रविवार, 29 दिसंबर 2024

मगन किसान बाड़ें

कविता

मगन किसान बाड़ें


- शम्भु नाथ उपाध्याय



मगन किसान बाड़ें, हासिल निहारीं.

गदराइल मटर सरसो, तीसी चनवा फुलाइल,
रंग बिरंगा खेत देखिके,
खेतिहर बा अगराइल.
हंसेला किसानवां, सोचेला आपना मनवां,
असों नाहीं रही बड़की बंचिया कुंआरी,
मगन किसान बाड़ें, हासिल निहारीं.

चनवा दे दी साहू के करजा,
मटरा खाद के खरचा,
घरवाली के समुझाइब,
मति करिहे तू चरचा.
गेंहुआ खिआदी संउसे बराती,
तेल के खरचा सरसउवा सम्हारी,
मगन किसान बाड़ें, हासिल निहारीं.

जउवा सभ लरिकन के पाली,
दालि बनि लेतरी के,
बा अभाग, धनिआ का देखीहें
सपना देवपरी के ?
गुरवा बिकाई, पगरी रंगाई,
धनिया के बेसाहबी छापलिसारी,
मगन किसान बाड़ें, हासिल निहारीं.

बाछावा देके करबी निहोरा,
रुसल हित मनाईबि,
हं भगवान आस के पूरव..,
हम परसाद चढ़ाइबि.
पुरइबि सपनवां, चहकी अंगनवा,
डोलि चढ़ि जा दिन दुलहा अईहें दुआरी.
मगन किसान बाड़ें, हासिल निहारीं.
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तिखमपुर, बलिया - 277 001
(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई दिसम्बर 2003  में अंजोर भइल रहल)

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