लघु कथा
नेम प्लेट
- माला वर्मा
‘बाबू जी, अब रउआ वृद्धाश्रम में जाके रहे के पड़ी. एइजा केहू के एतना फुरसत नइखे जे रउआ से बतकूचन करे आ सेवा टहल में आपन समय बरबाद करे. बेमतलब
रउआ चक्कर में हमनी के दिमाग बंटल रहेला.’
‘ना बेटा.... हमरा के ओइजा मत भेजऽ. आगे से हम तनिकों शिकायत ना करब. जब तहरा लोग के फुरसत मिली तबहीं खेयाल रखीह. ई मकान बनावे में हमार जीवन भर के कमाई लाग गइल. अब बुढ़ापा में ई घर छोड़ के कहां जाईं ? अइसहूं बबुआ, ई घर पर पहिला हक हमरे बनेला....बाद में तहरा लोग के.’
‘खूब कहनी बाबूजी, पिछला हिस्सा स्वर्गीया माई के नाम, बांया हिस्सा छोटकू के नाम. अब बताईं....... राउर हिस्सा कहां बचत बा..?
‘का कहत बाड़ बबुआ, घर के प्रवेश द्वार पर हमार नाम के तख्ती नइखे लउकत? ऐकर मतलबे बा कि पूरा घर हमार ह...’
‘एक बीता काठ के टुकड़ा पर ऐतना गुमान..! ऐकरा पर राउर नाम के चार अक्षर, उहो धुंधला गइल बा. ऐकरे बलबूते कहतानी कि हमार घर ह..? लीं ऐकर मियाद अभीए
पूरा कर देत बानीं. ना काठ के टुकड़ा रही ना राउर दावा...’
छन भर में नेम प्लेट कई टुकड़ा में गिर के जमीन पर बिखर गइल. पुरान लकड़ी के बिसाते केतना !
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माला वर्मा, हाजीनगर, प.बंगाल-743135 001
(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)
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