रविवार, 3 नवंबर 2024

गमछा पाड़े

 

अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश



धारावाहिक कहानी

गमछा पाड़े

आज हम रउरा लोगिन के परिचय गमछा पाड़े से करावे चाह रहल बानी. छपरा सिवान के खून अउरी बनारसी माटी के सोन सुगंध लिहले एक अईसन चरित्र जेकर वर्णन कईऽल ओतने मुश्किल जेतना कि हथेली पर दही जमावल आ समझला पर ओतने आसान जेतना कि तेज छुरी से माखन काटल. तऽ उनकरा बारे में सुने से अच्छा बा कि रउआ लोगिन धीरे धीरे पढ़ीं जा अउरी समझे के कोशिश करीं जा. लोगन के बीच में गमछा पाड़े के नाम से मशहूर आ ओही नाम से बोलावल पसंद करेले. सनीमा अउरी जासूसी सीरियल देखत देखत खुद के जासूस माने लगले आ एगो नेताजी के शरण में जाके प्राईवेट जासूसी करे के लाईसेंस जुगाड़ लिहले. सीरियल के भूत सवार रहे से बिना सेक्रेटरी के आफिस खोले के कल्पना भी ना कर सकत रहुवन बाकि मन माफिक लेडी सेक्रटरी ना मिलल तऽ मोहल्ला में गोबर पाथे वाला ठलुआ के आपन सेक्रेटरी अउर चपरासी दुनू बना लिहले. जुगाड़ करके घरवे में आफिस भी खोल लिहले बाकि आफिस खोले के चक्कर में मेहरारु से अनबन भी खूब भईऽल. बाकि घर में आफिस तबे खुलल जब पाड़ेजी, मालकिन से वादा कईऽले कि ठलुआ पहिले घर के काम करी फिर आफिस के.

अउरी ए तरह से गमछा पाड़े के आफिस के शुरुआत हो गईऽल. ठलुआ दिन भर घर के काम में बिजी रहे लागल आ पंडितजी कस्टमर खोजे मे. बाकि पंडितजी के जूता, चप्पल, गदहा आ कुकुर खोजे से बड़ काम ना मिलल आ उहो टेस्टिंग खातिर फ्री में करे के पड़ल. कमीशन आ दू जून खाना पर काम करे खातिर तैयार भईऽल ठलुआ के मुफत मे घर के काम कईऽल अखरे लागल. गोबर गनेश रहे बाकि एतनो ना कि मुफत मे काम करे लागे. बाकि पंडितजी ओकरा के केहु ना केहु तरे हर बार मना ही लेत रहन कि अब सब ठीक हो जाईऽ. भोले बाबा के पुजारी गमछा पाड़े के दिन भी आखिर आ ही गईऽल आ बिलाईऽ के भागे छींका टूटे वाला कहावत सही हो गईल. बात ई भईऽल कि मोहल्ला के एगो बड़ आदमी के मौत हो गईऽल आ पुलिस मामला हल ना कर पावत रहे बाकि पंडित जी अपना सिनेमाईऽ बुद्धि से मामिला के ५ दिन में हल कर दिहलन जबकि पुलिस खातिर ईऽ मौत एगो पहेली बुझउऽवल बन के रह गईऽल रहुवे.

का रहे रहस्मय मौत के साच आ पंडितजी कइऽसे कातिल तक पहुँचले इऽ किस्सा सिलसिलेवार बतावल जाईऽ हर मंगलवार से छोटा छोटा टुकड़ा में. जईऽसे जईऽसे गमछा पाड़े शहर में पापुलर होत जईहें वइऽसे वइऽसे रउऽआ लोगिन भी उनकरा से परिचित होत जाईऽब बाकि ई काम तबहीं हो सकेला जब कम से कम एक प्रतिक्रया हमरा के साईऽट पर जरुर मिले ताकि हमरा के ई लागे कि केहु बा जे गमछा पाड़े के बारे में जाने चाहत बा.

कहानी

गमछा पाड़े

"पंडितजी आफिस में बइठल‍-बइठल अखबार पढ़त रहुवन कि बाजार गईऽल ठलुआ बहरे से खुसखबरी बा, खुसखबरी बा, चिल्लात आफिस में ढ़ुकल. ओकरा हाथ में सब्जी के झोला सब्जी से भरल रहुवे. पंडितजी कुछ जान पइऽते एकरा पहिलही पंडिताइन अईऽली आ ठलुआ के कान पकड़ के भीतर घरि में ईऽ कहत ले गईऽली कि पहिले चल के सब्जी के हिसाब दऽ, आटा गूँथ द, फेर आके खुशखबरी बतावऽ. बेचारे गमछा पाड़े मन मनोस के रह गईऽले आऽ ओह घड़ी के कोसे लगले जब आफिस खोले खातिर पंडिताइन के शरत पर मोहर लगवले रहुवन. पंडितजी अखबार पढ़ल भूला के अफनात भईऽल आफिस के कमरा में एने-ओने टहले लगले. ठलुआ के आवे में पूरा एक घंटा लाग गईऽल आ जईऽसे ऊऽ आफिस में दाखिल भईऽल पाड़े जी दरवाजा बन्द कर लिहले अउरी ठलुआ के पकड़ लिहले कि कहीं पंडिताइन आ के फेर से ओकरा के ले मत जास. आखिर ठलुआ के खुशखबरी के बात बहरी आ ही गईऽल बाकि खुशखबरी सुन के पाड़ेजी ठलुआ के अईऽसे छोड़ले जइऽसे नारियल के झाड़ पर से नारियल गिरवले होखन.

"का भईऽल??", कहत जमीनी पर गिरल ठलुआ खाड़ होखत पुछलस तऽ पाड़ेजी दरवाजा खोले के बाद पलट के कहले,

"ससुर के, महादेव के कातिल के जे खोजी ओकरा के ५ लाख रुपया मिली, एकरा में हमरा कवन फायदा कि बहरिये से नरियात भईऽल अईलऽ हऽ."

"कातिल के रउऽआ पकड़ेब तऽ ईनाम का बहरी वाला के मिली? मगर रउऽआ में कुकुर-बिलार आ जूता-गदहा से आगे बढ़े के सहूर होखे तब नऽ." कहत पंडिताईन अन्दर अईऽली आ ठलुआ के फेर से रसोईऽ में चले खातिर ताना मारे लगली.

"बिना बोलवले कहीं जाये में हमरा बेईज्जती महसूस होखेलाऽ." ई कहला के बाद पाड़े जी के चेहरा के आभा देखत बनत रहुवे जेकरा के उऽतारत पंडिताईन के जरको देर ना लागल.

"उऽ बेईऽज्जती भी ५ लाख के होखी बाकि रऊऽआ त कुकुर-बिलार में अझुराईऽल रहीं आ बदला में कबो चाह, चाहे पान से संतोष करत रहीं..... (ठलुआ के बहरी अलंग ढ़केलत)..ईहाऽ का खाड़ बाड़ऽ चुल्हा में चलके रोटी बेलऽ ना तऽ आज खानो ना मिली."

ई कहत पंडिताईन ठलुआ के बहरी ले जाये में तनको देर ना कईऽली. पाड़ेजी गंभीरता से सोचे लगले आ टेबल पर से पान उठा के खईऽला के बाद बुदबुदाये बिना ना रहले.

"पंडिताईनो कबो कबो समझदारी के बात करिये देली... घबरा मत महादेव बाबू, अब तोहार कातिल जल्दिये हमरा कब्जा में होखी..."

.....................

महादेव बाबू के बँगला (कोठी) पर रिश्तेदारन आ महादेव बाबू के इकलौती वारिस ममता के बीच में पारिवारिक मीटिंग चलत रहुवे. सब केहु ममता पर महादेवजी द्वारा तय कर दिहल बियाह करे खातिर जोर देत रहुवे. ममता के बियाह से एतराज ना रहे काहे से कि महादेव जी ममता के बियाह ओही से तय कईऽले रहुवन जेकरा से ममता चाहत रहली. बाकिर उनकर दिली इच्छा कहत रहे कि जबले ओकरा बाबा के कातिल के पता ना चल जाईऽ, उऽ बियाह ना करी. ममता के सामने अजीब दुविधा रहे आ ईऽ दूर ना भईल रहीत जदि ओकरा होखे वाला दुलहा आ प्रेमी राजन ऊहाँ ना आईल होईत.

"ममता ठीक कहत हौ. अब हम लोग बियाह तब्बे करब जब बाबा के कातिल पकड़ा जाईऽ." कहत के राजन जब बइठका में घुसल तऽ ममता के जान में जान आ गईल. सब केहु आश्चर्य से राजन के देखे लागल.

"जवाँइ बाबू ईऽ का कहत हउऽआ..., तोहें तऽ मालूम हव कि बाबूजी ममता के बियाह हाली से हाली कर देबे चाहत रहन." ममता के बुआ राजन के समझावे खातिर कुछ कहे लगली तऽ राजन उनकरा के बीचे में टोक देत बा.

"हम जानत हईऽ बुआजी लेकिन अब बाबा नाहीं हउऽअन. फेर एक साल तक तऽ वईसहीं रुके के पड़ी. हमके पूरा यकीन हौ कि कातिल के पकड़ में आये खातिर एतना समय बहुत हौ."

राजन के बात सुन के बुआजी अउरो कुछ कहती ओकरा पहिले ही पाड़ेजी ठलुआ के साथे नाटकीय अंदाज में प्रकट होके सबके चौंका दिहले.

"सही कहत बानी पाहुन. बियाह खातिर तऽ साल भर रुके के ही पड़ी बाकि जदि रुके के कारन महादेव बाबू के हत्यारा के पकड़ल बा तऽ हम आप सभके भरोसा दिआवत बानी कि महादेव बाबू के हत्यारा सात दिन का भीतरे हमरा मुठ्ठी में आ जाईऽ."

सब केहू पाड़ेजी के आश्चर्य से देखे लागल. अइसन ना रहे कि केहू उनका के पहिचानत ना रहे बाकिर उनका दावा पर केहू के यकीन ना होत रहे.


"ई का कहत हउऽव पाड़े ? जवन काम पुलिस महीना भर में ना कर पईलसि ऊ काम तू सात दिन में कर देबऽ?" ‍ - बुआजी सबकर शंका पाड़े जी पर जाहिरो कर दिहली.


"बहिना, पहिलका बात त ई कि हमरा के गमछा पाड़े सुने में ज्यादा संतोष मिलेला अउरी दुसरका बात ई कि हमरा ज्ञान के कबो चैलेन्ज मत करीहे. हमरा खातिर सातो दिन बहुत ज्यादा बा काहे से कि कातिल त हमरा सामने बा."


"काऽऽ ?" सब केहू पाड़ेजी के फेरु आश्चर्य से देखे लागल आ पांड़हूजी सबका चेहरा पर आइल भाव के पढ़े के कोशिश करे लगले. कुछ अइसे कि कातिल के अजुवे पकड़ लिहन. घुमफिर के उनकर टेढ़ निगाह बुआजी पर आ के टिक गइल आ तनी असहज हो गइल बुआजी खुद के संभाले के कोशिश करत पाड़ेजी से पुछ दिहली - "हमके अईसे का देखत हउवऽ? कहीं पुलिस के तरे तोहरो हमरे पर त शक नाही होत हौऽ?"


बुआजी के बात सुन के पाड़ेजी कुछ कहतन ओकरा पहिले ममतो कुछ कहल चाहत रहे बाकि पाड़ेजी ओकरा के चुप रहे के इशारा करत कहले ‍- "कुछ कहे के जरुरत नाही बा ममता बिटिया. जबले हम कातिल के सामने नइखीं कर देत तबले हमरा सबका पर शक बा. एही से हम एगो बात अउरी कहे चाहत बानी. सात दिन तक ईंहा मौजूद हर केहू के एहीजगे रहे के पड़ी. पूरा सात दिन तक." पाड़ेजी आपन बात दोहरावत ममता के दुलहा के चेहरा पर नजर गड़ावत फेर कहले - "हमार बात समझ में आइल नू पाहुन?"


"बाकिर हम ईंहा कइसे रह सकत हईं? हमके आफिसो जाये के होला." ममता के दुलहा आपन परेशानी बतवलसि त ममता ओकरा समर्थन मे कुछ कहल चहली. बाकिर पाड़ेजी ओकरा पहिलहीं बोल पड़ले - "आफिस त रउआ ईहँवो से जा सकत बानी. हँ जदि एह घर में रहे में कवनो समस्या बा त हम अपना कुटिया पर राउर व्यवस्था करा देब."


"बाकिर चच्चा...." पाड़ेजी के बात सुनके ममता कुछ कहे चाहत रहल कि पाड़ेजी ओकरा ओरि घूर के देखले. ममता शायद घूरे क मतलब समझ गइल अउरी आपन सम्बोधन के सुधार के कहे शुरु कईलस - "गमछा चच्चा !" गमछा सुन के पाड़ेजी के गंभीर चेहरा सामान्य हो गइल. "बाबूजी के कातिल से राजन के का सम्बन्ध?"


"सम्बन्ध त उपर वाला जाने बिटिया. हम त खाली सात दिन खातिर कहत बानी. आगे भोले बाबा देखीहन." कह के पाड़ेजी जाये लगले बाकिर दरवाजा के बाहर जाये का पहिलहीं केहू के बड़बड़ाहट सुन के रुक गइले.


"लगत हौ पाँच लाख के बात सुन के पंडितजी के दिमाग घुम गइल हौ..." कहे वाला बुआजी के लईका रहे जे ई समझत रहे कि पाड़ेजी चल गइल बाड़े. "सही कहत बाड़ऽ बबुआ!" - पाड़ेजी पलट के ओकरे पास आके रुक गइले. ओकर त बूझि लऽ कि सिट्टी पिट्टी गुम हो गइल. ओकरा त बुझईबे ना कइल कि का कइल जाव.


"वइसे त हम बनारसी कम्मे बोलीला. बाकिर एक ठे बनारसी कहावत याद जरुर दियाइब. पहिले तउलऽ फिर बोलऽ... सात दिन का अन्दर कातिल नाही मिलल तऽ ५ लाख रुपिया हमरे घरे से आके ले लीहे." कहि के पाड़ेजी जाए लगले बाकि फेरु रुक के सबका से मुखातिब हो के कहले "यदि आप सब सचमुच महादेव बाबू के कातिल के सामने लियाबे चाहत हउआ त सात दिन तक ईहँवा से केहू ना जाव. जवाई बाबू आपो."


एतना कहि के पाड़ेजी उहाँ एक पल ना रुकले. सब केहु का करे का ना करे क मुद्रा में एक दोसरा के देखे लागल.


गमछा पाड़े -3

पाड़ेजी अपना आफिस में पुलिस के पास से मिलल कापी फाईल से माथा पच्ची करत रहलन कि बहरी से ठलुआ चाय ले के अइलस अउरी टेबल पर रख के पाड़ेजी के तनिका देर निहरला क बाद टोकलस,'गुरू हम त कहत हईं कि एह मामिला क छोड़ दऽ. बहुत पेचीदा हवऽ.'


एतना सुन ला पर पाड़ेजी ओकरा के घूर के देखले अउरी चाय के चुस्की लिहला का बाद इत्मीनान से जवाब दिहले, 'कऊनो पेचीदा नईखे बबुआ. कातिल तक त हम पहुँच चुकल बानी.'


'काऽऽऽऽऽऽ?' पाड़ेजी के जवाब ओकरा खातिर आश्चर्य से कम ना रहे, एकरा पहिले कि पाड़ेजी अउरी कुछ कहते चाहे ठलुआ के अउरी कउनो प्रतिक्रिया होखित ऊहाँ पंडिताईन जी आ गइली. कहली कि, 'बाप ना मारे मेंढ़की, बेटा तीरंदाज! तनी हमहूँ त सुनी कि के हौ कातिल?' पंडिताईन के आवाज अउरी आगमन से पाड़ेजी के मुहँ अइसन हो गइल जइसे बूझला चाय मे चीनी क जगहा नमक पड़ गइल होखे. 'अब साँप काहे सूँघा गइल ? बोलऽतार काहे नाहीं?'


'हम कतना हाली कहले बानी कि हमरा दिमाग के चैलेन्ज मत करीहऽ. तोहरे ना, सबका के कातिल के नामो मालूम हो जाई, अउरी सबका सोझा कातिल सबूत क साथे पकड़ियो लिहल जाई. बाकि एकरा खातिर अब तोहरो एगो काम करे के पड़ी.'


'ऊ काऽऽ?' अबकी अचकचाये के बारी पंडिताईन के रहे कि ई मामिला में उनकरो काम करे के पड़ी.


'मुहँ बन्द कर लऽ ना त माखी घुस जाई. रहल सवाल का करे के बा, त ज्यादा कुछुओ ना, बस कम से कम तीन दिना ले ठलुआ के भूल जा काहे से कि तीन दिना ले ई हमरा काम में बिजी रही.' एतना कहला क बाद पाड़ेजी, पंडिताईन के प्रतिक्रिया जाने क पहिलही ठलुआ के कानी में मुहँ लगा के कुछ फुसफुसाए लगले आ ठलुआ ध्यान लगा के अइसे सुने लागल जइसे कि ओकरा ले बुद्धमान मनई पाड़ेजी के कहीं ना मिली.


ठलुआ के सब समुझवला क बाद पाड़ेजी ओकरा हाथ में सौ सौ के पाँच गो नोट देके ओकरा के जाये क साथ साथ बहुत सावधानी से काम करे क सलाह दिहले. ओकरा बाद ठलुआ उहाँ से चल गईल आ पंडिताईन ओकरा के जात देखते रह गईली.


'ठलुआ गईल आ अब तीन दिना क बादे आई. अब एगो चाह अउरी पिया द त हमहूँ ड्युटी पर चलीं. महादेव बाबू का घर के लोग के खबर लेबे के बा.' पाड़ेजी के बात सुनि के पंडिताईन मुँह बनवली अउरी झटकारत के 'हूँ' कहत आफिस से बहरी चल गइली. पाड़ेजी एक पल ले दरवाजा का तरफ देखला क बाद आपन सामान बटोरे लगले आ फेर कुछ बड़बड़ात सामान लेके बहरी चल गइले. जइसे उनका पंडिताईन क हाव भाव से अंदाजा हो गईल रहे कि फिलहाल चाय त का पनियो ना मिली.


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महादेव बाबू क घरे दलानी में सब लोग बइठल रहे आ पाड़ेजी एहर ओहर टहलत आपन बात कहत रहलन, 'जईसन कि सबका के मालूम बा, महादेव बाबू क लाश जवन हालात में मिलल ओ हालात में मौत के कारन सिर्फ अउर सिर्फ आत्महत्या हो सकेला. बाकि बन्द कमरा में पंखा से लटकत लाश का साथे साथे टेबल पर राखल शराब का गिलास में जहर मिलावल शराब मिलला से मामला पेचीदा हो गइल बा.' एतना कहला क बाद पाड़ेजी बारी बारी से सबकर चेहरा पढ़े के कोशिश करे लगले. बाकि कुछ समझ में ना अईला पर फेर कहे शुरु कइले, 'साथे साथे पुलिस के ई भी कहना बा कि महादेव बाबू के दिल के दौरो पड़ल रहे. बाकिर ....?' एतना कहला का बाद पाड़ेजी एक बार फेर रुकले आ सबकरा के देखे लगलें. 'लेकिन का गमछा चच्चा..?' अबकी बेर पारी पाड़ेजी का कुछ अउरी कहला का पहिलहीं ममता अपना जगह बइठले बइठले सवाल कईलस, 'लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट त ई कहत बा कि महादेव बाबू के मौत दम घुटला से भइल बा.'


'आ शायद इहे एगो कारण बा कि पुलिस खातिर ई वारदात एगो बुझऊवल बनके रह गईल बा. बाकि हमरा खातिर ना.' एतना कह भईला पर पाड़ेजी जेकरा सामने रुकले ऊ ममता रहे. तनिका देरी ओकरा के निहारे के बाद पाड़ेजी ममता से कुछ पुछे लगले, 'हम सुनले बानी कि तू साइंस के पढ़ाई करत बाड़ू आ तोहरा विषय में रसायन शास्त्र मुख्य बा.'?;


'जी,, लेकिन??' सवाल के जवाब देबत खानि ममता क चेहरा पर बेचैनी आ गइल.


'बेसी हलकान होखे के दरकार नईखे. बात एतने बा कि महादेव बाबू के शराब का गिलास में जवन जहर मिलल बा ऊ जहर तोहरे जईसन मनई के आसानी से मिल सकेला.'


'का???' ई बात सुन के सब पाड़ेजी के आश्चर्य से देखे लागल अउर पाड़ेजी आपन पान मसाला खाये में बिजी हो गइले.


गमछा पाड़े -4

पाड़ेजी के बात सुन के सबकरा चेहरा पर बेचैनी आ गइल. केहू के कुछ ना बुझाइल कि का कहल जाव, बाकि राजन से ना रहल गइल अउरी ऊ तमतमा के पाड़ेजी से सवाल कईलस - 'आप कहे का चाहत हउआ ? चाचाजी के कतल ममता कईले हव?'


'अबहीं हम कुछ कहत कहाँ बानी जवाईं बाबू. अबहीं त हम सिरिफ पूछत बानी. बाकि जब खाली पूछला पर ईंहाँ के ई हाल बा त कहला पर का होखी ई सोचे के बात बा. वइसे आपके जानकारी खातिर बता दीं कि ममता से ई कतल तबहीं हो सकेला जब ओकरा साथे आप जईसन मरद भी होखे. काहे से कि ममता अकेले अपना बूता पर महादेव बाबू के दिल के दौरा पड़ल शरीर के पंखा से ना लटका सकेले. ई बात सुन के राजन के चेहरा पर परेशानी आ गइ देख के गमछा पाड़े आगा कहलें, का हो गइल जवाईं बाबू ? कहीं हमार बात साँच त नइखे न?'


'जीऽऽऽ?' - एतना सुने का बाद राजन के चेहरा से लागे लागल जइसे कि सचमुच उहे खूनी होखे.


'बस कर त गमछा पाड़े! सबके मालूम हव कि भईया के लाश जवना कमरा में पंखा से लटकत मिलल ऊ कमरा अन्दर से बन्द रहे जवन कि पुलिस के आवे के बाद तोड़ल गयल. बाते करे के हव त कुछ ठोस बात करा. ई सब तमाशा करे के जरुरत नाही हव.' - आखिर में बुआजी से ना रहल गइल अउर उ तमतमात गमछा पाड़े पर बरस पड़ली.


'बहिना जेतने बड़ गुत्थी रहेला ओकरा के सुलझावे में ओतने बड़ नाटक के जरुरत पड़ेला. बाकि बात जब ठोस बात के आ ही गइल बा त हम एतने कहेब कि जदि कातिल ई घर के केहु बा त ऊ सिर्फ अउर सिर्फ राउर ई साहबजादा हो सकेले.' ई बात कह के पाड़ेजी बुआ के लड़िका मोहन के सामने ठाड़ हो जात बाड़े. मोहन के हालत त राजनो से खराब हो गइल. ऊ आपन नजर पाड़ेजी से चोरावे लागल. 'का मोहन बबुआ, तोहरो बहिना के तरह से कुछुओ कहे के बा कि अइसहीं भकुआ भकुआ के एन्ने ओन्ने देखत रहबऽ.'


'बाकि गमछा चच्चा..?' ममता कुछ कहे के चाहत रहे कि पाड़ेजी इशारा से ओकरा के बोले से रोक के खुद बोले शुरु कइले, 'केहु के कुछ कहे के जरुरत नइखे. हम सबकरा शंका के जवाब देब बाकिर पहिले मोहने बबुआ पर शके ना बलुक यकीनो के कारण बतायेब. -


'कारण नम्बर एक - हत्या के पहिले वाला हफ्ता में महादेव बाबू अउरी मोहन बबुआ में पइसा के ले के तकरार.' एतना कहला के बाद पाड़ेजी एक पल खातिर सबकर चेहरा देखले अउरी फिर कहे शुरु कइले -


'कारण नम्बर दू - कउनो कारन से मोहन बबुआ के जेतना पईसा के जरुरत ओतने पईसा महादेव बाबू के अलमारी से गायब होना.' एतना सुनला के बाद मोहन के चेहरा देखे लायक रहे अउरी सब पाड़ेजी के आश्चर्य से देखत रहे.


'कारन नम्बर तीन. मोहन बबुआ के ओतने पईसा केहु के देत खानी खुद ठलुआ अपना आँखि देखले बा.' एतना कहला के बाद पाड़ेजी मोहन के आँखि में आँख गड़ा के पूछले, 'का हो बबुआ हम साँच कहत बानी नू?'


सब खामोशी से गमछा पाड़े के बात सुनत रहे बाकि मोहन के माई से ना रहल गइल, अउरी ऊ तिलमिला के गुस्सा में आपन सवाल कइली - 'लगत हव कि पाँच लाख के बात सुन के तोहार दिमाग सचमुच में खराब हो गयल हव. कब्बो कहत हउआ कि भईया के मौत दम घुटले के कारण से भयल अउरी कब्बो कहत हउआ कि मोहन कातिल हवऽ. जबकि भईया के लाश अन्दर से बन्द कमरा से बरामद भयल हव.'


वइसे ऊँहा मौजूद सबका चेहरा से ईहे लागत रहे कि केहु के गमछा पाड़े के बात नीक ना लागत रहे, बाकि पाड़ेजी के चेहरा से साफ लागत रहे कि ऊ आजे कातिल के पकड़वा दीहें.


'ठीक बा त अब हम पहिले ई साबित करेब कि भीतर से बन्द कमरा में से कातिल (मोहन के घुरत कहलन) बहरी कइसे आइल?' एतना कहला के बाद पाड़ेजी ममता के ओर मुखातिब भइले. 'ममता बिटिया हम ऊ कमरा मे चले चाहब.'


'जरुर.' कह के ममता एक तरफ चल दिहलस आ पाछा पाछा सब लोगो. एगो कमरा के बहरी ममता खाड़ हो गइल अऊरी बतवलस कि इहे कमरा बा. पाड़ेजी कमरा में जाये लगले त सब लोग ऊनकरा पीछे जाये लागल लेकिन पाड़ेजी सबकरा के बहरिये रोक दिहले अउरी खुद अकेले अन्दर चल गइले. साथे साथ भीतरी से दरवाजा बन्द कर दिहले. पाँच मिनट से ज्यादा बीतला पर सब केहु आपस मे खुसुर पुसुर करे लागल आ जब ना रहल गइल त सब लोग के बीच दरवाजा खटखटावे के तय भइल.


एकरा पहिले कि दरवाजा खटखटा के पाड़ेजी से जी से दरवाजा खोले के कहाइत, पाड़ेजी बहरी से आके सबकरा के चउँका दिहले.


'दरवाजा खटखट करे के दरकार नइखे ममता बिटिया. हम ईहँवा बानी.'


ई आवाज पर सब पलट के देखत बा त पाड़ेजी बहरी से अन्दर आवत रहले आ आके बुआजी के पास खाड़ हो गइले. सब उनकरा के अचरज से देखत रहे, अचरज में बुओजी रही बाकि उनकर चेहरा देख के लागत रहे कि ऊ अबहीओ मोहने क तरफ से कुछ कहे चाहत रहली. एकरा पहिले कि ऊ कुछओ कहती पाड़ेजी हाथ के ईशारा से ऊनका के रोक दिहले. 'बहिना जवनो पुछे ताछे के बा तनिका देर बाद पूछ लीहऽ.' फेर सबकरा से कहलन, 'अब आप सब लोग ई समझ लीं जा कि हम लोग दरवाजा तूड़ के अन्दर जात बानी जा.' कहके पाड़ेजी दरवाजा खोल दिहले अउरी सबकरा साथे भीतरी चल गइले.


अन्दर जाके सब कमरा के आश्चर्य से देखे लागल काहे से कमरा के दुनो खिड़की बन्द रहे आ पाड़ेजी इत्मीनान से पान मसाला खाये लगले. सब केहु कभी कमरा के त कभी पाड़ेजी के देखे लागल.


'जेकरा जेकरा शक होखे ऊ पहिले निमना से जाँच लेव कि कमरा के खिड़की अन्दर हाली ठीक से बन्द बा कि ना. बहिना हम त कहेब कि सबसे पहिले तू ही जाँच लऽ.'


बुआजी खिड़की जाँचे लगली अउर जब तय हो गइल कि खिड़की अन्दर से बन्द बा त उनका माथे पसीना छूटे लागल. पाड़ेजी कबो बुआजी के देखे लगले आ कबो मोहन के. मोहन के त समुझे में ना आवत रहे कि ऊ का कहे. ममतो एकदमे खामोश मगर अचरज से मोहन, बुआजी अउरी पाड़ेजी के बारी बारी से देखे लागल. कमरा के खामोशी पाड़ेजी के जवन आवाज से टूटल ओकरा के सुन के आ ओकर प्रतिक्रया देख के सब अउरी आश्चर्य में पड़ गइल. जबकि पाड़ेजी के चेहरा पर निश्चिन्तता के भाव बरकरार रहे. मानो पाड़ेजी मामला सुलझा दिहले.


आखिर पाड़ेजी कइले का ?

गमछा पाड़े - 5

कमरा में सबकरा चेहरा पर अचरज के भाव रहे, सबकर चेहरा गमछा पाड़े क तरफ ताकत रहे कि उहे ई रहस्य पर से परदा हटावस. गमछो पाड़े बूझत रहन कि सब बन्द कमरा से बाहर निकले के रहस्य जल्दी से जल्दी जाने चाहत बा.

"त मोहन बबुआऽ,बन्द कमरा से बहरी जाये के राज रउआ खुद खोलऽब कि हमरे मेहनत करे के पड़ी?" पाड़ेजी के भारी आवाज से मोहन के चेहरा पर पसीना आवे लागल.

"राज....?, कइसन राज....? हम कुछ नाही जानत हईं."

मोहन के आवाज मे घरघराहट रहे आ चेहरा के घबराहट देख के अइसने लागत रहे कि महादेव बाबू के कातिल उहे बा.

"कउनो बात ना. पुलिस सब उगिलवा ली." कहत पाड़ेजी एगो खिड़की के पास पहुँच गईलीं "बाकि ओकरा पहिले रउआ लोगिन ई देख लीं कि बन्द कमरा से बाहर जाना कइसे सम्भव बा"

कहत के पाड़ेजी खिड़की खोल के चिटकनी के खास तरह से फँसा दिहले आ "बूझ लीं जा कि अब हम कमरा से बहरी जाके बाहर से ई खिड़की बन्द कर रहल बानी." कहत के खिड़की के झटका से बन्द कर दिहले. खिड़की पूरा बन्द होते ही चिटकनी झटका से अईसे बन्द हो गइल जइसे खिड़की अन्दर से बन्द कइल होखो. एतना कईला क बाद पाड़ेजी के भारी आवाज कमरा में गूँज गइल

"जवन काम हम कमरा के भीतरी से कईलीं हँ, उहे काम कातिल बहरी से कईले बा. (मोहन के तरफ देख के) का हो मोहन बबुआ हम साँच कहत बानी न?

"नाही! मामा के कतल मे हमार कउनो हाथ नाही हव. हम खाली रुपया चोरवले हईं." मोहन के जब कुछ ना सूझल त ऊ साँच उगिल दिहलस.

"मोहन भईयाऽऽ, ईऽऽ काऽ कहत हउआ? आखिर तोहके बाबूजी के कमरा से रुपया चोरावे के जरुरते का रहे? ऊहो एक लाख रुपिया?" मोहन के मुँह से रुपया चोरावे के साँच सुन के ममता के चेहरा पर आश्चर्य के कमी ना रहे.

"हम ई सब नाही बता पाईब, लेकिन हम सच कहत हई. मामा के कतल में हमार कउनो हाथ नाही हव."

मोहन खुद के संभालत तनि कड़ा हो के ई बात कहलस बाकि ममता अउर राजन से ना रह गईल.

"ई त बेहयाई के बात करत हउअऽ साले साहब! एक त चोरी, ऊपर से सीनाजोरी! चलऽ ईहे बता दऽ कि बाबूजी के जिन्दा रहते आ उनका कमरा में से बाबूजी के रहते तू रुपया चोरवलऽ कइसे? ममता हम त कहत हई मोहन के पुलिस के हवाले कर दिहल जाव. आगे क काम ऊ खुदे कर ली." एतना बात कहत के राजन के चेहरा पर मोहन का बदे खीसो के भाव रहे आ अब ममतो मोहन के नफरत के नजर से देखत रहे. बाकि ओकरा चेहरा से लागत रहे कि ऊ कुछ सोचतो बिया.

" का सोचे लगलू? तोहार हाथ फोन खातिर नाही उठत हव त हम खुदे पुलिस के बोलावत हई."

कहत के राजन अपना जेब से मोबाईल निकाल के पुलिस के फोन करे लागल त बुआजी राजन क हाथ से मोबाईल ले लेत बाड़ी आ कहत बाड़ी..

"नाही, पुलिस के मत बोलावा. भईया के कातिल मोहन नाही बल्कि हम हई." ई कहत के उनकरा चेहरा पर तनको लाज ना रहे,बाकि उनकर अपराध कबुलला पर सबकर चेहरा अउरी आश्चर्य से भर गइल.

"का....?" सबकर आवाज से कमरा गूँज गइल.

"ई का कहत हऊ बुआ? तू अईसन कईसे कर सकत हउ?" ई सवाल करत के ममता के चेहरा पर आश्चर्य अउरी नफरत दुनो भाव बरकरार रहे.

"हम सच कहत हई बिटिया. भईया के मौत के जिम्मेदार सिर्फ हम हई. लेकिन हमके खुद नाही मालूम कि ई सब कईसे हो गयल." कहत के बुआजी कुछ सोचे लगली आ साथे साथे कहे भी लगली मानो उनकरा सामने ओ दिन के घटना घूम रहल हो अउरी ऊ ओकर रनिंग केमेन्टरी सुना रहल बाड़ी.

"ओ दिन जब मोहन के भईया के कमरा में से बाहर आके घर के बाहर जाये के पहिले अपना हाथ के रुपया गिने लगल त हम समझ गइली कि कुछ गड़बड़ हो चुकल हव. हम ओसे कुछ पुछे चहली लेकिन ऊ हमके भी झटकार के चल गयल. हमसे ना रह गयल अउर हम भईया के कमरा में गईली त देखली कि भईया एक हाथ से आपन छाती पकड़ले रहलन अउर दुसर हाथ में मोबाईल पर पुलिस के फोन करत रहलन. ऊ पुलिस के कुछ कह नाही पावें ई सोच के हम ऊनकर मुहँ बन्द कर देली. तब हम ई ना समझ पइली कि उनके दिल कऽ दौरा पड़ल हव. अउर जब तक हमके कुछ समझ आवे खेला खतम हो गयल रहल." कहत के बुआजी अपने अँचरा में मुहँ छुपा के रोवे लगली. सब केहु के समझ में ना आवत रहे कि का कहल जाव, जबकि पाड़ेजी कुछ सोच में डूबल रहले. कमरा के खामोशी पाँड़ही जी से खतम भइल जब ऊ बुआजी से सवाल कइले...

"बहिना, ईहँवा तक के कहनी त ठीक बा बाकि ओकरा बाद का भईल? हमरा मतलब कि लाश खूँटी पर कइसे लटक गइल, अउरी तू कमरा से बहरी कइसे गइलू?" ई सवाल पर बुआजी खुद के सामान्य करत के कहे शुरु कइली..

"घर में केहु ना रहला से हमार काम आसान हो गयल. हम आराम से स्टोर में गइली अउर रस्सी लेके कमरा के हालात अईसन बना देली कि सबके ई सब आत्महत्या लगे. फेर खिड़की के रास्ते बहरी जा के वइसहीं खिड़की बन्द कर देली जइसे अबही सब देखलस." बुआजी के कहनी पर सबके आश्चर्य भी रहे अउर सबकरा चेहरा से लागत रहे कि सबके बुआजी के बात पर यकीन भी होखे, बाकि मोहन के ई कहनी पर भरोसा ना रहे.

"तू ई का कहत हउ अम्मा? भला तू ई सब कईसे कर सकत हउ?" मोहन अपनी अम्मा से सवाल कइलस, बाकि जवाब अम्मा ना बल्कि पाड़ेजी दिहले...

"वइसहीं जइसे तू महादेव बाबू के बिस्तरा के नीचे से रुपया चोरा लिहलऽ. का जवाँई बाबू, हम सही कहत बानी नू? पाड़ेजी मोहन के बात के जवाब देत देत राजन से सवालो कर लिहले.

"जी बिल्कुल."

"बाकिर हमार बहिना सरासर झूठ बोलत बाड़ी." पाड़ेजी नया खुलासा कइले त एक बार फिर सब आश्चर्य में पड़ गइल. सब केहु कबो पाड़ेजी के त कबो बुआजी के देखे लागल.


गमछा पाड़े - 6

सब केहू अचरज से गमछे पाड़े के देखत रहे कि अब का गुल खिले वाला बा. बाकि ममता से ना रहल गइल आ ऊ हाली से आपन सवाल कइलस जइसे ओकरा साँच जाने के बड़ा बेचैनी होखो.


"आपके कहे क मतलब का हव गमछा चच्चा..?"


"बिटिया, हम त एतने कहे चाहत बानी कि बहिना झूठ बोलत बाड़ी. काहे से इनकरा जइसन शरीर के औरत महादेव बाबू के लाश के खूँटी पर टाँग भले दे,साड़ी पहिनले पहिन ई खिड़की से बहिरा सही सलामत जईये नइखी सकत. मतलब ई कि या त तू दुनो जाना के कतल से कवनो सम्बन्ध नइखे भा दुनो जाना एह कतल के बराबर के भागीदार बाड़न जा. काहे से कि तोहरा जइसन शरीर साड़ी में सही सलामत ई खिड़की से बहरी ना जा सकेला. अब सचमुच में असलियत का बा एकर फैसला पुलिस खुद कर ली जेकरा के बोलावे खातिर केहु के तकलीफ करे के दरकार नइखे काहे से कि पुलिस बहरी से खुद ई तमाशा देख रहल बिया." एतना कहला के बाद पाड़ेजी इन्सपेक्टर के आवाज दिहले त अगिले पल में कमरा में एगो इन्सपेक्टर क साथे दूगो सिपाही आ एगो महिला सिपाही भीतरो आ गइल.


"गमछा चच्चा ई सब...?" ममता पुछलस त पाड़ेजी फिर से कहे शुरु कइले...


"ई लोग के हम बोलवले बानी. बाकि मोहन आ बहिना के पुलिस में भेजे से पहिले हम ऊ बात जरुर बतायेब कि मोहन के राज के बारे में जवन बात पुलिस के ना मालूम भइल ऊ हमरा कइसे मालूम हो गइल. अतना कह के पाड़ेजी कुछ सोचे लगले आ फेर कहे लगले.. केहु के याद होखे भा ना बाकि जवना दिन पईसा क लेके महादेव बाबू अउरी मोहन मे झगड़ा भइल रहे ओह दिना हम महादेव बाबू से मिले खातिर एहिजगे आइल रहीं. संयोग से महादेव बाबू के मौत वाला रात में हम मोहन बबुआ के चाह के दुकान में केहू के ओतने रूपया देत देखले रहीं. बस ईहे दूगो संजोग जोड़ के हम जवन कहानी बनवलीं ऊ निशाने पर लाग गइल. बन्द कमरा से बहरी जाये के राज जानल कउनो बड़ बात ना रहे. कमरा के खिड़की के कुंडी देखते हम बूझ गइलीं कि का भइल होखी.एतना कहला क बाद पाड़ेजी इंस्पेक्टर से मुखातिब भइले.. भाई सिंह साहब, सँभाली अपना मुजरिम लोग के. हमरा पूरा भरोसा बा कि एगुड़े दिन में पूरा कहानी बाहर आ जाई."


पाड़ेजी के बात सुन के पुलिस आपन काम करे लागल. ममता के उपर बुआजी के आ मोहन के रोआ रोहट के कवनो असन ना भइल अउर दस मिनिट का भितरे पुलिस आपन काम कर के चल गईल आ साथे साथे मोहन अउर बुओजी के लेले गइल.


"अच्छा बिटिया, अब हमहूं चलब. जब पूरा कहानी बाहर आ जाई त फेर भेंट होखी." पुलिस के गइला क बाद पाड़हूंजी अपना राह चले लगले. फेर तनिका रुक के राजन से कुछ पूछे चहले...


"जवाईं बाबू, बुरा ना मानी त हम कुछ पूछे चाहेब?


"जी जरुर." राजन के चेहरा बतावत रहे कि ऊ थोड़ा परेशानी में बा कि आखिर अब पाड़ेजी का पूछीहें.


"अब त वियाह खातिर एक साल रुके के ना नू पड़ी ?"


ई सवाल सुन के ममता अउर राजन दुनो जाना लजा गइल आ पाड़ेजी मुसुकात बहरी चल गइले.


...........................


पाड़ेजी अपना आफिस मे चाय पियत कुछ सोचे में व्यस्त रहले. कुछ एतना कि पंडिताईन ऊनकरा लगुवे बईठल रहली बाकि पाड़ेजी के उनकर कवनो ध्याने ना रहे. आखिर में पंडिताईन से ना रहल गईल आ बोलिये पड़ली...


"बिलाई क भागे सिकहर का टूटल रउआ त सोझे आसमाने पर जाके बईठ गइल बानी. मत भूलीं, अबले ना तोहार बहिना जुरुम कबूलले बाड़ी ना ही उ छँवड़ा.(कुछ याद करत).. का नाम हऽ ओकर..?


"मोहन." पाड़ेजी चाय के चुस्की लेत कहले आ फेर पंडिताईन क तरफ देख के कहे शुरु कइले..


"सिकहर केकरा भागे टूटी अभी तय नइखे भईल पंडिताईन!"


"का मतलब..? अब चऊँके के बारी पंडिताईन के रहे.


"मतलब ई कि अबहीं असली कातिल सामने आना बाकी बा." पाड़ेजी अपना भारी आवाज में कहले त पंडिताईनो का चेहरा पर अचरज के सीमा ना रहे. बाकि पंडिताईन कुछ कहें भा सवाल करें ओकरा पहिलही पाड़ेजी कहे शुरु कईले.. "वइसे त हमरा के ई बात तबले ना बतावे के चाहत रहे जबले कि असली हत्यारा पुलिस के गिरफ्त में ना आ जाव बाककि काहे से कि हम कातिल क बारे में जान चुकल बानी एहि से एतना बता दिहली हँ." एतना सुन के पंडिताईन पाड़ेजी के घुर घुर के देखे लगली. ई देख के पाड़ेजी फेर कहल शुरु कइले..


"अइसन बिलार नियर आँख फाड़ क देखे के दरकार नइखे. भुला गईलू कि हम ठलुआ के कवनो काम से भेजले बानी? असली कातिल तबहीं सामने आई जब ऊ आपन काम ठीक से करके वापस आ जाई. शायद अजुवे आ ना तऽ काल्हु."


"चलीं अब एतना अउर बता दीं कि के कातिल बा?" पंडिताईन जरत भुनात चेहरा लेके सवाल कईली त पाड़ेजी चुपचाप चाय के चुस्की लिहले अउरी लम्बा सांस छोड़त कहले..


"ट्रेड सीक्रेट बा. एकरा से ज्यादा जाने के बा त तनी इंतजार क ल. सब मालूम हो जाई."


"आखिर का बा सीक्रेट? गमछा पाड़े क दिमाग सचमुच चलत बा कि खाली दिमागी घोड़ा दउड़ावत बाड़े? का ठलुआ का जानकारी पर पाड़ेजी सचमुचे असली कातिल तक पहुँच पईहें कि बस ईहो सब खाली खयालिये पुलाव बन के रह जाई?"


गमछा पाड़े - 7

बनारस के घटनाक्रम से अनजान ठलुआ लखनऊ मेडिकल कालेज के आसपास के दुकानन में कुछ पूछताछ कर रहल बा. ओकरा हाथ में एगो कागज बा अउरी ममता के फोटो भी बा. बारी बारी से ऊ कई दुकानन में गइल आ हर दुकान से लौटत के ओकरा चेहरा पर निराशा झलकत रहे. अइसन कवन काम रहे जे पाड़ेजी ठलुआ के दिहले रहन आ ऊ पूरा मनोयोग से आपन काम करे में लागल रहे? आखिर में एगो दुकान में ओकरा सफलता मिलत लउके लागल बाकि दुकानदार ओकरा के कुछ बतावे के तईयार ना रहे. जब दुकानदार ओकरा के अपना दुकान से भगावे लागल तब ठलुआ अपना जेब से एगो अउरी कागज निकाल के देखावलस. ऊ कागज के देख क दुकानदार सहम गइल आ ठलुआ के कुछ बतावे लागल जेकरा के सुन के ठलुआ पहिले त कुछ निराश भइल आ फेर ओकरा चेहरा पर आश्चर्य के भाव साफ लउके लागल.


सब बात कइला क बाद ठलुआ उँहा से आश्चर्य अउरी निराशा के भाव लिहले लवटि गइल. ओकरा ई अन्दजो ना लागल कि एगो लईकी ओकरा हाथ में ममता के तसवीर देख के ओकरा पर नजर रखले बिया आ ठलुआ के उँहवा से जाते कहीं फोन मिलावे लागल.


'हेलो ममता, आई एम रजनी. सम बडी इज डूइंग इंक्वारि एबाउट यू हियर एण्ड देयर. इज देयर एनीथिंग राँग.? (केहु तोहरा बारे में ईहँवा उहवाँ पूछताछ कर रहल बा. कुछ गड़बड़ त नईखे नू ?)..??'


दुसरा तरफ फोन लाईन पर ममता सब सुन के परेशान हो गइल. ममता अपना सहेली से ई जाने के बहुत कोशिश कइलस कि पूछताछ करे वाला के रहे बाकिर फोन रखला के बाद ओकरो चेहरा से लागत रहे कि ओकरा कुछ खास सफलता ना मिलल. फोन रखला के बाद ऊ बेचैनी से एहर ओहर टहले लागल कि ओकरा पास फेर फोन आइल...


'हैलो...'


'ममता जी हम सिगरा थाने से इंसपेक्टर विजय सिंह बोल रहा हूँ...'


'जी इंस्पेक्टर साहब....'


दुसरा तरफ से इंस्पेक्टर के आवाज ममता के अउरी परेशान कर दिहलस बाकि जब ममता के ई बतावल गइल कि बुआजी अउर मोहन दूनो जाना आपन जुर्म कबूल कर लिहले बा त ओकरा चेहरा पर तनिका खुशी आ गइल. पल भर में ओकरा चेहरा पर लखनऊ के परेशानी के नामोनिशान मिट गइल. इन्सपेक्टर से बात कइला क बाद ममता कहीं फोन लगावे लागल.


'राजन बढ़िया समाचार! बुआजी आ मोहन आपन जुर्म कबूल लेले हउअन. तू जल्दी से घरे आ जा सिगरा थाने जाये के हव.' दुसरा तरफ से आवाज आवे पर ममता राजन के सच्चाई बतवलस त राजनो के खुशी के ठेकाना ना रहे.


'हम अबहीं आवत हईं.' राजन के आवाज सुन के ममता मोबाइल से फेर कउनो नम्बर मिलावे लागल. एतकी पारी दुसरा तरफ से पाड़ेजी के आवाज साफ सुनाई पड़ल.


'हैलो..?


'गमछा चच्चा हम ममता....' दुसरा तरफ के आवाज सुन के ममता जवाब दिहलस.


'हाँ बिटिया, बोल. का बात बा?'


'चच्चा बुआजी अउरी मोहन आपन जुर्म कबूल लेले हउअन. हमके अबहीं सिगरा थाने जाये के हव. आप संझा के आ जाईं अउर आपन ईनाम के रकम ले जाईं.'


'रुपया के कउनो जल्दी नाही बा बिटिया रानी. पुलिस के सामने सच कबूले वाला लोग अदालत में फट से अपना बात पर पलटी मार देबे ला लोग. बाकिर हम शाम के आयेब जरुर. तनी जरुरी बात करे के बा.'


'जी अच्छा...' कहत ममता फोन रख देत बिया पर पाड़ेजी के बात सुन के ऊ फेर सोच में पड़ गईल. आखिर अब कवन जरुरी बात करे के हव अउर चच्चा पइसा लेबे खातिर काहे मना करत हउअन. ममता एही उधेड़बुन में लागल रहे कि राजन के अइला के आहट भइल. राजन क सोझा सहज होखे क बाद ऊ राजन का साथे पुलिस थाने जाये खातिर तैयार होखे भीतर चल गईल.


....................


ममता के घर के घटनाक्रम से अनजान पाड़ेजी अपना आफिस में चाय पीयत रहन अउरी हमेशा के तरह पंडिताईन के मंत्र जाप चालू रहे.


'का जरुरत रहे मना करे खातिर? रउआ के त पइसा जइसे काटे ला. जदि ठलुआ अपना काम में सफल ना भइल अउरी कचहरी में तोहार बहिना आ मोहना आपन जुर्म नकार देही लोग तब कहँवा जायेब घंटा बजाये?'


एकरा पहिले कि पाड़ेजी पंडिताईन के बात के कुछ जवाब देते ठलुआ आफिस में दाखिल होत बा.


'गुरु पा लागी. गुरुआईन पा लागी.' कहत ठलुआ दुनो जाना के पैर छुअलस आ पाड़ेजी के ममता के फोटो आ एगो कागज दे के सब बतावे लागल. ठलुआ आ पाड़ेजी के बात से साफ लागत रहे कि पाड़ेजी के ममता पर शक रहे आ ऊ ठलुआ के लखनऊ ई जाने खातिर भेजले रहन कि महादेव बाबू के गिलास में मिलल जहर ममता खरीदले रहे कि ना. ठलुआ के सूचना के आधार पर जब ई समझ में आ गइल कि जहर ममता नाही खरीदले बिया त पाड़ेजी तनि सोच में पड़ गइले आ फेर लमहर साँस खींचत बड़बड़इले....


'एकर मतलब ई भइल कि हमार शक सही ना निकलल.'


'अब का होई गुरु.?' ठलुआ सवाल कइलस त पाड़ेजी तनिका सोचे लगले. फेर बड़ा आराम से जवाब दिहले....


'कुछुओ ना होखी. हमार पहिलका शक सही ना भईल बाकि दुसरका में त कउनो दागि ना लागी.'


एतना सुनला के बाद पंडिताइन से ना रहल गइल आ उनकर मन्त्रोचार फेर शुरु हो गईल.


'रसरी जर गइल बाकि अईंठन ना गइल. हम तऽ कहत बानि कि शाम के जाके रुपिया ले लीं आ ओही से भजन मण्डली खोल लीं. जासूसी कइल रउआ बस के बात नाही बा.'


पंडिताईन क बात सुन के पाड़ेजी के मुँह बन गइल बाकि ऊ उनकरा बात पर ध्यान दिहले बिना कहीं फोन लगावे में बिजी हो गइले.


'सिंह साहब, हम गमछा पाड़े बोलत बानी. हम लोग के प्लान ए फेल हो गइल. आ अब प्लान बी पर काम करे के दरकार बा..' दूसरा तरफ से आवाज अइला पर पाड़ेजी जवाब दिहले त पंडिताईन आ ठलुआ दुनो लोग उनकरा के आश्चर्य से देखे लागल. दुसरा तरफ से फिर का कहल गइल ई केहु ना सुनल. सिर्फ पाड़ेजी के छोड़. बाकि पाड़ेजी ई कहत फोन राख दिहले कि ठलुआ वापस आ गइल बा अउरी सब काम वइसहीं करे के बा जइसे कि पहिलहीं से तय बा. फोन रखला के बाद पाड़ेजी कुछ कहतन, पंडिताईन बोल पड़ली...


'तनिका हमहूँ सुनी कि ई पिलान बी का बा?'


'ट्रेड सीक्रेट...' पाड़ेजी दु टूक में जवाब दिहले आ ठलुआ के लेके बहरी चल गइले, पंडिताईन बस दुनो जाना के जात देखत रह गइली.


"आखिर का बा सीक्रेट? गमछा पाड़े क दिमाग सचमुच चलत बा कि खाली दिमागी घोड़ा दउड़ावत बाड़े?"


गमछा पाड़े - 8

महादेव बाबू के घर के दालान में राजन अउरी ममता साथे बइठ के अपना बियाह के बात करत रहे कि इन्सपेक्टर सिंह के आवाज से दुनो लोग चौंक जा ता.


'हम अन्दर आ सकत हईं?'


'अरे इन्पेक्टर साहब आप अचानक.. ?' ममता उनकरा के अन्दर आवे के संकेत करेले, इन्सपेक्टर के साथे दुगो सिपाही, मोहन अउरी बुआजी भी रही जिनका के देख के ममता अउरी राजन के अउर भी आश्चर्य हो ला.


'ममता जी माफ करा. हालात केतनो खराब हो, हमरे अधिकारियन के नजर में ई दुनो लोग कातिल ना हो सकत हव. एहि से हम ई लोग के ईहाँ लेके आईल हई.'


'अईसन कईसे हो सकत हव? अबही ४ घंटा पहिलहीं त दुनो जने आपन जुर्म कबूल कईले रहन.' इन्सपेक्टर के बात सुन के ममता अउर राजन दुनो के आश्चर्य के सीमा ना रहे आ राजन के ई सवाल से लागत रहे कि सबसे ज्यादा ओकरे के कष्ट भईल होखे.


'राजन बाबू जुर्म कबूलला से ज्यादा जरुरी होला सबूत. अउर पुलिस के पास ई दुनो लोग के खिलाफ कउनो सबूत नाही हव. साथही कतल के जगह के हालात अउर ई लोग के कबूलनामा से भी अईसन नाही लगत हव कि ई लोग कतल कईले होई. हम लोग के काम रहल ई दुनो जने के सही सलामत आप लोग के हवाले करे क. बाकि एक बात के आप लोग के खास ध्यान धरे के होई.' इन्सपेक्टर सिंह राजन के बात के जवाब देके कुछ कहे चहले त ममता सवाल कईलस...


' कवन बात इन्पेक्टर साहब?'


'ई लोग ईहाँ से कहीं जा ना पावे. अउर यदि गइल भी त पुलिस के तुरन्त सूचना मिले के चाही.' एतना कहला के बाद इन्सपेक्टर, राजन अउर ममता के आश्चर्य के डाल के अपना दल बल के साथ वापस चल गइले. जेकरा बाद दालान में तनिका देर खातिर खामोशी छा गइल. के का बोले, केहु के कुछ समझ में ना आइल. राजन अउर ममता के चेहरा पर जहाँ बुआ आ राजन खातिर नफरत झलकत रहे ऊँहे बुआ अउरी मोहन के चेहरा पर ग्लानि के भाव स्पष्ट रहे.


'ममता बिटिया.' बुआजी कुछ कहे चहली त ममता हाथ क इशारा से उनके चुप रहे के कहलस अउरी राजन के साथे अन्दर जाये लागल कि दरवाजा से पाड़ेजी के आवाज आईल..


'अइसनो का हो गइल ममता बिटिया, कि बहिना के बातो सुने से इंकार कर रहल बाड़ू?'


पाड़ेजी के आवाज पर सबकर ध्यान दरवाजा पर गइल त पाड़ेजी ठलुआ क साथे अन्दर आवत रहले.


'गमछा चच्चा! आप पुलिस के हरकत देखत हउआ न?' ममता के चेहरा पर अबहियो पूरा घटना के लेके रोष साफ झलकत रहे.


'काहे ना बिटिया. बाकि ई त हमहू जानिले कि ई लोग कातिल नाही बा.' पाड़ेजी ममता के बात सुन के इत्मिनान से कहले त सब आश्चर्य में पड़ गइल. ईहाँ तक कि मोहन अऊर मोहन के माई भी.


'ई का कहत हउआ गमछा चच्चा.' पाड़ेजी के जवाब पर ममता सवाल कईलस.


'हम बिल्कुल सही कहत बानी बिटिया रानी. कातिल ना त मोहन बबुआ बाड़े अउरी ना ही बहिना बाड़ी. कातिल त केहू अउरे बा.' पाड़ेजी जेतना आराम से जवाब दिहले ओतना आराम से केहु एह जवाब के पचा ना पावल. मोहन का माई से ना रह गइल त ऊ आपन भड़ास निकाले खातिर पाड़ेजी से सवाल कईली...


'जब हम लोग कातिल नाही हई त हम लोग क साथ एतना बड़ा मजाक काहे कइलऽ गमछा?'


'माफ करीहऽ बहिना. महादेव बाबू के असली कातिल तक पहुँचे खातिर ई सब जरुरी रहे. आ हमरा यकीन बा कि जब कातिल पकड़ल जाई त सब केहू हमरा के माफ कर देही.'


'मतलब ई कि अब आप असली कातिल तक पहुँच गइल हउआ?


' पाड़ेजी के बात सुन के राजन सवाल कइलस त पाड़ेजी फेर कहले...


' अबही ना जवाँई बाबू. काहे से कि हमार दुसरको शक बेकार हो गइल बा.'


पाड़ेजी के एतना बात सुन के राजन के मुँह बन गइल आ पाड़ेजी के अब तक के करनी का आधार पर ऊ उनकरा पर कमेन्ट कर बईठल...


'चच्चा, हमके तऽ अब लगे लगल हव कि आप सिर्फ ख्याली पोलावे पकावत हउआ. हम लोग के बाबूजी के कातिल के पकड़वावे के जरुर हव बाकि ई सब नौटंकी देखले बिना. हम त अब ईहे कहब कि अब आप ई सब नाटक बन्द कर दऽ.'


'राजन.' एकरा पहिले कि राजन के बात सुन के पाड़ेजी कुछ कहतन, ममता राजन के टोक दिहलस. ओकरा चेहरा से लागत रहुए कि चाहे कुछ हो राजन के बात ओकरा अच्छा नइखे लागल.


'कउनो बात नाही ममता बिटिया. जवाँई बाबू के बात के हमके जरिको बुरा ना लागल. बाकि अब जब एतना सब कुछ हो ही गईल त हम जवाँई बाबू से कहेब कि हमार एगो आखिरीओ कहानी सुनिये लें. शायद हमरा कहानी से खुश हो के जवाँई बाबू के हमरा बारे में बिचार बदल जाव.', एतना कहला क बाद पाड़ेजी सबकरा के बारी बारी से देखे के बाद राजन के तरफ देख के कुछ कहे के ईजाजत मँगले आ राजन के कुछ कहे से पहिले ही आपन कहनी शुरु कर दिहले....' ममता बिटिया हमके माफ कर दीहऽ. कातिल क रुप में हमरा तोहरा पर पूरा शक रहे बाकि जब ध्यान से खोज कइली त हमार शक मिट गईल. बाकि हमके असली कातिल तक पहुँचे के रास्तो मिल गईल. कातिल के बा ई बात सबकरा के मालूमे पड़ जाई जब कातिल पुलिस के सामने आपन जुर्म कबूल करी.. बाकि कतल कइसे भइल हम ओकर पूरा ब्योरा बता रहल बानी. अपना मौत से एक दिन पहिले महादेव बाबू क केहू से झगड़ा भइल रहे आ जेकरा से झगड़ा भइल रहे ऊ ई बात अच्छा तरह से जानत रहुवे कि यदि महादेव बाबू जिन्दा रहिहन त ओकर बहुत बड़ नुकसान हो जाई. ओकरा के इहो बात निमना से मालूम रहे कि महादेव बाबू शाम होखते अपना कमरा में शराब पियेले. ओकरा ईहो मालूम रहे कि मोहन के ऊपर केहु के लाख रुपया बकाया बा. आ ओही के दवाब में आके ओह दिना मोहन के लेनदार मोहन पर रुपया देबे के जोर दिहलस ताकि मोहन अउरी महादेव बाबू मे झगड़ा हो अउर ऊ आपन काम कर जाव.'


एतना कहला के बाद पाड़ेजी सबकरा के बारी बारी से देखे लगले त पवले कि सब उनही के आगे के कहानी जाने खातिर बेचैनी से देख रहल बा.


गमछा पाड़े - 9

हमेशा के तरह महादेव बाबू कमरा में बईठ के आपन रोजमर्रा के आदत पूरा करे के तैयारी करे लग ले, एह बात से अनजान कि बहरी खिड़की पर उनकर मौत के फरिश्ता आ चुकल बा आ उचित समय के इंतजार कर रहल बा. सही समय पर फरिश्ता के सोचल पूरा भइल आ कमरा में मोहन आ गइल. मोहन के हर हाल में एक लाख रुपिया चाहत रहे जेकरा चलते कुछ अइसन बातो भइल कि महादेव बाबू के सीना में दर्द उठ गइल. महादेव बाबू के एही हालत के फायदा उठा के मोहन उनका के धक्का देके बिस्तरा के नीचे से रुपया लेके चल गइल. (एतना कहला के बाद पाड़ेजी सबका के बारी बारी से देखे लगले. सब उनकरे के देखत रहे. ईहाँ तक कि राजनो)....का जवाँई बाबू, अबले के कहनी त हम ठीक कहत बानी नू?'


'जीऽऽऽऽ जी हँऽऽ..' पाड़ेजी के सवाल पर पहिले त राजन तनि घबरा गइल फेरु जवाब में सिर्फ हामी भर दिहलस...


'खैर, महादेव बाबू के दिल के दौरा पड़ल बा. एह बात क गुमान ना त मोहन बबुआ के रहे ना ही खिड़की के बहरी खाड़ फरिश्ता के जेकरा के ई इंतजार रहे कि कब महादव बाबू जहर के शराब पीके एह दुनिया से अलविदा करस आ कब ऊ कमरा मेँ आके ऊहाँ के हालात अईसन बना दे कि महादेव बाबू के मौत या त आत्महत्या लागे भा फेरु कतल क ईल्जाम मे मोहन बबुआ फँस जास. कमरा में बहुत देर शान्ति के बाद जब बहरी खाड़ फरिश्ता के लागल कि ओकर काम हो गइल बा त ऊ कमरा में आवे चहलस. एह बीच बहिना कमरा में आ चुकल रही आ अपना भाई के मोहन बबुआ के खिलाफ पुलिस में फोन करत देख उनकरा से फोन झटक के उनकरा के धक्का देके उनकरा मुँह पर तकिया रख के दबा चुकल रहि आ ई मान चुकल रही कि उनकर भाई अब नइखे बाचल. जबकि एह घटना से महादेव बाबू के सीना दर्द बढ़ के दिल का दौरा मे बदल चुकल रहे आ ऊ खाली निष्क्रिय भइल रहुवन, एकरा बाद बहिन कुछ अइसन इंतजामात करे चल गइल रही कि सबकरा महादेव बाबू के मौत आत्महत्या लागो. (एतना कहला के बाद पाड़ेजी बहिना के तरफ देखले त ऊ नजर चोरावे लगली). बहरी खाड़ फरिश्ता से एही जगहा चूक हो गईल. कारण का रहे हमरा ना मालूम लेकिन ओकरा से जवन चूक भईल ओकरा वजह से ओकरा मोहन बबुआ के कमरा में जाये क बाद आ ओकरा कमरा में आवे के पहिले का भईल एकरा बारे में ऊ कुछ ना जान पावल. वइसे एकरा पीछे इहो कारण हो सकेला कि ओकरा मालूम रहे कि शराब के बोतल मे मिलल जहर केतना देर में असर करी. जेकरा चलते ऊ कुछ देर खातिर खिड़की से अलगा चल गइल होखो.' एतना कहनी के बाद पाड़ेजी रुक गइले आ एक बेर फेर सबका के देखे लगले. पाड़ेजी के खामोशी से ममता के ना रह गइल...


'फिर का भयल गमछा चच्चा..?'


'जब ऊ कमरा मे आइल त बेसुध महादेव बाबू के मरल समुझ के उनकरा पंजरा जाके देखे लागल. उँहवा से जइसे पलटल महादेव बाबू ओकर हाथ पकड़ लेत बाड़े. हाथ छोड़ावे में जवन छीना झपटी भइल ओकरा कारण महादेव बाबू के हाथ के नाखून में जवन खून लागल ऊ ना त बहिना के खुन से मिलल ना ही मोहन बबुआ के खून से. एहि कारण रहे कि इ दुनो जाना के जुर्म कबूलला के बादो पुलिस इ लोग के इहँवा छोड़ गइल.


'फेर कातिल उहे काम कइलस जवन तनिका देर पहिला बहिना कर चुकल रहली. फर्क एतने रहे कि कातिल के जब तक महादेव बाबू के मरला के यकीन ना भइल ऊ उनकर गला दबवले रह गईल. आ ओकरा बाद जइसे जहर मिलल शराब के समेटे चहलस वइसे बहरा से बहिना के अन्दर अइला क अनेसा से ओकरा बहरी भागे पड़ल. बाकि ओकरा बहरा गइला क बाद बहिना आ मोहन बबुआ ऊहे काम करल लोग जवन ऊ करे चाहत रहे. जेकरा बाद केहू के महादेव बाबू के गला दबवला के संदेह ना हो. फेर एकरा बाद बहिना कमरा के दरवाजा से बहरी अइली आ मोहन बबुआ कमरा के खिड़की से बहरी गइले. एकरा बाद के कहनी के सबकरा मलूमे बा.'


एतना कहनी सुनला के बाद सब पाड़ेजी के साथे साथे एक दोसरो के देखे लागल. सबकरा चेहरा से लागत रहे कि सब कातिल के असली चेहरा देखे चाहत बा.


'लेकिन चच्चा फेर असली कातिल हव के?'


'बिटिया एह बार हम कउनो जल्दी ना करब. ना त फेर जवाँई बाबू के हमरा से शिकायत हो जाई. काऽऽ जवाँई बाबू, हम साँच कहत बानी नू?'


एह सवाल पर राजन के कुछ कहत ना बनल आ ओकरा तरफ से ममते कहलस...


'इनकर कहल सुनल माफ करा चच्चा आ अब जल्दी से असली कातिल के बारे में बता दऽ.'


एकरा पहिले कि पाड़ेजी कुछ कहते उनकर मोबाईल के घंटी बाजे लागल. पाड़े जी फोन पर बतियावे लगले.


'बोलीं. सिंह साहब हम गमछा पाड़े बोलत बानी. का कहत बानी ! कातिल के शिनाख्त हो गइल बा आ आप लोग गवाह के साथे महादेव बाबू के घरे आवत बान.. जीऽऽ, आईं हम एहजगे बानी. जी. जी. सब केहु बा. ठीक बा. केहु ना जा पाई.'


एतना कहला क बाद पाड़ेजी फोन काट दिहले आ सबकरा के बारी बारी से देखे लगले. सब उनही के देखत रहे.


'खुशखबरी बा. बस तनिके देर में पुलिस असली कातिल के पकड़ ली. ममता बिटिया?'


'जी गमछा चच्चा.'


'चाय के तलब होत बा. जब तक पुलिस गवाह के साथे ईहाँ आवे चाय पिया दऽ ना. बकिया कहनीओ पुलिस क सामने हो जाई. (फेर राजन से) जवाँई बाबू, सही कहत बानी नू?'


'जी बिल्कुल. (राजन पाड़ेजी के बात के जवाब देके ममता के से कहे लागल) ममता हम बाथरुम हो के आवत हई.'


एतना कहला क बाद राजन अन्दर कमरा में चल गइल आ ममता चाय बनावे खातिर रसोई क तरफ चल गइल. आ पाड़ेजी मोहन आ बुआजी के बईठे के इशारा करके अपनहूँ बईठ गइले.


तनिका देर बाद ममता चाय लेके आ गईल बाकि अबले ना त पुलिस आइल ना ही अन्दर के कमरा में से राजन.


'हम राजन के देख के आवत हईं' ममता चाय रखला क बाद अन्दर जाये लागल त पाड़ेजी के अगिला लाइन सुन के बकिया सब चौक गइल.


'कवनो फायदा ना होखी ममता बिटिया. जवाँई बाबू ना त एह समय बाथरुम में बाड़े ना ही घर में.'


'का कहत हउआ चच्चा? हमलोग क सामने ही त राजन कमरा मे गयल हऽ बाथरुम खातिर.' ममता आश्चर्य से सवाल कइलस बाकि बुआजी अउरी मोहन आश्चर्य से पाड़ेजी के देखत रहे लोग.


'ममता बिटिया तू भूला जात बाड़ू कि कमरा के खिड़की से आसानी से बहरी जाइल जा सकल जाला.'


'काऽऽऽऽऽ?.... एकर मतलब... कातिल... राजनऽऽऽऽ....?' ममता के चेहरा पर आश्चर्य के पराकाष्ठा हो गइल रहे. कुछ अइसने हाल बुआजी अउरी मोहनो के रहे. पाड़ेजी हाँ मे जवाब देबे मे देर ना कइले जेकरा बाद बुआजी बदहवासी से पाड़ेजी के पकड़ के चिल्लाये लगली.


' अरेऽऽ त फेर ओह कातिल के काहे ईहाँ से भागे दिहलऽ हऽ गमछा?'


'बहिना राजन एह घर से बहरी गइल बा, हमरा से दूर नईखे गइल. सिंह साहब ओकरा के लेके बहरी आ चुकल बाड़े आ सिर्फ हमरा संकेत के इंतजार कर रहल बाड़े.' एतना कहला के बाद पाड़ेजी सिंह साहब के आवाज दिहले त सिंह साहब चार गो सिपाहयन क साथे राजन के लेके अइले. एह समय राजन के हथकड़ी लागल रहे. ई घटनाक्रम में सबकरा से ज्यादा हैरान ममता रहे आ जब ममता राजन से कतल के कारण जाने चहलस त पाड़ेजी पूरा कहनी बतावे क जगहा सिर्फ एतने बतवले कि महादेव बाबू के राजन के बदचलनी के पता चल चुकल रहे आ ऊ राजन से मिल के ममता अऊरी ओकर रिश्ता तोड़ चुकल रहन. इहे बतावे खातिर महादेव बाबू ममता के कालेज से दू दिन खातिर घरे बोलवले रहन आ ई बात ममता के मालूम हो जात त राजन के बहुत बड़ नुकसान हो जात.


पाड़ेजी इहो खुलासा कइले कि उनकरा राजन पर शक ओहि दिना हो गईल रहे जब ऊ आपन कहनी में मोहन द्वारा महादेव बाबू के रुपया चोरावे के कहनी कहत रहन आ राजन के मुहँ से ई निकल गइल कि मोहन बाबूजी के कमरा से उनकरा रहते रुपया कइसे चोरा लिहलस? जबकि रुपया चोरावे के कहनी त पुलिस के बही खाता में भी ना रहे. पाड़ेजी इहो बतवले कि ठलुआ महादेव बाबू के खिड़की के बहरी मिलल पर्ची लेके लखनऊ में दुकानदार से कबूलनामा ले लिहले बा कि महादेव बाबू के जवन जहर देबे के कोशिश कइल गइल रहे ऊ केमिकल राजने खरीदले बा. सब कहनी कह के जब पाड़ेजी ममता से सहानुभूति देखा के बहरी जाये लगले. त सिंह साहब उनकरा के एगो बहुत पेचीदा केस के सुलझावे में मदद मँगले. पाड़ेजी ई कह के ऊहाँ से चल दिहले कि..


'ठीक बा, काल आयब.'


कवन पेचीदा केस बा जेकरा पर पुलिस के पाड़ेजी से मदद के जरुरत पड़ गइल? पाड़ेजी ओह केस पर कवन गुल खिलवले, पढ़ीं अगिला अंक से.

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