कहानी
आपन आपन सोच
- डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय
ई समाचार पूरा जोर शोर से फइलल. बाते अइसन रहे जेकरा से पूरा प्रशासन में हड़कम्प मचि गइल. मउअत, उहो भूखि से, ई त प्रशासन के नाक कटला के बराबर बा. उहो ई खबर अखबार में निकलल रहे कि सुरखाबपुर में एक आदमी खाना के अभाव में तड़प-तड़प के दम तुरि देले बाड़न. बात अतने रहित त कुछ पूर परीत. बात एकरा से आगे ई रहे कि उ आदमी दलित रहलन. ईंहा ई धियान देबे वाली बात बिया कि अउरी जात रहित त कुछ कम बवाल होइत. लेकिन एहिजा बात दलित के रहे, से हर राजनीतिक पार्टी आपन-आपन रोटी त सेकबे करीत. कई पार्टी के नेता दलित के सुरक्षा के ठीक ओही तरे आपन मुद्दा बना लिहले जइसे पाकिस्तान काश्मीर के आपन मुद्दा बना लेले बावे. बड़-बड़ भाषण होखे लागल. सरकार पर कई गो आरोप लागल. डी.एम. से लेके चपरासी तक ओह दलित के परिवार के सहायता करे के होड़ मचा दिहल. तुरन्त जतना जेकरा बस में रहे सहायता के घोषणा कइल. केहू ओकर लइकन के पोसे के जिम्मेदारी लिहल, केहू घर बनवावे के. कहीं से जमीन के केहू पट्टा लिखवा दिहल, त केहू नगद सहायता दिहल. सरकारी मंत्री जी अइले त घोषणा कइलन कि केहू के भूख से मरे ना दिहल जाई. आ उहो सरकार के तरफ से ओह दलित परिवार के चढ़ावा चढ़वले. सब कुछ हो गइल. एह बीचे सब इहे सोचल कि इ मुद्दा कइसहुं दबि जाई. ई केहू ना सोचल कि आखिर ई भूख से मरे के मउवत कहां से आइल. खैर हमहूं अगर सरकारी कर्मचारी रहितीं त सोच के कवनों जरूरत ना रहित. हम त एह मामला के दबइबे करितीं. लेकिन ई मौत टाले के कई बरिस से प्रयास करत रहनी लेकिन उहे भइल जवन ना होखे के चाहीं.
एह मउवत के बिया बीस बरिस पहिले बोआ गइल रहे. जब चउदह बरिस के उमिर में रामपति के बिआह बारह बरिस के सुनरी के संगे तई भइल. चुंकि रामपति हमरा उम्र के रहले त हम उनुका के जानत रहनी. उनका बिआह के समाचार सुनि के हमरा बड़ा दुख भइल. एह खातिर ना कि उनुकर बिआह चौदह बरिस में होत रहे बलुक एह खातिर कि उनुकर बिआह हमरे उमिर के रहल त होत रहे आ हमार अबहीं तिलकहरूओं ना आवत रहले स.
ई दुख जब हम अपना चाचा से सुनवली त उ कहले कि ‘‘आरे बुरबक तोरा त पढ़ि लिखि के बड़ आदमी बनेके बा. उ त चमड़ा के काम करे वाला हवन सं. उन्हनी के कइसहू बिआह हो जाता इहे कम नईखे. उन्हनी के जिनगी के इहे उद्देश्य बा कि खाली कवनों उपाई लगा के बिआह कईल. अउरी भेड़-सुअर अइसन लईका बिआ. एह से इ फायदा होई कि उन्हनी के परिवार बढ़ि त लोकतन्त्र में पूछ होई.’
सुनरी के बारह साल के उमिर अउरी ओह पर पियरी से जइसे देहि सूखि गइल होखे ओह तरे बिना हाड़-मांस के काया बिआह के बाद तुरन्ते गवना आ गवना के पनरह दिन बाद उ खेत में काम करे पहुंच गइल. रामपति कवनों पहलवान ना रहले. अभी त पाम्हीं आवत रहे. लेकिन शरीर के भीतर अबहीं बीर्य पूरा बाचल रहेे अउरी एहकर फायदा उ सुनरी के देहि से एह तरे उठवले रहले जइसे केहू उखिं के चूसत होखे. लगातार पनरह दिन के रउनाईल अउरी उपर से खेत में काम करे के परि गइल. लाख कोशिश करत रहली, काम ठीक से नाहिए होखे. एगो त मासूम कली उहो रउनाईल. ओकर स्थिति देखि के हम कहनी कि ‘‘तहरा से काम नईखे होत, तू घरे चलि जा.’’ उ त शरमा के कुछु ना बोललसि लेकिन ओकर सासू कहली कि ए बबूआ अगर ई घरे चलि जाई त एकर मरद बेमार बावे दवाई करावे के पईसा कहां से आई.’
‘बेमार बावे ? उ कइसे.’
‘इ बात तहरा ना बुझाई. बबुआ उ नान्ह में बिआह होला त लड़िका अक्सर बेमार पड़ी जालन स.’
‘काहे ? हमारा कुछु ना बुझाइल.’
‘तहार बिआह होई त समझि जईबऽ.’
आगे कुछु ना पूछि के हम चुप लगा गइनी. लेकिन चमड़ा के काम करे वाला के लइका के बिआह होला त काहे बेमार होलन स ई जानल जरूरी रहे. ई बात हम चाचा जी से पूछनी त उ जवन बतवले ओकर सारांश इहे रहे कि उन्हनी के कम उमिर में बिआह होला. अउरी उ बिआह के बाद के काम करे खातीर पूरा परिपक्व ना होलन स एह कारण बेमार होखल इ कवनों नया बात नईखे.
‘एहकर छुटकारा नईखे चाचा जी.’
‘बा बेटा’
‘उ का ?’
‘उ इ कि जेतना जनता अशिक्षित बिआ उन्हनी के शिक्षित कइल जाउ. ई बतावल जाउ कि बिआह के सही उमिर का बावे तब जाके उ बिआह करऽ सँ.’
‘त ई कम उमिरे उन्हनी के बेमारी के जरि बिया ?’
‘हं बेटा, एहि से हम तहार बिआह ना कइनी हा. नाहिं त तहरो उहे हाल होईत.’
हम शरमा के इहे कहि पवनी - ‘चाचा जी !’
बिआह के एक साल में एगो, तीन साल में दूगो, साढ़े चार साल में तीन गो, छव साल में चार गो, जब रामपति से सुनरी के लईका हो गइल, त हम रामपति से कहनी -‘एगो त तहार कम उमिर में बिआह हो गइल. अब अतना जल्दी-जल्दी लइका होखी त कइसे चली. आखिर त उन्हनी के पोसे में खर्चो त लागि.’
‘रउआ ओके का चिन्ता बा ? उ जनम लेत बाड़न स त केहू के कई-धई के जीहन स.’
‘लेकिन सोचऽ ओह में से एकहू आदमी बनि पइहन स ?’
‘ई रउआ ठीक कहऽतानी. आदमी त रउरे सभे हईं. काहे से के रउआ बड़ आदमी नू हईं.'
‘ना हमार कहे के इ मतलब नईखे. हम कहऽतानी कि कम रहितन स, पढ़ितन स आ, ओह से आगे चलि के अच्छा जीवन जीअतन स.’
‘रहे दीं-रहे दीं. हमनी के लगे कवन धन, सम्पति बा. अगर भगवान अपना मन से संतान देत बाड़न त ओह में राउर का जाता ?’
रामपति आगे बहस के कवनों गुंजाइस ना छोड़लन. बियाह के अठवां साल में पांचवा, दसवां मे छठवां, अउरी बारहवां में सातवां लईका जब सुनरी के भइल त उ ठीक ओही तरे हो गइल जइसे पीयर आम हो जाला. रामपति त टी.बी के मरीजे हो गइलें. उनकर माई भोजन के अभाव में पहिलहीं मरि गइल रहली. अब घरे कमाए वाला केहू ना रहे. लईकन के केहू खाए के कही से कुछ दे दीहल त ठीक, ना त उ छोटे-छोटे लइका भूखे रहि जा स. उनकर घर में टूटही पलानी अउरी एगो टूटही खटिया के अलावा अगर कुछ रहे तो एगो दूगो माटी के बरतन. आ ओकर हकीकत बयान करत दरिदरता. एह बीचे एक दिन हम रामपति के घरे एह दया के साथ गइनी कि उनका खातीर कुछ दवा-दारू के बेवस्था कर दीं. घर में घुसते खांसी के आवाज सुनाई दीहल. एक ओर टूटही खटिया पर रामपति खांसत रहले. उनकर मेहरारू लगे बइठल रहली आ उनकर चार पांच गो
लइका पोटा-नेटा लगवले एकदम लगंटे आसे-पास अपने में अझुराइल रहले स.
रामपति के देखि के हम कहनी - ‘का हो रामपति, का हाल बा ?’’
रामपति हमरा किओर देखलें अउरी कहलें - ‘रउआ व्यंग करे आइल बानी कि हमार हाल पूछे ? रउआ सब के हमनी के खाइल पहिनल त नीक नाहिए लागेला, भगवान दू चार गो सन्तान दे देले बाड़न त रउआ सब के जरे के मोका मिल गइल.’
‘हमार मतलब उ नइखे. हम त तहार कुछु मदद कइल चाहऽतानी.’
‘धनि बानी रउआ आ राउर मदद. हमरा केहू के मदद ना चाहीं.’ रामपति आपन मुंह हमरा ओरि से फेर लिहले.
‘तू सोचऽ. अगर तहरा कुछु हो गइल त तहरा लइकन के का होई ?’
‘होई का ? जइसे भगवान देले बाड़न ओहिसहीं जिअइहन. लेकिन रउआ चिन्ता मति करीं.’
एही बीच उनुकर एगो लइका सुनरी के लगे रोअत आइल अउरी कहलसि - ‘माई-माई खाए के दे. भूखि लागल बा.’
‘हम कहां से दीं ? घरे बावे का ?’ - सुनरी आपन दुख प्रकट कइली लेकिन उ लइका रिरिआ गइल. नतीजा इ निकलल कि ‘द खाएके’ मांगे के सजा चार पांच थप्पर खा के भुगतल. ई घटना से हमरा ना रहाइल.
हम पूछनी - ‘का हो रामपति, का एहि खातीर उन्हनी के जनमवले बाड़ऽ ?’
‘रहे दीं. रहे दीं. रउरा जइसन हम बहुत देखले बानीं. रउआ सब दोसरा के दुख देखि के खूब मजा लेनी.’ - रामपति के बोले से पहिले सुनरी फुंफकार दिहली.
हम त घरे चलि अइनी लेकिन ओही सांझ रामपति मरि गइले. ओकरा बाद सरकारी आदमी अउरी राजनीतिक पारटीयन के नौटंकी शुरू हो गइल. ऐह में जवन भइल उ देखि के हम इहे सोचनी कि सुनरी आ रामपति के परिवार अनुदान के ना सजा के पात्र बा. अगर हमनी के इहे हाल रही ज देश के विकास अउरी जनसंख्या कम करे के सपना अधूरा रहि जाई.
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डॉ.श्रीप्रकाश पाण्डेय, एम.ए., पी.एच.डी
ग्राम - त्रिकालपुर, पो.- रेवती, जिला - बलिया
(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)
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