भोजपुरी के आत्म रचाव
परिचय दास
हम बरिस बरिस से भोजपुरी में लिख रहल बानीं. एगो सर्जनात्मक कवि के रुप में एह भाषा के आत्मीयता के अनुभूति हमरा बा. हम जानीलें कि रचनाशीलता के समग्र आयाम अपना स्मृति बिंब के मातृभाषा में जेतना शम्भव बा, ओतना अन्य में ना. भोजपुरी हमरा अस्तित्व के संपूर्णता में संभव बनावेले. अंग्रेजी के दबाव के बीच एशियाई मन अपना अभिव्यक्ति के सहज मार्ग के सृजन में सन्नद्ध हऽ. वास्तव में भाषा के चुनाव अपना खातिर एगो दुनिया के चुनाव करे जइसन हऽ. ई योंही ना कि किसानन के आत्महत्या पर चार साल पहिलहीं हम अपना कविता के माध्यम से सब लोगन ले पहिले आपन मंतव्य प्रकट कइलीं. हमार कन्सर्न ओह पाठक या श्रोता से हऽ जहाँ हमार जड़ हवे. शायद संवेदना के तंत्री व सोझ संबंध भाषा के स्रोतस्विनी से हऽ. जब गरीब बदहाली से लड़ रहल होखें आ हमनी के सरजनात्मक विवेक व सक्रियता से विमुख हो जाईल जाँ तऽ हमनी के समूचे अध्ययन, विज्ञान व साहित्य के कवनो अर्थवत्ता नइखे. अपना अपना माध्यम से हम संवेदन के जागृत कर सकीलाँ. मनुष्यता के पक्ष में एतना कइल गइल अति आवश्यक बा. हमार शुरू से मत रहल हऽ कि साहित्य कें अंतःकरण समाज के उपनिवेश नइखे, ओकर संपूरक हऽ. साहित्य वोह तरह के प्रतिक्रिया ना देला, जइसन अन्य अनुशासन देलें. एही से साहित्य समय के अतिक्रांत कइला के क्षमता रखेला.
भोजपुरी के माध्यम से दोसरन के संदर्भ में हम स्वयं के तथा विश्व के संदर्भ में दुसरन के देवता के शक्ति विकसित करीलाँ. आज साम्राज्यवाद अपना पुरान रुप में ना, बल्कि बाजार के पतनशील शक्तियन के रूप में हऽ. यदि हम व्यक्ति व सामूहिक आकाई के रूप में देखीं तऽ समझे के पड़ी कि साम्राज्यवाद कौना भाषायी शकलमें आवेला आ हमार आत्मसंघर्ष कवन आयाम ग्रहण करेला. अपना आर्थिक व राजनैतिक जीवन की प्रक्रिया में कौनो समुदाय एक जीवन शैली विकसित करेला, जवन उप्पर से देखला वोह समुदाय के विलक्षणता से युक्त होला. समुदाय के लोग आपन भाषं, आपन गीत, नृत्य, साहित्य, धर्म, थियेटर, कला, स्थापत्य आ एक अइसन शिक्षा प्रणाली विकसित करेलें, जवन एगो नया सास्कृतिक जीवन के जनम देला. संस्कृति सौन्दर्यपरक मूल्यन के अवधारणा के वाहक होले.
भोजपुरिहा मनइन द्वारा खुद के संबंध के विश्व के साथे देखल जाइल कवनों यांत्रिक प्रक्रिया नइखे, जवन आर्थिक ढाँचा के माध्यम से राजनैतिक तथा अन्य संस्था के उदय के साथे व क्रमिक रूप से संस्कृति, मूल्य, चेतना आ अस्मिता के उदय के साथ सुव्यवस्थित चरण आ छलाँग में घटित होखे. संघर्षशील वर्ग आ राष्ट्र खातिर शिक्षा मुक्ति के उपकरणो हऽ. ई परस्पर विरोधी संस्कृतियन के बीच अपना विवेकशील विश्वदृष्टि के वाहकऽ. पश्चिमी किसिम के सभ्यता, स्थिरता आ प्रगति के बिल्कुल वोही रुप में स्वीकार कइला के चेष्टा अंततः भोजपुरी मानस के आपन उपनिवेश बना लेई. अपना जड़ के महत्ता बचा के राखे के चाहीं.
ई हम बिल्कुल ना कहि सकीलाँ कि हमार भोजपुरी कविता खाली कवियन खातिर बा. ई सही हऽ कि हम एगो कवि के रूप में जी लाँ, बाकिर सिरिफ कवि के रुपे में ना. हमरा मन में एक संवेदनशील मनुष्य के समता मूलक समाज के कल्पना हऽ, किन्तु हमार साहित्य नारा नइखे. सर्जनशीलता कऽ हेतु अंततः संवेदना व चेतना हऽ. निवासी व प्रवासी के रुप में भोजपुरी लोग समूचा विश्ववितान रचले बाड़न. मारिशस में अपना खून पसीना से गंगा व ओकर संस्कृति रचले बाड़न. सूरीनाम, नेपाल, गुयाना, त्रिनिडाड, फिजी, दक्षिणी अफ्रीका इत्यादि देशन में अपना श्रम से पुष्प खिलवले बाड़न्.
हम सभे जानी लाँ कि उधार लीहल भाषा आ दुसरन के अंधानुकरण से अपना साहित्य आ संस्कृति रचल विकसित कइल संभव नइखे. हम भाषाइ रुप से कब्बो कट्टर नइखीं जा. लाजे से कि हमनी के मानल ई हऽ कि भाषा आ साहित्य के बीच सांवादिकता बनल रहे के चाहीं. अपन वाचिक आ लिखित परंपरा के गर्भ से रत्न उत्खनन खातिर अब तऽ चेष्टाशील होइये जाये के चाहीं. संस्कृति के विविध क्षेत्रन में पुनर्जागरन के अगाध सृष्टि होखे के चाहीं. भाषा के भण्डार विज्ञान, दर्शन, तकनीक व मनुष्य के अन्य प्रयासन खातिर खोलल आवश्यक हऽ. शब्द कौतुक एक कला हऽ, किन्तु संस्कृति के प्रवाह शब्दन में मात्र अमूर्त सार्वभौमिकता से संभव नइखे. यदि हमनी के वास्तव में चाहऽतानीं जा कि हमनि के शिशू व हमनी के स्वयं के अभिव्यक्ति के लय प्रकट होखे तथा प्रकृति के साथ हमनी के रचाव के संवर्द्धन होखे तऽ मातृभाषा के सर्जना पर बल आवश्यक हऽ. ई कार्य अंधविचार से परिचालित ना होखे के चाहीं. अपना भाषा आ परिवेश के बीच स्थापित सामंजस्य के प्रस्थान बिंदु मान के दूसरो भाषा सीखल जा सकल जालीं. अपन भाषा, वय्क्तित्व आ अपना परिवेश के बारे में कौनो ग्रन्थि पलले बिना अन्य साहित्य व संस्कृति के मानवीय, लोकपरक व सकारात्मक तत्व के आनंनद उठावल जा सकल जाला. अपना व विश्व के दुसरा साहित्य भाषा से हमनी के रिश्ता रचनात्मक होखे न कि दबाव भरल या उपनिवेश परक. अंततः हमनी के अपन स्मृति व बिंब के सार्थक आधार अपने भाषा में संभव हऽ. समकालीन चिंतन व भंगिमा के अपना माध्यम से जेतना प्रकट कइल जा सकल जाला, अन्य से ना. एही से ई समकाल के भी उचरला के विशिष्ट पथ हऽ. वईसहूँ, परम्परा आ समकालीनता के बीच स्वस्थ संबंध होखे के चाहीं, जवन मूल से ही संभव हऽ.
भोजपुरी के संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल कइल न केवल शब्दिक बिंब के रूप में आत्म व जनसंघर्ष के रचनात्मक चेतना के स्वीकृति हऽ, अपितु संसकृति के आत्म पहचान भी. एसे गर्भ ले चहुँपि के रत्न के उत्खनन के संभावना अउरी प्रबल होखी.
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परिचय दास : एक परिचय
जन्मस्थान :
ग्राम : रामपुर काँधी देवलास,
तहसील : मुहम्मदाबाद, गोहना,
जनपद : मऊ.
साहित्य-संस्कृति खातिर 1996 में भारतीय दलित साहित्य अकादमी के सम्मान से सम्मानित.
साहित्यकार, भोजपुरी लोकगायक, चित्रकार, नाट्यकर्मी. संस्कृति-चिन्तक.
हिन्दी में प्रथम श्रेणी से एम॰ए॰ कईला का बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय से यूजीसी के फेलो रहत पीएच॰डी॰ उपाधि प्राप्त. भोजपुरीमें पाँच गो कविता-संग्रह पहिलहीं प्रकाशित हो चुकल बाड़न, जिनकर शीर्षक बा -
एक नया विन्यास (2004)
पृथ्वि से रस लेके (2006)
चारुता (2006)
युगपत समीकरण में (2007)
संसद भवन की छत पर खड़ा हो के (2007)
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार डा॰सीताकान्त महापात्र के सर्जनात्मकता पर केन्द्रित "मनुष्यता की भाषा का मर्म" आलोचना पुस्तक संपादित (सन 2000). भारत के उत्तरप्रदेश, बिहार, आ नेपाल में फईलल थारु जनजाति का बीच सक्रिय रहलन आ "थारू जनजाति की सांस्कृतिक परम्परा" पुस्तक के लेखन कईलन. साहित्य, संस्कृति, फिल्म, कला, इतिहास, लोकसाहित्य, पत्रकारिता, समाजशास्त्र, शिक्षा, नाटक आदि में रचनात्मक हस्तक्षेप. कई पत्रिका, पुस्तकन के संपादन आ लेखन.