गीत
- देव कुमार सिंह
(एक) जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी,
जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी.
खालि खाए खातिर जिनिगी धिक्कार भाईजी.
जब पुण्य अनधा जुटेला, नर तन तबहीं मिलेला,
सेवा तप करऽ उपकार भाईजी,
जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी.
ई जग हवे एगो डेरा, स्थायी ना हवे बसेरा,
काहे करेलऽ तकरार भाईजी,
जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी.
जे जिनिगी पेट पोसे में गंववावल,
देशवा के जे शान ना बढ़ावल,
ओकर जिनिगी धरतिया पर भार भाईजी,
जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी.
आपस के भेद सब मिटावऽ,
सबके गलेसे लगावऽ,
बांटऽ दंनिया में सुख शान्ति पयार भाईजी,
जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी.
भूखड़ा के भोजन करावऽ,
नंगा के वस्त्र पहिरावऽ,
तबे होई तहार जिनिगी साकार भाईजी,
जिए के जिएला कुकुरो सियार भाईजी.
(दो) कब होई देशवा में भोर
कब बीति दुख के अन्हरिया हो रामा,
कब होई देशवा में भोर ?
सुख के सुरुज कब होइहें उदितवा,
कब होई इहवां अंजोर ?
देशवा आजाद भईल, अइसन सुनाइल सबके,
सुखी गांव नगर होई,
अइसन बुझाइल सबके.
पड़ल मेहनत के अंखिया में माड़ाऽ.,
ढर ढर ढरकेला लोर,
कब बीति दुख के अन्हरिया हो रामा,
कब होई देशवा में भोर ?
आकि ई आजादी बबुआ,
टोपी में भुलाइ गइल,
आकि सब सेठवा तिजोरी में लुकाइ लिहलें,
आकि उहो बाड़े अभी लरिका गोदेलवा,
चललें ना झोपड़ी का ओर,
कब बीति दुख के अन्हरिया हो रामा,
कब होई देशवा में भोर ?
आकि इ मगन बाड़ें कुरुसी का खेल में,
आकि नौकरशाही इनके
डालि दिहलस जेली में,
अंखिया फोड़ाई गइल इनका जनमते,
आकि भइलें ना अभी अंखफोर,
कब बीति दुख के अन्हरिया हो रामा,
कब होई देशवा में भोर ?
आकि पनरह अगस्त रहे सुनर सपनवा,
अधनीनीये में भइल सुरुज दरसनवा,
उरुआ बोले, चमगादड़ उड़ेला,
अभी बाटे अन्हार खूबे घनघोर,
कब बीति दुख के अन्हरिया हो रामा,
कब होई देशवा में भोर ?
-----
प्रवक्ता, इन्टर कालेज, जमालपुर
(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई दिसम्बर 2003 में अंजोर भइल रहल)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें