भोजपुरियन के सबले बड़ कमज़ोरी : अंग्रेजी
शैलेश मिश्र
मातृभाषा से बढ़के कुछ ना होला - पूर्ण सत्य, एकदम साँच. भोजपुरी हमनी के मातृभाषा हs आ दुनिया के केतनो भाषा सीखीं जा, भोजपुरी भुलाये के ना चाहीं. भरसक ओकरे उपयोग घर में होखे के चाहीं. अब तनकी आगा सोचीं कि मातृभाषा के बाद कवन भाषा होला ? जवाब मिली - कर्मभाषा. अंग्रेजी के बिना दुनिया में आजकल कवनो करियर में सफल होखल मुश्किल बा. दुनिया के हर देश के लोग के एक तार से जोड़ेले अंग्रेजी भाषा. जे भी आसानी से अंग्रेजी बोलेला, लोग ओकर लोहा मानेला, बतियो समझेला आ आदरो देला. ऑफिस होखे, स्कूल-कॉलेज, अस्पताल भा दोसर कवनो कार्यालय, हमनी के अंग्रेजी के कर्मभाषा क रूप में रोजे उपयोग करेनी जा. जे ठीक से अंग्रेजी ना बोली, ओकर टूटल-फूटल अंग्रेजी पर समाज हँसेला आ बिना अंग्रेजी के ज्ञान के ज्ञानी-पंडितो मूर्ख के बराबर समझल जाला.
हम बलिया से लेके चेन्नई तक, इंडिया से लेके अमेरिका तक - सब जगह के अंग्रेजी भाषा-शैली से परिचित बानी आ यूपी-बिहार आ उत्तर-भारत के समाज के इंग्लिस-स्किल्स आ अंग्रेजी हालत देखला क बाद बुझा जाला कि लोग भोजपुरियन के हीन-दृष्टि से काहें देखेला. एकर मुख्य कारण गरीबी-बेरोज़गारी-अशिक्षे ना, अंग्रेजी भाषा का उपयोग में निपुणता के कमीओ बा. ई त ठीक बा कि भोजपुरी से हमनी के सीना चौडा हो जाला आ छाती ख़ुशी से फूल जाला बाकि पूर्वांचल से बाहर कदम राखते पता चले लागेला कि अंग्रेजी के बिना आदमी अपाहिज जइसन महसूस करेला. जे भोजपुरिया भाई-बहिन के दिल्ली-कलकत्ता में नौकरी मिलल, ऊ त हिंदी के सहारे कइसहूँ जी लेला बाकि तनी हटके मुंबई (पच्छिम) आ बंगलोर-हैदराबाद-चेन्नई (दक्षिण) में प्रवेश करब त बुझाई कि बिना अंग्रेजी के एकदम बिदेस में पहुँच गईनी. आ बिना अंग्रेजी के बिदेश पहुँच गईनी त समझीं सात समुन्दर में डूब गईनी!
कुछ लोग अंग्रेजी भाषा सीखके आत्म-सम्मान बटोरे के बजाय रौब झाडे लागेला. कइसनो अंग्रेजी सीख-साख के अपना के तीसमारखाँ बतावेला आ घमंड से पाँव ज़मीनी पर ना राख पावेला. सही शुद्ध अंग्रेजी सीखल आसान नइखे त कठिनो नइखे. अंग्रेजी भाषा आवे त बहुते नीमन बात बा. अंग्रेजी जनला के मतलब ई ना ह कि रउरा सिर पर कवनो ताज पहिरा दिहल गईल बा आ रउवा क्वीन ऑफ़ इंग्लैंड के अँगरेज़ औलाद हो गईनी. अंग्रेजी बोलेवाला आ सही व्याकरण-काल-क्रिया के इंग्लिश वाक्य लिखेवाला के बस समझीं - एगो अधिका डिग्री भा ताकत के टॉनिक मिल गइल जवना क सहारे जिनगी के सफ़र अउरी आसानी से कट जाई. पंजाबी-गुजराती-तेलुगु-तमिल बोलेवाला एक-दोसरा से अपने भाषा में बतियावेला बाकि अंग्रेजी सीखे से पीछा ना रहेला. सउँसे इन्टरनेट अंग्रेजी पर टिकल बा, दुनिया के व्यापार से लेके पढ़ाई-शिक्षा में भी अंग्रेजी भाषा के बहुते महत्वपूर्ण भूमिका बा. हर माँ-बाप के चाहीं कि अपना लईका-लईकी के भोजपुरी क साथे अंग्रेजीओ सिखावे जेहसे आगा चलके करियर-उन्नति के राह में भाषा कवनो रोड़ा ना बने. ई दुनो भाषा भोजपुरिया समाज के विकास में जरूरी बा.
भाषा कईगो सीखीं. भाषा से मनुष्य के मानसिक विकास होला आ मन उजागर होला. जेतना भाषा बोलीं, ओतने लोगन से पहचान होखी. आपन मातृभाषा भोजपुरी के साथ मरत दम तक मत छोडीं बाकि एतना जरूर जान लीं कि कर्मभाषा अंग्रेजी पर जबले काबू ना पाइब, रउवा हमेशा अपना के हीन, अधूरा आ कमज़ोर महसूस करत रहिब. जवन भोजपुरिया अंग्रेजी के पुडिया खाइके पचा ली, ऊ धरती पर रहिके चनरमा के सैर करी - बस अइसने कुछ समझ लीं. वातावरण के दोष देबल बहुत आसान काम बा - ओही वातावरण में आपन लक्ष्य पूरा कइल सबले महान आ चुनौतीवाला काम बा. भोजपुरियन के सबले बड़ कमज़ोरी - भोजपुरिया समाज ना, यूपी-बिहार के सरकार ना, कानून के कमी ना, गाँव के बोली ना, बलुक भोजपुरियन के अंग्रेजी भाषा के ज्ञान के कमी हs !!! जवना दिने भोजपुरिया लोग अंग्रेजी पर बढ़िया से काबू पाई जइहें, दुनिया के कवनो सफलता हासिल करे से ना चूकिहें.
जय भोजपुरी - जय भोजपुरिया !
शैलेश मिश्र
डैलस, टैक्सस, अमेरिका
१५ अप्रैल, २००९
चेन्नई में जनमल शैलेश मिश्र हिन्दी आ भोजपुरी भाषा के लेखक कवि हउवन; भोजपुरी असोसिएशन ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका के संस्थापक आ अध्यक्ष हउवन; भोजपुरी के प्रसिद्ध सोशल नेटवर्क - भोजपुरीएक्सप्रेस.कॉम के सृजनकर्ता हउवन. लेखक मूलतः बलिया जिला के डांगरबाद गाँव से जुड़ल बाड़े आ आजुकाल्ह अमेरिका के डैलस शहर (टेक्सास) में कंप्यूटर सॉफ्टवेर इंजिनियर बाड़े. ई-मेल संपर्क : smishra@gmail.com
असहमति के स्वर
अभयकृष्ण त्रिपाठी
संपादकजी नमस्कार,
कई दिना से अंजोरिया पर छपल एगो लेख के बारे में कुछ कहे चाहत रहीँ बाकिर समयाभाव से मजबूर रहीं. वईसे ई लेख कहीं अउर भी देख चुकल बानी बाकि ऊहाँ पर प्रतिक्रया उचित ना लागल काहे से कि जेकर लेख ओही के साइट. बाकिर अँजोरिया के एक सामाजिक मंच होखला से ईहँवा लिखे से मन के ना रोक पवनी. अब आपके उचित लगे तबहीं प्रकाशित करेब.
भोजपुरियन के सबले बड़ कमज़ोरी : अंग्रेजी
जादे पढ़ल लिखल नईखी बाकि हमरा एह लेख से ई नईखे बुझात कि लेखक कवना भोजपुरियन का बारे में बात कर रहल बाड़े. काहे से कि हमरा जानकारी में कम से कम सत्तर फीसदी भोजपुरिया लोग अइसना जगह से रोजी रोटी के जुगाड़ करेला जहँवा अंगरेजी के कवनो दरकारे नइखे. एकरा में खेतिहर, मजदूर, रिक्शावाला, निचला तबका के कामकाज, आ कवनो आफिस में आम नौकरी. अइसना लोग खातिर ना त अंगरेजी के कवनो मतलब बा ना ओह लोग का पास अंगरेजी सीखे के समय बा. बाँचल तीस फीसदी भोजपुरिया लोग में भी कम से कम आधा लोग अइसना जगह पर बा जहँवा अंगरेजी के जरुरत हो सकेला बाकिर अंगरेजी ना अइला चाहे कम अइला से कवनो परेशानी ना होखे. अइसना लोग में भोजपुरिया साहित्यकार लोग, उच्च पदवी आ उच्च व्यावसायिक पद वाला लोग, जिनकर पढ़ाई लिखाई के माध्यम अंगरेजिये बा, भा सरकारी पद वाला लोगन के गिनती कईल जा सकल जाला.
बाकी बचल पन्द्रह फीसदी लोग. हमरा भोजपुरिया जमीनी हकीकत के जानकारी का अनुसार एकरा में बिल्कुल बेकार लोग, चाहे माई बाबू के पइसा के बल (डोनेशन) के बल पर ऊँच डिग्री धारक लोग बा. अइसना लोग में कुछ लोग के डिग्री दिहल पढ़ाई वाला संस्थान के मजबूरीओ होला आ अइसना लोग में ज्यादातर लोग के असल मकसद सिर्फ अउर सिर्फ डिग्री पावल होला. एह लोग के अंगरेजी से ओतने मतलब होला जेतना कि डिग्री पावे खातिर जरुरी होखेला.
एतना बात में ई बात पर खास ध्यान देबे के बा कि मरद मेहरारु के बराबरी के जनसंख्या के आधार पर हम अपना आँकलन मे मेहरारू लोग के शामिल ना कइले बानी. काहे से कि ५० टका ना सही लेकिन ४० टका भोजपुरिया मेहरारु लोग सिर्फ घर के काम में व्यस्त रहेली जा.
लेख के रचनाकार लेख में कवना भोजपुरिया लोग खातिर परेशान बाड़े ई बात लेख पढ़ के समझ में नईखे आवत. हमार ई लेख के प्रतिक्रया देबे के पीछे के मंशा सिर्फ एतने बा कि एगो भोजपुरिया साहित्य अउर समाज के दर्पण के दावा करे वाला साईट के मालिक अउर भोजपुरिया समाज अउर संस्कृति के आगा बढ़ावे के दावा करे वाला लेखक के कलम से अइसन रचना हमरा हजम ना भइल. हम ई लेख के एक लाइन लिख के भी विरोध कर सकत रहीं बाकि एतना गूढ़ विषय के विरोध करे खातिर जवन कारण देबे के चाही ओकरा समर्थन में हम जेतना बात लिख सकत रहीं लिख देले बानी. बाकि यदि संपादक जी अपना तरफ से कुछ जोड़े चाहें त हमरा के रउआ बुद्धि पर पूरा भरोसा बा. यदि पता चल जाव कि रचनाकार महोदय कवन भोजपुरिया लोग खातिर परेशान बाड़े त शायद हमहूँ कुछ अउर जमीनी हकीकत के सच्चाई सामने लिया सकीं.
(
त्रिपाठी जी के लेख हम बिना काट छाँट के प्रकाशित कर रहल बानी. अँजोरिया में प्रकाशित हर लेख से हमार सहमत होखल जरुरी नइखे. अँजोरिया संपादक के दायित्व निभावत हमार पूरा कोशिश रहेला कि हर तरह के लोगन के विचार सामने ले आवल जा सके. व्यक्तिगत छीँटाकशी केहू के शोभा ना देव, से हर केहू के चाहीं कि दोसरा के विचार के सम्मान देव आ आपन विरोध प्रकट करे. सम्मान दिहला आ स्वीकृति दिहला में अन्तर होखेला. रउरो आपन विचार लिख भेजीं त ओकरो के प्रकाशित करे में हमरा खुशी होखी बाकिर सब केहू से निहोरा बा कि सामाजिक बहस के सीमा रेखा मत लाँघी. गाली गलौज आ व्यक्तिगत जीवन पर कवनो तरह के टिप्पणी वाला लेख ना प्रकाशित कइल जा सके.
सम्पादक, अँजोरिया)
हमहूँ कुछ कहल चाहतानी
प्रभाकर पाण्डेय
माननीय संपादकजी,
अँजोरिया
सादर नमस्कार.
हम अँजोरिया के नियमित पाठक हईं. अँजोरिया पर आइल लेखन के पढ़ल हमरा बहुते नीक लागेला काँहे की इहवाँ सार्थक अउरी यथार्थ रचनन के परकाशित कइल जाला. कुछ दिन पहिले हम अँजोरिया पर छपल एगो रचना पढ़नी, 'भोजपुरियन के सबले बड़ कमज़ोरी : अंग्रेजी' . ई लेख पढ़ले क बाद हमरा बुझाइल कि वास्तव में आधुनिक जुग में अंग्रेजी के का महत्व बा. गाँव-देहात में पढ़ला क बाद हम मुम्बई आ गइनी बाकिर अंग्रेजी के कम जानकारी होखला क वजह से काम त मिले बाकिर पइसावाला ना. वइसे हम अंग्रेजी में कमजोर ना हईं पर बोलले में जीभिया लड़खड़ा जा. हम आई.आई.टी. ज्वाइन कइनी अउरी इहाँ हमरा बुझाइल की अब बिना अंगरेजी के काम ना चली. काँहे की कवनो अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में शोध-पत्र अंग्रेजिये में प्रस्तुत करे के पड़ेला, बतावे के पड़ेला. कवनो बिदेशी विजिटर आ जाले त उनके आपन काम अंगरेजिये में बतावे के पड़ेला.
खैर छोड़ी. 'भोजपुरियन के सबसे बढ़ कमजोरी- अंग्रेजी' हम पढ़नी अउरी हमरा जवन बुझाइल ऊ ए लेख के सार हम एक लाइन में कहतानी- 'भोजपुरियन के अपन माटी, आ भोजपुरी से त एकदम जुड़ल रहे के चाहीं बाकि अगर ऊ अंग्रेजीओ पर धेयान देहल शुरु क देव लोग त अउरो अच्छा रही. काँहे की आधुनिक समय में अंगेरेजी विश्व-भाषा क रूप में स्थापित हो गइल बिया.'
हम आपके बता दीं की हमरि लगे हमरी पहिचान वालन बचवन (भोजपुरियन) के बहुत सारा रिज्यूम (बायोडाटा) आवेला बाकिर अंग्रेजी के ज्ञान ना होखला से बहुत सारा बचवन के निराश हो जाए के पड़ेला. हम लाख कोशिश करेनीं बाकिर ओतने डिग्री रखेवाला फटाफट अंग्रेजी बोलि के आपन जगहा पक्का क लेने कुलि.
त का भोजपुरिया समुदाय अंगरेजी ना पढ़ि के मजदूरीये करे, रेक्से चलावे?. आगे आवेवाला भोजपुरी पीढ़ीओ एही सब में लपटाइल रहे? अरे भईया भोजपुरी चाहें कवनो भाषा छोड़ले के बाति नइखे होत, इहवाँ बात हो रहल बा कि अगर अंगरेजीओ से जुड़ि जाइल जाव त अउर तरक्की हो जाई. (सकारात्मक सोंची महराज...)
अब कुछ जरूरी बात -
1. 'भोजपुरियन के सबसे बढ़ कमजोरी- अंग्रेजी' के पढ़ले क बाद माननीय अभयजी एकर सही अर्थ नइखन समझि पवले काहें की एह में भोजपुरियन के बात नइखे होत बलुक ओहन के कमजोरी के बात हो रहल बा. माननीय अभयजी, भोजपुरियन क साक्षरता-निरक्षरता के बात नइखे हो रहल!
2. अभयजी आप आलोचना करत समय सकारात्मक सोंच राखी. ई रउरा का कह रहल बानि - 'प्रतिक्रया उचित ना लागल काहे से कि जेकर लेख ओही के साइट' आपके लेख क आलोचना करे क बा कि रचनाकार क? काहें की एह लाइन में आप रचना के ना रचनाकार के आलोचना क रहल बानी, आ उहो असभ्य अंदाज में!
3. 'लेख के रचनाकार लेख में कवना भोजपुरिया लोग खातिर परेशान बाड़े'- अरे महराज अभयजी, का कहल चाह रहल बानी रउआँ? आप जइसन आदमी के इ भाषा?
4. 'एगो भोजपुरिया साहित्य अउर समाज के दर्पण के दावा करे वाला साईट के मालिक अउर भोजपुरिया समाज अउर संस्कृति के आगा बढ़ावे के दावा करे वाला लेखक'- (दावा करे वाला- संपादकजी तनि आपो विचार करीं एह भाषा पर.) अरे भाई रचना के आलोचना ह कि रचनाकार पर कीचड़ उछालल जाता?
अंत में हम इहे कहब कि, अँजोरिया के संपादकजी, आप नीचे लिखले बानीं की त्रिपाठी जी के लेख हम बिना काट छाँट के प्रकाशित कर रहल बानी. (व्यक्तिगत छीँटाकशी केहू के शोभा ना देव, से हर केहू के चाहीं कि दोसरा के विचार के सम्मान देव आ आपन विरोध प्रकट करे. सम्मान दिहला आ स्वीकृति दिहला में अन्तर होखेला)-- ई व्यक्तिगत छीटा-कसी ना ह त का ह महाराज????????
खैर, एगो संपादक भइले क नाते इहो आपके जिम्मेदारी बनेला की सकारात्मक सोंचन के ही प्राथमिकता दीं. अगर केहू कुछ उलजलूल लिख दे त ओके परकाशित नाहिए कइल ठीक रही, भलही उ आपन परिचिते होखे!
एह लेख से ई एकदम स्पष्ट बा की अभयजी के ए लेख से ना बलुक एह लेख क रचनाकार से कुछ व्यक्तिगत परेशानी बा. काँहे की उहाँ का रचनाकारे की ऊपर जेयादे मेहरबान नजर आवतानी. आज क समय में अँजोरिया एगो प्रतिष्ठित साइट बा अउरी ए साइट पर अइसन बातन के जिक्रे ना होखे के चाहीं. वइसे आपके मरजी तो सर्वोपरि बा बाकि एगो पाठक क रूप में हम आपन प्रतिक्रिया दर्ज करावतानी. अगर एह लेख के बिषय इहे रहित पर भासा सभ्य रहित त हमरा खुशी होइत.
सादर धन्यवाद.
प्रभाकर पाण्डेय
एगो पाठक- अँजोरिया
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