बुधवार, 11 दिसंबर 2024

भूख

 लघु कथा

 भूख

 - राम लखन विद्यार्थी

मरद-मेहरारु आपन मारूति कार से जेवर  बेसाहे सोनारी बाजार पहुचलन. जवन सर्राफ के  दोकान में जाये के रहे, ओह दोकान से चार  डेग एनही कार रूक गइल, कारन कि दोकान  के सामने बहत मोरी से एगो अधेड़ अउरत  कादो निकाल-निकाल के आपन तगाड़ी में रखत रहे. मरद कार के हार्न बजावत रहलन  आ उ अउरत अपना धुन में कादो काढ़ते  रहल. अनकसा के मरद कार से मुड़ी निकाल  के डंटलन - ‘‘रे.. तोरा सुनात नइखे का रे.?’

‘सुनात बा...’ अउरत कार का ओर मुंह  फेर के कहलसि.

‘त फेर हटत काहे नइखीस. एह कादो में  तोर का भुलाईल बा, जे परेशान बाड़ीस...’

‘हम आपन भूख खोजत बानी बाबू.’

 अउरत कातर स्वर में कहलसि. एही बीचे दोकान के सेठ उहां आ  गइलन. ‘का बात-बात बा श्रीमान ?’ सेठ  पूछलन.

‘लागऽता ई अउरत पागल हीय. कहतीया  हम कादो में आपन भूख जोहत बानीं.’

सेठ मुस्काइल, कहलस-‘श्रीमान जी ई  अउरत पागल ना हिय. जे कहतीया बिलकुल ठीक कहतीया.’

सेठ के बात सुन के मरद अचरज में पड़  गइल. कहलस ‘‘तू हू त उहे कह देल.’

‘देखीं सरकार, हमनी के दोकान में सोना  चानी के काम होला. सोना-चांदी तरसत खा  उहन के छोट-छोट कन दोकान में जेने-तेने  छितरा जाला. सबेरे दोकान बहराला आ बहारू  मोरी में गिरा दीहल जाला. ओही सोना-चांदी के कन खातिर ई कादो निकालत बिया. पानी  से कादो साफ करी तब सोना-चानी के कन  खरिया जाई. फेरु ओही कन के हमनी के  दोकान मे बेंच दीही. सौ-पचास एकरा भेंटा  जाई.’

मरद चिहाइल- ‘हाय रे भूख !’

तबले उ अउरत कादो भरल तगाड़ी के कपार पर उठा के पानी गिरत नल का ओर  चल दिहलस. मरद आपन कार सर्राफ के दोकान पर ला  के लगा दिहलन. मरद-मेहरारु कार से निकल  के जेवर बेसाहे सर्राफ के दोकान में ढुक  गइलन.
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राम लखन विद्यार्थी,
साहित्य सदन, पानी टंकी, काली स्थान,
डिहरी-ऑन सोन, रोहतास

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

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