लेख
लोकगीतन में जीवन के निस्सारता
- डा.भगवान सिंह भाष्कर
आजु ई संसार नश्वर हऽ. दुनिया के सब नाता रिश्ता झूठ हऽ. आदमी एह संसार में नाटक के पात्र के तरह आपन भूमिका निभावेला आ जइसहीं ओकर रोल खतम होला ऊ संसार रुपी मंच के छोड़ के चल देला. मरद मेहरारु, बाप बेटा, हित नात, दोस्त दुश्मन सब छनिक नाता होला. मुअला का बाद केहू केहू ना होखे.
भारत के हर भाषा के साहित्य में जीवन के निस्सारता से जुड़ल लिखनी के कवनो कमी नइखे. परिनिष्ठित साहित्य होखे भा साहित्य, जीवन के नश्वरता के अनुगूंज हर जगह
बराबरे सुनाई पड़ेला. मैथिल कोकिल विद्यापति जब सब ओरि से हार गइलन त भगवान कृष्ण के शरण में अपना के डाल दीहलें -
‘‘तातल सैकत वारि विन्दु सम,
सुत मित रमनी समाजे,
तोहे बिसरि मन ताहे समरपिलु,
अब मझु होवे कौन काजे,
माधव हम परिनाम निराशा.’’
लोक साहित्यो में अइसन गीतन के भण्डार भरल बा जवन जीवन के निस्सारता का ओरि इशारा करत बाड़े आ भगवत् भजन करे के संदेश देत बाड़े. सब आदमी के इश्वर के दरबार में जरहीं के पड़ी, आ पछिताये के पड़ी. एह स्थिति के बरनन लोक गीत में देखीं -
‘‘एक दिन जाये के पड़ी परभू के नगरिया,
डगरिया बीच पछिताये के पड़ी.
उहवां कईल तू करारी,
भगति करम हम तोहारी.
ईहवां भूलल बाड़ माया के बजरिया,
डगरिया बीच पछिताये के पड़ी.’’
सब देहधारी के एक ना एक दिन भगवान का दरबार में जाहीं के पड़ी आ ओह दिन पछिताहूं के पड़ी. काहे कि ओहिजा से त तू कहि के चलल रहूवऽ कि दुनिया में भगवान
के भगति करेम, बाकिर एहिजा पंहुचला का बाद तू माया का बाजार में आपन वादा भुला गइलऽ. एहसे भगवान के ईहां जाये के राह में तहरा अपना करनी पर पछिताहीं के पड़ी.
कहल गइल बा कि आदमी के अपना गलती के अहसास हो जाव त ऊ सुधर जाला. जीवन का कवनो चरण में ऊ सुधर जाव आ भगवान का भगति में डूब जाव त ओकर जिनिगी आ भविष्य संवर जाई. एहि बाति के बरनन लोकगीत में देखीं -
‘‘अबहिं बिगड़ल नईखे मनवा,
करऽ राम के भजवना,
ना त बान्हल जईब जम के दुअरिआ,
डगरिया बीच पछिताये के पड़ी.’’
हे मन, अबहिओं कुछ बिगड़ल नईखे. अबहिओं से राम के भजन कर लऽ. ना त जमराज का दरबार में तहरा के सजा मिली आ भगवान के ईहां जाये के राह में तहरा अपना करनी पर पछिताहीं के पड़ी.
विधि के विधान बड़ा विचित्र बा. जनम केहू देला, भाग केहू अउर लिखेला, आ मउत केहू तीसरा का हाथे बा. एकर झांकी लोकगीत में देखीं -
‘‘केइये जनमिया हो दिहलें,
केइये मारेला टांकी?
कवन भइया आवेलें बोलावन हो रामा?
राम जी जनमिआ हो दिहलें,
बरम्हा मारेलें टांकी,
जम भईया आवेले बोलावन हो रामा.’’
आदमी के जनम देबे वाला के ह? के ओकर भाग्य लिखेला? आ ओकर जीवनलीला के खतम करेला? एह सवालन के जवाबो ओही गीत में आगे बा कि रामजी जनम देलें, ब्रह्माजी भाग्य लिखेलें, आ मउत का बेरा जमराज के हाथ में बा.
जब कवनो आदमी के मउत होला त ओकर शरीर अपना गति का चिन्ता में रोवे लागेला. एह भाव के बरनन लोकगीत में देखीं -
‘‘निकलत परान काया हो काहे रोई?
रोई रोई काया पूछे माया से -
सुनहू माया चित लाई,
तू तऽ जइब अमरलोक में,
हमरो कवन गति होई?
निकलत परान काया हो काहे रोई?’’
प्राण निकलत घरी देह काहे रोवे? देह रो रो के आत्मा रुपी माया से पूछेला - तू त अमर लोकि में चलि जईब बाकिर हमार का परिनाम भा गति होई? मुवला का बाद आत्मा के आपन राह अकेलहीं चले के पड़ेला. ओकर साथ देबे वाला तब केहू ना रहे. महतारी मेहरारू भाई सब केहू एहिजे रोवत रहि जाला. एकर बरनन लोकगीत में देखीं -
‘‘केश पकड़ के माता रोवे,
बांह पकड़ के भाई,
लपटि झपटि के तिरिआ रोवे,
हंस अकेला जाई.’’
आदमी के मुवला का बाद ओकर माथ अपना गोदि में रख के महतारी रोवत बाड़ी. भाई ओकर बांह हिला हिला के रोवत बा. आ मेहरारू ओकरा से लपट झपट के रोवत बाड़ी.
बाकिर केहू ओकरा संगे जाये वाला नइखे. सबकेहू एहिजे रहि जाई आ ऊ अपना आखिरी सफर में अकेलहीं जाई.
आदमी कतना गलतफहमी में रहेला ! भर जिनिगी ऊ अपना देहि के साबुन सोडा से मल मल के धोवेला. ओकरा अपना देहि के कतना फिकिर रहेला कि देहि चमकत रहो. काश, ऊ जानि पाईत कि मुवला का बाद ई सब बेमानी हो जाई. एहि बाति के अब लोकगीत में देखीं -
‘‘एकदिन तरुवर के सब पत्ता,
झरि जईहें जी एक दिनवा.
ऐ देहिआ के मलि मलि धोवलऽ
साबुन सोडा लगाई.
सोना जइसन चमकत देहिआ
कवनो काम ना आई.’’
आदमी खाली दुनियादारी का फेर में रहेला बाकिर जब ओकरा होश आवेला त ऊ भगवान के गोहरावे लागेला. ऊ बुझ जाला कि ओकर नाव के पार लगावे वाला भगवान के छोड़ि के दोसर केहू नइखे. एह मानसिक व्यथा के लोकगीत में बरनन देखीं -
‘‘नइया बीच भंवर में
हमरो डगमगाइल बा,
जिअरा मोरि डेराईल बा.
दउड़ीं दउड़ीं किसन कन्हइया,
हमरो पार लगा दीं नईया.
रउरा चरन कमल में
दास लोगि लपटाईल बा,
जिअरा मोरि डेराईल बा.’’
एह गीत में अपना हालत से घबड़ाइल आदमी भगवान के गोहारत बा कि हे किसन भगवान दउड़ के आईं आ हमरा नाव के पार लगादीं. दुनिया भंवर में डूबे से डेराइल राउर दास लोग रउरा गोड़ि से लिपटाईल बा कि रउरा ओह सब लोग के पार लगा दीं.
सांचो ई जीवन नश्वर बा. लोकगीतन जीवन के निस्सारता के चर्चा एह लेख में संक्षेप में कइल बा. भगवान के भजन बिना ई मानव जनम सार्थक ना हो सके. दुनिया के मायाजाल में ना फंसि के हमनि के भगवान का चरण में अपना के समर्पित कर देबे के चाहीं. भगवान के किरपा हो जाई त सब कुछ पार लाग जाई.
महामंत्री,
अ.भा.भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, पटना.
सम्पर्क - प्रखण्ड कार्यालय का सामने, सीवान.
(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई जनवरी 2004 में अंजोर भइल रहल)
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