कविता
बाटे क दिन के ई जिनिगी
- डा. बृजेन्द्र सिंह ‘बैरागी’
कशमीर से कन्याकुमारी तक हई देखीं,
होत बाटे पाप अपराध रोज जघन्य जी.
खात बाटे अदमी के अदमिये अब देखिं,
करताटे कुकरम धुआंधार ई अक्षम्य जी.
कहताटे शौक से सीना तानि अदिमी ई,
बा धरम ईमान सत्य प्रेम अब अमान्य जी.
जीओ चाहे मरो अब अदिमिअत भागि से,
प्रेम के पुजारी बाड़ न ईहवां नगण्य जी.
दिनों दिन बढ़त बाटे गिनति असुरवन के,
परंम के सजात बाटे चितवा असंख्य जी.
मान स्वाभिमान अब बचाईं लींजा हिन्द के,
परेम के जलाई जोति घर घर अनन्य जी.
परेम से रंगाइल रंग में बसेलन सुदामा कृष्ण,
नानक, कबीर, बुद्ध, सूर,तुलसी, चैतन्य जी.
पशु पक्षी पेंड़ अउर पहाड़ के सुनाम सुनीं,
होई जाई भारत वैकण्ु ठ धन्य धान्य जी.
शान्ति अहिंसा अउरी प्रेम के पढ़ाईं पाठ,
कशमीर से कन्याकुमारी तक एकरम्य जी.
कहेलन बैरागी विचार करीं भाई जी,
बाटे कई दिन के ई जिनिगी सुरम्य जी.
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आदर्श नगर, सागरपाली, बलिया- 277506
(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई दिसम्बर 2003 में अंजोर भइल रहल)
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