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रविवार, 27 अक्टूबर 2024

थेथर भा थुथूर, आ हेहर

 ओह दिन एगो टीवी चैनल पर संगीत के रियलिटी शो देखत रहीं. एगो गायिका गीत गावत रही, “सईंया के थूरल देहिया….” मतलब उनकर रहे “सईंया से थुराइल देहि” के आ गावत रहली “सईंया के थूरल देहिया..”. कुछ देर मन में चकोह नाचल जरुर कि एह गाना के श्लील कहीं कि अश्लील ? बाकिर ओह चकोह में हम ढेर देर ले ना अझुरइनी आ सोचे लगनी कि भोजपुरी में श्लील भा अश्लील खातिर कवन ठेठ शब्द होखी ? बहुतो सोचला का बाद कवनो शब्द ना मिलल. काहे ? का एहसे कि ऊ त बाल मन का तरह निरपेक्ष बा सबकुछ से. ओकरा त बस शृंगार रस के अनुभूति चाहीं. बाकिर लोग बा जे भोजपुरी में अश्लीलता के सवाल रहि रहि के उठावत रहेला आ हमनी भोजपुरिया ओह लोग का बाति में अझुरात जानी जा.


अब एह विषय के हम ढेर देर ले ना फेंटब. काहे कि बाति शुरु भइल रहे थूरल आ थुरइला से आ ओकरे के कूटे के बा. श्लील भा अश्लील पर फेर कहियो लिखब. आजु इहे सोचीं कि थूरल आ कूटल में का फरक बा. जब केहू के बिना घेरले थूरल जाव त ऊ थुराई होला बाकिर अगर ओकरा के घेरि बान्हि के थूरब त ऊ कुटाई हो जाई. खल में बा ओखर में जब मूसल भा मूसर के मारि पड़ेला त ओकरा के कूटल कहल जाला काहे कि तब कूटावे वाला सामान ओखर में घेराइल रहेला. बाकिर ओह गीत में थूरल का जगहा कूटल राख दिआव त का मतलब बदलि जाई ?



रउरा कहब कि महाथेथर आदमी बा, एके बतिया ले के तब से अझुरवले बा. त चलीं एही पर बाति कइल जाव कि थेथर भा थुथूर, आ हेहर में का फरक होला ? थेथर भा थुथूर ओकरा के कहल जाला जवना पर मार कुटाई के कवनो असर ना पड़े आ ऊ अपने बाति पर अड़ल रहि जाला. मतलब कि जे थुरइलो पर ना सुधरे से थेथर हऽ, बाकिर हेहर ? हेहर ओकरा के कहल जाले जेकरा के कतनो हे हें करीं ऊ मानी ना, अपने धुन में लागल रही. त जे बाति से समुझवला पर ना माने से हेहर आ जे लात के देवता होखे से थेथर. कुछ कुछ थेथरे से मिलत जुलत होला पिटउर. बाकिर थेथर आ पिटउर दुनु एकदमे अलगा मलतब के शब्द होला.


पिटउर ऊ जे अकसरहा पिटात होखे. कवनो कवनो नेता खास कर के पिटउर होलें. कहीं लाठी चलो ऊ जरुर पिटा जइहें बस ओहिजा उनका होखे के चाहीं. बिहार के एगो मंत्री अपना छात्र नेतागिरी का दौरान अइसने पिटउर रहलें. कवनो आन्दोलन होखो. अगर चौबे जी शामिल बाड़ें त पिटइहें जरुर. पिटउर आ थेथर में सबले बड़ अन्तर इ होला कि पिटउर कवनो जिद्द पर अड़ि के पिटाला जब कि थेथर अपना थेथरई का चलते. पिटउर बाति कहला का चलते पिटाला जबकि थुथूर पिटाए खातिर बाति कहेला.



सोचतानी कि एहसे पहिले कि रउरा पाठक सभे हमरा के थूरे का मूड में आईं ओहसे पहिले हम विदा ले लेत बानी. हो सकेला फेर कबो एह पर चरचा करब कि ऊ गायिका “सईंया के कोड़ल देहिया..” काहे ना गवलसि ?

नायक भा अगुआ

 एगो चर्चा में शब्द आ गइल कि रउरा त नायक हईं. बस मन में बिजली जस चमक उठल कि नायक के होला, नायक का ह ? आ याद पड़ल कि पिछला संस्करण में हम बतकुच्चन के दू गो कड़ी लिखले रहुवीं. फेर बात आइल गइल हो गइल आ बतकुच्चन दिमाग से उतरि गइल.


बाकिर नायक शब्द से फेर बतकुच्चन करे के मन कर दिहलसि. सोचे लगनी कि नायक के ? ऊ जे कुछ नया करेला भा ऊ जे अगुवा होला ? अगुवा के एगो पारम्परिको मतलब निकलेला, ऊ जे शादी बिआह में आगा आ के सब कुछ तय करावेला. जे कनियवो के भाई लेखा होला आ दुलहवो के. जेकरा मन में दुनु पक्ष के हित रहेला आ अक्सरहा ऊ कवनो ना कवनो पक्ष के हितई के होखबो करेला. ल, बाति कहाँ से कहाँ चलि आइल.



हितई आ नातेदारी में का फरक होला ? हित के, नातेदार के ? जे हित सोचे ऊ हित आ जे बस नातेदारी निबाहे ऊ नातेदार. बाकिर बाति अतना आसान नइखे. परिवार के महिला पक्ष के जे नातेदार होला ऊ परिवार के हित कहल जाला आ जे परिवार के पुरुष पक्ष के नाता में आवेला ऊ नातेदार-रिश्तेदार कहाला. माने कि नाना, नानी, मामा, मामी, साला, सरहज, बहनोई, भगिना, भगिनी, दामाद, नाती त हित हो गइले आ चाचा, दादा, भाई, भतीजा, बेटा, बाप, दादा, पोता नातेदार-रिश्तेदार. बाकिर एह नातेदारी में नाती आ पोता के झगड़ा कइसे आ गइल ? बेटी के बेटा त नाती हो गइल आ बेटा के बेटा पोता !


शुरु त भइल रहीं नायक से बाकिर अगुआ बीच में आ के काम बिगाड़ दिहले. से कवनो जरुरी नइखे कि जे अगुआ होखी ऊ सही मायने में लीडरो होखी. अगुआ निमनो के हो सकेला आ बाउरो के. बाकिर नायक त उहे कहाये के चाहीं जे बास्तव में नया कुछ करे वाला होखे, कवनो नया राह निकाले वाला होखे. शायद एही से नायक आ नाहक सुने में मिलल जुलल बुझाला कि नायक कई बेर नाहके साँप का बियर में हाथ डालि देला.



साँप का बियर पर याद आइल कि साँप के बियर के बियर कहल जाला बाकिर मूस के बियर के मूसकोइल. से काहे ? आ एह पर इहो याद आइल कि साँप के त बेंवते नइखे बियर खोने के. ऊ त मूसे के खोनल भा कवनो दोसर जानवर के खोनल बियर में घुस के पनाह लेला. एही सब चक्कर में तोपना-पेहान के मामिला अबकियो छूटल जात बा. बाकिर अबकी हम छूटे ना देब.


तोपना कवना के कहल जाई आ पेहान कवना के ? बाति त बहुते साफ बा, जवना से तोपल जाव से तोपना आ जवना के पहिनावे के पड़े से पेहान. अब केहू कह सकेला कि त फेर तोपना आ ढकना में का अन्तर बा ? कवना के तोपना कहल जाई, कवना के ढकना ? आ ढकना के ढकनी होले बाकिर तोपना के तोपनी ना. से काहे ?



अब फेर कबहियो एह सब पर चर्चा कइल जाई. आजु हमरा के चले दीं.

पर्व, व्रत, आ त्यौहार



आज अचानक मन में कुछ सवाल उठल आ जब ओह पर सोचे बइठनी त फेर बात पर बात निकलत चल गइल. बात पर बात निकलेला त कई बेर बात बेबात के हो जाले आ फेर ओकरा के सम्हारल मुश्किल हो जाले. कुछ लोग बतकही में माहिर होखेला त कुछ लोग बाल के खाल खींचे में आ एही के बतकुच्चन कहल जाला. बात के अतना कूँच दिहल कि फेर चिन्हाव ना कि कुँचाये से पहिले का रहे. मतलब कहवाँ से शुरु भइल रहे.


आजुवो बात शुरू भइल रहे दोसरा कुछ से. छठ व्रत सामने बा आ चारो ओर छठी माई के गीत सुनाई पड़त बा. सवाल ई बा कि जब छठ पर सूरुज देव के पूजा कइल जाले, सुरुजे देव के अरघ दिआले त छठी माई के नाम कहाँ से आ गइल? छठी माई से सभे अरज करेला कि सुनलीं ए छठी मइया अरजिया हमार. छठी माई के रहलीं अब ई जाने का फेर में दिमाग चक्करघिन्नी हो गइल बा. छठी माई का डर से केहू से पुछलो नइखे बनत कि सूरुजदेव के पूजा के पर्व छठी माई के व्रत कब आ कइसे बन गइल?


आ एही पर कुछ दोसरो शब्द सामने आ गइले सन. व्रत, उत्सव, त्योहार, पर्व. उपरे झाँपर सोचीं त सब एक दोसरा से मिलत जुलत बुझाई बाकिर सब एक दोसरा से अलगो बा. व्रत कवना पर्व के कहल जाई आ उत्सव कवना के? जवना में कुछ बरतल जावऽ, माने कि कुछ मनाही होखे, ओकरा के व्रत कहल जाला. जइसे जवना पर्व festival में कुछ मनाही होखे, उपवास करे के पड़े, फलां चीज खाये के बा फलाँ चीज ना, ओकरा के त व्रत कहल जाला बाकि पर्व के उत्सव. अब छठ व्रत हऽ आ दिवाली उत्सव, होली उत्सव. त उत्सव का हऽ? जवना पर्व में उत्साह होखे, खुशी में झूमे के मौका मिले ओकरा के उत्सव कहल जाला. त फेर त्यौहार का भइल? शायद ऊ पर्व जवना में व्रत का साथे साथ उत्सवो मनावल जात होखे. जइसे कि दुर्गा पूजा. छठो पूजा त्योहार हो गइल बा. बाकि छठ में त केहू के त्योहारी बाँटत नइखीं देखले. दुर्गोपूजा में त्योहारी बाँटल ना सुनाला. हँ दियरी बाति का दिने जरुर त्योहारी बाँटल जाला. त्योहारी ओह भेंट भा बख्शीश के कहल जाला जवन कवनो त्योहार भा खुशी का दिने अपना आदमी जन भा बाल बुतड़ू के बाँटल जाला. त का खाली दिवालिये त्योहार हऽ हमनी के?


बतकुच्चन के खासियत इहे होला कि ओकर कवनो आदि अन्त ना होखे. कहीं से शुरु हो जाईं कहीं खतम कर दीं. त आजु के बतकुच्चन रउरा कइसन लागल? अगर ठीक लागल होखे त बताईं ना त कुछ विद्वान लोग त कहते बा कि कुछ वेबसाइट बकवास छोड़ के कुछ नइखे आ ओह लोग से भोजपुरी के नुकसान हो रहल बा. अगर रउरा लागत होखे कि ई सब बकवासे बा त उहो बता दीं कम से कम मेहनत करे से त बाँचब. बाकि जानत बानी कि रउरा से बहुत कमे लोग ई कष्ट उठाई कि एह पर आपन राय दी. एहसे बतकुच्चन के हम सीरिजे चला देम. अगिला बतकुच्चन में तोपना आ पेहान के बात होखी अगर एह बीचे कवनो दोसर बतकुच्चन के मौका ना मिल गइल त.

ओम प्रकाश सिंह के लिखल बतकुच्चन कलकत्ता के हिंदी दैनिक सन्मार्ग में कई बरस ले साप्ताहिक रूप से प्रकाशित होत रहुवे।