कविता
दोहा
- बद्रीनारायण तिवारी शाण्डिल्य
माया पगरी माथ पर, बन्हले घुंघरू पांव ,
जोहत जेठ लुवार में, दहकत शीतल छांव.
उठल पच्छिमी छितिज से धुंध भरल बातास,
उबचुभ हो अफना रहल, अब पुरुबी आकास.
लाख जतन केहू कइल, पानी पड़ल ना रेख,
कबहूं कहां मिटा सकल, ब्रह्मा के अभिलेख.
बाप कटोरा हाथ में, अबस पुकारसु राम,
बइठि बहुरिया बगल में, मरद थम्हावे जाम.
जनखा डफलि हाथ में, दिहलसि कतने ताल,
कुछउ हासिल ना भयल, बहुत बजवलसि गाल.
सोन चिरइया देहरी, फेंकलसि चाभी झोंझ,
सूतल मनुवा आलसी, कइलसि देहि न सोझ.
पिछुवारा पहरू ठनकि, कइलसि सबइ सचेत,
अब पछितइले का होई, चिरई चुगलसि खेत.
आजु काल्ह के पहल में, चुकल जवानी जोस,
दांत टुटल, चमड़ी झूलल, का कइला अफसोस.
जोति खेत क्यारी बनल,रोपलसि धान किसान,
पानी बिनु बिरवा झुलसि, भऽइल सांझि, बिहान.
अंगनइया में जमल बा, अब हिंजड़न के भीड़,
प्रजातन्त्र के ताल में, केने फुटी भंसीड़.
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213ए राजपूत नेवरी, बलिया 277001
(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई जनवरी 2004 में अंजोर भइल रहल)
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