कहानी
करनी के फल
- दयानन्द मिश्र ‘नन्दन’
मु`शी सीतालाल अपना जमाना के नामी-गिरामी पहलवान रहले. इनका पास आपन खेत ना के बराबर रहे. इनकर बाबूजी दोसरा के खेत लगान पर ले के बोअसु आ एगो भंईस जरूरे राखसु. सीतालाल अहिरन के -झुण्ड में रहसु आ पहलवानी करसु. भंइसि के दूध मिलबे करे. धीरे धीरे इनकर देहि फूटल आ दस बीस गांव में पहलवानी में गिनाए लगले. अपना अखाड़ा पर दस आदमी के लड़ावला के बादो जब दम ना आइल रहे त चारि पांच मील दउरसु. धीरे धीरे इनकर नांव प्रदेश भर में फइल गइल. पूर्वी जिलन में इनकर एगो स्थान बनि गइल. ई कुल्ही सुन के इनका बाबूजी के छाती फुला जाव आ ऊ बड़ा खुश होखसु.
कमालपुर गांव कायस्थन के रहे. अपना बल का प्रभाव से अहिर लोग के मिला के मुंशी सीतालाल कमजोर आदमियन के नाजायज तरीका से दबा के ओहनी के जमीनन पर कब्जा क लिहले. पहलवानी का चलते पूरा अहीर समाज इनका साथे जीये मुए लगले. ओही गांव के एगो कमजोर अहीर के लड़की बीस बाइस साल के भइल रहे. ओकरा के बरिआरी ध के अपना घरे ले अईलन आ ओकरा से शादी क लीहले. ओही लड़की से सीतालाल के तीन गो सन्तान भइले - रामाशंकर, दयाशंकर, आ गौरीशंकर. तीनो जने पहलवान रहले बाकि खाली रामाशंकर पहलवानी करसु. दयाशंकर खेती करावसु आ गौरीशंकर रेलवे पुलिस के नौकरी.
खेती सम्हारे गांव में रहे वाला दयाशंकर के संघतिया चोरे बदमाश रहले. ओहनिये का बल पर उनुकर धंउसपट्टी गांव में चलत रहे आ एही बल पर ऊ गांव के परधानो हो गईलन. काम बड़ा चकाचक रहे. तीनो जाना के शादी बिआहो समाज का अनुसार हो गइल. उपर से देखीं त सबकुछ नीमन लउके. बाकिर असल हालात कुछ अउरे रहे. बाप सीतालाल के आंख बुढ़ापा में आन्हर हो गइल रहे. चश्मो पर ना लउके. देहि बेसम्हार भारी हो गइल रहे. ठेहुनिया बइठल ना जाव आ ऊ खड़े खाड़ी टट्टी पेशाब करसु.
रमाशंकर के नौकरी इलाहाबाद में चुंगी आफिस में रहे. दिन में काम आ सबेरे सांझ अखाड़ा में पहलवानी. कुछ दिन बाद उनुका लइका त भईल लेकिन मेहरारू मर गइली. उ लइका अपना उमिर में नीकहन पहलवान निकलल. लेकिन दयानत बिगड़ गइल आ उ गलत संगत में पड़ि गइलन. एगो लइकी से ईयारी हो गइल रहे. ओही इयारी का निभावे में टीबी हो गइल. दवा दारू ढेरे भइल लेकिन उ बचलन ना. रमाशंकर का जिनिगिये में परिवार साफ हो गइल. अकेले बुढ़ारी काटे गांवे आ गइलन.
दयाशंकर लाल के एगो लइका आ एगो लइकी भईल. लइकी बड़ भइल त ओकर बिआह कवनो कायस्थ परिवार में ना हो पावल आ बाद में ऊ कवनो यार का संगे फरार हो गइल. लइका के तबियत हमेशा खराबे चले. लइकाईं से लेके अन्तिम घड़ी ले ओकर दवाई बन्द ना भइल.
गौरीशंकर के कवनो बालबच्चा ना भइले स. नौकरी से रिटायर हो गइलन त रेलवे थाना पर बड़ा धूमधाम से उनकर बिदाई समारोह मनावल गइल. सब सामान पैक क के पहिलहीं ट्रक से गांवे पठा दीहल रहे. बिहान भइला दू-चार गो सिपाही इनका के गांवे पंहुचावे संगे चलल लोग.
संयोग अतना खराब रहे कि राहे में हवा लाग गइल आ कपार से लेके गोड़ तक दाहिना आधा अंग फालिज के शिकार हो गइल. आवाजो खतम हो गइल. जइसे तइसे क के सिपाही सब गांव ले पंहुचवले.
सीतालाल का जिनिगीये में उनकर सगरे परिवार के हालत खराब हो गइल. दयाशंकर लाल के सोझा आन्हर बाप, बूढ़ महतारी, बूढ़ बड़ भाई, लकवा मारल छोटका भाई, आ बेमार भतीजा पांच पांच गो आदमी के इलाज आ खिआवल पिआवल के खरचा. सब
परधानी निकले लागल. आमदनी अठन्नी आ खरचा साढ़े सात गो वाला हालत रहुवे. अइसना में उहे भइल जवन होला. धीरे धीरे खेत बेचाये लागल. दूइये चार बरिस में सगरी खेत बिका गइली स. आमदनी के कवनो जरिया रहे ना. बाद में इलाज बिना एक एक क के बेमारो लोग मुए लागल. टूटल आत्मा लेके दयोशंकर चल दीहलन भगवान घरे.
रह गइलन त सीतालाल. उमिर सौ बरिसा. आंखि के आन्हर. देहि के पटकाइल. दलान प फेंकाइल रहसु. ना केहू देखे वाला ना सुने वाला. जवना दुआरी कबो बइठे के जगहा घट जात रहे ओह दुआरी कुकुरो फेंकरे वाला ना रहे. कबो कबो पुरनका नाता का चलते मेहरारू के भतीजन में से कवनो आके फूफा के सेवा टहल क जा स. ससुरारिये से खाना ओना आ जाव.
दुआरी से गुजरत केहू के आवाज सुनस त सीतालाल बोला लेस आ आपन कहानी सुनावे लागसु. जवना घर के लइकी भगा के बिआह कइलन ओही घर का टुकड़ा प जिनिगी चलत रहे. ‘जुलुम किये तीनो गये, धन धरम औ बंस. ना मानो तो देख लो रावण कौरव कंस.’ उहे हाल रहे सीतालाल के. अब ऊ इहे कहसु कि नाजायज काम ना करे के. नाजायज थोरही दिन चमकेला बाद में ओकरा बिलाये में, नाश होखे में देरी ना लागे. कहसु कि गंदा राह प चलला प देहि में गंदा लागबे करी. हमरा जिनिगी से सभे सीखे आ माने कि कलियुग में अपना करनी के फल एही जिनिगी में भोगे के पड़ेला.
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दिघार, बलिया.
(दुनिया के भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर ई जनवरी 2004 में अंजोर भइल रहल)
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