पर्यटन विषयक लेख
महर्षि भृगुमुनि आ ददरी के मेला
- दयानन्द मिश्र नन्दन
आजु जवन मनवन्तर चलि रहल बा तवना के नाम बैवस्वत मनवन्तर ह. ई सातवां मनवन्तर ह. एकरा पहिले सिलसिलेवार से स्वायम्भुव, स्वरारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत, आ चाक्षुष मनवन्तर रहे. छठवां मनवन्तर चाक्षुष में सात गो तपोनिष्ठ ऋषि - भृगु, नभ, विवस्वान, सुधामा, बिरजा, अतिनामा, आ सहिष्णु - रहलन. एहि सात जाना पर ‘सप्तऋषि’ नाम धराइल. ओईसे त बहुते ऋषि रहलन बाकिर योगबल, तपबल, साधबल, भा यज्ञबल में एहलोग के स्थान बहुत उपर रहुवे. एहू सात ऋषियन में महर्षि भृगु के नाम पहिलका रहे.एह लेख में हम ओही भृगु ऋषि के चरचा करे जात बानी.
छठवां मनवन्तर चाक्षुष के शुरूआत हो गइल रहे. नाना तरह के विघिन डाले वाला राक्षसन के उतपात खूब होत रहे. हर प्रकार से, हर तरह से राक्षस आपन प्रभाव देखा के धरम के काम पूरा ना होखे देसु. जगह जगह ऋषि मुनि लोग के परेशानी बढ़ल जात रहे. अपना अपना योगबल से राक्षसन के परभाव कम करत कवनो तरह से ऋषि लोग के यज्ञ पूरा होत रहे. ऋषि मुनि लोग के जियरा बड़ा सांसत में पड़ल रहे. उ लोग कवनो तरह से आपन यज्ञ पूरा करे.
जेकर हाथ पैर आ मन काबू में रहेला आ जेकरा में विद्या, तप, आ कीर्ति के समावेश भरपूर रहेला उ धरती पर नाना तरह के बिघनन के सामना करियो के आपन काम बढ़िया तरह से पूरा करत, सतकरम करत आगे बढ़त जाला. भृगु ऋषि में सब गुण भरल रहे. उनकरा अन्दर विद्या, तप आ कीर्ति के उर्जा भरल रहे.
जे सैकड़न साल हवा पी के, एक पैर पर खड़ा होके, दूनो हाथ उपर उठा के तपस्या में लीन रह सकेला उ कठिन से कठिन संकल्पो के पूरा कर सकेला. भृगु ऋषि अइसने रहलन. तबे नू सातो ऋषियन में पहिला नाम उनकरे बा.
ओह घरी विष्णु भगवान के पूजा सब केहू बड़ा नेह लगाके करत रहे. उहे भगवान विष्णु एकदिन मां लक्ष्मी के साथ क्षीर सागर में सुतल रहलन. मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के गोड़ दबावत रहली. ओहि समय भृगु ऋषि खिसियात ओहिजा पंहुचलन. उनका एह बात के खीस रहे कि विष्णु उनकर एगो आदेश ना मनले रहलन. पंहुचते ऊ विष्णु भगवान के छाती पर लात जमवलन. विष्णु भगवान के नींद टूट गइल आ ऊ भृगु ऋषि के चरण पकड़ के कहलन कि, - हे मुनिवर, कहीं हमरा पत्थर लेखा छाती से रउरा कमलवत चरण के बड़ा चोट पंहुचल होखी. आंई सुघरा दीं.
भगवान विष्णु के अतना कहते ऋषि के आंख खुलि गइल. परदा हटि गइल. अज्ञानता के नाश हो गइल. ज्ञान के प्रकाश पड़तहीं ऋषिवर दूनू हाथ जोड़िके भगवान विष्णु के चरण पर गिरि पड़लन. कहलन कि हे प्रभो! हमरा से बहुत बड़ अपराध हो गइल. ई अपराध अज्ञानतावश भइल बा. हमार अपराध के रउरा क्षमा कर दीं.
रहिम के शब्दन में देखीं : ‘‘क्षमा बड़न को चाहिये छोटन के अपराध, क्या घट गया रहीम का जो भृगु मारी लात ?’’ भगवान विष्णु भृगुमुनि के समझवलन आ एगो कईन के लकड़ी देके कहलन कि गंगा किनारे चलत चल जा. जहवां सांझ हो जाव रुक जइहऽ. एह कोईन के लकड़ी के गाड़ दीहऽ. भोरे होखला पर जहां ई कोईन हरिअर हो जाव ओहिजे तू आपन आसन जमा दीहऽ आ तपस्या करीहऽ. तू बहुत बड़ यश के भागी बनबऽ.
महर्षि भृगुजी ओह लकड़ी के लेके चलि दीहले. चलत चलत राहे में एगो तपस्वी से भेंट हो गइल. ओह तपस्वी के नाम दरदर मुनि रहे. दरदर मुनि अपना से महान तपस्वी से भेंट भइला पर बहुत खुश भइलें आ भृगुजी से अपना के शिष्य बनावे खातिर निहोरा कइलें. बहुत निहोरा पर आ मन, वचन, कर्म से पवित्र समुझि के दरदर मुनि के आपन शिष्य बना लिहलें. अब दूनो जना गुरू शिष्य फेर गंगा के किनारे किनारे चल दिहलें अपना यात्रा पर.
चलत चलत बलिया नगरी में गंगा के तट पर रात हो गइल. सूखल लकड़ी गाड़ के गुरू शिष्य स्नान, संध्या, वंदन कर के सूत गइल लोग. भोरे जगला पर आश्चर्य के सीमा ना रहे. जवन कोईन के लकड़ी कतहीं हरियाइल ना रहे ओह लकड़ी में एगो मुलायम पात अंखुआइल रहुवे. ओह दिन कातिक के पूरनमासी रहे. एही वजह से हर साल कातिक सुदी पूरनमासी के गंगा नहान कइके भृगुमुनि के दरशन कइल आ जल चढवल़ा के महातम मानल जाला. एही चलते ददरी के मेला लागेला जवन दरदर मुनि के नाम पर बा.
विष्णु भगवान के निर्देशानुसार भृगु मुनि बलिया के दखिन गंगा किनारे तपस्या में लीन हो गइलन आ दरदर मुनि उनका सेवा में लाग गइलन. ओह घरी आजु के बलिया से नव दस किलोमीटर दखिन पर गंगा बहत रहली. धीरे धीरे गंगा का कटान से बलिया उत्तर का तरफ हटत गइल. अबहीं के बलिया तीसरा जगहा पर बसल बा. एह क्षेत्र के भृगु क्षेत्र कहल जाला आ कातिक पूरनमासी के एगो बड़हन मेला ददरी मेला के नाम से लागेला. एह मेला में दूर दूर से मरद मेहरारू आवेला लोग आ गंगा नहान अउर भृगु जी के दर्शन पूजन कइके आपन आपन मनोकामना पूरा करे खातिर मनौती मानेला लोग.
कातिक सुदी चतुर्दशी से अगहन बदी एकम तक भृगु बाबा के मंदिर में साधु सन्यासी के बड़हन जमावड़ा होला. ददरी मेला में जनावरन के बड़हन मेला लागेला जवना में दूर दूर से पशु व्यापारी आपन आपन पशु लेके जुटेले आ जिला जवार का अलावा दूरो दूर से किननीहार आवेलन. प्रशासन एह मेला में
पूरा ताकत से जुटेले. मेला में हर तरह के सामानन के दूकानन का अलावा सांस्कृतिक आ साहित्यिको आयोजन मजगर होला.
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ग्राम: दिघार, बलिया - 277001
(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर दिसम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)
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