संस्मरण
डा. अनिल कुमार ‘आंजनेय’
- डा. राजेन्द्र भारती
‘अतिथि देवो भवः’ कहावत सबके जुबान पर मौजूद बा. बाकिर हमार एगो अग्रज अइसन बानी कि उहां पर ई कहावत दू तरह से फिट होला. मानलीं रउरा घरे उहां का रउरा से मिले आ गईनी. रउरा जबले दण्ड प्रणाम से निपटम तबले उहां के बांया हाथ अपना गांधी झोला में जाई आ बाहर निकली त ओहमें रउरा घर का लईकन खातिर मिठाई भा फल आ रउरा खातिर कवनो साहित्यिक किताब भा पत्रिका होई. रउरा चाहीं भा ना एह भेंट के सकारहीं के होखी. काहे कि उहां का सोझा राउर नकारे वाली ताकत ना जाने कहवां बिला जाई.
आपके बूझात होई कि हम कवनो चमत्कारिक तांत्रिक का बारे में कुछ कहल चाहत बानी. बाकिर अइसन कुछ नईखे. तबो अईसन कुछ जरूर बा, काहे कि उहां का व्यक्तित्व का सोझा टिकल मुश्किल बा. उ सौम्य मुस्कुरात तेज से भरल आंखि, दमकत ललाट, स्नेह बिखेरत होंठ, दूनो हाथ प्रणाम का मुद्रा में, आ विनम्रता का बोझ से झुकल देहि. सामने वाला परिचित बरोबरी के होखो भा शिष्यवत. तब का कहब आप ई सब देखि-सुन के ?
कुछुओ सीखे के होखे, चाहे कवनो क्षेत्र होखे, कद्र के परिभाषा जाने के होखे, आदमी के मूल्यांकन करे के पद्धति सीखे के होखे त एह युग में हमरा नजर में बस एगो उहें के
बानी. गुरू, पथ प्रदर्शक, पिता तुल्य अग्रज डा. अनिल कुमार ‘आंजनेय’.
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कदम चौराहा, बलिया - 277001
(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई फरवरी 2004 में अंजोर भइल रहल)
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