नूरैन अंसारी के 17 गो कविता
(1)
जमाना के रीत
अब त हर जगे रीत इहे दोहरावल जात बा,
गरीबी के अमीरी से दबावल जात बा.
काल्ह कही मुंह खोल न दे इंसाफ, कोर्ट में,
एकरा पहिले ओही पर पईसा लुटावल जात बा.
सात फेरा के बंधन के लालच में बेच के,
दहेज़ खातिर दुलहिन के जरावल जात बा.
उहे लोगवा देत बा अक्सर अब धोखा,
जेकरा खातिर खून-पसीना बहावल जात बा.
ना बड़ में बड़प्पन, ना छोटका में लेहाज़ बाँचल,
अब त डांस बार घरघर में बनावल जात बा.
'नूरैन' एके खूनवा में धरम के रंग मिला के,
भाई के भाई से खूबे लडावल जात बा.
(2)
बाढ़ अउर सुखाढ़
कुछ बाढ़ ले गइल, कुछ सुखाड़ ले गइल.
बाकी बचल तवन महंगाई झाड़ ले गइल.
कुछ उम्मीद रहे सरकार से जनता के भलाई के,
कोटा आईल लेकिन रसुखवाला उतार ले गइल.
अब त बा घर में ना राशन, ना पाकिट में पइसा,
ई सीज़न बढ़िया बढ़िया आदमी उजाड़ ले गइल.
आ जाला अंखिया में आंसू देख के खेतवा के दशा,
ख़ुशी छीन के सावन, भादो, अषाढ़ ले गइल.
कब से पढ़ लिख के घूमत रहलें बाबू बेरोजगार,
पेट के आग के खातिर कइल चोरी तिहाड़ ले गइल.
कइसे पार लागी हे भगवान अब जिनगी के गाड़ी,
आइल अइसन बिपत कि मुंह के आहार ले गइल.
(3)
बिश्वास के धग्गा
टूटत बा बिश्वास के धग्गा, बहुते जल्दी टूटत बा.
गैर लोगवा आपन होता, आपन लोगवा छूटत बा.
जरत बा रिश्ता के दिया अब मतलब का तेल से,
गरज न होखे पूरा त लोग बात-बात में रुसत बा.
घर के बात बतावल जाता दोसरा गावं के लोग से,
तीसरा क चक्कर में पड़ के दोसरा के घर फूटत बा.
मत पूछी त बढ़िया होई, अब हमदर्दी के बात,
शादी अउर सराधे में अब हित नात भी जुटत बा.
कहे के लोग आपन बा बाकिर काम पराया के बा,
एह कलयुग में बाप के हाथे, बेटी के इज्जत लूटत बा.
(4)
गउवा हमार
लागे ना निक तनको शहर में आके.
हार गईनी मनवा के लाख समझा के.
पर बही जाला अंखिया से लोरवा के धार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.
भूललो से भूले नहीं बचपन के दिनवा.
नाचेला अंखिया के आगे हर सीनवा.
तब चाहे पड़े लूः चाहे पड़े खूब ठंडा.
बंद नहीं होखे कभी आपन गुली-डंडा.
आवते ही फागुन खूब होखे ठिठोली.
दादी, चाची, भौजी सबे से खेली सन होली.
दूपहरिया में जाई सन गउवा के ओरा.
बाबू साहब के बगीचा में तुडे टिकोड़ा.
शाएद अहिसन दिन कवनो जाव न खाली.
चिडअवला पर धोबिनिया देव न गाली.
दशहरा में भाई हो डाईन के डर से.
माई भेजो काजर लगा कर के घर से.
केकरा घरे कहिया आई-जाई बारात.
भले याद ना रहे सबक मगर ई रहे याद.
वो दिन स्कूल से १२ बजे आ जाईसन भाग के.
फिर देखिसन नाच खूब, रात भर जाग के.
भले एकरा खातिर खाइसन आगिला दिने मार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.
फ़ोन नाही रहे तब लिखल जाव पतिया
. गउवा के सीधा-सादा लोगवा के बतिया.
हो जाव कबो कहा सुनी खेतवा के मेढ़ पर.
वोकर होखे पंचायत बड़का पीपल के पेड़ तर.
तबो लोग में होखे झमेला पर मिटे ना भाईचारा.
तनी आसा बात पर जूट जाव गाँव सारा.
वो बेरा जवार में हमार गावँ रहे अईसन अकेला
. जहा लागे रामनवमी,मुहर्रम आ तेरस के मेला.
सुस्ताव लोग गर्मी में फुलवारी में जाके.
ओही जग लेटे लो पेड़ तर गमछा बिछा के.
आवे जब परब छठ, पिड़ीया, जिवितिया.
मेहरारू सब गाँव के गावसन गीतिया.
जवन आनंद मिले गवुआ के खेत-खलिहान में.
उ बात कहा बाटे शहर के पार्क-उधान में.
अब त चमक धमक ये शहर के लागेला खाली-खाली.
खिचेला हमरा मन के डोर फिर गाँव के हरियाली.
कहे, का हो तू भूला गईल अ जनम-धरती के प्यार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.
(5)
नईहरवा छोड़े के पड़ी
पियवा के घरवा से नाता एक दिन जोड़े के पड़ी
केतनो बढ़िया होईहें नईहरवा, बाकिर छोड़े के पड़ी.
आखियाँ झर-झर लोर बहाई.
जिअरा रहि-रहि के पछताई.
बतिया बिछ्ड़ल सखियन के,
मन के याद हमेशा आई.
हंस-हंस अंखिया के लोरवा, बटोरे के पड़ी.
केतनो बढ़िया होईहें नईहरवा बाकिर छोड़े के पड़ी.
माई बाबुजी के प्यार.
भईया भाभी के दुलार.
कईसे भूल जाई मनवा,
छोटका छोटकी से तकरार.
करेजवा के टुकडा से मुंह आपन मोड़े के पड़ी.
केतनो बढ़िया होईहें नईहरवा, बाकिर छोड़े के पड़ी.
जब छूटी बचपन के निशानी.
लागी सगरी दुनिया बिरानी.
पर निभावे के पड़ी हर हाल में,
दुनिया के दस्तूर पुरानी.
फूलवा ससुरारी के बगिया के लोढे के पड़ी.
केतनो बढ़िया होईहें नईहरवा, बाकिर छोड़े के पड़ी.
(6)
केतना बदल गइल ज़माना.
ना रहल पुरनका लोग, ना रहल जुग पुराना.
भरल बाज़ार में झूठा मारे, सच्चाई पर ताना.
केतना बदल गइल ज़माना.
लड़की राखे केश छोटा, लडिका राखस लम्बा.
लव मैरिज़ के घटना पर लोग के होखे न अचम्भा.
बीतल जुग चिठ्ठी के, जबसे आइल बा मोबाइल.
कम कपड़ा में बाहर निकलल बनल बा स्टाइल.
लाज शरम के रीत हो भईया हो गइल पुराना.
केतना बदल गइल ज़माना.
धरम के दुकान चलावे लागल इहाँ अधर्मी.
संस्कार के शिक्षा देबे लागल बा बेशर्मी.
पूजा पाठ के बेरा चलेला हर घर में अब टीवी.
मरद सम्भारस चुल्हाचउका, बेडे पसरस बीबी.
मंदिर-मस्जिद में बाजेला रोज फ़िलिम क गाना.
केतना बदल गइल ज़माना.
ख़तम भइल मन क नगरी से मोह-माया आ प्यार.
एके गो आगन में उठल जबसे कई कई गो दीवार.
अब त औरत करे नौकरी मरद अगोरस घर के.
बाबू जी से पहिले बेटी खोजेली अब वर के.
हर क्षेत्र में मरद से आगे होगइली जनाना.
केतना बदल गइल ज़माना.
(7)
नेताजी
दिन भर में दस हाली धांगत बाड़न गाँव.
केहू के चुमस माथा, केहू के छुअस पाँव.
केतना बदल गइलन नेताजी, आवते चुनाव.
हाथ जोड़ के वोट खातिर कइसे घिघियात बाड़े.
लोग देत बाटे गाली तबो ऊ खिखियात बाड़े.
जनता के बात पर नाही तनको खिसियात बाडेन.
इ उहे हउवन काल्ह तक जेकर गजबे रहे भाव.
केतना बदल गइलन नेताजी आवते चुनाव.
झकले ना एको हाली, गइलें जब से जीत के.
चिन्हले हमेशा अपना रिश्तेदार, अपना हित के.
भुल गइलन साफा ई राज-धरम के रीत के.
आज पड़ल जब जरूरत त करत बाड़ें छाव.
केतना बदल गइलन नेताजी आवते चुनाव.
कइलें ना काम कभी जन-प्रतिनिधि के.
थमले इ डार हरदम हरिहर ओधि के.
आज दोष सगरी देत बाडेन अपना बिरोधी के.
लहावत बाडेन जीते खातिर एक से एक ई दाँव.
केतना बदल गइलन नेताजी आवते चुनाव.
(8)
उधार के जिनगी
ना रोअले रोआत बा, ना हंसले हसात बा.
मत पूछी बोझ जिंदगी के, कईसे ढोआत बा.
कर देहलस बेभरम महंगाई आदमी के,
उधार लेके जिनगी के गाडी खींचात बा.
कबो बाढ़ आइल त कबो सुखाड़ ले गइल,
खेत त हर साल निमने बोआत बा.
अब त मुंह फेर लेत बिया अपने मेहरारू,
पॉकेट में जइसे पईसा ओरात बा.
आजकल समझे ना केहू मजबूरी आदमी के,
कहत बा अच्छा बुरा जेकरा जवने सोहात बा.
ना निमने में जश बा, ना बउरे में बरकत,
सरसों खाँ कोल्हू में आदमी पेरात बा.
(9)
बेटी
बड़ा भाग्य से घर में होला बेटी के अवतार.
लक्ष्मी मान के पूजा करऽ, मत समझऽ तू भार.
दोसरा घर के सम्पत हई तहरा घरे ना रहिहन.
उठते डोली इनकर ई एक दिन सपना हो जइहन.
चल जइहेन फेर छोड़ के तोहार घर आ संसार.
बड़ा भाग्य से घर में होला बेटी के अवतार.
हर केहू ए दुनिया में आपन भाग्य लेके आवेला.
खरचा नाहीं केहू के, दोसर केहू चलावेला.
सबकर दाता उहे हउवन जेकर बा महिमा अपार
. बड़ा भाग्य से घर में होला बेटी के अवतार.
ई संसार के जननी हई, मत रउवा दुत्कारी.
बेटी के बिपत समझ के ताना कबो ना मारी.
बबुनी के भी बबुआ खानि करत रही दुलार.
बड़ा भाग्य से घर में होला बेटी के अवतार.
(10)
संस्कार के दशा
निमने बतिया लोग के ख़राब लागत बा.
धतूर जइसन कडुआ गुलाब लागत बा.
करीं झूठे बड़ाई त खुश बा लोग,
साँच बोलला पर मुंह में जाब लागत बा.
बाबू माँगत बाडेन बुढऊ बाबू जी से पानी,
अब त बाप नौकर आ बेटा नवाब लागत बा.
मुंह मारी एईसन ज़माना के भाई,
जेईमें लोग के अमृत से बढ़िया शराब लागत बा.
मत पूछी त बढ़िया होई संस्कार के दशा,
बबुनी के भर देह के कपड़ा ख़राब लागत बा.
लद गईल जुग ईमानदारी के "नूरैन"
अब त पाई-पाई के भाई में हिसाब लागत बा.
(11)
दाल दुर्लभ हो गईल
लोग रखे लागल रसोई में सोना खान सम्भाल के.
कबो बन जाला हित-नात के अईला पर निकाल के.
बढ़ गईल भाव जब से भाई हो दाल के.
टूटल जोड़ी दाल-भात-सब्जी के,बितल युग पुराना.
रोक ला गईल स्वाद पर आईल एईसन ज़माना.
बड़ा मुश्किल से कबो दर्शन इनकर हो जाला.
ना त धनी-मनी लोग के ही रोज इ भेटाला.
आजकल अटावल जाता घर-भर के पानी खुबे डाल के.
बढ़ गईल भाव जब से भाई हो दाल के.
जहा देखअ वही जग लोग गुण दाल के गावत बा.
दाल के महिमा के आगे हर केहू सर झुकावत बा.
कहल बा की दाल के दर्शन के बिना हर भोजन बा सुना.
लेकिन दर्शन दुर्लभ हो गईल जब से दाम भईल दुगुना.
लागत बा इनाम महंगाई में इ जीत लिहेन साल के.
बढ़ गईल भाव जब से भाई हो दाल के.
(12)
लाजवाब लागे लू
कबो चम्पा, कबो चमेली, कबो गुलाब लागे लू.
नया बोतल में रखल पुराना शराब लागे लू.
अईसे त हर अदा में तू हमके निक लागे लू
मगर जब हँसे लू त तू लाजवाब लागे लू.
तहरा महक से गमकेला पतझड़ में फूलवारी,
गौर से देखला पर तू मदिरा के तालाब लागे लू.
जब केश तहार लहराला त घिर जाला बदरी,
बलखा के चले लू त नागिन के हिसाब लागे लू.
सावली सूरत, मोहनी मूरत, कोयल जइसन राग,
तू कौनो कवि के कल्पना के सुंदर किताब लागे लू.
(13)
जिन्दगी परदेशी के
दिल रोवेला, अंखिया से बहेला आंसू.
कुछ देर अउर ठहर जाए के, कहेला आंसू.
पर हालात के आगे बेबस, मजबूर होखेलें.
जब एक परदेशी अपना घर से दूर होखेलें.
मत पूछी केतना निर्मम होला घर छोड़े के दुःख.
माई, बाबूजी औलाद से आपन मुंह मोड़े के दुःख.
त्याग जनम-धरती के हर त्याग से बड़ ह.
पर भूख पापी पेट के हर इच्छा के जड़ ह.
उ जीवन में कुछ कर गुजरे के लालसा से भरपूर होखेलें.
जब एक परदेशी अपना घर से दूर होखेलें.
बितल बतिया बचपन के रोके ले हमरा पांव के.
किरिया खियावे हमसे की मत छोड़अ अपना गांव के.
मगर मजबूरी इन्सान के हर किरिया पर भारी ह.
लेखा-जोखा जीवन के भगवन के चित्रकारी ह.
फर्ज से केहू के बाप, भाई, बेटा त केहू के सिंदूर होखेलें.
जब एक परदेशी अपना घर से दूर होखेलें.
(14)
आ गइल बसंत
सर्दी, ठिठुरन, कँपकँपी के बीतते तुरंत.
ओस, पाला, शीतलहरी, के होते ही अंत.
झुमत, गावत, हंसत हँसावत आ गइल बसंत.
मोजर धइलस आम पर, गमके लागल फुलवारी.
खेत सजल सरसों के, जईसे कौनो राजकुमारी.
झडे लागल पत्ता पुरनका, फूटे लागल नया कपोल.
साँझ सबेरे सुने के मिले, कोयल के मीठे बोल.
जब बहे बयरिया पुरवईया, फसल खेत लहराय.
देख के सफल मेहनत आपन,खेतिहर खूब अगराय.
जईसे साधना सफल भइला पर खुश होखस संत.
झुमत, गावत, हंसत हँसावत आ गइल बसंत.
चूमे माथा धरती के उगते किरिनिया भोर में.
चादर हरियाली के पसरल गँउआ के चारू ओर में.
रतिया भी लागे सुहावन, निमन लागे धुप भी.
हल्की ठंडी, हल्की गर्मी से बदलल मौसम के रूप भी.
खटिया में गुटीयाइल बुढऊ, खड़ा भईलेंन तन के.
ये रंग-गुलाल के मौसम में, चहके चिरई मन के.
पंख लगा के इच्छा सबकर, उड़े चलल अनंत.
झुमत, गावत, हंसत हँसावत आ गइल बसंत.
(15)
पइसे माई-बाप बा
पइसा के बिना जिनगी, जिअल अभिशाप बा
सच कही, त पइसे बा धरम, पइसे माई-बाप बा.
पइसा ना होखे त, अपनो पराया बा.
पइसे से प्रेम, पइसे से मोह-माया बा.
पइसे से चलत बा सगरी रिश्तन के गाडी.
लोग पइसे से होशियार बा,पइसे बिन अनाडी.
बिक जाला पइसा पे अनमोल ईमान.
पइसे खातीर आदमी बन जाला शैतान.
अगर पाकेट में बा पइसा त सात खून माफ बा.
सच कही, त पइसे बा धरम, पइसे माई-बाप बा.
अवगुण भी पइसा वाला के गुण लागेला.
पइसा खातिर पाप कइल भी पुन लागेला.
हर समय पइसा के महिमा अपरंपार बा.
अमीर गरीब सबके पइसे से प्यार बा.
आदमी के पइसे बनावेला दरिद्र अउर दानी.
मिटी ना कबो दुनिया से पइसा के कहानी.
'नुरैन' जिनगी के हर मोड पर पइसे के छाप बा.
सच कही, त पइसे बा धरम, पइसे माई-बाप बा.
(16)
हँसे के खरमास
दुख ए दुनिया में केकरा पास नइखे.
बाकिर हर केहू रउआ खान उदास नइखे.
ज्यादा सोचेब त तिल ताड़ बन जाई.
चार दिन के जिनगी पहाड़ बन जाई.
बताई ना ख़ुशी के, केकरा तलाश नइखे.
बाकिर हर केहू रउआ खान उदास नइखे.
सबर करेब त रात भी बिहान हो जाई.
आ बेसब्री में ख़ुशी भी जियान हो जाई.
केकरा मन में अशांति के निवास नइखे.
बाकिर हर केहू रउआ खान उदास नइखे.
मत चिंता से चेहरा के चमक बिगाड़ी.
डगरे दी लाहे-लाहे जिनगी के गाड़ी.
हँसे खातिर कवनो मास में खरमास नइखे.
बाकिर हर केहू रउआ खान उदास नइखे.
(17)
कहत बाड़ी मंगरू के माई
छाती पीट पीट कहत बाड़ी मंगरू के माई -
आ ई हो दादा अबकी बार ले डूबल महंगाई.
आ ई हो दादा अबकी बार ले डूबल महंगाई.
केतनो काटी पेट पर बाचे ना एको पाई.
ना जियले में जश बा ना मुवले में भलाई.
छाती पीट पीट कहत बाड़ी मंगरू के माई.
पता ना कवना पार्टी के भइल बाटे शासन.
महंगा भइल दाल-सब्जी, कोटा में नइखे राशन.
अइसन आग महंगाई के लागल बा सामान में.
कि हिम्मत नइखे करत कबो, जाये के दुकान में.
चारू ओर लूट खसोट के बाजत बाटे बाजा.
लोग हड़प के धन गरीब के हो जात बा राजा.
साधू के भेष में लोगवा बन गइल कसाई.
छाती पीट पीट कहत बाड़ी मंगरू के माई.
पईसा वृधा-पेंशन के रास्ता आपन भुलाइल.
बीपीएल क सूची में हमार नाम नाही आइल.
हर काम में पईसा चाही घूस के बाज़ार बा.
बिना सोर्स के दउड़ल धूपल सब कुछ बेकार बा.
मन के पीड़ा मन में लेके डहकत बाटे जिअरा.
घर में आग लगावत बा जे रहत बाटे निअरा.
बिना काम के लोगवा दिन भर करत बा कुचराई.
छाती पीट पीट कहत बाड़ी मंगरू के माई.
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नूरैन अंसारी
ग्राम - नवका सेमरा, पोस्ट - सेमरा बाज़ार,
जिला - गोपालगंज (बिहार)
(नूरैन अंसारी के ई सगरी कविता दुनिया में भोजपुरी के पहिलका वेबसाइट anjoria.com के पुरनका संस्करण में प्रकाशित भइल रहली सँ. तब अंजोरिया एचटीएमएल में बनावल जात रहुवे.बाद में जब वर्डप्रेस के सुविधा मिल गइल तब नयका संस्करण वर्डप्रेस में बनावल जा रहल बा. पुरनका संस्करण के सामग्री गँवे गँवे एह ब्लॉग पर अंजोर कइल जात रहेला. अबहियों बहुत कुछ बाकी बा. एहसे आवत जात रहीं.
- संपादक)
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