रविवार, 17 नवंबर 2024

आंखि भइल सावन, पुतरिया भइल बदरी

 लेख

आंखि भइल सावन, पुतरिया भइल बदरी

डॉ. आद्याप्रसाद द्विवेदी

बरिस के बारह महीनन में सावन महीना के आपन एक अलग विशेषता होला.  बरखा रितु के असली उछाह सावने महीना में देखे में आवेला.  ए महीना मे सगरे आकाश मानों धरती पर उतरि आवेला.  गरमी के ताप से झुलसत धरती सावन के पा निहाल हो उठेली. बादर से भरल अकाश से पानी झमाझम बरसे लागेला.  रिमझिम-रिमझिम बरसत पानी जिनगी के उदास क्षणन में जादुई रंग भर देला.  सावन प्रकृति के उभरल जवानी के निखार हवे, श्रह्नगार हवे.  ए महीना मेें बरखा के फुहार से मतवाला बनल पाखी-पखेरू स्वागत के गीत गावेलें.  धरती किसिम-किसिम के फूलन के भीनी-भीनी महक से गमगमा उठेले.  प्रकृति रानी अपने सुहाग पे इठला उठेंली.  बिजुरी रहि रहि के बादरन के गोद में चिहुंक उठेले. लता-बल्लरी झूमि-झूमि के पेड़न के गलबाहीं देवे लागेलीं.  सावन के अइसन मनभावन महीना में जब परत-परत के सजल बादरन के झुंड से सगरे अकाश भरल रहेला, बादरन के गर्जन के ताल पर मोर कुहुक-कुहुक के छमाछम नाचत रहेलें, धरती-रानी के हरिअर अँचरा हवा में लहरात रहेला, उमड़त ताल-तलैया आ इठलात नदी एक समा बांधि दिहले रहेलें, अइसने में तन-मन के हुलसि उठल बहुत सहज हवे. अवर जब तन-मन हुलसि उठेला तब सहज रूप से कंठ से लोकगीत फुटि पड़ेला.

सरस सावन, अंखियन के सुख पहुंचावे वाली हरियरी, रिमझिम फुहार, एकर असली चित्र लोकगीतने में देखे के मिलेला.  अइसने गीतन मे ऋतुगीत अवर ओमें पावस गीत भा सावनी गीत विशेष रूप से चर्चा करे योग्य हवे.  पावस के गीतन में कजरी के गीत सबसे अधिक लोकप्रिय हवे.  कजरी लोकगीतन के एगो शैली हवे जवना में सावन के पुरजोर मस्ती भरल रहेला.  एगो कजरी गीत के उदाहरण हम सुना रहल हई जवना में एगो विरहिन नायिका के दर्द के चित्र बा-

सावन मास पिआ घर नाहीं,

मेघवा बरसन लागे ना. 

उमड़ि- उमड़ि के बादर बरसे,

सोर मचावे ना. 

पापी पपिहा पिउ-पिउ बोले,

जिअरा तरसन लागे ना. 

दिन ना चैन, रैन ना निदिया,

सुधि बिसराने ना. 

बन में घूमि-घूमि के मोरवा,

नाचे हूक उठावे ना. 

केकरा संग हम खेलीं कजरी,

जिअरा कसकन लागे ना. 


आकास में घटा चहुं ओर छवले होखे, झीनी-झीनी फुहार पड़त होखे, बादरन के गरज आ बिजुरी के चमक से डर के स्थिति बनल होखे, अइसने में अकेलापन कांट के समान सालेला.  बिरहिन के दिन क चैन आ राति के नींदि हवा हो जाले.  अइसन तलफत स्थिति में नायिका कजरी के धुन में अपने मन के पीड़ा व्यक्त करेले -

गरजै बरसै रे बदरिया,

पिया बिनु मोहे ना सोहाय,

आये बदरा स्याम रंग,

रहे गगन बिच छाय,

रैन अंधेरी घिर रही,

जिया नाजुक डर जाय. 

चमकै दमक रहे दामिनियां,

रैना कैसे बीती जाय. 

चंहक-चंहक रहे चातक,

मंहक-मंहक रहे फूल,

रैन अंधेरी ऐसी गई बात मैं भूल,

पिक, पपीहा औ कोकिला, नीलकंठ-बनमोर,

नाच-नाच कुहकत रहें,

देखि-देखि घन ओर,

ऐसे सावन में सांवरिया,

मोहके कुछु ना सुहाय. 


सावन के झिम-झिम फुहारन के बीच पानी से भरल धान के खेतन में रोपाई करत मजदूरिन सभ जब भावविभोर होके कजरी के गीत गावेली त बातावरण में एगो अजबे मदहोशी छा जाले.  उन लोगन के गीत संगीत के नियम से बंधल नाहीं होला, ओमे कवनों शास्त्रीयता नाहीं होले, तबहूं ओमें जवन मिठास होले, उ अपने सावन के अवते बाग-बगइचा में झूला पड़ि जाला.  लोक जीवन में सावन के झूलन के एगो अलगे रसमयहा होला.  मीठ-मीठ नोंक-झोंक के बीच में ननद-भौजाई झूला झूलेलीं. जवने समय आसमान में करिया करिया बादल फिरल होखे, बौछार पड़ रहल होखे, ठंडी बयार के झोंका पेड़न के एक-एक डाढ़ि के गुदगुदा रहल होखे, ओह समय भींगल-भींगल चूनर ओढ़ले झूला झूलत गांव के गोरी सभ बहुत मनभावन लागेली.  ऐही पर एकजाना हिन्दी कवि के पंक्ति इयाद पड़त बा -

झूले पर सावन झूल रहा,

शैशव और यौवन झूल रहा.


सावन माह में नई आइल बहू के नईहर भेजलो के परम्परा हवे.  वधू सभ बाट जोहत रहेली कब सावन आवे आ उनके बीरन उनके विदाई करावे आवें.  मालूम पड़ेला कि सावन के मस्ती के बहुत खुले रूप में जीयहीं बदे ई परम्परा बनल हवे.  सावन महीना प्रकृति के यौवन हवे.  यौवन हमेशा अल्हड़ होला.  ओके नियम कानून अच्छा नाहीं लागेला. पीहर में नियम-कानून से बंधल जिनगी रहेले लेकिन नईहर में स्वच्छन्द जिनगी रहेले.  एही स्वच्छन्द जिनगी के आनन्द लेवे खातिर सावन में बहु के नईहर में रहले के परम्परा बनल हवे. लेकिन एह परम्परा से अलग हटि के एगो लोकगीत में नायिका अपने ननद से कहि रहल बिया -

भइया मोर अइहें अनवइया,

संवनवा में ना जइबों ननदी. 


ई नायिका सावन के आनन्द अपने पिय-संगम के साथे बितावल चाहति बा. 

अइसहीं एगो लोकगीत में संजोगिनी नायिका के वर्णन बा जवन सावन के झिमिर-झिमिर रात में विह्वल बनल अपने पिय के संगे हिंडोला पर किलोल करत गा रहलि बिया - 

सखि हे! पडे सावन के झींसी,

पिया संग खेलब पचीसी ना.

एह लोकगीत के कड़ी में संजोगिनी नायिका के केतना टंहकार भरल प्रसंग बा. 

कइसन रसमय होत होई उ समय जब कवनों नवही अपने पिय के संगे बतरस करत हंसी-गुदगुदी में पचीसी के खेल खेलति होई.  

संजोगिन आ विरहिनि के ओर से हटि के अगर खुलल रूप से सावन के बखान लोेकगीत में देखल जाव त उ कम मोहक नाहीं हवे.  देखल जाव एगो लोकगीत में कतना रोचक ढंग से सावन के हर पक्ष के केतना सरस आ नीम्मन बरनन कइल गइल बा -

फूले बन फुलवा, बोलन लागे मोरवा,

अब रे मयनवा ना. 

मैना छवले बाटे सगरों संवनवां, अब रे... 

घिरले बदरिया, करे अंधियरिया, अब रे... 

मैना झुरझुर चलल पवनवां, अब रे... 

झिल्ली झनकारे, बनपपिहा पुकारे, अब रे... 

मैना बहे लागी नदिया होय उतनवां, अब रे... 

सजेली गुजरिया, गावेली कजरिआ, अब रे... 

मैना मिलि जुलि झुलेले झुलनवां, अब रे... 

जेकरा सजना परदेस बसेलें, अब रे... 

मैना अंसुवा बहावे दिन रैना, अब रे... 

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डॉ. आद्याप्रसाद द्विवेदी,

टैगोर नगर, सिविल लाइन, बलिया-277001

(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर)

दुख से मुक्ति

 लघु कथा

दुख से मुक्ति

लल्लन प्रसाद पाण्डेय

अपना गंवहिया राम नगीना सिंह के घरे बइठके चाह पीअत रहले बिकरमा.  काफी नजदीकि बा उनका एह परिवार से.  एह से उनका से ओह घर में केहूके परदा ना रहे. ओह दिन सिंह के बड़की पतोहु के उदास देख बिकरमा चाह पियते पूछ बइठले- ‘‘काहे हो कनिया, आज मुंह पर उदासी काहे छवले बा?’’

‘‘ना चाचा जी, कवनो खास बाति नइखे. आजुवे गांव से फोन आइल रहल ह कि नानी के गंगा लाभ हो गइल.  नीके भइल, बेचारी बड़ा दुख भोगत रहली ह. ’’- पतोहु कहली.

बिकरमा तनीका चिहात पूछलें - ‘‘काहें, तहार त तीनों मामा लोग त बड़का लोग में गिनाला.  जवना मतारी का तीन गो बेटा, तीन गो पतोहु, अन्न-धन से भरल घर, ओकरा कवन दुख?’’

पतोहु जवाब दिहली ‘‘-खाये-पीये के त कवनो दुख ना रहल.  बड़का दू तल्ला मकान में उ अकेले रहत रहली.  मामा लोग त सभे दूर शहर में रहेला.  नानीए पर गांव के सम्पत्ति के देखे के भार रहल.  तबकी बेर नानी किहां गइल रहनी, त देखनी एकदम थउस गइल बाड़ी.  ना आंखि से लउकत बा, ना चलल जात बा.  गांवही के एक जानी मेहरारू कबो-कबो आके उनुका के देख जाली.  नित करम खातीर देवाल टोअत-टोअत जाली.  कय बेर गिरल से देहो घवाहिल हो गइल रहल. आंखि के पपनी तक में ढील छाप लेले रहल. बड़ा दुख पावत रहली.  अच्छा बा दुख से मुक्ति मिल गइल. ’’

राम नगीना सिंह के पतोहु के बाति सुनते बिकरमा के होस उड़ गइल.  उनुकरो दूनों बेटा अपना मेहरारून के साथे दूर शहर में बाड़न स.  साल-दू साल पर आके दस-पांच दिन इहां रह जालन स.  साल भर भइल घरनिओ भगवान का घरे चल गइली.  अकेले बाड़े. कबहीं उनुकों पोता-पोती के त इहे पांती ना

कहे के पड़े कि नीके भइल.  बुढ़उ चल गइले.  बड़ा दुख पावत रहले.  अच्छा बा दुख से मुक्ति मिल गइल. 

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लल्लन प्रसाद पाण्डेय,

बरडूबी बाजार, डुगरीजान, 

तिनसुकिया-276601

असम

(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर)


‘फूलमतिया फूआ’

 कहानी

‘फूलमतिया फूआ’



देवकुमार सिंह

छक...छक, छक...छक करत रेल गाड़ी अपना मंजिल के तरफ तेज गति से बढ़त रहे. भारत के विदेश-नीति, चीन-पाकिस्तान के संगे भारत के सीमा-विवाद, राबड़ी देवी आ मायावती सरकार के मनमौजी शासन जइसन बहुतेरे टापिकन पर गरमागरम बहस कइके लगभग कुल्हि यात्री कड़ेर नीनि में सूति गइल लोग.  बाकिर इंजीनियर साहेब के आंखि में तनिकों नीनि ना रहे.  आजु फूलमतिया के उनका खूबे इयाद आवत रहे.

फूलमतिया दुई पास तीन फेल रहे.  निपटे निरक्षर ना रहे.  चिट्ठी-पतरी लिखे-पढ़े जानत रहे.  ढेर पढ़ल ना रहला के चलते ओकरा संगे शादी उनका पसन्द ना रहे, जबकि उ बहुते सुघर, लमहर कद-काठी के, अउर घर-गिरहस्थी के काम-काज में निपुन रहे.  उनका पहिलके राति में ओकरा संगे बक-झक हो गइल. 

‘‘हई लमहर घूघ काहे कढ़ले बाडू़? कइले पढ़ल हउ..? गूंग हउ का... बोलत काहे नइखु...?’’ रमेसर पूछले.  ‘‘इ कुल्हि ढोंग हमरा नीक ना लागे.  अनपढ़ कहीं का? रमेसर डंटले.

‘‘अनपढ़ ना हईं.  दुई पास तीन फेल हईं. ’’ फूलमतिया कहलस आ निहोरा कइलस ‘‘पलंग पर लेटीं, राउर गोड़ दबा दीहीं.’’

‘‘बउचट कहीं का!’’ कहिके रमेसर ओह कमरा से बहरी निकलि अइले.

‘‘हइसन बुरबक, भकोल लड़िकी से हमार बिआह काहे कइल हा? हमार जिनिगी तू चउपट कइ दिहल.  हम एकरा के ना राखबि. ’’ बाबूजी के कमरा में घुसते खिसिआइके रमेसर बोलले.  मास्टर साहेब भउचका गइले आ बाप का रोआब में डपटले - ‘‘एकरा ले नीमन लइकी आठ-दस गो गांव में खोजला प ना मिली.  बहुत रहनदार हिअ.  आ तू एकरा के भकोल कहत बाड़?’’

‘‘एह गंवार लड़की के हम अपना संगे ना राखब’’ कहिके उ ओही राति खा अटइची उठाके घर से निकलि गइले.  बाप के लाख समझवलों पर ना मनले.  माई त इनकर जनमते मरि गईल रहे.  रूई से दूध पिया-पिया के कसहूं जिअवले.  अंगरेेजी इसकूल में नाम लिखवले.  इनका इसकूल के फीस जुटावे खातिर गांव के लड़िकन के टिसनी पढ़ावस, एही से मास्टर साहेब कहाये लगले.  नाही त खेती के आलावा जियका के कवनों साधन ना रहे. अपने साग-सातू खाइके, फाटल धोती में पेवन लगा-लगाके काम चलावसु आ इनका के बढ़िया शिक्षा, नीमन भोजन-वस्त्र के प्रबन्ध करसु.  आजु उहे रमेसर इनकर तनिको बात ना मनले.  ‘‘इ कुल्हि इंगलिस इसकूल में पढ़वला के नतीजा ह. ’’ बुदबुदाते कपार पर हाथ राखिके धम्म से बइठि गइले. 

रमेसर कम्प्यूटर इंजीनियर रहले.  न्यूयार्क के एगो कम्पनी में उनकर नोकरी लागि गइल. आ उ न्यूयार्क चलि गइले.  जाये के पहिले अपना बाबूजी आ मेहरारू से मिलहूं ना अइले. खाली एगो कार्ड पर आपन समाचार आ पता ठेकाना लिखि के भेजि दिहले.  अमेरिका में नोकरी के समाचार सुनि के मास्टर साहेब खूबे खुश भइले.  सतनारायन भगवान के काथा कहववले आ मिठाई बंटले. 

कई बरिस बीति गइल, रमेसर रूपया-पइसा के कहो चिट्ठिओ-पतरी  ना भेजले.  मास्टर साहब कईगो चिट्ठी भेजले बाकिर एको के जब जबाब ना आइल त चिट्ठी लिखल छोड़ि देले. मास्टर साहब बड़ा उदास रहस कि का जाने बबुआ के का हो गइल बा.  बेमार त नइखन आकि कुछ बाउर घटना घटि गईल बा?

मरद के बिना मेहरारू के जिनिगी ऐगो जिन्दा लाश लेखा होला.  बाकिर फूलमतिया त मरद के सुख तनिको ना जनले रहे.  ओकरा जवान देह पर मनचला नवही ललचायी निगाह डालस बाकिर उ एतना डीठ रहे कि कवनो जाना के ओकरा से खोंखे के हिम्मत ना पड़े. गली में एकान्ता भेंट भइला पर एगो बदमाश लड़िका ओकरा से कहलस कि हमरा तोहरा संगे सूते के मन करत बा.  सुनिके उ ताबड़ -तोड़ चप्पल से पीटे लागल ‘‘अपना माई-बहिनिया संगे सूत, उ मू गइल बाड़ी स का? मटिलगना कहीं के. ’’ सुनिके ढेर लोग जुटि गइल आ ओकर ठीक से परिछावन हो गइल.

बड़ा-बुजुर्ग के बेमार पड़ला पर, बच्चा जने के बेरा गर्भवती औरत के, शादी-बिआह, मुअनी-जिअनी सबमें जेही पूछे-कहे ओकरा सेवा में फूलमतिया हाजिर रहे.  लोगन के सेवा में ओकर दिन बीते लागल.  नइहर-ससुरा हर जगह सेवा खातिर ओकर पूछ होखे लागल.  नइहर के लड़िकन के देखादेखी ससुरो के लड़िका ओकरा के फूलमतिया फूआ कहे लगले स.

बिआह के सुख त उ ना जनलस बाकिर सेनूर उ बड़ा टहकारे करे.  एक-दू हाली बूढ़ औरत कहली स - ए फूलमतिया दोसर बिआह क ले, ते अभी जवान बाड़ी स आ पता ना उ तोर मरद आई कि ना. ’’ सुनते ओकर आंखि लाल-लाल हो गइल.  बुझाइल कि उनकर मुंह नोचि ली- खबरदार काकी! अइसन बात कबहूं कहबो मति करिह.  हम एकजनमिया हईं.  हमार मरद इंजीनियर हवें, अइहें चाहे ना अइहें.  कवनो घसछिलवा के मेहरारू हम ना हईं. अस्सी हजार महीना पावेले.  फेरू-फेरू कहबू त राखि लगाके तोहार जीभि खींचि लेबि. बड़ -बूढ़ बाड़ू एहसे छोड़ि देत बानी. ’’

कुछ दिन के बाद मास्टर साहब के पता चलल कि रमेसर एगो अमेरिकन लड़की से शादी कर लेले बाड़े.  मास्टर साहब एही हूके बीमार पड़ले त खाटी धइ लिहलें आ फेरु उठले ना.  फूलमतिया उनकर खूबि जी-जान से सेवा कइलस.  अपना मरद के पास चिट्ठी लिखलस बाकिर उ अइले ना.  मास्टर साहब निरोग ना भइले आ एक दिन दुनिया से चलि गइलें.

फूलमतिया पर त दुःख के पहाड़ टूटि गइल बाकिर रोअल-घबड़ाइल ना.  दुःख सहत-सहत ओकर दुःख सहे के आदत बनि गइल रहे चाहे आंख के लोर- अब सूखि गइल रहे.  मांग-चूंग के मास्टर साहब के किरिया करम भोज-भात उ कइलस.  लोग कहे ‘‘मास्टर साहेब के इ पतोहु ना असली बेटा हिअ.  उ मुंहझउंसा त देखहूं-सुने ना आइल.  ’’

फूलमतिया चट से लोगन के मुंह पर हाथ राखि देवे - ‘‘उनुकरा के बाउर मति बोलीं सभे. शास्तर में लिखल बा कि पति परमेसर होले. उनुका के गाली दिहल-सुनल पाप ह. ’’

केहू जानत नइखे कि केकरा जिनिगी में कब कवन घटना घटि जाई.  जिनिगी एगो पहेली ह- अनबूझ पहेली.  अमेरिका में मेरी नाम के लड़की से शादी कइके रमेसर अपना के दुनिया के सबसे सुखी आदमी बुझत रहले. सुख से अतना सराबोर रहले कि अपना बूढ़ बाप के आ बिअही मेहरारू फूलमतिया के तीस बरिस में एको हाली तनिकों इयाद ना कइले. जइसे उनकर दिमाग कम्प्यूटर होखे आ घर के इयाद वाला इन्टरनेट नम्बर उ भूला गइल होखस.  अगर उनका एड्स न भइल रहीत, आ मेरी के दुलत्ती ना खइलें रहीते त उनका अपना देश के इयाद ना आईत.  मेरी के बात उनका कांट लेखा अबहियों चुभत रहे -

‘‘हमरा अब तोहार कवनो जरूरत नइखे. कोर्ट से तलाक मंजूर हो गइल बा.  दुनो लड़िका अपना वाईफ संगे पहिलही अलगा हो गइल बाड़े स.  इहां के सब धन-सम्पति हमार ह.  हमरा एकरे सहारे जिये के बा.  हम नौकरानी ना हई कि तोहार सेवा करबि.  कुकुर कहीं का !’’

‘‘बाकिर हमरा एड्स त तोहरे संग से भइल बा.  तू ही हेने-होने कई-कई गो मरद संगे छिछियात फिरत रहलू हा.  इ मति भूला कि तहरो एड्स बा. ’’ - रमेसर उलाहना दिहले. 

‘‘हमरा खातिर पईसा बा.  इहे हमार हसबैंड ह.  एहसे हमार सेवा हो जाई.  तू आपन झंखऽ. ’’ कहके मेरी कांख में बेग लटकवलसि आ घूमे निकलि गइल.  रमेसर ओह घरिये मुम्बई खातिर फ्लाइट पकड़ लिहलें.  मुम्बई उतरला पर रेलगाड़ी में बइठि के घर के ओर चलि देले.  इयाद के हिंडोला में उनका कब नीनि लागी गइल उनका ना बुझाइल. 

‘‘आरे भाई, कहां जाये के बा? इ सुरेमनपुर ह. ’’- एगो यात्री उनका के जगवलस.  उ हड़बड़ा के उठले, अटइची उठवले आ उतरि के पयदले चलि दिहले.  गांव में ढूकते लोग अकबका के उनका के निहारे लागल.  अपना घर के सामने भीड़ि देखिके पूछले - ‘‘ए भाई का बात बा?’’

गांव के एगों बूढ़ उनका के चीन्हि गइले ‘‘अरे इ त रमेसरा ह.  का ए बबुआ! बड़ नेकी कइल अपना बाप संगे.  मुंह में आगियों देबे ना अइलऽ.  कतना दुःख से तोहरा के पलले, पढ़वले, इन्जीनियर बनवले आ तू उनका के ठेंगा देखा देलऽ.  धिरकार बा तोहरा लेखा लड़िकन के. ’’

एगो बूढ़ि औरत कहलस - ‘‘इ तोहार बहुरिया हई.  एक महीना से बेमार बाड़ी. अब-तब लागल बा.  तुलसी गंगाजल दे द. बाकिर तू का तरब एकरा के.  इ त अपने करम से सरग जाई.  इ नइहर-ससुरा दुनो गांव के बलुक एह जवार के देवी हीय.  एकर दरसन कइके त तू तरि जइब. ’’

रमेसर तुलसी गंगाजल दिहले.  फूलमतिया आंख खोलि के टुकुर-टुकुर कुछ देर देखलस. चेहरा पर हल्का मुस्कान आइल, टप-टप आंखि से कुछ लोर टपकल आ आपन आंखि मूंदि लेलस हमेसा-हमेसा खातिर.  पूरा गांव पूक्का फारि के रोये लागल - ‘‘बूढ़, बेसहारा, अपाहिज, रोगी के सेवा अब के करी? बच्चा पैदा करावे खातिर अब औरतन के अस्पताल जाये के परी. ’’

जवारभर मिलिके ओकर सराध कइल.  रमेसर के एगो छेदहियो पइसा ना खरचा करे दिहल लोग.  सराध के बाद रमेसर आपन अटइची उठाके चले लगले. 

‘‘काहो तोहार नईकी माई फेरू इयाद पड़ि गइल का?’’ - ललन सिंह गांव के बड़बोलवा गिनाले.  उ टोकिए दिहले.

‘‘ना काका अमेरिका छोड़ि देले बानी.  बाकिर अब गांव में हमार के बा? हमारा एड्स हो गइल बा, कहीं बहरे मरि खपि जाइबि. ’’ - कहिके रमेसर रोए लगले.

‘‘हेने-होने मुंह मरब, चाहे विदेशी लड़की से विआह करब त इसब रोग-बेयार होखबे करी. ’’ फूलमतिया गांव जवार में एतना नेकी कइले बिया कि तोहरा सेवा में इहवां कवनों कमी ना होखी.  चाहे तहरा एड्स-वोड्स कुछुओं होखेे. इहंवे रहऽ. ’’ - कहिके ललन सिंह उनकर अटइची रखि दिहले. 

फूलमतिया आ बाबूजी के उपेक्षा के उनका घोर पछतावा होत रहे.  सचहूं, अब उनका बुझाइल कि फूलमतिया उनका ले ढेर पढ़ल-लिखल रहे.  आचरण के पढ़ाई में ओकर कवनों सानी ना रहे.  कोट के पाकेट से उ चिट्ठी जवना पर उ तनिकों धेयान ना देले रहले निकालि के पढ़े लगले.

पूजनीय सवामी जी!

चरनों में परनाम,

बाबूजी बेमार बानी.  जिए के आस नइखे. जलदी आईं ना त राउर बदनामी होत बा.  आई के फेनु चलि जाइबि.  हम रोकबि ना.  जानत बानी कि एगो उहां रउआ बिआह कइले बानीं. एकर हमरा तनिको तकलीफ नइखे.  रउरा हमार

भगवान हई.  जइसे सुखी रउआ रही, हमार ओही में सुख बा.  थोरे लिखनी ढेर समझी. 

रउआ चरण में बारबार परनाम.  चिट्ठी पावते चलि आई. 

राउर - फूलमतिया. 

ओकर गुन गावत लोग अघात ना रहे. झर-झर लोर उनका आंखे से झरे लागल. फूलमतिया के बात उनका इयाद पड़ल ‘‘अनपढ़ ना हई, दुई पास तीन फेल हई. ’’ जिनिगी के असली इसकुल में उ दु पास रहल हिअ आ हम त खउरहियों क्लास नईखी पास भइल, इहे सोचत उ थउसि के बइठि गइले. 

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देव कुमार सिंह, अंग्रेजी प्रवक्ता, 

आचार्य जे.बी. कृपलानी इण्टर कालेज, जमालपुर, बलिया.


(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर)


जब भोजपुरी सिनेमा के जमाना रहल

अपना 21 बरीस का जीवन में अंजोरिया डॉटकॉम पर भोजपुरी सिनेमा आ भोजपुरी टीवी चैनलन के शानदार मौजूदगी रहल. स्वाभाविक रहल कि भोजपुरिया अपना मनोरंजन खातिर सिनेमा, टीवी, आ गीत-गवनई के बारे में पढ़े सुने अइहें. आ ओह लोग खातिर सिनेमा आ टटका खबर से जुड़ल हजारन पोस्ट अंजोर कइल गइल. बाकिर अब जब अंजोरिया डॉटकॉम बन्द कर दीहल गइल त ओह पर के सगरी सामग्री एहिजा डालल ना जा सके. घर में आग लागे, भा घर ढह-भँस जाव त आदमी जवन कुछ काम लायक बा, जवना के कुछ कीमत बा, जवना के उपयोग भविष्य में हो सके वइसने सामान बचावे के जुगत में रहेला.


नीचे कुछ पोस्टन के मथैला दिहले बानी जवन अब एह ब्लॉग पर नइखे मिले वाला -

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विनय आनन्द बनलन रानी चटर्जी के साँवरिया

टाइगर के दहाड़

रिकार्ड तूड़े के तइयार गठबन्धन प्यार के

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खुल्लम खुल्ला रोमांस चल रहल बा राजीव आ गुंजन के

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शुरु भइल कुरुक्षेत्र

मोरा बलमा छैल छबीला

निरहुआ पाखी के डबल धमाल

पांचवा भोजपुरी फिल्म अवार्ड १२ मई के

तीन भाषा में बनत बा मर्द नम्बर वन

मल्टीप्लेक्स में भइल शिवा के प्रीमियर शो

पहिला स्टेज शो नौ साल का उमिर में कइले रहलें पवन सिंह

मराठी निर्देशक के भोजपुरिया बिल्लोरानी

ई पूछीं कि चोरवा बनल दामाद में का नइखे

पटना में रिंकू घोष के ठुमका

रविकिशन के सम्मानित कइलें नीतीश कुमार

राजकुमार पाण्डेय के सात सहेलियाँ

होली पर निरहुआ निरहुए से टकरइहें

अन्हरिया चीर के बढ़त दीपक दूबे

मन लगा के बनावल गइल बा पायल के

खेला, विजयी भव, आ शुभम तिवारी

मनोरंजन के पावर पैक्ड मसाला ह तू ही मोर बालमा

दूध का बिना ना रह सकस छोटू छलिया

बेटा खातिर बना दिहले भोजपुरी सिनेमा

बैडमैन अवधेश मिश्रा के नया अवतार

विनय आनन्द बनलें साँवरिया

भोजपुरी के उगत सितारा

दू गो फिलिम लांच कइलें अशोक गुप्ता

विक्रान्त आ रानी के पायल

कुरुक्षेत्र सेट पर भइल हादसा में बालबाल बँचलन विक्रान्त

शिवा के म्यूजिक लाँच कइले बोनी कपूर

अब भोजपुरी पर्दा पर चाचा चौधरी

अमेरिकन कंपनी के प्रेम कहानी

रिंकू घोष के ड्रीम प्रोजेक्ट

भोजपुरी सिनेमा में कलुओ आ गइल

ब्लास्ट में उड़ल निरहुआ

वापसी हिट जोड़ी के

माफिया बैक ग्राउन्ड पर बनेवाली फिल्म के संगीतमय महुर्त

शुरु भइल हम हईं कर्मयोद्धा

चाकलेटी खलनायक एयाज खान

रविकिशन के दशावतार

देखहूं वालन के कुछ नया चाहेला

खेला के भव्य संगीतमय मुहुर्त

पवन सिंह के ठुमका पर दर्शक झूमलें

मनोज तिवारी कैटरीना कैफो से भोजपुरी बोलवा दिहले

केसी बोकाडिया के भावुक कर दिहलें मनोज तिवारी

भोजपुरी में जारी रखे खातिर एक दबाईं

महाशिवरात्रि पर तीन गो फिल्मन के भिड़न्त

विनय आनन्द बनलन भगवान श्रीकृष्ण

नजरिया तोहसे लागी एगो सामाजिक फिल्म

खतम भइल दीया और तूफान के जंग

मार देब गोली केहू ना बोली

निरहुआ के अपील

सुजीत कुमार का निधन से मर्माहत बा भोजपुरी सिनेमा जगत

हमरा खातिर त जनते जनार्दन बिया, कहलें निरहुआ

गोर गोर देहिया प धानी रे चुनरिया....

रविकिशन आ रिंकू घोष फेर एक साथे

जीतेश दूबे निर्माता नम्बर वन

जन्मोदिन का दिन पड़ गइल महतारी के डाँट

अभय सिन्हा बनवलें चंदू की चमेली

शुरु हो गइल भोजपुरी पायरेसी के दौर

महुआ आ दैनिक जागरण का सर्वे में भोजपुरी फिलिम

जय सिंह के छक्का

पायल खाली खनकबे ना करी, डरवाइबो करी

यादव पान भण्डार पर मनोज तिवारी आ जीतेश दूबे

सुदीप पाण्डेय के खुशी

एन॰एन॰सिप्पी प्रोडक्शन के नया आगाज

मनोज तिवारी का नाम पर धोखाधड़ी

गायकी से आजुवो ओतने प्यार बा पवन सिंह

लगातार चौबिस घंटा शूटिंग करवलन पवन सिंह

जरत जरत बचलन पवन सिंह

प्यार बिना चैन कहाँ रे

हवेली में कैद जाँबाज जिगरवाला

भोजपुरी संस्कारन का सुगंध में रचल बसल फिलिम शादी-बियाह

गठबंधन प्यार के

गुजराती बाला के भोजपुरिया प्रेम

सब्जी मण्डी से फिल्मी परदा पर अइलें बालगोविन्द

सुदीप पाण्डेय आ विजयलाल के बगावत

माटी माँगे खून के शुरुआत

प्यार हो जाला के शुरुआत भइल

अब मल्टीप्लेक्स का परदा पर लउकिहन निरहुआ

हमार साध पूरा दिहलस - सीमा सिंह

हमरा दिल के बहुत करीब बा चोरवा बनल दामाद

भोजपुरी सिनेमा बनावे आइल अमेरिका के कंपनी

मुख्यमंत्री अइलें, बइठलें, घन्टन बतियवलें

मराठी निर्देशक के भोजपुरिया बिल्लो रानी

आदिशक्ति इन्टरटेनमेंट के रहल धूम

बाप रे बाप, समोसा हियऽ कि मरीचा!

लाट साहिब हो गइले राजीव दिनकर

पवनसिंह के इजहारे मोहब्बत

फेर भोजपुरिया रंग में रंगइहें अमर उपाध्याय

पकड़ुआ बिआह पर बनल फिलिम नजरिया तोहसे लागी

मनीष महिवाल आ प्रिया शर्मा एक साथ

मिस्टर टांगावाला के शूटिंग पूरा

जल्दिये रिलीज होखी चुटकी भर सिन्दूर

आवऽ हो रानी तनी कोरवा में आवऽ

छोट टँगड़ी का बावजूद आसमान छुवे के ललक

जय छठी मइया खातिर विनोद राठौर गवले कॉमेडी गीत

बन के तइयार हो गइल चोर जी नमस्ते

चोरवा बनल दमाद

बरकरार रहल मनोज तिवारी के जादू

बकसऽ ए बिलार मुरगा बाँड़ हो के रहीहें

कायम रहल निरहुआ के बादशाहत

बीतल २००९ बनवलस पवन सिंह के सुपरस्टार

एनआरआई फिल्म फेस्टिवल में पंकज के दू गो फिलिम

जब रो दिहलन जूनियर निरहुआ

हो गइल बा प्यार आरकेस्ट्रावाली से

मुंबई में चलल लता मंगेशकर के जादू

शुभम तिवारी करीहन पहलवानी

बिना रील का कैमरा पर बने जात लाल लुग्गा

केहू के एगो ना भेंटाव, निरहुआ के सात गो

सिकन्दर के शानदार मुहुर्त भइल

बिहारी दिग्गज करीहन एलान

जम्मू के गोरी यूपी के छोरा के दिल दे दिहली

भोजपुरी अदाकारा नम्बर वन पाखी हेगडे

काल्हु के अर्जुन प्रवेशलाल यादव

नवे मिनट में शूट हो गइल पूरा गाना

जय मेहरारु जय ससुरारी

रविकिशन आ पवन के देवरा बड़ा सतावेला

प्रेम कहानी १८५७ की

मार देब गोली केहू ना बोली

जोड़ी लागे रे कमाल

पवन सिंह के आवाज के जादू

पाकिस्तानो में देखावल जाई बृजवा

चुनमुन के नया धमाल

हमार ललकार के संगीतमय शुरुआत

हवालात में रोमांस

निरहुआ लिहलन बिग बी के इन्टरव्यू

संभावना सेठ के पहिलका पसन्द हियऽ भोजपुरी

सोनिया आ बिग बी के पूर्वजन्म का बारे में

विनय आनन्द कइलन नौ गो वायर वाला स्टंट

अब भोजपुरी में जुदाई

बृजवा रिकार्ड तूड़ दिहलस

मनोज तिवारी आ महेश पांडे रचलन इतिहास

बताशा चाचा आ मनोज टाइगर

इनकॉन्टर स्पेशलिस्ट रविकिशन

हॉट गर्ल मोनालिसा बनिहन चन्द्रमुखी

बृजवा एह साल के धमाल फिलिम बा, कहलें मंजुल ठाकुर

रवि किशन खोले लगलन राज पिछला जनम के

आ गइल बृजवा

गोरिया के गोरे गोरे गाल

तोहार अँखिया दिवाना बना दिहले बा

आमिर आ सलमान से आगा निकललन पवन सिंह

जय छठी मईया के शूटिंग के पहिलका चरण पूरा

रविकिशन के अदाकारी के कायल आमिर खान

चोरवा बनल दमाद में पूरा धमाल बा, कहलें अनिल अग्रवाल

दुबई के अम्बिका भोजपुरी परदा पर

सीमा सपना के नाच आ त्रिनेत्र

बेटी दान करे का बिधान पर बनल शादी बियाह

मनवा करेला तोहरा के, छतिया से...

चुम्मा ले लऽ राजा जी...

चरवाही से चल के सिनेमा के परदा पर

काहे बांसुरिया बजवलऽ के संगीतमय भव्य मुहुर्त

निरहुआ के एक्शन के कायल भइलन राम लक्ष्मण

रिलीज होखे से पहिलही रिकार्ड बनावे लागल

अइसन सुन के बहुते नीक लागेला

कमाल के फिलिम बा बृजवा कहलन दीपक दूबे

शशिकान्त, रंजन, आ सीमा के सम्मान

बृजवा से हमर नया पहिचान बनी

भोजपुरी का प्रचार खातिर....

बक्सर के तिलकूट खिआवत बाड़ी गुंजन

जूनियर निरहुआ रिंकू घोष का इश्क में

एलान बा के भव्य मुहुर्त

भोजपुरियन के चहेती अदाकारा पाखी हेगडे

निरहुआ के मुरीद बनलन डी॰ रामानायडू

चार दिसम्बर से टूटी बृजवा के कहर

झंडा फहरा दिहले राजीव दिनकर

राजा भईया के डबल धमाका

रविकिशन के जादू

सईयां के साथ मड़ईया में के मुहुर्त

पहिला पसन्द बनलन पवन सिंह

मिस्टर टाँगावाला के संगीतमय शुरुआत

पानी पियावत पियावत बन गइलें हीरो

निरहुआ इन विशाखापट्टनम

सुदीप पान्डे धइलन इमरान हाशमी के रुप

निरहुआ के नक्शे कदम पर जूनियर निरहुआ

औरतन के दिल के करीब बिया भगजोगनी

शिवा के मैराथन शूटिंग

अखियाँ बसल तोहरी सूरतीया के भव्य मुहुर्त

कबो सोचलहू ना रहनी सुपरस्टार बनब

रंगबाज दारोगा कहे कानून हमरा मुट्ठी में

नवम्बर में गरदा गरदा हो जाई

शुरु हो गइल गंगा जमुना सरस्वती के निर्माण

जोड़ी लागे रे कमाल

दिल तोहरे प्यार में पागल हो गइल

बतासा चाचा अब सेक्सी लुक में | बतासा चाचा अब जूनियर निरहुआ का साथ

पंकज केसरी : सफलता के चौका

पूरा तरह से असली कॉमेडी चोरवा बनल दामाद

छह गो कंपनियन के ब्राण्ड एम्बेसडर

सुदीप पाण्डेय पांच गो फिलिम बनावे जात बाड़े

दुनिया के हँसावल हमार सपना बा, कहलन देव पांडेय

भोजपुरी के स्टार गीतकार विनय बिहारी

......कहलन विनय आनन्द

केकर सईयां बनिहें पवन सिहं

29 गो बिआह आ सोना के कंगन

साँवरिया तोहरे प्यार में

किसना कइलस कमाल के भव्य मुहुर्त

झारखण्ड से उगल पहिलका सितारा शुभम तिवारी

बरदाश्त कइले त हमरा व्यक्तित्व के ताकत हऽ

जीजा जी के जय हो के मुहुर्त भइल

नथुनिए पर गोली मारे के मुहुर्त भइल

एही चलते निरहुआ बावे नम्बर वन

जूनियर निरहुआ इन डिमाण्ड

Real Stone cares for output rather than brand : says Jaykishan.

Premier Show of Dulha Fuke Chulha

संजय पाण्डे के जोरदार वापसी

भोजपुरिया काजोल गुंजन पंत

अब नजर लड़ाई बेटवा बाहुबली अजय दीक्षित

लता मंगेशकर का साथे गाना गवले पवन सिंह

पवन सिंह हवाई जहाज में उड़ला से डेरालें

चोर जी नमस्ते के शूटिंग पूरा

दू गो पटनहिया हीरो पंकज आ मनीष एक साथे

एगो दू गो ना, पूरे चार गो...

इटालियन कन्या के सपना देखऽतारें रविकिशन

भोजपुरी फिल्मोद्योग में उल्लेखनीय योगदान खातिर प्रशान्त सम्मानित

भोजपुरी भूषण दुर्गा प्रसाद मजुमदार

भोजपुरी के पहिला खान जुबेर खान

अब भोजपुरी में बने जा रहल बा गाईड

आपन राह खुद बनावे में भरोसा करेलन सुशील सिंह

भोजपुरी हिरोइनन के राजकुमार

रामाकांत प्रसाद अब निर्देशन करीहन

एक्शन फिलिम बृजवा

चोरवा बनल दामाद

मुंबई में डंका बजा दिहलसि आपन माटी आपन देश

बिल्लो रानी नौटंकीवाली

बाबा जय फिल्म्स के दू गो फिलिमन के मुहुर्त

यशपाल शर्मा अब भोजपुरी परदा पर

बानर के करतब - जोड़ी बा अनमोल में

निरहुआ लगवले छक्का

असलम शेख के राम-अवतार

गाँधी जयन्ती पर मुंबई में आपन माटी आपन देश

मूवी मुगल डी रामा नायडू के भोजपुरिया पारी

रिलीज होखे जा रहल बा सईंया बिदेसिया

दुल्हा फूंके चुल्हा बन के तइयार हो गइल

भोजपुरी के नयका सितारा आशीष

बृजवा के एतिहासिक लांचिंग

जब प्यार हो गइल के पोस्ट प्रोडक्शन

भाग्यविधाता के उर्जा से भरल लिट्टी मामा

भोजपुरी सिनेमा के नया अदाकारा गुंजन पंत

मेला में भुलाइल सईंया हमार

दोस्तन का चलते मिलल शोहरत कहेले बृजेश त्रिपाठी

फेर लवट अइली रिंकू घोष

राम बनवले जोड़ी के मुहुर्त भइल

विनय आनन्द के त चल पड़ल

असलम शेख चुनइले कार्यकारिणी में

सोना का बरखा का बीच रिलीज भइल परिवार के आडियो

पिस्तौल- एगो प्रेम कहानी

पवन सिंह के डबल धमाका, दुनू एक पर एक

शत्रुघ्न सिन्हा आ मनोज तिवारी बनलन इन्टरनेशनल दरोगा

भाग्यश्री बनिहन भोजपुरिया देवदास के पारो

लकी हीरोइन पाखी हेगडे

मनोज टाइगर के हीरो का रूप में लोग पसन्द कइल

निरहुआ डबल रोल में

भोजपुरी सिनेमा के बादशाह हउवन निरहुआ

मुंबई में बवाल मचाई - जाड़े में बलमा प्यारा लगे

मनोज तिवारी आ महुआ टीवी के नम्बर वन सुर संग्राम

के बनी भोजपुरिया रावण?

अमिताभ का राहे चललन सुदीप पाण्डेय

ओढ़निया कमाल करे

उमरिया कईली तोहरे नाम २८ अगस्त से रिलीज

सुधाकर पाण्डे के पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन

निर्माता सुधाकर पाण्डे के निधन

जैकी श्रोफ आ रविकिशन के बलिदान

आयटम गर्ल बनली मुख्य नायिका

साहिल खान के शानदार पार्टी

कानून हमरा मुट्ठी में

भईया के ससुरारी में के शूटिंग पूरा

हैदराबाद में निरहुआ न॰१

पवन सिंह का लगे लागल फिलिमन क कतार

अभय सिन्हा ले आ रहल बाड़े परिवार

अब छोटका परदा पर आल्हा ऊदल

कृपाशंकर सिंह बनलन अभिनेता

चोरवा बनल दामाद में पवन सिंह

बहुमुखी प्रतिभा के धनी विष्णूशंकर बेलू

विशाल भारद्वाज कइलन प्यार बिना चैन कहाँ रे के मुहुर्त

जीतेश दूबे लायन्स क्लब के अध्यक्ष बनलन

लोफरे ना, डबल लोफर बनलन निरहुआ

खलनायकी में धाक जमावत सुदेश कौल

सद्गुरु का चरण में मनोज तिवारी

विनय आनन्द बनलन करीना के प्रशंसक

अब भोजपुरी में बनी रावण

भोजपुरिया दरशील सफारी त मिल गइल, आमिर खान के तलाश जारी बा.

टूट गइल नदिया के पार के रिकार्ड

भरल अदालत से स्वाति वर्मा के अपहरण

दिलीप कुमार, शाहरुख़ का बाद अब रविकिशन बनिहन देवदास

मजगर अभिनेता संजय पाण्डे

लागी लगन भोलेनाथ की

सिकन्दर खरबन्दा के फुलौरी बिना चटनी..

चोरी करत पकड़इलन गायक आ नायक पवन सिंह

भोजपुरी सिनेमा के नया सितारा प्रवेशलाल यादव

छोटू छलिया के वाह जीजा जी

बाल बाल बचलन पवन सिंह

तोहार नइखे कवनो जोड़ तू बेजोड़ बाड़ू हो

बूगी बूगी में भोजपुरिया महानायक रविकिशन

अब भोजपुरी में बनी सौतन

फूल बनल अंगार के संगीतमय शुरुआत

भोजपुरी के अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर ले जाए के बा

मील के पत्थर बावे प्रेम के रोग भइल

दू हफ्ता में कमइलसि एक करोड़

रविकिशन के जनमदिन पर तोहफा

लोकगायक पवन सिंह के एक्शन अवतार

गरदा गरदा कइले बाड़ू जबसे भइलू जवान के शूटिंग पूरा

लाजवाब अवधेश मिश्रा

सात सहेलियाँ से निर्माता बनलन राजकुमार पाण्डेय

शाद कुमार के प्रोडक्शन नं १

बिहार से एगो आउरी चमकत सितारा शक्ति सिन्हा

गोरकी-पतरकी के धूम

बारिश में जलवा देखइहन मुन्नीबाई

कम करेम, नीमन करेम इहे बा जिनिगी के स्टाइल, कहलन मोहित घई

भोजपुरी सिनेमा का बारे में लोगन क नजरिया अब बदल जाई

मुन्नी बाई के बन्हक बना लिहल गइल रहे

जल्दिये हमरो एगो मुकाम होखी, कहलन पंकज केसरी

गरमा गरम तारिका मोनालिसा के आइटम डांस

मनोज टाइगर के नया रूप

कबड्डी पर बनल फिलम वाह खिलाड़ी वाह

लक के ट्रंप कार्ड रवि किशन एगो एक्सक्लूसिव लुक

निरहुआ धइले बिल्लोरानी के रूप

कुणाल सिंह के बेटी के शादी

मालिनी अवस्थी के मिलल अवध सम्मान

लल्लू बिहारी के संगीतमय शुरुआत

कानून हमरा मुट्ठी में

ई कैसी गुरुदक्षिणा

प्रशंसकन के समर्पित बा ई अवार्ड कहलन रविकिशन

सुनील पाल भोजपुरी फिलिम में

बहना राखी खातिर सुयोग्य वर खोजिहन रविकिशन

छोटका परदा पर लवटल गाँव के माटी के खूशबू

कतना लोगन के सपना सच करत फिलिम सच हुए सपने

भोजपुरिया परदा पर मंगल पांडे

सीमा छीन लिहली संभावना सेठ के ताज

छोरा जौनपुर वाला कमाल कर दिहलसि

सिकन्दर के जय हो

आ दिलवालन के दिल लूट ले गइली प्रतिभा

कवनो इमेज में बँध के ना रहल चाहीले - कहलन सुदीप पाण्डेय

माटी प्रीत जगावेला के मुहुर्त भइल

आशिक न॰ १ के संगीतमय शुरुआत

निरहुआ पाखी के जोड़ी ले आ रहल बा प्रेम के रोग भइल

दीवाना बनवलू गोरिया के सेंसर बोर्ड से यू सर्टिफिकेट

चलनी के चालल दुल्हा यूपी बिहार में सुपर हिट भइल

विनयो आनन्द बनलन रियलिटी शो के जजमान

मुन्नीबाई कमईली तीन दिन में बीस लाख

कल्पना बनली सबले महंग जज

अब कृपाशंकर सिंह बनलन अभिनेता

चलनी के चालल दुल्हा देखे खातिर उमड़ल औरतन लड़कियन के भीड़

भोजपुरी फिल्म मुन्नीबाई जैकपॉट साबित होखी

स्ट्रगलर का जिनिगी पर बनत फिलिम

सुपर हिट हो गइल - आपन माटी आपन देश

मनसे विवाद परिभाषित करत भूमिपुत्र

चलनी के चालल दूल्हा रिलीज खातिर तईयार

केकरा नथुनिया पर गोली मरीहन रवि किशन ? | द ग्रेट हीरो हीरालाल आ रहल बाड़े जून से | लागल अँचरा में दाग के शूटिंग शुरु | चोर जी नमस्ते के संगीतमय मुहुर्त | जिये ना देब के संगीतमय मुहुर्त

सामाजिक भेदभाव मेटावे के प्रयास हऽ भूमिपुत्र

जूनियर निरहुआ गायकी का अलावा फिलिमो में

धर्मेन्द्र खरवार चंदा सुरज के नायक का रुप में

आनन्द गहतराज के नया तोहफा

सईंया बिदेसिया अब प्रदर्शन खातिर तइयार

सुदीप पाण्डेय हिन्दी सीरियल में

हॉट आ सेक्सी अभिनेत्री मोनालिसा एगो नया अंदाज में

....कहली पाखी हेगडे

बलिया के बेटी खाँटी भोजपुरिया अभिनेत्री

चउथका फिल्म अवार्ड समारोह

अनूप जलोटा के पहिलका भोजपुरी फिलिम

भोजपुरी फिलिम गाँधीगिरी

दूरदर्शन के मशहूर सीरियल जूनियर जी अब महुआ चैनल पर

जीये ना देब के संगीतमय शुरुआत

हम हईं निरहुआ के जीजा

गब्बर बनलन फौजी

भोजपुरी के पहिलका खान निजाम खान

माई त बस माई बाड़ी

प्रतिभा पाण्डेय स्टंट सीखे में घवाहिल भइली

आपन पूरा समय भोजपुरी के दीहन निरहुआ

नया चेहरा आकाश आ दोसर खबर

पांच गो हीरोइन वाली फिल्म

दीवाना बनवलू गोरिया

सामाजिक सरोकार वाली फिलिम दान

सुदीप के मिलल शादी के तोहफा

भोजपुरी सिनेमा के धड़कन

सशक्त फिलिम बनल बा ई रिश्ता अनमोल बा

नृत्यनिर्देशक से अभिनेता बनलन राजीव दिनकर

सईंया बिदेसिया

रितु पाण्डे शुरु कइली आपन फिलिम कंपनी

तू बबुआ हमार

चलनी के चालल दूल्हा के संगीत जारी

लोकसभा चुनाव में भोजपुरिया स्टार

दुलहिनिया भीतर आ दुलहवा फरार ...?

दीपानारायण झा से खास बातचीत

बबुनी तू दिल जीत लिहलू !

...कहलन विनय आनन्द

असलम शेख सफलता के बुलन्दी पर

फिल्मी खबर : एक नजर - 17

नाम बदल के विजय बिहारी माफिया

फिल्मी खबर : एक नजर - 16

राजनीति में जाये के समय नइखे निरहुआ का लगे

बिहार का बाद अब मुंबई के बारी..

निमना प्रस्ताव का इन्तजार में बाड़े अभिज्ञात

भोजपुरी फिलिम दीवाना के शूटिग

चार्ली चैपलिन के चपलता अब भोजपुरियो में

प्रतिज्ञा बिहार में रिलीज होखे जा रहल बा

भोजपुरी फिलिम कोख के मुहुर्त

गोरकी पतरकी के म्यूजिक रिलीज

हम हईं गंवार | जाड़े में बलमा प्यारा लागे

बियाह द फुल इन्टरटेनमेन्ट

माटी के सौगन्ध

सास ससुर के प्यार

सहर वाली जान मारे ली

दक्खिन से अइली उर्मिला राव

दरोगा जी चोरी हो गईल

फिल्मी खबर : एक नजर

स्मिता ठाकरे के भोजपुरी प्रेम

भोजपुरी में पहिलका हालि भगवान श्रीकृष्ण

नागेन्द्र राय धूम मचवलन

नेता से अभिनेता बनलन अमिताभ गुंजन

मनोज तिवारी बनिहन डॉन

भारतीय फिलिमन के शूटिंग नेपाल मे

खूब हँसईहन खटाई आ मिठाई

नम्रता थापा भोजपुरी सिनेमा में

भोजपुरी खातिर भर जिनिगी लागल रहीहें

पाखी हेगडे निरहुआ खातिर शगुनिया बाड़ी

गोरकी पतरकी रे

भोजपुरी दर्शकनके चहेती अदाकारा

सितारन का पाछा मत भागस निर्माता लोग

मणिरत्नम के रावण खातिर

एहू साल निरहुआ रहलन नम्बर वन

श्रीकृष्णा क्रियेशन्स के तीन गो नया प्रकल्प शुरु

अभिनेत्री स्वाति वर्मा के नया अंदाज

ए भउजी के सिस्टर के प्रीमियर शो

विनय आर आनन्द सुपरमैन का भूमिका में

करीना कपूर के राह चलली स्वीटी छाबड़ा

लोकसंगीत आ माटी के सुगन्ध बिखेरी मोर करेजवा में तीर

दारा सिंह भोजपुरी फिलिम वाह खिलाड़ी वाह में

निरहुआ भरलन मोनालिसा के मांग

जूनियर निरहुआ चललन सीनियर के डगर

मिलल बालीवुड में पहिचान, कहलन पारितोष

निरहुआ कइलस जंग के ऐलान.

मनोज मिश्रा महुआ चैनल पर

लक्ष्मी अइसन दुलहिन

सुन्दर दास सोंकिया शुरु कईलन भोजपुरी फिलिम निर्माण | चलनी के चाल दुलहा के पोस्ट प्रोडक्शन | निरहुआ हैट्रिक लगवलन

हमार केहू गॉडफादर नईखे, कहलन सुदीप पाण्डेय

सिनेमा आ गीत गवनई ला अबहियों बहुते साइट बाड़ी सँ बाकिर साहित्य के सँजोवे वाला वेबसाइट गिनिती के मिलिहें सँ. ओहू में से कुछ तीन के गुट वालन के होखी, कुछ तेरह के गुट वालन के. अंजोरिया ना त तीन में रहल ना तेरह में. लंगड़ी गाय के अलगे बथान का अंदाज में अंजोरिया तबो रहल आ आगहूं रहे के कोशिश करी. एहिजा सभकर स्वागत बा.
 कबीरा खड़ा बाजार में, सबकी पूछत खैर
 ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर ।

शनिवार, 16 नवंबर 2024

झरताटे चानी के फुहार

 कविता

झरताटे चानी के फुहार



बद्री नारायण तिवारी ‘शाण्डिल्य’


डम-डम डमरू बजावता सावनवा,

झरताटे चानी के फुहार. 


ओढ़ले अकास चितकबरी चदरिया,

मांथवा पर बन्हले बा धवरी पगरिया,

झरताटे मउसम जटवा से मोतिया,

गेरू रंग कान्हवा पर भिंजली कांवरिया,

पियरी पहिरि बेंग पोखरी के भिंटवा,

मांगतारे मेंहवा के धार. 

झरताटे चानी के फुहार. 


गोंफिया जनेरवा के फूटता धनहरा,

कजरी के रगिया रोपनिया के पहरा,

डढ़ियन अमवा के झुलुहन में होड़ बाटें,

पंवरत पंखिया पर चोचवन के लहरा,

बनवा में मोरवन के फहरे पतकवा,

बरिसे रूपहला बहार. 

झरताटे चानी के फुहार. 


अंगना बडे़रियन से झरना के ताखा,

ओरियन से चूवता सनेहिया के हाखा,

पनिया बहारे धनि जमकल मोरिया,

थाकि-थाकि जाले, नाही रूके रे जुवारवा,

फरकत चोलिया के आड़ले हिलोर,

जाने कबे आयी डोलिया सुतार. 

झरताटे चानी के फुहार. 


खोंतवा में कोइलरि कागवा के बोलिया,

ठोरवा पर गुदियन के थिरकन-ढोलिया,

चातकी के सूखल नरेटिया जुड़ाइल,

कुंचियन से कवियन के उतरलि खोलिया,

फुटे लागल छने-छने कुसुमी कियरियन,

खुशबू के कुंइयन उभार. 

झरताटे चानी के फुहार. 


देरि ना मकइयन से छोंड़ि भरि जइहें,

जोन्हरी के बलिया से मइनी अघइहें,

पाकि जब धानवा कुवारवा के घामवा,

पीटि, धरि डेहरी, बंसुरिया बजइहें,

ढोलकी के धुन-मिलि झलिया के झंझना में,

मिटि जाई भितराके खार. 

झरताटे चानी के फुहार. 


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सम्पर्क: द्वारा श्री कमल नयन सिंह,

अवकाश प्राप्त कप्तान, धर्म भवन,

213, राजपूत नेवरी,बलिया-277001


(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर)


नीमिया रे करूवाइन

 ललित निबन्ध

नीमिया रे करूवाइन



डा. जनार्दन राय


दिन भर छिछिअइला से थाकि के एकदम बेबस हो गइल रहे.  किछु करे के बेंवत ना रहे. लमहर सीवान में घुमते-घुमत सांझि हो गइल. एतने होला कि आपन खेत, बन बगइचा एक बेरि आंखि में उतरि आवेला.  उहो देखेला आ अपनहूं देखि के आंखि में जुड़ाई परेला.


नीनि आइल निमन ह.  जेकरा आंखि से इहां का हटि जाइला ओकर खाइल-पियल, उठल-बइठल, चलल-फिरल, मउज-मस्ती, हंसी-मजाक कुल्हि बिला जाला.  अइसन जनाला कि किछु हेरा गइल बा, ओके खोजे में अदीमी रात-दिन एक कइले रहेला. निकहा दिन से हमरो नीनि उचटि गइल बा बाकिर हम केहू से किछु कहिलां ना. सोचीलां कि बूढ़ भइला पर अइसन होखल करेलां.  हमरा संगे कवनो अजगुत नइखे भइल. जे साठि-सत्तर से हेले लागेला उ कवनो अनहोनी का इन्तजार में आपन आंखि बिछवले रहेला, रहता देखत रहेला, हित-नात, संगी-साथी, निमन-बाउर सभे किछु एही सभ का माथे रहेला.  एसे सोचत-विचारत रहला का बजह से, उहां का आपन आसन जमा ना पाइलां.  कबो कबो त अइसन होला कि जब नीनि जनमतुवा का आंखि पर अइला से असकतियाये लागेले त अजिया, महतारी, फुवा लोगन का काफी मसक्कत करे के परेला. उनुकरा मनावन में ओझइती का संगे-संगे गीत गवनई में जेवन लोरी दादी का मुंह से निकसे ले ओकर धुनि, रस, गंध, अजबे सवदगर होला - 

‘‘आउ रे निनिया निनरबन से, 

बबुआ आवेले ननिअउरा से.  

आउ रे निनिया निनरबन से. ’’


चइत महीना रहे.  कटिया लागल रहे. ताल में मसुरी पाकि के झन-झना गइल रहे. टांड़ पर पाकल रहिला के ढेढ़ी झरत रहे आ ओने दियरी में अबहीं गोहूं चना पाकल त ना रहे बाकिर होरहा हो गइल रहे.  एक ओर कटनी आ दुसरकी ओर होरहा का लालच में मन कसमसा के रहि गइल.  अकसरूवा जीव थाकल, खेदाइल देहि सांझि खने दुवारे डसावल बंसहट पर परि गइल.  अकसरूवा हो खला का नाते कबो-कबो डेरा डांड़ी पर अइसहूं रूकि जाये के परेला ए वजह से हमरा घरनी का कवनो चिन्ता-फिकिर ना रहेले. भइल अइसन कि नीनि ओह दिन अपना गिरफ्त में एह कदर लिहलसि कि किछु सांवा-सुधि ना रहि गइल.  अइसन बुझाइल कि -

‘निनिया आइल बा सुनरबन से. ’


भइया संगे बटवारा कवनो आजु के ना ह.  ढेर दिन बीति गइल बाकिर हार आ हंसुली के ले के भउजी संगे जवन उठा-पटक भइल ओकरा से तनी मन में गिरहि त परिये गइल. 

नीनि ना खुललि.  देरी ले सुतल देखि के भइया का मन में किछु अइसन बुझाइल कि, ई काम त कबो के कइले ना ह, मेहरि का कहला में परि के बांटि त जरूर लिहलसि, बाकिर दिल जगहे पर बा.  बोलसु त नहिये बाकिर बुचिया, भउजी आ भइया तीनू जाना के फुसरु -फुसरु बोली त सुनाते रहे.  चइत के मुंगरी से थुराइल देहिं कवहथ में ना रहे.  दरद त रहबे कइल बाकिर देहिं पर परल नीमि के फूल ओकर गंध, बयार का पांखि पर चढ़ के तन-मन के सुहुरा के जवन गुदगुदी पैदा कइलसि ओही दिने बुझाइल कि -

नीमिया रे करूवाइन तबो सीतल छांह

भइया रे बिराना, तबो दहिनु बांह.


टेढ़की नीमि के दतुवन, ओकर खोरठी, पतई, निबावट, लवना, छांह हमनी खातिर केतना आड़ बा, अब तनी-तनी बुझाये लागल ह.  सांझि होते पतई का फुनुगी पर बइठल चिरइन के गिरोह, उन्हनी के खोता, तितिली आ कबे-कबे भुलाइल भंवरन के मटरगस्ती केतना नीक लागेले, ई कहे के बाति नइखे.  ओह दिन त हम अपना घरनी का कहला में परि के नीमि का छाती पर जवन टांगी चलवलीं कि उ कटा के बांचि त जरूर गइल बाकिर हमरा छाती में जवन छेद भइल कि आजु ले ना भराइल.  हमरा खूबे इयादि बा जब नीमि का पुलुई पर बइठि के उरूवा बोलल -

‘उ----उ----उ----उ 


हमार घरनी कहली कि इहनी क बोलल नीक ना ह.  बाकिर उनुकरा बाति पर बाति बइठावत बंसी साधू कहलनि -

‘ई गियानी हवन जा.  बोलला के मतलब ई होला कि सजग हो जा, किछु अइसन होई कि टोलमहाल में कवनो दुख, बिपति जरूर आई. ई आवे वाला बेरामी, बिपदा, बाढ़ि सूखा, महामारी के बता के पोढ़ होखे के शक्ति देला. ’


नीमि के डाढ़ि उरुवा के ठांव बा. गौरइया के खोंता, आ माता दाई के झुलुहा बा.  त एकर पतई दवाई आ टूसा टानिक बा.  एकर दतुवन मुंह बसइला से लेके पेट का हर बेरामी के अचूक दवाई बा.  इहे ना, एकरा सूखल डाढ़ि पर कोर पतुकी में बनवला भोजन के खाये वाला कइसनो कोढ़ी होखो, एक बरिस में जरूर ठीक हो जाई.  एही से एकरा छांव में बइठि के गांव के गोरी जवन गीति गावेली स ओकर अजबे रस बा.  एह छांव में संवसार के संवारे वाली माता दाई खुद बसेरा करेली, एही से भर नौरातन इनिका गाछ से छेड़-छाड़ कइल ठीक ना मानल जाला.  गांव गंवई के माई-बहिन जब गावेली स त रोंवा भभरे लागेला-

नीनिया के डाढ़ि मइया!

लावेली झुलहु वा, हो कि, झूलि-झूलि ना. 

मइया मोरी, गावेली हो

गीतिया कि, झूलि-झूलि ना. 

झूलत-झूलत मइया के

लगली पियसिया, कि बूंद एक ना!

मालिनि पनिया पियाव, मोके बूंद एक ना.


माली-मालिनी मिलि क महामाया का किरिपा से नीमि के सींचत जबन रूप देले बा ओही तरे मातादाई एह संवसार में रसे-बसे  वाला हर जीव जंतु के जिये संवरे, सोचे समझे के बल, बुधि देले बानी.  जरूरत एह बाति के बा कि इंसान के इंसान बुझी जा.  भाई के कसाई समझि के काटे के ना ह.  भाई-भाई ह. संबंधन का बीच में खटाई डाले के बाति ना होखे के चाहीं.  घाम सहि के छांह दिहल आ दुख काटि के सुख बांटल असली धरम ह. सच-सच कहल जाय त आपन करमे असली धरम ह.  एह राह-रहनि से जे रही, ओकरा ‘करनी’ से घरनी आ धरनी दूनो के राहि रसगर हो जाई.  संवसार मसान होखे से बंचि जाई.  एके बंचावे बदे जे दुइ कदम चली, माई के असली बेटा उहे ह -

‘यः प्रीणयेत् सुचरितैः पितरं स पुत्रो’

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डॉ जनार्दन राय, नरही, बलिया-2177001


(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर भइल रहल ई लेख.)


कुछु समसामयिक दोहा

 कुछु समसामयिक दोहा


मुफलिस



देइ दोहाई देश के, लेके हरि के नाम. 

बनि सदस्य सरकार के, लोग कमाता दाम. . 


लूटे में सब तेज बा, कहां देश के ज्ञान. 

नारा लागत बा इहे, भारत देश महान. . 


दीन हीन दोषी बनी, समरथ के ना दोष. 

सजा मिली कमजोर के, बलशाली निर्दोष. . 


असामाजिक तत्व के, नाहीं बिगड़ी काम. 

नीमन नीमन लोग के, होई काम तमाम. . 


भाई भाई में कहां, रहल नेह के बात. 

कबले मारबि जान से, लागल ई हे घात. . 


नीमन जे बनिहें इहां, रोइहें चारू ओर. 

लोग सभे ठट्ठा करी, पोछी नाहीं लोर. . 


अच्छे के मारी सभे, बिगड़ल बाटे चाल. 

जीयल भइल मोहाल बा, अइसन आइल काल. 


पढ़ल लिखल रोवत फिरस, गुण्डा बा सरताज. 

अन्यायी बा रंग में , आइल कइसन राज. . 


सिधुआ जब सीधा रहल, खइलसि सब के लात. 

बाहुब ली जब से बनल, कइलसि सब के मात. . 


साधू, सज्जन, सन्त जन, पावसु अब अपमान. 

दुरजन के पूजा मिले, सभे करे सनमान. . 


पइसा पइसा सब करे, पइसा पर बा शान. 

पइसा पर जब बिकि रहल, मान, जान, ईमान. . 

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मुफलिस,

चौधरी टोला, डुमरांव, बक्सर, पिन-802119,

बिहार


(अंजोरिया डॉटकॉम पर अगस्त 2003 में अंजोर भइल रहल ई रचना.)


भोजपुरी - एगो परिचय

आलेख

भोजपुरी - एगो परिचय


डॉ. राजेन्द्र भारती



‘‘भाषा भोजपुरी परिभाषा से पूरी ह 

बोले से पहिले एके जानल जरुरी ह

ना गवना पूरी ना सुहागन के चूड़ी ह

साँचि मानऽ त दुश्मन के गरदन पर

चले वाली छूरी ह

कहत घुरान बुरा मति माने केहू

सभ भाषा के उपर हमार भाषा भोजपुरी ह’’


भारत के एगो प्रान्त उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के बसन्तपुर गांव के कवि, लोकगीत गायक, ब्यास बीरेन्द्र सिंह घुरान के कहल इ कविता आजु केतना सार्थक बा एहकर अहसास तबे हो सकेला जब भोजपुरिहा भाई लोगन के आपन मातृभाषा भोजपुरी से नेह जागी. 


भोजपुरिहा सरल सुभाव के होखेलन, एह बाति के नाजायज फायदा सरकार हमेशा से उठावत आइल बिया.  आ हमनी के माडर्न बने का फेर में आपन मूल संस्कृति के भुलावल जात बानी.  हमनी से एक चौथाई भाषा संविधान का आठवीं सूची में दर्ज हो गइली स आ हमनी का टुकुर-टुकुर ताकते रह गईलीं जा.


आजु का तारीख में भोजपुरी करीब आठ करोड़ भोजपुरिहन के भाषा बा.  भोजपुरिहा लोग बिहार, उत्तर प्रदेश, आ छतीसगढ़ के एगो बड़हन क्षेत्र में फइलल बाड़न.  एकरा अलावे भारत का हर नगर महानगर में भोजपुरिहन के नीमन तायदाद बा.  ई लोग हर जगह भोजपुरी के संस्था कायम कके भोजपुरी के अलख जगवले बाड़न.  विदेशनो में भोजपुरिहा भाई पीछे नइखन.  मारीशस के आजादी के लड़ाई में भोजपुरी में आजादी के गीत गावल जात रहे. सूरीनाम, गुयाना, आ  त्रिनिडाडो में भोजपुरी के बड़ा आदर बा.  भोजपुरी बोलेवालन के संख्या आ सीमा विस्तार के देखल जाव त भोजपुरी एगो अर्न्तराष्ट्रीय भाषा लेखा लउके लागी.


भोजपुरी भाषा के कुछ अद्भुत विशेषता बा.  सही मायने में देखल जाव त ई व्यवसाय आ व्यवहार के भाषा ह.  एक मायने में भोजपुरी व्याकरण से जकड़ल नइखे बाकिर साहित्य सिरजन में धेयान जरुर दिहल जाला.  एह भाषा के ध्वनि रागात्मक ह. भोजपुरी भाषा में संस्कृत शब्दन के समावेश बा एकरा अलावे भारत के कईगो भाषा के शब्द आ विदेशी भाषा जइसे अंग्रेजी, फारसी आदिओ के शब्द  समाहित बा.


भोजपुरी भाषा में साहित्य के सब विद्या बिराजमान बा.  भोजपुरी लोकगाथा, लोकगीत, लोकोक्ति, मुहावरा, कहावत, पहेली से भरपूर बा.  वर्तमान में भोजपुरी साहित्य समृध हो गइल बा.  भोजपुरी के केतने विद्या आ विषयन पर शोध भइल बा आउर हो रहल बा.  केतने विदेशी लोग भोजपुरी के केतने विषय पर शोध करले बाड़न आ करि रहल बाड़न.  भोजपुरी के कइगो उत्कृष्ट पत्रिका पत्र प्रकाशित हो रहल बा.  केतने शोध ग्रन्थ, उपन्यास, कहानी संग्रह, कविता संग्रह, गीत, गजल संग्रह इहंवा तकले कि कइयों विद्यो के भोजपुरी में लेखन कार्य चलि रहल बा.


भोजपुरी भाषा के उत्थान खातिर देश में कइगों भोजपुरी के संस्था कार्यरत बा.  बिहार के विश्वविद्यालय में एम0ए0 तक  भोजपुरी में पढ़ाई चलि रहल बा.  रेडियों, टी0वी0 ओ भोजपुरी के अहमियत देता. भोजपुरिहा सरल स्वभाव के होलन, इनकर कहनी आ करनी में फरक ना होला.  ई आपन स्वार्थ के परवाह ना करसु.  बेझिझक मूंह पर जवाब देवे में माहिर होलन. 


भोजपुरी भाषी के देवी-देवता में शिव, राम, हनुमान, कृष्ण, दुर्गा, काली, शीतलामाई के विशेष रूप से पूजल जाला.  समूचा बिहार के लोग जहंवे बाड़न आ एकरे अलावे पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सा में छठ पूजा व्रत के प्रचलन बा.


भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भोजपुरी भाषी तन-मन-धन से लागल रहे लोग.  अंग्रेज विद्वान ग्रियर्सन भोजपुरिहा लोगन के उल्लेख ऐह तरे कइले बाड़न ‘‘ई हिन्दुस्तान के लड़ाकू जाति में से एक ह लोग.  ई सतर्क आ सक्रिय जाति ह.  भोजपुरिहा युद्ध खातिर युद्ध के प्यार करेलन.  ई समूचा भारत में फइलल बाड़न.  एह जाति के प्रत्येक व्यक्ति कवनो स्वतः आइल सुअवसर से आपन भाग्य बनावे खातिर तइयार रहेले.  पूर्वकाल में ई लोग हिन्दुस्तानी सेना में भरती होके मजबूती प्रदान कइले रहन.  साथहीं 1857 के क्रान्ति में महत्वपूर्ण भागीदारी कइले रहन.  लाठी से प्रेम करेवाला, मजबूत हड्डीवाला, लम्बा-तगड़ा भोजपुरिया के हाथ में लाठी लेके घर से दूर खेत में जात देखल जा सकऽता’’.


भोजपुरिया आपन जनम भूमि के प्रति बड़ा श्रद्धा राखेलें,  देश-विदेश कहीं होखस आपन सभ्यता ना भूलास.  कहीं रहस फगुआ चईता जरूर गइहें, अल्हाउदल के गीत जरूर होई.  सोरठी बिरजाभानू गावल जाई.  जनेउ, मुण्डन, तिलक, बिआह, छठिआर, ब्रत, तेवहार आ कवनो संस्कार के समय भोजपुरी के गीत गूंज उठेला.  भोजपुरिया लोग के तिलक, बिआह, व्रत-त्योहार भा कवनो संस्कार के एगो अलग पहचान बा.


मारिशस, गुयाना, सुरीनाम, त्रिनिडाड में भोजपुरी बोले वाला पुजाला.  आपन भोजपुरिया संस्कृति के बचाई, भोजपुरी बोली, भोजपुरी पढ़ी , भोजपुरी लिखी, भोजपुरी गाईं, भोजपुरी के अलख जगाई.


जय भोजपुरी, जय भोजपुरिहा. 


(डॉ राजेन्द्र भारती जी अंजोरिया डॉटकॉम के संस्थापक सम्पादक रहीं आ उहें के सहजोग से जुटल सामग्री से एकर शुरुआत भइल रहल. डॉ राजेन्द्र भारती जी बलिया शहर के कदम चौराहा पर होम्योपैथी के डॉक्टर रहीं. )


गदह पचीसी

गदह पचीसी



(प्रकाशक का ओर से) 


हमरा का मालूम रहे कि "मैं अकेला ही चलूंगा, कारवाँ बन जायेगा".


एगो जमाना रहे जब विनय रेखा जी आ शशिभूषण राय जी का अलावा केहू दोसर ना रहे जे नेट पर भोजपुरी के बात करत होखो. ओह लोग के साइट रोमन लिपि में रहे. हम पहिला हाली देवनागरी लिपि में भोजपुरी पत्रिका अँजोरिया शुरु कइनीं. डा.राजेन्द्र भारती जी का सहयोग से कुछ रचना भेंटा जाव आ हम अपना साईट पर डाल दीं. फान्ट के बड़का प्राब्लम रहुवे. सबका लगे अलगा अलगा फान्ट कहीं ष ना लउके त कहीं श. कतना फान्ट अजमवनी. डायनामिक फान्टो के  ट्राइ मरनी बाकिर हमरा से हो ना सकल. संजोग से तबले हमरा युनिकोड के बारे में जानकारी मिलल आ हम युनिकोड के अपना लिहनी. भोजपुरी में कवनो साइट पहिलका हाली अँजोरिया निकलल. बाकिर अकेला आदमी, पेशा से डाक्टर, पूंजी के कमी, इन्फ्रास्ट्रक्चर के कमी ढेर कुछ करे ना देब. लिखनिहार लोग लिख के दे देव, हम निकालियों दीं अँजोरिया में बाकिर इन्टरनेट पर आके पढ़े देखे वाला केहू लउके ना.


एही बीच में जमशेदपुर से सुधीर आ शशि के जोड़ी भोजपुरिया डॉटकॉम का रुप में धमाका कइलस. हम देखनी त बड़ाई करे से अपना के रोक ना पवनी. पहिला हाली भोजपुरी के कवनो मजगर साईट नेट पर आइल रहे. बाद में अमेरिका से शैलेश मिश्रा जी, मुम्बई से सतीशो यादव जी भोजपुरी के साइट निकालल लोग. भोजपुरी एसोसिएशन आफ नार्थ अमेरिका के साइट रोमन में बा. सतीश जी के साइट पीएनजी के भरपूर इस्तेमाल करेला. बाकिर युनिकोड में अँजोरिया का बाद भोजपुरिया डॉटकॉमे आइल.


सुधीर आ शशि के जोड़ी के केहू के नजर लाग गइल आ जोड़ी बिखर गइल. भोजपुरी के कई गो साईट सुधीर भाई बुक करा के धइले बाड़े. एही बीच शशि जी इन्टरनेट पर आपन लिट्टीचोखा ले के अइलन. सुधीर जी लिट्टी चोखा में हाइफन लेखा घुस गइलन आ लिट्टी-चोखा खियावे लगलन. हमरा ई नीक नइखे लागत. अँगुरी पर गिने लायक आदमी बाड़े भोजपुरी नेट पर - शशिभूषण राय, बिनय रेखा, ओमप्रकाश, शैलेश, सुधीर, सतीश, शशि सिंह, आ अब सबसे मशहूर मनोज सिंह भावुक. जरुरत तऽ बा कि सबकेहू मिलजुल के भोजपुरी आन्दोलन के आगा बढ़ावो बाकिर तले ई गदह पचीसी शुरु हो गइल. गठरिया तोर कि मोर वाला अन्दाज में.


खैर अपना पुरान सुभाव का अनुसार अँजोरिया केहू के नीक केहू के बाउर ना कही. हम त इहे चाहब कि सबकेहू एक दोसरा के वेबसाइट के लिंक देव, एके फान्ट अपनावे. प्रकाशन सामग्री सबकेहू अपना अपना पसन्द से प्रकाशित करे. केहू केहू के काटे के कोशिश मत करे. नेट के दुनिया बहुते बड़हन बा. एहिजा सबका खातिर भरपूर जगहा बा. टँगरी पसार के सूतऽ भा मोड़ के, तहार मर्जी. कवनो नाम पर केहु के बपौती नइखे, बाकिर अपना संस्कार आ संस्कृति के भुलवला के जरुरत नइखे. गोड़ऊ नाच देखवला के काम नइखे.


एक बार फेर हम बता देबे चाहत बानीं कि अँजोरिया विनम्र भाव से जतना भोजपुरी साइट मिली सभकर लिंक देत रही. जे भी नया साइट शुरु करे ओकरा से निहोरा बा कि हमरा के जरूर सूचित कर देव जेहसे हम ओह साइट के लिंक दे दीं. नेट पर आवे वाला जवना साइट के चाहे देखे. एके गली में पचासन क्लिनिक रहेला, जेकरा जवन डाक्टर नीक बुझाला ओकरा से देखावेला.


(अंजोरिया डॉटकॉम के शुरुआत साल 2003 में 19 जुलाई का दिने भइल रहल. शुरुआती कालखण्ड में ई पोस्ट अंजोर भइल रहल. )

भोजपुरी कविता के अतीत आ वर्तमान

 

भोजपुरी कविता के अतीत आ वर्तमान

डा॰ अशोक द्विवेदी



(एक )भोजपुरी कविताई के सुरूआती दौर

भोजपुरी कविता के प्रारम्भिक दौर के पड़ताल करत खा हमरा सोझा ओकर तीन गो रूप आवत बा - एगो बा सिद्ध, नाथ आ सन्त कबियन क रचल, दूसर लोकजिह्वा आ कंठ से जनमल, हजारन मील ले पहुँचल, मरम छुवे आ बिभोर करे वाला लोकगीतन के थाती आ तिसरका भोजपुरी के सैकड़न परिचित-अपरिचित छपल-अनछपल कबियन क सिरजल कविताई. साँच पूछीं त भोजपुरी कबिता सुरूए से लोकभाषा आ जीवन के कविता रहल बा. एही से ओमें सहजता आ जीवंतता बा. भोजपुड़ी कविता का अतीत के देखला से असन बुझात बा जइसे भोजपुरी बहुत पहिलहीं काब्य-भाषा के दर्जा पा चुकल रहे.

भोजपुरी काव्य-भाषा के आरम्भिक ड़ुप गोरखनाथ के बानी, भरथरी सिद्ध आ नाथ लोग का रचनन में ठेठ आ अनगढ़ रुप से मिलेला. पं दामोदर के 'उक्ति-व्यक्ति प्रकरण' (१२वीं शताब्दी )में ओह घरी के प्रचलितभोजपुरि शब्दन के इस्तेमाल भइल बा. ओसे ई अनुमान लगवला में आसानी होला कि भोजपुरी के कई गो गाथागीत ओही काल में रचाइल होई. बोजपुरी कविता के भाव भूईं सोझाकरे में कबीर, धर्मदास, धरनीदास, बिहार वाला दरियादास, गुलाल साहब, भीखा साहब,आ लक्ष्मी सखी जइसन कवियन क रचनात्मक भागीदारी बहुते साफ बा. मीराबाई के 'हमरे रौरें लागल कइसे छूटे' आ 'कहाँ गइले बछरु, कहाँ गइली गाइ' जइसन लाइन भोजपुरी भाषा के फइलाव के प्रमान बा. सन्त लोग त अपना प्रेमपरक रहस्यवादी भक्ति बावना के उजागर करत खा एह भाषा के सबसे जादा करीबी आ समरथ पावल. कई गो सिद्ध कवियन का कविताई में भोजपुरी के शब्द मिलि जइहें. सन्त कवियन में धरमदास जी त भोजपुरी का लोक-लय में पद रचले बाड़न. एह पुरान कविताई के भाषा में कुछ उदाहरन देखीं -

"अजपा जाप जपीलां गोरख, चीन्हत बिरला कोई."

- गोरखनाथ

"भादो रयनि भयावनि हो, गरजे मेह घहराय,
बिजुरी चमके जियरा ललचे हो, केकर सरन उठ जाय."

- भरथरी

"आठ कुआँ नौ बावड़ी, बा सोरह पनिहार
भरल घइलवा ढरकि गे हो, धनि ठाढ़ पछितात."
xx . . . . . xx
"ननदी जाव रे महलिया, आन बिरना जगाव.
कँवल से भँवरा बिछुड़ल हो, जहँ कोइ न हमार."
xx . . . . . xx
"तलफै बिन बालम मोर जिया
दिन नाहीं चैन, रात नहीं निदिया,
तलफ तलफ कै भौर किया.
तन मन मोर रहँट अभ डोले, सून सेज पर जनम छिया."

- कबीर

सिरिफ कबीरे ना, ओघरी के उत्तर भारत के ढेर संत कबि अपना प्रेम भगति आ निरगुन के रागिननि के सुर देबे खातिर भोजपुरी के अपनावल लोग -

'गल गज मोती कै हार, त दीपक हाथे हो
झमकि के चढ़ेलू अटरिया पुरुष के आगे हो!
सत्त नाम गुन गाइब सत ना डोलाइब हो.
कहै कबी धरमदास अमरपद पाइब हो.'

- धरमदास

'भाई रे जीभ कहलि नहिं जाई
रामरटन को करत निठुराई कूदि चले कुचराई.'

- धरनीदास

'काहे को लगायो सनेहिया हो, अब तुरल ना जाय!
गंग जमुनवां के बिचवा हो बहे झिरहिर नीर
तेहि ठैयां जोरल सनेहिया हो हरि ले गइले पीर.
जोगिया अमर मरे नाहिन हो पुजवल मोरी आस
करम लिखा बर पावल हों, गावे पलटूदास.'

- पलटूदास

'सतगुरु नावल सबद हिंडोलवा, सुनतहिं मन अनुरागल'

- भीखा साहब

'मने मन करीले गुनावल हो, पिया परम कठोर
पाहनो पसीज के हो बहि चलत हिलोर.'

- लक्ष्मी साहब

संत कवि लोग लोकजीवन के चित्र आ प्रतीकन के सार्थक आ प्रसंगानुकूल सन्दर्भन से जोरि के, अलौकिक जीवन के बात कहले बा लोग. अकथ कथ के कहे के, ई कूबत, जनता के बीच इस्तेमाल होखे वाली भाषा के कारन आइल बा. जीवनके नश्वरता आ भक्ति से जुड़ल ओ लोगन के पद आ बानी लौकिक बिम्ब का कारने, सहज बोधगम्य बन सकल. सहज भाव आ संवेदना से सोझे सोझा जुड़ाव का चलते, ओह लोग क पद आ निरगुन जनता में गावल गइल. कबीर तऽ खुल्लमखुल्ला भोजपुरी लोक आ जनभाषा से जुड़ल रहलन -

'बोली हमरी पुरबी हमको लखे न कोय
हमको तो सोई लखे जो पूरब का होय.'

भाव भगति से सनल, निरगुन रंग घोरे वाला कबीर के कई गो पद भोजपुरिये मिलि जाई -

'दुलहिन अंगिया काहे ना धोवाई
बालपने की मैली अंगिया विषय दाग परि जाई.'
xx . . . . . xx
'मन भावेला भगति बिलिनिए के.
पांडे, ऊझा, सुकुल, तिवारी, घंटा बाजे डोमिनिए के.'
xx . . . . . xx
'चंदन काठ कै बनल खटोलना, तापर दुलहिन सूतल हो.
उठ री सखी मोरि माँग सँवारो, दुलहा मोसे रुसल हो.'

भोजपुरी में सबसे जादे जरिगर आ जोरगर साहित्य, लोकसाहित्य के बा. एमें लोकजीवन क हूक, हुलास, संस्कृति के रंग-राग आ आँच देबे वाला साँच का साथ प्रेम आ बिरह के मार्मिक ब्यंजना बा. खेत-खरिहान, सरेह, बाग-बगइचा, कुआँ-बावड़ी, नदी-पोखरा, पहाड़ आ बन का जियतार रुप का साथे, एह साहित्य में मेहरारून के घर-गिरस्थी, स्रम-सपना, हअसल-अगराइल, पीरा आ वेदना कूल्हि के अभिव्यक्ति भरल बा. बरहा, कजरी, चैता, फगुवा, कँहरवा, बारहमासा पुरुषप्रधान प्कृत गीतन का साथे साथ सोहर, झूमर, कजरी, संझा, पराती, जेवनार, जँतसार, छठ, बहुरा, बियाह, संस्कार आ त्यौहारन पर गवाये वाला नारी प्रधान गीत लोकजीवन के सोहगग रुप खड़ा करे में समरथ बाड़न स. देबी-देबतन के मनावल-रिझावन, सरधा-भक्ति, आत्मनिवेदन का संगे-संगे देश आ देश के नायकन के नाँवे गवाये वाला देशभ्कति के गीत हराँसी आ दुख भुलावे वाली करुन-मीठ रागिनी के सँगे हँसी-ठिठोली, उल्लास, बेदना आ शोसन कूल्हि के जियतार चित्र लोकगीतन में उरेहल गइल बा. भोजपुरी कविता के ई लोकरुप लिखितरुप में भले ना होखे, बाकि जनकंठ से स्वतःस्फूर्त भइला का नाते ई लोगन का मन आत्मा में पइसल बा.

प्रेमरस में भीजल, कसक उपजावन, भावप्रधान आ निरगुनिया गीतन के सिरजनहार, 'पुरबी' के जनक महेन्दर मिसिर के गीतन का लय आ खिंचाव में, भाषा के सीमा टूट जात रहे. लोकरंग के लोकमंच देबे वाला कलाकार कवि भिखारी ठाकुर, भोजपुरी कबिताई के ना खाली दूर डूर ले फइलवले, बलुक आन्दोलन का घरी त बाबू रघुबीरनारायन के 'बटोहिया' आ मनोरंजन बाबू के 'फिरंगिया' कबिता बाहरो के लोग का कंठ में रच-बस गइल रहे. 'बिसराम' के बिरहा पूर्वाञ्चल में बिरहियन के थाती बनल त हरा डोम के कविता 'अछूत के शिकायत' ओह समय के दलित चेतना के साखी बनल.

भोजपुरी कबिता के भीति उठावे में महेन्द्र शास्त्री, रघुबीरनारायन, मनोरंजन बाबू, दण्डिस्वामी विमलानन्द, परीक्षण मिश्र, पाण्डे नर्मदेश्वर सहाय, डा॰ रामविचार पाण्डेय, प्रसिद्धनारायण सिंह, अवधेन्द्र नारायण, मोती बी॰ए॰, जगदीश ओझा 'सुन्दर', प्रभुनाथ मिश्र, चन्द्रशेखर मिश्र, रामजियावन दास 'बावला' आदि कई लोग जीवे-जंग रे लागल रहे. सुतंत्रता आन्दोलन आ ओकरा बाद ले भोजपुरी कबिता क जेवन रुप देखे के मिलत बा, ओमे राष्ट्रीय चेतना का अलावा अनुभूति का कोना-अँतरा ले भोजपुरी भाषा के सहज पइसार आ बेंवत के देखत बनत बा. गँवई जीवन आ प्रकृति एह समय का कबिताई के आलंब आ प्रतिपाद्य रहल बा.

देखल जाय तऽ भोजपुरी कविता में रोमाण्टिक भावधारा के लमहर काल ले गति मिलल बा, बाकि प्रगतिशील बिचार आ शोसित-पीड़ित लोगन के संघर्षो आ ब्यथा कथा के जियतार उरेह भइल बा. मोती बी॰ए॰, रामविचार पाण्डेय, अनिरुद्ध, अर्जुन सिंह, 'अशान्त', रामजीवन दास 'बावला', सतीश्वर सहाय 'सतीश', सुन्दर जी, रामनाथ पाठक 'प्रणयी', रामदेव द्विवेदी 'अलमस्त' आ 'अनुरागी' के मुक्तक आ गीत रचनन आदि के अलावा प्रबन्ध काव्य, खण्ड काव्य, सॉनेट आ गजल आदि काव्य विधा के समृद्ध रुप देखे मिली. साँच पूछीं त भोजपुरी कविता अपना विकासेक्रम में बहुरंगी आ शिल्प के विविधता में सिरजित भइल बिया. भाव आ बोध का दिसाईं, हालांकि ओमें आधुनिकता के प्रभाव कम्मे लउकी, बाकि वर्तमान का जथारथ से ऊ किनारा नइखे कसले. ई बात दूसर बा कि ओम्में गँवई जीवन के गहिर बोध आ संपृक्ति बेसी लउकी.

जदि सुरुआत प्रबन्ध काव्य आ खण्ड काव्य से कइल जाय त देखे के मिली कि भोजपुरी अँचरा में 'सारंगा-सदाबृज', 'बिहुला बिलाप', 'सोरठी-बृजभार', 'लोरिक', 'आल्हा', गोपीचन, भरथरी, कुवंर विजयमल, आ 'नयकवा बंजारा' जइसन लोकप्रिय कथाकाव्य के एगो कड़ी मिली. प्रबंध काव्य के बीया त आदिकाल के 'पुहुपावती' में मिल जाई, बाकि 'बलिदानी बलिया' (१९५४) से आरम्भ मानल जा सकेला. सतवाँ दशक का बाद भोजपुरी में कई गो प्रबन्ध काव्य प्रकाशित भइलन स. हरेन्द्रदेव नारायण के 'कुँवर सिंह' रामबचन शास्त्री 'अंजोर' के 'किरनमयी', सर्वदेव तिवारी के 'कालजयी कुँवर सिंह', चन्द्रधर पांडेय 'कमल' के 'नारायण', बिमलानंद सरस्वती के 'बउधायन', अविनाश चन्द्र विद्यार्थी के 'सेवकायन', कुबोध जी के 'के' आ आचार्य गणेशदत्त 'किरण' के 'महाभारत' आदि भोजपुरि प्रबंध काव्य के समृद्धि के सूचक बा.

एही तर खण्डकाव्य भोजपुरी में ढेर लिखाइल बा बाकि प्रसंगबस ओम्मे से कुछ क चरचा जरूरी बुझाता. एम्मे 'कुणाल'(रामबचनलाल), 'वीर बाबू कुँअर सिंह'(कमला प्रसाद 'बिप्र'), 'रुक जा बदरा'(मधुकर सिंह), 'सुदामा यात्रा' आ 'श्याम'(दूढ़नाथ शर्मा), 'शक्ति साधना' तथा 'द्रौपदी'(बनवासी), 'कौशिकायन'(अविनाशचन्द्र 'विद्यार्थी'),'सीता के लाल'(कुंज बिहारी 'कुंज'), 'सत्य हरिश्चन्द्र'(सर्वेन्द्रपति त्रिपाठी), 'राधामंगल'(विश्वनाथ प्रसाद), 'उर्वशी'(सत्यनारायण सौरभ), 'सीता स्वयंवर'(रामबृक्ष राय 'विधुर'), 'लवकुश'(तारकेश्वर 'राही'), 'पाहुर'(रामबचन शास्त्री 'अँजोर'), आदि के रेघरियावल जा सकेला. भोजपुरी प्रबन्ध काव्यन में काव्यशास्त्री दीठि से भलहीं छुट्टापन भा स्वच्छन्दता लउकत होखे, बाकि ओमे भाव आ बिचार के बहुत बढ़िया समायोजन भइल बा! भोजपुरी के कई गो प्रबन्ध काव्य आ खण्डकाव्य पौराणिक चरित्र आ लोक आस्था आ विश्वास केकेन्द्र रहल लोक चरित्रन पर रचल गइल बाड़न स, जइसे राम, कृष्ण, हनुमान, लव-कुश, वीर कुँअर सिंह. राम-कृष्ण के कथा, रामायन, महाभारत का प्रति लोगन के प्रेम आ स्वतंत्रता आन्दोलन के चर्चित नायक वीर कुँअर सिंह के वीरता भोजपुरी प्रबन्ध काव्य रचवइयन के ढेर खिंचले बिया. भावबोध, विचार संपन्नता आ काव्य भाष का दिसाईं 'बउधायन', 'सेवकायन', 'कुँवर सिंह' आ 'महाभारत' दमगर आ जिउगर बा.

अपना देबी देवता, लोक नायक आ आदर्श पुरुखन के प्रति भिजपुरिहन क सम्मान देबे के निराले अंदाज बा. प्रेम, प्रकृति आ मानवता के समरपित, अदम्य जिजिविषा आ साहस से भरल भोजपुरिहन क ईहे खासियत भोजपुरी कवितो में झलकेले. दरअसल भोजपुरी कविता लोक-अनुभुतियन आ ओकरे कल्पना क उड़ान क कविता हऽ. किसान, मजदूर, मेहरारु एह अनुभूतियन के वाहन हउवन. घर-गिरस्थी, खेत-खरिहान, नदी-पहाड़-जंगल एकर क्षेत्र. जिनिगी के संवेदना का स्तर पर जिये, अनुभव करे आ मरम छुवे वाली करूण-मीठ रागिनी में ओकरे ब्यक्त करे, उकेरे-उरेहे आ ब्यंजित करे में भोजपुरी के जवाब नइखे. सबसे बड़ खासियत बा कहे में सहजता आ सफगोई. बे मोलम्मा आ पालिस के. घर में कैद औरतके भितरे भीतरे कुँहकत-तलफत जिनिगी आ ओकरा बिवश स्वर के महेन्द्र शास्त्री सहजता से उकेरत बाड़न -

पसुओ से बाउर बनवलऽ हो, हाय पसुओ से!
दुलुम भइल हवा-पानी, कैदी होके कलपतानी
जियते नरक भोगवलऽ हो, हाय पसुओ से!

लोक धुनन पर गवाये जोग गीतन में महेन्द्र शास्त्री मर्मस्पर्श करे वाली करुना आ पीर भरले बाड़न. उनका रचनाधर्मिता में अनुभूति त प्रामाणिक बा, बाकि अभिव्यक्ति सपाट बा. किसान आ खेतिहर मजूर के स्रम आ उन्हन के आपुसी भावना के रेघरियावत, ऊ प्रगतिशील कविता का नियरा पहुँच जात बाड़न. हाथ पर हाथ धइले, मन मरले कुछ होखे उजियाये के नइखे. उनका उदबोधन में ई जथारथ सजीवे उतरि आवत बा किजोतलो का बाद खेत क कोना परतिये रहि जाला -

करवा पर बा करवा हो, तनी दीहऽ कुदार.
कोना ना लागल हरवा हो, तनी दीहऽ कुदार.

भोजपुरी भाषा अपना निठाठ शब्दन का ताकत आ ब्यंजक शक्ति के कारन, कवियन के ब्यंगात्मक उक्तियन में अउर प्रभावीहो जाले. सामाजिक विसंगितयन आ सत्तासीन राजनीतिज्ञन पर प्रसिद्ध नारायण सिंह बड़ा सहजता से ब्यंग्य करत बाड़न. एमे भाषा के व्यंजकता देखीं -

हुकूमत का हाथीनियर दाँत दूगो,
देखावे के दूसर चबावे के दूसर.
इ कइसन बा जादू, इ कइसन बा टोना,
लिखल जाता दूसर पढ़ल जाता दूसर.
कहल जाता दूसर, कइल जाता दूसर.


(लमहर लेख बा. धीरे धीरे जोड़ल जात रही. आवत जात रहीं.- सम्पादक)

लघुकथा संग्रह थाती से तीनगो कथा

 

लघुकथा संग्रह थाती से तीनगो कथा

एह संग्रह में पचपन गो लघुकथा बाड़ी स. सगरी संग्रह एक एक क के प्रकाशित कइल जाई.



भगवती प्रसाद द्विवेदी

अनेसा

गौरैया जीव‍‍-जान से अपना अंडा के सेवत रहे. चाहे ऊ अँगना के मुड़ेरा प चहचहात होखे, फुर्र से उड़िके बगइचा में दाना चुगति होखे, भा पाँखि फड़फड़ावत बालू में नहातो होखे - ओकरा दिल-दिमाग में हरपल अपना अंडवे के फिकिर समाइल रहत रहे. ऊ त ओह दिन के बाट जोहति रहे, जब अंडा से बच्चा निकलि के ओकरा खोंता में चहचहा उठी.

आखिर ऊ घरी आइये गइल. अब गौरैया बड़ा जतन से ठोर में दाना दबा के ले आवे आ चीं-ची करत चूजा के चुगावे लागे. ओकरा के निरखि के ओकर मन बेरि‍-बेरि उमगि उठत रहे.

बाकिर अचक्के में गौरैया के मन में उदासी के बदरि मँड़राये लागलि. एगो अनजान डर से ऊ बेरि-बेरि थरथरा उठति रहे. ना जाने कब दुख के बरखा बरिसे लागे!

बगलगीर गौरैया ओकरा उदासी के कारन जाने के गरज से पूछलसि, "बहिना! अब त तहरा बचवन के पांखियो लागि गइल. आज त ऊ खुदे फुदुकि-फुदुकि के दाना बीनत रहल हा. बाकिर तबो तू काहें उदास बाड़ू?"

"इहे त उदसी के कारन बा बहिनी!" गौरैया के डबडबाइल आँखि से बेचारगी टपके लागल, "अब ओकर का भरोसा कि शहर का ओरि भागत गँवई लरिकन नियर दीगर घर बसावे ऊ कब उड़न-छू हो जाई! "


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मेहनताना

थाकल डेग भरत सुधीर स्कूल का ओरि बढ़ल जात रहले. उनकर मूड अबहूँ उखड़ल-उखड़ल-अस रहे. थोरहीं देर पहिले त, जब ऊ स्कूल जाए खातिर तेयारिये करत रहले, उधार के पइसा वसूले खातिर राधेश्याम बनिया तगादा करे आ गइल रहले आ उन्हुकरा लाख गिड़गिड़इला आ चिरउरी कइल० पर जरला प नून छिरिकिए के लवटल रहले. सुधीर के मन में ओही घरी आइल रहे जे अबहिंये इस्तीफा देके आदर्श शिशु विद्यालय क४ एह दू कौड़ी के नौकरी के लात मारि देसु. एह पबल्िक स्कूल के बदौलते त प्रबन्धक, जवन प्रिन्सिपलो बा, लाखन रोपेया से झुनझुना नियर खेलेला, बाकिर तनखाह का नाम पर हमनी के दू हजार पर दस्तखत करा के दिही पाँच सौ रुपुली आ ऊहो दस दिन धउरला का बाद. एक त दिन भर लइकन का संगे माथापच्ची करत उन्हनीं के चरवाही करऽ आ उपर से प्रिन्सिपलोके डाँट-डपट सुनऽ. स्साला! ऊ सड़के प पच्च-से थूकि दिहले.

गौड़िया मठ का लगे लोगन के भीड़ देखिके सुधीरो उहाँ जा चहुँपले. ऊहाँ एगो रेकसावाला के संगे एगो बाबू के कहा-सुनी चलत रहे. रेकसावाला महेन्द्रू मुहल्ला से इहाँ तक के भाड़ा बीस रोपेया माँगत रहे, बाकिर बाबू सात रुपिया से एको पइसा बेसी देवे खातिर तेयान रहले.

"ठीक बा बाबू साहब, रउआँ इहो सात रोपेया लेले जाईं. एगो गरीब के मेहनताना मारि के रउएं राजा हो जाईं!" रेकसावाला बाबू के दिहल रोपेया फेरु उन्हुके थमा दिहलस.

"जा, जवन करे के होई तवन करि लीहऽ! हुँह!" बाबू मुसुकी कटले आ रोपेया बगली में धरत आगा बढ़े लगले.

बाकिर रेकसावाला फेरु उन्हुका ओरि लपकल, "कहवां चलि दिहलऽ बाबू साहेब? ताव देखावत बाड़? भिखमंगी करत बानी का हम तहरा से? वाजिब मेहनताना देक जा, नाहीं त ठीक ना होई, बुझलऽ?" रेकसावाला पाछा से ओह बाबू के कमीज के कॉलर पकड़ि लिहलस आ अपना ओरि खीँचे लागल.

सुधीर के मुट्ठी अपने आप कसाए लगली स. उन्हुका बुझाइल जइसे रेकसावाला का जगहा पर ऊ खुदे ठाढ़ होखसु, जइसे ऊ पाँच सौ रुपुली स्कूल के प्रिन्सिपल का मुँह पर फेंकि देले होखसु आ कुरता के कॉलर ध के उचित मेहनताना के माँग करत होखसु.


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अछरंग

सामू पण्डित के पतरा देखे, जनेव बिआह सकलप करावे आ जनमकुण्डली बनावे वाला पंडिताइ विरासत में मिलल रहे. उन्हुका बाबूजी ले त ई जजमनिका वाला पेशा चलल, बाकिर उनका बाद सामू सुकुल एह धन्धा के आगा बढ़ावे से नकारि दिहलन. ओइसहूं अब जजमना लोग पंडिजी के ओछ नजर से देखे लागल रहे. एह जजमनिका से परिवार के नून रोटी के जोगाड़ौ बइठावल अब आसान ना रहे. सामू सुकुल के पढ़ल लिखल मन एह भिखमंगी खातरि कतई तेयार ना रहे.

सामू सुकुल टोला के पढ़ुवा लरिकन के ट्यूशन पढ़ावे के चहलन. बाकिर बड़ लोग एह बात पर बिदकि गइल. जजमनिका के धन्हा करेवाला परिवार के सामू भला लरिकन के नीके तरी अंगरेजी साइन्स का पढ़ा सकेले!

हारल पाछल सामू पंडित दलितन के टोला में जाके उन्हनी से बतिअवलनि. ऊ लोग पंडी जी के हाथो हाथ लिहल आ खूब खातिर भाव कइल. अब सामू सुकुल रोज उन्हनी के लरिकन के पढ़ावे लिखावे लगलन

बाकिर कुछ दिन बाद जब गुधबेरि भइला सांझी का पंडी जी घरे लवटत रहलन त बाभन टोला के नवही उन्हुका के घेरि लिहलन स, देख समुवा, तें बाभन के औलाद होके जाति बिरादरी के माथ पर अछरंग के टीका लगावत बाड़े. नानंह जाति के ओह जाहिलन के तें पढ़ुवा बनावल चाहत बाड़े? काल्हु से कबो उन्हनीं के टोला का ओरि जात लउकले, त हाथ गोड़ तूरि के भुरकुस क देबि जा, बुझले? एह तरे जिए दिहला से त तोरा के मुवाइए दिह नीमन होई.

सामू सुकुल तय ना कऽ पावत रहलन कि उन्हुका जीए के बा कि सांचहू मरि जाएके बा?


भगवती प्रसाद द्विवेदी, टेलीफोन भवन, पो.बाक्स ११५, पटना ८००००१

भोजपुरी बिहुला अउर आजु के रचना संकट

 

भोजपुरी बिहुला अउर आजु के रचना संकट




परिचय दास

बिहुला कथा चाहे जेतनी पुरान होखे
कहीं ना कहीं
हमनी के आधुनिक व उत्तर आधुनिक मन के छुवेले.
एम्में स्मृति, संशय व किंवदंती हऽ
साथे-साथे
प्रातःकाल के दक्षिण मलयानिल सुगंध.
किंवदंती खाली मिथ्या लोके
रचत होखें - अईसन ना.
ओम्में हमनी आपन जय-पराजय
उत्साह-बेकली, सच-झूठ
सब देख पावल जाला.

बिहुला !गो लावण्यमयी बाला.
कथा के कथात्मकता बुने खातिर
कौनो एक सूत्र चाहीं -
नारियल के रेशा जईसन.
सो, एक भइलन चंदूशाह - दिल्ली निवासी
आ दूसर भईलन विषहर.
आगे के कथा-पात्र स्वयं
आपन परिचय देत चलिहें.

विषहर हमनी के दैनंदिन जिनिगी का ऊ पृष्ठ हवे -
जेप्पर दिनवो राति जइसन उगेला.
सच्चों, कामना अनन्त होलीं
अउर जरूरी ना कि ऊ पॉ्रसन्नवदना होखें.
विषहर चंदूशाह के विरुद्ध
षड्यंत्र करत रहेला.

बिहुला श्यामपरी के मानवी रूप हऽ.
वोह परी के भला का पता रहल होई
कि ई दुनिया एतनी कुत्सा
आ कुण्ठा से भरल होई.
बिहुला चीनानगर के
चीनाशाह के इहाँ जन्म लेहली.
न जाने इंद्र काहें अइसन-वइसन
हरकत करत रहेलें
यानी, लोक में परी के भेज देलें.
अब भला इन्द्र के का कहल जाव !
उनकर अग्या - केकर हिम्मत जे न माने !
हमरी समझ से बहरे के बाति हवे
कि ऊ एगो परी के तऽ सुग्घर कन्या के
रूप में भेजलें,
दूसरकी के नागिन बना के.
अइसन काहें ?

चंदूशाह के बेटा के रूप में
बालालखंदर जन्म लिहलें.
पूरी कथा में बाला लखंदर
कवनों "एक्टिव रोल" ना कइलें.
ऊ लगभग निष्क्रिय नायक नियर
लगेला.
बिहुला के व्यक्तित्व के रेखा
सर्वत्र बालालखंदर की अपेक्षा गहिर हईं.

बारह महीना के गति के भविष्य
जाने वाली बिहुला
अपने आप के सीमा कऽ अतिक्रमण
कतहूँ ना करेली.
यद्यपि कई गो लोकगाथा में
नायिका अपना दिशा एह लिए बदल दिहली
काहें से कि उनकरा के आपन लक्ष्य पावे के रहे !

न जाने काहें बिहुला
समाज से एतनी भयाकंरंत रहेली !
का तत्कालिक समाजो
एतना समझौता परस्त रहल होई ?

भारतीय लड़की प्रायः
अपना विवाह के बारे में स्वयं कहेले
कि ओकर विवाह कर दऽ.
बिहुला के सम्हने अइसन स्थिति आइल
कि ओके अइसन कहे के परल.
बरात उनके घरे आइल.
ऊ पतिगृह गइली.
सोहागरात में पति के
नागिन दँस लिहलस.
बिहुला इन्द्रपुरी जाके अमृत लिहली
आ उनके जिया दिहली.

कहनी जेतनी सपाट लगति हऽ
ओतनी हऽ ना.
हमरा लोकजीवन के अइसन
चामत्कारिक आ अनछुवल प्रसंग मिलेलें
कि बस देखते बनेला.
दुआर पूजा कऽ प्रसंग लीं.
एम्में बुद्धि कऽ गहिर इस्तेमाल
लउकेलाः
"वर" के हजार लोगन का बिच्चे में कइसे पहिचानल जाव !
लोहा के मछरी पकावेले बिहुला.
इहाँ हमरा दृष्टि में
"लोहा" के अर्थ "कठिनाई" बा.
बिहुला नइहरे से विदा होत
चार प्राप्ति माँगेली -
नेउर, कुक्कुर, बिलार आ गरूड़.
ई चारों अपने संपूर्णमें
लोकमन के गहराई से परताल करेलीं.
सोहागरात में चउपर खेलत
बिहुला के नींद आइल.
विषहर "सवाभार निद्रा" शिव से
मँगले रहले.
नींद एही से आइल.
बिहुला के परी सखी के
नागिन के रुप मिलल रहल.
ऊहे बालालखंदर के कटलस.
बिहुला लेहली आश्रय
इंद्रपुरी के आ उनकरा के बचवली.

बिहुला एगो मागधी नारी हई.
हमरा बुझाला कि ऊ जानत रहली
कि चार प्रकार के सहायक होखेला से
समस्या के समाधान हो सकेला.
एही से ऊ नेउर, कुक्कुर, बिलार व गरूड़
साथे रखली.
शाक्त मत में मनसा, शितला, भवानी, काली आदि
के जिकिर आवेला.
बिहुला के एकमात्र केन्द्रीयता से पता चलेला
कि शक्ति के देवी रूप के लोक स्वीकृति हऽ.
एम्में तत्कालीन शैवमत आ शाक्तमत के
अंतर्द्वंद्व के पता चलेला.
शैवमत के प्रतीक के रूप में
विषहर के लीहल गईल बा.
सर्प आ सर्प पूजा कऽ भारतीय समाज में
केतना स्थान हऽ -
बतवले के जरूरत नइखे.
हमनी के सर्प के शिव से जोरल जाला.
पूरी दुनिया में शायद भारते हऽ
जहाँ सर्प के एतना सम्मान दिहल गइल बा.
कटोरा में ओके दूध-भात खियावल जाला.
कहवाँ मिली रउवाँ के ई ?
रउवाँ सनेह दीं तऽ
विरोधियो आपन हो जालें.
ई प्रानीमात्र में समभाव के प्रतीक हऽ.

न पता काहें लोकगाथाकार
बालालखंदर के चरित्र के एतना परिधि-चरित्र बनवलस.
बालालखंदर के सकारात्मकता के
देखावल जाइत तऽ
बिहुला के कवनो आउर पक्ष सम्हने आइत.
हो सकेलाः
बाला लखंदर के धूमिल रेखा से
कुछ इतर सृजन कइला के इच्छा रहल होखे.
अबले तऽ कथा के केन्द्र में
पुरुष ही रहल बाड़न्
एह रुढ़ि के बदलल जाव !

प्रायः लैला-मजनू, शीरीं-फरहाद, हीर-राँझा
से हमनी के प्रेम के अंतर्संबंध के परिचय मिलेला
किन्तु अब ले हमनी के दृष्टि
अपना आसऽपास ना गइल बा.
हमनी के लग्गे राधा, बिहुला, सारंगा, सोरठी
जइसन चरित्र बाड़न.
ठीके हऽ कि इनकर ऐतिहासिकता विवादित हऽ
बाकिर कथा ऐतिहासिक होखें चाहे ना होखें
एसे फरक ना परेला,
काहें से कि
कथा हमनी के भोजपुरी जाति के संवेदना के
व्यक्त करेली.

आजु लिखल जा रहल कहनियन में
संप्रेषणीयता के प्रश्न उठावल जाला.
असंप्रेषणीयता के एक बड़हन कारन
पश्चिम से उधार लिहल शैली के ढाँचे पर
रचना कइल बा.
रचना में अपना लोक संदर्भ
उपस्थित होखे तऽ ऊ
सुपाठ्य बन सकेले.
रचना के "लय" हमनी से छूटल जा रहल बा.
ई लय उदाहरण-स्वरूप
नेउर, कुक्कुर, बिलार आ गरूड़
के समुच्चय से समझल जा सकल जाला.
संत्रास आ कुण्ठा कऽ जबरदस्ती
तूफान उठावे वाले कथाकारन के
अपना जड़ की ओर लौटे के चाहीं.
आरोप लगेला कि लोकगीत आ लोकगाथा
अपेक्षाकृत पिछड़ल विधा बाड़ीं
उनकर आधुनिक "मन" से
कौनो खास नाता नइखे.
जटिल संवेदना के जेतने
सहज ढंग से प्रस्तुत कइल जाव -
ओतने कौशल के बाति बा.
ठीक है कि प्राचीन युग एतना
जटिल ना रहल
बाकिर सब कुछ "भातेभात" रहल -
अइसनों ना रहल.
जटिलता वायवी ना,
विकसनशील समाज के क्रमिक परिणति बा.
एही से लोककथा के सहेज के रखले से
हमनी केआंतररिक व सामाजिक विकास होला.
उनकरे मूल्यांकन में वस्तुनिष्ठता बरते के चाहीं.
कौनहू समाज के बिहुला जइसन चरित्र सृजित कऽ के
प्रसन्नता होखे के चाहीं.

नयापन परंपरा के निषेध नइखे

 

नयापन परंपरा के निषेध नइखे



परिचय दास


एह बेर कातिक मास
वइसहीं ना बीत गइल.
भीतर कुच अकुलाहट अनुभूत भइल.
क्षेत्र केमेला लगेला.
मेला के राजकीय
आ वैयक्तिक तइयारी होला.
अपना-अपना घर आँगन
लीप-पोत के
कइल जाला चित्रित.
रस्तन के होला सफाई.
आवेलें अतिथि
तऽ हर्षित मन से स्वागत होला. ....
किन्तु एह बेर कुछ भिन्न रहल.
सूर्यषष्ठी
(जेके भोजपुरी, मगही आ मैथिली में
'छठ' कहल जाला)
के परब
गाजा-बाजा से मनवला के
फइसला भइल.
एह परब में
प्रातःकालीन सुर्य के
दिहल जाला अरघ.
सो, बड़ा भोरहीं में
आगे-आगे बाजा वाले
आ पाछे-पाछे ग्राम जन.
यात्रा-गीत के धुन पर
लोग मंदिर के जलाशय पर पहुँचल.
अरघ दिहलें,
सूर्योदय भइल
आ लौटला के भइलें.
हम देखलीं :-
गाजा-बाजा वाले बजनियन में
साइते केहू के गोड़ में चप्पल होखे
आ देंही पर बिना फटल
साफ-सुत्थर कपड़ा.

यद्यपि एके लिखत
हमरा के
सांस्कृतिक तथ्य के व्याख्या करे के चाहीं,
किन्तु हम तऽ
जीवन के वोह पक्ष के भी
देखला के अभ्यासी बानीं,
जहवाँ 'ललित' अपना 'करूण'
रूप में बा.
'ललित' विरोधी नइखे 'करुण' के.
दृष्टि के नैरंतर्य से
दुनहुन के अंतरण के अभास हो जाला..
'ललित' कौनों अभिजात नइखे.
कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु
अइसहीं पात्रन के
सृजन कइले बानीं
जवन जिनिगी के
गहन पीर में भी
उल्लास मनावत लउकेलें.
करुणा हमनी के कब्बों
ना रहे देले एकाकी.

भारतीय सामान्यजन
अपना अभिव्यक्ति में
मितभाषी आ कर्म मे
बहुआयामी होला.
ऊ चंदन नियर घिस के
सुगंध बिखेरत रहेला.
ओकरा के धूसर पाण्डुलिपि
समझीँ :-
बहराँ से देखला पर
अक्षर मरियाउर,
किन्तु अर्थ ओतने
गहिर.
सामान्यजन
'शब्द' आ 'अर्थ' के एगो सृजनशील परिभाषा हवे.

लोकवाद्यन के वादक
अक्सर जिनिगी जीएलें दरिद्रता के.
तुरही, मुरचंग, मृदंग, ढोलक, नगाड़ा आदि
उनके वाद्य होलें.
प्राचीन वाद्यन में
बाँसुरी
आ नया में
कैसियो आ हरमुनिया
के रखल जा सकेला.
आज एतना
'उत्सव' हो रहल बाड़न
लगेला 'उत्सव' के
बहरी सच ही 'सच' हऽ.
मृदंग बजावत
जेकर अंगुरी
टेढ़ हो गइल बानीं
जे दुइ जून खइला के
मोहताज बा,
उनकरी ओर
केतना लोगन के धियान गइल बा?

हमरा बुझाला
कि हमनी के मानसिक दरिद्रता
आर्थिक दरिद्रता की अपेक्षा
ज्यादा घातक हऽ.
हम शोध के सिलसिला में
कोलाकता गइलीं.
उहाँ कालेज स्ट्रीट में
फुटपाथ पर शरत् साहित्य
बिकत रहे
आ जनसामान्य कीनत रहे.
कभी उहाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
'जात्रा' के प्रस्तुति करत रहलीं
आ बड़हन काम खातिर पइसा
जुटावत रहली.
इहाँ
उत्तर आ मध्य भारत में
साइते केहू बड़हन लेखक-कवि
होखे, जे 'लोकनाट्य' या 'लोकवाद्य' से
अतना गहिर संपृक्ति राखत होखे.
एहीनाते
अन्य स्थान पर
सामा्नय लेखक आ कलाकारो के
संपूर्ण सम्मान मिलेला.
कई जगहिन पर तऽ
प्रतिदिन कविता लिखल जालीं
मुद्रित प्रकाशित होलीं
आ बिक जालीं.
लोककलाकार के स्थिति के
एह दृष्टि से भी
देखे के चाहीं.

गाँव की भीत पर
गोबर से लोकचित्र
बना दिहल जालें.
गाँव के अनपढ़ मेहरारुन के के सिखवले होखी -
सुग्घर चित्र बानवल.
उनके सहजे
परंपरा से प्राप्त भइल हवे -
ई उपलब्धि.
का कबीरदास
विश्वविद्यालय केढ़ शिक्षा प्राप्त कइले रहें?
का सूरदास
अलंकारशास्त्र के अध्ययन
कइले रहलें?
ना!
ई तऽ संगति के प्रतिफल रहे.
आज ऊँच शिक्षा के
अर्थवत्ता स्पष्ट ना होखे.
विश्वविद्यालय के शिक्षा ले के भी
हमनी के अंदर 'साहित्य बोध'
नइखे विकसल.
सच पूछीं तऽ
हमनी के एगो गहिर सुरंग में
घुसत जा रहल बानीं जा,
जहवाँ से
निकरला के कौनो
रास्ता नइखे लउकत.

अबहीं रस्तवे में
एक सज्जन मिललें.
ऊ समने वाले धोती कुर्ता वाले के घुरलें,
कुछ बुबुदइलें
आ चलि दिहलें.
बाद में ऊ सज्जन बतवलें
कि धोती कुर्ता वाले
परंपराप्रिय आ नया के विरोधी होलें.
समझ में ना आइल
कि का जवाब देईं?
संसार में
हिन्दुस्ताने अइसन देस होखि,
जहवाँ अपना जड़ के
गारी दे के 'नया' बनल जाला.
नयापन परंपरा के निषेध नइखे -
ओकर विस्तार हऽ.
परंपरा भी नयी-पुरान होत चलेलीं.
का दिन रात के विरोध हऽ?
हम तऽ अइसन ना सोचीलां.
हमरा दृष्टि में तऽ
दिन रात के गर्भ के उज्जर-प्रभा हऽ.

'एह बेर के के वोट देबू काकी?'
हम पूछलीं.
काकी कहलीं
'ऊहे घमसान के.
रात में दस किलो अनाज दे गइल बाड़न,
उनहीं के देबे के बा.
एगो लुग्गो दिहले बाड़न.'
रात के अन्हियार में
आज के लोकतंत्र के व्यौपार
चल रहल बा
हम सोचलीं.
गाँव के बगइचा में
रात में हम
उल्लू बोलत सुनले हईं.
उल्लुअन के कई प्रजाति होलीं.
किंतु सबके ध्वनि के निष्पत्ति
लगभग एक्के होला.
एह ध्वनियन द्वारा
पूरा परिदृश्य विषादमय
बना राखल गइल बा.
एह विषाद-दृ्श्य में
'सामान्य जन' केन्द्र बनेला.

एक तऽ तीत लौकी
दूसरे चढ़ल नीम के पेड़.
जनमुक्ति के चर्चा
रस ले के सुनेलन्
आ जन-द्रोह कइल जाला.
लाल-पीयर, नीला, हरियर झण्डा ले के
अपना कद बढ़ा लेला कुछ लोग.
आम आदमी कऽ कद
वइसन कऽ वइसने रहि जाला.

हमरा चारों ओर
जोर शोर से
हवा चले लगेले.
मों हो जाइले
वितर्कित.
मोर उलझन
के कारण
हवा चलल नइखे,
बल्कि ई कि
ईकहवाँ उड़ा
ले जइहें.
कवनो स्पष्ट दिशा नइखे.
हम हवा पर
अपना के
छोड़ भी ना सकीलाँ.
ई बड़ी नशीली हईं.
पाण्डुलिपि के पृष्ठ
इड़े लगलें.
लऽ, अब का होखी?
एह जहरीली
हवा से
पाणडुलिपि

देश
दुनहुन के
बचावे के परी.

जब ले
सामान्यजन
के
देश के केन्द्र में
वास्तविक रूप से
ना रखल जाई,
ई पृष्ठ
उड़त रइहें.
देश लोक खातिर
होखे के चाहीं.
कस्मे देवाय हविषा विधेम?
लोक देवाय हविषा विधेम.
कहीं अइसन
न होखे
लोकदेवता
के साथे
खूबसूरत छल होखे.
एह धूसर पृष्ठन के
लोकाक्षरन के
सहज
आ आत्मीय
बना के
रखे के होई.

लड़िकपन के गीत

 

लड़िकपन के गीत

ओतने बतिया तूहूँ जानऽ, जतना हमहूँ जानीं.

हमरा पासो पर आफत बा, तहरा बड़हू चानी.
का भईया, तहरा चाहीं, आ हमरा ना चाहीं?

संगही पढ़नी, संगही खेलनी, संगही कइनी छल छन्दर.
हम चोन्हर साठो ना पवनी, तू लिहलऽ पचहत्तर.
का हो भईया, तहरा चाहीं आ हमरा ना चाहीं?


एक मुट्ठी सरिसो, भदर भदर बरिसो.
ना,
एक मुट्ठी लाई महाबीर पर छिटाई बरखा ओनिये बिलाई.


भोला गइलन टोला पर,

खेत गइल बटऽईया,

भोला बो के लड़िका भइल,

ले गइल सिपहिया!

भोला लोला लऽ!


थापुर थुपुर तेलिया,

घीव में चमोरिया,

हम खाईंकि भउजी खाये?

भउजी पतरंगिया,

धई कान ममोरिया.


घुघुआ मन्ना,
उपजे धन्ना,
नया भिति उठेला,
पुरान भिति ढहेला.
सम्हरिये बुढ़िया रे,
तोर सब खेत चरलसि
बाबू के भईंसिया.

लईकाईं में बड़ बूढ़ के गोड़ पर झुलुआ झूलत ई गीत कई हालि सुनले बानीं. रउरो में से अधिका लोग सुनलहीं होखी.


चन्दा मामा,

आरे आवऽ, पारे आव, नदिया किनारे आवऽ,

सोने के कटोरवा में दूध भात लेले आवऽ,

बबुआ के मुहँवा मे घुटुक.

आवऽ हो उतरि आव हमरी मुँडेर,

कबसे बोलाइले, भइल बड़ी देर.

भइल बड़ी देर हो, बाबू के लागल भूख.

आरे आवऽ, पारे आव, नदिया किनारे आवऽ,

सोने के कटोरवा में दूध भअत लेले आवऽ,

बबुआ के मुहँवा मे घुटुक.


रामजी रामजी घाम करऽ,

सुगवा सलाम करे,

तहरा लड़िकवन के जड़वत बाटे.


नानी किहाँ जायेम,

पुअवा पकायेम,

नानी कही बतिया रे,

आइल हमार नतिया रे !


ओका, बोका, तीन तलोका,

लउआ लाठी, चनन काठी,

चनना के राजा,

इजई, विजई, पनवा पुचुक !

छोट छोट लड़िका लड़िकी गोल में बईठ के ई खेल खेलत रहुवे. सब केहू आपन अँजुरी नीचे जमीन पर रखले रही आ एगो खिलाड़ी एक एक अँजुरी छुअत ई गीत पढ़ी. जवना अँजुरी पर आखिरी शब्द पुचुक पड़त रहुवे ऊ चोर बनी आ बाकी लोग ओकरा के तंग करे वाला सिपाही.

रउरो एही तरह खेलत रहीं कि कवनो दोसरा तरह ?


बहुधा शब्द जब

 

बहुधा शब्द जब



परिचय दास

हम विश्वविद्यालय प्रेक्षागृह में
बइठल रहलीं.
आइल रहलीं अज्ञेय जी.
ऊ करुणामय बुद्ध के निवेदित
अपना कविता के
कइलीं पाठ.
हमरा बगल में बइठल
सज्जन हमरा से बोललें -
"वात्स्यायन जी के सुनत
अइसन लगऽता, जइसे
मौन शब्द बन गइल होखे."
वात्स्यायन जी के
मौन प्रसिद्ध हवे.

साहित्य अकादमी में भइल व्याख्यान,
विषय रहल - "संगीत व विचार".
संगीत के संबंध जइसे राग व छंद से हऽ
वइसहीं हवे मौन से.
वात्स्यायन जी के मौन
ऊहवों चर्चा के केन्द्र में
उपस्थित भइल.
मौन कौनो
निठल्ला के इतिश्री नइखे -
ऊ सकारात्मक क्रिया के
सहज पूर्व भूमिका हवे.
बहुधा शब्द जब आपन
गति खो देलें
तऽ मौन मुखर होला.
का खाली शब्दवे हमनी के
विचारन के
अभिव्यक्ति देलें?
देखीं तऽ
भावमुद्रा शब्दन से अधिक
बलवती आ
वेगवती होलीं.

बिहारी के नायिका
"भरे भौन में नैनन ही सौं बात"
करेले.

कहला के अंदाज देखीं -
"कहत नय्न रीझत -खिझत
मिलत-खिलत लजियात,
भरे भौन में करत है
नैनन ही सौं बात."
सन्नाटा
के एगो
छंद होला.
एगो छंद
मौन कऽ.
मौन में
अपंगता ना होले -
यानी
समर्थ के
मौन फबेला.
बिल्कुल चुपचाप
घाघरा के तट पर
साँझ की वेला में
निकरि पड़ीं लाँ.
शब्दहीन
हम चहलकदमी कर रहल हईं
कि कौनो लइका
(बड़हलगंज चाहे दोहरी घाट में से
कहीं के होखीं)
विरहा टेरऽता -

"बलुआ रेतिया डगरिया चलब कइसे."

बालू के रेत
भगवान भास्कर के
रश्मि से
तरइन जइसन
चमक रहल बा.
मिनिट
दो मिनिट बादे सुरुज देवता
भारत से अमरीका के यात्रा पर
चलि जइहें.

हम अपलक
देख रहल बानीं -
एतना सोना !
रश्मिस्वर्ण !!
बजारी के सोना के
मूल्य जेतना होखे,
ई सोना तऽ
अमूल्य हवे!

आजु पेशेवर विचारक
बहुमूल्य विचार देलें
बाकिर अमूल्य ना !...
किन्तु महज विचारन से
का होई ?
समकालीन दुनिया के
संकटे ई बा कि
विचार आ कर्म के
सामंजस्य नइखे.
शुभ आ लाभ के
नइखे समन्वय.
एही से किताब
पुस्तकालय में परल
कराह रहल बाड़ीं
आ विचार कर्महीनता के
चक्रव्यूह में.

बड़ बूढ़ बतावेलन् कि
सिद्ध जन बहुत अच्छा
ना देलें भाषण.
ऊ जेवन बोलेलन्
ओप्पर चलला के करेलन् प्रयास.
एही से उनकर
शब्द 'ब्रह्म' बनेला.
ब्रह्म कवनो वायवी अवधारणा तऽ बा ना.
ऊ तऽ
हमनी के
आत्मीय जरुरत हवे -
जइसे
शब्द.
जइसे
मौन.

एह संसार में
जवन कुछ
मंगल
या
शुभ हवे :
ओकर
एगो छन्द होला

माघ के कुहासा
छेंक लेला रस्ता.
हम ओके
पार कइला के
कोशिश करिलाँ !
रात में
बइठी लाँ तऽ
बुढ़िया माई साग-भात
देली खाये के.
हम ओके बोरसी पर
गरम करे के
कही लाँ.
हम कउड़ा का लग्गे
बइठ जाईलाँ.
तब ले घर भरन
आवेलन्
अवते
कुछ कहे के होलें.
हम जानीलाँ
कि ऊ गाँव भर के
बाति के खबर रखेलें.
कुछ लोग उनके नारदो कहऽ लें.
ऊ कहलें -
"अरे, बाबू सुनि लाँ कि
परमुआँ के घर में
'हुँड़ार' आइल रहे."
उनके 'हुँड़ार' शब्द पर
जोर देते
हम समझि गइलीं
कि मामला कुछ अऊर हऽ.
हम मौने रहलीं.
ऊ फेरू कहे शुरू कइलें -
"देखऽ न, गाँव में ईहे आजकल
हो रहल बा.
अब मनई के
कइसे बची इज्जति ?"

दूसरा दिने केहू
हमरा के बतवलस
कि खुद घरभरने परमुआँ के घरे में
घुसल रहलें.
हम सोचलीं :
शब्दन से
धोखेबाजी अइसहीं
कइल जाला :
"हम नाम भी लेलाँ
तऽ हो जाईलाँ बदनाम.
ऊ कतल भी करेलें
तऽ चर्चा नाहीं होला."
मारीचो लेले रहल
शब्द के सहारा.
वाक्छल के सहारा
'अश्वत्थामा' के केस में भी
लिहल गइल रहे.
अगर एही के आश्रय
ना लिहल गइल होइत
तऽ बाति ई ना कहित :
'कारन कवन नाथ मोंहि मारा.
मैं बैरी, सुग्रीव पियारा.'

ई कहि के
हम मारीच चाहे बालि के
वकालतनामा
नइखीं पेश करे जात.
वइसे
माइकेल मधुसूदन दत्त मेघनाद के
पक्ष लिहले रहलें.
हम तऽ सिरिफ
शब्दन के
आचार-विचार के
प्रश्न
खड़ा कर रहल बानीं.

हमनी के उपस्थिति
शब्दन के बाहरी कलेवर ले खाली
ना होखे के चाहीं.
हमनी के ओकर
'न्यूक्लियस' (अभिकेन्द्रक )
पहिचाने के चाहीं.
शब्दन के छलना-वर्जना के
एगो सात्विक प्रतिक्रिया
देवे के चाहीं.
सबसे निम्मन हऽ :
मौन के मधु बना लीहल -
मौन मधु हो जाय.

बाति आ अपने बीच के
तटस्थता
जरूरी बा.
वात्स्यायन जी
अपना व देवता के बीच में
ओट रखला के
बाति कइले रहलीं.
आजु देवता लोगन के प्रति
नयी दीठ बन रहल बा.
उपनिषद् में एक जगह
'तर्क' के गुरु मानल गइल बा.
आधुनिका युग के 'नया देवता'
की भूमिका में
'चिरंतन दृष्टि ' ही हो सकेले.
शमशेर बहादु सिंह के शब्द लिहल जाव तऽ -
'बात बोली, हम ना
भेद खोली बतिए' .

हम शब्द आ मौन के द्वन्द्व में
परि के सैकत भूमि पर न जाने
निकरि अइलीं कहवाँ !
कुछ लोग कह सकेलें
कि जहाँ न पहुँचे रवि
उहाँ पहुँचे कवि....
किन्तु
हम तऽ अइसन जगह देखले बाड़ीं
जहाँ न कवि पहुँच पावेला
न रवि !
सरयू के तट पर
बनल मल्लाहन आ पंडन के
घरन देखीलाँ ...
सीलन भरल ....
न इहवाँ
कब्बों कवि पहुँचल हऽ
न रवि.

बालू
के चमकत
कण-राशि
उनके आमंत्रण देलीं.

तन कातिक, मन अगहन

 

तन कातिक, मन अगहन



परिचय दास

बात में क्रमबद्धता होखे के चाहीं.
सो, भारतीय मनीषा के सम्मान करत
प्रारम्भ आषाढ़ से करीं.
तेलुगु के प्रसिद्ध कवि आचार्य रायप्रोलु सुब्बाराव के
एगो कविता के भावार्थः

"अकाश में करिया-करिया बादर
एन्नी-ओन्नी मड़रात हवें,
मानो असाढ़ कन्या के अलकजाल के
सुहावनी लट
झटका खा- खा के डोल रहल बाड़ीँ.
वोह लटन के आड़ में
परि जाए के कारन पूनम के चनरमा के
मुखमण्डल रहि-रहि के
छिप जाला.
तमाल के वृक्ष तऽ अइसन
लग रहल बाड़न
जइसे सगरो दिशांचल में बिखर गइल होखे नीलम के हार.
बादर घुमड़ रहल हवें
आ ओकर छाया
धरती पर पड़ रहल बा.
उनकर श्याम कलाप-समूह पर
आपन दीठ गड़वले मोर
भावविह्वल होके मानीं
केवनों अपूर्व सुख के
हिंड़ोला पर झूल रहल बाड़न.
लगेला, जइसे उन पर कवनो
उन्माद छा गइल बा.
मोरवन के कलाप
देखते-देखत स्वयमेव खुल गइलें.
उनकर ई नृत्योत्सव तऽ
आज हमनी के नेत्रोत्सव बन गइल बाड़न
आ सागर के गर्भ से
झुण्ड के झुण्ड निकरि के
अपना दुर्दान्त गर्जन-तर्जन से
दिशा के कँपावत
ये बादर उमड़ि-घुमड़ि के
एह तरह से चलत जात हवें
मानीं विप्रलंभ के फंदा में
फँसा खातिरे
कौनो नवयौवना की उमिरी में
खौलत दूध नियर
तेजी से उफान आ रहल होखे !"

विप्रलंभ के फंदा !
का खूब कहलें कवि !!
ई फंदा कातिक-अगहन आवत-आवत
आउर मारक बन जालाः

"प्रथम मास आसाढ़ ए सखि, घेरि अइले जलधार हो.
हमहूँ विरहिन दुःख में बूड़ी, केहू ना करे उपकार हो.
सावन ए सखि देव बरिसे, गरज के डरवावहिं,
चहुँ ओर पपिहा, मोर बोले, बेंग सबद सुनावहीं.
भादों गगन गम्भीर ए सखि ! घेरि अइलें जलधार हो,
बालम मोर विदेस गइले, केकरा सरन में जाइं हो.
कुवार ए सखि ! आस लागे, जोहीं पिया के बाट हो,
लोभी कंत विदेस गइले, भोर भइले भिनुसार हो.
कातिक कंत बिदेस ए सखि, पिया जे रहिते साथ में,
दुःखसुख सब संग कटितौं, दिया बरितौं अकास में.
अगहन ए सखि ! बेइल फूले, अवरू फूलेला धान हो,
चकवा चकई केलि करेला, सरवर मँझधार हो."

ई क्रम आगे बढ़ल जाता,
किन्तु हम तऽ विरहिनी से कहब
कि ऊ धीर धरे.
ऊ हऽ कि धीरे ना धरे.
बैसाख में "ओसे"
भेंट होला.
गर्मी में ऊ देंह पर
करेले चंदन लेप
कि ऊ लउक जाला.

नायक के अनुपस्थिति में
नायिका गाँव-जवार
प्रकृति‍परिवेश के देखि
करेले संतोष
आ योजना बनावेले बरिस भर के
कि "ऊ" होत तऽ का-का करित
ओकरा साथे ?
कातिक में प्रिय होइत
तऽ दिया जराइत अकास में.
अगहन में ओकर मन
फुला जात बेइल नियर
आ महक जात धान नियर.

भारतीय परंपरा में
दीया जरावल हऽ युग्म-संपृक्ति.
दीया में होली दुइ गो बाती.
आजु जब हम देखीले
लट्टू बलफ के तऽ
हमरा होला महसूस
कि ओकरा रोसनी चाहे जेतना तेज होखे
चुँधिया देले.
ओमे ऊ आत्मीयता कहाँ
जवन होले एगो अदना दीया में.
दीया के हल्लुक-हल्लुक, मद्धिम-मद्धिम
लौ में होला कौनो अनकहल गंध
जवन माटी के बरतन
आ तेल के कारन
उत्पन्न होला.

का कहल जाव बेइल का बारे में ?
ओकरा बारे में तऽ
प्रसिद्धे बा :
"बेला फूले आधी रात."
अब केहू पूछ सकेला केहू ललित ढंग से
कि ऊ काहें फूलेला आधि रतिए में ?
ई हमनी के संजोग के पल के
अउर सार्थक आ कोमल बनावे खातिरे
होई फूलत - अइसन सोचीलाँ.
बेइल एगो छोट, नान्ह-नान्ह पुष्प हवे.
ऊ शक्ति भर मँहकेला
आ हमनी के कइल जाला अभिसार.

हमनी के जिनिगी के कोमल-प्रसंग
सुलभ ना होलें अतना असानी से.
ऊ कठकरेजी दुनिया के
भालें ना बहुत.
आखिर कारन का हऽ
कि प्रेम कइल आसान ना.
यदि रउवाँ कर रहल हईं प्रेम केहू से
तऽ आज की दुनिया में
जरि रहल बानी एगो जरत भट्ठी में.

हमनी के आपन रागबोध
जी पावल जाला केतना -
ई अनुभूति से
लगावल जा सकल जाला पता.
प्रेम के सत्ता शब्द के अलावा भी होले.
कब्बों-कब्बों बिना कहले
कहि दिहल जाली सगरो बाति.
हमनी के जीवन में
जवन कुछ उद्दात, ललित आ शुभ हऽ
उतरि आवेला प्रेम में.

कातिक-अगहन में
हमनी के घर भरल होलें अन्न से.
लछिमी के वास होला.
गाँवन में कृषि-संस्कृति के रूप
बदल रहल बा अब.
कृषि अब इच्छापूर्वक कइल जाएवाला
ना रहल व्यवसाय.
खाद के दाम से लेके
अनाज तक के बिक्री में
जवन कठिन मार परेला कृषक पर -
ऊहे जानेला.
कठजङरई के भरोसे
जवन अन्न मिलेला
तवन मिलेला.
ईहे कारन हऽ
कि गाँव-जवार के लइको
भाग रहल बाड़न सहरी में.
तऽ सहर आ गाँव के बीच
चल रहल बा षगो अघोषित लड़ाई.
कौनो समाजशास्त्री कहले बाड़न
कि सहर अमूमन
माध्यम हवें शोषण के.

भारत माता
बाड़ी ग्रामवासिनी.
अब ऊ ब्लैक-मार्केटियरन के हाथ में
फसल बाड़ी सहर में.
एह कालाबाजारियन के बहुराष्ट्रीय कंपनियन से
चलेला आँख मिलउवरि.
हमरा अनुमान बा
कि यदि अइसहीं देस के धन
विदेसी कंपनियन के हाथ के खिलौना
बनल रहल
तऽ एगो नई आर्थिक संस्कृति पर
पुनर्विचार हो जाई आवश्यक.

एगो समूचि सजिश के तहत
देस के कातिक आ अगहन के बेचला के
हो चुकल बा तइयारी.

एगो जमाना रहे कि
लोग गर्व करे स्वदेशी चीज पर.
अब "फारेन" के नाम पर
चल सकेला कुछ भी.
भारतीय महीनन के नामे इयाद ना रहेला
न भारतीय संवत के वर्षांक.
लइकन के उपनाम अइसन धराला
जेम्में पुरहर ब्रिटिश संस्कृति के
आवेले चकाचौंध.

कातिक में कूटल जाला चिउरा महकउवा धान के
त लगेला बड़ा निम्मन.
कुछ लोग करेला ओकर पारन दही से.
चिउरा-दही में गुरओ होखे
तऽ का कहे के बा.

चिउरा कूटत
रउवाँ देखले होखब कुछ गाँव के नवहर लइकियन के.
जब ऊ कूटेलीं
तो लउकेले लयबद्धता उन्हनीं में.
ई लयबद्धता जइसे कातिक आ अगहन के
होखे जुगलबंदी.
बड़े भोरहीं अगहन
जइसे राग छेड़त होखे.

नायिका के मन
लागल बा प्रियतम में.
प्रियतम छली अबहीं लौटते नइखे.
नायिका के तन-मन रीत रहल बाड़न
जइसे कातिक आ अगहन बीत रहल बाड़न.