रविवार, 3 नवंबर 2024

संक्षिप्त भोजपुरी व्याकरण : पहिलका खण्ड

 (दुनिया भर में भोजपुरी में शुरु होखे वाला पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर जुलाई 2004 में ई लेख अंजोर भइल रहुवे. तब एकरा के पीडीएफ का रुप में प्रकाशित कइल गइल रहल. अब टेक्स्ट का रुप में डाले खातिर एकरा के कुछ बदलल गइल बा, बाकिर नया से सम्पादित नइखे कइल गइल. जइसे तब डालल गइल ओही तरह आजुओ बा.)


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अपना मन के बाति हमनी के जरुर बताईं ताकि राउर अँजोरिया भोजपुरी के ऑंगन में अँजोर फइला सके.  

जब नीमन रचना के इन्तजार करत एह महीना से ओह महीना हो जाव त सम्पादक आ प्रकाशक के मन के हालत के अन्दाजा कइल जा सकेला.  कबो कवनो दोसरा पत्रिका

खातिर आइल रचना छापि के काम चलाईं त कबो निहोरा कऽ के केहू से लिखवाईं.  आ जब निहोरा कऽ के लिखवायेम तऽ नीमन बाउर जवन भेंटाई, ओकरा के छापहूॅं के पड़ी.  फेरु ओहपर से विचारधारा के लड़ाई .  बाजि आके हम इहे तय कइनी कि काहे ना कुछ अइसन कइल जाव जेकर जरुरत बा. 

एही चिन्तन के परिनाम बा ई भोजपुरी भाषा अंक.  कोशिश कइल गइल बा कि भोजपुरी के एगो छोटहन व्याकरण पेश कइल जाव.  साहित्यकार आ व्याकरणी लोग त हमार मुॅंह नोचे खातिर बेचैन हो जाइ ई व्याकरण देखि के.  बाकिर हम ओह लोग से माफी मॉंग के आगा बढ़त बानी. ( एकरा के व्याकरण ना मान के अँजोरिया के शैली सिद्धान्त मान लिहला से विद्वानन के विरोध कम हो जाए के चाहीं. )

ई व्याकरण संस्कृताइन नइखे बलुक ठेठ भोजपुरिआ सवाद आ रस से भरल बा.  हमार मकसद बा कि भोजपुरी के साहित्य ना, आपसी संवाद के साधन का रुप में बढ़ावल जाव.  एह खातिर इ जरुरी बा कि एकरा के ओही तरे लिखाव जइसे ई बोलाला.  हॅं एगो सावधानी जरुर राखे के पड़ी कि जदि अर्थ के अनर्थ होखे तऽ शुद्ध वर्णविन्यास के बेवहार कइल जाव.  अँजोरिया के अगिलो अंकन में पूरहर कोशिश कइल जाइ कि एह व्याकरण के पालन होखे.  एगो बाति पर बार बार जोर दिआला कि कवनो पत्रिका खातिर ओकरा पाठकन के चिट्ठी पतरी बहुते जरुरी होखेला.  रउरा सभे एह पर आपन कमेंट, तंज नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकिलें.

संक्षिप्त भोजपुरी व्याकरण : पहिलका खण्ड


परिचय

भोजपुरी इण्डो-आर्यन भाषा परिवार के सदस्य हऽ.  इण्डो-आर्यन भाषा परिवार इण्डो-यूरोपियन भाषा परिवार के सदस्य हऽ. भोजपुरी भाषा के विकासक्रम वैदिकी से शुरु होके संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश होत अवहट्ट के शौरसेनी शाखा के बाद खतम होला.

भोजपुरी मूलरुप से आरा, छपरा, बलिया के भाषा हऽ बाकिर एकर विस्तार मध्यप्रदेश के सिद्धि जिला, पूरबी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार आ झारखण्ड, आ दखिनी नेपाल तक फइलल बा.  एकरा अलावे भोजपुरी बोले वाला लोग संसार के बहुतेरे देस-देसाईं में बसल बाड़न. चुंकि भोजपुरी लिखाला कम आ बोलाला जेआदा एहसे एकर अलग-अलग रूप अलग-अलग जगह पर बेवहार में बा.  व्याकरण के जरुरत एही अनेकता के बीच एकता उपजावे खातिर पडे़ला. 

लिपी

भोजपुरी पहिले कैथी लिपी में लिखात रहुवे.  अब त कैथी लिपी के कवनो पते नइखे.  आधुनिक भोजपुरी अब देवनागरी लिपी में लिखात बा.  देवनागरी के संक्षिप्त में नागरी

भी कहाला.  देवनागरी वइसे त मूल रुप से संस्कृत के लिपी हऽ बाकिर कालक्रम से हिन्दी आ हिन्दी के उपभाषो सभ देवनागरीये में लिखाये लगली सऽ.  भोजपुरी के कुछ वर्ण

संस्कृत भा हिन्दी में नइखे एहसे देवनागरीओ में ओकर कवनो खास वर्ण ना मिलेला.  जइसे महाप्राण ङ्ह, ल्ह, न्ह, म्ह, र्ह ओगैरह. भोजपुरी के स्वरनो के कुछ खासियत बा. 

जइसे ’अ’ के उच्चारण तीन तरह से - अर्द्ध-मात्रिक, एक मात्रिक, आ द्वि मात्रिक - होला, जवना के बिना सुनले मानल कठिन बा. अर्द्धमात्रिक इ, उ, ए ओ भोजपुरी के आपन अलग अन्दाज हऽ. 

वर्ण

मूल ध्वनि जवना के बॉंटल भा तूड़ल ना जा सके ओकरा के वर्ण कहाला.  एह वर्णन के लिपी चिह्ननो के वर्णे कहाला.  आ ओह चिह्नन के सरिआवल समूह के वर्णमाला कहाला.

मानक देवनागरी वर्णमाला

स्वर - 

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ

अयोगवाह -

ं :

व्यंजन -

कवर्ग - क ख ग घ ङ ङ्ह

चवर्ग - च छ ज झ ञ

टवर्ग - ट ठ ड ढ ण

तवर्ग - त थ द ध न न्ह

पवर्ग - प फ ब भ म म्ह

अन्तस्थ - य र र्ह ल ल्ह व

उष्म - श ष स ह

गृहीत - ऑ, ज़, फ़

संयुक्त व्यंजन - क्ष, त्र, ज्ञ, श्र


स्वर - 

जवना ध्वनि के बोले में सॉंस बिना कवनो बाधा के बाहर निकले ओकरा के स्वर कहाला.  देवनागरी में एगारह गो स्वर बाः

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ

स्वर जब व्यंजन का संगे आवेला त एकरा के मात्रा चिह्न का रूप में लिखल जाला.  उदाहरण खातिर क का संगे सब स्वरन के मात्रा दिआता -

क का कि की कु कू के कै को कौ कं कृ

अनुस्वार  -

अनुस्वार व्यंजनन के छोटहन रुप होला जवना के स्वरो का रुप में  इस्तेमाल होला.  एहके कवनो दोसरा स्वर भा व्यंजन के बिना लिखल भा बोलल ना जा सके.  जइसे कि अ का साथे एकर रुप हऽ - 

अं 


अनुनासिक स्वर - 

जब कवनो स्वर मुॅंह आ नाक दूनू से बोलाला त ओकरा के अनुनासिक स्वर कहाला आ ओकरा खातिर चन्द्रबिन्दु के मात्रा लगावल जाला.  जइसे -

चॉंद, सॉंप, टॉंग.  

बाकिर यदि ओह स्वर के मात्रा शिरोरेखा पर लागेला त चन्द्रबिन्दु ना लगाके खाली अनुस्वार लागेला.  जइसे - 

गोंद, चौंक. 

ह्रस्व स्वर का उपर जब अनुस्वार लागेला त ऊ दीर्घ हो जाला.  बाकिर अनुनासिक लगला पर ऊ दीर्घ ना होला. 

अनुस्वार लगावे के नियम - 


जब कवनो वर्ग के पंचमाक्षर (ङ ञ ण न म ) का बाद ओही वर्ग के कवनो वर्ण आवे त पंचम वर्ण का जगह अनुस्वार लाग जाला.  जइसे - संकल्प, संचय. 

य र ल व श ड्ढ स ह का पहिलहूॅं अनुस्वार लागेला.  जइसे - संयम, संरक्षक. 

बाकिर जब पंचमाक्षरे दोबारा आवे त ओकरे हलन्त रूप लिखाला, अनुस्वार ना लागे. जइसे - जन्म, निम्न, पुण्य.

विसर्ग -

एकरो के कवनो दोसरा स्वर भा व्यंजन के बिना बोलल ना जा सके. 

:

अनुस्वार आ विसर्ग के अयोगवाह-ओ कहल जाला. 

व्यंजन -

कवर्ग - क ख ग घ ङ ङ्ह

चवर्ग - च छ ज झ ´

टवर्ग - ट ठ ड ढ ण

तवर्ग - त थ द ध न न्ह

पवर्ग - प फ ब भ म म्ह

अन्तस्थ - य र र्ह ल ल्ह व

उष्म - श ष स ह

गृहीत - ऑ, ज़, फ़

संयुक्त व्यंजन - क्ष, त्र, ज्ञ, श्र


संयुक्त व्यंजन दू भा अधिका व्यंजनन के मिलला से बनेला.  एकर गिनती अलगा से ना होखे के चाहीं.  

एहीतरे गृहीत व्यंजनन-ओ के देवनागरी में ना गिन के अलगे राखे के चाहीं. एहनी के बेवहार तबे होला जब कवनो विदेशज शब्द के लिखे के होला.  जइसे - डॉक्टर. 

अघोष वर्ण - 

जवना वर्ण के बोले में स्वरतन्त्री में कम्पन ना होखे ऊ अघोष वर्ण कहाला.  एकर दू गो भेद होला - अल्पप्राण आ महाप्राण.

अल्पप्राण अघोष वर्ण के सूची -

क च ट त प य र ल श

महाप्राण अघोष वर्ण के सूची -

ख छ ठ थ फ र्ह ल्ह व ष

घोष वर्ण - 

जवना वर्ण के बोले में स्वरतंत्री में कम्पन होखेला ऊ घोष वर्ण कहाला. करो दू गो भेद होला - अल्प प्राण आ महाप्राण. 

अल्पप्राण घोष वर्ण के सूची -

ग ज ड द ब स

महाप्राण घोष वर्ण के सूची -

घ झ ढ ध भ ह

नासिक्य वर्ण - 

जवना के बोले में नाक से वायु निकले ओकरा के नासिक्य वर्ण कहाला. इहो अल्पप्राण आ महाप्राण होला. 

अल्पप्राण नासिक्य वर्ण के सूची -

ङ ञ ण न म

महाप्राण नासिक्य वर्ण के सूची -

ङ्ह न्ह म्ह

हल् चिह्न -

 ्

सभ व्यंजनन में अ के स्वर जुड़ल होला. बिना स्वर जोड़ले लिखे घरी एकर प्रयोग होला.  उदाहरण - क् ख् च् छ् .

कवनो अक्षर का आखिर में आइल ह्रस्व अ के उच्चारण ना होला तबो लिखे घरी हल् चिह्न के प्रयोग ना होला आ पूरे लिखाला. 

ड़ आ ढ़ - 

जब दूनू ओरि स्वर होखे त बीच में आइल ड ड़ आ ढ ढ़ हो जाला.

अक्षर - 

एगो भा अधिका वर्ण जब एके साथे झटका मेें बोलाला तऽ ऊ अक्षर कहाला. अंगरेजी में एकरे के सिलेबुल कहल जाला. शब्दन में एक भा अधिका अक्षर रहेला. 

स्वराघात - 

बोले का घरी अक्षर का कवनो वर्ण पर जब जोर दिआव त ओकरा के  स्वराघात कहाला.  अकसरहॉं ई बल कवनो स्वर का संगे संगे पूरा अक्षरे पर पडे़ला. जइसे, कमल में बलाघात म पर बा.  जब बीच में कवनो दीर्घ स्वर आइ त बलाघात ओही स्वर पर पड़ी.  जइसे, समोसा में बलाघात मो पर बा.  अगर आखिर में ह्रस्व अ नइखे त बलाघात आखिरी दीर्घ स्वर पर पड़ी. जइसे, पटना में बलाघात ना पर बा.

वाक्यो में कवनो शब्द पर बल पडे़ला आ कई हाली एकरा चलते ओह वाक्य के मतलबो बदल जाला. 

शब्द - 

एक भा कई अक्षरन के सार्थक समूह के अक्षर कहल जाला.

पद - 

शब्द जब वाक्य में आवेला त ओकरे के पद कहल जाला. 

वर्णयोग - 

देवनागरी लिपी के खासियत हऽ कि जब दूगो व्यंजन का बीच में कवनो स्वर ना रहे त दूनू व्यंजन एके में जुट जाला. इहे वर्णयोग कहाला.  वर्णयोग आ संधि दूगो अलग अलग चीज हऽ.  सन्धि में परिवर्तन आवेला वर्णयोग में ना. 

वर्णयोग के नियम -

1. जवना व्यंजन का अन्त में खड़ी पाई रहेला, ओकर खड़ी पाई हट जाला, आ ऊ बाद में आवे वाला व्यंजन का संगे जुट जाला. उदाहरण - प्यार, ध्यान, स्नान.

2. क आ फ के रूप बदल जाला.  ओकर पाई के बाद वाला हिस्सा आधा कट जाला आ सोझ हो जाला. उदाहरण - क्यारी, क्लेश. 

3. बाकी व्यंजन जइसे ट, ठ, ड, ढ, द, ह का साथे हलन्त के बेवहार कइल जाला.  उदाहरण - उद्धार, उद्गार, ब्राह्मण, चिह्न.

4. र् जब कवनो व्यंजन से पहिले आवेला तऽ ओकरा के ओह व्यंजन का शिरोरेखा के ऊपर ‘रेफ’ का तरह लिखाला.  उदाहरण - धर्म, कर्म, आश्चर्य, मर्म, दर्प . 

5. जब कवनो व्यंजन का बाद र आवेला तऽ ओह व्यंजन के त पूरा लिखाला बाकिर र के रूप बदलि  जाला.  उदाहरण - क्र, ख्र, ग्र, घ्र, च्र, द्र.

अपवाद - ट, ठ, ड, ढ, छ का बाद र अइला पर र के हंसपद रूप ओकरा नीचे लागेला.  उदाहरण - ट्रेन, ड्रेन.  

6. र का साथ जब उ के मात्रा लागेला त रु आ जब ऊ के मात्रा लागेला त रू लिखाला.

7. जानबूझ के द्ध द्य द्व जइसन वर्णयोग के हटा दिहल बा.  एकरा जगह पर हलन्त के बेवहार ज्यादा बेवहारिक होखी. 


संधि - 

जब दू भा अधिका वर्ण के आपस में मिलवला से ओकर रूप बदल जाव त ओकरा के संधि कहाला. संधि के तीन रूप होला - स्वर संधि, व्यंजन संधि, आ विसर्ग संधि. 


स्वर संधि - 

दू गो स्वर जब आपस में जुटेला त ओकरा के स्वर संधि कहाला.  ई आठ तरह के हो सकेला. 

1. दीर्घ संधि - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, भा ऋ के बाद अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ आवेला त दूनू का जगह पर एकेगो स्वर के दीर्घरूप आ जाला.  जइसे कि -

वेद + अन्त = वेदान्त

हिम + आलय = हिमालय

विद्या + अर्थी = विद्यार्थी

कपि + ईश = कपीश

2. गुण संधि - अ भा आ का बाद इ भा ई रहे त ए, उ भा ऊ रहे त ओ, आउर ऋ रहे त अर् हो जाला.  जइसे कि - 

देव + इन्द्र = देवेन्द्र

सुर + ईश = सुरेश

महा + उत्सव = महोत्सव

महा + उदय = महोदय

देव + ऋषि = देवर्षि 

3. यण संधि - इ, ई, उ, ऊ, भा ऋ का बाद कवनो दोसर स्वर आवे त इ, ई  के य्, उ, ऊ के व्ए आउर ऋ के र् हो जाला.  जइसे कि -

अति + अन्त = अत्यन्त

वि + आपक = व्यापक

अनु + वय = अन्वय

सु + अल्प = स्वल्प

पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

4. वृद्धि संधि - अ आउर आ का बाद ए भा ऐ आवे त ऐ आउर ओ भा औ आवे त औ हो जाला.  जइसे कि -

एक + एक = एकैक

सदा + एव = सदैव

महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य

महा + ओज = महौज

5. अयादि संधि - ए, ऐ, ओ, औ का बाद कवनो दोसर स्वर आवे त ए के अय्, ऐ के आय्, ओ के अव्, आउर औ के आव् हो जाला.  जइसे -

ने + अन = नयन

गै + अक = गायक

गै + इका = गायिका

भो + अन = भवन

भौ + उक = भावुक

6. पररूप संधि - जब पहिलका पद के आखिरी वर्ण भा अक्षर अगिलका पद के शुरुआती स्वर में विलीन हो जाला त ई पररुप  सन्धि कहाला.  उदाहरण देखीं -

कुल + अटा = कुलटा

पतत् + अँजलि = पतंजलि

7. पूर्वरुप सन्धि - जब बाद वाला पद के शुरुआती स्वर पहिलका पद के आखिरी ए भा ओ में विलीन हो जाला त ऊ पूर्वरुप सन्धि कहाला.  जइसे -

मनो + अनुकूल = मनोनुकूल

8. प्रकृतिभाव संधि - जब दुनू पद जस के तस रहि जाला त ऊ प्रकृतिभाव सन्धि कहाला.  जइसे -

सु + अवसर = सुअवसर


व्यंजन सन्धि -

1. कवनो वर्ग के पहिलका वर्ण जइसे क्, च्, ट्, त्, प् का बाद यदि स्वर, कवनो वर्ग के तीसरका भा चउथका वर्ण, चाहे य, र, ल, व आवे त ऊ अपने वर्ग का तीसरका वर्ण में बदल जाला.  उदाहरण -

वाक् + ईश = वागेश

सत् + आनन्द = सदानन्द

2. कवनो वर्ग के पहिलका भा तीसरका वर्ण का बाद यदि कवनो वर्ग के पॉंचवा वर्ण आवे त पहिलका भा तीसरका वर्ण अपने वर्ग के पॉंचवा वर्ण में बदल जाला. 

वाक् + मय = वाङमय

जगत् + नाथ = जगन्नाथ

उत् + नयन = उन्नयन

तत् + मय = तन्मय

3. त् आ द् का बाद च भा छ आवे त च्, ज भा झ आवे त ज्, ट भा ठ आवे त ट्, ड भा ढ आवे  त ड्, आउर ल् आवे त ल् हो जाला.  जइसे कि -

सत् + चित् = सच्चित्

उत् + छिन्न = उच्छिन्न

शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र

सत् + जन = सज्जन

विपद् + जाल = विपज्जाल

उत् + डयन = उड्डयन

उत् + लेख = उल्लेख

4. त् भा द् का बाद श आवे त त् आ द् के च् हो जाला आ श के छ हो जाला. जइसे कि -

उत् + श्वास = उच्छ्वास

5. त् भा द् का बाद ह आवे त त् आ द् के द् हो जाला आ ह के ध हो जाला. उदाहरण - 

उत् + हार = उद्धार

पद् + हति = पद्धति

6. म् का बाद क से लेके भ तक कवनो वर्ण आवे त म् अनुस्वार भा आवे वाला वर्ग के पॉंचवा वर्ण हो जाला.  उदाहरण -

सम् + कल्प = संकल्प

सम् + तोष = सन्तोष

7. क् से म् तकले छोड़ के म् का बाद कवनो दोसर वर्ण आवे त म् का बदले अनुस्वार लिखाला. उदाहरण -

सम् + हार = संहार

सम् + वत् = संवत्

8. कवनो स्वर का बाद छ आवे त छ का पहिले च् जुट जाला. जइसे कि - 

आ + छादन = आच्छादन

स्व + छन्द = स्वच्छन्द

9. ऋ, र् अउर ष का बाद सीघे भा कवर्ग, पवर्ग, अनुस्वार भा य, व, ह में से कवनो वर्ण के व्यवधान का बाद न आवे त ऊ ण हा जाला.  जइसे -

प्र + नाम = प्रणाम

राम + अयन = रामायण

10. स से पहिले अ आउर आ के अलावा कवनो दोसर स्वर आवे त स का बदला ष लिखाला. 

11. ग्, ज्, द्, त्, ब् का बाद यदि कवनो घोष वर्ण - जइसे ग, घ, ज, झ, ड, ढ, ण, द, घ, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, भा कवनो स्वर ना आवे त ऊ क्रम से क्, च्, ट्, त्, प् हो जाला.  दोसरा तरह से कहीं त कवनो वर्ण वर्ग के तीसरका वर्ण का बाद यदि पहिलका भा दोसरका वर्ण आवे त ऊ अपने वर्ग का पहिलका वर्ण में बदल जाला.  उदाहरण -

दिग् + पाल = दिक्पाल

उद् + पात = उत्पात

उद् + साह = उत्साह

सद् + कर्म = सत्कर्म


विसर्ग सन्धि -

1. विसर्ग का बाद च् भा छ् आवे त विसर्ग श् में, ट् भा ठ् आवे त ष् में, अउर त् भा थ् आवे त स् में बदल जाला. 

निः + चल = निश्चल

निः + ठुर = निष्ठुर

मनः + ताप = मनस्ताप

2. विसर्ग का बाद श, ष, स, आवे त विसर्ग का बदले श्, ष्, आ स् लिखाला. जइसे - 

दुः + शासन = दुश्शासन

निः + सन्देह = निस्सन्देह

3. विसर्ग का बाद क, ख, प, भा फ आवे त विसर्ग का बदला ष् लिखाला. उदाहरण -

निः + कपट = निष्कपट

4. विसर्ग का पहिले अ अउर आ का अलावा कवनो दोसर स्वर आवे आ ओकरा बाद स्वर भा कवनो वर्ग के तीसरा चउथा भा पॉंचवा वर्ण भा य र ल व आवे त विसर्ग र् में बदल जाला.  जइसे -

दु: + उपयोग = दुरुपयोग

नि: + आशा = निराशा

दु: + नीति = दुर्नीतिदु: + उपयोग = दुरुपयोग 

नि: आशानिराशा

दु: नीतिदुर्नीति

5. यदि विसर्ग का पहिले आ बाद में दुनू ओर ह्रस्व अ आवे भा पहिले अ आ बादमें कवनो वर्ग के तीसरका चउथा पॉचवा वर्ण भा य र ल व ह होखे त दुनू ओर के वर्ण आ विसर्ग तीनो हटा के ओ क दिहल जाला. देखीं -

यशः + अभिलाषी = यशोभिलाषी

मनः + हर = मनोहर

मनः + योग = मनोयोग

6. विसर्ग का पहिले अ आवे आ बाद में कवनो दोसर स्वर त विसर्ग त गायब हो जाला बाकिर एने ओने के स्वरन में कवनो सन्धि ना होला.  उदाहरण -

अतः + एव = अतएव


(भोजपुरी के विद्वानन से निहोरा बा कि एह व्याकरण के अगर संशोधित भा संवर्धित कर सकीं त स्वागत जोग रही.)


अगिला खण्ड में शब्द विचार पर चर्चा होखी.

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