शनिवार, 16 नवंबर 2024

बहुधा शब्द जब

 

बहुधा शब्द जब



परिचय दास

हम विश्वविद्यालय प्रेक्षागृह में
बइठल रहलीं.
आइल रहलीं अज्ञेय जी.
ऊ करुणामय बुद्ध के निवेदित
अपना कविता के
कइलीं पाठ.
हमरा बगल में बइठल
सज्जन हमरा से बोललें -
"वात्स्यायन जी के सुनत
अइसन लगऽता, जइसे
मौन शब्द बन गइल होखे."
वात्स्यायन जी के
मौन प्रसिद्ध हवे.

साहित्य अकादमी में भइल व्याख्यान,
विषय रहल - "संगीत व विचार".
संगीत के संबंध जइसे राग व छंद से हऽ
वइसहीं हवे मौन से.
वात्स्यायन जी के मौन
ऊहवों चर्चा के केन्द्र में
उपस्थित भइल.
मौन कौनो
निठल्ला के इतिश्री नइखे -
ऊ सकारात्मक क्रिया के
सहज पूर्व भूमिका हवे.
बहुधा शब्द जब आपन
गति खो देलें
तऽ मौन मुखर होला.
का खाली शब्दवे हमनी के
विचारन के
अभिव्यक्ति देलें?
देखीं तऽ
भावमुद्रा शब्दन से अधिक
बलवती आ
वेगवती होलीं.

बिहारी के नायिका
"भरे भौन में नैनन ही सौं बात"
करेले.

कहला के अंदाज देखीं -
"कहत नय्न रीझत -खिझत
मिलत-खिलत लजियात,
भरे भौन में करत है
नैनन ही सौं बात."
सन्नाटा
के एगो
छंद होला.
एगो छंद
मौन कऽ.
मौन में
अपंगता ना होले -
यानी
समर्थ के
मौन फबेला.
बिल्कुल चुपचाप
घाघरा के तट पर
साँझ की वेला में
निकरि पड़ीं लाँ.
शब्दहीन
हम चहलकदमी कर रहल हईं
कि कौनो लइका
(बड़हलगंज चाहे दोहरी घाट में से
कहीं के होखीं)
विरहा टेरऽता -

"बलुआ रेतिया डगरिया चलब कइसे."

बालू के रेत
भगवान भास्कर के
रश्मि से
तरइन जइसन
चमक रहल बा.
मिनिट
दो मिनिट बादे सुरुज देवता
भारत से अमरीका के यात्रा पर
चलि जइहें.

हम अपलक
देख रहल बानीं -
एतना सोना !
रश्मिस्वर्ण !!
बजारी के सोना के
मूल्य जेतना होखे,
ई सोना तऽ
अमूल्य हवे!

आजु पेशेवर विचारक
बहुमूल्य विचार देलें
बाकिर अमूल्य ना !...
किन्तु महज विचारन से
का होई ?
समकालीन दुनिया के
संकटे ई बा कि
विचार आ कर्म के
सामंजस्य नइखे.
शुभ आ लाभ के
नइखे समन्वय.
एही से किताब
पुस्तकालय में परल
कराह रहल बाड़ीं
आ विचार कर्महीनता के
चक्रव्यूह में.

बड़ बूढ़ बतावेलन् कि
सिद्ध जन बहुत अच्छा
ना देलें भाषण.
ऊ जेवन बोलेलन्
ओप्पर चलला के करेलन् प्रयास.
एही से उनकर
शब्द 'ब्रह्म' बनेला.
ब्रह्म कवनो वायवी अवधारणा तऽ बा ना.
ऊ तऽ
हमनी के
आत्मीय जरुरत हवे -
जइसे
शब्द.
जइसे
मौन.

एह संसार में
जवन कुछ
मंगल
या
शुभ हवे :
ओकर
एगो छन्द होला

माघ के कुहासा
छेंक लेला रस्ता.
हम ओके
पार कइला के
कोशिश करिलाँ !
रात में
बइठी लाँ तऽ
बुढ़िया माई साग-भात
देली खाये के.
हम ओके बोरसी पर
गरम करे के
कही लाँ.
हम कउड़ा का लग्गे
बइठ जाईलाँ.
तब ले घर भरन
आवेलन्
अवते
कुछ कहे के होलें.
हम जानीलाँ
कि ऊ गाँव भर के
बाति के खबर रखेलें.
कुछ लोग उनके नारदो कहऽ लें.
ऊ कहलें -
"अरे, बाबू सुनि लाँ कि
परमुआँ के घर में
'हुँड़ार' आइल रहे."
उनके 'हुँड़ार' शब्द पर
जोर देते
हम समझि गइलीं
कि मामला कुछ अऊर हऽ.
हम मौने रहलीं.
ऊ फेरू कहे शुरू कइलें -
"देखऽ न, गाँव में ईहे आजकल
हो रहल बा.
अब मनई के
कइसे बची इज्जति ?"

दूसरा दिने केहू
हमरा के बतवलस
कि खुद घरभरने परमुआँ के घरे में
घुसल रहलें.
हम सोचलीं :
शब्दन से
धोखेबाजी अइसहीं
कइल जाला :
"हम नाम भी लेलाँ
तऽ हो जाईलाँ बदनाम.
ऊ कतल भी करेलें
तऽ चर्चा नाहीं होला."
मारीचो लेले रहल
शब्द के सहारा.
वाक्छल के सहारा
'अश्वत्थामा' के केस में भी
लिहल गइल रहे.
अगर एही के आश्रय
ना लिहल गइल होइत
तऽ बाति ई ना कहित :
'कारन कवन नाथ मोंहि मारा.
मैं बैरी, सुग्रीव पियारा.'

ई कहि के
हम मारीच चाहे बालि के
वकालतनामा
नइखीं पेश करे जात.
वइसे
माइकेल मधुसूदन दत्त मेघनाद के
पक्ष लिहले रहलें.
हम तऽ सिरिफ
शब्दन के
आचार-विचार के
प्रश्न
खड़ा कर रहल बानीं.

हमनी के उपस्थिति
शब्दन के बाहरी कलेवर ले खाली
ना होखे के चाहीं.
हमनी के ओकर
'न्यूक्लियस' (अभिकेन्द्रक )
पहिचाने के चाहीं.
शब्दन के छलना-वर्जना के
एगो सात्विक प्रतिक्रिया
देवे के चाहीं.
सबसे निम्मन हऽ :
मौन के मधु बना लीहल -
मौन मधु हो जाय.

बाति आ अपने बीच के
तटस्थता
जरूरी बा.
वात्स्यायन जी
अपना व देवता के बीच में
ओट रखला के
बाति कइले रहलीं.
आजु देवता लोगन के प्रति
नयी दीठ बन रहल बा.
उपनिषद् में एक जगह
'तर्क' के गुरु मानल गइल बा.
आधुनिका युग के 'नया देवता'
की भूमिका में
'चिरंतन दृष्टि ' ही हो सकेले.
शमशेर बहादु सिंह के शब्द लिहल जाव तऽ -
'बात बोली, हम ना
भेद खोली बतिए' .

हम शब्द आ मौन के द्वन्द्व में
परि के सैकत भूमि पर न जाने
निकरि अइलीं कहवाँ !
कुछ लोग कह सकेलें
कि जहाँ न पहुँचे रवि
उहाँ पहुँचे कवि....
किन्तु
हम तऽ अइसन जगह देखले बाड़ीं
जहाँ न कवि पहुँच पावेला
न रवि !
सरयू के तट पर
बनल मल्लाहन आ पंडन के
घरन देखीलाँ ...
सीलन भरल ....
न इहवाँ
कब्बों कवि पहुँचल हऽ
न रवि.

बालू
के चमकत
कण-राशि
उनके आमंत्रण देलीं.

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