कविता
अँखिया के पुतरी
- डॉ बृजेन्द्र सिंह बैरागी
बेटी हो दुलारी बारी, कइसे बिआह करीं ?
ई दानव दहेज कहँवँ कब कइसन रूप धरी.
अदिमी के रूपवा में दानव दहेज देखऽ.
दया धरम, तियाग, क्षमा से परहेज देखऽ.
लीलें चाहे धियवन के ईहो रोज घरी-घरी.
बेटी हो दुलारी बारी.....
एही भ्रष्टासुरवा के राज बा समाज में
बहुरूपिया ई बोलेला बढ़ी के समाज में
सोना चांदी धन दउलत से ना पेट भरी.
बेटी हो दुलारी बारी....
सोचि-सोचि डर लागे कांपे हो करेजवा
लीली जाला तनिके में दानव दहेजवा
एकरे बा राज, के समाज के सुधार करी.
बेटी हो दुलारी बारी....
पोसि पालि बहुते जतन से सेयान कइनी
शक्ति रूप जानिके हम धीरज धियाज धइनी
बेटी तूं त हउ हमरो अंखिया के पुतली.
बेटी हो दुलारी बारी....
सोचिले सुनर वर से बिआह कई दीहींतीं
भलहीं हो बिकाइ बरबाद होई जईतीं
बाकी स्टोपवा अउर गैसवा के का करीं.
बेटी हो दुलारी बारी....
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डॉ बृजेन्द्र सिंह बैरागी
आदर्श नगर, सागरपाली, बलिया - 277506
(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)
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