शनिवार, 16 नवंबर 2024

कुछु समसामयिक दोहा

 कुछु समसामयिक दोहा


मुफलिस



देइ दोहाई देश के, लेके हरि के नाम. 

बनि सदस्य सरकार के, लोग कमाता दाम. . 


लूटे में सब तेज बा, कहां देश के ज्ञान. 

नारा लागत बा इहे, भारत देश महान. . 


दीन हीन दोषी बनी, समरथ के ना दोष. 

सजा मिली कमजोर के, बलशाली निर्दोष. . 


असामाजिक तत्व के, नाहीं बिगड़ी काम. 

नीमन नीमन लोग के, होई काम तमाम. . 


भाई भाई में कहां, रहल नेह के बात. 

कबले मारबि जान से, लागल ई हे घात. . 


नीमन जे बनिहें इहां, रोइहें चारू ओर. 

लोग सभे ठट्ठा करी, पोछी नाहीं लोर. . 


अच्छे के मारी सभे, बिगड़ल बाटे चाल. 

जीयल भइल मोहाल बा, अइसन आइल काल. 


पढ़ल लिखल रोवत फिरस, गुण्डा बा सरताज. 

अन्यायी बा रंग में , आइल कइसन राज. . 


सिधुआ जब सीधा रहल, खइलसि सब के लात. 

बाहुब ली जब से बनल, कइलसि सब के मात. . 


साधू, सज्जन, सन्त जन, पावसु अब अपमान. 

दुरजन के पूजा मिले, सभे करे सनमान. . 


पइसा पइसा सब करे, पइसा पर बा शान. 

पइसा पर जब बिकि रहल, मान, जान, ईमान. . 

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मुफलिस,

चौधरी टोला, डुमरांव, बक्सर, पिन-802119,

बिहार


(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर भइल रहल ई रचना.)


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