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मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

देवी गीत

 देवी गीत

- कृष्णा नन्द तिवारी

(उर्फ किशन गोरखपुरी)

माई शेरावाली क पूजिला चरनियां
कि सुति उठिना .
माई दीहितीं दरशनियां कि सुति उठिना,
हो कि सुति उठि ना ..
लालि रंग चुनरी आ नारियल चढ़ाईला.. .
माई के दुअरिया पे सिरवा झुकाइला ..
माई लेहड़ावली क धरीला शरनियां,
कि सुति उठिना .माई दीहितीं दरशनियां 0
धूप-अगरबतिया ले माई के देखाइला .
रउरे मंदिरवा में असरा लगाइला..
माई विन्ध्याचली जी के करीला भजनियां,
कि सुति उठिना. माई दीहितीं दरशनियां 0
नवरात्रि माई के पूजन जे करावेला .
मय पाप कटि जाला,
सुखी जीवन पावेला ..
गावेलन ‘किशन’ माई सगरी कहनियां,
कि घूमि-घूमिना .
माई दीहीती दरशनियां कि सुति उठिना,
हो कि सुति उठिना ..
----

कृष्णा नन्द तिवारी,
पुलिस चौकी, सतनी सराय, बलिया.कहानी
(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)



झाह में जिनगी

 नयका कविता

झाह में जिनगी


- मलयार्जुन



शोर बा
मयना के मारण मंत्र क
डहर भुलाइल
लउर के हूरा
जूरा बान्हे
पर्स में राखत
मोबाइल
झीन
बीच बजरिया
देखा
बतियावत
केसे
जे पेंदी का हीन
बे पानी
कस ना मानी
नूर नुक्सा से गायब
कबले भौंह रंगाई
छेंकल बुढ़ापा राह
झाह में जिनगी
आग का खोरी
सुनी नु प्रलाप
के के रास्ता मिलल
फोफर.
---
मलयार्जुन,
वरिष्ठ मनोरंजन कर निरीक्षक, बलिया

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

रविवार, 15 दिसंबर 2024

बारहमासा

कविता

बारहमासा

- सुरेश कांटक


 

करेजवा साले, ए मोर राजा,
बितल साले-साले ए मोर राजा.
रंग-राग ले ले के, तरसल फगुनवा
राजा बसंत सजल, धरती के धनवा
बिगड़ि गइल चाले, ए मोर राजा.

चईत महिनवा विरहवा सतावे
अलसल भोरवा के पुरवा चेतावे
भुलइलऽ कवना जाले, ए मोर राजा.

दंवरी-दंवात बइसाख दिन-रतिया
घमवा में बिगड़ेला सभके सुरतिया
हो गइनी बेहाले, ए मोर राजा.

जेठवा के लुकवा झंकोर देलस देहिया
नदी-नारा सुखल, दरार भइल नेहिया
पड़ल छाले छाले, ए मोर राजा.

उमसल असढ़वा बेहाल भइल हलिया
फिस-फुस घमवा, बेकल गांव गलिया
उड़ावऽ मत गाले, ए मोर राजा.

सावन के बदरा गरजि के डेरावे
बियवा डलाला, कजरिया ना भावे
देखावे रूप काले, ए मोर राजा.

भादो में कड़के आ बरिसे बदरिया
रोपनी आ नदी-नार भरल अहरिया
बजावे झिंगुर झोल, ए मोर राजा.

घमवा कुआरवा दशहरा ना भावे
रेंड़ा प धनवा आ धरती सुखावे
सपन हाथी पाले, ए मोर राजा.

कातिक में मुंह खोल ताकेला धनवा
फुलवा के असरे टंगाइल परनवा
झरेला ओस खाले, ए मोर राजा.

अगहन में कटिया आ गोलहथ सोहावे
ठंढी बयरिया जियरवा कंपावे
बजावऽ मत ताले, ए मोर राजा.

पुसवा के फुस दिन चइती बोआइल
जड़वा में जोड़ी बिना, मन घबड़ाइल
कमइया के खालें, ए मोर राजा.

माघ के टुसरवा पुअरवा ओढ़ावे
चलिया तोहार तनिको नाही भावे
भइल जीव के काले, ए मोर राजा.

अबहूं से आवऽ ना देखऽ सुरतिया
मोहले बिया तोहे कवन सवतिया
जइब नरक-नाले, ए मोर राजा.

कांटक चिरइंया उड़ी जब अकासे
धरती सरापी, रही ना कुछ पासे
रही काले काले, ए मोर राजा.
------

सुरेश कांटक,
कांट, ब्रह्मपुर, बक्सर, बिहार - 802 112

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

मत कहऽ जिनगी बेमानी बा : दू गो गजल

 (1)

मत कहऽ जिनगी बेमानी बा


- शिवपूजन लाल विद्यार्थी

मत कहऽ जिन्दगी बेमानी बा,
खाली धूप-छांह के कहानी बा.
मायूस मत होखऽ मंजिल मिली,
भले सफर में कुछ परिसानी बा.

एह पीरा के सईंचि के रखऽ,
उनकर जुल्मों-सितम के निसानी बा.
ई जनतंत्र बस कहे भर के बा,
आजो केहू राजा, केहू रानी बा.

हमेसे फस्ले-बहार ना मिली,
जिन्दगी में आन्हियो-पानी बा.
समेस्या से कटि के जूझऽ लड़ऽ,
मुंह चोरावल त नादानी बा.

आजादी से केकरा का मिलल,
उनका छत त हमरा पलानी बा.
मत कहऽ जिन्दगी बेमानी बा,
खाली धूप-छांह के कहानी बा.

(2)


दिल के दरद कहां ले जांई

दिल के दरद कहां ले जाईंं,
व्याकुल मन कइसे बहलाईं ?
खुद अन्हार में भटकत बानी,
कइसे उनका राह दिखाईं ?

छल-फरेब के कांट बिछल बा,
कइसे आगा गोड़ बढ़ाईं ?
पत्थर के घर, पत्थर इन्सां,
बिरथा आपन लोर बहाईं.

बाहर-भीतर सगरो खतरा,
कहंवां भागीं, कहां लुकाईं ?
मानवता के खून करत बा,
जाति-धरम के निठुर कसाई.
---------
शिवपूजन लाल विद्यार्थी,
प्रकाशपुरी, आरा, भोजपुर

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना

 कजरी

बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना

- त्रिभुवन प्रसाद सिंह ‘प्रीतम’



झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.
उड़े चुनरिया अंगिया झलके,
फरके चढ़त जवानी, रामा,
पानी-पानी ऋतु मस्तानी,
निरखि उमिरि के पानी,
अरे रामा, हंसे नयन के कजरा,
बदरा झरि-झरि जाला ना.
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.

इरिखा भईल, सुरूज गरमइले,
होते सांझि जुड़इले, रामा,
छिपल चनरमा जाइ अन्हारा,
करिखा मुहें पोतइले,
अरे रामा झुक-झुक झांके तरई,
सुरति सहल न जाला ना.
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.

होते भोर, कुमुद मुसुकइली,
चढ़ते दिन कुम्हिलइली, रामा
कांच कली खिलला से पहिले,
लाल-पियर होइ गइली,
अरे रामा, लता लटकि रहि गइली,
उपर चढ़ल न जाला ना..
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.

चढ़ल झमकि सावन, मनभावन,
पतई पीटे ताली, रामा
थिरकि उठल बन मोर ताल पर,
झूमे डाली-डाली
अरे रामा बजल बीन बंसवरिया,
कजरी रोज सुनाला ना..
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.

खुलल केस, लट बिखरन लागे,
लहर-लहर लहराये, रामा
विस के मातलि जइसे नागिन,
बार-बार बलखाये,
अरे रामा सुधि उमड़ल, प्रियतम ठिग,
मनवा उड़ि-उड़ि जाला ना..
झुर-झुर बहे बयार,
बवरिया अँचरा उड़ि-उड़ि जाला ना.
----

त्रिभुवन प्रसाद सिंह ‘प्रीतम’
शारदा सदन, कृष्णा नगर, बलिया- 277001

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

अँखिया के पुतरी

 कविता

अँखिया के पुतरी

- डॉ बृजेन्द्र सिंह बैरागी



बेटी हो दुलारी बारी, कइसे बिआह करीं ?
ई  दानव दहेज कहँवँ कब कइसन रूप धरी.

अदिमी के रूपवा में दानव दहेज देखऽ.
दया धरम, तियाग, क्षमा से परहेज देखऽ.
लीलें चाहे धियवन के ईहो रोज घरी-घरी.
बेटी हो दुलारी बारी.....

एही भ्रष्टासुरवा के राज बा समाज में
बहुरूपिया ई बोलेला बढ़ी के समाज में
सोना चांदी धन दउलत से ना पेट भरी.
बेटी हो दुलारी बारी....

सोचि-सोचि डर लागे कांपे हो करेजवा
लीली जाला तनिके में दानव दहेजवा
एकरे बा राज, के समाज के सुधार करी.
बेटी हो दुलारी बारी....

पोसि पालि बहुते जतन से सेयान कइनी
शक्ति रूप जानिके हम धीरज धियाज धइनी
बेटी तूं त हउ हमरो अंखिया के पुतली.
बेटी हो दुलारी बारी....

सोचिले सुनर वर से बिआह कई दीहींतीं
भलहीं हो बिकाइ बरबाद होई जईतीं
बाकी स्टोपवा अउर गैसवा के का करीं.
बेटी हो दुलारी बारी....
----------
डॉ बृजेन्द्र सिंह बैरागी
आदर्श नगर, सागरपाली, बलिया - 277506
 (भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)
 

मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

भोजपुरी कविता में वियोग

आलेख

 भोजपुरी कविता में वियोग


 - भगवती प्रसाद द्विवेदी


 ‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा  गान’ के मुताबिक कविता रचेवाला पहिलका कवि वियोगी रहल होइहन आ उन्हुकरा आंतर के बेसम्हार पीर के आह-कराह से कविता के जनम भइल होई. ओइसहूं,  साहित्य में जवन कुछ शाश्वत बा, अमर बा, ओकर अधिकतर हिस्सा करूने से लबालब भरल बा. सांच पूछल जाउ त आमजन के जिनिगी के कथा दुःखे आ वियोग-बिछोह से सउनाइल बा आ रचनिहार किछु आप बीती, किछु जगबीती से घवाहिल होके अंतर्मन के पीर के बानी देला. तबे उ मरम के छूवेवाली  रचना बनेले आ अपना गहिर-गझिन संवेदना से पढ़निहार-सुननिहार पर आपन अमिट छाप छोड़ेलें. चाहे हीर-रांझा होखसु, लैला-मजनूं होखसु भा सोहनी-महिवाल. कठकरेजी समाज एह लोग के कबो मिलन ना होखे दिहल, बाकिर एह चरित्रन के अमर प्रेम आ वियोग-बिछोह के दिल दहलावे वाली कथा जन-जन के जबान पर आजुओ बा.


भोजपुरिया समाज अपना बल-बूता पर जांगर ठेठा के बहुत किछु हासिल करेवाला समाज रहल बा. रोजी-रोटी के जोगाड़ में आम तौर पर मरद लोग बहरवांसू हो जात रहे  आ घर-परिवार, गांव-जवार आ पत्नी-प्रेमिका  के वियोग ताजिनिगी झेले खातिर अलचार रहे. कमोबेस इहे हाल आजुओ बा आ नगर-महानगरन में छिछियात भोजपुरिया दुख-तकलीफ आ बिछोह के अपना आंतर में दबवले जीवटता के जियतार नमूना पेश करि रहल बाड़न.


भोजपुरी के लोकगीतन में त  वियोग-बिछोह के अइसन मार्मिक, हृदयस्पर्शी  चित्र उकेराइल बा कि सुननिहार के करेजा फाटे  लागेला आ आंख से लोर के नदी बहे  लागेले. ई वियोग खाली मरद मेहरारू आ प्रेमी  प्रेमिका के बिछुड़ले भर सीमित नइखे. एकर फइलाव कबो ससुरा जात बेटी के वियोग का रूप में बियाहगीत में त कबो दुनिया जहान से नाता तूरत परिजन के बिछोह का रूप में  मउवत गीतो में मिली. भोजपुरी के आदिकवि  कबीर अपना निरगुनिया बानी में जीव आ  आतमा के बिछोह के रेघरियावे वाला चित्र
 उकेरले बानीं. महेन्दर मिसिर के पूरबी में  आंवक में ना आवेवाला वियोग के दरद के  बखूबी महसूसल जा सकेला. बारहमासा में त  हर ऋतु के मौसमी सुघरता का संगे बिरह में बेयाकुल नायिका के मनोदशा के तस्वीर आंतर  के तीर-अस बेधे बेगर ना रहि सके. हर  जगहा इहे भाव - ‘पिया के वियोगवा में कुहुके  करेजवा’. चाहे फागुन के फगुवा होखे, चइत  के चइता होखे भा सावन के कजरी. अगर  साजन-सजनी के साथ ना होखे त सुहावन  मउसम के भकसावन लागत देरी ना लागे. तबे  नू विरहिनी के आंख से लोर, मघा नछत्तर के  बरखा मे ओरियानी के पानी अस टपकेला.


 महाकवि जायसी लिखले बानी :

बरिसे मघा झकोरि-झकोरि
 मोर दुइ नैन चुअत जस ओरी.

राम सकल पाठक ‘द्विजराम’ रचित ‘सुन्दरी-विलाप’ के सुन्दरी के विलाप पथलो  दिल इंसान के पघिलावे के ताकत राखत बा :

गवना कराइ सईंया घरे बइठवले से,
अपने गइले परदेस रे बिदेसिया.
चढ़ली जवनिया बैरिन भइली हमरी से,
केई मोरा हरिहें कलेस रे बिदेसिया.
अमकि के चढ़ीं रामा अपना अटरिया से,
चारू ओर चितईं चिहाइ रे बिदेसिया.
कतहूं ना देखीं रामा सईंया के सुरतिया से,
जियरा गइल मुरझाइ रे बिदेसिया.


लोक जिनिगी के कुशल चितेरा भिखारी ठाकुर के अमरकृति ‘बिदेसिया’ त बिदेसी आ  सुन्दरी के विरहे-वियोग के केन्द्र में राखिके  रचल गइल बा. जब बिदेसी अचके में परदेस चलि जात बाड़न, त सुन्दरी भाव-विह्वल होके  कहत बाड़ी :

पियवा गइलन कलकातवा ए सजनी !
तरि दिहलन पति-पत्नी नातवा ए सजनी,
किरिन-भीतरे परातवा ए सजनी!

विरहिनी बेचारी जल बिन मछली नियर तड़पत बाड़ी. आखिर हमरा जरी मेे के आरी  भिड़ा देले बा? रोज आठो पहर बाट जोहे के  सिलसिला का कबो खतम होई ?

बीतत बाटे आठ पहरिया हो
डहरिया जोहत ना.
धोती पटधरिया धइके, कान्हवा प चदरिया हो,
बबरिया झारिके ना.
होइब कवना शहरिया हो
बबरिया झारि के ना.
केइ हमरा जरिया में भिरवले बाटे अरिया हो,
चकरिया दरिके ना.
दुख में होत बा जतसरिया हो,
चकरिया दरिके ना.
परोसिकर थरिया, दाल-भात-तरकरिया हो,
लहरिया उठे ना,
रहित करित जेवनरिया हो,
लहरिया उठे ना.

आधुनिक भोजपुरी कवितो में एह पक्ष के मर्मांतक पीर का संगे रचनाकार लोग उठावत आइल बा. अपना घर में रहेवाली अकेल  मेहरारू आ टोल-परोस के मरदन के भुखाइल  बाघ-अस नजर. दिन भर त काम-धाम में  लवसान होके कटियो जाला, बाकिर पहाड़-अस  रात काटल मुश्किल होला. आचार्य पाण्डेय  कपिल के शब्दन में :

कइसे मनवा के बतिया बताईं सखी,
हाल आपन कहां ले सुनाईं सखी.
दिन त कट जाला दुनिया के जंजाल में,
रात कइसे अकेले बिताईं सखी.

सावन के रिमझिम फुहार, झींसी आ  हरियरी, उहवें परदेसी बालम के वियोग. डॉ रिपुसूदन श्रीवास्तव के एगो गीत में विरही मन में पइसल हूक के अन्दाज लगावल जा सकेला :

असो आइल फेरू सावन के बहार सजनी,
जब से परे लागल रिमझिम फुहार सजनी!
ठाढ़ दुआरी राधा भींजे, कान्हा घर नाआइल,
उमड़ि-घुमड़ि घन शोर मचावे,
हिय में हूक समाइल
बिजुरी धरे लागल जरला पर अंगार सजनी.
टप-टप-टप-टप मड़ई चूवे,
नींद भइल बैरिनिया,
बलमा गइल विदेस छोड़िके,
कलो बारी धनियां
नइया परल बाटे बीचे मंझधार सजनी.

आज काल्ह जब बाजारवाद नेह नाता के मिठास लीलत जा रहल बा, जिनिगी कतना अकसरुवा, दुख-पीर के पर्याय बनल जा रहल  बिया. बेसम्हार भीड़ो का बीच कई कई गो मोरचा पर लड़त-भीड़त, पछाड़ खात आ टूटत जात बिरही मन. शिवकुमार ‘पराग’ के कहनाम बा :

आह-वाह जिनिगी में बा,
धूप-छांह जिनिगी में बा.
सूनत करेजा फाटेला,
उ कराह जिनिगी में बा.
जब चारू ओर जुलुमी जन के ताण्डव होई
त जिनिगी पहाड़े नू बनि के रहि जाई.

कविवर जगदीश ओझा ‘सुन्दर’ के पाती देखी :

कुकुर भइले जुल्मी जन, हाड़ भइल जिनिगी
नदी भइल नैना, पहाड़ भइल जिनिगी.

अभाव आ विरह के बाथा-कथा प्रभुनाथ मिश्र बयान कइले बानीं :

सनन-सनन जब बहेले बेयरिया
टटिया के ओटवो उड़ावेले चुनरिया
कांपि जाले पतई से पाटल पलान रे
बदरा के देखि-देखि बिहरे परान रे!

धनिया लाख चाहत बाड़ी, बाकिर होरी के  सुधि बिसरते नइखे. पिया के मिठकी नजरिया  पर दीठि-कनखी मारत डॉ अशोक द्विवेदी  कहत बाड़न :

अंगना-बंड़ेरिया प कगवो ना उचरे
पिया तोर मिठकी नजरिया ना बिसरे.
डाढ़ि-डाढ़ि फुदुकेले रूखी अस दिन भर
मन के चएन नाहीं देले कबो छिन भर
सुधिया तोहार मोरा हियरा के कुतरे.

आखिरकार परदेसी के पाती पाके धनिया क हुलास-उछाह के पारावार नइखे. अनन्त  प्रसाद ‘राम भरोसे’ के पाती भरपूर भरोसा  दियावत बिया :

चिट्ठि में लिखले बाड़न कि
फगुआ ले हम आइब.
तब तक ले पगार पा जाइब,
बोनस भी पा जाइब.
चिन्ता के कुल्हि छंटल बदरिया,
चिट्ठी आइ गइल बा.
मन उड़िके जा पहुंचल झरिया,
चिट्ठी आइ गइल बा.


कुल्हि मिला के भोजपुरी कविता में वियोग के जवन चित्र उकेरल गइल बा, उ बड़ा जियतार बा आ ओह में मउसम का मिजाज का संगे नारी-मन के सोच, आकुलता,
 तड़प आ अभाव ग्रस्त बेबसी के हर दृष्टि से  मन के छूवे वाला चित्रण भइल बा, जवन  भोजपुरी काव्य के उठान आउर ताकत के  परिचायक बा.
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भगवती प्रसाद द्विवेदी
द्वारा, प्रधान महाप्रबन्धक, दूरसंचार जिला,
पोस्ट बाक्स 115, पटना-800001 -बिहार

( भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर  सितम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)