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मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

आपन पहिचान तलाशत भोजपुरी

 

आपन पहिचान तलाशत भोजपुरी 

 डा॰रवि रामहोता

अगर भोजपुरी समय का कसौटी पर खरा उतरल बा त ओकरा खातिर आम लोगन के निजी कोशिश, कुछ लेखकन, बहुते गायकन आ कलाकारन के धन्यवाद देबे के पड़ी. ई बात कहलन मारीशस में भारतीय आप्रवासियन के संस्था आईडीसी के सचिव आ मानव वैज्ञानिक डा॰रवि रामहोता.

ऊ आगा कहलन, ई ऊ भाषा हऽ जे सभे मारीशिसियन के, जाति धर्म रंग आ नस्ल से अलगा, एक सूत्र में पिरोवेले. ई हर समुदाय के भाषा हऽ चाहे ऊ हिन्दू होखसु, मुसलमान, ईसाई, चाइनीज आ ईहां तक कि गोरको के. ई सनेह के भाषा हऽ... मारीशियन समुदाय के आत्मा हऽ. एही चलते हमनी का एकरा से बिलगाना रहि सकीं. एकरा के समुचित आदर आ पहिचान देबहीं के पड़ी.

असंख्य शोध प्रकल्पन का साथे जुड़ल डा॰रामहोता के सोचावट हऽ कि जे भी मारीशस के मानव वैज्ञानिक शोध, खास कर गुणात्मक, करे चाही ओकरा खातिर भोजपुरी के जानकार भईल एगो अनिवार्यता होखी.

भोजपुरी भाषा के जानकारी एह देश के विकास के कहानी, एकर सामाजिक तानाबाना, पूजास्थल वगैरह के समुझे बुझे में सहायक होखी. एही चलते, अगर हमनी का चाहत बानी कि अपना देश आ अपना लोगन के समुझल बुझल जाव आ पूर्वाग्रह रहित सफल शोध के बढ़ावा देहल जाव, भोजपुरी के बढ़िया सनमान देबे के पड़ी.

अगस्त २१ से ३१ अगस्त तक चलल भोजपुरी मेला का आखिर में आईडीसी, काउन्सिल आफ इण्डियन डायस्पोरा, अधिकारियन के एह बात ला समुझावे के कोशिश कइलसि कि शैक्षणिक प्रक्रिया में सुधार खातिर आ दोसरा भाषन का प्रभाव में आवत विकृति से बचावे खातिर भोजपुरी के भाषा के रुप में मान्यता दिहल आ प्राइमरी स्कूलन का पाठ्यक्रम में शामिल कइल जरुरी बाटे.

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लि डिफाई मीडिया ग्रूप से साभार

सोभानंद सीपरसाद के लिखल लेख


लि डिफाई मीडिया ग्रूप पर अतवार के खबर के सम्पादक सोभानंद सीपरसाद भारत आ इंगलैन्ड में पढ़ाई कइले. नैरोबी आ मुंबई में काम कइलें. इण्डियन एक्सप्रेस समूह के अखबारन के मुख्य उपसम्पादक रहलन आ कई गो किताब लिख चुकल बाड़न. शोभानंद सीपरसाद सिनेमा आ टिवी सिरियलो में काम कर चुकल बाड़न. हर रोज ऊ मारीशस रेडियो पर एगो भोजपुरी लोककथा सुनावेलन.


अगस्त २००८ का आखिरी पखवारा में मारीशस में भोजपुरी मेला लागल रहे. ओही मेला के खबर ईहां दिहल जा रहल बा.)


वन्स मोर रिमूव्ड

 

वन्स मोर रिमूव्ड

6 Nov 2008

डा॰ सरिता बुद्धू

श्रीमती सुन्देल प्रसाद झा के बनावल एक घंटा के डाकुमेन्टरी फिलिम हिला के राख देबे वाली बा.

वन्स मोर रिमूव्ड भारत के लवटति सफर के निर्मात्री सुन्देल प्रसाद झा पिछला २९ अक्टूबर के मारीशस के महात्मा गाँधी इंस्टीच्यूट का सभागार में कहली कि हम आजुवे खातिर न्यूयार्क से मारीशस अइनी हा आ हमरा बहुते खुशी मिलल एहिजा आ के.

अवसर रहे मारीशस आवे वाला गिरमिटिहा मजदूरन के आगमन के १७४ वीं साल गिरह २ नवम्बर आ साथही नया बनल इण्डियन डायस्पोरा सेण्टर के लोकार्पण. समारोह के मुख्य अतिथि मारीशस के संस्कृति आ मानव संसाधन मंत्री डा॰ बसंत बनवारी रहले. सेण्टर आ फिलिम देखि के बनवारी कहले कि शायद ई फिलिम देखि के हमहूं आपन जड़ भेंटा खोजे में लाग जाईं. फारस्टर का शब्दन में सभका जिनिगी में अगो टर्न आवेला आ फेर रिटर्न. समय समय पर अतीत का सफर पर निकलल जरुरी हो जाला.

वन्स मोर रिमूव्ड गुयाना मूल के एगो अमेरिकी के अपना जड़ का तलाश के सफरनामा हऽ. ओकर पूर्वज १२० साल पहिले भारत छोड़ गुयाना आईल रहलन जवना के ओह घरी डेमरा कहल जात रहे. वइसहीं जइसे मारीशस के मरीच देश. अपना सफर पर निकलल त न्यूयार्क से जार्ज टाउन, कोलकाता आ फेर मुजफ्फरपुर.

एह सफर में दरकार रहे दृढ़ इच्छा शक्ति के, लगन आ साहस के, जवन अमेरिका में रहे वाली एगो लड़की के पहिले अपना ममहर के सफर पर मुजफ्फरपुर आ फेर अपना बपसी के पूर्वजन के खोजे खातिर आजमगढ़ के लोहनपुर आ करता के सफर के पूरा कहानी अपना पूरा भावुकता का साथे दर्शकन का सोझा परोसल गईल बा.

पूरा विवरण पढ़े खातिर अंगरेजी में मूल पाठ पढ़ीं.

साधन के दरिद्र इंसानियत के धनी

साधन के दरिद्र इंसानियत के धनी

डा॰ आर निरंजन गोपी

हम अपना संगे टहले वाला दोस्तन के १९७० का गरमी में मिलल एगो अनुभव के किस्सा सुनावत रहनी. हम एक हफ्ता खातिर बिहार के बोकारो, रसियन सहायता से नया नया बसावल औद्योगिक नगरी, गइल रहनी. हमरा एगो दोस्त के बाबूजी ओहिजा के स्टील फैक्टरी में बड़हन ओहदेदार रहलन, आ हम उनके हियां ठहरल रहनी.

एक दिन भोर में हमनी का दामोदर नदी घाटी के सैर करे निकलनी सन. दुपहरिया बाद करीब तीन बजे हमनी का एगो धार का किनारे पर रहनी सन. घर से अपना दोस्त के माई के प्यार से पकावल सैण्डविच आ दोसर खाना तब ले खतम हो गइल रहे. पानियो खतम हो गइल रहे. हारल थाकल पियासल हमनी का कुछ अन्दाज ना मिलत रहे कि घरे वापिस लवटे खातिर कवनो सवारी कहाँ से मिली. ओहि असमंजस में हमनी का धारा के पार कर गइनी जा आ ओह पार एगो पगडण्डी धर के एगो छोट मोट गांव में चहुंप गइनी जा. ओहिजा एगो टूटही मड़ई में कुछ सामान बेंचत दूकानदार से हमार दोस्त पूछलसि,

एहिजा चाय बेंचेलऽ का ?

ना. सोझ जवाब मिलल.

त कुछ खाये के मिल जाई का?

हँ, ऊ भेंटा जाई.

फेर हमनी का सामने राखल बेंच पर बईठ गइनी जा आ नाश्ता पानी कर लिहनी जा. करीब बीसेक मिनट बाद, जब कुछ थकान उतरल बुझाईल आ मिजाज ताजा हो गइल रहे, हमनी का उठिके ओह तरफ बढ़नी जा जेने बस आवे का बारे में ऊ दूकानदार बतलवले रहुवे. पइसा देके जब चले के भइनी जा त ऊ अचकचा के पूछलसि, रुकीं सभे, कहाँ जात बानी जा? रऊरा सभे चाय मंगले रहीं नू? हमार दोस्त जवाब दिहलसि, हँ, बाकिर तूंही नू कहुवऽ कि चाय ना बेंचऽ.

हँ, से त ठीक बा.बाकिर ई त ना कहले रहीं कि चाय ना मिली. तनी बईठीं जा, चाय आवते बा. हमनी का लगे कवनो विकल्प ना रहे से दुबारा बईठ गइनी जा. दू मिनट भीतरे दूकान का पाछा एगो दरवाजा खुलल, आ एगो औरत आपन चेहरा साड़ी के पल्लू से तोपले चाय के दू गो चुक्कड़ राखल तश्तरी बढ़वलसि. ऊ शायद ओह दूकानदार के मेहरारू रहुवे. दूकान वाला ऊ तश्तरी तब हमनी का सोझा कइलसि. हिन्दुस्तान में चाय सर्वप्रिय पेय मानल जा सकेला आ हमनी का ऊ चाय पी के आऊरी तरोताजा हो गइनी जा.

बाकिर अबहीं कुछ आउरी देखल बाकी रहे! जब धन्यवाद देके चलत घरी हमार दोस्त कुछ पइसा निकाल के दिहलसि त ऊ दूकानदार पइसा लेबे से साफ नकार गइल. कहलसि कि चाय बेंचे खातिर ना रहल हऽ. ई त रऊरा लोग खातिर हमार एगो छोट भेंट रहल हा.

जब हम इ कहानी सुना चुकनी त हमार संहतियन में से एक आदमी बोल उठल, इहे कहाला साधन के दरिद्र बाकिर इंसानियत के धनी! आ बाकी सभे एह बात से सहमत लउकल.

ई तब के बातिर हुवे जब एको पइसा के मोल रहुवे आ एगो गरीब गंवई खातिर चार पइसा बहुते रहुवे. तबहियो ऊ हंसि के ऊ तेयाग दिहलसि. बाकिर आजु हमनी का समाज में चारो तरफ जे हो रहल बा ओकरा के इहे कहल जा सकेला कि साधन के धनी इंसानियत के दरिद्र. बहुते उदाहरण सुनावल लोग अपना अपना अनुभव से आ आजु का मीडिया में नियमित रुप से आ रहल खबरन से.

जब एह बाति पर विचार कइल जाव त साफे बुझाई कि आजु सामाजिक तानाबाना एकदमे से टूट गइल बा. कवनो नैतिक मूल्य नइखे रहि गईल लोगन का लगे. एक दोसरा से कवनो मतलब नइखे रहि गइल बुझात. सड़क दुर्घटना का बगल से अकसरहां लोग धीरे से कगरिया के निकल जाला. के थाना कचहरी का फेर में पड़ो. अबहीं कुछ दिन पहिलहीं एगो अखबार में पढ़ले रहनी कि कईसे कुछ कालेजिया लड़िका लड़िकियन के एगो होटल से निकलत घरी पीट पाट के लूट लिहलन स. का हो गइल बा हमनी के सामाजिक मूल्यन के? हमनी का बुझात नइखे कि ई गिरावट कइसे रोकल जाव आ सामाजिक मूल्यन के फेर से स्थापित कइल जाव.

कुछ विचारक पुरनका जमाना के स्वर्णिम युग का रुप में पेश करीहनत कुछ लोग कही कि अइसनका बात से हमनी के वैज्ञानिका तरीका के विकास का राह पर ना चल पायेम. बाकिर का हमनी का पुरनका बीतल जमाना के ईयाद ना आवे. कुछ लोग कही कि अब कलियुग के आखिरी चरण चलि रहल बा

आ फेर से ऊ जमाना लवटि के आवे वाला बा.

बाकिर हम त अबहीँ ओही सुखद क्षण का ईयाद में डूबल बानी जवन बिहार के ओह गांव में मिलल रहे.

मारीशस टाइम्स में प्रकाशित लेख के भावानुवाद.

मारीशस - एगो परिचय

 मारीशस - एगो परिचय


हिन्द महासागर में मडागास्कर से ८०० किलोमीटर पूरब में बड़ुवे. मारीशस के राजधानी पोर्ट लूईस हऽ. बिऊ बेसिन रोज हिल, वकोआ फिनिक्स, क्योरपाइप, आ क्वात्रे बोर्न्स दोसर महत्वपूर्ण शहर हउवन सऽ. मारीशस ज्वालामुखी का राख पर बसल टापू हऽ जहवाँ दिसम्बर से अप्रेल ले चक्रवात उठत रहेला.

मारीशस के बहुमत इण्डो मारिशियन के बा जे सैकड़े ६८ बाड़न. एहमें से एक चौथाई आबादी मुसलमान लोग के बा. क्रिओल ओहिजा के मूल निवासी हऽ लोग. थोड़ बहुत संख्या में चीन आ फ्रांस के लोग भी बाटे. बाकिर जनसंख्या का हिसाब से बहुत अधिका प्रचलन फ्रेंच भाषा के बा. सम्पत्ति पर भी फ्रेंच हावीबाड़न. क्रेओल में भी फ्रेंच भाषा के ढेरे शब्द बाड़न सऽ आ कुछ लोग क्रेओल के फ्रेंच भोजपुरियो कहि देला.

हिन्दुस्तान से गईल लोगन में भोजपुरी बोले वाला मजदूर सबले अधिका रहुवन. ऊ लोग एग्रीमेण्ट पर गईल रहुवे जे बोलचाल का भाषा में बिगड़ के गिरमिटिहा मजदूर कहाये लागल लोग. ई लोग आजु ले आपन भाषा आ संस्कृति के जिअवले रखले बा बाकिर हालात देख के नइखे लागत कि भोजपुरी भाषा आ संस्कृति ढेर दिन ले जिअत रहि पाई. काहे कि नवका लोग का क्रेओल आ फ्रेंच अधिका पसन्द बा. भोजपुरी भाषा से रोजगार भा विदेशन में कवनो खास फायदा ना मिल पावे.

डच लोग सबसे पहिले मारीशस पर कब्जा जमावल आ डच प्रिन्स आफ नसाऊ मॉरिश का नाम पर मारीशस पड़ल. बाद में १७५७ ई टापू फ्रेन्च ईस्ट इण्डिया कम्पनी का कब्जा में आ गईल. १७६७ में फ्रांस सरकार मारीशस के नियन्त्रण ले लिहलसि. मारीशस १२ मार्च १९६८ के आजाद भईल आ १९९२ में जाके गणतन्त्र बनल. संविधान त १२हे मार्च १९६८ के लागू हो गईल रहुवे.

मारीशस के मुख्य राजनीतिक दल एमएमएम, एमएसएम हई सऽ. एकरा अलावा छोटहन पार्टियन के एगो बड़हन मोर्चा भी बनल बाटे.

१९४७ से लेके १९८२ तकले मारीशस में लेबर पार्टीके सरकार रहुवे. जे फेरु १९९५ में सत्ता में वापिस आ गईल. बीच में एमएमएम आ मारीशियन सोशलिस्ट पार्टी के मिलल जुलल सरकार १९८२ में बनल. कुछ लोग बाद में दल बदल लिहल एमएसएम बनावल आ बहुमत पाके सरकार बनावल. बाद में १९९५ में एमएलपी एमएमएम का संगे मिल के चुनाव लड़ल आ सरकार बनावल. २००५ का चुनाव में लेबर पार्टी फेर जीत गईल आ सरकार बनवलसि.

आजादी का बाद १९६८ से लेके १९८२ तकले सर शिवसागर रामगुलाम देश के प्रधानमंत्री रहलन. आजुकाल्हु उनुकरे बेटा नवीनचन्द्र रामगुलाम देश के प्रधानमंत्री बाड़न.

आजुकाल्हु

(as on 4 Aug 2007)

मारीशस के एगो मुख्य पार्टी एमएमएम से पार्टी में ताकतवर रहल आ दू नम्बर पर रहल अब्दुला हसन के पार्टी से निकाल दिहल गईल. उनुका हटला का बाद पार्टी के कमजोर पड़े के बात कहल जा रहल बा.

मारीशस के दोसर मुख्य पार्टी एमएसएम के मुखिया प्रविन्द जगननाथ आपन राजनीतिक ताकत बढ़वले जाति बा. प्रविन्द तऽ अगिला चुनाव में सरकारो बनावे के बाति करत बाड़न. एह खातिर ऊ यूनियन नेशनल पार्टी के असोक जगननाथ के अपना पार्टीमे ले आवे का कोशिश मे लागल बाड़न. हो सकेला कि जल्दिये एगो नया गठबन्धन बनो.

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आखिरकार मिलिये गइल भोजपुरी के सरकारी मान्यता

मारीशस टाइम्स से साभार

परमान्द सूबराह

कवनो बन्द कोठरी के उमसल दमघोंटू माहौल में केहू अचके कवनो खिड़की खोल देव त ताजा हवा के झोंका से जवन आनन्द मिलेला कुछ वइसने भइल जब मारीशस सरकार भोजपुरी के सरकारी मान्यता देबे के एलान कर दिहलसि. हर भोजपुरिया का तरफ से, आ ओह लोगन का तरफ से जेकर बाप दादा भोजपुरिया रहलन, आ ओह लोग का तरफ से जिनका मन में भोजपुरी के जियतार बनावे राखे के छोह बा, आ वृन्दावन लिंग्विस्टिक आ कल्चरल जेनोसाइड वाच ग्रुप का तरफ से हमनी का सरकार के आभारी बानी जा कि आखिरकार ऊ भोजपुरी भाषा के अस्तित्व त सकार लिहलसि. खास कर के हमनी का माननीय शिक्षामंत्री वसंत बनवारी के आभारी बानी जा जे एह प्रस्ताव के कैबिनेट से पास करववलन.

हमनी का इयाद बा कि एह देश, मारीशस, में आप्रवासियन के सबसे बड़ समूह के मातृभाषा भोजपुरी रहे, ऊ लोग चाहे यूपी से अइलन भा बिहार से, उनकर मजहब जवने होखो, एह एतिहासिक सच्चाई के झूठिलावे के भरपूर कोशिश कइल गइल. पिछला हफ्ता सरकार जवन चार भाषा के इज्जत दिहलसि ओह में से दूइये गो, फ्रेंच आ भोजपुरी, मारीशस में आवे वाला आप्रवासियन के मातृभाषा रहुवे. फ्रेंच बहुल क्रेओल भाषा के जनम अफ्रीका से आवे वाला अलग अलग भाषा बोलेवाला समूह अपना में बतियावे खातिर आ अपना मालिकन से बतियावे खातिर दिहलसि. आ जब हमनी के पुरनिया भारत से अइलें त बहुते क्रेओल भाषी समुदाय ओह लोग का साथ जीये रहे के तइयार रहलन. बाकिर चन्द लोग के, जे पढ़ल लिखल कहात रहे आ प्रभावशाली रहुवे उँख उपजावे वाला इस्टेटन में सुपरवाइजर रहे आ हमनी के पुरखन के भाषा के मजाक उड़ावल ज्यादा नीक लागे. एह सिलसिला में भाषा के एगो ऊंच नीच पैमाना बन गइल जवना में हमनी के भाषा सबले नीचे राख दिहल गइल. हमनी के बहुते पुरनिया एही चलते अपना भाषा के आ कुछ मामिला में अपना धरमो के छोड़े खातिर मजबूर हो गइलन. जवना तरह से हमनी के जिये के, रहे सहे के, बोले बतियावे के तौर तरीका के मजाक बना दिहल गइल आ औकर जवन दुष्प्रभाव भइल ओकरे के संयुक्त राष्ट्र समूह में भाषायी आ सांसंकृतिक जनसंहार कहल जाला. मानवाधिकार आयोग मारीशस में क्रेओल भाषा के हालत पर त लोर बहावेले बाकिर एह बात से एकदमे बेजानकार बनके कि उहे भाषा का चलते हमनी के मातृभाषा भोजपुरी आ संस्कृति के विनाश के जिम्मेदार बा.

भोजपुरी भाषा के बारे में कइल गइल घोषणा का साथे फ्रेंच, क्रेओल आ अरबिओ भाषा खातिर स्पीकिंग यूनियन बनावे के घोषणा कइल गइल बा. एहमें से अरबी भाषा कवनो समूह के मातृभाषा ना हऽ बलुक मुसलमानन के मजहबी भाषा हऽ. हम मुस्लिम समुदाय के एह बात खातिर बधाई देत बानी कि ऊ लोग अपना मजहबी भाषा के सरकारि मान्यता दिलवा देबे में सफल रहल जबकि हिन्दू लोग अपना धार्मिक भाषा संस्कृत खातिर कुछ ना कइल. प्रशासन के हमेशा ई कोशिश रहल बा कि हिन्दू लोगन के जतना हो सके ओतना टुकड़ा टुकड़ा कर दिहल जाव एह समुदाय के आ हमनी का एह चाल में फँसत गइनी सन.

के बचाई भोजपुरी के?

क्रेओल लोग अपना भाषा खातिर पुरजोर तरीका से काम कर रहल बाड़े. ऊ चाहत बाड़े कि क्रेओल के स्कूल में भाषा का तरह त पढ़ावले जाव, पढ़ाई के माध्यमो उहे रहे आ नेशनलो असेम्बली में ओकर इस्तेमाल होखो. ई बात प्रशंसाजोग बा आ हमनी के बधाई देत बानी ओह लोग के. आखिरकार जे अपना भाषा के इज्जत ना कर सकी ऊ अपना संस्कृति के का इज्जत दे पाई. आ अपना जड़ से कहियो ना जुड़ पाई.

ई देख के खुशी हो रहल बा कि दिन पर दिन अधिका से अधिका क्रेओल लोग अपना भाषा आ संस्कृति खातिर आगा आ रहल बा. जरुरत बा कि ठीक ओहि तरह भोजपुरिया समुदाय सरकार का लगे पिटीशन देव कि भोजपुरिओ के पढ़ाई के माध्यम बनावल जाव आ लड़िकन के स्कूल में शुरुआती कुछ साल एकरा के पढ़ावल जाव. साथ ही भोजपुरीओ के नेशनल असेम्बली में बोले जाये वाली भाषा के मान्यता मिलो.

हमनी का भुलाये क ना चाहीं कि एक जमाना में सत्तर फीसदी मारीसियन भोजपुरी बोलत आ समुझत रहलें. बाद में भोजपुरी का खिलाफ योजनाबद्ध तरीका से षडयन्त्र रचल गइल, कुछ खुला त कुछ गुपचुप. कहल जा सकल जाला कि ऊ षडयन्त्र बहुत हद तक सफल हो गइल बा. जबकि भोजपुरी दुनिया के आठ से दह करोड़ लोगन के भाषा हवे आ जवना के विश्वविद्यालयन में डाक्टरेट स्तर तक पढ़ावल जा रहल बा.

अब मंत्री महोदय से पुछल जाव कि भोजपुरी के भाषायी पढ़ाई आ पढ़ाई के माध्यम बनावे में उनकर का राय बा? ऊ एकरा पक्ष मे बाड़े कि खिलाफ में? एहिजा हम बता दिहल चाहत बानी कि हम खाँटी भोजपुरिया माहौल में बड़ भइनी आ हमरा दोसरा कवनो भाषा में, चाहे ऊ क्रेओल होखो, भा फ्रेंच, भा अंगरेजी, बोले बतियावे में दिक्कत होत रहुवे. हमार एगो चीनी दोस्त रहुवे आ उहो मजगर भोजपुरी बोल लेत रहुवे. कहल जरुरी नइखे कि हमार मुसलमानो संहतियन के भाषा भोजपुरिये रहुवे. आ हमनी में से केहू अपना जिनिगी में खराब ना निकलल.

कवनो भाषा संस्कृति के पसार के माध्यम होले, आ हम त ई कहल चाहेम कि अकेला माध्यम होले. से जदि कवनो संस्कृति के नाश करे के होखे त पहिले ओकरा भाषा के खतम कर दऽ. फेर ओकर संस्कृति एक पीढ़ी से दोसरा पीढ़ि ले ना जा पाई आ जल्दिये ऊ कतम हो जाई. हमनी के भोजपुरी भाषा आ संस्कृति का साथे इहे हो रहल बा. अब अधिकारी का एह भाषा आ संस्कृति के बचावल चाहत बाड़े कि एकरा के धीरे धीरे दर्दहीन तरीका से मर जाये दिहल चाहत बाड़े? अतना धीरे धीरे कि केहू के पतो ना लागो?

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भोजपुरी आज का परिप्रेक्ष्य में

मारीशस टाइम्स से साभार

परमान्द सूबराह

पिछला १७ अप्रेल का दिने मारीशस के सुब्रमनिया भारती सभा भवन में भइल एकदिना सेमिनार के विषय रहे भोजपुरी आज का परिप्रेक्ष्य में. आ हमनी का ई देख के बहुत खुश भइनी जा कि मारीशस के नयका पीढ़ी के एगो छोट समूह हमनी के आप्रवासी पुरनियन का भाषा का प्रति कतना उत्साह आ छोह से भरल बा. ऊ लोग सूचना प्रौद्योगिकी के आपन जानकारी सहित सारा उद्यम एह दिसाईं लगा रहल बाड़े.

हमनी का ओह लोग के आभारी बानी जा जे भोजपुरी भाषा के खातमा खातिर १९८२ का बाद बनल सरकारन के दबाव अनदेखा करत हतोत्साहित नइखन भइल आ अपना काम में लागल बाड़न. बाकिर ओह खराबो दिनन में कुछ लोग भोजपुरी भाषा आ संस्कृति के पसार आ सम्हार में लागल रहल. बहुते वक्ता एह खातिर श्रीमती सुचिता रामदीन आ श्रीमती सरिता बुद्धू के कइल काम के जिक्र कइलन. सरिता जी त सभाभवन में मौजूदो रहली.

सेमिनार के अलग अलग सत्र के शीर्षक रहे मारीशस में भोजपुरी के विकास, मीडिया में भोजपुरी, भोजपुरी आ संस्कृति, भोजपुरी के पढ़ाई. जवन पहिलका पेपर पेश भइल तवना के शीर्षक रहे बहुभाषी मारीशस का संदर्भ में भोजपुरी के जिआवल समस्या आ संभावना. पेपर पेश कइलन प्रोफेसर विनेश हुकुमसिंह जे क्रेओल भाषा खातिर आन्दोलन चलावे खातिर जानल जालें. ऊ जे भी कहलें तवना से भोजपुरी के भविष्य खातिर आश्वस्त करे वाला ना रहे. उनका पेपर के प्रस्तुतिकरण अतना तेजी से कइलन कि ओह पर ज्यादा कुछ ना कहल जा सके, बाकिर एक बात जे ऊ साफ कहलन ऊ ई रहे कि ई बढ़िया बात बा कि महात्मा गाँधी संस्थान भोजपुरी के शोध कार्य अपना जिम्मे लिहले बा. अन्दाज कुछ अइसन रहे कि ई शोध वइसने बा जइसन कुछ लोग बेंग आ घोंघा जइसन जीवन पर करेला. काश जवना तरह से ऊ क्रेओल के बढ़ावा खातिर आन्दोलन कइलन तवने तरह भोजपुरीओ के बढ़न्ती खातिर करे के बात कहतन. मारीशस विश्विद्यालय जइसन काम क्रेओल खातिर कइलस कुछ वइसने काम एमजीआई के भोजपुरी खातिर करे के चाही.

प्रोफेसर हुकुम सिंह का तुरते बाद भोजपुरी के गरजत पक्ष लिहलन शोभानन्द सीपरसाद शिवप्रसाद. सीपरसाद बहुते गुणन के धनी हउवन बाकिर हमनी खातिर ऊ वइसन आदमी हउवन जिनकर भोजपुरी भाषा पर मजबूत पकड़ बा. अलग बाति बा कि ऊ अंगरेजी आ दोसरो भाषा पे ओतने पकड़ राखेलें आ अग्रेजी साप्ताहिक न्यूज आन संडे के सम्पादको हउवन. सीपरसाद नाटक का कहानीओ लिखे में तेज हउवन. बाकिर साथही साथ ऊ वास्तविकतावादी हउवन आ नयका पीढ़ी में भोजपुरी का तरफ बहुते कम रुझान होखे के बात सकरलन.

कुछ वक्ता लोग कहल कि हमनी का भोजपुरी में क्रेओल भाषा के बहुते शब्द समाहित कर लिहल गइल बा. कुछ लोग का हिसाब से ई बात खतरनाक बा. बाकिर ओह सत्र के अध्यक्षता करत एमजीआई के भाषा विभाग के प्रमुख डा॰पी तिरोमालचेट्टी एह बात के स्वाभाविक विकास प्रक्रिया मनलन आ कहलन कि जवन शब्द सामहित भइल बाड़ी स ओकनी के भोजपुरिया दिहल गइल बा. कुछ लोग उनका एह बात के विरोधी हो सकेले बाकिर हम ओह लोगन के धेयान अंगरेजी पर दिआवल चाहम जे अपना एही खासियत का चलते आजु विश्वभाषा बनल बिया जबकि अपना शुद्धता खातिर परेशान फ्रेंच पिछड़ गइल. हँ क्रेओल शब्दन के बेसी इस्तेमाल से आम भोजपुरी भाषी के दिक्कत होखी आ वेनबसाइटन पर काम करे वाला लोग के एह दिसाईं सावधान रहला के जरुरत बा.

सेमिनार के सितारा साबित भइलन हिन्दी अध्य्यन संभाग के प्रवक्ता कुमारदूथ विनय गूडारी जे कि इंटरनेट पर भोजपुरी के पसार में अपना काम के जिक्र कइलन. कहलन कि हर आदमी के भोजपुरी एक्सप्रेस डॉटकॉम पर जाये के चाहीं जेहसे कि ऊ दुनिया भर में फइलन भोजपुरियन का संपर्क में आ सको. बतलवलन कि ओह साइट पर भोजपुरिया डॉटकॉम आ अंजोरिया डॉटकॉम जइसन भोजपुरी साइटन के लिंको दिहल गइल बा. भोजपुरी एक्सप्रेस पर ढेर सारा भोजपुरी गीत गवनई आ भोजपुरी रेडियो भी मौजूद बा.

सवाल जवाब का सत्र में कुछ खास बात सामने आइल. एगो त रहे हमनी के उद्देश्य से भोजपुरी के विविधता के अध्ययन. शालिग्राम शुक्ला अपना भोजपुरी व्याकरण में चार तरह के भोजपुरी के जिक्र कइले बाड़े, उत्तरी, दक्खिनी, नागपुरिया, आ पश्चिमी. बाकिर ऊ चारो तरह के भोजपुरी अपना में बहुते साम्य राखेला आ एक दोसरा के समुझल बहुत आसान बा. पहिले आवागमन के साधन ना रहे जेहसे कि हर इलाका में आपन आपन बोली चल निकलल बाकिर अब जब दुनिया भर में संचार के साधन बढ़ चलल बा त धीरे धीरे एकरुपतो आइये जाई.

हमनी के पूरा भरोस बा कि भोजपुरी के एगो विश्वव्यापी रुप सामने आ के रही बाकिर एह दिसाईं शोध चलत रहे के चाहीं जवना से सबका ई मालूम हो सको कि भोजपुरी के प्रचलन हिन्दी का पहिले से बा आ ई अपने आप में एगो भाषा हऽ. कुछ लोग के ई गलतफहमी बा कि भोजपुरी ओहि तरे से हिन्दी से जुड़ल बा जइसे क्रेओल फ्रेंच से. साँच से एहले बड़ दूरी ना हो सके. क्रेओल बस गलत फ्रेंच हऽ. जबकि हिन्दी मुगल काल का खड़ी बोली से निकल के ब्रज भाषा, अवधी, भोजपुरी वगैरह का मेल से बनल जवना में संस्कृतनिष्ठ शब्दन के बहुतायत बा. जबकि भोजपुरी के उद्गम प्राकृत से भइल बा. भोजपुरी आ खड़ी बोली अलग अलग प्राकृत से निकलल बा आ एकनी के एक दोसरा के बोली ना कहल जा सके.

दोसर बात जवन सामने आइल ऊ ई कि भोजपुरी कवना लिपि मे लिखल जाव. एह बात के कवनो साफ जवाब ना उभरल. लिपिए का अन्तर से हिन्दी आ उर्दू अलग अलग हो गइली स. डेढ़ सौ साल ले बहस चलल आ साल १९५० में भारत के संविधान सभा में एक वोट का अन्तर से तय भइल कि भारत के राष्ट्रभाषा देवनागरी लिपि में लिखल हिन्दी होखी. जबकि बहुत लोग के कहनाम रहे कि अरबीफारसीओ में हिन्दी लिखल जा सकेला. हो सकेला कि अगर ऊ लोग रोमन लिपि में लिखल हिन्दुस्तानी के मांग कइले रहित त फैसला कुछ दोसर आइल रहित. एह मामिला में कवनो आम सहमति सेमिनार में सामने ना आइल बाकिर एहिजा हम बतावल चाहम कि बृन्दावन लिंगुइस्टिक एण्ड कल्चरल जेनोसाइड वाचग्रुप एगो अइसन रोमन लिपि का विकास में लागल बा जवना में मारीशस में बोले जाये वाली आ सरकारी स्कूलन में पढ़ावल जाये वाली हर भाषा के ध्वनि शामिल कइल जा सको. जब तइयार हो जाई तब ओकरा के सभका टिप्पणी आ सुझाव खातिर पेश कइल जाई.

अपना दोसरा व्यस्तता का चलते मारीशस टाइम्स के टीम पूरा सेमिनार अवधि में मौजूद ना रह सकल बाकिर हमनी का संतुष्ट बानी जा कि एमजीआई भोजपुरी अध्ययन खातिर गंभीर बा आ भगवान करस कि ओकरा एह दिसाईं सफलता मिलो.


परमाननद सूबराह जी के लिखल एह लेख के भोजपुरी अनुवाद मारीशस टाइम्स का पूर्वानुमति से प्राकशित कइल जा रहल बा. एह लेख के सर्वाधिकार मारीशस टाइम्स का लगे सुरक्षित बा. अनुवाद का क्रम में कुछ गलती हो सकेला. लेख के मूल पाठ अंगरेजी में मारीशस टाइम्स पर मौजूद बा.

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भोजपुरी संस्कृति पर होत हमला. एगो सामयिक चेतावनी.

(28 Aug 2008)

परमानंद सुबराह

ई अंश हमरा संघतिया भोजपुरिहन के संबोधित बा. एह देश में हमनी के कुली पुर्वजन के वंशज सोचले रहुवे लोग कि एह देश के सभ्यता आ शिक्षा पर ओह लोग के पूरा मलिकाना रही. हमनी से जुड़ल हर चीज के हिकारत से देखल गइल, हमनी के रहे के तौर तरीका, खाए के तरीका, बोले के तरीका. हमनी के परपंरा आ हमनी के भाषा मजाक के विषय बना दिहल गइल. मानत बानी कि दुनिया से संवाद के माध्यम खाली भोजपुरी के राखेवाला ओह लोगन से आशा ना कइल जात रहे कि ऊ लोग क्रिओल के जानकार बनि जावो, अगरेजी आ फ्रेंच के त बाते छोड़ दीं. (दुनिया के भाषाविद् एहमे कवनो बुराई ना देखिहें बाकिर तब भाषाविद् लोग पढ़ल लिखल आ सभ्य समाज के लोग होला.) तबहियों ऊ लोग सुपरवाइजरी आ दासन से काम लेबे में बढ़िया रहुवे. समाजशास्त्रीओ लोग जानेला कि हर समुदाय अपना अलगा रहनसहन के अधिकार राखेला, आ कवनो परंपरा दोसरा कवनो परंपरा से ना त हेठ हो ले ना जेठ हो ले, चाहे ऊ पेरिस, लंदन, अफ्रीका भा न्यू गिनिया में रहे.

हमरा इयाद आवत बा स्कूल के अंगरेजी के किताब में लिखल एगो अंगरेज के भारत यात्रा के वर्णन. ऊ कवनो तरह से हिन्दी बतिया लेत रहुवे. एक जगहा ओकरा अगो गंवई आदमी से भेंट हो गईल आ ऊ ओकरा घरे चलि गइल. ओकर मेहरारू बहरी निकलल आ अपना बचवा का ओर इशारा करत कहलसि कि राम के बापू घरे नईखन. ऊ यात्री बहुतेर कोशिश कईलसि ई जाने बदे कि ऊ अपना मरद के नाम बता देव, बाकिर ओकरा सफलता ना मिलल. ऊ चहलसि कि कम से कम ओकरा संगे ओकर का रिश्ता बा ई त बता देव, बाकिर उहो ना!

ओह जमाना में भारत के दोसरा इलाका के कवनो औरत अपना मरद के आपन पतिदेव, भगवान जइसन पति, कहि के बता सकत होखी बाकिर ओह कहानी के औरत ओकरो खातिर तईयार ना रहे. ओह यात्री के निराश हो के लवटे पड़ल.

एकरा बाद क्लास में तरह तरह के टिपण्णी सुने के मिलल रहे. हमरा खातिर ई लाज के बाति रहे कि हम तबहियो चुप लगा के रह गइनी. हम अपना क्लास के ई ना बता सकत रहीं कि हमार महतारी, आजुवो ऊ ९६ बरिस में टाँठ बिया, भगवान ओकरा के जियवले राखसु, हमरा बापू के नाम ले के कबहियों ना बोलावे. ना त कबहूं तू कहि के बोलवलसि. हमेशा रउरा कहिके बोलावे. जे ना जानत होखे ओकरा के हम बता दीं कि भोजपुरी में सर्वनाम आ क्रिया के दू गो रुप बहुतायत से मिलेला. एगो साधारण आ दोसरे आदर वाला. दोसरा से जब बापू का बारे में कहेके होखे त ऊ परमानंद के बापू कहि के काम चला लेबे, कबहियो हमार भतार कहि के ना. भतार शब्द भोजपुरी में वर्जित शब्दन लेखा होला. एकर क्रियोल समशब्द मारि त टायलेटो में ना सोचल जा सके. आजु हमार बापू जिन्दा नइखन तबहियों माई खातिर आजुओ ले उहे संस्कार बा.

हमरा ई महसूस करे में बहुते समय लागल कि अपना भाषा भा अपना संस्कृति खातिर लजाये के भा अपना के छोटहन समुझे के कवनो जरुरत ना रहे. आजु हमरा अचरज होखे ला कि पढ़ाई में तेज रहला का बादो, फ्रेंच छोड़ि के जवना में तीस का क्लास में हम सोरह से उपर कहियो ना चहुंप सकनी, हमरा में हीन भाव काहे आईल? बाकिर तब हम इहो महसूस करे नी कि हमनी का पीड़ित आ दलित रहनी जा, कम से कम ओह लोग का नजरी में जे अपना के बेसी सभ्य समुझत रहे.

हमरा घरे हाथ से लिखल रामचरितमानस के कापी रहे जवन हमार परदादा अपना संगे ले के आइल रहलन. बाद में जब छापल किताब मिले लगली सन त ऊ पाण्डुलिपी कतहीँ धरा गइल आ बाद में हेरा गइल. बचपन में हमरा ओकरा अमोलपनके अहसास ना रहे.मेहनत से लिखल ओह किताब के जवन अपना मूल में तीन हजार साल पहिले तब लिखाइल रहे जब आजु के दुनिया के सभ्य कहाये वाला देशन, ग्रीस के बात छोड़ दीं तब,के लोग जंगली का तरह रहत रहे. बाद में बिसुनदयाल आन्दोलन से अपना बापू का लगाव का चलते हमरा अपना सांस्कृतिक धरोहर के अमोलपन के अहसास भईल. समस्या अतने रहि गइल कि बिसुनदयाल आन्दोलन के लोग भोजपुरी का जगहा हिन्दी के अपना संस्कृति के माध्यम बना लिहल.

सर शिवसागर रामगुलाम के भोजपुरी से कवनो हिचकिचाहट ना रहे, हो सकेला कि उनुका पण्डित बिसुनदयाल जइसन बढ़िया हिन्दी ना आवत रहे एह चलते, बाकिर एकरा से हमरा कवनो अन्तर ना पड़े. अपना संस्कृति से लगाव फेर से पैदा करावे खातिर हम बिसुनदयाल आ शिवसागर रामगुलाम दुनू जाना के आभारी बानी. ओह लोग के कहनाम रहे, अपना भाषा आ अपना संस्कृति का मामिला में हमेशा आपन माथ उपर राखऽ.हमनी का आपन देश ले लिहले बानी, अब फेर केहू हमनी के संस्कृति कवनो बात के अपमानित ना कर सकी. आजु का भाषा में कहीं, त ऊ लोग हमनी के उहे दिहल जे आजु बराक ओबामा अमेरिका के ब्लैक समुदाय के दे रहल बाड़े, अपना में भरोसा राखे के ताकत!

बाकिर ई का! ओह वादा के दू पीढ़ी का बादे आजु हमनी के संस्कृति के हिकारत से देखे वाला लोग जनम गइल बाड़े. कुछ लोग अपना के हमनी से ऊपर समुझत बा. जे अपना के अतना खास समुझत बा कि ओकरा हमनी घटिया लोगन के तौर तरीका सीखेके जरुरत नइखे. हमनी का अपना भाषा भा संस्कृति खातिर कवनो हीन भावना ले अइला के काम नइखे, अ हमनी का केहू के एकर इजाजत ना देब जा कि ऊ हमनी के कचार सको. जे समुझत होखो कि हमनी के अपमानित करियो के ऊ लोग विजयी हो सके ला त ओह लोग के डैनिश कार्टून मामिला के इयाद दिआवल जरुरी बा. एह घटना का बाद आजु अमेरिका समेत कवनो देश के लोग दोसरा के सभ्यता के मजाक उड़ावे के पहिले चार हालि सोची.

हम इहो जोड़ल चाहत बानी कि अइसनका लोग कवनो खास समुदाये में नइखे. हमनी के भोजपुरिहा समाजो के ढेरे लोग भोजपुरी भाषा आ संस्कृति के हिकारत से देखे ला. अगर एह बारे में कुछ ना कइल गइल त हमनी के भाषा आ संस्कृति पर हमला बढ़ते जाई आ हमनी के पूर्वजन के सभ्यता आ संस्कृति बिला जाई. हम आह्वान करत बानी. ओह लोग के जे हमनी के संस्कृति के विकास में रुचि राखत बा कि हमनी के भाषा आ संस्कृति के हर रुप के संरक्षित करे खातिर संसाधन आ विद्वानन के लगावे खातिर सरकार पर दबाव बनावे. बहुते लोग के मानल हो सकेला कि भोजपुरी मृतप्राय हो गइल बा आ हमनी के विकास के जरुरत के लायक नइखे रहि गइल. बाकिर ई भूल होखी. ओह लोग से हम अतने कह सकीले कि निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति के मूल!

पिछलका शताब्दी में विश्वविद्यलायन में पढ़ावल जात रहे कि लैटिन, क्लासिक ग्रीक, आ हिब्रू मृत भाषा हईं सन. पूरा दुनिया में छितराईल यहूदी सोच लिहले कि ई ना मानी लोग, आ जब ऊ लोग आपन देश पा लिहल तब ऊ लोग अपना भाषा आ संस्कृति के जिया दिहल आ आजु इजरायल में सभे हिब्रू बोले ला. अपना में गर्व राखेवाला हर आदमी खातिर ई एगो अनुकरणीय उदाहरण बा. आजु जरुरत बा कि एगो अन्तर्राष्ट्रीय भोजपुरी विकसित कइल जाव जवन भर दुनिया में पसरल भोजपुरिहन के एकसूत्र में जोड़ सके.

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शनिवार, 16 नवंबर 2024

भोजपुरी के आत्म रचाव

 

भोजपुरी के आत्म रचाव



परिचय दास

हम बरिस बरिस से भोजपुरी में लिख रहल बानीं. एगो सर्जनात्मक कवि के रुप में एह भाषा के आत्मीयता के अनुभूति हमरा बा. हम जानीलें कि रचनाशीलता के समग्र आयाम अपना स्मृति बिंब के मातृभाषा में जेतना शम्भव बा, ओतना अन्य में ना. भोजपुरी हमरा अस्तित्व के संपूर्णता में संभव बनावेले. अंग्रेजी के दबाव के बीच एशियाई मन अपना अभिव्यक्ति के सहज मार्ग के सृजन में सन्नद्ध हऽ. वास्तव में भाषा के चुनाव अपना खातिर एगो दुनिया के चुनाव करे जइसन हऽ. ई योंही ना कि किसानन के आत्महत्या पर चार साल पहिलहीं हम अपना कविता के माध्यम से सब लोगन ले पहिले आपन मंतव्य प्रकट कइलीं. हमार कन्सर्न ओह पाठक या श्रोता से हऽ जहाँ हमार जड़ हवे. शायद संवेदना के तंत्री व सोझ संबंध भाषा के स्रोतस्विनी से हऽ. जब गरीब बदहाली से लड़ रहल होखें आ हमनी के सरजनात्मक विवेक व सक्रियता से विमुख हो जाईल जाँ तऽ हमनी के समूचे अध्ययन, विज्ञान व साहित्य के कवनो अर्थवत्ता नइखे. अपना अपना माध्यम से हम संवेदन के जागृत कर सकीलाँ. मनुष्यता के पक्ष में एतना कइल गइल अति आवश्यक बा. हमार शुरू से मत रहल हऽ कि साहित्य कें अंतःकरण समाज के उपनिवेश नइखे, ओकर संपूरक हऽ. साहित्य वोह तरह के प्रतिक्रिया ना देला, जइसन अन्य अनुशासन देलें. एही से साहित्य समय के अतिक्रांत कइला के क्षमता रखेला.

भोजपुरी के माध्यम से दोसरन के संदर्भ में हम स्वयं के तथा विश्व के संदर्भ में दुसरन के देवता के शक्ति विकसित करीलाँ. आज साम्राज्यवाद अपना पुरान रुप में ना, बल्कि बाजार के पतनशील शक्तियन के रूप में हऽ. यदि हम व्यक्ति व सामूहिक आकाई के रूप में देखीं तऽ समझे के पड़ी कि साम्राज्यवाद कौना भाषायी शकलमें आवेला आ हमार आत्मसंघर्ष कवन आयाम ग्रहण करेला. अपना आर्थिक व राजनैतिक जीवन की प्रक्रिया में कौनो समुदाय एक जीवन शैली विकसित करेला, जवन उप्पर से देखला वोह समुदाय के विलक्षणता से युक्त होला. समुदाय के लोग आपन भाषं, आपन गीत, नृत्य, साहित्य, धर्म, थियेटर, कला, स्थापत्य आ एक अइसन शिक्षा प्रणाली विकसित करेलें, जवन एगो नया सास्कृतिक जीवन के जनम देला. संस्कृति सौन्दर्यपरक मूल्यन के अवधारणा के वाहक होले.

भोजपुरिहा मनइन द्वारा खुद के संबंध के विश्व के साथे देखल जाइल कवनों यांत्रिक प्रक्रिया नइखे, जवन आर्थिक ढाँचा के माध्यम से राजनैतिक तथा अन्य संस्था के उदय के साथे व क्रमिक रूप से संस्कृति, मूल्य, चेतना आ अस्मिता के उदय के साथ सुव्यवस्थित चरण आ छलाँग में घटित होखे. संघर्षशील वर्ग आ राष्ट्र खातिर शिक्षा मुक्ति के उपकरणो हऽ. ई परस्पर विरोधी संस्कृतियन के बीच अपना विवेकशील विश्वदृष्टि के वाहकऽ. पश्चिमी किसिम के सभ्यता, स्थिरता आ प्रगति के बिल्कुल वोही रुप में स्वीकार कइला के चेष्टा अंततः भोजपुरी मानस के आपन उपनिवेश बना लेई. अपना जड़ के महत्ता बचा के राखे के चाहीं.

ई हम बिल्कुल ना कहि सकीलाँ कि हमार भोजपुरी कविता खाली कवियन खातिर बा. ई सही हऽ कि हम एगो कवि के रूप में जी लाँ, बाकिर सिरिफ कवि के रुपे में ना. हमरा मन में एक संवेदनशील मनुष्य के समता मूलक समाज के कल्पना हऽ, किन्तु हमार साहित्य नारा नइखे. सर्जनशीलता कऽ हेतु अंततः संवेदना व चेतना हऽ. निवासी व प्रवासी के रुप में भोजपुरी लोग समूचा विश्ववितान रचले बाड़न. मारिशस में अपना खून पसीना से गंगा व ओकर संस्कृति रचले बाड़न. सूरीनाम, नेपाल, गुयाना, त्रिनिडाड, फिजी, दक्षिणी अफ्रीका इत्यादि देशन में अपना श्रम से पुष्प खिलवले बाड़न्.

हम सभे जानी लाँ कि उधार लीहल भाषा आ दुसरन के अंधानुकरण से अपना साहित्य आ संस्कृति रचल विकसित कइल संभव नइखे. हम भाषाइ रुप से कब्बो कट्टर नइखीं जा. लाजे से कि हमनी के मानल ई हऽ कि भाषा आ साहित्य के बीच सांवादिकता बनल रहे के चाहीं. अपन वाचिक आ लिखित परंपरा के गर्भ से रत्न उत्खनन खातिर अब तऽ चेष्टाशील होइये जाये के चाहीं. संस्कृति के विविध क्षेत्रन में पुनर्जागरन के अगाध सृष्टि होखे के चाहीं. भाषा के भण्डार विज्ञान, दर्शन, तकनीक व मनुष्य के अन्य प्रयासन खातिर खोलल आवश्यक हऽ. शब्द कौतुक एक कला हऽ, किन्तु संस्कृति के प्रवाह शब्दन में मात्र अमूर्त सार्वभौमिकता से संभव नइखे. यदि हमनी के वास्तव में चाहऽतानीं जा कि हमनि के शिशू व हमनी के स्वयं के अभिव्यक्ति के लय प्रकट होखे तथा प्रकृति के साथ हमनी के रचाव के संवर्द्धन होखे तऽ मातृभाषा के सर्जना पर बल आवश्यक हऽ. ई कार्य अंधविचार से परिचालित ना होखे के चाहीं. अपना भाषा आ परिवेश के बीच स्थापित सामंजस्य के प्रस्थान बिंदु मान के दूसरो भाषा सीखल जा सकल जालीं. अपन भाषा, वय्क्तित्व आ अपना परिवेश के बारे में कौनो ग्रन्थि पलले बिना अन्य साहित्य व संस्कृति के मानवीय, लोकपरक व सकारात्मक तत्व के आनंनद उठावल जा सकल जाला. अपना व विश्व के दुसरा साहित्य भाषा से हमनी के रिश्ता रचनात्मक होखे न कि दबाव भरल या उपनिवेश परक. अंततः हमनी के अपन स्मृति व बिंब के सार्थक आधार अपने भाषा में संभव हऽ. समकालीन चिंतन व भंगिमा के अपना माध्यम से जेतना प्रकट कइल जा सकल जाला, अन्य से ना. एही से ई समकाल के भी उचरला के विशिष्ट पथ हऽ. वईसहूँ, परम्परा आ समकालीनता के बीच स्वस्थ संबंध होखे के चाहीं, जवन मूल से ही संभव हऽ.

भोजपुरी के संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल कइल न केवल शब्दिक बिंब के रूप में आत्म व जनसंघर्ष के रचनात्मक चेतना के स्वीकृति हऽ, अपितु संसकृति के आत्म पहचान भी. एसे गर्भ ले चहुँपि के रत्न के उत्खनन के संभावना अउरी प्रबल होखी.

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परिचय दास : एक परिचय

जन्मस्थान :

ग्राम : रामपुर काँधी देवलास,
तहसील : मुहम्मदाबाद, गोहना,
जनपद : मऊ.

साहित्य-संस्कृति खातिर 1996 में भारतीय दलित साहित्य अकादमी के सम्मान से सम्मानित.
साहित्यकार, भोजपुरी लोकगायक, चित्रकार, नाट्यकर्मी. संस्कृति-चिन्तक.

हिन्दी में प्रथम श्रेणी से एम॰ए॰ कईला का बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय से यूजीसी के फेलो रहत पीएच॰डी॰ उपाधि प्राप्त. भोजपुरीमें पाँच गो कविता-संग्रह पहिलहीं प्रकाशित हो चुकल बाड़न, जिनकर शीर्षक बा -
एक नया विन्यास (2004)
पृथ्वि से रस लेके (2006)
चारुता (2006)
युगपत समीकरण में (2007)
संसद भवन की छत पर खड़ा हो के (2007)

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार डा॰सीताकान्त महापात्र के सर्जनात्मकता पर केन्द्रित "मनुष्यता की भाषा का मर्म" आलोचना पुस्तक संपादित (सन 2000). भारत के उत्तरप्रदेश, बिहार, आ नेपाल में फईलल थारु जनजाति का बीच सक्रिय रहलन आ "थारू जनजाति की सांस्कृतिक परम्परा" पुस्तक के लेखन कईलन. साहित्य, संस्कृति, फिल्म, कला, इतिहास, लोकसाहित्य, पत्रकारिता, समाजशास्त्र, शिक्षा, नाटक आदि में रचनात्मक हस्तक्षेप. कई पत्रिका, पुस्तकन के संपादन आ लेखन.


रविवार, 3 नवंबर 2024

एगो नया इतिहास के शुरूआत

 

रउरा सभे के रविकिशन शुक्ला के प्रणाम.

आज रउरा सभ का सोझा होत मन बहुते प्रसन्न बा. एके दू गो ना, बहुते खुशी से भरल आनंद के माहौल बा. एह सब का बारे में त बतियइबे करब बाकिर पहिले रउरा सभे के होली के शुभकामना. एह साल के होली पूरा देश खातिर खास बा काहे कि कुछे दिन पहिले भारतीय सिनेमा के गूंज दुनिया भर में सुनाइल बा. महाशिवरात्रि का दिने पूरा देश में हर हर महादेव का साथे जय हो के उद्घोष होत रहुवे काहे कि पहिलका बेर कवनो भारतीय पृष्भूमि पर बनल फीचर फिलिम के आ एगो छोट डाकूमेन्टरी के दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारन में से एक आस्कर पुरस्कार मिलल रहे.

आस्कर मिलल त दूर के बात होला, ओकरा खातिर नामांकनो भईल एगो बड़ बाति होला. एगो क्षेत्रीय फिलिम से शूरुआत करेवाला ए॰आर॰रहमान त इतिहासे बना दिहलें. ऊ देशे के ना, क्षेत्रीयो सिनेमा के मान बढ़ा दिहलें. कहल गईल बा कि हौसला बुलन्द होखे त कवनो इच्छा पूरा हो सकेला आ भगवानो अइसनका लोगनके भरपूर साथ देबेलन. तबे त रहमान साहब पुरस्कार मिलला पर कहलें गॉड इज ग्रेट ! हमार त कहनाम हऽ कि ग्रेट शब्द के इस्तेमाल खाली भगवाने खातिर होखे के चाहीं. काहे कि दनिया भर के सफल लोग के आस्था अपना भगवाने में होला. भगवान में भरोसा ना राखे वाला आदमी अगर सफलता पाईयो जाव त स्थायी ना होखी. दुनिया में भारतीय सिनेमा के पहिचान दिलवावे खातिर हम ए आर रहमान साहब, गुलजार साहब आ रसूल पोकुट्टी के नमन करत बानी.

ई हमार खुशकिस्मती बा कि अबहीं हाले में हमरा रहमान साहब का धुन पर थिरके के मौका मिलल. मणि सर के फिलिम रावण के संगीतकार रहमाने साहब हउवन आ उनकर बनावल धुन के गीत पर हमरा नाचे के मौका मिलल. रहमान साहब के मिलल पुरस्कार से सभे क्षेत्रीय सिनेमा वाला लोग उत्साहित बा आ भोजपुरी सिने उद्योगो एहसे फरका नईखे. हमनी के मालूम होखे के चाहीं कि आस्कर समारोह में एगो अइसनको बच्ची रहुवे जे सभका से भोजपुरिये में बतियवलसि. ऊ बच्ची मिर्जापुर के पिंकी रहे आ ओकरा पर बनावल फिलिम स्माइल पिंकी अब स्माइल इण्डिया बन चुकल बा. भोजपुरी सिनेमा बहुते बढ़न्ति पर बा आ गैर भोजपुरियन का बीचे हमनी के मान बढ़ल बा.

कुछ साल पहिले के बात हऽ जब हम अपना पहिलका फिलिम सईंया हमार के शूटिंग करत रहीं त हमरा के जाने वाला लोग हमरा पर हँसत रहुवे आ कहत रहुवे कि एह फिलिम का बाद बोरिया बिस्तर बान्ह के जौनपुर लवटि जईहऽ काहे कि अब हिन्दी सिनेमा में तहरा काम मिलल संभव ना हो पाई. उहे लोग आजु हमरा पर गर्व करेला कि ओहिज फिलिम से भोजपुरी के फिल्मोद्योग के दरजा मिलल आ भोजपुरी सिनेमा एक बेर फेर से जी उठल. इहे ना हमरे फिलिम कब होई गवना हमार नेशनल अवार्ड जीत के साबित कर दिहलसि कि हमनी के इंडस्ट्री रेत के महल ना हऽ बलुक पत्थर के बनल महल हऽ जवना के कवनो तूफानो हिला ना पाई. हमरा जीवन के आजो एके लक्ष्य बा भोजपुरी के तरक्की.

ई हमनी के दुर्भाग्य बा कि सरकार से कवनो सहायता नइखे मिल पावत जबकि हर क्षेत्रीय सिनेमा के ओकर सरकार प्रोत्साहित करेले. बे सरकारी प्रोत्साहन मिलले हमनी के सही विकास ना हो पाई.

आजु दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिको भोजपुरी के मुरीद बन गईल बा आ मानत बा कि भारत से राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, आ सांसकृतिक रुप से जुड़े खातिर सिरिफ हिन्दी आ अंगरेजी से काम ना चली. लोग के दिल के आवाज ओह लोग का दिल के भसे में सुनल जा सकेला. एह खातिर ओबामा बधाई के पात्र बाड़न. रउरा ई जान के खुशी होखी कि हम उनुका के भोजपुरिये में लिख के बधाई संदेश भेजले बानी. उहाँ के हमनी के भसे के ना हमनियो के सम्मान दिहले बानी. हमरा आशा बा कि हमनियो के सरकार हमनी के मनोभाव जल्दिये समुझी.

हम हमेशा अपना विचारन से आगाज कइले बानी. हमार हर कदम भोजपुरी के तरक्की खातिर उठेला. बिगबास का घर में बितावल नब्बे दिन में से एकहू दिन अइसन ना गईल रहे जहिया हम भोजपुरी के अपना अंदाज में गैर भोजपुरियन तक ले ना चहुँपवले होखीं. हमार हमेशा कोशिश रहेला कि भोजपुरी में निमन फिलिम बने आ हर साल राष्ट्रीय पुरस्कार जीते. एह दिसाईं हम एगो छोटहन प्रयास कइले बानी, बतौर निर्माता हमार बनावल पहिलका फिलिम बिहारी माफिया एही होली पर रिलीज हो रहल बा. हमार डायरेक्टर बबलू सोनी साँच घटना का आधार पर एगो संदेशप्रद फिलिम बनवले बाड़न जवना में मनोरंजनो बा. हमरा एह फिलिम से गलत राह पर कदम बढ़ा चुकल एकहू नवजवान अगर आपन कदम रोक लेव त हम अपना मकसद में अपना के कामयाब समुझब.

समाज एक दिन में ना बदले बलुक बुंच बुंद करके ई घड़ा भरे ला. बाकिर अइसनो लोग रहेला जे एह घड़ा में छेद करे का फिराक में लागल रहे ला. अगर हमनी का एकजुट रहेम त ओह लोगन के चाल कामयाब ना हो पाई. हमनी के इंडस्ट्री के आपन धारणा बदले के पड़ी कि बिना अश्लीलता के फिलिम ना चले. हमार फिलिम बिदाई एह बात के गवाह बा कि बिना अश्लीलता परोसलहूं फिलिम सफल हो सकेला. थियेटरन में मेहरारूवन के भीड़ से इहे बुझात बा कि ऊ लोग भोजपुरी फिलिमन से कबो अलगा ना भईल, हमनिये का ओह लोग के दुर कर दिहनी. बिदाई देख के समाज पर असर जरुर पड़ी. अब समय आ गईल बा कि हमनी का अइसनका फिलिम बनाईं जा जवन समाज के सही दिशा दे सको. हमार ई निहोरा निर्माता लोगन से बतौर निर्माता बा काहे कि अभिनेता का रुप में कबो कबो हमनी का निर्देशक निर्माता के बात माने खातिर मजबूर हो जाइले.

आखिर में रउरा सभ के होली के मुबारकबाद देत बानी आ अपील करत बानी कि अबकी होली में अइसनका रंग गुलाल अबीर के इस्तेमाल करीं सभे जवन स्वास्थ्य खातिर नुकसानदेह ना होखे. होली का हुड़दंग में गलत हरकत करे वालन से दूर रहे के चाहीं.

रउरा सभे के
रविकिशन

मैथिली भोजपुरी अकादमी, दिल्ली के कविता उत्सव


द संडे इण्डियन का दिल्ली कार्यालय में आयोजित सेमिनार के विषय

पिछला २० जनवरी २००९ के दिल्ली का श्रीराम सेंटर, मण्डी हाउस में मैथिली भोजपुरी अकादमी एगो कवि सम्मेलन के आयोजन कइलसि. मुख्य अतिथि रहली दिल्ली सरकार के भाषा मंत्री किरण वालिया. अपना संबोधन में किरण वालिया कहली कि भोजपुरी दुनिया के सबले मीठ भाषा हऽ आ एके सुनला पर हमके बहुते अच्छा लागेला. कई गो अइसनो भाषा बाड़ीस न कि सुनीं त बुझाई कि कहीं झगड़ा होत बा, बाकिर भोजपुरी में बहुत मिठास बा.


कविता उत्सव


एह कविता उत्सव में अखिल भारतीय भोजपुरी समाज के दिल्ली इकाई के अध्यक्ष अजीत दूबे, जे कि अकादमी के वरिष्ठ सदस्यन में से हउवन, अपना संबोधन में कहलन कि संविधान का आठवीँ अनुसूची में भोजपुरी भाषा के जल्द से जल्द शामिल करे के चाहीं कांहे कि करोड़न भोजपुरियन के भावना एह से जुड़ल बा. उहां का एह मंच से भोजपुरी भाषा के विकास आ उत्थान के पुरजोर हिलायत कइनी आ भोजपुरिया लोगन से अपील कइनी कि एह काम में भरपूर सहयोग देव लोग.

अपना स्वागत भाषण में अकादमी के सचिव डा॰ रविन्द्र नाथ श्रीवास्तव अकादमी का तरफ से सभे के स्वागत कइलन. वरिष्ठ साहित्यकार प्रो॰नित्यानन्द तिवारी का अध्यक्षता में भइल कवि सम्मेलन के संचालन भी डा॰ श्रीवास्तव कइलन. उपस्थित कवियन में डा॰ चन्द्रदेव यादव, मनोज भावुक, प्रमोद तिवारी, अलका सिन्हा, गंगेश गुंजन, रविन्द्र लाल दास, डा॰ कामिनी कामायनी, अक्षय कुमार, डा॰ शत्रुघ्न कुमार, रमण कुमार, सारंग कुमार वगैरह कवि लोग रहे. कवि सम्मेलन में श्रीराम सेंटर के दूनो हाल खचाखच भरल रहे आ देर रात ले लोग कवि सम्मेलन के आनन्द उठावल. भीड़ देख के लागत रहे कि आयोजन दिल्ली ना यूपी भा बिहार के कवनो शहर में हो रहल बा. उपस्थित लोगन में खाली मैथिल भा भोजपुरिये ना रहलन बलुक बड़हन संख्या में पंजाबी, बंगाली, सिंधी भाषी भी मौजूद रहे लोग. एह कार्यक्रम के पूरा कवरेज भोजपुरी टीवी चैनल हमार टीवी पर भी दिहल गइल.


दिल्ली से देवकान्त पाण्डेय जी का रपट पर आधारित


शनिवार, 2 नवंबर 2024

भोजपुरी, लोकल वोकल एंड ग्लोबल

 


द संडे इण्डियन का दिल्ली कार्यालय में आयोजित सेमिनार के विषय

हिंदी के शीर्ष कवि केदारनाथ सिंह भोजपुरी भाषा के संविधान के आठवीं अनुसूची में दर्ज करे के जोरदार माँग कइले बाड़न, साथही अलगा भोजपुरियो राज के मांग कइले बाड़े. मौका रहे द संडे इण्डियन का दिल्ली कार्यालय में आयोजित सेमिनार जवना के विषय रहुवे, भोजपुरी, लोकल वोकल एंड ग्लोबल. केदारनाथ सिंह आपन पूरा बात भोजपुरीये में कहलन. बोले के त ऊ भोजपुरी में चाहते रहलें बाकिर सेमिनार में मारीशस से आईल मुख्य अतिथि सरिता बुद्धू के खास आग्रह रहुवे कि ऊ भोजपुरिये में बोलस, जेकरा के ऊ टाल ना सकलें. एह मौका पर भोजपुरी में अश्लीलता के बाजार पर टिप्पणी करत सरिता बुद्धू कहली कि एकरा खिलाफ लोगन के एकजुट होखे के चाहीं.

(फोटो परिचय : मुख्य अतिथि केदारनाथ सिंह के स्वागत करत अजीत दूबे. साथ में सरिता बुद्धू आ राजमोहन)

केदारनाथ सिंह कहलन कि पहिले त भोजपुरी के पढ़ावले ना जात रहुवे, बाकिर अब हालात बदलल बा आ उच्च शिक्षा में भोजपुरी के पढ़ाई होखे लागल बा. अलगा बाति बा कि ई उल्टा प्रक्रिया बा. बेहतर त ई रहित कि पहिले प्राथमिक कक्षा से भोजपुरी के पढ़ाई शुरू होखित जवना से कि भोजपुरी के नींव मजबूत बनित. दोसरे ऊ इहो कहलें कि कवनो भाषा के विकास में अनुवाद के बहुते महत्व रहेला. हिन्दीयो के विकास में अनुवाद के महत्व रहल बा. एहसे भोजपुरियो में दोसरा भाषा के निमन साहित्य के अनुवाद कईल जाव.

हालैण्ड से आईल ख्यातिलब्ध भोजपुरी गजलगो आ गायक आ कार्यक्रम के खास मेहमान राजमोहन कहलें कि भोजपुरी के विकास आ विस्तार खातिर जरूरी बा कि एकरा के जन जन तक चहुँपावल जाव आ संगीत एहमें मजगर भूमिका अदा कर सकेला.


(फोटो परिचय : सेमिनार संबोधित करत द संडे इंडियन (हिन्दी भोजपुरी) के कार्यकारी संपादक ओंकारेश्वर पाण्डेय. साथ में सरिता बुद्धू आ अजीत दूबे.)

द संडे इण्डियन के हिंदी आ भोजपुरी संस्करण के कार्यकारी संपादक ओंकारेश्वर पाण्डेय कहलें कि द संडे इंडियन एह दिसाईं पहिलहीं से सजग बा आ हमनी का भोजपुरी का मूल रचना का साथेसाथ दोसरा भाषा के रचनन के अनुवादो छाप रहल बानीं. द संडे इंडियन के एह बात पर खास जोर रहेला कि अश्लीलता से पूरा तरह से बाँचल जाव. साथ ही जानकारी दिहलें कि द संडे इण्डियन के भोजपुरी समेत चौदहो संस्करण आनलाइन मौजूद बा.

एह कार्यक्रम में द संडे इण्डियन के अंग्रेजी के कार्यकारी संपादक रणजीत भूषण, एयरपोर्ट अथारिटी के कार्यकारी निदेशक अजीत दूबे, आईसीसीआर के निदेशक अजय गुप्ता समेत जेवी मनीषा, अमरनाथ, रामनाथ राजेश, कुलदीप श्रीवास्तव वगैरह लोग मौजूद रहुवे.

आँख गुड़ेररे से कवनो फायदा नईखे

 - प्रभाकर  गोपालपुरिया

जहिया से मुंबई में आतंकी हमला भइल बा (अरे चाचा हम ए बेरी के बाति कहऽतानी) तहिया से भारत (आपन सरकार भाई) आँखि गूड़ेरता.

ई आँखि ऊ सही के खोलऽता आकी वोटे खातिर, ई हमरा पता नइखे बाकिर ऊ आँखि गूड़ेरता. अरे भाई एतना सब भईल-गईल, आखिर का भइल ? ई भारत पर पहिला बेर आतंकी हमला रहल ह का ? एकरी पहिलहुँ न जाने केतना बेर रामू, रमई, रामाजी, रामबली, रामकिशुन, रहीम, अलीमुल्ला ऐह आतंकवाद के भेंट चढ़ी गइल बा लोग. केतने माई आपन कोखि त केतने बहिन आपन माँग अउरी केतने बहिन आपन राखी उजड़त देखले बा एही आतंकवाद में. पर भईल का ? सब टाँय, टाँय फिस्स.

नेता लोग बड़-बड़ बाति करऽता लेकिन ई बाति से ओकरा त आपन वोट एकट्ठा करे के बा. ओकरा के देश नाहीं कुरसी चाहीं. अउरी ऊ कुरसी काहे खातिर चाहीं, त पईसा खातिर, मनबहलाव खातिर, अउरी अपनी शान-शौकत खातिर. अउरी हाँ, कुछ पइसा बिदेसी बैंकन में राखे खातिर जेहसे कि लोगो-लईका ऐश के जिनगी जी सको. भले चाहे भारत में रहे के परो चाहे कवनो दूसरे देश में. पईसा रही तS कहीं रहल जा सकेला.

पाकिस्तानो बुद्धु बा का ? ऊ सब बुझSता, ऊ जानSता कि ई सब गीदड़ भभकी हS. कहीं कुछु उखड़ेवाला नइखे. आज क जमाना में नेता के मतलब कि खाली अपनी बारे में सोंचे. अरे भाई हम भारत की नेता लोगन के बात करऽतानीं.

देश की बारे में सोंचे खातिर सरकार का लगे समय कहाँ बा. आपन वोट बैंक बनवलहीं अउरी ऐशो-आरामे में त सारा समय निकलत चली जा ता. जनता सोंचो, काहें कि मरत त जनते बिया. नेता जनता थोड़े हउअन. उनकरा त मालूमे बा की अगर कांगेस नाहीं जीती त भाजपा जीती, भाजपा नाहीं जीती त केहू अउरी जीती पर जीती हमनियेजन में से न एगो. एसे का होई एतने की सियरा उहे हऽ रोउआँ बदलले बा. चाहें हम खाईं, चाहें उ खा अरे हम सब नेता त एके थइली के चट्टा-बट्टा हईं के.

अउरी नेतो लोग जानSता की लोग के गुस्सा बहुत जल्दिए बिला जाई, जब एक-आध गो मंतरी-संतरी बदलइएँ कुल्हि, हवाई जतरा होई, फेन से सब शांत हो जाई. अउर त अउर अब ए चुनाव से त फेन से क्लीयर हो गइल बा की भारत के जनता जनार्दनो आतंकवाद, गरीबी, भ्रष्टाचार आदि नाहीं देखे ले, उहो बस आपन सवारथ देखे ले. जाति देखे ले, भाई-भतीजा देखेले. आपन छेत्र देखेले अउरी कुल्ही मिलाजुला के हाँव-हाँव क के सांत हो जाले.

पर हम कहबी के ऐ भारत के नेता! भइया अगर तूँ अब ना सम्हरबS तS बहुत देर हो जाई. भले तूँ अरबों रूपया ध ल पर जब आतंकबाद के इहे रूप रही तS तूँ तS बचीं जा तारS, शायद तोहार लइको लोग बचि जाव पर आतंक जवनेगाँ मुँह बा के दउड़ रहल बा, एह से एकबात त बिलकुल क्लीयर बा की तहार नाती अउरी परनाती त कत्तई नाहीं बची पाई लोग. काहें की तबलेक बड़ी देर हो गइल रही. अउरी तहरा का बूझाता की विदेश में तह लोगन के रहे के मिली ? अरे विदेशिया काटी दिहें कुल्ही. ई कही के कि जे अपनी देश क ना भइल ऊ दूसरे देश के का होई. अबहिनो समय बा, कहीं एइसन न हो जाव की फेन से नेताजी, आजाद, भगत आदि भारत माई क सपूतन के आवे के पड़े भारत माई के तोह लोगन जइसन देशद्रोहियन से आजाद करावे.

जहिया जनता एकदम बउखलिया जाई तहिया तह लोगन के छठी के दूध ईयादी आ जाई. बुझलS हो आज के नेता. नेताजी नाहीं कहबि, काहें की ई सबद भारत माता की एगो बहुत बड़हन लाल के समरपित बा.

जय भारत माई.. जय हिंद..


रिसर्च एसोसिएट, सीएसई,
आईआईटी, मुम्बई

शहीदन के शहादत के सलाम?

२६ नवम्बर २००८ आजाद हिन्दुस्तान के मनहूस तारीखन में से एक. रात के पौने दस बजे कटक में भारतीय क्रिकेट टीम क्रिकेट के जन्मदाता देश इंगलैण्ड के बुरी तरह हरावे में लागल रहे आ दोसरा तरफ देश के आर्थिक राजधानी कहाये जाये वाली मुंबई के ताज होटल, ओबराय ट्राइडेण्ट होटल, नरीमन हाउस आ छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के धरती आतंकी हमला में बेगुनाहन का खून से ला होखत रहुवे. ई सब कुछ अतना जल्दी भईल कि लोग के सोचहूँ के मौका ना मिलल कि का हो रहल बा. एक ओर त हमनी का लगातार प्रगति का राह पर बढ़ल जा रहल बानी जा, हमनी का चांदो के फतह कर चुकल बानी आ ओहिजो तिरंगा फहरावल जा चुकल बा. उहे तिरंगा जब ३० नवम्बर के घवाहिल चोटिल आ मर्माहत ताज पर फहरावल जात रहुवे त एगो अजबे सिहरन मन के छू जात रहुवे. उहे ताज जे तीन दिन तकले नरपिशाचन का कब्जा मे रहल, रह रह के जवना में आग के शोला भड़क जात रहुवे, जेकरा सामने मीडीया आ देश के निगाह जड़वत अड़ल रहुवे, आखिरकार आतंकियन का कब्जा से मुक्त हो गईल, मुंबई फेर आजाद हो गईल आ देश भर के लोग चैन के साँस लिहल. बाकिर का देश साचहूं मुक्त हो सकल ? जाबाँज कमाण्डो, सुरक्ष दस्ता आ पुलिस के साझा कार्रवाई फिलहाल त राहत दिलवा दिहलसि बाकिर हर केहू जानत बा कि ई राहत क्षणिक बा. आतंक अबहीं खतम नईखे भईल, बस टारल गईल बा. कब तकले खातिर, ई केहू का नईखे मालूम.

आजु हमनी के हिन्दुस्तान तेजी से एगो बड़ शक्ति का रूप में उभर रहल बा. अब हमनी के देश कवनो चीज के मोहताज नईखे. दुनिया भर के निगाह हमनी का बढ़न्ती पर लागल ना बाकिर हमनी के पड़ोसिया के ई तरक्की पचत नईखे. खैर ई त मानवीय स्वभाव हऽ. आजु हालत ई बा कि भारत समेत दुनिया के सगरी विकसित देश आतंकवादी गतिविधियन से थर्राइल बाड़न. कवनो महीना अईसनका ना बीते जवना में भारत में कवनो आत्की वारदात ना होखे. अब सवाल उठत बा कि काहे ?

हर बेर लेखा अबकियो बेर तुरते पाकिस्तान के जिम्मेदार ठहरा दिहल गईल. दोसरा खातिर गड़हा खोने वाला पाकिस्तान आजु अपनहीं ओह गड़हा में डूबत उपरात बा. बेनजीर भूट्टो के खून अबहीं सूखलो नईखे. मुंबई हमला में पाकिस्तान के कतना हाथ रही ई त जाँच के विषय बा, बाकिर एह सच्चाई के नकारल ना जा सके कि हमनी का आपन जमीन जरूर आतंकियन खातिर खुलल छोड़ दिहले बानी सन. पाकिस्तान के नीयत त खराब बड़लहीं बा भारते का दम पर आजाद होखेवाला बांगलादेशो हमनी खातिर कम नुकसानदेह नईखे. पूर्वी बिहार के कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, आ अररिया जिला में त ऊ ओहिजा के राजनीतिओ चलावेले सन. सवाल उठेला कि जब हमनी के मालूम बा कि हमनी के पड़ोसियन के नीयत ठीक नईखे त हमनी का सतर्क काहे ना रहेनी सन ? अब देखे के बा कि देश के नेता लोग का करत बा.

समय आ गईल बा कि नेता लोग दलगत राजनीतिक नफा नुकसान छोड़ के, क्षेत्रवाद के टूच्ची राजनीति छोड़ के, मजहबी वैमनस्य आ भाषागत भेदभाव छोड़ के देश हित का बारे में सोचो. ना त ई भेड़िया हमनिये का घर में घुस के हमनी के खून चूस के हमनी के अपने घर से निकाल दीहें सन. पूरा दुनिया भलहीं मंदी से जूझत होखो, हमनी के ओहूले बेसी खतरा आतंकवाद से बा. बाकिर वाह रे हमनी के राजनेता .... ओह लोग के आतंकियो हमला में राजनीति लउकत बा. रउरा सभे के त मालूमे बा कि आजु काल्ह हम केरल में शूटिंग कर रहल बानी. आतंकी हमला का बाद एक दिन खातिर मुंबई गईल रहीं. तब शहीदन के श्रद्धांजलि देबे वाला कमसेकम एकसौ बोर्ड देखले होखम. सब पर मुंबई पुलिस के करकरे, कामटे आ सालस्कर का अलावा दोसरा के जिक्र ना रहुवे. लोग कइसे भुला गईल कि संदीप उन्नीकृष्णन आ गजेन्द्र ओकनी का साथ आमने सामने का लड़ाई में शहीद भईल रहे लोग. मुंबई पुलिस में सबइंसपेक्टर का पद पर काम करे वाला तुकाराम आंवले त वाकई एगो हीरो का तरह शहीद भईलन. अगर ऊ जिन्दा पकड़अइल आतंकी के एके ४७ के नली अपना सीना पर ना लगवले रहते त ना जानेकतना बेगुनाह आउरी मरइतें. हमार त ई मानल बा कि आतंकियन का खिलाफ कार्रवाई में मराइल सभे पुलिस कर्मी शहीद बाड़न आ राउर रविकिशन सुक्ला शहीदन के शहादत के बारंबार सलाम करत बा आ नेता लोग से निहोरा करत बा कि शहीदन के पहिचान उनुका जाति धरम भाषा भा प्रान्त से ना करसु. ई हमला खालि मुंबईये पर ना रहुवे, पूरा देश पर रहुवे. हम छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के उद्घोषक विष्णू झंडे के भी प्रणाम करत बानी जे हमला का समय टीसन पर खाड़ यात्रियन के सही मारंगदर्शन कईलन. आरपीएफ के ओह कांस्टेबल जिल्लू यादवो के प्रणाम करत बानी जे एगो डंडा का बल पर अंधाधुंध गोली चलावत एगो आतंकवादी के ७ मिनट ले रोकले रह गईलन. अगर टीसन पर चलत सीसीटीवी एह सीन के दर्ज ना कइले रहित त उनुकर बहादुरी के चरचा दबिये जाईत.

२६ नवम्बर के हमला से आजु समूचा देश विचलित बा. मुंबई से हजारन किलोमीटर दूर एहिजा केरलो में ओकर असर देखे के मिलल रहुवे. हमनी का पूरा यूनिट अतना अपसेट हो गईल रहनी सन कि २७ तारीख के शूटिंग रद्द कर दिहनी सन. दुनिया के अहिंसा आ शांति के पाठ पढ़ावेला हिन्दुस्तान आजु अपनहीं लहुलुहान काहे बाटे ? एह बात पर हमनी के आत्ममंथन करे के होखी आ आरपार के लड़ाई लड़े के होखी. बात कईल आसान होला बाकिर ओकरा के बेवहार में ले आवल ओतने मुश्किल. भारत एगो बड़हन देश हऽ आ ओकरा सीमा के सुरक्षा आसान चुनौती नईखे. ई देश आजाद रहे, आबाद रहे, एकर जिम्मेदारी खाली कमाण्डो के नईखे. अब त आतंकी कालिमा से उबरे खातिर हर भारतीय के भारत माँ के सपूत बनहीं के पड़ी. हमार तोहार, आपन गैर के भेदभाव मिटावहीं के पड़ी. साल २००८ अलविदा ले रहल बा आ २००९ दस्तक दे रहल बा. नया साल में अगर हमनी का इहे प्रण ले लीं त कवनो माई के लाल भारत माता का छाती पर आतंक के नंगा नाच करे के हिम्मत कईल त दूर सोचियो ना पाई.

जय हिंद.

रविकिशन

( ई लेख भोजपुरी सिनेमा के सुपर स्टार आ अब गोरखपुर से भाजपा सांसद रविकिशन जी भेजववले रहीं आ अंजोरिया पर अंजोर भईल रहुवे। )