लघु कथा
दुख से मुक्ति
लल्लन प्रसाद पाण्डेय
अपना गंवहिया राम नगीना सिंह के घरे बइठके चाह पीअत रहले बिकरमा. काफी नजदीकि बा उनका एह परिवार से. एह से उनका से ओह घर में केहूके परदा ना रहे. ओह दिन सिंह के बड़की पतोहु के उदास देख बिकरमा चाह पियते पूछ बइठले- ‘‘काहे हो कनिया, आज मुंह पर उदासी काहे छवले बा?’’‘‘ना चाचा जी, कवनो खास बाति नइखे. आजुवे गांव से फोन आइल रहल ह कि नानी के गंगा लाभ हो गइल. नीके भइल, बेचारी बड़ा दुख भोगत रहली ह. ’’- पतोहु कहली.
बिकरमा तनीका चिहात पूछलें - ‘‘काहें, तहार त तीनों मामा लोग त बड़का लोग में गिनाला. जवना मतारी का तीन गो बेटा, तीन गो पतोहु, अन्न-धन से भरल घर, ओकरा कवन दुख?’’
पतोहु जवाब दिहली ‘‘-खाये-पीये के त कवनो दुख ना रहल. बड़का दू तल्ला मकान में उ अकेले रहत रहली. मामा लोग त सभे दूर शहर में रहेला. नानीए पर गांव के सम्पत्ति के देखे के भार रहल. तबकी बेर नानी किहां गइल रहनी, त देखनी एकदम थउस गइल बाड़ी. ना आंखि से लउकत बा, ना चलल जात बा. गांवही के एक जानी मेहरारू कबो-कबो आके उनुका के देख जाली. नित करम खातीर देवाल टोअत-टोअत जाली. कय बेर गिरल से देहो घवाहिल हो गइल रहल. आंखि के पपनी तक में ढील छाप लेले रहल. बड़ा दुख पावत रहली. अच्छा बा दुख से मुक्ति मिल गइल. ’’
राम नगीना सिंह के पतोहु के बाति सुनते बिकरमा के होस उड़ गइल. उनुकरो दूनों बेटा अपना मेहरारून के साथे दूर शहर में बाड़न स. साल-दू साल पर आके दस-पांच दिन इहां रह जालन स. साल भर भइल घरनिओ भगवान का घरे चल गइली. अकेले बाड़े. कबहीं उनुकों पोता-पोती के त इहे पांती ना
कहे के पड़े कि नीके भइल. बुढ़उ चल गइले. बड़ा दुख पावत रहले. अच्छा बा दुख से मुक्ति मिल गइल.
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लल्लन प्रसाद पाण्डेय,
बरडूबी बाजार, डुगरीजान,
तिनसुकिया-276601
असम
(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर)
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