शनिवार, 16 नवंबर 2024

भोजपुरी बिहुला अउर आजु के रचना संकट

 

भोजपुरी बिहुला अउर आजु के रचना संकट




परिचय दास

बिहुला कथा चाहे जेतनी पुरान होखे
कहीं ना कहीं
हमनी के आधुनिक व उत्तर आधुनिक मन के छुवेले.
एम्में स्मृति, संशय व किंवदंती हऽ
साथे-साथे
प्रातःकाल के दक्षिण मलयानिल सुगंध.
किंवदंती खाली मिथ्या लोके
रचत होखें - अईसन ना.
ओम्में हमनी आपन जय-पराजय
उत्साह-बेकली, सच-झूठ
सब देख पावल जाला.

बिहुला !गो लावण्यमयी बाला.
कथा के कथात्मकता बुने खातिर
कौनो एक सूत्र चाहीं -
नारियल के रेशा जईसन.
सो, एक भइलन चंदूशाह - दिल्ली निवासी
आ दूसर भईलन विषहर.
आगे के कथा-पात्र स्वयं
आपन परिचय देत चलिहें.

विषहर हमनी के दैनंदिन जिनिगी का ऊ पृष्ठ हवे -
जेप्पर दिनवो राति जइसन उगेला.
सच्चों, कामना अनन्त होलीं
अउर जरूरी ना कि ऊ पॉ्रसन्नवदना होखें.
विषहर चंदूशाह के विरुद्ध
षड्यंत्र करत रहेला.

बिहुला श्यामपरी के मानवी रूप हऽ.
वोह परी के भला का पता रहल होई
कि ई दुनिया एतनी कुत्सा
आ कुण्ठा से भरल होई.
बिहुला चीनानगर के
चीनाशाह के इहाँ जन्म लेहली.
न जाने इंद्र काहें अइसन-वइसन
हरकत करत रहेलें
यानी, लोक में परी के भेज देलें.
अब भला इन्द्र के का कहल जाव !
उनकर अग्या - केकर हिम्मत जे न माने !
हमरी समझ से बहरे के बाति हवे
कि ऊ एगो परी के तऽ सुग्घर कन्या के
रूप में भेजलें,
दूसरकी के नागिन बना के.
अइसन काहें ?

चंदूशाह के बेटा के रूप में
बालालखंदर जन्म लिहलें.
पूरी कथा में बाला लखंदर
कवनों "एक्टिव रोल" ना कइलें.
ऊ लगभग निष्क्रिय नायक नियर
लगेला.
बिहुला के व्यक्तित्व के रेखा
सर्वत्र बालालखंदर की अपेक्षा गहिर हईं.

बारह महीना के गति के भविष्य
जाने वाली बिहुला
अपने आप के सीमा कऽ अतिक्रमण
कतहूँ ना करेली.
यद्यपि कई गो लोकगाथा में
नायिका अपना दिशा एह लिए बदल दिहली
काहें से कि उनकरा के आपन लक्ष्य पावे के रहे !

न जाने काहें बिहुला
समाज से एतनी भयाकंरंत रहेली !
का तत्कालिक समाजो
एतना समझौता परस्त रहल होई ?

भारतीय लड़की प्रायः
अपना विवाह के बारे में स्वयं कहेले
कि ओकर विवाह कर दऽ.
बिहुला के सम्हने अइसन स्थिति आइल
कि ओके अइसन कहे के परल.
बरात उनके घरे आइल.
ऊ पतिगृह गइली.
सोहागरात में पति के
नागिन दँस लिहलस.
बिहुला इन्द्रपुरी जाके अमृत लिहली
आ उनके जिया दिहली.

कहनी जेतनी सपाट लगति हऽ
ओतनी हऽ ना.
हमरा लोकजीवन के अइसन
चामत्कारिक आ अनछुवल प्रसंग मिलेलें
कि बस देखते बनेला.
दुआर पूजा कऽ प्रसंग लीं.
एम्में बुद्धि कऽ गहिर इस्तेमाल
लउकेलाः
"वर" के हजार लोगन का बिच्चे में कइसे पहिचानल जाव !
लोहा के मछरी पकावेले बिहुला.
इहाँ हमरा दृष्टि में
"लोहा" के अर्थ "कठिनाई" बा.
बिहुला नइहरे से विदा होत
चार प्राप्ति माँगेली -
नेउर, कुक्कुर, बिलार आ गरूड़.
ई चारों अपने संपूर्णमें
लोकमन के गहराई से परताल करेलीं.
सोहागरात में चउपर खेलत
बिहुला के नींद आइल.
विषहर "सवाभार निद्रा" शिव से
मँगले रहले.
नींद एही से आइल.
बिहुला के परी सखी के
नागिन के रुप मिलल रहल.
ऊहे बालालखंदर के कटलस.
बिहुला लेहली आश्रय
इंद्रपुरी के आ उनकरा के बचवली.

बिहुला एगो मागधी नारी हई.
हमरा बुझाला कि ऊ जानत रहली
कि चार प्रकार के सहायक होखेला से
समस्या के समाधान हो सकेला.
एही से ऊ नेउर, कुक्कुर, बिलार व गरूड़
साथे रखली.
शाक्त मत में मनसा, शितला, भवानी, काली आदि
के जिकिर आवेला.
बिहुला के एकमात्र केन्द्रीयता से पता चलेला
कि शक्ति के देवी रूप के लोक स्वीकृति हऽ.
एम्में तत्कालीन शैवमत आ शाक्तमत के
अंतर्द्वंद्व के पता चलेला.
शैवमत के प्रतीक के रूप में
विषहर के लीहल गईल बा.
सर्प आ सर्प पूजा कऽ भारतीय समाज में
केतना स्थान हऽ -
बतवले के जरूरत नइखे.
हमनी के सर्प के शिव से जोरल जाला.
पूरी दुनिया में शायद भारते हऽ
जहाँ सर्प के एतना सम्मान दिहल गइल बा.
कटोरा में ओके दूध-भात खियावल जाला.
कहवाँ मिली रउवाँ के ई ?
रउवाँ सनेह दीं तऽ
विरोधियो आपन हो जालें.
ई प्रानीमात्र में समभाव के प्रतीक हऽ.

न पता काहें लोकगाथाकार
बालालखंदर के चरित्र के एतना परिधि-चरित्र बनवलस.
बालालखंदर के सकारात्मकता के
देखावल जाइत तऽ
बिहुला के कवनो आउर पक्ष सम्हने आइत.
हो सकेलाः
बाला लखंदर के धूमिल रेखा से
कुछ इतर सृजन कइला के इच्छा रहल होखे.
अबले तऽ कथा के केन्द्र में
पुरुष ही रहल बाड़न्
एह रुढ़ि के बदलल जाव !

प्रायः लैला-मजनू, शीरीं-फरहाद, हीर-राँझा
से हमनी के प्रेम के अंतर्संबंध के परिचय मिलेला
किन्तु अब ले हमनी के दृष्टि
अपना आसऽपास ना गइल बा.
हमनी के लग्गे राधा, बिहुला, सारंगा, सोरठी
जइसन चरित्र बाड़न.
ठीके हऽ कि इनकर ऐतिहासिकता विवादित हऽ
बाकिर कथा ऐतिहासिक होखें चाहे ना होखें
एसे फरक ना परेला,
काहें से कि
कथा हमनी के भोजपुरी जाति के संवेदना के
व्यक्त करेली.

आजु लिखल जा रहल कहनियन में
संप्रेषणीयता के प्रश्न उठावल जाला.
असंप्रेषणीयता के एक बड़हन कारन
पश्चिम से उधार लिहल शैली के ढाँचे पर
रचना कइल बा.
रचना में अपना लोक संदर्भ
उपस्थित होखे तऽ ऊ
सुपाठ्य बन सकेले.
रचना के "लय" हमनी से छूटल जा रहल बा.
ई लय उदाहरण-स्वरूप
नेउर, कुक्कुर, बिलार आ गरूड़
के समुच्चय से समझल जा सकल जाला.
संत्रास आ कुण्ठा कऽ जबरदस्ती
तूफान उठावे वाले कथाकारन के
अपना जड़ की ओर लौटे के चाहीं.
आरोप लगेला कि लोकगीत आ लोकगाथा
अपेक्षाकृत पिछड़ल विधा बाड़ीं
उनकर आधुनिक "मन" से
कौनो खास नाता नइखे.
जटिल संवेदना के जेतने
सहज ढंग से प्रस्तुत कइल जाव -
ओतने कौशल के बाति बा.
ठीक है कि प्राचीन युग एतना
जटिल ना रहल
बाकिर सब कुछ "भातेभात" रहल -
अइसनों ना रहल.
जटिलता वायवी ना,
विकसनशील समाज के क्रमिक परिणति बा.
एही से लोककथा के सहेज के रखले से
हमनी केआंतररिक व सामाजिक विकास होला.
उनकरे मूल्यांकन में वस्तुनिष्ठता बरते के चाहीं.
कौनहू समाज के बिहुला जइसन चरित्र सृजित कऽ के
प्रसन्नता होखे के चाहीं.

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