओकरा नीचे लागेला.  उदाहरण - ट्रेन, ड्रेन.  

6. र का साथ जब उ के मात्रा लागेला त रु आ जब ऊ के मात्रा लागेला त रू लिखाला.

7. जानबूझ के द्ध द्य द्व जइसन वर्णयोग के हटा दिहल बा.  एकरा जगह पर हलन्त के बेवहार ज्यादा बेवहारिक होखी. 


संधि - 

जब दू भा अधिका वर्ण के आपस में मिलवला से ओकर रूप बदल जाव त ओकरा के संधि कहाला. संधि के तीन रूप होला - स्वर संधि, व्यंजन संधि, आ विसर्ग संधि. 


स्वर संधि - 

दू गो स्वर जब आपस में जुटेला त ओकरा के स्वर संधि कहाला.  ई आठ तरह के हो सकेला. 

1. दीर्घ संधि - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, भा ऋ के बाद अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ आवेला त दूनू का जगह पर एकेगो स्वर के दीर्घरूप आ जाला.  जइसे कि -

वेद + अन्त = वेदान्त

हिम + आलय = हिमालय

विद्या + अर्थी = विद्यार्थी

कपि + ईश = कपीश

2. गुण संधि - अ भा आ का बाद इ भा ई रहे त ए, उ भा ऊ रहे त ओ, आउर ऋ रहे त अर् हो जाला.  जइसे कि - 

देव + इन्द्र = देवेन्द्र

सुर + ईश = सुरेश

महा + उत्सव = महोत्सव

महा + उदय = महोदय

देव + ऋषि = देवर्षि 

3. यण संधि - इ, ई, उ, ऊ, भा ऋ का बाद कवनो दोसर स्वर आवे त इ, ई  के य्, उ, ऊ के व्ए आउर ऋ के र् हो जाला.  जइसे कि -

अति + अन्त = अत्यन्त

वि + आपक = व्यापक

अनु + वय = अन्वय

सु + अल्प = स्वल्प

पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

4. वृद्धि संधि - अ आउर आ का बाद ए भा ऐ आवे त ऐ आउर ओ भा औ आवे त औ हो जाला.  जइसे कि -

एक + एक = एकैक

सदा + एव = सदैव

महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य

महा + ओज = महौज

5. अयादि संधि - ए, ऐ, ओ, औ का बाद कवनो दोसर स्वर आवे त ए के अय्, ऐ के आय्, ओ के अव्, आउर औ के आव् हो जाला.  जइसे -

ने + अन = नयन

गै + अक = गायक

गै + इका = गायिका

भो + अन = भवन

भौ + उक = भावुक

6. पररूप संधि - जब पहिलका पद के आखिरी वर्ण भा अक्षर अगिलका पद के शुरुआती स्वर में विलीन हो जाला त ई पररुप  सन्धि कहाला.  उदाहरण देखीं -

कुल + अटा = कुलटा

पतत् + अँजलि = पतंजलि

7. पूर्वरुप सन्धि - जब बाद वाला पद के शुरुआती स्वर पहिलका पद के आखिरी ए भा ओ में विलीन हो जाला त ऊ पूर्वरुप सन्धि कहाला.  जइसे -

मनो + अनुकूल = मनोनुकूल

8. प्रकृतिभाव संधि - जब दुनू पद जस के तस रहि जाला त ऊ प्रकृतिभाव सन्धि कहाला.  जइसे -

सु + अवसर = सुअवसर


व्यंजन सन्धि -

1. कवनो वर्ग के पहिलका वर्ण जइसे क्, च्, ट्, त्, प् का बाद यदि स्वर, कवनो वर्ग के तीसरका भा चउथका वर्ण, चाहे य, र, ल, व आवे त ऊ अपने वर्ग का तीसरका वर्ण में बदल जाला.  उदाहरण -

वाक् + ईश = वागेश

सत् + आनन्द = सदानन्द

2. कवनो वर्ग के पहिलका भा तीसरका वर्ण का बाद यदि कवनो वर्ग के पॉंचवा वर्ण आवे त पहिलका भा तीसरका वर्ण अपने वर्ग के पॉंचवा वर्ण में बदल जाला. 

वाक् + मय = वाङमय

जगत् + नाथ = जगन्नाथ

उत् + नयन = उन्नयन

तत् + मय = तन्मय

3. त् आ द् का बाद च भा छ आवे त च्, ज भा झ आवे त ज्, ट भा ठ आवे त ट्, ड भा ढ आवे  त ड्, आउर ल् आवे त ल् हो जाला.  जइसे कि -

सत् + चित् = सच्चित्

उत् + छिन्न = उच्छिन्न

शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र

सत् + जन = सज्जन

विपद् + जाल = विपज्जाल

उत् + डयन = उड्डयन

उत् + लेख = उल्लेख

4. त् भा द् का बाद श आवे त त् आ द् के च् हो जाला आ श के छ हो जाला. जइसे कि -

उत् + श्वास = उच्छ्वास

5. त् भा द् का बाद ह आवे त त् आ द् के द् हो जाला आ ह के ध हो जाला. उदाहरण - 

उत् + हार = उद्धार

पद् + हति = पद्धति

6. म् का बाद क से लेके भ तक कवनो वर्ण आवे त म् अनुस्वार भा आवे वाला वर्ग के पॉंचवा वर्ण हो जाला.  उदाहरण -

सम् + कल्प = संकल्प

सम् + तोष = सन्तोष

7. क् से म् तकले छोड़ के म् का बाद कवनो दोसर वर्ण आवे त म् का बदले अनुस्वार लिखाला. उदाहरण -

सम् + हार = संहार

सम् + वत् = संवत्

8. कवनो स्वर का बाद छ आवे त छ का पहिले च् जुट जाला. जइसे कि - 

आ + छादन = आच्छादन

स्व + छन्द = स्वच्छन्द

9. ऋ, र् अउर ष का बाद सीघे भा कवर्ग, पवर्ग, अनुस्वार भा य, व, ह में से कवनो वर्ण के व्यवधान का बाद न आवे त ऊ ण हा जाला.  जइसे -

प्र + नाम = प्रणाम

राम + अयन = रामायण

10. स से पहिले अ आउर आ के अलावा कवनो दोसर स्वर आवे त स का बदला ष लिखाला. 

11. ग्, ज्, द्, त्, ब् का बाद यदि कवनो घोष वर्ण - जइसे ग, घ, ज, झ, ड, ढ, ण, द, घ, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, भा कवनो स्वर ना आवे त ऊ क्रम से क्, च्, ट्, त्, प् हो जाला.  दोसरा तरह से कहीं त कवनो वर्ण वर्ग के तीसरका वर्ण का बाद यदि पहिलका भा दोसरका वर्ण आवे त ऊ अपने वर्ग का पहिलका वर्ण में बदल जाला.  उदाहरण -

दिग् + पाल = दिक्पाल

उद् + पात = उत्पात

उद् + साह = उत्साह

सद् + कर्म = सत्कर्म


विसर्ग सन्धि -

1. विसर्ग का बाद च् भा छ् आवे त विसर्ग श् में, ट् भा ठ् आवे त ष् में, अउर त् भा थ् आवे त स् में बदल जाला. 

निः + चल = निश्चल

निः + ठुर = निष्ठुर

मनः + ताप = मनस्ताप

2. विसर्ग का बाद श, ष, स, आवे त विसर्ग का बदले श्, ष्, आ स् लिखाला. जइसे - 

दुः + शासन = दुश्शासन

निः + सन्देह = निस्सन्देह

3. विसर्ग का बाद क, ख, प, भा फ आवे त विसर्ग का बदला ष् लिखाला. उदाहरण -

निः + कपट = निष्कपट

4. विसर्ग का पहिले अ अउर आ का अलावा कवनो दोसर स्वर आवे आ ओकरा बाद स्वर भा कवनो वर्ग के तीसरा चउथा भा पॉंचवा वर्ण भा य र ल व आवे त विसर्ग र् में बदल जाला.  जइसे -

दु: + उपयोग = दुरुपयोग

नि: + आशा = निराशा

दु: + नीति = दुर्नीतिदु: + उपयोग = दुरुपयोग 

नि: आशानिराशा

दु: नीतिदुर्नीति

5. यदि विसर्ग का पहिले आ बाद में दुनू ओर ह्रस्व अ आवे भा पहिले अ आ बादमें कवनो वर्ग के तीसरका चउथा पॉचवा वर्ण भा य र ल व ह होखे त दुनू ओर के वर्ण आ विसर्ग तीनो हटा के ओ क दिहल जाला. देखीं -

यशः + अभिलाषी = यशोभिलाषी

मनः + हर = मनोहर

मनः + योग = मनोयोग

6. विसर्ग का पहिले अ आवे आ बाद में कवनो दोसर स्वर त विसर्ग त गायब हो जाला बाकिर एने ओने के स्वरन में कवनो सन्धि ना होला.  उदाहरण -

अतः + एव = अतएव


(भोजपुरी के विद्वानन से निहोरा बा कि एह व्याकरण के अगर संशोधित भा संवर्धित कर सकीं त स्वागत जोग रही.)


अगिला खण्ड में शब्द विचार पर चर्चा होखी.

भोजपुरी कविता के अतीत आ वर्तमान

 

भोजपुरी कविता के अतीत आ वर्तमान

डा॰ अशोक द्विवेदी

(एक )भोजपुरी कविताई के सुरूआती दौर


 

भोजपुरी कविता के प्रारम्भिक दौर के पड़ताल करत खा हमरा सोझा ओकर तीन गो रूप आवत बा - एगो बा सिद्ध, नाथ आ सन्त कबियन क रचल, दूसर लोकजिह्वा आ कंठ से जनमल, हजारन मील ले पहुँचल, मरम छुवे आ बिभोर करे वाला लोकगीतन के थाती आ तिसरका भोजपुरी के सैकड़न परिचित-अपरिचित छपल-अनछपल कबियन क सिरजल कविताई. साँच पूछीं त भोजपुरी कबिता सुरूए से लोकभाषा आ जीवन के कविता रहल बा. एही से ओमें सहजता आ जीवंतता बा. भोजपुड़ी कविता का अतीत के देखला से असन बुझात बा जइसे भोजपुरी बहुत पहिलहीं काब्य-भाषा के दर्जा पा चुकल रहे.

भोजपुरी काव्य-भाषा के आरम्भिक ड़ुप गोरखनाथ के बानी, भरथरी सिद्ध आ नाथ लोग का रचनन में ठेठ आ अनगढ़ रुप से मिलेला. पं दामोदर के 'उक्ति-व्यक्ति प्रकरण' (१२वीं शताब्दी )में ओह घरी के प्रचलितभोजपुरि शब्दन के इस्तेमाल भइल बा. ओसे ई अनुमान लगवला में आसानी होला कि भोजपुरी के कई गो गाथागीत ओही काल में रचाइल होई. बोजपुरी कविता के भाव भूईं सोझाकरे में कबीर, धर्मदास, धरनीदास, बिहार वाला दरियादास, गुलाल साहब, भीखा साहब,आ लक्ष्मी सखी जइसन कवियन क रचनात्मक भागीदारी बहुते साफ बा. मीराबाई के 'हमरे रौरें लागल कइसे छूटे' आ 'कहाँ गइले बछरु, कहाँ गइली गाइ' जइसन लाइन भोजपुरी भाषा के फइलाव के प्रमान बा. सन्त लोग त अपना प्रेमपरक रहस्यवादी भक्ति बावना के उजागर करत खा एह भाषा के सबसे जादा करीबी आ समरथ पावल. कई गो सिद्ध कवियन का कविताई में भोजपुरी के शब्द मिलि जइहें. सन्त कवियन में धरमदास जी त भोजपुरी का लोक-लय में पद रचले बाड़न. एह पुरान कविताई के भाषा में कुछ उदाहरन देखीं -

"अजपा जाप जपीलां गोरख, चीन्हत बिरला कोई."

- गोरखनाथ

"भादो रयनि भयावनि हो, गरजे मेह घहराय,
बिजुरी चमके जियरा ललचे हो, केकर सरन उठ जाय."

- भरथरी

"आठ कुआँ नौ बावड़ी, बा सोरह पनिहार
भरल घइलवा ढरकि गे हो, धनि ठाढ़ पछितात."
xx . . . . . xx
"ननदी जाव रे महलिया, आन बिरना जगाव.
कँवल से भँवरा बिछुड़ल हो, जहँ कोइ न हमार."
xx . . . . . xx
"तलफै बिन बालम मोर जिया
दिन नाहीं चैन, रात नहीं निदिया,
तलफ तलफ कै भौर किया.
तन मन मोर रहँट अभ डोले, सून सेज पर जनम छिया."

- कबीर

सिरिफ कबीरे ना, ओघरी के उत्तर भारत के ढेर संत कबि अपना प्रेम भगति आ निरगुन के रागिननि के सुर देबे खातिर भोजपुरी के अपनावल लोग -

'गल गज मोती कै हार, त दीपक हाथे हो
झमकि के चढ़ेलू अटरिया पुरुष के आगे हो!
सत्त नाम गुन गाइब सत ना डोलाइब हो.
कहै कबी धरमदास अमरपद पाइब हो.'

- धरमदास

'भाई रे जीभ कहलि नहिं जाई
रामरटन को करत निठुराई कूदि चले कुचराई.'

- धरनीदास

'काहे को लगायो सनेहिया हो, अब तुरल ना जाय!
गंग जमुनवां के बिचवा हो बहे झिरहिर नीर
तेहि ठैयां जोरल सनेहिया हो हरि ले गइले पीर.
जोगिया अमर मरे नाहिन हो पुजवल मोरी आस
करम लिखा बर पावल हों, गावे पलटूदास.'

- पलटूदास

'सतगुरु नावल सबद हिंडोलवा, सुनतहिं मन अनुरागल'

- भीखा साहब

'मने मन करीले गुनावल हो, पिया परम कठोर
पाहनो पसीज के हो बहि चलत हिलोर.'

- लक्ष्मी साहब

संत कवि लोग लोकजीवन के चित्र आ प्रतीकन के सार्थक आ प्रसंगानुकूल सन्दर्भन से जोरि के, अलौकिक जीवन के बात कहले बा लोग. अकथ कथ के कहे के, ई कूबत, जनता के बीच इस्तेमाल होखे वाली भाषा के कारन आइल बा. जीवनके नश्वरता आ भक्ति से जुड़ल ओ लोगन के पद आ बानी लौकिक बिम्ब का कारने, सहज बोधगम्य बन सकल. सहज भाव आ संवेदना से सोझे सोझा जुड़ाव का चलते, ओह लोग क पद आ निरगुन जनता में गावल गइल. कबीर तऽ खुल्लमखुल्ला भोजपुरी लोक आ जनभाषा से जुड़ल रहलन -

'बोली हमरी पुरबी हमको लखे न कोय
हमको तो सोई लखे जो पूरब का होय.'

भाव भगति से सनल, निरगुन रंग घोरे वाला कबीर के कई गो पद भोजपुरिये मिलि जाई -

'दुलहिन अंगिया काहे ना धोवाई
बालपने की मैली अंगिया विषय दाग परि जाई.'
xx . . . . . xx
'मन भावेला भगति बिलिनिए के.
पांडे, ऊझा, सुकुल, तिवारी, घंटा बाजे डोमिनिए के.'
xx . . . . . xx
'चंदन काठ कै बनल खटोलना, तापर दुलहिन सूतल हो.
उठ री सखी मोरि माँग सँवारो, दुलहा मोसे रुसल हो.'

भोजपुरी में सबसे जादे जरिगर आ जोरगर साहित्य, लोकसाहित्य के बा. एमें लोकजीवन क हूक, हुलास, संस्कृति के रंग-राग आ आँच देबे वाला साँच का साथ प्रेम आ बिरह के मार्मिक ब्यंजना बा. खेत-खरिहान, सरेह, बाग-बगइचा, कुआँ-बावड़ी, नदी-पोखरा, पहाड़ आ बन का जियतार रुप का साथे, एह साहित्य में मेहरारून के घर-गिरस्थी, स्रम-सपना, हअसल-अगराइल, पीरा आ वेदना कूल्हि के अभिव्यक्ति भरल बा. बरहा, कजरी, चैता, फगुवा, कँहरवा, बारहमासा पुरुषप्रधान प्कृत गीतन का साथे साथ सोहर, झूमर, कजरी, संझा, पराती, जेवनार, जँतसार, छठ, बहुरा, बियाह, संस्कार आ त्यौहारन पर गवाये वाला नारी प्रधान गीत लोकजीवन के सोहगग रुप खड़ा करे में समरथ बाड़न स. देबी-देबतन के मनावल-रिझावन, सरधा-भक्ति, आत्मनिवेदन का संगे-संगे देश आ देश के नायकन के नाँवे गवाये वाला देशभ्कति के गीत हराँसी आ दुख भुलावे वाली करुन-मीठ रागिनी के सँगे हँसी-ठिठोली, उल्लास, बेदना आ शोसन कूल्हि के जियतार चित्र लोकगीतन में उरेहल गइल बा. भोजपुरी कविता के ई लोकरुप लिखितरुप में भले ना होखे, बाकि जनकंठ से स्वतःस्फूर्त भइला का नाते ई लोगन का मन आत्मा में पइसल बा.

प्रेमरस में भीजल, कसक उपजावन, भावप्रधान आ निरगुनिया गीतन के सिरजनहार, 'पुरबी' के जनक महेन्दर मिसिर के गीतन का लय आ खिंचाव में, भाषा के सीमा टूट जात रहे. लोकरंग के लोकमंच देबे वाला कलाकार कवि भिखारी ठाकुर, भोजपुरी कबिताई के ना खाली दूर डूर ले फइलवले, बलुक आन्दोलन का घरी त बाबू रघुबीरनारायन के 'बटोहिया' आ मनोरंजन बाबू के 'फिरंगिया' कबिता बाहरो के लोग का कंठ में रच-बस गइल रहे. 'बिसराम' के बिरहा पूर्वाञ्चल में बिरहियन के थाती बनल त हरा डोम के कविता 'अछूत के शिकायत' ओह समय के दलित चेतना के साखी बनल.

भोजपुरी कबिता के भीति उठावे में महेन्द्र शास्त्री, रघुबीरनारायन, मनोरंजन बाबू, दण्डिस्वामी विमलानन्द, परीक्षण मिश्र, पाण्डे नर्मदेश्वर सहाय, डा॰ रामविचार पाण्डेय, प्रसिद्धनारायण सिंह, अवधेन्द्र नारायण, मोती बी॰ए॰, जगदीश ओझा 'सुन्दर', प्रभुनाथ मिश्र, चन्द्रशेखर मिश्र, रामजियावन दास 'बावला' आदि कई लोग जीवे-जंग रे लागल रहे. सुतंत्रता आन्दोलन आ ओकरा बाद ले भोजपुरी कबिता क जेवन रुप देखे के मिलत बा, ओमे राष्ट्रीय चेतना का अलावा अनुभूति का कोना-अँतरा ले भोजपुरी भाषा के सहज पइसार आ बेंवत के देखत बनत बा. गँवई जीवन आ प्रकृति एह समय का कबिताई के आलंब आ प्रतिपाद्य रहल बा.

देखल जाय तऽ भोजपुरी कविता में रोमाण्टिक भावधारा के लमहर काल ले गति मिलल बा, बाकि प्रगतिशील बिचार आ शोसित-पीड़ित लोगन के संघर्षो आ ब्यथा कथा के जियतार उरेह भइल बा. मोती बी॰ए॰, रामविचार पाण्डेय, अनिरुद्ध, अर्जुन सिंह, 'अशान्त', रामजीवन दास 'बावला', सतीश्वर सहाय 'सतीश', सुन्दर जी, रामनाथ पाठक 'प्रणयी', रामदेव द्विवेदी 'अलमस्त' आ 'अनुरागी' के मुक्तक आ गीत रचनन आदि के अलावा प्रबन्ध काव्य, खण्ड काव्य, सॉनेट आ गजल आदि काव्य विधा के समृद्ध रुप देखे मिली. साँच पूछीं त भोजपुरी कविता अपना विकासेक्रम में बहुरंगी आ शिल्प के विविधता में सिरजित भइल बिया. भाव आ बोध का दिसाईं, हालांकि ओमें आधुनिकता के प्रभाव कम्मे लउकी, बाकि वर्तमान का जथारथ से ऊ किनारा नइखे कसले. ई बात दूसर बा कि ओम्में गँवई जीवन के गहिर बोध आ संपृक्ति बेसी लउकी.

जदि सुरुआत प्रबन्ध काव्य आ खण्ड काव्य से कइल जाय त देखे के मिली कि भोजपुरी अँचरा में 'सारंगा-सदाबृज', 'बिहुला बिलाप', 'सोरठी-बृजभार', 'लोरिक', 'आल्हा', गोपीचन, भरथरी, कुवंर विजयमल, आ 'नयकवा बंजारा' जइसन लोकप्रिय कथाकाव्य के एगो कड़ी मिली. प्रबंध काव्य के बीया त आदिकाल के 'पुहुपावती' में मिल जाई, बाकि 'बलिदानी बलिया' (१९५४) से आरम्भ मानल जा सकेला. सतवाँ दशक का बाद भोजपुरी में कई गो प्रबन्ध काव्य प्रकाशित भइलन स. हरेन्द्रदेव नारायण के 'कुँवर सिंह' रामबचन शास्त्री 'अंजोर' के 'किरनमयी', सर्वदेव तिवारी के 'कालजयी कुँवर सिंह', चन्द्रधर पांडेय 'कमल' के 'नारायण', बिमलानंद सरस्वती के 'बउधायन', अविनाश चन्द्र विद्यार्थी के 'सेवकायन', कुबोध जी के 'के' आ आचार्य गणेशदत्त 'किरण' के 'महाभारत' आदि भोजपुरि प्रबंध काव्य के समृद्धि के सूचक बा.

एही तर खण्डकाव्य भोजपुरी में ढेर लिखाइल बा बाकि प्रसंगबस ओम्मे से कुछ क चरचा जरूरी बुझाता. एम्मे 'कुणाल'(रामबचनलाल), 'वीर बाबू कुँअर सिंह'(कमला प्रसाद 'बिप्र'), 'रुक जा बदरा'(मधुकर सिंह), 'सुदामा यात्रा' आ 'श्याम'(दूढ़नाथ शर्मा), 'शक्ति साधना' तथा 'द्रौपदी'(बनवासी), 'कौशिकायन'(अविनाशचन्द्र 'विद्यार्थी'),'सीता के लाल'(कुंज बिहारी 'कुंज'), 'सत्य हरिश्चन्द्र'(सर्वेन्द्रपति त्रिपाठी), 'राधामंगल'(विश्वनाथ प्रसाद), 'उर्वशी'(सत्यनारायण सौरभ), 'सीता स्वयंवर'(रामबृक्ष राय 'विधुर'), 'लवकुश'(तारकेश्वर 'राही'), 'पाहुर'(रामबचन शास्त्री 'अँजोर'), आदि के रेघरियावल जा सकेला. भोजपुरी प्रबन्ध काव्यन में काव्यशास्त्री दीठि से भलहीं छुट्टापन भा स्वच्छन्दता लउकत होखे, बाकि ओमे भाव आ बिचार के बहुत बढ़िया समायोजन भइल बा! भोजपुरी के कई गो प्रबन्ध काव्य आ खण्डकाव्य पौराणिक चरित्र आ लोक आस्था आ विश्वास केकेन्द्र रहल लोक चरित्रन पर रचल गइल बाड़न स, जइसे राम, कृष्ण, हनुमान, लव-कुश, वीर कुँअर सिंह. राम-कृष्ण के कथा, रामायन, महाभारत का प्रति लोगन के प्रेम आ स्वतंत्रता आन्दोलन के चर्चित नायक वीर कुँअर सिंह के वीरता भोजपुरी प्रबन्ध काव्य रचवइयन के ढेर खिंचले बिया. भावबोध, विचार संपन्नता आ काव्य भाष का दिसाईं 'बउधायन', 'सेवकायन', 'कुँवर सिंह' आ 'महाभारत' दमगर आ जिउगर बा.

अपना देबी देवता, लोक नायक आ आदर्श पुरुखन के प्रति भिजपुरिहन क सम्मान देबे के निराले अंदाज बा. प्रेम, प्रकृति आ मानवता के समरपित, अदम्य जिजिविषा आ साहस से भरल भोजपुरिहन क ईहे खासियत भोजपुरी कवितो में झलकेले. दरअसल भोजपुरी कविता लोक-अनुभुतियन आ ओकरे कल्पना क उड़ान क कविता हऽ. किसान, मजदूर, मेहरारु एह अनुभूतियन के वाहन हउवन. घर-गिरस्थी, खेत-खरिहान, नदी-पहाड़-जंगल एकर क्षेत्र. जिनिगी के संवेदना का स्तर पर जिये, अनुभव करे आ मरम छुवे वाली करूण-मीठ रागिनी में ओकरे ब्यक्त करे, उकेरे-उरेहे आ ब्यंजित करे में भोजपुरी के जवाब नइखे. सबसे बड़ खासियत बा कहे में सहजता आ सफगोई. बे मोलम्मा आ पालिस के. घर में कैद औरतके भितरे भीतरे कुँहकत-तलफत जिनिगी आ ओकरा बिवश स्वर के महेन्द्र शास्त्री सहजता से उकेरत बाड़न -

पसुओ से बाउर बनवलऽ हो, हाय पसुओ से!
दुलुम भइल हवा-पानी, कैदी होके कलपतानी
जियते नरक भोगवलऽ हो, हाय पसुओ से!

लोक धुनन पर गवाये जोग गीतन में महेन्द्र शास्त्री मर्मस्पर्श करे वाली करुना आ पीर भरले बाड़न. उनका रचनाधर्मिता में अनुभूति त प्रामाणिक बा, बाकि अभिव्यक्ति सपाट बा. किसान आ खेतिहर मजूर के स्रम आ उन्हन के आपुसी भावना के रेघरियावत, ऊ प्रगतिशील कविता का नियरा पहुँच जात बाड़न. हाथ पर हाथ धइले, मन मरले कुछ होखे उजियाये के नइखे. उनका उदबोधन में ई जथारथ सजीवे उतरि आवत बा किजोतलो का बाद खेत क कोना परतिये रहि जाला -

करवा पर बा करवा हो, तनी दीहऽ कुदार.
कोना ना लागल हरवा हो, तनी दीहऽ कुदार.

भोजपुरी भाषा अपना निठाठ शब्दन का ताकत आ ब्यंजक शक्ति के कारन, कवियन के ब्यंगात्मक उक्तियन में अउर प्रभावीहो जाले. सामाजिक विसंगितयन आ सत्तासीन राजनीतिज्ञन पर प्रसिद्ध नारायण सिंह बड़ा सहजता से ब्यंग्य करत बाड़न. एमे भाषा के व्यंजकता देखीं -

हुकूमत का हाथीनियर दाँत दूगो,
देखावे के दूसर चबावे के दूसर.
इ कइसन बा जादू, इ कइसन बा टोना,
लिखल जाता दूसर पढ़ल जाता दूसर.
कहल जाता दूसर, कइल जाता दूसर.


(लमहर लेख बा. धीरे धीरे जोड़ल जात रही. आवत जात रहीं.- सम्पादक)

भोजपुरी भाषा, दिशाबोध आ साहित्य खातिर समर्पित पत्रिका 'पाती'

 

भोजपुरी भाषा, दिशाबोध आ साहित्य खातिर समर्पित पत्रिका 'पाती'



भगवती प्रसाद द्विवेदी

कवनो लघु पत्रिका के पचास गो अंक निकालि लिहल, हँसी ठठ्ठा ना ह. ईहो ओईसन विशुद्ध साहित्यिक पत्रिका के, जवना के ना त व्यावसायिक समर्थन होखे, ना पीठि पर कवनो संस्था भा मंच के मजबूत खम्हा होखे, आ ना कई लोगन के सामूहिक कोशिशे होखे. ओइसे आजु-काल्ह, कुछ लोग पत्रिका के आत्म-प्रचार के जरियो बना लेले बा, जवना में आपन आ अपना मंडली सहित पूरा परिवार के गलीज खलास कके आत्मरति के पगुरी कइल जा रहल बा. समरथ के ना दोष गोसाईं. बाकिर एह से अलगा हटिके, साहित्यिक पत्रकारिता के हलका में मील के पाथर गाड़ल, सभका बेंवत-बूता के बात ना होला. प्रगतिशील चेतना के वाहक 'पाती' के ई सोनहुला अंक एही दिसाईं सोच-विचारे खातिर लाचार करत बा.

चूँकि हम शुरूआतिये दौर से 'पाती' के प्रकाशन के साखी रहल बानीं, एह से एकरा बाबत, अपना आँतर के बात लिखल आपन दायित्व बूझत बानीं. सन् १९७९ में जब एह पत्रिका के निकाले के योजना बनल रहे, त ओकरा पाछा खास तौर से चारि गो मकसद रहे

१. भोजपुरी में लिखेवाला प्रतिभा आ संभावना से भरल दमदार नवहा रचनाकारन के रचना के तरजीह दिहल.

२. विचारशीलता, समकालीनता आ आधुनिकता से जोड़ि के स्तरीय साहित्य प्रकाशन से विश्वविद्यालय में भोजपुरी के प्रतिष्ठित कइल.

३. देश-दुनिया के अउर भाषा के साहित्य के समानान्तर, भोजपुरी साहित्य के विभिन्न विधन के मानक रचनन के प्रकाशित कइल.

४. लोकसंस्कृति के संरक्षण अउर परम्परा-आधुनिकता के बीच सेतुबद्धता.

पहिले पत्रिका के आकार में छपे वाली पाती मुख्य रूप से कथा प्रधान पत्रिका रहे आ ओही रूप में दू साले लें (१९७९ से १९८० तक ) एकर चार गो अंक छपल. ओकरा बाद पत्रिका के प्रकाशन स्थगित हो गइल. ओह घरी संपादक डा॰ अशोक द्विवेदी बेरोजगारी आ चउतरफा संघर्ष से जूझत रहलन. बाकिर उन्हुका संपादकीय कौशल आ तेवर का चलते चारिए गो अंक से, पत्रिका के लीक से अलगा हटि के चले के, पहिचान बनि गइल रहे. नतीजा ई भइल कि साहित्यकारन के तगादा आ रचना आइल बन्न ना भइल आ लमहर अंतराल का बाद दोबारा शुरूआत भइल त अउर तल्ख तेवर, विचारपरकता आ पोढ़ता से लैस होके. जरत-बरत देश- दुनिया आ संस्कृति का मुद्दन पर धारदार संपादकीय आवे लागल. अइसन-अइसन विषयन पर विशेषांक अइलन स, जवन भोजपुरी खातिर एकदम टटका अउर अनछुअल रहलन स. नतीजतन, गम्हीर साहित्य के पढ़निहारन-जोगवानिहारन खातिर 'पाती' एगो जरूरी पत्रिका बनि गइलि.

भोजपुरी में 'पाती' अइसन पहिल पत्रिका रहे, जवन 'मीडिया' पर विशेषांक प्रकाशित कइलस. ओह अंक में ना खाली इलेक्ट्रानिक आ 'प्रिन्ट मीडिया' पर गहिर गम्हीर आ विचारोत्तेजक आलेख छपलन स, बलुक ओही पर केन्द्रित यादगार कहानियो प्रकाशित भइली स. लोकसंस्कृति पर अइसने एगो दमदार विशेषाकं निकलल. भोजपुरी आलोचना के दशा दिशा आ भूमिका पर एगो महत्वपूर्ण अंक पातिए छपले रहे. 'भोजपुरी कविता' पर यादगार अंक आइल, त भोजपुरी 'गजलो' पर सहेजि के राखे जोग विशेषांक प्रकाशित भइल. 'भोजपुरी एकांकी' पर 'पाती' के खअस अंक छपल. भोजपुरी में 'बाल साहित्य' के कमी आ जरूरत के मद्देनजर 'पाती' बाल विशेषांक के प्रकाशन का दिसाईं पहल कइलस. 'लोक संस्कति आ लोक साहित्य' केन्द्रित अंक के एगो अलगे महत्व रहे. 'मोती बी॰ए॰' पर केन्द्रित अंक लाजवाब आ संग्रहणीय रहे.

ओइसे त 'पाती' के हर अंक खास अंक होला, बाकिर एकर कुछ स्तम्भ पढ़निहारन गुननिहारन के विशेष रूप से धियान खिंचलन स. 'खास कवि' स्तम्भ के तहत समीक्षात्मक टिप्पणी का साथ एगो लब्ध प्रतिष्ठित आ एगो नवकी पीढ़ी के रचनाकार के चुनिन्दा रचनन का सँगे प्रस्तुति रेघरियावे जाए जोग डेग रहे. 'लोकराग' के नया अन्दाज में 'पाती खाली परोसबे ना कइलस, बलुक अउर पत्रिकन में एह तरह के शुरूआत करे खातिर प्रेरित कइलस. लोकधुन आ लोकछन्दन में आजु के समय संदर्भ से जुड़ि के रचाइल 'लोकराग' के रचना ना खाली पढ़निहारन के अभिभूत कइलस, बलुक फूहर आ अश्लील गायकी करेवालन के मुँह पर जोरदार तमाचो रहे. भोजपुरी के साहित्यिक पत्रकारिता में नया राह आ रोसनी देखावे में 'पाती' के ऐतिहासिक महत्व बा.

'पाती' कई गो रचनिहारन के, जे नवोदित आ अचर्चित रहे, पत्रिका के मार्फत चर्चा में ले आइलि आ रचनाशिलता के मुख्य धारा से जोड़लस. इहे ना, भोजपुरी क्षेत्र के हिन्दी लेखक, कवि कथाकारन के भी उकसाइके, भोजपुरी में स्तरीय साहित्य सिरजन करावेमें 'पाती' के भूमिका महत्वपूर्ण रहे.पत्रिका के ई उतजोग खास तौर से रेघरियावे जोग रहल. 'पाती' में जनपदीय रचनाकारन के, अलगा अलगा अंकन में, रचनात्मक प्रस्तुति एगो सराहे जोग डेग रहल बा. एह दिसाई 'बलिया के कवियन पर केन्द्रित' अंक विशेष रूप से रेघरियावे जोग बा. इहो बात निःसंकोच कहल जा सकेला कि आजु बलियामें भोजपुरी सिरजनशीलता का प्रति जवन सकारात्मक आ प्रेरणादायी माहौल बनल बा, ओकरा मूल मं 'पाती' आ एकरा संपादक के अगुवाई के अगहर भूमिका रहल बा.

पत्रिका के स्तरीय आ समकालीनता के दिसाईं, एगो टिटिहरी अस संपादक के कवनो जोड़ नइखे, जे अपना बल बेंवत आ संघर्षशीलता के बदउलत, अकेलहीं भोजपरी साहितायकाश के उठवले ललकारि रहल बा. नवहा रचनिहारन के ढूँढ़ि ढूँढ़ि के अँकवार भेंट करे के ललक, बाकिर कमजोर रचनन का संगे कवनो समझौता ना. एक एक रचना के माँजे आ चमकावे खातिर हम संपादक के लवसान होत देखले बानीं. इहे ओजह रहे कि साहित्य अकादमी के पत्रिका 'इंडियन लिटरेचर' के १६५वाँ अंक जब भोजपुरी पर केन्द्रित होके निकलल, त ओह मरं कई गो रचना 'पाती' से उद्धृत आ अणुदित होके छपली स.

पारिवारिक विरोध आ जुझारू जिनिगी के बावजूड 'पाती' के पचास गो अंक छपि सकल त खाली संपादक के जीवटता, जिजिविषा आ समर्पण भाव का कारन. ई त इहे साबित करत बा कि एकहीं चना अगर चाहे त भाड़ि फोरि सकेला, बशर्ते कि अशोक द्विवेदी जी नियर इच्छाशक्ति आ सृजनात्मक दमख होखे. बिसवास बा, ई सिलसिला अर्द्धशतके ले ना थम्ही, शतके ले त जरूरे पहुँची. 'पाती' पत्रिका के जान होला एकर संपादकीय, जवन सहजे विचारोत्तेजकता आ जीवंतता से भरि देला.

भोजपुरी साहित्य, भाषा, संस्कृति आ समाज पर, एकरा दशा दिशा आ उठान पर, शोधार्थी लोगन के 'पाती' के अंकन पर शोध करे खातिर आगा आवे के चाहीं.


भगवती प्रसाद द्विवेदी, टेलीफोन भवन, पो.बाक्स ११५, पटना ८००००१

भोजपुरी लिखे पढ़े के कठिनाई आ काट

 

भोजपुरी लिखे पढ़े के कठिनाई आ काट

डा॰ प्रकाश उदय

भाषा-विज्ञान में जवना के भाषा कहल जाला, तवना में, जवन कहे के होला, जतना आ जइसे, तवन कहा पाइत ततना आ तइसे, त केहू के 'आने कि' 'माने कि', 'बूझि जा जे' भा 'जानि जाईं जे' काहे के कहे के परित, काहे के कबो कविता, कबो कहनी, कबो कुछ, कबो कुछ में अपना भाषा के कबो ताने-नाववे, कबो धिरावे-नचावेके परि, काहे के उरेहे परित चित्र, गढ़े परित मूरत, काहे के गोपी लोग के 'बैननि' से 'नैकु' कहला का बादो 'अनेकु' कहे के परित 'नैननि' से आ रहल-सहल सब कुछ अपना हिलल-हिया -हिचकीनि- से!

आ जवन कहल जा सेकला, जतना आ जइसे, तवन लिखल जा सकित, ततना आ तइसे, आ लिखलका के पढ़ल जा सकित, ओतना आ ओंइसे, त आज मूर्धन्य 'ष' के उचार अलोपित ना हो गइल रहित, आ सोचीं, कतना मजा आइत, जब लता जी के गावल गीतअपना लिखइला का बाद पढ़ाइत त उनुके आवाज में पढ़ाइत, ओही लय-लोच के साथे! बाकी कइल का जाव, मनवा से त अक्सर लते जी के लय उठेला, कंठवा से फूटेला त लयवा निकहा लतहरइला लेखा लागे लागेला.

अब ई बात दोसर बा कि कवनो-कवनो अइसनो हालत होला जवना में कह के ना कहाय, लिख के कहा जाला. ईहो बात दोसर बा कि कहलका उड़ जाला, लिखलका अड़ काला, कि लिखतंग का बकतंग काम ना करे, ईहो कि कहले जीभ ना धराय,लिखले हाथ धरा जाला.

'आने कि माने' अतने, कि सभ चहलका कहा ना पावे, सभ कहलका लिखा ना पावे, सभ लिखलका पढ़ा ना पावे. खलिसा ईहे कि चहला से कम कहाला, कहला से कम लिखाला, लिखला से कम पढ़ाला. ईहो कि कबो-कबो चहला से अधिका कहा जाला, कहला से अधिक लिखा जाला, लिखला से अधिक पढ़ा जाला.

अब ई दुख होखे चाहे सुख, दुनिया के कुल्हि भाषा के साथ बा जइसे, तइसे भोजपुरियो के साथे बा. भोजपुरी के साथे अलगा से का बा? जवन बा, तवन, जरूरी त नइखे कि खलिसा भोजपुरिए के साथे होखे, देश-दुनिया के दोसरो कवनो भाषा के साथे हो सकेला. अब ई त ना कहल जा सके कि दुनिया में भोजपुरिए एगो अइसन भाषा बा जवन बात-व्यवहार में अतना बा कि लिखा-पढ़ी में कम बा. ईहाँ एह बात के तनी बिलम के दोहरिया लेबे के काम बा. भोजपुरी लिखा-पढ़ी में कम बा त एसे ना कि लिखा-पढ़ी में कम बा, एसे कि बात-व्यवहार में जादे बा. आ जादे बा त जादे जन आ जादे जगह, दूनों में जादे बा.

अतना जादे जगहन में, अतना जदे लोगन में अतना जादे कहात-सुनात भोजपुरी में जतना लिखाइल-पढ़ाइल बा, जतना लिखात-पढ़ात बा, तवन कम लागत बा, त लागते नइखे खलिसा, बड़लो बा. ना त, भोजपुरी साहित्य में जवन लिखित-लिखात बा तवना में आजो, पाठमूलक उपन्यास-कहानी के तुलना में श्रुतिमूलक कविता आ ओहू में गीतन के गमक सबसे अगवढ़ आ बढ़-चढ़ के ना आइत.

भोजपुरी में लिखे-पढ़े के जवन कठिनाई बा तवना के भोजपुरी में लिखाय-पढ़ाय के एह कमी से जोड़ के देखल जा सकेला. ई एगो मुँहे लागल, काने सटल भाषा भाषा के हाथै लगावे, आखे सटअवे में आवे वाला कठिनाई ह - आ एकर कवनो काट बा त इहे आ अतने बा कि एकरा लिखाय-पढ़ाय के कमी के कम कइल जाय. दूगो बात केतरी नी गँठिया लेबे लायक बा. एक त ई कि लिखे-पढ़े में कठिनाई के चलते, लिखाय-पढ़ाय में कमी नइखे, लिखाय-पढ़ाय में कमी के चलते लिखे-पढ़े में कठिनाई बा आ दोसर ई कि लिखहीं लायक लिखल जाई, तबहीं पढ़े लायक पढ़ा पाई.

त, भोजपुरी में लिखा-पढ़ी के कठनाई जब बाद के बात बा, 'कमी' ओकरा पहिले के बात बा, त चाहीं त ईहे कि पहिलके बतिया प पहिले बतिया लेहल जाय, एह 'कमी' के 'काहे' में ना बहुत, त थोर-बहुत त चलिए लिहल जाय. असल में, भोजपुरियन के जोर जतना अपन कहला प रहल बा ओतना अपना आ अपने भाषा में कहला प नइखे रहल. असहीं ना भोजपुरी-भूगोल के कतने कवि ब्रजभाषा के भोजपुरी भइला प भाषा वैज्ञानिक लोग के केतने किन्तु-परन्तु लगावे के मोका मिल जाला. अब एकरा के बमड़ई कहे केहू, भा बड़पनई - भोजपुरियन के भरोसा 'भाव अनूठो' प रहल बा, 'भाषा कोउ होय'. ओकरा हमेशा से एगो बड़ जमात में रहे के आदत रहल बा, अकसरुआ भइला के कवनो सजाय से कम नइखे मनले ऊ. भारत से बहरियो, जइसे माड़ीशस में, भोजपुरी भाषीय के सबसे बड़ जमात, अपना जमात के कुछ अवरु पसारे खातिर क्रियोल अपना लेलस आ अइसे कि भोजपुरी लागल बिसरे. परदेस कमाये गइला प दोसर भाषा-भाषी लोग जले भकुआइल रहेला तले त भोजपुरिया भाई लोग ओह परदेस के भाषा मे ढुक के भितरे से बतियावे लागेला. अब ई बात दोसर बा कि आपन भोजपुरी छोड़वले ना छूटे, आ भाई जी लोग चाहे अंग्रेजी बूके चाहे अरबी, हाँ अक्सर त मुँह बावते चिन्हा जाला कि कहाँ से चल के इहाँ चहुँपल बा लोग. असहीं, जब राष्ट्रभाषा के रुप मे हिन्दी के बात आइल त भोजपुरिया लोग ओकरा के अइसे अपनावल, अतना अगरा के, अपना भोजपुरी के भइला अतना बिसरा के, कि ईहो बिसर गइल कि हिन्दी ओह लोग के मातृभाषा ना ह, ओकरा के सीखे के होला, आ हिन्दिए ना, कवनो दूसरकी भाषा के सीखे के एके, इकलौता जरिया ह पहिलकी भाषा, मातृभाषा. एह बिसरला से, हो सकेला कि सु-फरलो होखे, बाकिर कु-फरल जादे. ई कु-फरलका हिन्दियो के खाता में गइल, भोजपुरियो के. हिन्दी के खाता में एहू तरे कि ओकर एगो राष्ट्रीय के बजाय प्रादेशिक छवि बन गइल, भोजपुरी के खाता में एहू तरे कि ओकरा अपना लिखाय-पढ़ाय के लते ना लागे पावल, आ आज जब हिन्दी के देशभाषिक पहचान देवे खातिर भोजपुरी के ओकरा से अलगा एगो आपन साहित्य-संपन्न पहचान के पुनरुपरावे के उपाय कइल जाता त अनेक में से एककठिनाई भोजपुरी के लिखाय-बँचाय के लेके बा. का कइल जाय, लिखे-पढ़े के जवन मोसल्लम अभ्यास बनल भोजपुरियन के, तवन हिन्दी के साथे, तवना हिन्दी के साथे जवन साहित्य-भाषा बनल मुद्रण-त्त्र का जमाना में, ओकरा चाल से चाल, ताल से ताल मिलावत. अब भोजपुरी का करो, अपना स्वरुआ सुभाव से चल के 'तें चल्' लिखो कि हिन्दी के व्यंजनुआ सुभाव के बले 'तू चलऽ'? भोजपुरी में त 'चल' आ 'चलऽ' के अलावा 'चलि' आ 'चलु' खातिर भी जगहा बा. 'फलनवा चलि गइले' खातिर भी जगहा बा आ 'चलु चिलनवा, तोरा के देख लेब' खातिर भी. बनारस और आके त भोजपुरी एकरा साथे एगो 'चला' अवरु जोड़ देला ४ चाहेला कि एह 'चला' के आ हिन्दी के 'चला' के (जइसे 'वह चला') के 'आ' अतहत मत पढ़ल जाय. मुश्किल ई बा कि बरियात में 'घोड़ा चली', 'हाथी चली' के जवन 'चली' बा, ओह चली में जवन 'ली' बा, ओह 'ली' में जवन 'ई' बा, तवना के तनी अवरु बढ़ा के, तनी अउरु दिर्घिया के अगर ई कहीं कि 'अब तू त चली जा' त मतलब होई कि 'अब तू त चलिये जा', 'अब तुम तो चले ही जाओ'. अब सोचीं कि ऊ दीर्घ से तनी कम दीर्घ पढ़ल जाय, भा अइसे लिखल जाय कि ऊ दीर्घ से तनी जादे दीर्घ पढ़ल जाय. एकर एक उपाय त ई बा कि कुछ संकेत बना लेहल जाय, ऊपर-नीचे कुछ खड़ी-पड़ी रेखा लगावे जइसन. बकिर ई कुल्ह चले वाला नइखे. सरलता से जटिलता के तरफ चलल ना आसान बा ना उचिते बा, उहो ओह जुग में जवन वर्णमाला से बहरिआव खातिर छटपटात बुझाता, जवन उकार-इकार तक लगावे के झंझट से बाँचत रोमन में एसमेसियावत बा! ह्रस्व 'ए' आ ह्रस्व 'ओ' वाला संकट हिन्दियो के साथे बा, आ एह संकट से बचे के पढ़निहार लोग खातिर कुछ नियम-कानून बनावल जा सकेला. आचार्य विश्वनाथ सिंह अपना 'मानक भोजपुरी वर्तनी' में कुछ बतलवलहूँ बाड़े. लिखे में कुछ लोग कुछ प्रयोग अपनी तरफ से चलावल, जइसे 'चलऽ' लिखे खातिर विकारी के बदले 'अ' लिख के चलअ, ई ना चलल. कुच लोग पढ़निहारन प तनी जादहीं भरोसा क के खाली च आ ल लिख के छोड़ देहल, लोग जरुरत के मुताबिक 'चल' पढ़ लेवे चाहे 'चलऽ'. एक उपाय त ई हो सकेला कि 'चलऽ' लिखे खातिर 'च' आ 'ल' के एके माथे, एके शिरोरेखा में ना लिखके, फरके-फरके लिख देहल जाय - च ल. बाकिर अँइसे छितरइला प लिखनिहार-पढ़निहार दूनो छितराये लगिहें. अइसना में पंच बीचे के राहें चलल ठीक मनिहें. हिन्दी में 'चल' लिखाला त 'ल' के 'अ' ना पढ़ाय त हिन्दिए के साथ पढ़े के अभ्यास में आइल भोजपुरिया पढ़वइया से ई उमेद राखल कि ऊ 'ल' के 'अ' के साथे पढ़ी, ठीक ना होई, आ ठीक ना होई एह उमेद का साथे 'ल' में हल के निशान लगावल. व्यंजनान्त खातिर हल लगवला से जादे व्यावहारिक होई अ-स्वरान्त खातिर विकारी लगावल. 'चलऽ' से काशिका वाला 'चला' के काम भी सँपर जाई.

अब जब 'चल' के साथे चलिये देले बानी जा त चलीं, कुछ दूर अवरु चलल जाय, आ चल के पहुँचल जाय 'चलऽता' तक. एह 'चलऽता' के 'ल' के बाद विकारी ना लगावे के परित, अगर हिन्दी के 'चलता है' के 'चल्ता है' पढ़े के लत ना लागल रहित. एह लत का चलते हालत ई बा कि 'नासऽता' के 'नासता' लिखला प 'नास्ता' पढ़ात देरी ना लागी. ओंइसे 'चलऽता', 'घूम'तः जइसन शब्दन में विकारी लगावे से बाँचे खातिर, आ भरसक बाँचही के चाहीं, एगो व्यावहारिक उपाय ई बा कि 'चलत बा', 'घूमत बा' लिखल जाय. एहू से कि धीरे धीरे कुछ लोग खातिर विकारी लगावल भोजपुरी में लिखला के चिन्हासी बन गइल बा आ ८ लोग 'ल', 'द', 'त', 'प' हँ' जइसन एकाखरियो शब्दन प अद-बद के विकारी लगा देला - तू दऽ, तू लऽ, पेड़ पऽ.... . द-ल के केहू दऽ-लऽ लिखे, तवना से बढ़िया बा कि कुछ भोजपुरी क्षेत्रन मे प्रचलित द्या भा देउ-लेउ भा देव-लेव लिखाय. भोजपुरी लिखनिहार पढ़निहार लोगन के भोजपुरी के अलग-अलग इलाका में चले वाला अलग-अलग शब्द-रुपन के जानकारी रखला से लिखे-बाँचे के कठिनाई के पार करे में कुछ सहूलियत जरूर होई. ई जानत रहला प कि 'जाइब' छपरा में 'जाए ब' हो जाला, कहीं-कहीं 'जाएम' आ काशी में 'जाब', कि 'गइलीं' भा 'गइनीं' बलिया में 'गउईं' हो जाला - अवरू ना त तुक-ओक मिलावे के कामे त अइबे करी. देवरिया देने कुछ संज्ञा शब्दन के स्वरान्त राखल जाला ह्रस्व एकार लगा के. 'बापे के बात माने के चाहीं', माने बाप के बात माने के चाहीं. एहीं एकार के तनी भ दीर्घ क लीं त 'बापे के बात माने के चाहीं' माने ' बाप की ही बात माननी चाहिए'.

ई कुल्ह जानकारी लिखल-पढ़ल के ओतना कठिन ना रहे दी, बाकिर ई कुल्ह जानकारी लिखले-पढ़ले से होई. आ ई मान के चले के परी कि हिन्दी के साथे हमनी के जतना आगे आ गइल बानी जा ओकरा से पाछा हट के अपना समस्या के सझुराईं जा, अइसन कइला से अझुरहटे जादे होई. हिन्दी के भोजपुरिहा लोग बड़ा कुला मन से बहुत कुछ देले बा आ ओतने खुला मन से ओ लोग के लेबहूँ के पड़ी, गुमाने गुमसइला के जरुरत नइखे. हर तत्सम के फोर-फार के तद्भव बना देला में कवनो बहादुरी नइखे, बलाते 'ही' 'भी' मत लिखल जाय बाकिर जरुरत परला प इन्हनियो के लिख मारे से बाज मत आवल जाय. एह सिलसिला से एहू बात के जोड़े के चाहीं कि भोजपुरी में लिखा-पढ़ी के कमाये खातिर अरकच-बथुआ-अँउजा-पथार पत लिखाय लागे, लुगरी गँथले केहू बजाज ना बनी. ईहो ना कि आज से छींकबो करब त भोजपुरिए में! जवन भोजपुरिए में सुबहित-सोगहग लिखा सकेला, तवने भोजपुरी में लिखाय, त ओकरा के पढ़हीं के पड़ी, ओकरा के लिखे खातिर लिखनिहार लिखे के कुल्हि कठिनाई पार क लीहें, ओकरा के पढ़े खातिर पढ़निहार पढ़े के कुल्हि कठिनाई के पार क लीहें.

भोजपुरी-भाषी लोग के एह कुल्हि कठिनाई से पार पावे खातिर ई इयाद राखे के परी कि ऊ लोग दू भाषी ह, आ एह दुभाषीपन के सधले रहे के होई. आज जवन भोजपुरी लिखे-बाँचे के कठिनाई बा तवन एसे ना कि ऊ लोग हिन्दी अपना लेहल, एसे बा कि ऊ लोग भोजपुरी बिसरा देहल. एकरा चलते ऊ लोग ना भोजपुरिए के रहल, ना हिन्दिएके भइल. अब अगर भोजपुरी के इयाद करे के फेरा में ऊ लोग हिन्दी बिसारे लागी त जवनो बा तवनो चल जाई. जरुरीबा कि दूनो चप्पू चले. आ बराबर चले. नाय एक अल्गी मत होखे. कबो एने ओलार, कबो ओने ओलार केहला मत होखे. संतुलन बनल रही त ईहो मिल जाई, ओने के कठिनाई के काट एने मिल जाई.

ई कुल्हि बात भोजपुरी लिखे-बाँचे के कठिनाई आ काट प बतियावे भूमिका भर. पैंतरा भर रहल हा. असल बात, आ सिलसिलेवार, अभी बाकी बा. बात के बकिए रहला के मोल ह.


हिन्दी विभाग, श्री बलदेव पी॰जी॰ कालेज, बड़ागाँव, वाराणसी.

विराम-चिह्न के आत्म कहानी

 

विराम-चिह्न के आत्म कहानी
सुनीं उनहीं क जुबानी



प्रभाकर पाण्डेय गोपालपुरिया

हम विराम-चिह्न हईं. कुछ ग्यानी लोग हमके विरामचिन्ह चाहे विरामो बोलेला बाकिर हमरा कवनो दुख नइखे, उलटे खुशी बा. हाँ, एगो बाति हम बता दीं; हमार कोशिश रहेला की लिखित वाक्यन आदि में हम कवनो न कवनो रूप से हाजिर रहीं.

हम अपने मुँहे मियाँ मिट्ठू नइखीं बनत बाकिर एक दिन हमार गुरुजी बतावत रहनी की दुनिया में जवन भी चीजु, संकल्पना आदि बानि कुल्हि; सबके आपन-आपन महत्व बा. गुरुजी के ई बाति सुनि के हमरा जिग्यासा भइल अउर हम गुरुजी से पुछि बइठनि, 'गुरुजी हमार उपयोगिता का बा?' गुरुजी मुस्कुरइनी अउरी कहनी, 'विराम! बेटवा विराम! तूँ त बहुते काम के बाड़ऽ. तहरी गैरहाजिरी में त अर्थ के अनर्थे हो जाई. अउरी वाक्यन में संदिग्धतो आ जाई.'

हमरा बहुते खुशी भइल अउरी हम गुरुजी से चिरउरी कइनी कि तनी हमरी परिचय क साथे-साथे हमरी उपयोगितो पर प्रकाश डाले क किरीपा करीं. ओकरी बाद गुरुजी हमके जवन कुछ बतवनीं, ऊ सब हम इहाँ बयान करतानी. कान देईं सभें.

लिखित भाषा क स्पष्टता, अर्थपूर्णता, प्रभावपूर्णता आदि में हमार जोगदान अविस्मरनीय अउरी अमूल्य बा. आईं सभें, एगो उदाहरन क सहायता से समझावत बानी -

पढ़ऽ, मति लिखऽ. एह वाक्य से ई साफ बा की पढ़े खातिर कहल जा रहल बा.

अब एह वाक्य में जरा हमरी (विराम चिन्ह) स्थान में बदलाव क के देखीं -

पढ़ऽ मति, लिखऽ. एह वाक्य में लिखे खातिर कहल जा रहल बा.

देखनीं हमार कमाल. इहवाँ त खाली हमार जगहिए बदलि देहले से वाक्य के उलटा अर्थ निकले लागल. आईं, अब हम आप सबके अपनी रूपन के परिचय करावतानी अउरी उहो उदाहरन रूपी चाय की चुस्की क साथे.

1. पूर्ण विराम (.) :― नामही से हम स्पष्ट बानी. वाक्य पूरा होतही हम हाजिर हो जानी. जइसे― हमार नाव विराम हऽ. हम अविराम के छोट भाई हईं.

2. अर्द्ध विराम (;) :― पूरा नइखीं हम. हँ महाराज, वाक्य क बीचही में हम शोभायमान हो जानीं. जइसे― जब भी मोहन आवेने; तू हूँ आ जालऽ.

3. अल्प विराम (,) :― जब वाक्य आदि में एक ही तरह क कई चीजन के सूचित करे वाला शब्द आवेने; हमरा आपन हाजिरी दरज करावे के पड़ेला. जइसे― राम, मोहन अउरी रहीम दोस्त हऽ लोग.

4. उपविराम (:) :― मूल बाति लिखे से पहिले अगर हमके लगाइबि त हम गदगद हो जाइबि. जइसे― राम तीनि गो हउअन : श्रीराम, परशुराम अउरी बलराम.

5. प्रश्नवाचक चिह्न (?) :― जबाब के अपेछा करीं अउरी हम ना रहीं; ई कइसे हो सकेला? जइसे― तूँ कहाँ जा तारऽ?

6. विस्मयसूचक चिह्न (!) :― वाक्य विस्मय से भरल होखे त हमार हाजिरी लगा देईं. जइसे― अरे ! तूँ कब अइलऽ हऽ?

7. रेखिका चिह्न (―) :― शब्द, वाक्यांश आदि क बाद हमके लगाके ओकर परिभाषा चाहें उपयोगिता आदि चरितार्थ क देईं. जइसे― जइसे की बाद लागल बानी.

8. संयोजक चिह्न (-) :― आपन भाई रेखिका चिह्न जइसने हमरो रूप बा, बाकिर बानी उनका आधा. हम अभिन्न शब्दन क बीच में आके ओ लोगन क प्रेम बढ़ा देनी. जइसे― माता-पिता, भाई-बहन.

9. विवरण चिह्न (:―) :― बिबरन लिखे से पहिले हमके लगा देईं. जइसे हमरी रूपन के बिबरन लिखत समय लगवले बानी.

10. कोष्ठक चिह्न (()) :― हम अपनी मुहें में वही शब्द चाहे शब्दन के जगहि देनी जवने के संबंध हमरा से पहिले आइल शब्द चाहें शब्दन से रहेला. जइसे― ऊ मुम्बई (महाराष्ट्र) में रहेला.

11. उद्धरण चिह्न ("" / ' ' ) :― हम मूल शब्द चाहे शब्दन के घेरि के ओकरी उपयोगिता सबकी नजर में ले आवेनी. जइसे― १. 'माँ मन्थरा' प्रभाकर क द्वारा लिखल गइल बा. राम कहने, "आम मीठ बा."

12. पुनरुक्तिसूचक चिह्न (") :― हमार परयोग कइले से एक ही शब्द के एक क नीचे एक कई बार लिखले से बचल जा सकेला. जइसे― १. श्री लालू यादव. २. " लल्लू सिंह.

13. लाघव चिह्न (॰) :― अगर शब्द के संछेप में लिखल चाहऽ तानी त हमार उपयोग करीं. जइसे― १. भा॰प्रौ॰सं॰ (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) २. पं॰ मदन मोहन मालवीय (पं॰ = पंडित) .

14. विकारी चिह्न (ऽ) :― भोजपुरी में विकारी चिह्न के भरपूर प्रतोग होला. कई बेर जरूरी, त कई बेर गैरजरूरी. एकर उद्देश्य ई बतावल होला कि एह चिह्न से ठीक पहिले वाला स्वर में दीर्घता बढ़ जाई. जइसे कि चाहऽ में ह के साथ जुड़ल अ दीर्घ हो जाई. दीर्घ अ भोजपुरी के खासियत हऽ आ एकर महत्व दोसर भाषा वाला ना समुझ पइहें.

आप सबके धन्यवाद ग्यापित करत, हम विरामचिह्न अपनी बानी के विराम दे तानी.


(आखिर में एगो आउर बात. पूर्ण विराम खातिर कवन चिह्न व्यवहार कइल जाव, एहमें तनी मतभेद बा भाषा शास्त्रियन में. कुछ लोग संस्कृत से आइल पूर्ण विराम चिह्न | के प्रयोग करेला त कुछ लोग अंग्रेजी से आइल बिन्दु चिह्न के. अँजोरिया पर बिन्दु चिह्न के प्रयोग कइल जाला काहे कि बाकी सगरी विराम चिह्न अंग्रेजिये से लिहल गइल बा त पूर्ण विराम का साथे विभेद काहे?
संपादक, अँजोरिया.)