रविवार, 29 दिसंबर 2024

लोकगीतन में जीवन के निस्सारता

 लेख

लोकगीतन में जीवन  के निस्सारता


- डा.भगवान सिंह भाष्कर



आजु ई संसार नश्वर हऽ. दुनिया के सब  नाता रिश्ता झूठ हऽ. आदमी एह संसार में  नाटक के पात्र के तरह आपन भूमिका निभावेला  आ जइसहीं ओकर रोल खतम होला ऊ संसार  रुपी मंच के छोड़ के चल देला. मरद मेहरारु,  बाप बेटा, हित नात, दोस्त दुश्मन सब छनिक  नाता होला. मुअला का बाद केहू केहू ना होखे.

 भारत के हर भाषा के साहित्य में जीवन  के निस्सारता से जुड़ल लिखनी के कवनो कमी  नइखे. परिनिष्ठित साहित्य होखे भा साहित्य, जीवन के नश्वरता के अनुगूंज हर जगह
 बराबरे सुनाई पड़ेला. मैथिल कोकिल विद्यापति जब सब ओरि से  हार गइलन त भगवान कृष्ण के शरण में अपना  के डाल दीहलें -

‘‘तातल सैकत वारि विन्दु सम,
सुत मित रमनी समाजे,
तोहे बिसरि मन ताहे समरपिलु,
अब मझु होवे कौन काजे,
माधव हम परिनाम निराशा.’’

लोक साहित्यो में अइसन गीतन के  भण्डार भरल बा जवन जीवन के निस्सारता का  ओरि इशारा करत बाड़े आ भगवत् भजन करे  के संदेश देत बाड़े. सब आदमी के इश्वर के दरबार में जरहीं  के पड़ी, आ पछिताये के पड़ी. एह स्थिति के  बरनन लोक गीत में देखीं -

‘‘एक दिन जाये के पड़ी परभू के नगरिया,
डगरिया बीच पछिताये के पड़ी.
उहवां कईल तू करारी,
भगति करम हम तोहारी.
ईहवां भूलल बाड़ माया के बजरिया,
डगरिया बीच पछिताये के पड़ी.’’

सब देहधारी के एक ना एक दिन भगवान का दरबार में जाहीं के पड़ी आ  ओह दिन पछिताहूं के पड़ी. काहे कि  ओहिजा से त तू कहि के चलल रहूवऽ कि  दुनिया में भगवान
के भगति करेम,  बाकिर एहिजा पंहुचला का बाद तू माया  का बाजार में आपन वादा भुला गइलऽ.  एहसे भगवान के ईहां जाये के राह में  तहरा अपना करनी पर पछिताहीं के पड़ी.

कहल गइल बा कि आदमी के अपना  गलती के अहसास हो जाव त ऊ सुधर  जाला. जीवन का कवनो चरण में ऊ सुधर  जाव आ भगवान का भगति में डूब जाव  त ओकर जिनिगी आ भविष्य संवर  जाई. एहि बाति के बरनन लोकगीत में  देखीं -

‘‘अबहिं बिगड़ल नईखे मनवा,
करऽ राम के भजवना,
ना त बान्हल जईब जम के दुअरिआ,
डगरिया बीच पछिताये के पड़ी.’’

हे मन, अबहिओं कुछ बिगड़ल नईखे.  अबहिओं से राम के भजन कर लऽ. ना  त जमराज का दरबार में तहरा के सजा  मिली आ भगवान के ईहां जाये के राह में  तहरा अपना करनी पर पछिताहीं के पड़ी.

विधि के विधान बड़ा विचित्र बा.  जनम केहू देला, भाग केहू अउर लिखेला,  आ मउत केहू तीसरा का हाथे बा. एकर  झांकी लोकगीत में देखीं -

‘‘केइये जनमिया हो दिहलें,
केइये मारेला टांकी?
कवन भइया आवेलें बोलावन हो रामा?

राम जी जनमिआ हो दिहलें,
बरम्हा मारेलें टांकी,
जम भईया आवेले बोलावन हो रामा.’’

आदमी के जनम देबे वाला के ह? के  ओकर भाग्य लिखेला? आ ओकर जीवनलीला के खतम करेला? एह सवालन के जवाबो ओही गीत में आगे बा कि रामजी  जनम देलें, ब्रह्माजी भाग्य लिखेलें, आ मउत का  बेरा जमराज के हाथ में बा.

जब कवनो आदमी के मउत होला त ओकर  शरीर अपना गति का चिन्ता में रोवे लागेला. एह भाव के बरनन लोकगीत में देखीं -

‘‘निकलत परान काया हो काहे रोई?
रोई रोई  काया पूछे माया से -
सुनहू माया चित लाई,
तू तऽ जइब अमरलोक में,
हमरो कवन गति होई?
निकलत परान काया हो काहे रोई?’’

प्राण निकलत घरी देह काहे रोवे? देह रो रो के आत्मा रुपी माया से पूछेला - तू त  अमर लोकि में चलि जईब बाकिर हमार का  परिनाम भा गति होई? मुवला का बाद आत्मा के आपन राह  अकेलहीं चले के पड़ेला. ओकर साथ देबे वाला  तब केहू ना रहे. महतारी मेहरारू भाई सब केहू  एहिजे रोवत रहि जाला. एकर बरनन लोकगीत  में  देखीं -

‘‘केश पकड़ के माता रोवे,
बांह पकड़ के भाई,
लपटि झपटि के तिरिआ रोवे,
हंस अकेला जाई.’’

आदमी के मुवला का बाद ओकर माथ अपना गोदि में रख के महतारी रोवत बाड़ी.  भाई ओकर बांह हिला हिला के रोवत बा. आ  मेहरारू ओकरा से लपट झपट के रोवत बाड़ी.
बाकिर केहू ओकरा संगे जाये वाला नइखे. सबकेहू एहिजे रहि जाई आ ऊ अपना आखिरी  सफर में अकेलहीं जाई.

आदमी कतना गलतफहमी में रहेला ! भर  जिनिगी ऊ अपना देहि के साबुन सोडा से मल  मल के धोवेला. ओकरा अपना देहि के कतना  फिकिर रहेला कि देहि चमकत रहो. काश, ऊ  जानि पाईत कि मुवला का बाद ई सब बेमानी  हो जाई. एहि बाति के अब लोकगीत में देखीं  -

‘‘एकदिन तरुवर के सब पत्ता,
झरि जईहें जी एक दिनवा.
ऐ देहिआ के मलि मलि धोवलऽ
साबुन सोडा लगाई.
सोना जइसन चमकत देहिआ
कवनो काम ना आई.’’

आदमी खाली दुनियादारी का फेर में  रहेला बाकिर जब ओकरा होश आवेला त  ऊ भगवान के गोहरावे लागेला. ऊ बुझ  जाला कि ओकर नाव के पार लगावे वाला  भगवान के छोड़ि के दोसर केहू नइखे. एह  मानसिक व्यथा के लोकगीत में बरनन देखीं  -

‘‘नइया बीच भंवर में
हमरो डगमगाइल बा,
जिअरा मोरि डेराईल बा.
दउड़ीं दउड़ीं किसन कन्हइया,
हमरो पार लगा दीं नईया.
रउरा चरन कमल में
दास लोगि लपटाईल बा,
जिअरा मोरि डेराईल बा.’’

एह गीत में अपना हालत से घबड़ाइल आदमी भगवान के गोहारत बा कि हे  किसन भगवान दउड़ के आईं आ हमरा  नाव के पार लगादीं. दुनिया भंवर में डूबे  से डेराइल राउर दास लोग रउरा गोड़ि से  लिपटाईल बा कि रउरा ओह सब लोग के  पार लगा दीं.

सांचो ई जीवन नश्वर बा. लोकगीतन जीवन के निस्सारता के चर्चा एह लेख में  संक्षेप में कइल बा. भगवान के भजन  बिना ई मानव जनम सार्थक ना हो सके.  दुनिया के मायाजाल में ना फंसि के हमनि  के भगवान का चरण में अपना के समर्पित  कर देबे के चाहीं. भगवान के किरपा हो  जाई त सब कुछ पार लाग जाई.

महामंत्री,
अ.भा.भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, पटना.
सम्पर्क - प्रखण्ड कार्यालय का सामने, सीवान.

(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई जनवरी 2004  में अंजोर भइल रहल)

दू गो गजल

 दू गो गजल


- पद्मदेव प्रसाद ‘पद्म’


(एक)



 कल तक रहल जे पावा, उ सेर हो गईल.
 निपटे रहल गंवार जे, अहेर हो गईल .

भांजत रहल जे हरदम, छाती उठाइ के.
देखत मतर में बाज से, बटेर हो गईल..

झोली जे हाथ ले के, घर घर घूमत रहे.
झेपते पलक के, बिड़ला कुबेर हो गईल..

ताकत से जे कि अपना, ढकले रहे गगन.
मउवत का पांव खींचते, ऊ ढेर हो गईल..

आसन पर ऊंच बईठल, जे कि रहे धधात.
लुढ़कते जमीं पर, गउरा गंड़ेर हो गईल..

के बा समर्थ अईसन, जे ना उठल गिरल.
राजा रहे जे कल तक, ऊ चेर हो गईल..

( दू )


सबुर बाटे हमके गिरानी से अपना.
सबुर बाटे टूटल पलानी से अपना.

अब सबुर के सिवा बाटे रह का गईल.
सबुर बाटे घीसल जवानी से अपना.

कुछ बतवनी, छिपवनी भी उनुका से हम.
सबुर बाटे बीतल कहानी से अपना.

दर्द आपन सुनाके हम कर का सकीं.
कहल कुछ ना चाहीला बानी से अपना.

सबे बाटे जानत बतावे के का बा .
लुटाईं ना राहे पर पानी के अपना.

लिखके कविता कहानी गजल जात बानी.
सबुर बाटे एही निशानी से अपना.

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बुढ़नपुरवा, बक्सर, बिहार
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(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई जनवरी 2004  में अंजोर भइल रहल)

आत्म निरीक्षण के जरुरत

सम्पादक के कलम

आत्म निरीक्षण के जरुरत


- डा. राजेन्द्र भारती



 भोजपुरी साहित्य अपना लमहर विकास यात्रा में अब अइसन मुकाम पर पंहुच गइल बा कि  ओकरा के दोसरा भाषा के साहित्य का आगा  ससम्मान राखल जा सकत बा. कुछ लोगन के कहनाम बा कि एकरा पर  बाहरी प्रभाव पड़ रहल बा, जइसे उर्दू के गजल,  जपानी के हाइकू आदि. त एहमें का नुकसान  भा खराबी बा? कवनो भाषा के कवनो विधा के  भोजपुरी में स्थान देवल भोजपुरी के प्रतिष्ठा के  बाति बा, ओकरा साहित्य के विकास आ समृद्धि  के सूचक बा. परहेज नकल से करे के चाहीं,  ज्ञान से ना. भोजपुरी साहित्य के कुछ नया  दिआई त उ भोजपुरी के उन्नयन ह, विकास ह,  समृद्धि ह. हमरा समुझ से कवनो विधा के  अपनावल भोजपुरी साहित्य के आगे बढ़ावे में  मदद करी, एहसे परहेज ना करे के चाहीं.

आजु भोजपुरी के रचनिहार लोगन के  आत्मनिरीक्षण के जरुरत बा, मिलिजुल के हर  जगह अइसन मंच बनावला के जरुरत बा जेहसे  जागरुकता बढ़ो, ज्यादा से ज्यादा लोग भोजपुरी  साहित्य आ समाज से जुड़ो, तबहीं भोजपुरी के  स्थिति सुखद होई.

राउरे -
राजेन्द्र भारती
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(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई जनवरी 2004  में अंजोर भइल रहल)


के ह लक्ष्मी

 लेख

के ह लक्ष्मी


- अजय कुमार काश्यप



सृष्टि से पहिले श्रीकृष्ण के वाम भाग से लक्ष्मी के आविर्भाव भइल रहे. लक्ष्मी बड़ा सुन्दर रहली. जनम का साथे ऊ दू रुप में बंट गइली. ई दूनो रुप अवस्था, आकार, भूषण, सुन्दरता, रंग वगैरह सबमें एक समान रहे. एगो के नाम लक्ष्मी पड़ल आ दोसरका के राधिका. ई दूनो रुप के अभिलाषा पुरावे खातिर श्रीकृष्ण दक्षिणांश से द्विभुज आ वामांश से चतुर्भुज रुप धारण कइनी. द्विभुज रुप राधाकांत आ चतुर्भुज रुप नारायण भइनी. राधाकान्त राधा आ गोपियन संगे ओहिजे रह गइनी आ नारायण लक्ष्मी संगे बैकुण्ठ चल गइनी.


लक्ष्मीजी नारायण के अपना वश में कर के सब रमणियन में प्रधान भ गइली. ई लक्ष्मी स्वर्ग में इन्द्र के संपतिरुपिणी स्वर्गलक्ष्मी के रुप में, पाताल आ मृत्युलोक के राजा के पास राजलक्ष्मी का रुप में, गृहस्थ का पास गृहलक्ष्मी का रुप में, चन्द्र, सूर्य, अलंकार, फल, रत्न, महारानी, अन्न, वस्त्र, देवप्रतिमा, मंगल, घर, हीरा, चन्दन, नूतन,मेघ आदि सबमें शोभारुप में विद्यमान रहेली. लक्ष्मी देवी शोभा के आधार हईं. जवना स्थान पर लक्ष्मी ना रहस उ स्थान शोभाशून्य हऽ.

एक बेरि के बाति हऽ. महर्षि दुर्वासा बैकुण्ठ से कैलाश जात रहीं. देवराज इन्द्र बहुत आदर से प्रणाम कइनी. दुर्वासा ऋषि खुश होके पारिजात के फूलन के माला इन्द्र के दीहलें बाकिर अहंकार में डूबल इन्द्र ओह माला के अपना हाथी ऐरावत का माथ प ध दीहलन. ऐरावत ओह माला के जमीन प फेंक दिहलस. ई सब देख के दुर्वाासा जी के खीस के पार ना रहल आ इन्द्र के सराप दिहलन कि जा तहार अहंकार के जड़ लक्ष्मी तहरा के छोड़ दीही. संगही उहां का ईहो कहनी कि जवना माथे ई माला पड़ल हऽ होकरे पूजा सबसे पहिले होई.

दुर्वासा का सराप का चलते लक्ष्मीजी इन्द्रलोक छोड़ के चल गइली. लक्ष्मीहीन इन्द्र देवतालोग के साथ ले के तब ब्रह्मा जी का शरण में पंहुचलन. ब्रह्मा जी ओह लोग के ले के विष्णुजी का लगे गइलन आ सब किस्सा कहलन. पूरा बाति सुन के विष्णुजी देवता लोग के सलाह दिहनी कि चिन्ता छोड़ऽ जा. तहरा लोगन के लक्ष्मी फेरु मिलिहन. विष्णुजी ओहलोग के इहो बतलवनी कि लक्ष्मी कहां कहां रहेली आ कहवां ना टिकस. एकरा बाद उहांका लक्ष्मीजी के आदेश दीहनी कि जा समुद्र में जनम ल. ब्रह्मा जी से कहनी कि रउआ सभ देवता लोग का संगे समुद्र मह के लक्ष्मीजी के उद्धार करे के कोशिश करीं.

बादमें समुद्र मथाईल आ लक्ष्मीजी ओह मंथन में प्रकट भइली. एहतरे लक्ष्मीजी के उद्धार भईल आ विष्णु भगवान फेरु उनुका के अपना लिहलन. ईहे लक्ष्मी जी के कहानी ह.
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अनुवादक: - मुकेश
अभिनन्दन कुटीर, सतनी सराय,
बड़ी मठिया, बलिया - 277 001

(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई दिसम्बर 2003  में अंजोर भइल रहल)

जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी,

 गीत


- देव कुमार सिंह


(एक) जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी,


 

जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी.

खालि खाए खातिर जिनिगी धिक्कार भाईजी.

जब पुण्य अनधा जुटेला, नर तन तबहीं मिलेला,
सेवा तप करऽ उपकार भाईजी,
जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी.

ई जग हवे एगो डेरा, स्थायी ना हवे बसेरा,
काहे करेलऽ तकरार भाईजी,
जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी.

जे जिनिगी पेट पोसे में गंववावल,
देशवा के जे शान ना बढ़ावल,
ओकर जिनिगी धरतिया पर भार भाईजी,
जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी.

आपस के भेद सब मिटावऽ,
सबके गलेसे लगावऽ,
बांटऽ दंनिया में सुख शान्ति पयार भाईजी,
जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी.

भूखड़ा के भोजन करावऽ,
नंगा के वस्त्र पहिरावऽ,
तबे होई तहार जिनिगी साकार भाईजी,
जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी.

(दो) कब होई देशवा में भोर

 

कब बीति दुख के अन्हरिया हो रामा,
कब होई देशवा में भोर ?
सुख के सुरुज कब होइहें उदितवा,
कब होई इहवां अंजोर ?

देशवा आजाद भईल, अइसन सुनाइल सबके,
सुखी गांव नगर होई,
अइसन बुझाइल सबके.
पड़ल मेहनत के अंखिया में माड़ाऽ.,
ढर ढर ढरकेला लोर,
कब बीति दुख के अन्हरिया हो रामा,
कब होई देशवा में भोर ?

आकि ई आजादी बबुआ,
टोपी में भुलाइ गइल,
आकि सब सेठवा तिजोरी में लुकाइ लिहलें,
आकि उहो बाड़े अभी लरिका गोदेलवा,
चललें ना झोपड़ी का ओर,
कब बीति दुख के अन्हरिया हो रामा,
कब होई देशवा में भोर ?

आकि इ मगन बाड़ें कुरुसी का खेल में,
आकि नौकरशाही इनके
डालि दिहलस जेली में,
अंखिया फोड़ाई गइल इनका जनमते,
आकि भइलें ना अभी अंखफोर,
कब बीति दुख के अन्हरिया हो रामा,
कब होई देशवा में भोर ?

आकि पनरह अगस्त रहे सुनर सपनवा,
अधनीनीये में भइल सुरुज दरसनवा,
उरुआ बोले, चमगादड़ उड़ेला,
अभी बाटे अन्हार खूबे घनघोर,
कब बीति दुख के अन्हरिया हो रामा,
कब होई देशवा में भोर ?
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प्रवक्ता, इन्टर कालेज, जमालपुर
(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई दिसम्बर 2003  में अंजोर भइल रहल)

लोरी : चुप रहऽ, चुप रहऽ, आरे मोरे लाला

 कविता

लोरी : चुप रहऽ, चुप रहऽ, आरे मोरे लाला


- सुरेश कांटक



चुप रहऽ, चुप रहऽ, आरे मोरे लाला,
राजा जी का राज में पड़ल बाटे पाला.

तेल चढ़ल ताड़ प, आकास में मसाला,
अदिमी बेकार, रोजगार ना भेंटाला.

टोपिया बा टप प, किसान जहर खाला,
चुप रहऽ, चुप रहऽ, आरे मोरे लाला.

चुप रहऽ, चुप रहऽ, मिलि गइल बालू,
सभ धन घोंटि गइल कालू जी के भालू.

हमनी के गुदड़ी, आ उनुका दोसाला,
चुप रहऽ, चुप रहऽ, आरे मोरे लाला.

बइठल निठाला, हमरा पंउवा में छाला.
पेटवा प पाला डाले, मुंहवा प ताला,

चुप रहऽ, चुप रहऽ, आरे मोरे लाला.
कांटक कहेले ओकर आका बाड़ें काका,

अपना सवादे बन करे नाका नाका.
लेबे खातिर धरती, मचवले बाटे हाला,

चुप रहऽ, चुप रहऽ, आरे मोरे लाला.
जलदी सयान होखऽ, नाग के नचईहऽ,

आरे मोरे बाबू एह बाग के बचईहऽ.
दईंता पाताल के ले जात बाटे खाला,

चुप रहऽ, चुप रहऽ, आरे मोरे लाला.
चुप रहऽ, चुप रहऽ, आरे मोरे लाला,

राजा जी का राज में पड़ल बाटे पाला.
सउसे जिनिगिया विपतिये में कटल,

अणु बम छोड़े के बेचैन बाड़े पटल.
कहेले कि राम दोसर, दोसर हवे आला,

चुप रहऽ, चुप रहऽ, आरे मोरे लाला.
छम छम नाचेले मंहगिया बजार में,

नमरी के चीझुआ बेचात बा हजारमें.
कवन दो मुदईया लगावे मकड़जाला,

चुप रहऽ, चुप रहऽ, आरे मोरे लाला.
चुप रहऽ, चुप रहऽ, काल्हु भात खईब,

ढेर नधिअइब त मार लात खइब.
नेतवन के पूत मरे, कइलन स घोटाला,

चुप रहऽ, चुप रहऽ, आरे मोरे लाला.
परपी भगवनवा के आंखि बाटे फूटल,

हमनी के मूसरे से सीखले बा कूटल.
पछ करे पड़वन के पाके फूल माला,

चुप रहऽ, चुप रहऽ, आरे मोरे लाला.
दिनों दिन बढ़ता, जे काला धन खाला,
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कांट,
बक्सर - 802 112कविता
(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई दिसम्बर 2003  में अंजोर भइल रहल)

मगन किसान बाड़ें

कविता

मगन किसान बाड़ें


- शम्भु नाथ उपाध्याय



मगन किसान बाड़ें, हासिल निहारीं.

गदराइल मटर सरसो, तीसी चनवा फुलाइल,
रंग बिरंगा खेत देखिके,
खेतिहर बा अगराइल.
हंसेला किसानवां, सोचेला आपना मनवां,
असों नाहीं रही बड़की बंचिया कुंआरी,
मगन किसान बाड़ें, हासिल निहारीं.

चनवा दे दी साहू के करजा,
मटरा खाद के खरचा,
घरवाली के समुझाइब,
मति करिहे तू चरचा.
गेंहुआ खिआदी संउसे बराती,
तेल के खरचा सरसउवा सम्हारी,
मगन किसान बाड़ें, हासिल निहारीं.

जउवा सभ लरिकन के पाली,
दालि बनि लेतरी के,
बा अभाग, धनिआ का देखीहें
सपना देवपरी के ?
गुरवा बिकाई, पगरी रंगाई,
धनिया के बेसाहबी छापलिसारी,
मगन किसान बाड़ें, हासिल निहारीं.

बाछावा देके करबी निहोरा,
रुसल हित मनाईबि,
हं भगवान आस के पूरव..,
हम परसाद चढ़ाइबि.
पुरइबि सपनवां, चहकी अंगनवा,
डोलि चढ़ि जा दिन दुलहा अईहें दुआरी.
मगन किसान बाड़ें, हासिल निहारीं.
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तिखमपुर, बलिया - 277 001
(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई दिसम्बर 2003  में अंजोर भइल रहल)

बाटे क दिन के ई जिनिगी

 

कविता

बाटे क दिन के ई जिनिगी


- डा. बृजेन्द्र सिंह ‘बैरागी’


कशमीर से कन्याकुमारी तक हई देखीं,
होत बाटे पाप अपराध रोज जघन्य जी.
खात बाटे अदमी के अदमिये अब देखिं,
करताटे कुकरम धुआंधार ई अक्षम्य जी.

कहताटे शौक से सीना तानि अदिमी ई,
बा धरम ईमान सत्य प्रेम अब अमान्य जी.
जीओ चाहे मरो अब अदिमिअत भागि से,
प्रेम के पुजारी बाड़ न ईहवां नगण्य जी.

दिनों दिन बढ़त बाटे गिनति असुरवन के,
परंम के सजात बाटे चितवा असंख्य जी.
मान स्वाभिमान अब बचाईं लींजा हिन्द के,
परेम के जलाई जोति घर घर अनन्य जी.

परेम से रंगाइल रंग में बसेलन सुदामा कृष्ण,
नानक, कबीर, बुद्ध, सूर,तुलसी, चैतन्य जी.
पशु पक्षी पेंड़ अउर पहाड़ के सुनाम सुनीं,
होई जाई भारत वैकण्ु ठ धन्य धान्य जी.

शान्ति अहिंसा अउरी प्रेम के पढ़ाईं पाठ,
कशमीर से कन्याकुमारी तक एकरम्य जी.
कहेलन बैरागी विचार करीं भाई जी,
बाटे कई दिन के ई जिनिगी सुरम्य जी.
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आदर्श नगर, सागरपाली, बलिया- 277506
(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई दिसम्बर 2003  में अंजोर भइल रहल)

लघुकथा संग्रह थाती से पाँच गो कहानी

लघुकथा संग्रह थाती से पाँच गो कहानी

- भगवती प्रसाद द्विवेदी


 

(1) त्रिशंकु

सबेरे जब पता चलल कि मुहल्ला के सुरक्षा बेवस्था खातिर एगो समिति के गठन कइल गइल हा, त हम अपना के रोकि ना पवली आ सचिव पद खातिर मनोनीत अपना मकान मालिक का लगे चहुँपली, 'सिन्हा जी सुने में आइल हा जे रउआँ सभे काल्ह सांझी खा मुहल्ला के लोगन के जान माल के हिफाजत खातिर एगो समिति के गठन कइनीं हां, बाकिर हमरा के रउआं सभ बोलइबो ना कइनी?'

'आरे भाई, रउआँ अस किराएदार लोगन के का ठेकाना!' सिन्हा जी हमरा के समुझावे का गरज से कहलन, 'आजु इहां बानीं. कालह मुहल्ला छोड़ि के दोसरा जगह चलि जाइब. एह मुहल्ला के स्थायी नागरिक रहितीं त एगो बात रहित!' हम भीतरे भीतर कटि के रहि गइलीं.

अबहीं बतकही चलते रहे, तलहीं गांव से पठावल आजी के मुअला के तार मिलल आ हम बोरिया बिस्तर बान्हि के गांवे रवाना हो गइलीं.

आजी के सराध के परोजन से छुटकारा पवला का बाद एक दिन परधान जी के चउतरा का ओरि टहरत गइलीं त देखलीं कि मंगल मिसिर के एह से कुजात छाँटल जात रहे काहे कि ऊ अपना जवान बेवा बेटी के फेरु से हाथ पियर करे जात रहलन.

'पंच लोग! रउआँ सभे ई अनेत काहें करे जा रहल बानीं?' अबहीं हम आगा बोलहीं के चाहत रहलीं कि परधान जी हमरा के डपटि के हमार बोलती बन क दिहलन, 'तूं कवन होखेलऽ एह ममिला में दखल देबे वाला? अपना शहर में ई शेखी बघरिहऽ! ई गांव के ममिला हऽ, बुझलऽ?'

रउएँ बताईं, हम अपना के गँवई सनुझी आ कि शहरी?

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(2) न्यूट्रान बम

मुखिया जी अपना दुआर पर हुक्का गुड़गुड़ावत अखबार बाँचत रहले. एक ब एक उन्हुकर निगाह एगो खबर पर जा के अँटकि गइल आ ऊ बगल में बईठल समहुत चउधररी के झकझोरलें, 'समहुत भाई, अब त ई बिदेसी वैज्ञानिकओ गजबे जुलुम करे जा रहल बाड़े स!'

'ऊ का मुखिया जी? कवनो खास खबर छपल बा का?'समहुत चउधरी मुँह बा के सवाल कइले

'हँ भाई! उहाँ के वैज्ञानिक लोग एगो बम बना रहल बा न्यूट्रान बम! ई बम जहवाँ गिरी उहवां के घर दुआर त सही सलामत बाँचि जइहें स, बाकिर जीयत परानी जरी सोरी साफ हो जइहें.' मुखियाजी असलियत बतवले.

'बाप रे, अइसन जादू!' समहुत चिहुँकले.

'हँ हो! बाकिर जब आदमिए ना रही त इ चीज बतुस आ घर दुआर रहिए के का करी!'मुखिया जी हुक्का एक ओरि ध दिहले.

'बाकिर मुखिया जी, ई त कवनो नयका बाति नइखे बुझात. अइसन बम त इहवाँ पहिलहीं से बनल शुरु हो गइल बा.' समहुत चउधरी कुछ सोचत कहले.

'का बकत बाड़ऽ समहुत भाई! न्यूट्रान बम आ अपना देस में?'मुखिया जी अचरज से पुछलन.

'ठीके कहत बानी मुखिया जी! चिहाईं मति! अपना देस में पढ़ाई के एगो अइसने न्यूट्रान बम छोड़ाइल बा. तबे नूँ जब आदमी पढ़ि लिखि जात बा, तब ऊ बहरी से ओइसे के ओइसहीं रहत बा, बाकिर ओकरा भीतरी के आदमीयत मरि जात बा. आ जब आदमीयते ना रही, त आदमी ससुरा रहिए के का करी!' मुखिया जी अबहुँओ समहुत का ओरि टुकुर टुकुर ताकत रहले.

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(3) अबला

बेरोजगार सुशील अँगना में बँसखट पर बइठि के 'रोजगार समाचार' में रोजगार ढूँढ़े में लवसान रहले. माई पलँगरी पर बईठि के 'पराती' के कवनो कड़ी मने-मन बुदबुदात रहली.

धनमनिया तवा पर रोटी सेंकति रहे. ओकर देहिओ गरम तवा लेखा जरति रहे. बाथा का मारे माथा फाटत रहे. ओकर मन रोवाइन-पराइन भइल रहे.

तलहीं नीके तरी खियाइल तवा पर रोटी सेंकत खा धनमनिया के हाथ जरि गइल. भरि तरहत्थी फोड़ा परि गइल. दरद का मारे तड़फड़ात एगो बेपाँख के चिरई-अस घवाहिल होके ऊ आँचर से लोरपोंछत बड़बड़ाए लागलि, 'हमार करमे फूटि गइल रहे. ... एह से नीमन रहित जे बाप-महतारी हमरा के कुईयाँ में भठा देले रहितन... हमरा के जहर-माहुर दे के....'

'ऊँह! ई नइखे सोचत जे तोरा अइसन चुरइल के अइसन भलामानुस घर कइसे मिलि गइल!' पलँगरी पर करवट बदलत सुशील के माई जवाब दिहली.

उन्हुकर बोली धनमनिया के जरला पर नून नियर लागल. ओकरा देहि के पोर-पोर परपरा उठल. ऊ मुँह बिजुका के चबोलि कइलस, 'काहे ना! हमार सुभागे नूं रहे जे अइसन कमासुत मरद, नोकर-चाकर...!'

सुशील तिलमिला के आँखि तरेरले. उन्हुकरा बुझाइल जइसे उन्हुकर खिल्ली उड़ावल जात होखे.

'बात गढ़े त खूब आवेला कुलच्छिनी के!' धनमनिया के सासु अब बिछौना पर से उठिके बइठि गइल रहली, ' सुशीलवे हिजड़ा अइसन बा जे तोरा-अस कुकुरिया के घर मे रानी बना के बइठवले बा. दीगर मरद त कबहिएँ कुईयाँ में भसा आइल रहित. ना रहित बाँस ना बाजित बाँसुरी!'

सुशीलो के ताव आ गइल. मरदानगी के चुनौती! ऊ 'रोजगार समाचार' के भुईयाँ बीगि के देहि झाड़त ठाढ़ हो गइले आ पत्नी के देहि पर लात-झापड़ आ मुक्का बरिसावे लगले, 'हरामजादी! तोर अतना मजाल! हमरा देवी-अस महतारी से लड़त बाड़े? हम तोर चमड़ी नोचि घालबि.'

धनमनिया एने चुपचाप रोवति-बिलखति रहे आ सुशील आपन मरदानगी देखावत ओकरा के अन्हाधुन्हि लतवसत रहले. थोरकी देरी का बाद, जब ऊ हफर-हफर हाँफत हारि-थाकि गइले त ओकरा के ढाहि के बहरी बरंडा में चलि गइले.

धनमनिया के अइसन लागल जइसे केहू ओकरा देहि में आगि लगा देले होखे आ ओकर सउँसे देहि धू-धू क के जरति होखे. ऊ कहँरत उठलि आ फेरु रसोई बनावे लागलि.

चूल्हा बुता के आँचर से आँखि पोंछत धनमनिया सुशील का लगे जा के ठाढ़ हो गइलि, 'अजी, सुनऽ तानीं? चलीं, खा लीं!'

'हम ना खाइब!' सुशील झबरहवा कुकुर-अस झपिलावे लगले, ' तें भागऽ तारे कि ना ईहाँ से?'

'चलीं ना, हमार किरिया...' धनमनिया सुशील के बाँहि ध के खींचे लागलि.

सुशील झटकरले,'हम ना खाइब... ना खाइब...ना खाइब!'

'हमरा से गलती हो गइल. माफ क दीं.' धनमनिया सुशील के गोड़ ध के माफी माँगे लागलि. बाकिर सुशील दाँत से ओठ काटि के एगो भरपूर लात ओकरा देहि पर जमा दिहले, 'हरामजादी! नखड़ा देखावत बाड़े? हमरा से बोलिहे मत!'

धनमनिया आह क के गिरलि, फेरु उठल आ घर में ढूकि गइलि. थोरकी देरी का बाद खिड़की राहता से ऊ बहरी निकलि गइल. बाकिर कबले ऊ अबला बनल रही? सवाल झनझनाए लागल आ ऊ सबक सिखावे खातिर कड़ेर हो के अततः वापिस लवटे लागलि.

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(4) धरम करम

भिनुसहरा होत पंडीजी जइसहीं कनखियवनीं कि भगत लोग ओकरा के अन्हाधुन्ह पीटल शुरु कऽ दिहल आ तब ले ओकर ठोकाई होते रहि गइल जब ले ऊ बेहोश ना हो गइल. भला होखे त काहें ना, भला चर्मकार होके मठिया में ढूके के गलती जे कइले रहे!

साँझी खा मठिया में भगत लोग के भीड़ देखते बनत रहे. पंडी जी पाठ शुरु कइनीं, - ' जात पाँत पूछे ना कोई, हरि के भजे से हरि के होई'...

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(5) महिमा

जब खटिया पर अलस्त होके परल बेमार मेहतारी के फाँका ओकरा से देखल ना गइल त ऊ सिंगार-पटार क के घर से बहरी निकले लागलि. माई कहँरत पूछलसि, ' अरे फुलमतिया,कहवाँ जा तारे?'

' बस अबहिएँ आवत बानी, माई! तनी बसमतिया सखी के घरे जात बानी.' ऊ कुलाँचत बहरी निकल गइलि.

फुलमतिया दुलुकिया चाल से चलत सेठ धनिक लाल के हवेली का ओरि बढ़े लागलि. ओहे दिने कइसे ऊ ओकरा के लालच देखावत रहलन! गिद्ध नियर उन्हुकर आँखि ओकरा देहि पर गड़ले रहि गइल रहे. चलऽ, सेठ के मन के भूख मिटवला का बदला में माई के पेट के भूख आ लमहर दिन से चलत आवत बेमारी त मेटी.

जब फुलमतिया माई के हाथ मे ढेर खानी नोट गिनि के थम्हवलसि त माई के अचरज के ठेकाना ना रहे, ' फुलमतिया, अतना रोपेया कहवाँ से चोरा के ले अइले हा रे?'

' माई, सड़क पर गिरलरहल हा. हम उठा लिहली हा.' फुलमतिया जान बुझि के झूठ बोललसि.

' भगवान! सचहूँ तूँ सरब सकतीमान हउवऽ! गरीब गुरबा के छप्पर फाड़ि के देलऽ तूँ. तहार महिमा अपरम्पार बा. हे दीनानाथ!' आ फुलमतिया के माई ढेर देरी ले नोट के छाती से लगा के भाव विभोर हो के ना जाने का का बुदबुदात रहि गइलि.

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(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई सब कहानी साल 2006 में अंजोर भइल रहल)

शनिवार, 28 दिसंबर 2024

विकास माने हाफ पैंट

 ललित निबन्ध

विकास माने हाफ पैंट


- डा. दिनेश प्रसाद शर्मा

एह लेख के मथेला पढ़िके काहे चकचिहाइल बानीं ? काहे भकुआईल बानीं जी ? रउआ इहे नू सोचत बानीं कि भला इहो कवनों मथेला में मथेला भइल ? कहवां विकास आ कहवां हाफ पैंट ! एह दूनो के तालमेल कइसे बइठि गइल ? दूनों के गोटी एके जरे कइसे सेट हो गइल ? एह दूनों के एक दोसरा से कवनो तालमेल हइये नइखे त इन्हनीं के एके जरे रखला के मतलब ? घबड़ाईं जिन. हम फरिया फरिया के फरिआवत बानीं नू. दूनों के गोटी एक जरे बइठावत बानीं नू.

कवनो जीव जब एह धरती पर जनम लेला त ऊ आपन पूरा जिनिगी के लम्बाई चौड़ाई के सभसे छोटहन रूप में रहेला. जइसे जइसे समय बीतल जाला भा ई कहीं कि ऊ जीव आपन उमिर जीअत जाला ओइसे ओइसे ओकर लम्बाई चौड़ाई बढ़त जाला. प्रकृति के ई अइसन ना नियम बा जेकरा के नकारल ना जा सकेला. हं, ई हो सकेला कि कुछ खास जीव के बढ़े के हिसाब किताब कवनों खास उमिर पर जा के रुकि जाय आ कुछ के ता-जिनिगी चलत रहे. हमरा आजु तले ई सुने में ना आइल कि एह धरती प कवनों जीव अइसनो बा जवन जनम के बेरा आपन जिनिगी के पूरा लम्बाई चौड़ाई में रहे आ जइसे जइसे ओकर उमिर बढ़त गइल ओइसे ओइसे ओकर लम्बाई चौड़ाई घटत घटत एकदम सोना पर पहुंचि गइल. अइसे त एह धरती प एक से एक जीव पटाइल पड़ल बाड़ें. कुछ हमनी के लम्बाई चौड़ाई से कई गुना जादे बड़, त कुछ अइसनों जवना के खुला आंखि से देखलो ना जा सकेला. एहसे अगर प्रकृति अपना गरभ में ओइसनको जीव के रखले होखे जवन उमिर के साथ अपना लम्बाई चौड़ाई में घटत जाला त इ हमरा जानकारी के बाहिर के बाति बा.

एह धरती प के सभसे अजूबा जीव आदमी ह. ऊ अपना आप के अपना कारनामा से दोसर दोसर जीव से एकदम अलगा साबित क देला. मानव समाज में जब कवनों लईका जनम लेला त ओकरा के खाली एगो लंगोटी आपन खास जगह के तोपे खातिर पहिरावल जाला. ओह घरी ऊ अपना जिनिगी के सभले छोट लम्बाई चौड़ाई में रहेला. जइसे जइसे ऊ लइका आपन उमिर बितावल शुरू करेला ओकरा लम्बाई चौड़ाई के अनुपात में ओकरा लंगोटियो के लम्बाई चौड़ाई बढ़त जाला. ऊ लंगोटी अब चड्ढी के रुप ले लेले रहेला. फेनु उहे चड्ढी हाफ पैन्ट का रुप ध के एगो नया रुप में लउके ले. उहे लइका जब जवानी के देहरी प आपन गोड़ ध देला, फुल पैन्ट भा पाजामा के अपना चुकल रहेला. जइसे जइसे आदमी के उमिर में बढ़ोतरी होला ओइसे ओइसे देह के आकार के संगे संगे ओकरा देहि के बहतरो में बढ़ोतरी होत जाला.

लइका जबसे किशोरावस्था में आ जाला ओही घरी से ऊ चाहेला कि ओकर टंगरी पूरा के पूरा तोपाइल रहो. ऊ भरसक एही फेर में रहेला कि ओकर टंगड़ी एड़ी के उपर उघार मत लउके. एकरा खातिर ऊ फुल पैन्ट भा पाजामा अपनावेला. लइकाईं में ऊ एह बाति प कवनो खास धेयान ना दे काहे कि ओह घरी ले ओकरा दिमाग में ओतना चरफर ना भइल रहेला. ओह घरी ओकरा में सोचे समुझे के अतना ताकत ना रहेला तबो ऊ अपना से उमिरदार आदमी के देखि के सीखे के कोसिस करत रहेला. जइसे जइसे ऊ बड़ होत जाला, छोट से छोट बाति प धेयान देबे लागेला.लइकन के लइकाई वाला हरक्कत अगर बूढ़ भा सयान आदमी करे लागेला त ई दोसर लोग के हजम ना होखे आ उनुका मुंह से बरबस निकल जाला कि का लइकभुड़भुड़ई कइले बाड़ऽ ?

कुछे दिन पहिले के बाति ह. हमनी के देस में पुलिस डिपाट में सिपाही जी लोग के हाफपैन्ट पहिन के डिउटी करे के पड़त रहे. कपार प के बार एकदम सन हो गइल बाकि उनूका डिउटी में फुलपैन्ट पहिने के इजाजत ना रहे. ना जाने सरकार के दिमागी कारखाना में कवन अइसन फारमूला तइयार भइल कि ऊ उनुका लोगन के हाफपैन्ट के जमानत जब्त क के फुलपैन्ट पहिरे के फरमान जारी क दिहलस. कुछ खास बाति त जरूरे होखी. हमरा त इहे बुझाला कि सरकार के बूझला इ पसन ना पड़ल कि बूढ़ बूढ़ सिपाही हाफपैन्ट पहिर के आध उघार हालत में आपन डिउटी करे. इनिका लोग के अपना डिउटी का समय में हरेक किसिम के आदमी से पाला पड़ेला. जवना में लइका सयान मरद मेहरारू सभे रहेलन. सभका बीच में सिपाही जी के हाफपैन्ट में घूमल भला नीक कइसे कहाई ?

ई सभ बाति त मरदन के भइल. अगर मेहरारूअन प नजर ना फेरल जाइ त ई उन्हनीं का संगे सरासर अन्याय होखी. काहे कि हमरा देस में मरद मेहरारू दूनो के बराबर के अधिकार मिलल बा. अगर ओह लोग का बारे में कुछ ना कहाई त ई ओह लोग के अधिकार के हनन होखी. हमरा कवनो अधिकार नइखे बनत कि सरकार से मिलल ओह लोग के सरकारी अधिकार के नजरअंदाज करीं भा ओकर मजाक उड़ाईं.

लइकी जब नन्ही चुकी रहेले त चड्ढी आ फराक में समेटाइल बटोराइल रहेले. जेंव जेंव ऊ बढ़त जाले ओकरा प देह दिखावन के सीमा, जवन हमनी के समाज तय कइले बा, लागि जाले. ऊ खाली आपन एड़ी आ मूड़ी उघार राखि सकेले, उहो हिन्दू धरम के मोताबिक. मुसलमानी धरम के मोताबिक ओकरा आपन मूड़ियो तोप के राखे के रिवाज बा. लइकी जखनी सयान होके बिआह के बन्हन में बन्हा जाले त ओकरा आपन संउसे देहि लोग का नजर से बचा के राखे के पड़ेला. यानि की पूरा के पूरा देहि कपड़ा से तोपाइल.

खैर इ त हमनी के देस के संस्कृति ह, सभ्यता ह. जेकरा के हमनी के अपना पुरखा पुरनिया के दिहल तोहफा के रुप में अपनवले बानीं जा आ एही में आपन बड़प्पन बुझिलां जा. बर्व महसूस करींला जा. बाकिर नयका पीढ़ी अब लकीर के फकीर बनल आ अपना पुरखा पुरनिया केबतावल राहि प चले में आनाकानी करत बा, पगहा तुड़ावत बा.

विकास के मतलबे होला आगे मुंहे बढ़ल. विकास के इ माने अब आन बेर के हो गइल. एह घरी एकर माने साफे बदल गइल. अब विकास के माने पाछे हटल, बड़हन से छोटहन रुप धइल हो गइल बा. हमनी के पुरखा पुरनिया पहिले नदी तालाब के पानी पीअत रहे. बाकिर जइसे जइसे उनुका लोग के दिमाग के विकास भइल भा इ कहीं कि इनिका लोग के अकिल के केंवाड़ी तनी फांफर भइल, इ लोग ओह नदी तालाब के पानी समेटि के कुईंया में क दीहल आ लागल ओकरे पानी धोंके. अउरी विकास भइल आ कुईंया से ना फरिआइल त ओह कुईंया के पानी के लोग चापाकल में ढूका दीहल आ ओकरे से पानी पीअे लागल. विकास के रफ्तार रूकल ना, चलत रहल. चापाकल के पानी आउरी पातर पाइप में ढूकि के टंकी में हेलि गइल. अतना के बाद लोग सोचल कि चल अब काम फरिआ गइल. बाकिर ना. इनिका लोगन का दिमाग का खूराफाती कारखाना में डिजाइन डिजाइन के फारमूला तइयार होत रहल आ ऊ पानी देखते देखत दीया वाला जिन्न लेखा बोतल में हेलि गइल आ फ्रीज के राहि पकड़ि लिहलस. अतनो प लोग के संतोष ना भइल. लोग सोंचल कि पानी खातिर फ्रीजके दन्तजाम कहां कहां होखी ? एहसे लोग पानी के पाउच में बन्द क के बगली में, झोरा में, अटैची में लेके चले लागल ताकि जब मन करी, जहवां मन करी, ओहिजे सरकारी दारू के पाउच लेखा दांते नोचि के घटाघट घटक जाइब, झुराइल देहि तरि हो जाइ, मन हरिअर हो जाइ, ओठ प के फेंफड़ी झुरा जाइ.

रउआ सभे अब इहे सोचत होखब कि ई हंसुआ के बिआह में खुरपी के गीत काहे गावे लगलन ? बकत रहलन कुछ आ बके लगलन कुछ अउर. बतकही बतकूचन होति रहे फुल आ हाफ पैन्ट के. एह में कुईंया  तालाब, टंकी पाउच इ सभ केने से जहुआइल आके दाल भाति में ऊंट के ठेहनु लेखा लउके लगलन स ? तनी सा सबुर राखीं. तनी करेजा कड़ा कइले रहीं. मरद मानुख के अकुताई ना सोहाय. ठहरीं, हमरा के तनी ई सभन के जवरिया लेबे दींही. रउआ आंखि के सोझा एकएक गो बाति परत दर परत खुलत चल जाई.

हं, त हम कहत रहीं कि आदमी सयान भइला प आपन संउसे देहि तोपि लेबे के चाहेला. जमाना बदल गइल. अब त लोग आपन संउसे टंगरी तोपे में अंउजाये लागत बा. पहिले केहू के मुंह तोप दिआत रहे तब ऊ उजबुजात रहे. अब ऊ टंगरिये तोपे में उजबुजाये लागत बा. आदमी का विकास का संगे जइसे पानी आपन रुप आकार बदलत चलि गइल ओसहीं आदमी के कपड़ो रुप आकार बदलत चलि गइल. जइसे जइसे पानी के आकार छोट होत गइल ओइसहीं आदमी अपना कपड़ो के लम्बाई चौड़ाई छोट करत चलि गइल.

लइका से लेके सयान, बूढ़ से लेके जवान सभे आपन विकसित रुप के लोग के सोझा परोस रहल बा. विकसित समाज में अविकसित रहल विकास के नजरिया से अनुचित कहाई, उचित ना. मरद आ मेहरारू के भारतीय संविधान से मिलल बरोबरी के अधिकार के उपयोग आ उपभोग करत जनानी समुदाय के सदस्या लोग अपना आप के एकरा से बरी ना क के मरदाना समुदाय के सदस्यन जवरे डेग से डेग मिलावत चलि रहल बा. मरदानी डिपाट हाफपैन्ट में आ चुकल बा त जनानियो डिपाट के लोग आपन पूरा ड्रेस के हाफ क के स्कर्ट में बदलि के आपन अधिकार के उपयोग आ उपभोग करि रहल बा. जहवां बाति बरोबरि के रहेला ओहिजा भेदभाव नीक ना होखे. एही से जनाना डिपाट के लोग मरदाना डिपाट से पाछा नइखे रहे के चाहत.

पैन्ट के पहिला अवस्था जवन आदमी के सयान भइला प फुलपैन्ट रहे तवन विकास के दोसरा खेंड़ी प हाफपैन्ट का रुप में आ गइल बा. तीसरका खेंड़ी प जब चंहुि प त चड्ढी भा लंगोटी का रुप में लउकी. चउथा खेंड़ी प चहुंप के ई कवना रुप में लउकी ? ई त रउरा खुदे समुझि सकत बानीं. एकरा बारे में रउरा हमरा से जादे बताइब भा समुझाइब. काहे कि रउओ एही विकसित देस के विकसित समाज के विकसित दिमाग के विकसित आदमी बानीं. हाफपैन्ट पहिन के चलीं. फुलपैन्ट मे काहे अझुराइल बानीं ? तनी उघारि के चलीं. तनी हवा लागे दींही ना त ..... !
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अनाईठ, प्रसाद पेपर वर्क्स लगे,
भोजपुर - 802 301

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  दिसम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

महर्षि भृगुमुनि आ ददरी के मेला

पर्यटन विषयक लेख

महर्षि भृगुमुनि आ ददरी के मेला

 

 - दयानन्द मिश्र नन्दन


आजु जवन मनवन्तर चलि रहल बा तवना के नाम बैवस्वत मनवन्तर ह. ई सातवां मनवन्तर ह. एकरा पहिले सिलसिलेवार से स्वायम्भुव, स्वरारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत, आ चाक्षुष मनवन्तर रहे. छठवां मनवन्तर चाक्षुष में सात गो तपोनिष्ठ ऋषि - भृगु, नभ, विवस्वान, सुधामा, बिरजा, अतिनामा, आ सहिष्णु - रहलन. एहि सात जाना पर ‘सप्तऋषि’ नाम धराइल. ओईसे त बहुते ऋषि रहलन बाकिर योगबल, तपबल, साधबल, भा यज्ञबल में एहलोग के स्थान बहुत उपर रहुवे. एहू सात ऋषियन में महर्षि भृगु के नाम पहिलका रहे.एह लेख में हम ओही भृगु ऋषि के चरचा करे जात बानी.

छठवां मनवन्तर चाक्षुष के शुरूआत हो गइल रहे. नाना तरह के विघिन डाले वाला राक्षसन के उतपात खूब होत रहे. हर प्रकार से, हर तरह से राक्षस आपन प्रभाव देखा के धरम के काम पूरा ना होखे देसु. जगह जगह ऋषि मुनि लोग के परेशानी बढ़ल जात रहे. अपना अपना योगबल से राक्षसन के परभाव कम करत कवनो तरह से ऋषि लोग के यज्ञ पूरा होत रहे. ऋषि मुनि लोग के जियरा बड़ा सांसत में पड़ल रहे. उ लोग कवनो तरह से आपन यज्ञ पूरा करे.

जेकर हाथ पैर आ मन काबू में रहेला आ जेकरा में विद्या, तप, आ कीर्ति के समावेश भरपूर रहेला उ धरती पर नाना तरह के बिघनन के सामना करियो के आपन काम बढ़िया तरह से पूरा करत, सतकरम करत आगे बढ़त जाला. भृगु ऋषि में सब गुण भरल रहे. उनकरा अन्दर विद्या, तप आ कीर्ति के उर्जा भरल रहे.

जे सैकड़न साल हवा पी के, एक पैर पर खड़ा होके, दूनो हाथ उपर उठा के तपस्या में लीन रह सकेला उ कठिन से कठिन संकल्पो के पूरा कर सकेला. भृगु ऋषि अइसने रहलन. तबे नू सातो ऋषियन में पहिला नाम उनकरे बा.

ओह घरी विष्णु भगवान के पूजा सब केहू बड़ा नेह लगाके करत रहे. उहे भगवान विष्णु एकदिन मां लक्ष्मी के साथ क्षीर सागर में सुतल रहलन. मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के गोड़ दबावत रहली. ओहि समय भृगु ऋषि खिसियात ओहिजा पंहुचलन. उनका एह बात के खीस रहे कि विष्णु उनकर एगो आदेश ना मनले रहलन. पंहुचते ऊ विष्णु भगवान के छाती पर लात जमवलन. विष्णु भगवान के नींद टूट गइल आ ऊ भृगु ऋषि के चरण पकड़ के कहलन कि, - हे मुनिवर, कहीं हमरा पत्थर लेखा छाती से रउरा कमलवत चरण के बड़ा चोट पंहुचल होखी. आंई सुघरा दीं.

भगवान विष्णु के अतना कहते ऋषि के आंख खुलि गइल. परदा हटि गइल. अज्ञानता के नाश हो गइल. ज्ञान के प्रकाश पड़तहीं ऋषिवर दूनू हाथ जोड़िके भगवान विष्णु के चरण पर गिरि पड़लन. कहलन कि हे प्रभो! हमरा से बहुत बड़ अपराध हो गइल. ई अपराध अज्ञानतावश भइल बा. हमार अपराध के रउरा क्षमा कर दीं.

रहिम के शब्दन में देखीं : ‘‘क्षमा बड़न को चाहिये छोटन के अपराध, क्या घट गया रहीम का जो भृगु मारी लात ?’’ भगवान विष्णु भृगुमुनि के समझवलन आ एगो कईन के लकड़ी देके कहलन कि गंगा किनारे चलत चल जा. जहवां सांझ हो जाव रुक जइहऽ. एह कोईन के लकड़ी के गाड़ दीहऽ. भोरे होखला पर जहां ई कोईन हरिअर हो जाव ओहिजे तू आपन आसन जमा दीहऽ आ तपस्या करीहऽ. तू बहुत बड़ यश के भागी बनबऽ.

महर्षि भृगुजी ओह लकड़ी के लेके चलि दीहले. चलत चलत राहे में एगो तपस्वी से भेंट हो गइल. ओह तपस्वी के नाम दरदर मुनि रहे. दरदर मुनि अपना से महान तपस्वी से भेंट भइला पर बहुत खुश भइलें आ भृगुजी से अपना के शिष्य बनावे खातिर निहोरा कइलें. बहुत निहोरा पर आ मन, वचन, कर्म से पवित्र समुझि के दरदर मुनि के आपन शिष्य बना लिहलें. अब दूनो जना गुरू शिष्य फेर गंगा के किनारे किनारे चल दिहलें अपना यात्रा पर.

चलत चलत बलिया नगरी में गंगा के तट पर रात हो गइल. सूखल लकड़ी गाड़ के गुरू शिष्य स्नान, संध्या, वंदन कर के सूत गइल लोग. भोरे जगला पर आश्चर्य के सीमा ना रहे. जवन कोईन के लकड़ी कतहीं हरियाइल ना रहे ओह लकड़ी में एगो मुलायम पात अंखुआइल रहुवे. ओह दिन कातिक के पूरनमासी रहे. एही वजह से हर साल कातिक सुदी पूरनमासी के गंगा नहान कइके भृगुमुनि के दरशन कइल आ जल चढवल़ा के महातम मानल जाला. एही चलते ददरी के मेला लागेला जवन दरदर मुनि के नाम पर बा.

विष्णु भगवान के निर्देशानुसार भृगु मुनि बलिया के दखिन गंगा किनारे तपस्या में लीन हो गइलन आ दरदर मुनि उनका सेवा में लाग गइलन. ओह घरी आजु के बलिया से नव दस किलोमीटर दखिन पर गंगा बहत रहली. धीरे धीरे गंगा का कटान से बलिया उत्तर का तरफ हटत गइल. अबहीं के बलिया तीसरा जगहा पर बसल बा. एह क्षेत्र के भृगु क्षेत्र कहल जाला आ कातिक पूरनमासी के एगो बड़हन मेला ददरी मेला के नाम से लागेला. एह मेला में दूर दूर से मरद मेहरारू आवेला लोग आ गंगा नहान अउर भृगु जी के दर्शन पूजन कइके आपन आपन मनोकामना पूरा करे खातिर मनौती मानेला लोग.

कातिक सुदी चतुर्दशी से अगहन बदी एकम तक भृगु बाबा के मंदिर में साधु सन्यासी के बड़हन जमावड़ा होला. ददरी मेला में जनावरन के बड़हन मेला लागेला जवना में दूर दूर से पशु व्यापारी आपन आपन पशु लेके जुटेले आ जिला जवार का अलावा दूरो दूर से किननीहार आवेलन. प्रशासन एह मेला में
पूरा ताकत से जुटेले. मेला में हर तरह के सामानन के दूकानन का अलावा सांस्कृतिक आ साहित्यिको आयोजन मजगर होला.
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ग्राम: दिघार, बलिया - 277001

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  दिसम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

भोजपुरी के भलाई खातिर

 सम्पादक के कलम

भोजपुरी के भलाई खातिर

 - डा. राजेन्द्र भारती



आजु-काल्हु भोजपुरी के नांव पर जगहे-जगह सम्मेलन, गोष्ठी के आयोजन के चलन बढ़ि गइल बा. गोष्ठी, सम्मेलन त ‘भोजन’ के बाद खतम हो जात बा, बाकिर भोजपुरी जहां के तहां बा. विकास भा बढ़न्ती कतहूं नइखे लउकत. भोजपुरी के भलाई का नांव पर आपन नांव उछाले में लोग लागल बा. अभी एही साले फरवरी में दूगो बड़हन सम्मेलन भइल. एगो अखिल भारतीय सम्मेलन बिहार में आ एगो विश्व सम्मेलन कलकत्ता में. दूनो जगह आयोजक / प्रायोजक लोग बांहि पूजवावे में रहि गइलन. एको दिन संसद में एहकर गूंज ना उठ पावल.

भोजपुरी के शुभेच्छु लोगन के चाहीं कि भोजपुरी के पुस्तकालय अपना-अपना नगर, गांव में खोलस. भोजपुरी के पत्र-पत्रिकन आ किताबन के पढ़े के चाव लोगन में जगावसु. भोजपुरी में रचनिहारन के उछाह बढ़ावसु. लोकगीतन का नांव पर छिछिला स्तर के आडियो, विडियो, सीडी, कैसेट ओगैरह के नकारे के आन्दोलन खड़ा करसु.

भोजपुरी के मान प्रतिष्ठा खातिर सबके एक होके, एक मंच से भोजपुरी के अलख जगावे के पड़ी. भोजपुरिया क्षेत्र के सांसदन आ विधायकन के चेतावे के पड़ी कि भोजपुरी के मान सम्मान के लड़ाई ओह लोगन के लड़हीं के पड़ी. भोजपुरी के बोलवईया कम नइखन. एहसे कम बोलवईयन के कईगो भाषन के आठवीं सूची में जगहा मिल गइल बाकिर भोजपुरी आजु ले मान्यता खातिर तरसत बा. संसद आ विधानसभा में भोजपुरी के लड़ाई चलावल जरूरी बा. जवन सांसद आ विधायक एह खातिर तैयार होखसु उहे लोग हमनी के वोटन के हकदार हो सकेला.

भोजपुरी भाषा के व्याकरण भा एकरूपता के बाति बतियावे वाला लोगन के सतरहंवी शताब्दी में अंगरेजी के इतिहास देखावल जरूरी बा. जइसे जइसे भोजपुरी में लिखनिहार पढ़निहार बढ़िहन ओइसंही ओइसंही भोजपुरी के एकरूपता बढ़ी. एहसे भोजपुरी साहित्य के मान सम्मान बढ़ावल जरूरी बा.

आकाशवाणी आ दूरदर्शन पर भोजपुरी में प्रसारण बढ़ावल जरूरी बा. साथही इहो देखल जरूरी बा कि ओह प्रसारण में सही भोजपुरी होखो, भोजपुरी का नांव पर चटकलिहा बोली ना. एह खातिर भोजपुरिहा लिखनिहार लोग के आगे आके कमान सम्हाले के पड़ी. मुंह फुलवला से काम नइखे चले वाला.
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कदम चौराहा, बलिया - 277001

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  दिसम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

अयनक में

 कविता

अयनक में

- रामनिवास वर्मा ‘शिशिर’



अयनक में
ना देखे
आपन कोई चेहरा.
देखेला ओकर चेहरा
जे दिल में
बइठल रहेला .
ना सवांरे
आपन सूरत,
सवांरेला
ओकर सूरत,
जे दिल में
बइठल रहेला .
झेल लेला दरद,
भूल जाला गम,
ओकरा खातिर,
जे दिल में
बइठल रहेला .
तनहाई में जिनिगी
गुजार लेला,
भीड़ लेखा
ओकरे खातिर
जे दिल में
बइठल रहेला .
रो के हंस लेला,
खो के पा लेला,
मर के जी लेला,
ओकरे खातिर
जे दिल में
बइठल रहेला .
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ब्रहमपुर, बक्सर, पिन - 802112

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

एहसान

 कहानी

एहसान


- डॉ श्रीप्रकाश पाण्डेय

इ बइठक साधारण ना रहे. सत्ताधारी पार्टी के मुखिया अउरी उनुकर सब विश्वासी लोग बड़ा गम्भीर मुद्दा पर बातचीत करत रहे लोग. वइसे त उनुकर सरकार चार साल से चलत रहे अउरी पांचवा साल में चुनाव होखे के रहे. समस्या इ ना रहे कि चार साल में सरकार के काम काज निमन रहे कि बाउर, समस्या इहो ना रहे कि अगिला साल ओट में जीत मिली की हार. समस्या इ रहे कि अगर नेताजी फेरू मुख्यमंत्री ना बनब त का होई ?

इ समस्या मुख्यमंत्री के विश्वासी लोगन के सेहत से कवनो सम्बन्ध ना राखत रहे. इ त नेताजी के ‘परसनल’ समस्या रहे. लेकिन  विश्वासी चमचवनी के आपन विचार व्यक्त करे के मोका मिलल रहे त उ बड़ा गम्भीर मुद्दा बनवले रहले स. जइसे कि सामने प्रलय आवे वाला होखें अउरी इ ओह प्रलय से बचाव के राहता खोजत होख स.

एह बैठक में पांचे आदमी रहले. एगो खुद नेताजी, जवन चार साल से प्रदेश के मुख्यमंत्री रहलन, दोसरका उनुकर हमजात व्यक्तिगत सचिव. तीसरका उनुकरे पार्टी के कोषाध्यक्ष. चउथका उनुका पाटी के प्रदेश अध्यक्ष आ पांचवा उनुकर भाई, जे अभी पनरह दिन पहिले एगो मेहरारू के बलात्कार अउरी ओहकर हत्या कइला के बादो मजा से घुमत रहले.

चार साल के सरकार चलवला में प्रदेश बीस साल पीछे चलि गइल रहे, इ उन्हन लोग खाती कवनो समस्या ना रहे. चार साल में अपराध में तीन गुना विकास भइल रहे, इ ओह बैठक के कवनों मुद्दा ना रहे. चार साल में प्रदेश के बिजली, सड़क, स्कूल अउरी रोजगार के सब व्यवस्था तहस-नहस हो गइल रहे, इहो कवनों बड़ बात ना रहे. चार साल से प्रदेश में गुण्डा राज चलत रहे, एह बात के कवनों चिन्ता नेताजी के ना रहे. चार साल में कतना किसान आत्महत्या कइले रहले, इ कवनो समस्या ओह बइठककर्ता लोग के ना रहे.

चार साल में प्रदेश में जवन भइल, तवन प्रदेश के लोग के बरबाद करे वाला काम भइल. इ कवनो ध्यान देबे वाला बात ना रहे. चार साल में नेता जी के पार्टी के लोग जवन मन कइल तवन नेताजी के आदमी होखला के नाम पर कइल, लेकिन नेताजी के ओह से कवनो परसानी ना रहे. त फेरू परसानी काथी के रहे?

बइठक में मुख्यमंत्री के सचिव जी बोलल शुरू कइले - ‘जइसन की रउआ सब जानतानी कि अगिला साल ओट होखे वाला बा. इ जरूरी नइखे कि जनता हमहनी के जिताइए दी. काहें से कि लोकतन्त्र में जनता बे पेनी के लोटा होली स. आजू रउआ संगे बिया काल्हू केहू अउरी के संगे होई जाई. चुनाव में हार-जीत नेताजी के कवनों समस्या नइखे, काहें से कि ओकर ठीका बाहर के लोगन
के दिया जाई. ओह खातीर नेताजी आपना खास अधिकारियन के ड्यूटी में लगा देबि. आ फेरू चुनाव चार साल बाद बावे ओकर चिन्ता करे खातीर हमनी के नइखीं जा बइठल. जइसन की रउआ सब जानतानी कि नेताजी कतना गरीब परिवार से रहनी आ इहां के बाबूजी खेत में मजदूरी कइले.........’

‘चूप ना रह सचिव. तहरा से इहे पूछाता कि नेताजी के बाबूजी का रहनी ? उहां के उपर कइगो हत्या बलात्कार के केस बा ? तू मेन बात बताव.‘ - मुख्यमंत्री के सचिव के बात काटि के प्रदेश अध्यक्ष फूफकरले.

‘हमार इ मतलब नइखे. हम चाहतानी कि रउआ सब मए बात ठीक से समझि जाई.’

‘त तू ई कहल चाहतारऽ कि जे गरीब होला ओकर लइका मुख्यमंत्री ना होले स.’ - नेताजी के भाई गरम होई गइले.

‘तू चूप रहऽ. जब तक पूरा बात समझि में ना आवे तब तक कहीं टांग ना अड़ावल जाला.’ - नेताजी आपन भाई के समझवले.’ अब हमरे सब बात बतावे के परी. इ ठीक बा कि हमार जीवन खुलल किताब हवे आ ओकरा के रउआ सभे खूब पढ़ले बानी. फेरू हम ओह के दोहरा देत बानी.‘

नेता जी आपन कहानी बखान करे लगलें -

‘बात ई ओहिजा से शुरू होखल जब हम दस बरिस के रहनी आ मुन्ना दू बरिस के.’ - नेता जी अपना छोटा भाई के एहि नाम से पुकारत रहनी.

‘ओह दिन हम बेमार पड़ल रहनी आ माई-बाबूजी हमरा खटिया के लगे हमरा ठीक होखे के आशा लेके बइठल रहल लोग. तबियत में कुछ सुधार रहे तबे गांव के धनिक हमरा घरे अइले आ हमरा बाबूजी से कहलें कि का रे शिवधनिया, आजू का करत रहले हा कि काम प ना अइले ह ? ’

‘ओइसे त उ धनिक आदमी के उमिर हमरा बाबूजी से कमे रहे, लेकिन बाबूजी हाथ जोरी के कहले कि मालिक लइका के तबियत खराब रहल ह, ओहि बिपति में फंसि गइल रहनी हा. आतना सुनला के बाद उ धनिक कहले कि तोरा अपना लइका के फिकिर बा आ हमार काम के नइखे ?’

‘ई बात नइखे मालिक.’

‘त कवन बात बा ?’

‘मालिक हमार लइका............’

‘चूप. चलू हमरा संगे आजू ढेर जरूरी काम बावे.’

‘लइका के छोड़ि के ?’

‘हं.’

‘ना मालिक अइसन मति करीं.’

‘ते ना चलबे ?’

‘ना.’

‘बाबूजी के अतना कहते उनुकर लात-मुक्का से स्वागत शुरू हो गइल. उ तब तक ओह धनी आदमी के लाख प्रयास के बादो लात खात रहि गइले जब तक कि उ हांफे ना लागल.’ - ई कहि के नेताजी के आंखि डबडिया गइल. माहौल गमगीन हो गईल. आंखि पोछि के नेताजी फेरू शुरू हो गईलन -

‘हम पढ़े में तेज रहनी लेकिन पेट भरे के काम आ पढ़ाई एक संगे ना चलित. लेकिन तबो हम हिम्मत ना हरनी. दुख त एह बात के रहे कि उ आदमी अक्सर बाबूजी के मारे. एक दिन इहे होत रहे त उ हमरा से बरदास ना भइल आ लेहना
काटे वाली गड़ासी से ओह आदमी के गरदन काटि दिहनी. चौदह बरिस में पहिला खून. तब से कहां के पढ़ाई ! एगो ई धन्धे शुरू हो गइल खून करे के.

हमरा लगे एक से एक नेता लोग के बुलावा आवे आ हम उन्हन लोग के जीतावे के ठीका लीहीं आ आपना गिरोह  के आदमी से बूथ कैप्चरिंग करा के जीतवाईं.

एगो समय अइसन आइल कि हमार जीतवावल चालीस पचास के करीब विधायक जीते लगलें. हमरा के पईसा, लईकी देबे के, आ कानून से बचावे के काम ओहि नेतवन के रहे. लेकिन ई कब तक चलित. इ बात हमरा समझि में आ गइल कि हमरा जीतववला से इ विधायक मंत्री बनि सकेलन स त हम काहें ना ?‘

नेताजी कुछ देरि सांस लिहनी, बाकिर चारो आदमी एह रूप में नेताजी के बात सांस रोकिके सुनत रहे लोग जइसे कवनो जासूसी धारवाहिक देखत होखस लोग.

‘एकरा बाद जवन भइल ओकरा से रउआ सभ परिचित बानी. अब हम मेन बात पर आवऽतानी. राजनीति में आके हम विधायक, मंत्री, आ मुख्यमंत्री तक पहुंच गइनी. मुख्यमंत्री के रूप में तबादला, कमीशन आ कई तरीका के गलत काम से हम अरबो रूपिया कमइनी. बस इहे रूपिया हमरा चिन्ता के जरि बा.

‘भइया हमरा तहार बात समझि में नइखे आवत रूपया तहरा के काहें परसान कईले बा.’ - मुन्ना कुछु ना समझले.

‘मुन्ना बात ई बा कि केन्द्र सरकार हमरा सेे टेढ़ नजर राखेले आ ओकरा जब मोका मिली हमार सरकार के बरखास्त कइके राज्यपाल के देख-रेख में ओट करवाई. तब जरूरी नइखे कि जवन हमनी के चाहबि जा तवने होई. अगर दोसर सरकार आई त एह धन के लुकवावल मुश्किल हो जाई.’

एका-एक जइसे सब नींद से जागल आ आपन माथा पीट के लगभग समवेत आवाज में बोलल लोग कि ई बात त हमनी के समझिए न पवनी हा जा.’

‘अब समझि में आ गइल होखे त रउआ सब एह धन के सुरक्षित करे के कवनो उपाई बताईं.’

बइठक में चुप्पी छापी लिहलसि. सब आपन-अरपन दिमाग खपावे लागल. लगभग पनरह मिनट के चुप्पी के बाद नेताजी के नीजि सचिव बोलले कि - ‘श्रीमान एगो उपाई बा कि ओह धन के अधिकांश हिस्सा सफेद बना दिहल जाई.’

‘लेकिन एह में बहुते धन टेक्स में चलि जाइ.’ - कोषाध्यक्ष आपन चिन्ता प्रकट कईलन.

तले प्रदेश अध्यक्ष बोलले - ‘आ फेरू इ समस्या बा कि आतना धन आइल कहां से ? इ कइसे देखावल जाई ?’

‘इ समस्या के समाधान हमरा लगे बा. पहिले नेता जी तैयार होखीं तब !’

नेताजी कुछ सकुचइले, सोचले, फेरू मुह खोलले - ‘इ बात ठीक बा कि जब तक
हम्हनी के सरकार बिया जवन मन करऽता करत बानी जा. लेकिन काल्हू के देखले बा ? अगर बात टैक्स दिहला के बा त जेल गइला आ पइसा छिनइला से अच्छे नू बा. हमरा तहार विचार नीक लागत बा. तू आपन योजना के खुलासा करऽ.’

‘नेताजी के लगे जतना धन बा ओकर खुलासा करे के एगो उपाई बा कि आजुए से नेताजी पूरा प्रदेश के तूफानी दौरा करीं. हर बलाक, हर कस्बा, इहां तक कि हर गांव में सम्भव होखे त राउर कार्यक्रम लागे. ओह पार्टी में कार्यक्रम में इ पहिले से घोषणा होखे कि रउआ पाटी के लोग रउआ के चन्दा दी. उ चन्दा त नाम मात्र के रही. रउआ चाहीं त मंच से लाखन रूपया के घोषणा करि सकेनी. आ फेरू दू महिना बाद राउर जन्मदिन बा. ओह जन्मदिन में राउर पार्टी के विधायक, मंत्री, जिलाध्यक्ष आदि से चन्दा मांगी. चन्दा मिले कम ओकर सरकारी घोषणा अधिक होखे. इ अब राउर मर्जी कि रउआ कतना के टैक्स देत बानी आ फेरू उपहार के देता, कतना देता, एकर हिसाब के राखेला ?‘

इ कहि के निजी सचिव विजई मुद्रा में सबके देखले. सब हल्का सा मुसुकाइल आ सबके नजर नेताजी पर टिक गइल. नेतोजी मुसकइलें.

सब कुछ ठीक हो गइल. एह काम में ध्यान देबे वाली बात ई रहे कि नेताजी के देशभक्ति मुअल ना रहे. एकर प्रमाण इ रहे कि उ अउरी लोगन नियर आपन धन ‘स्वीस’ बैंक में ना रखले. नेताजी के ई एहसान देश पर हमेशा रही.
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डॉ श्रीप्रकाश पाण्डेय,
एमए, पीएचडी, त्रिकालपुर,
रेवती, बलिया, उ.प्र.

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

देवी गीत

 देवी गीत

- कृष्णा नन्द तिवारी

(उर्फ किशन गोरखपुरी)

माई शेरावाली क पूजिला चरनियां
कि सुति उठिना .
माई दीहितीं दरशनियां कि सुति उठिना,
हो कि सुति उठि ना ..
लालि रंग चुनरी आ नारियल चढ़ाईला.. .
माई के दुअरिया पे सिरवा झुकाइला ..
माई लेहड़ावली क धरीला शरनियां,
कि सुति उठिना .माई दीहितीं दरशनियां 0
धूप-अगरबतिया ले माई के देखाइला .
रउरे मंदिरवा में असरा लगाइला..
माई विन्ध्याचली जी के करीला भजनियां,
कि सुति उठिना. माई दीहितीं दरशनियां 0
नवरात्रि माई के पूजन जे करावेला .
मय पाप कटि जाला,
सुखी जीवन पावेला ..
गावेलन ‘किशन’ माई सगरी कहनियां,
कि घूमि-घूमिना .
माई दीहीती दरशनियां कि सुति उठिना,
हो कि सुति उठिना ..
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कृष्णा नन्द तिवारी,
पुलिस चौकी, सतनी सराय, बलिया.कहानी
(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)



झाह में जिनगी

 नयका कविता

झाह में जिनगी


- मलयार्जुन



शोर बा
मयना के मारण मंत्र क
डहर भुलाइल
लउर के हूरा
जूरा बान्हे
पर्स में राखत
मोबाइल
झीन
बीच बजरिया
देखा
बतियावत
केसे
जे पेंदी का हीन
बे पानी
कस ना मानी
नूर नुक्सा से गायब
कबले भौंह रंगाई
छेंकल बुढ़ापा राह
झाह में जिनगी
आग का खोरी
सुनी नु प्रलाप
के के रास्ता मिलल
फोफर.
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मलयार्जुन,
वरिष्ठ मनोरंजन कर निरीक्षक, बलिया

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

रविवार, 15 दिसंबर 2024

परबतिया

कहानी

परबतिया

- डॉ जनार्दन राय

भोर होत रहे. मुरूगा बोलल - कुकू हो कू. लाली राम बाबा का इनार पर नहात खाने गवलनि - ‘प्रात दरसन दऽ हो गंगा, प्रात दरसन दऽ’. भोर का भजन में मस्त लाली के गवनई खाली उनहीं के ना, चिरई-चुरूंग, जड़-चेतन, मरद-मेहरारू सभकरा दिल में पइठि के गुदगुदी पैदा कइ दिहल करे. लाली गिरहथ रहलन. उनुकरा गांव का लन्द-फन्द से कवनो ढेर मतलब ना रहे. दिन में मजूरी आ सांझि खानेे नहा धो के अक्सर गावल करसु -

‘कह कबीर कमाल से, दुइ बात लिख लेइ.
आये का आदर करें, खाने के किछु देइ.’

कबीर कमाल से आ हम उनहीं का बाति के दोहासत बानीं - ‘जे केहू दुवारे आवे, ओके इजति से बइठाईं आ जवने नून रोटी बा, सिक्कम भर पवाईं.’ एह बानी के जे मानी, ओकरा पानी के रइछा परवर दिगार काहे ना करिहे !

एक दिन भोर में लालीबोे पिछुवारा से लवटला का बाद अपना पतोहि से कहली - ‘ए दुलहिन! दुअरिया में डोर बा, गगरिया लेइ के तनी इनरा से लपकल पानी ले ले आव, नाहीं त काली माई के छाक देबे में देरी हो जाई. कहिये के भरवटी ह, आजुले अबहीं पूरा ना भइल.’

का जाने काहें दो, ओह दिन उ असकतियात रहली बाकिर सासु का हुकुम के टारल उनुका बस के बाति ना रहे. डोर कान्हि पर, गगरी करिहांन पर धइ के चलि दिहली. गोड़ लपिटात रहे, पुरूवा के पिटल देहिं, पोर-पोर अंइठात रहे. लसियाइल त रहबे कइल बाकिर कवनो ढेर फिकिर ना रहे काहे कि उनुका पेट में भगवान के दिहल फूल अब विकास पर रहे. गोड़ भारी भइ गइल रहे. सासु का चुपे-चुपे कबो-कबो करइला के सोन्ह माटी जीभि पर धइ के सवाद लेइ लिहल करसु. जीव हरदम मिचियाइल करे. सासु एहपर धियान
ना देसु. बाकिर एक दिन रहिला में से माटी बीनि के दुलहिन अपना फाड़ में धरत रहली, एके लाली बो देखि लिहली आ पूछली, ‘काहो दुलहिन, कवनो बाति नइखे नू?’ एतना सुनते घुघुट काढ़त तनिकी भर मुसुकाई दिहली. पतोहि के हंसल आ संगही लजाइल चुप्पी संकार लिहलसि कि किछु न किछु बाति जरूर बा.

भइल का कि डोर में गगरी के मेहंकड़ फंसाई के इनार में लटकाइ के पानी भरल गगरी जेवहीं खिंचे के मन कइली, मूस के कुटुड़ल डोरि भक् से टूटि गइल. गगरी इनार में आ देहि जगति से भुइंया गिरि के चारू पले परि गइल. आंखि ताखि टंगा गइल. मुंह प एगो अजबे पियरी पसरि गइल. कुल्ला गलाली करे आ किछु लोग पानी खाति इनार पर जुटे लागल रहे बाकिर अबहीं मजिगर भीड़ ना रहे. जेतने रहे अरहि अरहि, हाय हाय करे खातिर कम ना रहे. बड़इया बो बड़ फरहर मेहरारू रहे. चट देने लाली का पतोहि के मुड़ी जांघि पर धइ के सुहरावे लागलि. मीजत, माड़त, सुहुरावत कवनो देरी ना लागल.

दू-तीन पहर में उनके देहिं कौहथ में आ गइल, तबले लालीबो पहुंचली आ कहली कि - ‘का ए दुलहिन, एनिये आके ई कवन मेला लगा दिहलू हऽ, तह के कवनो काम भरिये हो जाला.’ तले बुढ़उ कहलनि - ‘ना चुप रहबू, देखते बाड़ू की पतोहि जगति पर से ढहि के बेहोस परल बिये आ तूं अपना मन के पंवरी पसरले बाड़ू.’ एतना सुनते लाली बो हक्का-बक्का हो गइली आ रोवते में रागि कढ़वली - ‘बछिया हो, बछिया.’ तले फेरू बुढ़उ डपटलनि. लाली बो सिट्ट लगा गइली. उ चुप त जरूर हो गइली बाकिर कोंखि में परल फूल
के ले के चिन्ता गरेसले रहे, जवन कहे लायेक ना रहे बाकिर पतोहि के लूर सहुर गुन गिहियांव आ पानी खातिर अर्हवला के ले के लाली बो भितरे-भीतर कुंथत रहली. ना किछु कहिये जा ना रहिये जा. संपहवा बाबा, राम बाबा, सकड़ी दाई, काली माई, गंगाजी, सातो बहिनी, सत्ती माई, सभकर चिरउरी मिनती भइल. किछु देरी का बाद बड़इया बो कहलसि - काहो? देहिं काहें छोड़ ले बाड़ू? तनी टांठ होखऽ. हिम्मत बान्हऽ. देखते बाड़ू कि सासुजी छपिटाइ के रहि गइल बाड़ी . एतना सुनते पतोहि लमहर सांसि लेइ के
कहलसि - ‘ जिनि घबराईं, काली का किरिया से किछु ना होई. नहाईं, धोईं. छाक देईं, सब ठीक बा.’

पतोहि घरे गइल आ लाली बो ओह दिन भुंइपरी क के परमजोति का थाने गइली. सांझि सबेरे मनवती - भखवती होखे लागल. पियार से पखाइल, सनेह से संवारल, चूमल-चाटल देहि देखे लायेक हो गइल. सुख के दिन सहजे सवरे लागल. दुख बिला गइल. दिन बीतल देरी ना लागे. एक दिन उहो आइल जब भोर में लाली बो के पतोहिं का कोंखि से लछिमी के जनम भइल. धूमन बाबा बीतल बातिन के त बतइये देसु, अगवढ़ के जेवन फोटो खींचस उ साल छव महीना में साफे झलके लागे. एसे उनुकर मोहल्ला में बड़ा इज्जत अबरूह रहे. उहां का ए कदम साधु मिजाज के असली फकीर रहलीं. का मियां-हिंदू, ठाकुर-ठेकान, बाम्हन-भुइहार, धुनिया, नोनिया, कमकर, कुर्मी, कोहार, सभकर भला मनावल उहां के सहज सुभाव रहे. पूख नछत्तर में जनमल परबतिया अब धीरे-धीरे दिने दूना रात चउगुना संयान होखे लागल. किछु बूझल, समुझल, समुझावल आ अपना बेहवार से दूसरका के खुस कइ दिहल ओकरा खातिर सहज बाति रहे.

टोल, महाल, आपन, पराया, घर-दुवार सभ के अपने बूझे. अब अइसनों दिन आइल जे एकरा से थाना, पुलिस, पियादा, सभ केहू थहरा जा. थथमि जा. पढ़ि-लिखि के परबतिया परिवार के चौचक बना दिहलसि. माई-बाबू, घर-गांव, सभकरा संगे रहते परबतिया कविता करे के सीख लिहलसि. समाज में इज्जत के डंका बाजि गइल. एक दिन गांव के परधानों बनि गइलि. मुखिया, हाकिम-हुकाम सभे केहू आवे लागल. कविताई का ललक में एक दिन ‘परबतिया’ परानपुर का पोखरा पर बनल इसकूल का कवि सम्मेलन में चलि गइल आ सुर-साधि के गवलसि -

हमरे सिवनवां में फहरे अंचरवा,
फहरि मारेला हो, लहरि मारेला!

एतना सुनते ‘परबतिया’ का आंचर पर मुखिया जी के क्रूर नजर परि गइल आ ओही दिन से ओके धरे बदे कवनो कोर कासर ना छोड़लनि. गोटी बइठावे लगलन आ अइसन बइठल कि मुखिया जी एक दिन मंत्री बनि गइलन. अब ‘परबतिया’ पर डोरा डाले में चार चान लागि गइल. दिन-दिन परबतिया बढ़े लागल. रूप, गुन, जस, पद, मये में विस्तार होखे लागल. ‘परबतिया’ गांव में सड़क बनावे बदे एक दिन मंत्री जी का बंगला पर चढ़ि गइल. ‘परबतिया’ आखिर मेहररूवे न रहे. रूप गुन रहबे कइल. जाने-अनजाने ‘परबतिया’ मंत्री का कामातुर हविश के शिकार हो गइल. लोभ-लालच में उ किछु ना कहलसि. कुंवार मंत्री जी बियाह के प्रस्ताव दे के ‘परबतिया’ के घपला में रखले रहि गइलन. पेट में परल बिया जामे लागल. जइसे-जइसे दिन बीते लागल चिंता बढ़े लागल. एक दिन परबतिया हिम्मत बान्हि के बियाह वाला प्रस्ताव के रखलसि. मंत्री जी टारे लगलनि आ एक दिन उहो आइल जब उ अपना परबतिया का पेट में परल पाप के छिपावे बदे पोखरा में अपना गुरूगन से जियते गड़वा दिहलनि.

लइका, बूढ़, जवान, पुलिस, पियादा, गांव, जवार सभ जानल एह कांड के. बाकिर मंत्री जी का डर से केहू सांसि ना लिहल. उनुकरा पेशाब से दिया जरेला. डर का मारे अइसन जनाला कि हवो थाम्हि जाई. नीनि में परल परान कबो-कबो अइसन चिहुकेला जइसे केहू झकझोरि के जबरिया जमा देले होखे. जिम्दारी टूटि गइल. देस अजाद हो गइल. सभ केहू अपना घर-दुआर के मलिकार हो गइल. कहे सुने के अजादी हो गइल. बाकिर ई नवका करिक्का अंगरेज फफनि के बेहया लेख एतना जल्दी पसरि गइलनि स कि किछु कहात नइखे.

सुराज जरुर मिलल, बाकिर एह बदमासन का चलते आम आदमी का जिनिगी में कवनों बदलाव नइखे लउकत. हमरा परोस का परबतिया अइसन गंवईं के लाखन गुड़िया, धनेसरी, तेतरी, बहेतरी, अफती, लखनवती, लखिया, हजरीआ रोज रोज बदमासन के हविश के शिकार हो रहल बाड़ी स. बाकिर मंत्रीजी का तुफानी हवा का आगे गरीबन क बेना क बतास का करी? शासन पर काबिज बदमाश, थाना पर मनियरा सांप लेखा फुुंफुकारत थानेदार, पाजी पियादा, नशा में मातल मंत्री, इसकूल में बदहवाश मुदर्रिश, बेहोश वैद जीप कार के नसेड़ी डरेबर, केकर-केकर बाति कहीं, सभे कहूं कवनो अनहोनी का डर से चुप्पी सधले बा. नाहीं त सुपुटि के जीव चोरावत बा. अइसना बदहाली में केहू किछु कह ना पाई, बाकिर हमरा इत्मीनान बा कि अइसहीं मनमानी-बेवस्था ना चली. एक न एक दिन बदलाव जरूर आई.

पितरपख का निसु राति में पोखरा का जलकुंभी से कबो-कबो छप्प-छप्प क सबद सुनाई परेला. कबो-कबो त एको जनमतुआ निराह राति में पहर-दू-पहर भर केहां-केहां करेला. अइसन बुझाला कि ओह जनमतुवा के चुप करावे बदे परबतिया पुरूवा हवा का पंख पर चढ़ि के मंत्री जी से बदला लेबे खातिर छिछियाइल फिरेले. जब भोर होखे लागेला त जनाला कि जनमतुआ थाकि के सुति गइल आ परबतिया एक दम शांत भाव से लिखल चिट्टी पढ़ि-पढ़ि के सुनावे लागे ले -

प्रिय मंत्री जी!
याद बा नू उ दिन जब आप हमरा संगे..... वादा कइले रहलीं कि सूरूज एने-ओने भले हो जइहें, चान भलहीं टसकि जइहें, ध्रुवतारा खिसकि जाई, गंगा के धार बदल जाई, बाकिर हमार पियार अमिट रही, अमर रहि. का उ दिन भुला गइलीं ? हम आपे का इंतजारी में पोखरा का कींच-कांच, पांक पानी में परल बानीं. का होई ए देहि के ? का होई एह अबोध जनमतुआ के ?

ई का बिगरले रहे जे एके आप एह दिन के देखवलीं ? आप याद राखीं अर्जुन का बेटा का माथे मउर ना बन्हाई, कर्ण के कवच भलहीं कवनों कामे ना आई, बाकिर आप इहो
समुझि लेइब कि कबुर का आह से उपजलि आग में पूंजीवादी बेवस्था जरि-जरि के राखि हो जाई आ माथ के मुकुट गंगा का अरार लेखा भहरा के मटिया मेट हो जाइ. देस समाज गांव गंवई के बेवस्था चोटी से ना चली. इहो जाने के परी की शासन वेवस्था में लागल अदीमी के लंगोटी के बेदाग राखे के पारी आ बेदाग ना रही त झंउसहीं के परी.

आपे के परबतिया

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- डॉ जनार्दन राय,
काशीपुर नई बस्ती, कदम चौराहा,
बलिया - 277 001

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)
 

बारहमासा

कविता

बारहमासा

- सुरेश कांटक


 

करेजवा साले, ए मोर राजा,
बितल साले-साले ए मोर राजा.
रंग-राग ले ले के, तरसल फगुनवा
राजा बसंत सजल, धरती के धनवा
बिगड़ि गइल चाले, ए मोर राजा.

चईत महिनवा विरहवा सतावे
अलसल भोरवा के पुरवा चेतावे
भुलइलऽ कवना जाले, ए मोर राजा.

दंवरी-दंवात बइसाख दिन-रतिया
घमवा में बिगड़ेला सभके सुरतिया
हो गइनी बेहाले, ए मोर राजा.

जेठवा के लुकवा झंकोर देलस देहिया
नदी-नारा सुखल, दरार भइल नेहिया
पड़ल छाले छाले, ए मोर राजा.

उमसल असढ़वा बेहाल भइल हलिया
फिस-फुस घमवा, बेकल गांव गलिया
उड़ावऽ मत गाले, ए मोर राजा.

सावन के बदरा गरजि के डेरावे
बियवा डलाला, कजरिया ना भावे
देखावे रूप काले, ए मोर राजा.

भादो में कड़के आ बरिसे बदरिया
रोपनी आ नदी-नार भरल अहरिया
बजावे झिंगुर झोल, ए मोर राजा.

घमवा कुआरवा दशहरा ना भावे
रेंड़ा प धनवा आ धरती सुखावे
सपन हाथी पाले, ए मोर राजा.

कातिक में मुंह खोल ताकेला धनवा
फुलवा के असरे टंगाइल परनवा
झरेला ओस खाले, ए मोर राजा.

अगहन में कटिया आ गोलहथ सोहावे
ठंढी बयरिया जियरवा कंपावे
बजावऽ मत ताले, ए मोर राजा.

पुसवा के फुस दिन चइती बोआइल
जड़वा में जोड़ी बिना, मन घबड़ाइल
कमइया के खालें, ए मोर राजा.

माघ के टुसरवा पुअरवा ओढ़ावे
चलिया तोहार तनिको नाही भावे
भइल जीव के काले, ए मोर राजा.

अबहूं से आवऽ ना देखऽ सुरतिया
मोहले बिया तोहे कवन सवतिया
जइब नरक-नाले, ए मोर राजा.

कांटक चिरइंया उड़ी जब अकासे
धरती सरापी, रही ना कुछ पासे
रही काले काले, ए मोर राजा.
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सुरेश कांटक,
कांट, ब्रह्मपुर, बक्सर, बिहार - 802 112

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

मत कहऽ जिनगी बेमानी बा : दू गो गजल

 (1)

मत कहऽ जिनगी बेमानी बा


- शिवपूजन लाल विद्यार्थी

मत कहऽ जिन्दगी बेमानी बा,
खाली धूप-छांह के कहानी बा.
मायूस मत होखऽ मंजिल मिली,
भले सफर में कुछ परिसानी बा.

एह पीरा के सईंचि के रखऽ,
उनकर जुल्मों-सितम के निसानी बा.
ई जनतंत्र बस कहे भर के बा,
आजो केहू राजा, केहू रानी बा.

हमेसे फस्ले-बहार ना मिली,
जिन्दगी में आन्हियो-पानी बा.
समेस्या से कटि के जूझऽ लड़ऽ,
मुंह चोरावल त नादानी बा.

आजादी से केकरा का मिलल,
उनका छत त हमरा पलानी बा.
मत कहऽ जिन्दगी बेमानी बा,
खाली धूप-छांह के कहानी बा.

(2)


दिल के दरद कहां ले जांई

दिल के दरद कहां ले जाईंं,
व्याकुल मन कइसे बहलाईं ?
खुद अन्हार में भटकत बानी,
कइसे उनका राह दिखाईं ?

छल-फरेब के कांट बिछल बा,
कइसे आगा गोड़ बढ़ाईं ?
पत्थर के घर, पत्थर इन्सां,
बिरथा आपन लोर बहाईं.

बाहर-भीतर सगरो खतरा,
कहंवां भागीं, कहां लुकाईं ?
मानवता के खून करत बा,
जाति-धरम के निठुर कसाई.
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शिवपूजन लाल विद्यार्थी,
प्रकाशपुरी, आरा, भोजपुर

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

चिनगारी

लघुकथा

चिनगारी


- शिवपूजन लाल विद्यार्थी

हम आफिस के काम निबटा के पटना से  लवटत रहीं. ट्रेन में काफी देर रहे. करीब  तीन घंटा से प्लेट फारम प बइठल-बइठल बोर  होत रहीं. गाड़ियन के विलम्ब से चले के  सूचना सुनि-सुनि के भीतर-भीतर खीझ होत रहे  आ रेलवे प्रशासन पर पिनपिनाहट. समय  गुजारल बड़ा कठिन होत रहे. अगल-बगल में  कवनों जान-पहचान के अदिमीओ ना लउकत  रहे कि बोल-बतिया के समय काटल जाव.

बोरियत से जूझे खातिर आखिरकार बैग में  से एगो पुरान पत्रिका निकालि के उलटि पुलटि  करे लगलीं. बाकिर पत्रिका पढे में जी ना  रमत रहे. मन के बझावे खातिर झूठो-मूठो के  पन्ना उलटत रहीं.

तबे एगो युवती सामने आके खाड़ हो  गइल. हालांकि हमार नजर पत्रिका प गड़ल  रहे, मगर आहट से ओकर उपस्थिति के हमरा  आभास मिल गइल. अगर उ - ‘बाबू जी,  बच्चा बहुत भुखाइल बा. कुछ खाये के दीहीं’

कहिके आपन हथेली हमरा ओरि ना बढाइत त साइत हम ओकरा तरफ ताके के जरूरतो ना  समझतीं.

हम नजर उठवलीं. कोई तेरह-चउदह साल  के दुबर-पातर, बाकिर नाक-नक्श  के एगो सांवर लइकी डेढ-दू बरिस के एगो  मरियल अस बच्चा गोदी से चिपकवले खड़ा  रहे. ओकर कमसीनी आ कदकाठी देखिके हम  अन्दाजा लगावत रहीं कि कोरा में के बच्चा  ओकर भाई आ भतीजा हो सकेला. जिज्ञासा  वश हम पूछि बइठलीं- ‘ई बच्चा तोर भाई ह ?’

‘ना, बाबूजी , ई हमार आपन बेटा ह.’

ओकर ई उत्तर सुनि के हम भउचक रह  गइलीं. चिहाई के ओकरा ओरि गौर से ताके  लगलीं जइसे ओकर उमिर के बढिया से थाह  लगावे के चाहत होखीं. अतना कम उमिर के
लइकी के बच्चा ! घिन होखे लागल. करुणा  आ दया के जगहा घिरना आ उबकाई आवे  लागल. सोचे लगली - निगोड़ी के आपन पेट  भरे के ठेकाना नइखे. भीख मांगत बाड़ी. उपर  से कोढ़ में खाज के तरह ई बलाय ! पेट के  आगि से बेसी ससुरी के आपन तन के अगिन  बुझावे के पड़ गइल. एही उमिर से देह में  आगि लेसले रहे ! छि...छि..! भीतर-भीतर  हम ओकरा प झल्ला उठली. आ ना चहलो प  मुंह से निकल गइल- ‘तहरा पेट के भूख से  अधिक शरीरे के भूख सतावत रहे, देहे के  आगि के चिंता बेसी रहे ? आपन पेट भरत  नइखे, उपर से छन भर के सुख-मउज के फेरा  में  एगो अउर मुसीबत मोल लेहलू ?

हमार दहकत सवाल से उ तिलमिला  गइल. हमार बात ओकरा दिल प बरछी नियन  लागत. व्यंग भरल लहजा में हमरा प प्रहार  कइलस- ‘बाबू जी ई मुसीबत, ई बलाय रउवे  जइसन सफेद पोश लोगन के किरिपा ह. रउवे  सभे के जोर-जुलुम के निसानी - हवस के  चिन्ह - आगि के चिनगारी ह ई.

हम बेजबाब हो गइली. अइसन लागल  जइसे उ हमार नैतिक-बोध के गाल प कसिके  तमाचा जड़ देले होखे. अतना कहि के उ  हमरा भिरी से चल दिहलस. हम अइसे  अपराध बोध से भर गइली. सिर शरम से  झुक गइल.

हम ओकरा कुछ ना दे सकलीं, मगर उ  हमरा के बहुत कुछ दे गइल. हमरा चेतना के  एगो झटका, मन में ई सड़ल समाज का प्रति  घिरना आ छोभ. दिल के कोना में एगो  अनजान अस टीस अउर सोच के एगो नया  दिसा.
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शिवपूजन लाल विद्यार्थी,
प्रकाशपुरी, आरा, भोजपुर

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

आपन आपन सोच

 कहानी

आपन आपन सोच


- डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय



ई समाचार पूरा जोर शोर से फइलल. बाते अइसन रहे जेकरा से पूरा प्रशासन में  हड़कम्प मचि गइल. मउअत, उहो भूखि से, ई  त प्रशासन के नाक कटला के बराबर बा.  उहो ई खबर अखबार में निकलल रहे कि सुरखाबपुर में एक आदमी खाना के अभाव में  तड़प-तड़प के दम तुरि देले बाड़न. बात  अतने रहित त कुछ पूर परीत. बात एकरा से  आगे ई रहे कि उ आदमी दलित रहलन. ईंहा ई धियान देबे वाली बात बिया कि अउरी जात  रहित त कुछ कम बवाल होइत. लेकिन एहिजा  बात दलित के रहे, से हर राजनीतिक पार्टी  आपन-आपन रोटी त सेकबे करीत. कई पार्टी  के नेता दलित के सुरक्षा के ठीक ओही तरे आपन मुद्दा बना लिहले जइसे पाकिस्तान काश्मीर के आपन  मुद्दा बना लेले बावे. बड़-बड़ भाषण होखे लागल. सरकार पर  कई गो आरोप लागल. डी.एम. से लेके  चपरासी तक ओह दलित के परिवार के  सहायता करे के होड़ मचा दिहल. तुरन्त  जतना जेकरा बस में रहे सहायता के घोषणा  कइल. केहू ओकर लइकन के पोसे के  जिम्मेदारी लिहल, केहू घर बनवावे के. कहीं  से जमीन के केहू पट्टा लिखवा दिहल, त केहू  नगद सहायता दिहल. सरकारी मंत्री जी अइले  त घोषणा कइलन कि केहू के भूख से मरे ना  दिहल जाई. आ उहो सरकार के तरफ से  ओह दलित परिवार के चढ़ावा चढ़वले. सब  कुछ हो गइल. एह बीचे सब इहे सोचल कि  इ मुद्दा कइसहुं दबि जाई. ई केहू ना सोचल  कि आखिर ई भूख से मरे के मउवत कहां से आइल. खैर हमहूं अगर सरकारी कर्मचारी  रहितीं त सोच के कवनों जरूरत ना रहित.  हम त एह मामला के दबइबे करितीं. लेकिन  ई मौत टाले के कई बरिस से प्रयास करत  रहनी लेकिन उहे भइल जवन ना होखे के  चाहीं.

एह मउवत के बिया बीस बरिस पहिले  बोआ गइल रहे. जब चउदह बरिस के उमिर में  रामपति के बिआह बारह बरिस के सुनरी के  संगे तई भइल. चुंकि रामपति हमरा उम्र के  रहले त हम उनुका के जानत रहनी. उनका  बिआह के समाचार सुनि के हमरा बड़ा दुख  भइल. एह खातिर ना कि उनुकर बिआह चौदह बरिस में होत रहे बलुक एह खातिर कि उनुकर  बिआह हमरे उमिर के रहल त होत रहे आ हमार अबहीं तिलकहरूओं ना आवत रहले स.

ई दुख जब हम अपना चाचा से सुनवली त उ  कहले कि ‘‘आरे बुरबक तोरा त पढ़ि लिखि  के बड़ आदमी बनेके बा. उ त चमड़ा के काम करे वाला हवन  सं. उन्हनी के कइसहू बिआह हो जाता इहे  कम नईखे. उन्हनी के जिनगी के इहे उद्देश्य  बा कि खाली कवनों उपाई लगा के बिआह  कईल. अउरी भेड़-सुअर अइसन लईका  बिआ. एह से इ फायदा होई कि उन्हनी के  परिवार बढ़ि त लोकतन्त्र में पूछ होई.’

सुनरी के बारह साल के उमिर अउरी  ओह पर पियरी से जइसे देहि सूखि गइल होखे  ओह तरे बिना हाड़-मांस के काया बिआह के  बाद तुरन्ते गवना आ गवना के पनरह दिन  बाद उ खेत में काम करे पहुंच गइल. रामपति  कवनों पहलवान ना रहले. अभी त पाम्हीं  आवत रहे. लेकिन शरीर के भीतर अबहीं बीर्य  पूरा बाचल रहेे अउरी एहकर फायदा उ सुनरी  के देहि से एह तरे उठवले रहले जइसे केहू उखिं के चूसत होखे. लगातार पनरह दिन के  रउनाईल अउरी उपर से खेत में काम करे के  परि गइल. लाख कोशिश करत रहली, काम  ठीक से नाहिए होखे. एगो त मासूम कली  उहो रउनाईल. ओकर स्थिति देखि के हम  कहनी कि ‘‘तहरा से काम नईखे होत, तू घरे  चलि जा.’’ उ त शरमा के कुछु ना बोललसि  लेकिन ओकर सासू कहली कि ए बबूआ अगर  ई घरे चलि जाई त एकर मरद बेमार बावे  दवाई करावे के पईसा कहां से आई.’

‘बेमार बावे ? उ कइसे.’

‘इ बात तहरा ना बुझाई. बबुआ उ नान्ह  में बिआह होला त लड़िका अक्सर बेमार पड़ी  जालन स.’

‘काहे ? हमारा कुछु ना बुझाइल.’

‘तहार बिआह होई त समझि जईबऽ.’

आगे कुछु ना पूछि के हम चुप लगा  गइनी. लेकिन चमड़ा के काम करे वाला के लइका के बिआह होला  त काहे बेमार होलन स ई जानल जरूरी रहे.  ई बात हम चाचा जी से पूछनी त उ जवन  बतवले ओकर सारांश इहे रहे कि उन्हनी के  कम उमिर में बिआह होला. अउरी उ बिआह  के बाद के काम करे खातीर पूरा परिपक्व ना  होलन स एह कारण बेमार होखल इ कवनों  नया बात नईखे.

‘एहकर छुटकारा नईखे चाचा जी.’

‘बा बेटा’

‘उ का ?’

‘उ इ कि जेतना जनता अशिक्षित  बिआ उन्हनी के शिक्षित कइल जाउ. ई  बतावल जाउ कि बिआह के सही उमिर का  बावे तब जाके उ बिआह करऽ सँ.’

‘त ई कम उमिरे उन्हनी के बेमारी के  जरि बिया ?’

‘हं बेटा, एहि से हम तहार बिआह ना  कइनी हा. नाहिं त तहरो उहे हाल होईत.’

हम शरमा के इहे कहि पवनी - ‘चाचा  जी !’

बिआह के एक साल में एगो, तीन साल  में  दूगो,  साढ़े चार साल में तीन गो, छव साल में  चार गो, जब रामपति से सुनरी के लईका  हो गइल, त हम रामपति से कहनी -‘एगो त  तहार कम उमिर में बिआह हो गइल. अब  अतना जल्दी-जल्दी लइका होखी त कइसे  चली. आखिर त उन्हनी के पोसे में खर्चो  त  लागि.’

‘रउआ ओके का चिन्ता बा ? उ जनम  लेत बाड़न स त केहू के कई-धई के जीहन  स.’

‘लेकिन सोचऽ ओह में से एकहू आदमी  बनि पइहन स ?’

‘ई रउआ ठीक कहऽतानी. आदमी त रउरे सभे हईं. काहे से के रउआ बड़ आदमी नू हईं.'

 ‘ना हमार कहे के इ मतलब नईखे. हम  कहऽतानी कि कम रहितन स, पढ़ितन स आ,  ओह से आगे चलि के अच्छा जीवन जीअतन  स.’

‘रहे दीं-रहे दीं. हमनी के लगे कवन धन,  सम्पति बा. अगर भगवान अपना मन से संतान  देत बाड़न त ओह में राउर का जाता ?’

 रामपति आगे बहस के कवनों गुंजाइस ना  छोड़लन. बियाह के अठवां साल में पांचवा, दसवां  मे छठवां, अउरी बारहवां में सातवां लईका जब  सुनरी के भइल त उ ठीक ओही तरे हो गइल  जइसे पीयर आम हो जाला. रामपति त टी.बी के मरीजे हो गइलें. उनकर माई भोजन के  अभाव में पहिलहीं मरि गइल रहली. अब घरे  कमाए वाला केहू ना रहे. लईकन के केहू  खाए के कही से कुछ दे दीहल त ठीक, ना  त उ छोटे-छोटे लइका भूखे रहि जा स.  उनकर घर में टूटही पलानी अउरी एगो टूटही  खटिया के अलावा अगर कुछ रहे तो एगो  दूगो माटी के बरतन. आ ओकर हकीकत  बयान करत दरिदरता. एह बीचे एक दिन हम रामपति के घरे  एह दया के साथ गइनी कि उनका खातीर कुछ  दवा-दारू के बेवस्था कर दीं. घर में घुसते  खांसी के आवाज सुनाई दीहल. एक ओर  टूटही खटिया पर रामपति खांसत रहले. उनकर  मेहरारू लगे बइठल रहली आ उनकर चार पांच  गो
लइका पोटा-नेटा लगवले एकदम लगंटे आसे-पास अपने में अझुराइल रहले स.

रामपति के देखि के हम कहनी - ‘का हो रामपति, का हाल बा ?’’

रामपति हमरा किओर देखलें अउरी कहलें  - ‘रउआ व्यंग करे आइल बानी कि हमार हाल  पूछे ? रउआ सब के हमनी के खाइल पहिनल  त नीक नाहिए लागेला, भगवान दू चार गो  सन्तान दे देले बाड़न त रउआ सब के जरे के  मोका मिल गइल.’

‘हमार मतलब उ नइखे. हम त तहार  कुछु मदद कइल चाहऽतानी.’

‘धनि बानी रउआ आ राउर मदद. हमरा  केहू के मदद ना चाहीं.’ रामपति आपन मुंह  हमरा  ओरि से फेर लिहले.

‘तू सोचऽ. अगर तहरा कुछु हो गइल त  तहरा लइकन के का होई ?’

‘होई का ? जइसे भगवान देले बाड़न  ओहिसहीं जिअइहन. लेकिन रउआ चिन्ता मति  करीं.’

एही बीच उनुकर एगो लइका सुनरी के लगे  रोअत आइल अउरी कहलसि - ‘माई-माई खाए  के दे. भूखि लागल बा.’

‘हम कहां से दीं ? घरे बावे का ?’ -  सुनरी आपन दुख प्रकट कइली लेकिन उ  लइका रिरिआ गइल. नतीजा इ निकलल कि  ‘द खाएके’ मांगे के सजा चार पांच थप्पर खा  के भुगतल. ई घटना से हमरा ना रहाइल.

 हम पूछनी - ‘का हो रामपति, का एहि खातीर  उन्हनी के जनमवले बाड़ऽ ?’

‘रहे दीं. रहे दीं. रउरा जइसन हम बहुत  देखले बानीं. रउआ सब दोसरा के दुख देखि  के खूब मजा लेनी.’ -  रामपति के बोले  से पहिले सुनरी फुंफकार दिहली.

हम त घरे चलि अइनी लेकिन ओही  सांझ रामपति मरि गइले. ओकरा बाद सरकारी  आदमी अउरी राजनीतिक पारटीयन के नौटंकी  शुरू हो गइल. ऐह में जवन भइल उ देखि  के हम इहे सोचनी कि सुनरी आ रामपति के  परिवार अनुदान के ना सजा के पात्र बा. अगर  हमनी के इहे हाल रही ज देश के विकास  अउरी जनसंख्या कम करे के सपना अधूरा रहि  जाई.

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डॉ.श्रीप्रकाश पाण्डेय, एम.ए., पी.एच.डी
ग्राम - त्रिकालपुर, पो.- रेवती, जिला - बलिया

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

सम्पादकीय का बहाने

सम्पादक के पन्ना

सम्पादकीय का बहाने

- डॉ. राजेन्द्र भारती

 ‘अंजोरिया डाट काम’ भोजपुरी भाषा के साहित्य, संस्कृति, भोजपुरी माटी आ तीज-तेवहार का संगे से दूर बसल भोजपुरिया  भाई-बहीन के आपन देस आ भोजपुरी माटी के  गमक, साहित्य, संस्कृति, आ तीज-तेवहार के  ईयाद दिवावल आपन कर्तव्य बूझत बा. भोजपुरिया लोग सगरे संसार में फइलल बा.  ओह सबलोग का लगे पंहुचे खातिर इन्टरनेट से  नीमन कवनो दोसर माध्यम नइखे. ई अलगा  बाति बा कि इन्टरनेट पर देवनागरी फान्ट के  समस्या एगो बड़हन समस्या बा. कुछ हद तक  एहकर आसान समाधान करे के कोशिश कइले  बानी जा बाकिर कुछ अक्षर दिहला में तबो  दिक्कत बा. जइसे कि ट आ र आउर ड आ  र के संयुक्ताक्षर. आशा बा कि रउरा सभे ए ह दिक्कत के समुझब आ हो सके त एहकर  कवनो आसान समाधान बताएम.

भोजपुरिया संस्कृति के रक्षा आ भोजपुरी  साहित्य के समृद्धी बदे इन्टरनेट के माध्यम से  आप सभे तक पहुंचेे के भरसक प्रयास  ‘अंजोरिया डॉट कॉम’ करि रहल बा. एह काम
 खतिर अपना तन-मन से जुटल प्रकाशक के  हम धन्यवाद देबे चाहत बानी जे सिर्फ भोजपुरी  के प्रति अपना प्रेम का चलते इ काम करत  बानी.

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राउरे,
डॉ राजेन्द्र भारती
कदम चौराहा, बलिया - 277001
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( डॉ राजेन्द्र भारती जी अंजोरिया डॉटकॉम के संस्थापक संपादक रहीं. उहां के लिखल ई सम्पादकीय भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)


बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना

 कजरी

बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना

- त्रिभुवन प्रसाद सिंह ‘प्रीतम’



झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.
उड़े चुनरिया अंगिया झलके,
फरके चढ़त जवानी, रामा,
पानी-पानी ऋतु मस्तानी,
निरखि उमिरि के पानी,
अरे रामा, हंसे नयन के कजरा,
बदरा झरि-झरि जाला ना.
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.

इरिखा भईल, सुरूज गरमइले,
होते सांझि जुड़इले, रामा,
छिपल चनरमा जाइ अन्हारा,
करिखा मुहें पोतइले,
अरे रामा झुक-झुक झांके तरई,
सुरति सहल न जाला ना.
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.

होते भोर, कुमुद मुसुकइली,
चढ़ते दिन कुम्हिलइली, रामा
कांच कली खिलला से पहिले,
लाल-पियर होइ गइली,
अरे रामा, लता लटकि रहि गइली,
उपर चढ़ल न जाला ना..
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.

चढ़ल झमकि सावन, मनभावन,
पतई पीटे ताली, रामा
थिरकि उठल बन मोर ताल पर,
झूमे डाली-डाली
अरे रामा बजल बीन बंसवरिया,
कजरी रोज सुनाला ना..
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.

खुलल केस, लट बिखरन लागे,
लहर-लहर लहराये, रामा
विस के मातलि जइसे नागिन,
बार-बार बलखाये,
अरे रामा सुधि उमड़ल, प्रियतम ठिग,
मनवा उड़ि-उड़ि जाला ना..
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.
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त्रिभुवन प्रसाद सिंह ‘प्रीतम’
शारदा सदन, कृष्णा नगर, बलिया- 277001

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

भूख

 लघु कथा

 भूख

 - राम लखन विद्यार्थी

मरद-मेहरारु आपन मारूति कार से जेवर  बेसाहे सोनारी बाजार पहुचलन. जवन सर्राफ के  दोकान में जाये के रहे, ओह दोकान से चार  डेग एनही कार रूक गइल, कारन कि दोकान  के सामने बहत मोरी से एगो अधेड़ अउरत  कादो निकाल-निकाल के आपन तगाड़ी में रखत रहे. मरद कार के हार्न बजावत रहलन  आ उ अउरत अपना धुन में कादो काढ़ते  रहल. अनकसा के मरद कार से मुड़ी निकाल  के डंटलन - ‘‘रे.. तोरा सुनात नइखे का रे.?’

‘सुनात बा...’ अउरत कार का ओर मुंह  फेर के कहलसि.

‘त फेर हटत काहे नइखीस. एह कादो में  तोर का भुलाईल बा, जे परेशान बाड़ीस...’

‘हम आपन भूख खोजत बानी बाबू.’

 अउरत कातर स्वर में कहलसि. एही बीचे दोकान के सेठ उहां आ  गइलन. ‘का बात-बात बा श्रीमान ?’ सेठ  पूछलन.

‘लागऽता ई अउरत पागल हीय. कहतीया  हम कादो में आपन भूख जोहत बानीं.’

सेठ मुस्काइल, कहलस-‘श्रीमान जी ई  अउरत पागल ना हिय. जे कहतीया बिलकुल ठीक कहतीया.’

सेठ के बात सुन के मरद अचरज में पड़  गइल. कहलस ‘‘तू हू त उहे कह देल.’

‘देखीं सरकार, हमनी के दोकान में सोना  चानी के काम होला. सोना-चांदी तरसत खा  उहन के छोट-छोट कन दोकान में जेने-तेने  छितरा जाला. सबेरे दोकान बहराला आ बहारू  मोरी में गिरा दीहल जाला. ओही सोना-चांदी के कन खातिर ई कादो निकालत बिया. पानी  से कादो साफ करी तब सोना-चानी के कन  खरिया जाई. फेरु ओही कन के हमनी के  दोकान मे बेंच दीही. सौ-पचास एकरा भेंटा  जाई.’

मरद चिहाइल- ‘हाय रे भूख !’

तबले उ अउरत कादो भरल तगाड़ी के कपार पर उठा के पानी गिरत नल का ओर  चल दिहलस. मरद आपन कार सर्राफ के दोकान पर ला  के लगा दिहलन. मरद-मेहरारु कार से निकल  के जेवर बेसाहे सर्राफ के दोकान में ढुक  गइलन.
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राम लखन विद्यार्थी,
साहित्य सदन, पानी टंकी, काली स्थान,
डिहरी-ऑन सोन, रोहतास

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

अँखिया के पुतरी

 कविता

अँखिया के पुतरी

- डॉ बृजेन्द्र सिंह बैरागी



बेटी हो दुलारी बारी, कइसे बिआह करीं ?
ई  दानव दहेज कहँवँ कब कइसन रूप धरी.

अदिमी के रूपवा में दानव दहेज देखऽ.
दया धरम, तियाग, क्षमा से परहेज देखऽ.
लीलें चाहे धियवन के ईहो रोज घरी-घरी.
बेटी हो दुलारी बारी.....

एही भ्रष्टासुरवा के राज बा समाज में
बहुरूपिया ई बोलेला बढ़ी के समाज में
सोना चांदी धन दउलत से ना पेट भरी.
बेटी हो दुलारी बारी....

सोचि-सोचि डर लागे कांपे हो करेजवा
लीली जाला तनिके में दानव दहेजवा
एकरे बा राज, के समाज के सुधार करी.
बेटी हो दुलारी बारी....

पोसि पालि बहुते जतन से सेयान कइनी
शक्ति रूप जानिके हम धीरज धियाज धइनी
बेटी तूं त हउ हमरो अंखिया के पुतली.
बेटी हो दुलारी बारी....

सोचिले सुनर वर से बिआह कई दीहींतीं
भलहीं हो बिकाइ बरबाद होई जईतीं
बाकी स्टोपवा अउर गैसवा के का करीं.
बेटी हो दुलारी बारी....
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डॉ बृजेन्द्र सिंह बैरागी
आदर्श नगर, सागरपाली, बलिया - 277506
 (भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)