कविता
बारहमासा
- सुरेश कांटक
करेजवा साले, ए मोर राजा,
बितल साले-साले ए मोर राजा.
रंग-राग ले ले के, तरसल फगुनवा
राजा बसंत सजल, धरती के धनवा
बिगड़ि गइल चाले, ए मोर राजा.
चईत महिनवा विरहवा सतावे
अलसल भोरवा के पुरवा चेतावे
भुलइलऽ कवना जाले, ए मोर राजा.
दंवरी-दंवात बइसाख दिन-रतिया
घमवा में बिगड़ेला सभके सुरतिया
हो गइनी बेहाले, ए मोर राजा.
जेठवा के लुकवा झंकोर देलस देहिया
नदी-नारा सुखल, दरार भइल नेहिया
पड़ल छाले छाले, ए मोर राजा.
उमसल असढ़वा बेहाल भइल हलिया
फिस-फुस घमवा, बेकल गांव गलिया
उड़ावऽ मत गाले, ए मोर राजा.
सावन के बदरा गरजि के डेरावे
बियवा डलाला, कजरिया ना भावे
देखावे रूप काले, ए मोर राजा.
भादो में कड़के आ बरिसे बदरिया
रोपनी आ नदी-नार भरल अहरिया
बजावे झिंगुर झोल, ए मोर राजा.
घमवा कुआरवा दशहरा ना भावे
रेंड़ा प धनवा आ धरती सुखावे
सपन हाथी पाले, ए मोर राजा.
कातिक में मुंह खोल ताकेला धनवा
फुलवा के असरे टंगाइल परनवा
झरेला ओस खाले, ए मोर राजा.
अगहन में कटिया आ गोलहथ सोहावे
ठंढी बयरिया जियरवा कंपावे
बजावऽ मत ताले, ए मोर राजा.
पुसवा के फुस दिन चइती बोआइल
जड़वा में जोड़ी बिना, मन घबड़ाइल
कमइया के खालें, ए मोर राजा.
माघ के टुसरवा पुअरवा ओढ़ावे
चलिया तोहार तनिको नाही भावे
भइल जीव के काले, ए मोर राजा.
अबहूं से आवऽ ना देखऽ सुरतिया
मोहले बिया तोहे कवन सवतिया
जइब नरक-नाले, ए मोर राजा.
कांटक चिरइंया उड़ी जब अकासे
धरती सरापी, रही ना कुछ पासे
रही काले काले, ए मोर राजा.
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सुरेश कांटक,
कांट, ब्रह्मपुर, बक्सर, बिहार - 802 112
(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)
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